होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है

होम्योपैथी एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथिक दवाइयाँ किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है।

भारत होम्योपैथिक चिकित्सा में वर्ल्ड लीडर हैं।

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है। होम्योपैथी में किसी भी रोग के उपचार के बाद भी यदि मरीज ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह रोग का मुख्य कारण सामने न आना भी हो सकता है।

होम्योपथी दवा मीठी गोली में भिगोकर देते हैं

होम्योपथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं।

होम्योपैथी की सबसे खास बात है कि आप डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं। इससे किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट होने का खतरा नहीं होता।

ग्रैशियोला Gratiola

 ग्रैशियोला Gratiola

परिचय-

ग्रैशियोला औषधि को पेट के रोगों और दस्तों को समाप्त करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। मलक्रिया के दौरान मलद्वार में जलन होना, स्त्रियों के मासिकधर्म सम्बंधित रोगों में, सिर दर्द में भी ये औषधि बहुत अच्छा असर करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर ग्रैशियोला औषधि का इस्तेमाल-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर में खून का बहाव तेज हो जाने के कारण रोगी को आंखों से कुछ भी नज़र नहीं आना, दिमाग का सिकुड़ता हुआ सा प्रतीत होना, माथे की त्वचा का सिकुड़ जाना, आंखों में जलन सी महसूस होना, पास की चीज का साफ दिखाई न देना जैसे लक्षणों में रोगी को ग्रैशियोला औषधि देने से लाभ मिलता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

रोगी चाहे जितना भी खाना क्यों ना खा ले फिर भी उसे ऐसा महसूस होना जैसे कि अभी कुछ खाया ही नहीं, खाना खाने के बाद चक्कर से आना, आमाशय का फूल जाना, तरल पदार्थो को गले से निगलने में परेशानी होना, रात को भोजन करने के बाद पेट में मरोड़े उठना और दर्द होना, सूजन आना और कब्ज का रोग होना जैसे लक्षणों में रोगी को ग्रैशियोला औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

मल से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को हरे रंग के पानी जैसे दस्त आना, मलद्वार में जलन होना, मलक्रिया के दौरान मल का बड़ी तेजी से बाहर निकलना, पेट में कब्ज का बनना, मलान्त्र का सिकुड़ जाना, खूनी बवासीर होना जैसे लक्षणों में रोगी को ग्रैशियोला औषधि का प्रयोग कराने से आराम आता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

स्त्री की यौन उत्तेजना का तेज हो जाना, मासिकधर्म के दौरान स्राव का समय से पहले आ जाना, बहुत ज्यादा मात्रा में आ जाना और काफी समय तक आते रहना, योनि में से पानी आना जैसे लक्षणों में रोगी को ग्रैशियोला औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

वृद्धि-

ज्यादा मात्रा में पानी पीने से रोग बढ़ जाता है।

तुलना-

ग्रैशियोला औषधि की तुलना डिजिटै, यूफ्रे, टैबा, कमो, अमोनि-पिक्रे, नक्स-वोमिका से की जा सकती है।

मात्रा-

3x या 3 से 30 शक्ति तक।

जानकारी-

जिन लोगों को रात को लेटने के बाद भी नींद नहीं आती उनके लिए भी ये औषधि बहुत लाभकारी सिद्ध होती है।


गुआको Guaco

 गुआको Guaco

परिचय-

गुआको औषधि स्नायु प्रणाली और स्त्री के जननांगों पर अधिक प्रभाव उत्पन्न करती है। इसके अलावा बिच्छू तथा सांप के जहर को फैलने से रोकने के लिए, हैजा रोग में, रीढ़ की हड्डी में सूजन आना आदि रोगों में भी ये औषधि अच्छा असर करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर गुआको औषधि का उपयोग-

गले से सम्बंधित लक्षण-

किसी भी चीज को खाते या पीते समय गले से निगलने में बहुत ज्यादा परेशानी होना, आवाज की नली और सांस की नली का सिकुड़ जाना, जीभ का बहुत ज्यादा भारी सा महसूस होना जिससे कि उसे हिलाने-डुलाने में परेशानी होती है आदि लक्षणों में रोगी को गुआको औषधि का सेवन कराने से आराम मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

स्त्री की योनि में बहुत ज्यादा मात्रा में, तीखा सा, पीब के रूप का स्राव आना, रात को शरीर के अंगों में इतनी तेज खुजली महसूस होना जैसे कि उनमें से आग निकल रही हो आदि लक्षणों के आधार पर गुआको औषधि का प्रयोग करना लाभदायक रहता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण-

पेशाब का ज्यादा मात्रा में आना, गन्दे से रंग का आना, पेशाब करने की नली के ऊपर बहुत तेज दर्द होना आदि लक्षणों में गुआको औषधि का सेवन कराने से रोगी को आराम आता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण-

कंधे के बीच वाले हिस्सों में दर्द जो बाजू तक पहुंच जाता है, कंधे के जोड़ पर जलन सी महसूस होना, रीढ़ की हड्डी के मुड़ने से बहुत तेज दर्द होना, कमर और नितंब में थकान सी महसूस होना आदि लक्षणों में गुआको औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण-

नितंबों के जोड़ के पास दर्द महसूस होना, टांगों का भारी लगना, टखनों के जोड़ों और पैरों के तलुवों में दर्द सा होना, कंधे, कोहनियों, बांहों और हाथों की उंगलियों में बहुत तेज दर्द का होना, जनेनन्द्रियों में लकवा सा मार आदि लक्षणों में रोगी को गुआको औषधि का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

वृद्धि-

गति करने से रोग बढ़ जाता है।

तुलना-

गुआको औषधि की तुलना आक्जैलिक एसिड, लेथीरस, कास्टिकम से की जा सकती है।

मात्रा-

गुआको औषधि की तीसरी से छठी शक्ति तक रोगी को देने से लाभ होता है।


ग्रिण्डेलिया Grindelia

 ग्रिण्डेलिया Grindelia

परिचय-

ग्रिण्डेलिया औषधि पेट में होने वाले जख्मों, जी मिचलाना और उबकाई आना, पेशाब के साथ मीठा आना (मधुमेह), आग से जल जाने के कारण होने वाले छाले, योनि से स्राव के आने में आदि रोगों में लाभ करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर ग्रिण्डेलिया औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर का बहुत ज्यादा भारी सा महसूस होना, आंखों के गोलों में होने वाला दर्द जो दिमाग तक फैल जाता है, आंखें हिलाने से तेज होने वाला दर्द, आंखों की पलकों का फैल जाना, सूपयनेत्राभिष्यन्द और परितारिकाशोथ आदि सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को ग्रिण्डेलिया औषधि देने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण-

सांस की नली में सूजन आ जाना, दम सा घुटता हुआ महसूस होना, दमा रोग होने के साथ-साथ बहुत ज्यादा मात्रा में चिपचिपा सा बलगम निकलना, सोते ही सांस का बन्द हो जाना, रात को सोते समय अचानक चौंक कर उठ बैठना, लेटे-लेटे सांस लेने में परेशानी होना, काली खांसी होने के साथ-साथ बहुत ज्यादा मात्रा में बलगम का निकलना, सांस की नलियों से सख्त तथा सफेद रंग का बलगम सा निकलना, दिल का कमजोर हो जाना आदि लक्षणों में रोगी को ग्रिण्डेलिया औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

प्लीहा से सम्बंधित लक्षण-

पूरे प्लीहा में बहुत तेजी से होने वाला दर्द जो कुछ ही देर में नितंबों तक फैल जाता है, प्लीहा का बढ़ जाना आदि लक्षणों के आधार पर ग्रिण्डेलिया औषधि का सेवन लाभदायक रहता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण-

त्वचा पर छोटे-छोटे गुलाबी से रंग की खुजली और जलन के साथ दाने निकलना, त्वचा पर जख्म होने के साथ-साथ त्वचा में सूजन आ जाना और उसका नीला पड़ जाना, त्वचा पर खुजली सी महसूस होना, परिसर्पीय छाजन आदि चर्मरोगों के लक्षणों में रोगी को ग्रिण्डेलिया औषधि देने से लाभ मिलता है।

तुलना-

ग्रिण्डेलिया औषधि की तुलना लैकेसिस, सैग्वीनेरिया, टार्टा से की जा सकती है।

मात्रा-

ग्रिण्डेलिया औषधि का मूलार्क या 1 से 15 बूंदों तक रोगी को देना चाहिए।


गुआरिया (बालवूड) Guarea (Ballwood)

 गुआरिया (बालवूड) Guarea (Ballwood) 

परिचय-

गुआरिया औषधि को आंखों के रोगों को दूर करने के लिए बहुत ही उपयोगी माना जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर गुआरिया औषधि से होने वाले लाभ-

आंखों से सम्बंधित लक्षण-

आंखों की पलकों में सूजन आना, आंखों के अन्दर के गोलों का बहुत ज्यादा भारी हो जाना, आंखों से अपने आप ही आंसू आते रहना, आंखों के रोगों के लक्षण बहरेपन के साथ बदल-बदल कर आना, किसी भी वस्तु का साफ तौर पर दिखाई न देना आदि लक्षणों में रोगी को गुआरिया औषधि देने से लाभ होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसका सिर आगे की ओर गिर रहा हो, सिर में इस तरह का दर्द होना जैसे कि सिर में किसी तरह की नज़र न आने वाली चोट लगी हो आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को गुआरिया औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण-

बहुत तेज खांसी होने के साथ-साथ पूरे शरीर का पसीने में भीग जाना, छाती में दर्द होना और ऐसा महसूस होना जैसे कि छाती जकड़ गई हो, आवाज की नली जैसे बहुत उत्तेजित हो गई हो जैसे सांस के रोगों के लक्षणों में गुआरिया औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

मात्रा-

मूलार्क।


गायकम Guaiacum

 गायकम Guaiacum

परिचय-

गायकम औषधि को गले के टांसिलों को दूर करने में काफी उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा गर्मी के कारण मुंह के अन्दर, गले में, तालु में जख्म हो जाने में भी ये औषधि बहुत अच्छा असर करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों में गायकम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण-

किसी भी बात को कुछ ही देर में भूल जाना, सोचने-समझने की शक्ति कम हो जाना, मन में कोई बात न आ पाना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को गायकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर और चेहरे के जोड़ों में दर्द जो गर्दन तक फैल जाता है, सिर में दर्द होना, सिर में सूजन के साथ ऐसा महसूस होना जैसे कि खून की नलियां फूल गई हो, सिर के बाएं हिस्से में हल्का-हल्का सा दर्द होना आदि सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को गायकम औषधि देने से आराम आता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण-

आंखों के आसपास के भाग में फुंसियां सी निकल जाना, आंखों के गोलों का फैल जाना, पलकों का बहुत छोटा-छोटा सा लगना जैसे लक्षणों के नज़र आने पर तुरन्त ही गायकम औषधि का प्रयोग करने से लाभ होता है।

गले से सम्बंधित लक्षण-

गला सूखा हुआ सा महसूस होना, गले में जलन होने के साथ सूजन आना, गले में गठिया के कारण जलन होने के साथ-साथ गले की पेशियों का कमजोर हो जाना, कान की ओर किसी चीज के चुभने जैसा महसूस होना, गर्मी के कारण गले में जलन होना आदि गले के रोगों के लक्षणों में रोगी को गायकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

आमाशय के अन्दर जलन सी महसूस होना, जीभ पर मैली सी परत का जमना, मन में सेब या दूसरे फलों को खाने की इच्छा होना, दूध को देखते ही जी खराब हो जाना, पाचन संस्थान का सिकुड़ जाना जैसे लक्षणों में रोगी को गायकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण-

आंतों में खमीरण, आंतों में बहुत ज्यादा हवा का भर जाना, दस्त होना और बच्चों को दस्त होना जैसे लक्षणों के नज़र आने पर रोगी को गायकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

पेशाब-

पेशाब करने के बाद में पेशाब की नली में तेज जलन होना, अविराम इच्छा जैसे लक्षणों में रोगी को गायकम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसका दम सा घुट रहा हो, दम घोट देने वाली सूखी खांसी, खांसी होने के बाद सांस में से बदबू आना, फेफड़ों की झिल्लियों में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना, पसलियों को मोड़ने से छाती में दर्द होना और बलगम न निकलने के कारण सांस का फूल जाना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को गायकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

जिन स्त्रियों को गठिया का रोग होता है उनके डिम्बाशय में सूजन आना, मासिकस्राव का सही समय पर न आना और दर्द के साथ आना, पेशाब की नली में बहुत ज्यादा उत्तेजना होना जैसे लक्षणों में रोगी स्त्री को गायकम औषधि का प्रयोग कराना लाभदायक होता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण-

सिर से लेकर गर्दन तक दर्द होना, गर्दन के जोड़ के ऊपर हल्का-हल्का सा दर्द महसूस होना, गर्दन का अकड़ जाना, कंधों में बहुत तेज दर्द होना, स्कंधफलकों के बीच के भाग से लेकर सिर के पीछे के भाग तक किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना जैसे लक्षण अगर किसी व्यक्ति में प्रकट हो तो उसे गायकम औषधि देने से आराम मिलता है।

बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण-

रोगी के कंधों, बांहों और हाथों में गठिया के कारण होने वाला दर्द, जांघों में किसी चीज के चुभने जैसा महसूस होना, शरीर के अंगों के अकड़ जाने के कारण उन्हे हिलाने-डुलाने में परेशानी होना, टखनों का दर्द जो पूरी टांगों में फैल जाता है, जोड़ों में सूजन आ जाना, गर्मी का बर्दाश्त न कर पाना, शरीर के अंगों में ऐसा महसूस होना जैसे कि किसी जहरीले कीड़े ने डंक मार दिया हो आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को गायकम औषधि का सेवन नियमित रूप से कराने से लाभ मिलता है।

प्रतिविष-

नक्स, सीपिया के बाद।

तुलना-

गायकम औषधि की तुलना मर्क्यू, कास्टि, रस, मेजीरि, रोडोडे से की जा सकती है।

मात्रा-

गायकम औषधि को मूलार्क या 6 शक्ति तक रोगी को रोग के लक्षण के आधार पर देने से लाभ हो जाता है।


जिम्नोक्लैडस (अमेरिकी कॉफी-वृक्ष) Gymnocladus (American Coffee-tree)

 जिम्नोक्लैडस (अमेरिकी कॉफी-वृक्ष) Gymnocladus (American Coffee-tree) 

परिचय-

किसी व्यक्ति के सिर में दर्द होना, माथे, कनपटियों तथा आंखों के ऊपर जलन होना, जीभ पर सफेद रंग की परत सी जम जाना, गले में जलन होना आदि रोगों के लिए जिम्नोक्लैडस औषधि को बहुत ही उपयोगी माना जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जिम्नोक्लैडस औषधि का उपयोग-

चेहरे से सम्बंधित लक्षण-

चेहरे पर ऐसा महसूस होना जैसे कि उस पर मक्खियां सी रेंग रही हो, विसर्प (चेहरे पर जहरीले फोड़े-फुंसियों का होना), दांतों में बहुत ज्यादा संवेदनशीलता होना जैसे लक्षणों में रोगी को जिम्नोक्लैडस औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

गले से सम्बंधित लक्षण-

गले में बहुत तेज दर्द होना, गले में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना, गले के अन्दर बलगम जमा होना, सरसराहट के साथ सूखी खांसी होना, गलतोरणिका तथा गलतुण्डिकाओं की गहरी नीली लाली जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को जिम्नोक्लैडस औषधि देने से लाभ मिलता है।

तुलना-

जिम्नोक्लैडस औषधि की तुलना लैकनेथ, लैकेसिस, ऐलान्थ, और रस के साथ की जा सकती है।

मात्रा-

कम शक्तियों के तनुकरण।


जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे Gymnema Sylvestre

 जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे Gymnema Sylvestre

परिचय-

मधुमेह रोग को दूर करने के लिए जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे को सफल औषधि माना जाता है। इसके अलावा यह औषधि सांप के जहर को भी समाप्त करने में लाभकारी है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे औषधि का उपयोग-

पेशाब से सम्बंधित लक्षण-

पेशाब के साथ शक्कर आना, पेशाब करने के बाद रोगी को शरीर में कमजोरी सी महसूस होना, पेशाब का बार-बार और सफेद रंग में आना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे औषधि देने से लाभ मिलता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण-

पूरे शरीर की त्वचा में जलन सी महसूस होना, मधुमेह रोग के कारण शरीर में जख्म हो जाना आदि लक्षणों में जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे औषधि का प्रयोग करने से आराम मिलता है।

जीभ से सम्बंधित लक्षण-

बार-बार प्यास लगने जैसे लक्षण किसी व्यक्ति में नज़र आने पर उसे जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे औषधि देने से लाभ होता है।

जननांगों से सम्बंधित लक्षण-

संभोग क्रिया करने के दौरान अपने सहभागी को पूरी तरह से सन्तुष्ट न कर पाने जैसे लक्षणों में रोगी को जिम्नेमा सिल्वेस्ट्रे औषधि का इस्तेमाल कराने से लाभ होता है।

मात्रा-

मूलार्क या 8x से 6x शक्ति तक।


जिनसेंग Ginseng

 जिनसेंग Ginseng

परिचय-

जिनसेंग औषधि सुषुम्ना नाड़ी के नीचे के हिस्से पर बहुत उपयोगी क्रिया करती है। इसके अलावा कमर का दर्द, गृध्रसी (साइटिका), गठिया का दर्द, चर्मरोगों के लक्षणों में, गर्दन और छाती पर छोटी-छोटी फुंसियां सी निकलना जिसमें खुजली सी होती रहती है, हिचकी आने में ये औषधि बहुत ही असरदार क्रिया करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जिनसेंग औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर के घूमने के कारण चक्कर आना जिसकी वजह से आंखों के सामने अजीब से धब्बे नज़र आते हैं, आधे सिर में दर्द होना (माइग्रेन), पलकों को खोलने में परेशानी होना, आंखों से हर चीज का दो-दो दिखाई देना जैसे लक्षणों में रोगी को जिनसेंग औषधि देने से लाभ होता है।

गले से सम्बंधित लक्षण-

किसी व्यक्ति में गलतुण्डिकाशोथ (गले में सूजन आना) जैसे लक्षण प्रकट होने पर उसे तुरन्त ही जिनसेंग औषधि का सेवन कराने से आराम आ जाता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण-

बार-बार वीर्य का अपने आप ही निकल जाना और इसी कारण से गठिया का दर्द होना, जनेनन्द्रियों का कमजोर हो जाना, पेशाब करने की नली के आखिरी सिरे पर उत्तेजित सरसराहट होना, यौन उत्तेजना का तेज होना, अण्डकोषों में दबाव सा पड़ना आदि लक्षणों में रोगी को जिनसेंग औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण-

पेट का बिल्कुल सख्त सा हो जाना, पेट में दर्द होना और अजीब-अजीब सी आवाजें आना, पेट में दांई ओर दर्द होना, आंतों में बहुत तेज गुदगुदाहट होना जैसे लक्षणों में जिनसेंग औषधि का इस्तेमाल अच्छा रहता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण-

हाथों में सूजन आना, त्वचा का सख्त सा लगना, रीढ़ की हड्डी और पीठ पर कंपकंपी सा महसूस होना, कमर के नीचे के हिस्से तथा जांघों में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, उंगलियों के पोरों में बहुत तेज जलन होना, जांघों के ऊपर अन्दर के हिस्सों पर दाने निकलना, जोड़ों का अकड़ जाना, जननेन्द्रियों का भारी सा लगना, जोड़ों में कड़कड़ाहट सी होना, पीठ का अकड़ जाना जैसे लक्षणों के किसी रोगी में हो जाने पर उसे जिनसेंग औषधि का नियमित रूप से सेवन कराने से लाभ होता है।

तुलना-

अरेलि, कोको और हेडरा से जिनसेंग औषधि की तुलना की जा सकती है।

मात्रा-

मूलार्क या 3 शक्ति तक।


गेटि्सबर्ग वाटर Gettysburg Water

 गेटि्सबर्ग वाटर Gettysburg Water 

परिचय-

नाक और गले के पीछे के भागों से रेशेदार बलगम का आना, गर्दन की पेशी का सख्त हो जाना, शरीर के जोड़ों का कमजोर हो जाना, भारी वजन को उठा पाना, गठिया का पुराना रोग, जीभ पर सफेद सी परत का जम जाना, पेशाब का रंग गाढ़ा लाल सा होना, कमर में दर्द, नितंबों के जोड़ों में दर्द और कलाइयों में दर्द आदि रोगों के लक्षणों में गेटि्सबर्ग वाटर औषधि बहुत ही अच्छा असर करती है। वृद्धि-

चलते रहने से पेशियों में अकड़न पैदा हो जाती है।

शमन-

आराम करने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

गेटि्सबर्ग वाटर औषधि की तुलना फास्फोरस, रस-टा, पल्सटिल्ला से की जा सकती है।

मात्रा-

किसी भी रोगी को उसके रोगों के लक्षणों के मुताबिक गेटि्सबर्ग वाटर औषधि की कम शक्तियों से लेकर 30 शक्ति तक देने से वह रोगी कुछ ही समय में ठीक हो जाता है। 


ग्लोनाइन Glonoine

 ग्लोनाइन Glonoine

परिचय-

ग्लोनाइन को सिर में होने वाले किसी भी प्रकार के दर्द जैसे सूरज के उगने या अस्त होने के साथ कम या ज्यादा होने वाला दर्द, सिर में खून के जमा होने वाला दर्द, स्त्रियों में मासिकधर्म के दौरान होने वाला दर्द, आदि को दूर करने के लिए बहुत ही उपयोगी माना जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर ग्लोनाइन औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

जलन के साथ सिर में दर्द होना, सिर में किसी भी प्रकार की गर्मी बर्दाश्त नहीं हो पाना, धूप में निकलने पर सिर के दर्द का तेज हो जाना, अपने अन्दर बहुत ज्यादा चिड़चिड़ापन आना, बिल्कुल तनकर बैठने से सिर घूमने लगना, मासिकधर्म आने के समय सिर में दर्द होना, स्त्रियों में गर्भकाल के दौरान सिर की ओर खून के बहाव का तेज होना, सूरज के उगने के साथ सिर में दर्द तेज होना और सूरज के ढलने के साथ सिर के दर्द का कम होना, दिमाग में सूजन आना, सिर का बहुत ज्यादा बड़ा सा लगना, सिर तथा चेहरे में ऐंठन के साथ होने वाला स्नायु का दर्द जैसे सिर के रोगों के लक्षणों के किसी रोगी में नज़र आने पर उसे ग्लोनाइन औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण-

आंखों के आगे अजीब-अजीब सी चीजें नाचती हुई सी दिखाई देना, आंखों से देखने पर हर चीज आधी काली और आधी सफेद सी नज़र आना, अखबार या कोई भी किताब पढ़ते समय उसके अक्षर बहुत ही बारीक से नज़र आना जैसे लक्षणों के आधार पर ग्लोनाइन औषधि का सेवन काफी लाभदायक रहता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण-

मुंह में तेज जलन होने के साथ-साथ दांतों में दर्द जैसे मुंह के रोगों के लक्षण में ग्लोनाइन औषधि लेने से आराम आ जाता है।

कान से सम्बंधित लक्षण-

कानों में दर्द, दिल की हर धड़कन की आवाज का कानों में गूंजना, कानों में खिंचाव महसूस होना आदि कान के रोगों के लक्षणों में रोगी को ग्लोनाइन औषधि देने से लाभ मिलता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण-

चेहरे के रंग का फीका पड़ जाना, नाक की जड़ में दर्द महसूस होना, चेहरे पर बहुत ज्यादा पसीना आना जैसे कि पानी से चेहरे को धोया हो, चेहरा गुस्से के मारे लाल होना जैसे लक्षणों में रोगी को ग्लोनाइन औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

गले से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसका गला घुट रहा हो, घुटन के मारे कमीज के बटन खोलने पड़ते हैं, कानों के पीछे सूजन का आ जाना, गर्दन में खिंचाव महसूस होना जैसे लक्षणों के किसी व्यक्ति में दिखने पर उसे तुरन्त ही ग्लोनाइन औषधि का सेवन देना चाहिए।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

रोगी का जी मिचलाना और उल्टी आना, भोजन करने के बाद भी बार-बार भूख का लगना, आमाशय का ऐसा महसूस होना जैसे कि वो बिल्कुल खाली हो, खून की कमी के रोगियों में जठर में दर्द के साथ खून की रफ्तार का कम होना जैसे लक्षणों में रोगी को ग्लोनाइन औषधि का सेवन कराने से बहुत लाभ मिलता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण-

दस्त होना, मल का बहुत ज्यादा, काले रंग में और छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में आना, पेट में कब्ज बनने के साथ दर्द के साथ खूनी बवासीर होना, मलत्याग से पहले और उसके बाद में पेट के अन्दर किसी चीज के काट लिए जाने जैसा दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को ग्लोनाइन औषधि देने से लाभ होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

मासिकस्राव अपने नियमित समय पर न आकर बाद में आता हो या कभी तो आता भी न हो जिसकी वजह से सिर में खून का जमा हो जाना, मासिकधर्म के बन्द होने के बाद आंखों में जलन सी महसूस होना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी स्त्री को ग्लोनाइन औषधि देने से लाभ होता है।

दिल से सम्बंधित लक्षण-

सांस लेने में परेशानी होना, ऊंचे स्थान पर चढ़ते समय सांस का फूल जाना, थोड़ी सी मेहनत करते ही दिल की तरफ खून का बहाव तेज हो जाता है जिसके कारण रोगी को बेहोशी छा जाती है, पूरे शरीर में हाथ की उंगलियों के पोरों तक जलन होती रहती है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण-

पूरे शरीर में खुजली होना खासकर शरीर के बाहर के अंगों में, कमर में दर्द, शरीर के सारे अंगों में खिंचाव सा महसूस होना जैसे लक्षणों में ग्लोनाइन औषधि का सेवन अच्छा रहता है।

वृद्धि-

धूप में निकलने से, सूरज की किरणों के सिर पर पड़ने से, अंगीठी के पास बैठने से, झटका लगने से, बालों को कटाने से, लेटने से रोग बढ़ जाता है और ब्रैण्डी पीने से रोग कम हो जाता है।

प्रतिविष-

ऐकोना।

तुलना-

ग्लोनाइन औषधि की तुलना एमिल-नाइट्रा, बेला, ओपियम, स्ट्रामों, वेराट्र-से की जा सकती है।

मात्रा-

ग्लोनाइन औषधि की छठी से लेकर तीसवीं शक्ति तक रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर देने से लाभ होता है।


नैफालियम (कड-वीड, ओल्ड बालसम) Gnaphalium (Cud-Weed, Old Balsam)

 नैफालियम (कड-वीड, ओल्ड बालसम) Gnaphalium (Cud-Weed, Old Balsam) 

परिचय-

नैफालियम औषधि मुंह और जनेन्द्रियों के स्नायु के दर्द में खासतौर पर असर करती है। इसके अलावा स्त्रियों में थोड़ा मासिकस्राव होना, पेट का भारी सा लगना, कमर का पुराना दर्द जैसे रोगों में भी ये औषधि बहुत लाभ करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर नैफालियम औषधि का उपयोग-

चेहरे से सम्बंधित लक्षण-

मुंह में दोनों तरफ के जबड़ों में धीरे-धीरे करके होने वाला दर्द जैसे लक्षणों में रोगी को नैफालियम औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण-

पेट का फूल जाना, पेट के अलग-अलग भागों में होने वाला बहुत तेज दर्द, पु:रस्थ ग्रन्थियों का उत्तेजित हो जाना, बच्चों को होने वाले दस्त, उल्टी और दस्त जैसे लक्षणों में रोगी को नैफालियम औषधि का सेवन कराने से आराम मिलता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण-

कमर के भाग में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, कमर में दर्द होने के साथ पीठ के नीचे के भाग का सुन्न हो जाना, गोणिका का भारी सा होता हुआ महसूस होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को नैफालियम औषधि देने से लाभ मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

स्त्रियों की गोणिका बहुत ज्यादा भारी महसूस होना, मासिकस्राव का दर्द के साथ आना जैसे लक्षणों में रोगी स्त्री को नैफालियम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ होता है।

बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण-

सोते समय टांगों की पिण्डलियों और पैरों में ऐंठन हो जाना, टखने के जोड़े और टांगों में होने वाला गठिया का दर्द, पैरों के अंगूठे में गठिया के कारण होने वाला दर्द, जांघ को पेट तक फैलाने से आराम आना, टांग के आगे के भाग में स्नायु का दर्द, पीठ और गर्दन में पुराना पेशीवात का रोग जैसे लक्षणों में नैफालियम औषधि का सेवन लाभकारी रहता है।

तुलना-

नैफालियम औषधि की तुलना पल्सेटिला, जेन्थक्जाइलम और कैमोमिला से की जा सकती है।

मात्रा-

किसी भी रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर नैफालियम औषधि की 3 से लेकर 30 शक्ति तक देने से लाभ होता है।


ग्लिसरीनम Glycerinum

 ग्लिसरीनम Glycerinum 

परिचय-

ग्लिसरीनम औषधि का उपयोग दिमाग और शरीर की कमजोरी को दूर करने में किया जाता है। इसके अलावा मधुमेह (डायबिटीज) का रोग हो जाने पर भी इस औषधि का सेवन करने से बहुत लाभ होता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार ग्लिसरीनम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर में बहुत सारा वजन रखा हुआ सा महसूस होना, सिर में तेजी से होने वाली जलन, मासिकस्राव आने से 2 दिन पहले सिर में बहुत तेज दर्द होना, सिर के पीछे का हिस्सा बहुत भारी सा महसूस होना आदि लक्षणों में रोगी को ग्लिसरीनम औषधि देने से लाभ होता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण-

नाक का बन्द हो जाना, छींके ज्यादा आना, नाक के पीछे के हिस्से से स्राव का होना, श्लैमिक झिल्ली पर किसी चीज के रेंगने जैसा महसूस होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को ग्लिसरीनम औषधि देने से लाभ होता है।

वक्ष (छाती) से सम्बंधित लक्षण-

बहुत तेजी से होने वाली खांसी के साथ शरीर में कमजोरी सी महसूस होना, छाती का भरा हुआ सा लगना, इन्फ्लूएंजा, निमोनिया का बुखार होना आदि लक्षणों में रोगी को ग्लिसरीनम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ होता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण-

पेशाब का बार-बार आना तथा काफी मात्रा में आना, पेशाब के साथ मीठा ज्यादा आना, मधुमेह का रोग हो जाना आदि लक्षणों के किसी व्यक्ति में नज़र आने पर उसे ग्लिसरीनम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

स्त्री को अपने पूरे शरीर में थकावट सी महसूस होना, बहुत ज्यादा मात्रा में स्राव के साथ गर्भाशय में नीचे की ओर दबाव देता हुआ भारीपन सा महसूस होना जैसे लक्षणों में रोगी को ग्लिसरीनम औषधि देने से लाभ मिलता है।

बाहरीय अंग से सम्बंधित लक्षण-

पैरों में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, पैरों का काफी गर्म और बढ़ा हुआ सा लगना, बार-बार होने वाला गठिया का दर्द जैसे लक्षणों में ग्लिसरीनम औषधि का सेवन लाभकारी रहता है।

तुलना-

ग्लिसरीनम औषधि की तुलना लैक्टिक एसिड, जेल्सीमियम और कल्के से की जा सकती है।

मात्रा-

ग्लिसरीनम औषधि की 30x से लेकर ऊंची शक्तियां तक रोगी को रोगों के लक्षणों के हिसाब से देने से आराम आता है।


ग्रैनैटम (अनार- ग्रैने) Granatum (Pomegranate)

 ग्रैनैटम (अनार- ग्रैने) Granatum (Pomegranate) 

परिचय-

ग्रैनैटम औषधि को शरीर के अन्दर मौजूद कीड़ों को समाप्त करने में बहुत ही उपयोगी माना जाता है। इसके साथ ही मुंह से लार का बहुत ज्यादा मात्रा में गिरना, जी मिचलाना और चक्कर आने जैसे लक्षणों में ये औषधि काफी लाभकारी साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों में ग्रैनैटम औषधि का उपयोग-

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

भूख का बार-बार लगना, पाचनशक्ति का कमजोर होते जाना, रात को सोते समय उल्टी होना जैसे आमाशय रोगों के लक्षणों में रोगी को ग्रैनैटम औषधि का प्रयोग कराने से आराम आता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को लगता है कि उसका पूरा सिर खाली है उसके अन्दर कुछ भी नहीं है, आंखें अन्दर की ओर धंस जाती हैं, आंखों की पुतलियों का फैल जाना, आंखों की रोशनी का कमजोर हो जाना, हर समय सिर में चक्कर से आते रहना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को ग्रैनैटम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण-

पूरे पेट और आमाशय में होने वाला दर्द, नाभि के आसपास के हिस्से में दर्द का ज्यादा होना, मलद्वार में खुजली सी महसूस होना, योनि का खिंचता हुआ सा लगना, नाभि में हार्निया रोग होने जैसे सूजन आना आदि लक्षणों के किसी रोगी में नज़र आने पर ग्रैनैटम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

वक्ष (छाती) से सम्बंधित लक्षण-

कंधों के बीच के हिस्से में दर्द होना, कपड़ों को पहनने पर दम सा घुटता हुआ महसूस होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को ग्रैनैटम औषधि देने से लाभ होता है।

बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण-

कंधों में दर्द होना जैसे कि उनसे बहुत सारा वजन उठा रखा हो, उंगलियों के जोड़ों में दर्द होना, घुटनों के जोड़ों में बहुत तेजी से होने वाला दर्द आदि लक्षणों में ग्रैनैटम औषधि का प्रयोग लाभकारी रहता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण-

हाथों की हथेलियों में बहुत तेजी से खुजली होना, त्वचा पर ऐसा महसूस होना जैसे कि अभी कुछ ही देर में फुंसियां सी निकल आएगी, पीलिया के लक्षण पैदा होना आदि लक्षणों में रोगी को ग्रैनैटम औषधि का सेवन कराने से आराम मिलता है।

तुलना-

ग्रैनैटम औषधि की तुलना क्वासिया, टियुक्रियम, सिना से की जा सकती है।

मात्रा-

मूलार्क या 2x से 3x शक्ति तक।


गोसीपियम (कपास का पौधा) Gossypium (Cotton-Plant)

गोसीपियम (कपास का पौधा) Gossypium (Cotton-Plant) 

परिचय-

गोसीपियम औषधि स्त्रियों में गर्भकाल के दौरान बहुत ही लाभकारी असर करती है। ये औषधि मासिकधर्म की उन अवस्थाओं में बहुत असरदार होती है जब स्त्री को लगता है कि उसका मासिकस्राव आने वाला है लेकिन आता नहीं है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर गोसीपियम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण:-

गर्दन के पूरे भाग में दर्द होने के साथ ही सिर को पीछे की ओर खींचने का रोग और इसके साथ ही स्नायविकता जैसे लक्षणों में रोगी को गोसीपियम औषधि देने से लाभ मिलता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

रोजाना सुबह नाश्ता करने से पहले उल्टी हो जाना, जी मिचलाना, भूख का समाप्त हो जाना, मासिकस्राव होने पर उदरोर्द्ध में बैचेनी सी महसूस होना आदि लक्षणों में गोसीपियम औषधि का सेवन लाभकारी होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

स्त्री के योनिप्रदेश में सूजन आना, खुजली सी महसूस होना, डिम्बग्रन्थियों में रुक-रुककर होने वाला दर्द, गर्भाकाल के दौरान उल्टी होने के साथ-साथ गर्भाशय बहुत ज्यादा नाजुक हो जाना, स्तनों में फोड़ा सा हो जाना, मासिकस्राव का रुक जाना, कमर में दर्द होना, गोणिका में खिंचाव होने के साथ उसका भारी सा लगना, आमाशय में दर्द होने के साथ-साथ कमजोरी सी होना जैसे लक्षणों में रोगी को गोसीपियम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

वृद्धि-

हरकत करने से, दबाने से, नाश्ता करने से पहले रोग बढ़ जाता है 

शमन-

आराम करने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

लिलियम, सिमिसी, सैबाइना से गोसीपियम औषधि की तुलना की जा सकती है।

मात्रा-

गोसीपियम औषधि की मूलार्क से लेकर 6x शक्ति मे तनूकरण तक रोगी को देने से लाभ होता है।


ग्रैफाइटिस (काला सीसा- ग्रैफाइ) Graphites (Black Lead-Plumbago)

 ग्रैफाइटिस (काला सीसा- ग्रैफाइ) Graphites (Black Lead-Plumbago) 

परिचय-

बहुत ज्यादा मोटे व्यक्तियों को कब्ज का रोग हो जाने में, त्वचा में किसी रोग के होने पर, मासिकधर्म का काफी देर से आने में आदि रोगों में ग्रैफाइटिस औषधि बहुत अच्छा असर दिखाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर ग्रैफाइटिस औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण-

हर समय डर सा लगते रहना, किसी भी काम को करने में मन न लगना, बहुत ज्यादा भावुक हो जाना, किसी भी फैसले को करने में दुविधा होना, उदास सा बैठे रहना, दिमाग में किसी परेशानी को लेकर चिन्तित रहना आदि लक्षणों में रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि देने से लाभ मिलता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर में खून का बहाव ज्यादा हो जाने के कारण चेहरे का लाल होना, नाक से खून आना, सुबह उठते ही आधे सिर में दर्द होना, उल्टी होने का मन करना, सिर के एक तरफ गठिया का दर्द जो दांतों और गर्दन तक फैल जाता है, सिर में बहुत तेज जलन होना आदि सिर के रोगों के लक्षणों में ग्रैफाइटिस औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण -

आंखों की पलकों का लाल होकर सूज जाना, रोशनी में आते ही आंखों का बन्द हो जाना, पलकों का सूज जाना, पलकों में छाजन हो जाना आदि आंखों के रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि का प्रयोग कराने से आराम आता है।

कान से सम्बंधित लक्षण-

कान के अन्दर के हिस्से में खुश्की सी होना, भोजन करते समय कानों में आवाज होना, कान के अन्दर और पीछे की तरफ दरारें पड़ना, ऊंचा बोलने पर ही सुनाई देना, कानों के अन्दर अजीब सी आवाज होते रहना आदि लक्षणों में रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि देने से आराम आता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण-

नाक के नथुनों के अन्दर छोटी-छोटी फुंसियां निकलना, नाक को साफ करते समय बहुत तेजी से दर्द का होना, फूलों की खुशबू बर्दाश्त न कर पाना जैसे लक्षणों मे रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण-

मुंह से बहुत तेज बदबू का आना, सांस में से गन्दी सी बदबू आना, जीभ पर छाले निकलना, लार का ज्यादा मात्रा में गिरना, खट्टी सी डकारे आना जैसे लक्षणों के आधार पर ग्रैफाइटिस औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण-

चेहरे पर ऐसा महसूस होना जैसे कि मकड़ी का जाला सा बिछा हुआ हो, नाक में छाजन होना, चेहरे पर खुजली के साथ फुंसियां निकलना, मुंह के चारों ओर तथा दाढ़ी पर गीली सी छाजन होना, चेहरे पर जलन और किसी कीड़े के डंक मारने जैसा महसूस होना आदि लक्षणों में रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि देने से लाभ होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

मांस को देखते ही जी का खराब हो जाना, गर्म पीने वाली चीजों का हजम न होना, जितनी बार भी भोजन करो उतनी ही बार जी मिचलाना और उल्टी आना, आमाशय में दबाव सा महसूस होना, आमाशय में जलन होने के कारण भूख न लगना, डकार लेने में परेशानी होना, पेट में गैस बनना, मासिकधर्म के दौरान गर्भधारण के समय की उल्टी के समान उल्टी होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण-

पेट का इतना भारी होना कि जैसे लगे कि उसमे बहुत सारी गैस भरी हुई हो जिसके कारण कपड़ों को ढीला करना पड़ता है, पेट के अन्दर अजीब-अजीब सी आवाज का होना, जिस करवट लेटे उसके दूसरी तरफ दर्द का होना, पुराने दस्त का रोग, पानी के समान मैले रंग का मल बदबू के साथ आना आदि लक्षणों के नज़र आने पर रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि देने से आराम आता है।

मल से सम्बंधित लक्षण-

पेट में कब्ज बनना, मलक्रिया के दौरान बहुत ज्यादा परेशानी होना, खूनी बवासीर होना, मल का पानी जैसा, बदबूदार, रूप में आना, मलद्वार में दर्द और खुजली होना, मल का गांठों के रूप में आना जिसमें श्लैमिक सूत्र मिले रहते हैं, मलद्वार पर दरारें सी पड़ना आदि लक्षणों में रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि देने से लाभ मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

मासिकधर्म का समय के बहुत बाद में आना, कब्ज बनना, स्राव शुरू होने से पहले खुजली होना, मासिकधर्म के दौरान सुबह उठते ही उल्टी होना, प्रदर स्राव बिल्कुल पतला, पीले रंग में, बहुत ज्यादा मात्रा में आना, कमर का काफी कमजोर हो जाना, स्तनों में सूजन आने के साथ कठोर हो जाना, स्तनों के निप्पलों में छाले निकलने के साथ दर्द होना, सेक्स क्रिया के दौरान सेक्स में रुचि न होना आदि लक्षणों में ग्रैफाइटिस औषधि का प्रयोग करने से आराम आता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण-

सेक्स करने की इच्छा का तेज होना लेकिन सेक्सक्रिया के दौरान अपने सहभागी को पूरी तरह से खुश न कर पाना, सेक्सक्रिया के दौरान वीर्य का जल्दी निकल जाना, सेक्सक्रिया से मन का बिल्कुल हट जाना आदि लक्षणों के नज़र आने पर रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि देने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण :-

छाती का सिकुड़ा हुआ महसूस होना, छाती के बीच के हिस्से में दर्द होने के साथ खांसी उठना, गले में पुरानी खराश होने के साथ त्वचा में रोग होना, दम घोट देने वाले दौरे पड़ने से नींद न आना, ज्यादा ऊंची आवाज में बात करते समय या गाना गाते समय आवाज का खराब हो जाना आदि लक्षणों में ग्रैफाइटिस औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है।

बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण-

शरीर के अंगों, गर्दन के जोड़, कंधों और पीठ में दर्द होना, रीढ़ की हड्डी में तेजी से होने वाला दर्द, जांघ के बीच के हिस्से में छिल जाने जैसा दर्द महसूस होना, हाथ की उंगलियों के नाखून काले, मोटे और खुरखुड़े से होना, बाएं हाथ का बिल्कुल सुन्न हो जाना, जनेन्द्रियों में पानी भर जाना, पैर की उंगलियों का अकड़कर खिंच सा जाना, पैरों में बदबूदार पसीना आना जैसे लक्षणों के किसी व्यक्ति में नज़र आने पर उसे ग्रैफाइटिस औषधि देने से लाभ होता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण-

त्वचा का सख्त और खुरदरी सी होना, त्वचा पर फुंसियां और मुहांसे निकलना, फुंसियां होना जिनमें से हर समय मवाद सा निकलता रहता है, त्वचा पर जरा सी भी चोट लगने पर पक जाना, ग्रन्थियों में सूजन आना और उनका सख्त हो जाना, स्तनों के निप्पलों, मुंह और पैरों के बीच के भागों में और मलद्वार पर दरारें सी पड़ना, पैरों में सूजन आ जाना आदि लक्षणों मे रोगी को ग्रैफाइटिस औषधि का प्रयोग कराने से लाभ होता है।

वृद्धि-

गर्मी के कारण, रात के समय, मासिकधर्म के दौरान और उसके बाद रोग बढ़ जाता है तथा अंधेरे में कसकर लपेटने से रोग कम हो जाता है।

प्रतिविष-

नक्स, ऐकोना, आर्से।

पूरक-

आजेण्ट-नाइट्रि, कास्टिक, हीपर, लाइको, आर्से, टुबरकुलीनम।

तुलना-

ग्रैफाइटिस औषधि की तुलना पेट्रोलियम, सीपिया, सल्फर, फ्लोरिक एसिड और लाइकोपोडियम से की जा सकती है।

मात्रा-

6x से 30 शक्ति तक रोगी को रोगों के लक्षणों के आधार पर देने से लाभ मिलता है।


गैलियिम ऐपारिन (गूज ग्रास) Galium Aparine (Goose Grass)

 गैलियिम ऐपारिन (गूज ग्रास) Galium Aparine (Goose Grass)

परिचय-

गैलियिम ऐपारिन औषधि पेशाब की क्रिया करने वाले अंगों पर बहुत अच्छा असर डालती है। ये औषघि बन्द पेशाब को खोलती है, शरीर के किसी भाग में पानी भरने को समाप्त करती है, पथरी को मिटाती है। गैलियिम ऐपारिन औषधि कैंसर के रोग के लिए भी काफी लाभकारी मानी जाती है। यह औषधि शरीर के किसी भी भाग में कैंसर के कारण होने वाले घावों को भरती है। चमड़ी के ऊपर किसी तरह के रोग को भी ये औषधि समाप्त कर देती है। मात्रा-

गैलियिम ऐपारिन औषधि रोगी को रोजाना 3 बार मूलार्क आधे-आधे ड्राम की मात्राओं के रूप में 1 कप पानी या दूध में मिलाकर देने से लाभ होता है।


जेनशियाना ल्यूटिया येल्लो जेनशियन Gentiana lutea (Yellow Gentian)

 जेनशियाना ल्यूटिया येल्लो जेनशियन Gentiana lutea (Yellow Gentian)

परिचय-

जेनशियाना ल्यूटिया औषधि आमाशय के सारे रोगों को दूर करके उसे मजबूत बनाती है और भूख को बढ़ाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों में जेनशियाना ल्यूटिया औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर में चक्कर से आना जो चलने-फिरने से बढ़ जाते हैं और खुली हवा में कम हो जाते हैं, माथे में तेजी से होने वाला दर्द, आंखों में दर्द सा होना, दिमाग ढीला-ढाला सा लगता है ऐसे लक्षणों में रोगी को नियमित रूप से जेनशियाना ल्यूटिया औषधि देने से लाभ होता है।

गले से सम्बंधित लक्षण -

गले का बिल्कुल सूखा हुआ सा लगना, मुंह से ज्यादा मात्रा में गाढ़ी-गाढ़ी सी लार निकलना आदि लक्षणों के आधार पर जेनशियाना ल्यूटिया औषधि लेने से लाभ होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को खट्टी-खट्टी डकारें आना, भूख का बार-बार लगना, जी मिचलाना, आमाशय का इतना भारी लगना जैसे कि किसी ने उसमें वजन रखा हो, पेट में दर्द होना और पेट का फूलना जैसे लक्षणों में रोगी को जेनशियाना ल्यूटिया औषधि देने से आराम मिल जाता है।

तुलना-

जेनशियाना ल्यूटिया औषधि की तुलना जेनशियाना क्विन्किरा, जेनशियाना क्रूशिएटा, हाइड्रैस्टि और नक्स से की जा सकती है।

मात्रा-

पहली शक्ति से लेकर तीसरी शक्ति तक का तनुकरण।


गम्बोजिया-गार्सोनिया मोरेल्ला (गम्मी गुट्टी) Gambogia- Garcinia Morella (Gummi Gutti)

 गम्बोजिया-गार्सोनिया मोरेल्ला (गम्मी गुट्टी) Gambogia- Garcinia Morella (Gummi Gutti)

परिचय-

गम्बोजिया-गार्सोनिया मोरेल्ला औषधि का असर पाचनतन्त्र पर बहुत अच्छा होता है। इसके अलावा हैजा और दस्त जैसे पेट के रोगों में भी ये औषधि बहुत लाभकारी होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर गम्बोजिया-गार्सोनिया मोरेल्ला औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर का बहुत ज्यादा भारी सा महसूस होना, पूरे दिन सिर का घूमता हुआ सा महसूस होना, आंखों में जलन और खुजली सी होना, आंखों की पलकों का आपस में चिपक जाना, बार-बार छींके आना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को गम्बोजिया-गार्सोनिया मोरेल्ला औषधि देने से लाभ मिलता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

दांतों के किनारों पर ठण्ड सी महसूस होना, आमाशय का बहुत अधिक उत्तेजित होना, जीभ और गले में जलन सी होना, भोजन करने के बाद आमाशय में दर्द होना, मलक्रिया के बाद गैस के कारण पेट में दर्द और पेट का फूलना, पेट में मरोड़ें उठना, मलद्वार पर जलन सी होना, गर्मी के मौसम में पानी जैसे दस्त आना, पानी जैसे दस्त आने के साथ गुदाद्वार के ऊपर के हिस्से में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, कमर के नीचे के हिस्से में दर्द होना जैसे लक्षणों में रोगी को गम्बोजिया-गार्सोनिया मोरेल्ला औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

वृद्धि-

शाम को, रात के समय रोग बढ़ जाता है।

शमन-

खुली हवा में घूमने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

गम्बोजिया-गार्सोनिया मोरेल्ला औषधि की तुलना क्रोटन, एलोज और पोड़ोसे की जा सकती है।

मात्रा-

3x से 30वी शक्ति तक।a


गैलिकम एसिडम (गैलिक एसिड) Gallicum Acidum (Gallic Acid)

 गैलिकम एसिडम (गैलिक एसिड) Gallicum Acidum (Gallic Acid)

परिचय-

किसी व्यक्ति को टी.बी. का रोग होने पर गैलिकम एसिडम औषधि का प्रयोग कराने से रोगी व्यक्ति बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है। इसके अलावा ये औषधि जहरीले स्रावों को काबू में करके आमाशय को मजबूत बनाती है और भूख को तेज करती है, त्वचा की खुजली को दूर करती है, मधुमेह के रोग में लाभ करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर गैलिकम एसिडम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर के पीछे के हिस्से और गर्दन में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, नाक से गाढ़ा सा स्राव निकलना, रोशनी में आते ही आंखों में जलन होना, पलकों में जलन होना आदि सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को गैलिकम एसिडम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

मन से सम्बंधित लक्षण-

रात के समय बहुत तेजी से चिल्लाना, बहुत ज्यादा गुस्सा करना, पूरे शरीर का पसीने से भीग जाना, अकेले रहने से डर का लगना, हर किसी से बदतमीजी से बात करना आदि मानसिक रोग के लक्षणों में रोगी को गैलिकम एसिडम औषधि देने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण-

फेफड़ों से खून आना और दर्द होना, बलगम का बहुत ज्यादा मात्रा में आना, सुबह उठने पर ऐसा महसूस होना जैसे कि गले के अन्दर बहुत सारा बलगम जमा हुआ हो, रात को गले का सूख जाना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को गैलिकम एसिडम औषधि का प्रयोग कराने से आराम आता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण-

गुर्दों में बहुत तेजी से दर्द होना, पेशाब करने की नलियों से लेकर मूत्राशय के अन्दर तक दर्द होना, मूत्राशय में हल्का-हल्का सा दर्द होना, जंघनास्थि के ऊपर क्रीम के रंग का श्लेमा, जैसे लक्षणो के किसी रोगी में नज़र आने पर गैलिकम एसिडम औषधि का सेवन कराना लाभप्रद होता है।

मलान्त्र से सम्बंधित लक्षण-

मलद्वार का ऐसा महसूस होना जैसे कि वह सिकुड़ सा गया है, मल का बहुत ज्यादा मात्रा में आना, मलक्रिया के बाद बेहोशी सी छा जाना, पुराना श्लैमिक स्राव जैसे लक्षणों में गैलिकम एसिडम औषधि का प्रयोग काफी लाभकारी रहता है।

तुलना-

गैलिकम एसिडम औषधि की तुलना फास्फो, आर्से और आयोड से की जा सकती है।

मात्रा-

गैलिकम एसिडम औषधि की पहली शक्ति का विचूर्ण रोगी को रोग के लक्षण के आधार पर देने से लाभ होता है। 


जेलसीमियम सैम्परविरेनम Gelsemium Sempervirens

 जेलसीमियम सैम्परविरेनम gelsemium sempervirens

परिचय-

जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि स्नायविक रोगों से ग्रस्त रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी मानी जाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों में जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि का उपयोग-

नाक से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को जुकाम होने के साथ बार-बार छींकों का आना, सुबह के समय छींकों का ज्यादा आना, नाक में जलन सी महसूस होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण-

रोगी की आंखों की पलकों का भारी हो जाना, पलकों को उठाने में परेशानी महसूस होना, आंखों की रोशनी का कम हो जाना, एक ही चीज का दो-दो दिखाई देना जैसे लक्षणों में रोगी को जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर का बहुत ज्यादा भारी सा महसूस होना, सिर के पीछे के हिस्से में तेजी से होने वाला दर्द, सिर में दर्द होने के कारण आंखों के आगे अंधेरा सा छा जाना, सिर में खून जमा हो जाने के कारण दर्द का होना, धूम्रपान करने से, दिमागी काम करने से, लू लगने से सिर में दर्द हो जाना, स्नायविक सिर का दर्द जो सिर के पीछे गर्दन और रीढ़ की हड्डी से शुरू होकर पूरे सिर में फैल जाता है जैसे लक्षणों में रोगी को जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है।

मन से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को अपने सामने अजीब-अजीब सी चीजें दिखाई देने का वहम होना, किसी से बात न करना, हर समय अकेले बैठे रहना, किसी बुरी खबर को सुनने के कारण परेशान सा हो जाना, हर समय डरते सा रहना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि देने से लाभ होता है।

दस्त से सम्बंधित लक्षण-

किसी वजह से डर लगने के कारण दस्त हो जाना, कहीं भी बाहर जाते समय दस्त लग जाना, किसी से मिलने के कारण मन में घबराहट होने से दस्त आना जैसे लक्षणों में जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि का सेवन अच्छा रहता है।

सर्दी से सम्बंधित लक्षण-

स्नायविक रोग के कारण बच्चे का जोर से कांपना लेकिन शरीर में कहीं भी ठण्डापन न होना, चलने-फिरने में कमजोरी महसूस होना, रोगी को ऐसा लगना जैसे कि कोई उसे कसकर पकड़ ले ताकि उसके शरीर का कांपना बन्द हो, ठण्ड लगने से पहले कई बार पेशाब करने के लिए जाना आदि लक्षणों में रोगी को जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि देने से लाभ होता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण-

लिंग में उत्तेजना आए बिना रोगी का वीर्य निकल जाना, रोगी के लिंग का बिल्कुल ठण्डा और ढीला पड़ जाना, हस्तमैथुन करने के कारण रोगी का उत्साह कम हो जाना और उसके शरीर का ढीला हो जाना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण- 

गर्भाशय के मुंह का सख्त सा हो जाना, बच्चे को जन्म देने वाला दर्द मरोड़ के साथ आना, हिस्टीरिया रोग के कारण बहुत तेज उत्तेजना होना और हाथ-पैरों का सुन्न हो जाना आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में रोगी को जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि देने से लाभ मिलता है।

वृद्धि-

नमी भरे मौसम में, बादलों के गरजने से और बिजली के चमकने से, उत्तेजना या बुरी खबर सुनने से, धूम्रपान करने से, रोग के बारे में सोचने से रोग बढ़ जाता है।

शमन-

चुपचाप रहने से, पेशाब करने के बाद रोग कम हो जाता है।

तुलना-

जेलसीमियम सैम्परविनम औषधि की तुलना बैप्टी, इपी, युपाटो-पर्फ और अर्ज-ना से की जा सकती है।


गौल्थेरिया Gaultheria

 गौल्थेरिया Gaultheria 

परिचय-

गौल्थेरिया औषधि को पीठ में दर्द, गठिया रोग में जलन, गृध्रसी (साइटिकापेन) तथा कई तरह के स्नायु के दर्द को दूर करने में काफी उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा गुर्दो में जलन, यौन उत्तेजना का तेज होना, पेशाब की नली तथा पु:रुस्थग्रन्थि में सूजन आना जैसे रोगों में भी ये औषधि काफी लाभकारी मानी जाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर गौल्थेरिया औषधि का उपयोग-

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

पाचन संस्थान में सूजन के साथ बहुत तेज दर्द होना, लंबे समय से चलने वाला उल्टी का रोग, बार-बार भोजन करने के बाद भी आमाशय का खाली रहना आदि आमाशय के रोगों के लक्षणों में रोगी को गौल्थेरिया औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

किसी व्यक्ति में सिर और चेहरे में स्नायु के दर्द के लक्षण नज़र आने पर गौल्थेरिया औषधि का उपयोग कराने से आराम मिलता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण-

त्वचा पर बहुत तेज जलन होना, त्वचा का काला पड़ना तथा ठण्डे पानी से नहाने पर त्वचा रोग का बढ़ जाना आदि लक्षणों के आधार पर गौल्थेरिया औषधि का सेवन लाभकारी रहता है।

तुलना-

गौल्थेरिया औषधि की तुलना स्पाईरिया, सैलीसिलिक एसिड से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को रोगों के लक्षणों के अनुसार गौल्थेरिया औषधि की मूलार्क या कम शक्ति तक देने से लाभ होता है।


जेन्शियाना चिराता या स्वैर्टिया चिराता (चिराता) Gentiana Chirata or Swairtia Chirata (Chirata)

 जेन्शियाना चिराता या स्वैर्टिया चिराता (चिराता) Gentiana Chirata or Swairtia Chirata (Chirata)

परिचय-

जेन्शियाना चिराता औषधि को किसी भी तरह के बुखार को रोकने के लिए या दूर करने के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा भूख न लगना, एसिडिटी, जिगर का सही तरीके से काम न करना, पेट में गैस बनना आदि रोगों में भी ये औषधि लाभकारी मानी जाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जेन्शियाना चिराता औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण-

हर समय मन में लेटे रहने की इच्छा होना, दिमाग का सही तरीके से काम ना करना जैसे लक्षणों में रोगी को जेन्शियाना चिराता औषधि देने से लाभ होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण -

सिर में ठण्डक सी महसूस होना, कनपटियों में हल्का-हल्का सा दर्द होना, जो धीरे-धीरे पूरे सिर में फैल जाता है आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जेन्शियाना चिराता औषधि का प्रयोग कराने से आराम आता है।

कान से सम्बंधित लक्षण -

कानों के अन्दर अजीब सी गुदगुदी सी महसूस होना जैसे लक्षण प्रकट होने पर रोगी को जेन्शियाना चिराता औषधि देने से लाभ होता है।

गले से सम्बंधित लक्षण -

गले के अन्दर बहुत तेज सा दर्द होना जो गर्म पानी पीने से कम हो जाता है, सूखी तंग करने वाली खांसी जैसे लक्षणों में जेन्शियाना चिराता औषधि का सेवन लाभदायक रहता है।

जीभ से सम्बंधित लक्षण -

जीभ पर पीले रंग की पतली सी परत जम जाना, जीभ का भारी लगना, बोलने में परेशानी होना आदि जीभ के रोगों के लक्षणों में रोगी को जेन्शियाना चिराता औषधि का प्रयोग कराने से आराम आता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण -

पेट का फूल जाना, दाएं तरफ के गुर्दे में दर्द होना, बढ़े हुए जिगर और प्लीहा में दर्द होना, रोगी का मन ऐसा करना जैसे कि मांस और मक्खन आदि खाना, ये लक्षण अगर किसी व्यक्ति में नज़र आते है तो उसे जेन्शियाना चिराता औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण -

पेशाब का रंग खून की तरह का होना, पेशाब करते समय पेशाब की नली में जलन होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जेन्शियाना चिराता औषधि देने से आराम आता है।

पुरूष से सम्बंधित लक्षण -

संभोग क्रिया करते समय अपने साथी को पूरी तरह से सन्तुष्ट ना कर पाना, लिंग में से हर समय थोड़ा-थोड़ा वीर्य निकलते रहना जैसे लक्षणों में रोगी को जेन्शियाना चिराता औषधि खिलाने से लाभ मिलता है।

बाहरीय अंग से सम्बंधित लक्षण -

शरीर के बाहर के अंगों में बहुत तेज दर्द होना, टांगों का बहुत ज्यादा कमजोर हो जाना, चलते समय परेशानी होना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को जेन्शियाना चिराता औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण -

रोगी को काफी दिनो तक ठण्ड के साथ बुखार होने और गर्मी के कारण उल्टी होना, बुखार के बाद बहुत ज्यादा पसीना आना, बहुत तेज प्यास का लगना जैसे लक्षणो में जेन्शियाना चिराता औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

मात्रा-

रोगी को जेन्शियाना चिराता औषधि का मूलार्क या 3 से छठी शक्ति तक देना चाहिए।


जेल्सीमियम (येल्लो जैस्माइन) Gelsemium (Yellow Jasmine)

 जेल्सीमियम (येल्लो जैस्माइन) Gelsemium (Yellow Jasmine)

परिचय-

जेल्सीमियम औषधि का सबसे अच्छा असर स्नायुमण्डल (नर्वस सिस्टम) पर पड़ता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जेल्सीमियम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण-

रोगी का मन चाहता है कि हर समय अकेला बैठा रहे, किसी चीज से डर न लगना, सोते समय बड़बड़ाते रहना, किसी काम को करने का मन न करना, हर चीज से डरते रहना, बच्चे का सोते-सोते एकदम चौंक पड़ना जैसे कि कोई भयानक सपना देख लिया हो, हर समय लेटे ही रहना जैसे लक्षण अगर किसी व्यक्ति में नज़र आते हैं तो उसे तुरन्त ही जेल्सीमियम औषधि का सेवन कराना शुरू कर देना चाहिए।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर का भारी लगना जैसे कि किसी ने सिर पर वजन रख दिया हो, सिर के घूमने के कारण चक्कर आना, सिर में धीरे-धीरे बढ़ने वाला दर्द, पलकों का भारी होना, कनपटी का दर्द जो कान और नाक के नथुनों तथा ठोड़ी में भी फैल जाता है, सिर में दर्द होने के साथ-साथ गर्दन और कंधे की पेशियों में भी दर्द होना, सिरदर्द होने से कुछ समय पहले आंखों के आगे अंधेरा सा छा जाना, पेशाब का ज्यादा मात्रा में आने से आराम आना, नींद में बोलते रहना आदि सिर के रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को जेल्सीमियम औषधि का सेवन नियमित रूप से कराने से आराम आता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण-

आंखों से कुछ भी साफ दिखाई न देना, हर चीज दो-दो दिखाई देना, पलकों के भारी होने के कारण उन्हे खोलने में परेशानी होना, आंखों की एक पलक का सिकुड़ जाना और दूसरी पलक का फैल जाना, आंखों से कम दिखाई देना, गैस होने के कारण आंखों की रोशनी कम हो जाना, सीरमी प्रदाह, अन्नसारिक पलकों की सूजन जैसे लक्षण किसी रोगी में नज़र आने पर उसे जेल्सीमियम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण-

लगातार छींके आते रहना, तेज ठण्ड लगने के साथ-साथ हल्का-हल्का सिर का दर्द और बुखार होना, नाक की दीवारों का सूख जाना, नाक की हडि्डयों में सूजन आना जैसे लक्षणों में रोगी को जेल्सीमियम औषधि का सेवन कराने से आराम आता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण-

मुंह का स्वाद बहुत ज्यादा खराब होना, सांस में से गन्दी बदबू आना, जीभ पर मोटी सी पीले रंग की परत सी जमना, जीभ का सुन्न हो जाना, मुंह का लकवा मार जाना आदि लक्षणों में जेल्सीमियम औषधि का सेवन काफी लाभकारी रहता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण-

चेहरे पर स्नायु का दर्द होना, चेहरे का रंग बिल्कुल फीका सा पड़ जाना, सिर का घूमना, आंखों की रोशनी का कम होना, मुंह के आसपास की पेशियों का खिंच सा जाना, मुंह के अन्दर नीचे वाले जबड़े का लटक जाना, ठोड़ी का कांपने लगना आदि लक्षणों के किसी व्यक्ति में होने पर उसे जेल्सीमियम औषधि खिलाने से लाभ मिलता है।

गले से सम्बंधित लक्षण-

किसी भी चीज को खाते-पीते समय निगलने में बहुत ज्यादा परेशानी होना, गर्म भोजन का तो निगलना ही बिल्कुल मुश्किल होना, मुंह के अन्दर तालू का बहुत मुलायम हो जाना, नासाग्रसनी में खुजली सी मचना, गले, छाती, कान और कान के नीचे के भाग में दर्द सा होना, गले में सूजन आना, गले में ऐसा लगना जैसे कि कुछ जल रहा हो, कानों के अन्दर बहुत तेज होने वाला दर्द, आवाज का बन्द हो जाना जैसे गले के रोगों के लक्षणो में जेल्सीमियम औषधि का सेवन लाभप्रद रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

शाम के समय बार-बार हिचकी आते रहना, पेट के अन्दर कमजोरी और खालीपन सा महसूस होता है या इस तरह की घुटन होती है जैसे कि उसमें किसी ने कोई वजन वाली चीज रख दी हो, इन लक्षणों के किसी रोगी में होने पर उसे तुरन्त ही जेल्सीमियम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

मल से सम्बंधित लक्षण-

किसी व्यक्ति को कोई बुरी खबर सुनने या डरने के कारण अचानक दस्त हो जाना, मल का बिना दर्द के, क्रीम के रंग जैसा, चाय की पत्तियों जैसा आना, मलान्त्र और संकोचनी पेशी का आंशिक लकवा होना जैसे लक्षणों में रोगी को जेल्सीमियम औषधि देने से लाभ होता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण-

पेशाब का बार-बार आना, पेशाब करते समय जलन होना, पेशाब का रूक-रूककर बूंदों के रूप में आना, पेशाब का बन्द हो जाना, पेशाब की नलियों में लकवा सा मार जाना, रोगी को ठण्ड के साथ कंपकंपी सी लगना जैसे लक्षणों में रोगी को जेल्सीमियम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

गर्भाशय का बहुत ज्यादा कठोर हो जाना, योनि में खिंचाव सा महसूस होना, बच्चे को जन्म देने के समय योनि के मुंह पर दर्द होना, मासिकधर्म का दर्द के साथ आना, स्राव का कम आना, नियमित रूप से ना आना, दर्द का पीठ और कूल्हो तक फैल जाना, मासिकस्राव के दौरान आवाज का बन्द हो जाना, गले में जलन हो जाना, गर्भाशय को धोता हुआ सा महसूस होना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को जेल्सीमियम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण-

लिंग के उत्तेजित हुए बिना ही वीर्य का निकल जाना, जनेनन्द्रियों का ठण्डा और ढीला-ढाला हो जाना, अण्डकोषों में लगातार पसीने आते रहना, सुजाक रोग का शुरूआती दौर, स्राव का कम मात्रा में आना, हल्का-हल्का सा दर्द होना, लिंग के मुंह पर जलन सी मचना आदि लक्षणों में रोगी को जेल्सीमियम औषधि का सेवन कराने से आराम मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण-

सांस का धीरे-धीरे से चलना, मन का उदास सा होना, छाती में घुटन सी महसूस होना, सूखी खांसी, आवाज का बन्द हो जाना, सांस का तेजी से चलना, नया \'वासनिकाशोथ, गले का उद्वेश्ट, आदि सांस के रोगों के लक्षणों में रोगी को जेल्सीमियम औषधि देने से लाभ मिलता है।

दिल से सम्बंधित लक्षण-

नाड़ी का धीरे-धीरे से चलना, रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि दिल की धड़कन का चलते रहना जरूरी है नही तो दिल काम करना बन्द कर देगा, बुढ़ापे में नाड़ी का कमजोर हो जाना, शान्त बैठे रहने पर नाड़ी का धीरे चलना लेकिन गति करने पर बहुत तेज हो जाना जैसे लक्षणो में रोगी को जेल्सीमियम औषधि देने से लाभ मिलता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण-

पीठ में हल्का-हल्का सा होने वाला दर्द, स्नायु जाल का पूरी तरह से ढीला हो जाना, पेशियों का ऐसा महसूस होना जैसे कि उन्हे किसी ने बुरी तरह से दबा दिया हो, थोड़ा सी शारीरिक मेहनत करते ही बुरी तरह थक जाना, सिर को गतिशील रखने वाली गर्दन की पेशी में दर्द रखना, कमर में हल्का-हल्का सा दर्द जो ऊपर की ओर फैल जाता है, पीठ, नितंबो और जनेनन्द्रियों की पेशियों में होने वाला दर्द जो बहुत अन्दर की ओर होता है जैसे लक्षणो के किसी व्यक्ति मे नज़र आने पर उसे जेल्सीमियम औषधि देने से लाभ मिलता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को लेटने के बाद काफी समय तक नींद ना आना, सोते समय कुछ ना कुछ बोलते ही रहना, पूरे दिन जम्भाईयां सी आते रहना, शरीर का थका-थका सा रहना, किसी तरह का नशा करने के कारण नींद का ना आना जैसे लक्षणों के आधार पर जेल्सीमियम औषधि का सेवन काफी लाभकारी रहता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को बहुत तेज ठण्ड लगने के कारण शरीर का बुरी तरह से कांपना, ठण्ड का पीठ पर ऊपर-नीचे की ओर दौड़ना, नाड़ी का धीरे-धीरे से चलना, सिर में तेज दर्द और उदासी, प्यास का ना लगना, कंपकंपी और शीतहीन मलेरिया के साथ पेशियों में बहुत तेज दर्द का होना, मूक-शीतज्वर, आदि लक्षणों में रोगी को जेल्सीमियम औषधि का सेवन कराने से आराम मिलता है।

बाहरीय अंग से सम्बंधित लक्षण-

पेशियों को काबू में करने की शक्ति का कम हो जाना, अगले बाजू की पेशियों का ऐंठ जाना, बहुत ज्यादा ठण्ड लगने के साथ शरीर के सारे अंगों का कमजोर हो जाना, जरा सा व्यायाम करते ही शरीर का बुरी तरह से थक जाना, स्नायु का ढीला पड़ जाना जैसे लक्षणों में रोगी को जेल्सीमियम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण-

त्वचा पर खसरे की तरह के दाने निकलना, प्रतिशायी (जुकाम) के लक्षण उत्पन्न होना, ये औषधि अन्दर छुपे हुए दाने को बाहर निकालने में मदद करती है, चेहरे का गुस्से में लाल हो जाना, खून की कमी होने के कारण होने वाला बुखार के साथ जड़िमा, विसर्प जैसे लक्षणो के आधार पर रोगी को जेल्सीमियम औषधि देने से लाभ होता है।

वृद्धि-

बुरी खबर सुनने से, तम्बाकू का सेवन करने से, नम मौसम में, किसी तरह का खुद का नुकसान होने से, कड़कती हुई बिजली और आंधी आने से पहले, खुद की बीमारी के बारे में सोचते रहने से रोग बढ़ जाता है।

शमन-

ठण्डी खुली हवा में रोग कम हो जाता है।

मात्रा-

जेल्सीमियम औषधि का मूलार्क या 30वीं शक्ति तक रोगी को देना चाहिए।


जेनशियाना ल्यूटिया येल्लो जेनशियन Gentiana lutea (Yellow Gentian)

 जेनशियाना ल्यूटिया येल्लो जेनशियन Gentiana lutea (Yellow Gentian)

परिचय-

जेनशियाना ल्यूटिया औषधि आमाशय के सारे रोगों को दूर करके उसे मजबूत बनाती है और भूख को बढ़ाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों में जेनशियाना ल्यूटिया औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर में चक्कर से आना जो चलने-फिरने से बढ़ जाते हैं और खुली हवा में कम हो जाते हैं, माथे में तेजी से होने वाला दर्द, आंखों में दर्द सा होना, दिमाग ढीला-ढाला सा लगता है ऐसे लक्षणों में रोगी को नियमित रूप से जेनशियाना ल्यूटिया औषधि देने से लाभ होता है।

गले से सम्बंधित लक्षण -

गले का बिल्कुल सूखा हुआ सा लगना, मुंह से ज्यादा मात्रा में गाढ़ी-गाढ़ी सी लार निकलना आदि लक्षणों के आधार पर जेनशियाना ल्यूटिया औषधि लेने से लाभ होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को खट्टी-खट्टी डकारें आना, भूख का बार-बार लगना, जी मिचलाना, आमाशय का इतना भारी लगना जैसे कि किसी ने उसमें वजन रखा हो, पेट में दर्द होना और पेट का फूलना जैसे लक्षणों में रोगी को जेनशियाना ल्यूटिया औषधि देने से आराम मिल जाता है।

तुलना-

जेनशियाना ल्यूटिया औषधि की तुलना जेनशियाना क्विन्किरा, जेनशियाना क्रूशिएटा, हाइड्रैस्टि और नक्स से की जा सकती है।

मात्रा-

पहली शक्ति से लेकर तीसरी शक्ति तक का तनुकरण।


जेरानियम मैक्यूलेटम (क्रेन बिल) Geranium Maculatum (Crane’s Bill)

 जेरानियम मैक्यूलेटम (क्रेन बिल) Geranium Maculatum (Crane’s Bill)

परिचय-

जेरानियम मैक्यूलेटम औषधि का उपयोग उल्टी होने के कारण होने वाले सिर के दर्द में, फेफड़ों से या शरीर के दूसरे भागों से खून आने में, आमाशय में किसी तरह का रोग हो जाने पर इस्तेमाल करने से रोगी का रोग कुछ ही समय में ठीक हो जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जेरानियम मैक्यूलेटम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर के घूमने के साथ-साथ चक्कर आना, एक ही चीज का दो-दो दिखाई पड़ना, आंखें बन्द करने से सिर के दर्द में आराम आना, उल्टी होने के कारण होने वाला सिर का दर्द आदि लक्षणों में रोगी को जेरानियम मैक्यूलेटम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण-

मुंह का बहुत ज्यादा सूखा हुआ सा लगना, जीभ की नोक में जलन होना, आहार नली की सूजन आदि लक्षणों में रोगी को जेरानियम मैक्यूलेटम औषधि देने से आराम आता है।

मल से सम्बंधित लक्षण-

बार-बार ऐसा महसूस होना जैसे कि मलत्याग के लिए जाना है लेकिन मलत्याग के लिए जाने पर कुछ समय तक मल का न आना, पुराने दस्त के रोग के साथ ही बदबूदार बलगम सा निकलना, पेट में कब्ज का बनना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जेरानियम मैक्यूलेटम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

मासिकस्राव का बहुत ज्यादा मात्रा में आना, बच्चे को जन्म देने के बाद योनि में से खून का आना, स्तनों के निप्पलो में बहुत तेजी से होने वाला दर्द जैसे लक्षणों में रोगी स्त्री को जेरानियम मैक्यूलेटम औषधि देने से लाभ मिलता है।

तुलना-

जेरानियम मैक्यूलेटम औषधि की तुलना जेरानिन, सिनको, सैबाइना और हाइड्रैस् से कर सकते है।

मात्रा-

जेरानियम मैक्यूलेटम औषधि की रोगी को रोग के लक्षणों के मुताबिक मूलार्क या तीसरी शक्ति तक देने से लाभ होता है।


फार्मिका रूफा (मायर्मेक्साइन) FORMICA RUFA (MYRMEXINE)

 फार्मिका रूफा (मायर्मेक्साइन) FORMICA RUFA (MYRMEXINE)

परिचय-

फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों में उत्पन्न लक्षणों को ठीक करने के लिए किया जाता है परन्तु जोड़ों की सूजन को समाप्त करने में यह औषधि विशेष रूप से लाभकारी है। गठिया व संधिवात के ऐसे दर्द जो गति करने से बढ़ते हैं और रोगग्रस्त स्थान पर दबाव देने से कम होते हैं। पीछे की ओर विशेष रूप से दाईं ओर गठियावात से अधिक प्रभावित होने पर तथा पुराने गठिया और जोड़ों में अकड़न होने पर इस औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। गठिया से पीड़ित रोगियों में जब चेचक उत्पन्न होकर स्नायुशूल का रूप ले लेता है तब ऐसे लक्षणों के साथ उत्पन्न दर्द व गठिया रोग में फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग करने से तुरन्त लाभ मिलता है। यक्ष्मा (ट्युबरसुलोसिस), कैंसर (कैर्कीनोमा) और लूपस अर्थात चर्म रोग, चिर गुर्दे की सूजन। किसी भारी चीज को उठाने के कारण उत्पन्न होने वाले रोग। खून की खराबी तथा पुर्वगक बनने की प्रवृति को नष्ट करने के लिए फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फार्मिका रूफा औषधि का उपयोग-

सिर से संबन्धित लक्षण :- सिर चकराना। सिर दर्द के साथ बायें कान के अन्दर कड़कड़ाहट महसूस होना। मस्तिष्क बहुत भारी और बड़ा महसूस होना। सिर में बुलबुला फूटने जैसा महसूस होना। भूलने की बीमारी विशेष रूप से शाम के समय। अधिक प्रसन्नता। नजला निकलने के साथ नाक बन्द होने जैसा महसूस होना। आमवाती परितारिकशोथ (र्हुमेटीक इरीटिस) नासा पुर्वगक (नसल पोलिपी)। इस तरह के लक्षणों में रोगी को फार्मिका रूफा औषधि देने से लाभ मिलता है।

कान से संबन्धित लक्षण :- कान में टनटनाहट और भिनभिनाहट की आवाज सुनाई देना। बायें कान के अन्दर कड़कड़ाहट महसूस होने के साथ सिर दर्द होना। कान के इर्द-र्गिर्द सूजन होना। पुर्वगक (पोलिपी)। यदि रोगी में ऐसे लक्षण उत्पन्न हो तो रोगी को फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सांस संस्थान से संबन्धित लक्षण :- गले में खराश के साथ सूखापन, गले में तेज दर्द होना, रात को अधिक खांसी आने के साथ सिर कठोर व छाती में सिकुड़न के साथ दर्द होना तथा फुफ्फुसावरणीय दर्द (प्लेयुरीटिक पैंस) आदि लक्षणों में फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- आमाशय के ऊपरी भागों में जहां हृदय समाप्त होता है, उसमें दबाव और जलन के साथ दर्द होना। जी मिचलाने के साथ सिर दर्द तथा उल्टी के साथ पीले रंग के कफ का आना। आमाशय में दर्द शुरू होकर धीरे-धीरे फैलते हुए कपाल तक पहुंच जाना। पेट में गैस बनना तथा उसका निकास न होना। इस तरह के लक्षण यदि रोगी में उत्पन्न हो तो रोगी को फार्मिका रूफा औषधि देनी चाहिए।

बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षण :- आमवाती दर्द, जोड़ों में अकड़न व सिकुड़ापन। पेशियां थकी हुई और सन्निद्ध (अटैचमेन्टस) से अलग-थलग लगना। निम्नांगों की कमजोरी। आंशिक पक्षाघात। कूल्हों में दर्द। अचानक आने वाले आमवाती दर्द के साथ बेचैनी। पसीना आने से रोग में आराम मिलना तथा आधी रात के बाद व रगड़ने से आराम मिलना। ऐसे लक्षणों में फार्मिका रूफा औषधि देने से रोग में आराम मिलता है।

मल से संबन्धित लक्षण :- सुबह समय कठिनाई के साथ गैस का निकलना तथा मलाशय में ऐसा महसूस होना मानो दस्त लग गया हो। मल त्याग से पहले आतों में दर्द होने के साथ ठण्डे लगने से थरथराहट उत्पन्न होना। मलद्वार का सिकुड़ जाना। मल त्याग से पहले नाभि के चारों ओर खिंचाव के साथ दर्द होना। रोगी में ऐसे लक्षण उत्पन्न होने पर फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग करने से रोग समाप्त होते हैं।

मूत्र से संबन्धित लक्षण :- पेशाब के साथ खून का आना, पेशाब के धातु का जाना, पेशाब का अधिक आना तथा पेशाब में मेहीन कणों का आना आदि मूत्र रोगों में फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

पु़रुष रोग से संबन्धित लक्षण :- वीर्यपात, कमजोरी तथा सम्भोग की इच्छा का समाप्त होना आदि रोगों के लक्षणों में फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है तथा व्यक्ति में सम्भोग की शक्ति बढ़ती है।

त्वचा से संबन्धित लक्षण :- त्वचा लाल होने के साथ खुजली व जलन होना। शीतपित्त (नेटर्लेस)। जोड़ों के चारों ओर गांठे होना तथा अधिक पसीना आना आदि त्वचा रोग के लक्षणों में फार्मिका रूफा औषधि का प्रयोग करने से रोग समाप्त होता है।

वृद्धि :-

ठण्डे पानी तथा ठण्डे स्थान पर रहने से तथा हिमानी तूफान से रोग बढ़ता है।

शमन :-

गर्म प्रयोग से, गर्म स्थान रहने से, दबाव देने से, कंघी करने तथा रगड़ने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :-

फार्मिका रूफा औषधि की तुलना फार्मिक एसिड से की जाती है।

विशेष :-

इस औषधि का प्रयोग विभिन्न रोगों जैसे- पेशियों का पुराना दर्द तथा पेशियों में दर्द व पीड़ा होने पर। अचानक उत्पन्न होने वाला गठिया और संधिवाती दर्द आदि को दूर करता है। ऐसे आमवाती दर्द अधिकतर दाईं ओर होता है तथा गति करने से दर्द बढ़ता है और दबाव देने से दर्द कम होता है। इसके अतिरिक्त आंखों से कम दिखाई देना, धुंधला दिखाई देना, पेशियों की शक्ति बढ़ाने तथा शारीरिक थकान को दूर करने के लिए, तनकर चलने पर होने वाले दर्द, अधिक पेशाब आना, अशोशणीय पदार्थो विशेष रूप से यूरिक को शरीर से बाहर निकालने के लिए, शारीरिक कम्पन, टी.बी., पुराने गुर्दे की सूजन, कैंसर और ल्यूपस(त्वचा की टी.बी.) आदि रोगों में फार्मिका एसिड का 3 से 4 शक्ति का प्रयोग घोल इंजेक्शन के रूप में रोगी को दिया जा सकता है। इस औषधि का प्रयोग घोल के रूप में करने से यह जल्दी रोगों में क्रिया करके रोगों को ठीक करता है।

स्फीत शिरा, पुर्वगक, जुकाम आदि में फार्मिक एसिड के घोल के 28 से 56 मिलीलीटर का प्रयोग किया जा सकता है। इस घोल में 1 भाग एसिड और 11 भाग आस्त्रुत जल का प्रयोग किया जाता है। इस घोल को एक छोटे चम्मच के बराबर घोल के साथ एक बड़ी चम्मच पानी को मिलाकर खाना खाने से पहले हर रोज 1 से 2 बार लेने से रोग ठीक होता है।

कण्डराकला तथा सिर, गर्दन और कंधों की पेशियों में होने वाले दर्द। इन रोगों में रसटाक्स, डल्कामारा, अर्टिका व ज्यूनीपेरस औषधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इन सभी औषधियों में फार्मिक एसिड पाया जाता है। इस औषधि को वूड अल्कोहल के साथ पर अन्य पेय के साथ मिलाकर लेने से यह आसानी से शरीर से बाहर नहीं निकलता और धीरे-धीरे औषधि फार्मिक एसिड में बदल जाता है जिसके फलस्वरूप यह मस्तिष्क को आक्रान्त करता है और असावधानी के कारण मृत्यु अथवा अन्धेपन का कारण बन जाता है।

फार्मिक एसिड द्वारा की जाने वाली चिकित्सा का सबसे अधिक प्रभाव गठियावाती रोग में पड़ता है। इस औषधि का प्रयोग पेशियों में उत्पन्न रोग जैसे- पेशियों की सूजन, अस्थ्यावरणशोथ तथा अस्थियों की नरम और पिलपिली सूजन, प्रावरणियों में होने वाले परिवर्तन जैसे ड्युपुटरीनी खिंचाव, त्वचा रोग, पुराने छाजन, विचर्चिका (प्सोरियासिस) तथा बाल झड़ना। गुर्दे के रोग जैसे अर्धजीर्ण (सुबाक्यूट) एवं जीर्ण गुर्दे सूजन आदि। इन रोगों में फार्मिक एसिड 12x या 30x की 1 शीशी का इंजेक्शन 2-4 सप्ताहों के अन्तर पर दिया जा सकता है। यह औषधि रोगों को समाप्त करने के लिए इंजेक्शन देने के 8-10 दिन बाद रोगों के लक्षण उत्पन्न कर रोगों को ठीक करता है।

नये आमवाती बुखार तथा सूजाक से संबन्धित जोड़ों की सूजन (संधिशोथ) में फार्मिक एसिड 6x हर 6 दिन पर देने से रोग ठीक होता है परन्तु रोग अधिक बढ़ जाने पर 12x के इंजेक्शन देने से रोग में जल्द आराम मिलता है।

गठिया रोग से ग्रस्त रोगी के पुराने जोड़ों की सूजन। आमवाती ज्वर के नए आवेग जीर्ण जोड़ों की सूजन आदि में फार्मिक एसिड का प्रयोग लाभकारी होता है परन्तु इसके लिए कुछ स्थानों पर निरन्तर बने रहने वाले स्नायविक दर्द और अत्यन्त कठिन रोग होना आवश्यक है। रोग की ऐसी अवस्था में 12x या 30x के अपेक्षा फार्मिक एसिड 6x अधिक लाभकारी होता है। इस औषधि के प्रयोग से रोग समाप्ति के प्रथम लक्षण में रोगी के शरीर का अकड़न दूर होता है, उसके बाद दर्द और फिर सूजन दूर होकर रोग पूर्ण रूप से 1 से 6 महीने में समाप्त हो जाता है।

फार्मिक एसिड का प्रयोग पुराने जोड़ों की सूजन की उस स्थिति में भी लाभकारी है जिसमें विरूपक प्रक्रियाएं पहले ही संधि तलों पर फैल गई हो। रोग की ऐसी स्थिति में फार्मिक एसिड के प्रयोग करके रोग को रोका जा सकता है। लेकिन इसमें हमेशा अस्थियां सुधार की सम्भावना रहती है। इसकी उम्मीद तथा कथित विरूपक संधिशोथ में विशेष रूप से की जाती है जिसमें बंधलियों तथा सम्पुटों के प्रदाह अत्यन्त उन्नत प्रकृति के होते हैं।


फ्रैगेरिया विस्का FREAGERIYA VISKAA

 फ्रैगेरिया विस्का FREAGERIYA VISKAA 

परिचय-

फ्रैगेरिया विस्का औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों को ठीक करने लिए किया जाता है। इस औषधि का प्रयोग रोगी के शरीर में उत्पन्न होने वाले कुछ लक्षणों के आधार पर किये जाते हैं जिसके कारण यह औषधि रोगों के प्रतिकूल क्रिया करके रोग को ठीक करती है। ऐसे रोगी जो स्ट्राबेरी खाने से बीमार पड़ा हो उसे यह औषधि देने से रोग दूर होता है। पुराने रोग। पुराने सूजाक में बहुत दिनों का रुका हुआ स्राव फिर से आने लगे और उसका मुंह पक गया हो, जीभ सूजन कर लाल हो गई हो तो ऐसे लक्षणों में फ्रैगेरिया विस्का औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। औषधि के लक्षण :- यह औषधि स्तनों के दूध को सूखाती है और स्तनों के आकार को कम करती है। अत: जो स्त्री बच्चे के जन्म के बाद बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहती है ताकि उसका फिगर बना रहे तो वे इस औषधि के सेवन कर सकती है।


शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न विभिन्न लक्षणों के आधार पर फ्रैगेरिया विस्का औषधि का उपयोग :-

मुंह से संबन्धित लक्षण :- जिस रोगी का मुंह पक गया हो। जीभ फूलकर लाल हो गई हो तो ऐसे लक्षणों में रोगी को फ्रैगेरिया विस्का औषधि लेनी चाहिए। मुंह के छालों में इस औषधि का बाहरी प्रयोग करने से लाभ अत्यधिक लाभ होता है।

चेहरे से संबन्धित लक्षण :- चेहरे का लाल हो जाना, जीभ की सूजन, पेट और आमाशय का दर्द तथा उल्टी होना तथा उल्टी होने पर दर्द समाप्त होना आदि लक्षणों में रोगी को फ्रैगेरिया विस्का औषधि देनी चाहिए।

बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षण :- पूरे शरीर में सूजन आना। बेहोशी उत्पन्न होना। शरीर का ढीलापन, शारीरिक थकान तथा बेहोशी उत्पन्न होना आदि लक्षण पैदा होने पर रोगी को फ्रैगेरिया विस्का औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

त्वचा से संबन्धित लक्षण :- त्वचा पर काली लकीरों उत्पन्न करने वाले चर्म रोग तथा रिस्पिती के कष्ट उत्पन्न होना फ्रैगेरिया विस्का औषधि लेनी चाहिए।

बुखार से संबन्धित लक्षण :- अधिक पसीना आना तथा बुखार होने पर फ्रैगेरिया विस्का औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मात्रा :-

फ्रैगेरिया विस्का औषधि के मूलार्क 5 से 10 बूंद थोड़े से पानी के साथ दिन में 2 बार लेने से रोग में जल्दी आराम मिलता है। रोगों में आवश्यकता पड़ने पर फ्रैगेरिया विस्का औषधि के 6, 30 या 200 शक्ति का भी प्रयोग किया जा सकता है।


फ्रैक्सीनस अमेरिकाना FRAXINUM AMERICAN

 फ्रैक्सीनस अमेरिकाना FRAXINUM AMERICAN

परिचय-

फ्रैक्सीनस अमेरिकाना औषधि का प्रयोग गर्भाशय की झिल्ली बढ़ जाने पर करने से झिल्ली का आकार सामान्य हो जाता है। इसके अतिरिक्त तन्तुओं का गैस, आंशिक प्रत्यावर्तन और स्थानच्युति (प्रोलैप्स)। जरायु में फोड़ा होना तथा जरायु में नीचे की ओर दबाव महसूस होना। बुखार के कारण होंठों पर होने वाले दाने। ठण्डी रेंगन गर्म तमतमाता हुआ तथा बच्चों के छाजन (इन्फैटील एक्जीमा) आदि होने पर फ्रैक्सीनस अमेरिकाना औषधि के प्रयोग करने से रोग ठीक होता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फ्रैक्सीनस अमेरिकाना औषधि का उपयोग :-

सिर से संबन्धित लक्षण :- यदि रोगी के सिर के पिछले भाग में जलनयुक्त दर्द हो रहा हो तो यह औषधि देने से दर्द ठीक होता है। विषाद के साथ स्नायविक व्याकुलता, रोगी में आत्मविश्वास की कमी, हमेशा उदास रहने वाले स्वभाव तथा सिर के ऊपरी भाग में धब्बे होना आदि इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगी को फ्रैक्सीनस अमेरिकाना औषधि देने से रोग दूर करता है।

पेट से संबन्धित लक्षण :- पेट के बाएं भाग स्पर्शकातर तथा नीचे की ओर दबाव महसूस होने के साथ दर्द होना तथा दर्द को धीरे-धीरे नीचे की ओर फैल जाना आदि लक्षणों से ग्रस्त रोगी को फ्रैक्सीनस अमेरिकाना औषधि देनी चाहिए।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- गर्भाशय की झिल्ली बढ़ जाने या फैल जाने पर इस औषधि का प्रयोग करने से गर्भाशय अपने सामान्य आकार में आ जाती है। गर्भाशय का अपने स्थान से हट जाना या नीचे उतर जाना। योनि से पानी की तरह पतले व तेजाब की तरह तीखा प्रदरस्राव होना। जरायु की तन्तुओं (फाइब्रोइड्स) में नीचे की ओर दबाव महसूस होने के साथ पैरों में ऐंठन सा दर्द होना तथा दर्द दोपहर व रात को अधिक हो जाना। मासिकधर्म का कष्ट से आना। इस तरह के लक्षणों उत्पन्न होने पर फ्रैक्सीनस अमेरिकाना औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

तुलना :-

फ्रैक्सीनस अमेरिकाना औषधि की तुलना फ्रैक्सीनस एक्सेल्सियर, एपिफेगस, सीपिया तथा लिलियम से की जाती है।

मात्रा :-

फ्रैक्सीनस अमेरिकाना औषधि के मूलार्क 5 से 10 बूंद थोड़े से पानी में दिन में 2 बार लेनी चाहिए। रोग में इस औषधि के 6 शक्ति या 2x या 3x का भी प्रयोग किया जा सकता है।


फ्रागैरिया FRAGARIA

 फ्रागैरिया FRAGARIA

परिचय-

फ्रागैरिया औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने में किया जाता है। यह औषधि विशेष रूप से पाचनतन्त्र तथा आन्त्रयोजनी ग्रन्थियों पर क्रिया करती है और उससे संबन्धित लक्षणों को समाप्त करती है। यह औषधि पथरी को गलाकर निकालती है, दांतों पर जमे मैल साफ करती है और गठिया के दौरे को रोकती है। यह औषधि शरीर की गर्मी को दूर करती है। स्ट्राबेरी के अधिक सेवन से बीमार पड़ने वाले व्यक्तियों (सससेप्टिल इण्डीब्युजुअलस) में विषाक्त लक्षण पैदा होने पर तथा छपाकी अथवा शीतपित्त के समान दाने आने पर फ्रागैरिया विस्का औषधि का प्रयोग किया जाता है। ऐसे स्थिति में रोगी को फ्रागैरिया औषधि के उच्च शक्ति भी दिया जा सकता है। एड़ियों का फटना। स्तनों में दूध का कम होना तथा बालों का गिरना। स्प्रुस (स्प्रुस) आदि लक्षणों में फ्रागैरिया औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।


शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फ्रागैरिया औषधि का उपयोग-

मुंह से संबन्धित लक्षण :- जीभ सूजी हुई, झरबेरी की तरह जीभ का हो जाना आदि मुंह के रोग के लक्षणों में फ्रागैरिया औषधि का सेवन करने से रोग ठीक होता है।

त्वचा से संबन्धित लक्षण :- त्वचा पर ठण्डी या गर्मी महसूस होना, त्वचा बैंगनी रंग का होना तथा दानेदार फुंसियां जैसे दाने निकलना तथा पूरे शरीर पर सूजन आ जाना आदि त्वचा रोग के लक्षणों में फ्रागैरिया औषधि का प्रयोग करने से रोग समाप्त होता है।

तुलना :-

फ्रागैरिया औषधि की तुलना एपिस और कल्केरिया औषधि से की जाती है।

मात्रा :-

फ्रागैरिया औषधि के 3 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।


फ्यूकस वेसीकुलोसस Fucus Vesiculosus

 फ्यूकस वेसीकुलोसस Fucus vesiculosus

परिचय-

फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि का प्रयोग कई प्रकार के रोगों को दूर करने में किया जाता है परन्तु इस औषधि का प्रयोग कब्ज, मोटापा और गलगण्ड तथा नेत्रोत्सेधी रोगों को दूर करने में विशेष रूप से किया माना गया है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि का उपयोग :-

सिर से संबन्धित लक्षण :- सिर में दर्द के साथ ऐसा महसूस होना जैसे लोहे के छल्ले से सिर को दबाया जा रहा हो। ऐसे लक्षणों वाले सिर दर्द में फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि का प्रयोग करने से दर्द में आराम मिलता है।

गले से संबन्धित लक्षण :- गले में गांठ होकर उसमें विषैले पीब बनने पर फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि का सेवन करना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से गांठें फूटकर पीब निकल जाती है और रोग समाप्त हो जाता है।

पेट से संबन्धित लक्षण :- यह औषधि पाचनतन्त्र को ठीक करके पेट फूलने जैसे लक्षणों को समाप्त करती है।

मल से संबन्धित लक्षण :- नए या पुराने किसी भी प्रकार के कब्ज को दूर करने के लिए फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

मोटापा से सम्बंधित लक्षण :- फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि के प्रयोग करने से पेट व शरीर के अतिरिक्त चर्बी कम होकर मोटापा कम होता है।

तुलना :-

फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि की तुलना फाइटोले, थाइरायडीन, बादियागा और आयोडम से की जाती है।

मात्रा :-

फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि के मूलार्क 5 से 6 बूंद प्रतिदिन भोजन करने से पहले लेनी चाहिए अथवा आवश्यकता पड़ने पर फ्यूकस वेसीकुलोसस औषधि के 3 से 30 शक्ति का भी प्रयोग किया जा सकता है।


फ्यूशिना मैगैंटा FUCHSINA MAGENTA

 फ्यूशिना मैगैंटा FUCHSINA MAGENTA

परिचय-

फ्यूशिना मैगैंटा औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने में किया जाता है। यह औषधि कान, नाक, मुंह, पेट आदि के दर्द में अत्यन्त लाभकारी होती है। मूत्र रोग फ्यूशिना मैगैंटा का प्रयोग करने से रोग दूर होता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फ्यूशिना मैगैंटा औषधि का उपयोग :-

मुंह से संबन्धित लक्षण :- मुंह का रंग गहरा लाल होना, मसूढ़े सूज कर लाल हो जाना और मुंह से अधिक लार आना आदि मुंह रोग के लक्षणों में फ्यूशिना मैगैंटा औषधि का प्रयोग करने से रोग समाप्त होता है।

मूत्र से संबन्धित लक्षण :- पेशाब का रंग लाल होना, पेशाब में अन्नकण का आना तथा दस्त में खून आने के साथ अधिक मात्रा में दस्त का आना आदि लक्षणों में रोगी को फ्यूशिना मैगैंटा औषधि देने से रोग ठीक होता है।

कान से संबन्धित लक्षण :- कान लाल होने के साथ कान में दर्द होने पर रोगी को फ्यूशिना मैगैंटा औषधि लेनी चाहिए। इस औषधि के सेवन से दर्द में तुरन्त लाभ होता है।

गुर्दों से संबन्धित लक्षण :- गुर्दे का प्रान्तस्था पदार्थ (कोर्टिकल सबस्टैंस) अपजनित तथा प्रान्तस्था गुर्दे की सूजन के साथ अन्नसारमेह आदि रोगों के लक्षणों में फ्यूशिना मैगैंटा औषधि का प्रयोग करने से रोग दूर होता है।

मात्रा :-

फ्यूशिना मैगैंटा औषधि 6x से 30 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।


फूलिगो लिग्नी FULIGO LIGNI

 फूलिगो लिग्नी FULIGO LIGNI

परिचय-

फूलिगो लिग्नी औषधि का प्रयोग कई प्रकार के रोगों को दूर करने में किया जाता है। यह त्वचा रोग, गले का रोग, स्त्री रोग तथा गर्भाशय के रोगों में प्रयोग करने से अत्यन्त प्रभावकारी असर होता है। यह औषधि विशेष रूप से विभिन्न अंगों में होने वाले कैंसर रोग को ठीक करता है। इस औषधि का उपयोग ग्रन्थिजाल (ग्लैण्ड्युलर सिस्टम) तथा श्लेम कलाओं को समाप्त करने के लिए किया जाता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फूलिगो लिग्नी औषधि का उपयोग :-

त्वचा से संबन्धित लक्षण :- त्वचा के पुराने घाव, त्वचा पर दाद होना तथा छाजन (एक्जीमा) आदि उत्पन्न होने पर रोगी को फूलिगो लिग्नी औषधि देने से त्वचा के सभी रोग नष्ट होते हैं।

मुंह से संबन्धित लक्षण :- जिन रोगियों के मुंह की श्लैमिक झिल्लियों में उत्तेजना रहती हो उसे फूलिगो लिग्नी औषधि लेनी चाहिए।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- योनि की खुजली तथा गर्भाशय से खून का आना आदि लक्षण वाले रोग में फूलिगो लिग्नी औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

कैंसर से सम्बंधित लक्षण:- इस औषधि का प्रयोग विभिन्न प्रकार के कैंसर रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है परन्तु अण्डकोष का कैंसर रोग तथा विषैले धुंएं के कारण होने वाले कैंसर रोगों को दूर करने में यह अधिक प्रभावकारी होता है। उपकला कैंसर (एपीथेलियल कैंसर) रोग तथा गर्भाशय के कैंसर रोग के साथ रक्तप्रदर होना आदि लक्षण वाले कैंसर रोगों को ठीक करने में फूलिगो लिग्नी औषधि का प्रयोग अत्यन्त लाभकारी होती है।

तुलना :-

फूलिगो लिग्नी औषधि की तुलना क्रियोजोट से की जाती है।

मात्रा :-

फूलिगो लिग्नी औषधि 6 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।


फैबियाना इम्ब्रिकैटा FABIANA IMBRICATA

  फैबियाना इम्ब्रिकैटा FABIANA IMBRICATA

परिचय-

फैबियाना इम्ब्रिकैटा औषधि दक्षिण अमेरिका में पैदा होने वाली क्षुप नामक पौधे से बनाई जाती है। रोगी में उत्पन्न विभिन्न लक्षणों में यह औषधि अत्यन्त लाभकारी है। फैबियाना इम्ब्रिकैटा औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने में किया जाता है परन्तु यह औषधि मूत्र रोग में विशेष रूप से लाभकारी होती है। यह औषधि रोगी के शारीरिक शक्ति को बढ़ाती है तथा पित्त को नष्ट करती है। नाक से नजला निकलना, कामला (पीलिया) तथा मन्दाग्नि (डाइसपेशिया) आदि को ठीक करने के लिए फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग किया जाता है। फैगोपाइरम औषधि के प्रयोग करने से शरीर में पित्त अधिक मात्रा में बनने से रोकता है।

मूत्र से संबन्धित लक्षण :- मूत्रनली की सूजन (काइस्टीटिज), सूजाक, पु:रस्थग्रन्थिशोथ (प्रोर्सस्टैटीटिज), मूत्रकृच्छ (पेशाब का कष्ट के साथ आना), मूत्राम्ल प्रवणता (यूरिक एसिड डैथेसीज) तथा पेशाब के साथ सफेद रंग का पदार्थ आने के साथ होने वाली पु:रस्थग्रन्थि की सपूय अवस्थाओं में रोगी को फैबियाना इम्ब्रिकैटा औषधि का प्रयोग करना चाहिए। यह औषधि मूत्र संबन्धित रोग में तेजी से क्रिया करके रोग को ठीक करती है।

मात्रा :-

फैबियाना इम्ब्रिकैटा औषधि का मूलार्क के 10 से 20 बून्द का प्रयोग किया जा सकता है।


फैगोपाइरम FAGOPYRUM

 फैगोपाइरम FAGOPYRUM

परिचय-

फैगोपाइरम औषधि विभिन्न प्रकार के रोगों में उत्पन्न लक्षणों पर प्रतिक्रिया (प्रभाव) करके लक्षणों को समाप्त करती है जिसके फलस्वरूप उससे संबन्धित रोग ठीक होते हैं। इस औषधि की मुख्य विशेषता यह है कि यह औषधि विशेष रूप से त्वचा पर क्रिया करती है जिसके कारण ये औषधि त्वचा रोग में अधिक लाभकारी होती है परन्तु कभी-कभी इस औषधि के कारण रोगी की त्वचा पर खुजली पैदा होती है परन्तु ये औषधि खुजली के लिए भी अधिक लाभकारी होती है। अधिक नजला स्राव होने। दुर्गन्धित स्राव। त्वचा के खुजलीयुक्त लाल-लाल दानें (इचिंग एरीथेमिक)। बुढ़ापे के समय उत्पन्न होने वाली खुजली आदि में फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। नाक के पिछले भाग से स्राव होना, नाक में पपड़ियां पड़ना, नाक के पिछले भाग पर दाने निकलना तथा खुजली होना आदि लक्षण रोगी में उत्पन्न हो तो रोगी को फैगोपाइरम औषधि का सेवन कराए।


शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फैगोपाइरम औषधि का उपयोग :-

मन से संबन्धित लक्षण :- यदि रोगी को कोई बात अधिक देर तक याद नहीं रहती है या उसकी स्मरण शक्ति कम हो गई है, रोगी मानसिक रूप से निराश और अधिक चिड़चिड़ा हो गया है तथा बात-बात में गुस्सा हो जाता है तो ऐसे मानसिक लक्षणों में रोगी को फैगोपाइरम औषधि का सेवन करना चाहिए।

सिर से संबन्धित लक्षण :- सिर के गहराई में दर्द के साथ ऊपर की ओर दबाव महसूस होना, आंखों और कानों के अन्दर व आस-पास खुजली होना, सिर गर्म रहने के साथ पीछे की ओर मोड़कर झुकने से आराम मिलना तथा गर्दन में थकान महसूस होना आदि सिर रोग के लक्षणों में फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

सिर के पिछले भाग में दर्द होना तथा सिर में तेज दर्द होने के साथ ऐसा महसूस होना मानो किसी चीज से सिर फाड़ दिया हो। मस्तिष्क में खून का जमना आदि सिर रोग से संबन्धित लक्षणों में रोगी को फैगोपाइरम औषधि का सेवन करना चाहिए। इस औषधि के सेवन से रोग में जल्द आराम मिलता है।

नाक से संबन्धित लक्षण :- नाक गर्म व लाल होना, नाक में तेज जलन होना, नाक से नजला निकलना, छींके अधिक आना, नाक की खुश्की तथा नाक में पपड़ियां बनना आदि लक्षणों से ग्रस्त रोगी को फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आंखों से संबन्धित लक्षण :- आंखों में खुजली और चसचसाहट होना, आंखों की सूजन, आंखों में गर्मी होना तथा आंखों में दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को फैगोपाइरम औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

गले से संबन्धित लक्षण :- आहारनली की गहराई में दर्द होना तथा त्वचा उधड़ने जैसा अनुभव होने पर रोगी को फैगोपाइरम औषधि लेनी चाहिए। काकलक (युवुलवा) का बढ़ जाना तथा गलतुण्डिका (टोंसिल) की सूजन आदि लक्षण वाले रोगों में फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग से रोग दूर होता है।

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- आमाशय में तेज गर्मी अनुभव होने के साथ गर्म, खट्टा व पानी के तरह पतले द्रव्य डकार के साथ आना तथा कॉफी पीने से रोग में आराम मिलना आदि आमाशय रोगग्रस्त होने पर उत्पन्न लक्षणों में फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। सुबह के समय मुंह का स्वाद खराब होना, सुबह के समय जी मिचलाना, मुंह से अधिक लार का निकलना आदि लक्षण वाले आमाशय रोग में फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

हृदय से संबन्धित लक्षण :- हृदय के आस-पास दर्द होना तथा पीठ के बल लेटने से दर्द में आराम मिलना और दर्द बना रहने पर दर्द हृदय से धीरे-धीरे बढ़ते हुए बांए कंधे से बाजू तक फैल जाना। आराम करते समय सभी धमनियों में जलन महसूस होना, धड़कन के साथ घुटने महसूस होना, नाड़ी की गति तेज होना तथा कभी-कभी नाड़ी का रुक-रुक कर चलना, छाती में हल्कापन महसूस होना आदि हृदय रोग में इस तरह के लक्षण उत्पन्न होने पर फैगोपाइरम औषधि का सेवन करना चाहिए। यह औषधि हृदय पर तेजी से कार्य कर उससे उत्पन्न होने वाले लक्षणों को समाप्त करता है जिसके फलस्वरूप हृदय के सभी रोग समाप्त हो जाता है।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- योनि में खुजली होने के साथ योनि से पीले रंग का प्रदर स्राव होना तथा प्रदर स्राव रात के समय बढ़ जाना। डिम्बाशय के बांई ओर जलन होना। इस तरह के स्त्रियों रोगों में उत्पन्न लक्षणों में फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षण :- गले की मांसपेशियों में अकड़न महसूस होना, गले की पेशियों में कुचलयुक्त दर्द होना तथा गर्दन पर सिर का दबाव महसूस होना। कंधे व अंगुलियों में तेज दर्द होना। बाजुओं और पैरों में तेज खुजली जो शाम को और तेज हो जाती है। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगियों को फैगोपाइरम औषधि का सेवन करना चाहिए।

त्वचा से संबन्धित लक्षण :- त्वचा पर होने वाली खुजली जो ठण्डे पानी के स्नान से शान्त होती है तथा खुजली आराम करने, खुजाने व छूने से बढ़ती है। त्वचा पर जलनयुक्त लाल-लाल दाने आना। त्वचा पर सूखे फोड़े उत्पन्न होना। घुटनों, बालों और कोहनियों में खुजली होना। हाथों में गहराई तक खुजली होना। छालेदार, फुंसीदार, तथा त्वचा में सूजन होना। त्वचा गर्म होना आदि त्वचा रोग से संबन्धित लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को फैगोपाइरम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से त्वचा की खुजली के साथ अन्य रोग भी दूर हो जाते हैं।

वृद्धि :-

दोपहर के बाद, धूप में निकलने से, गर्मी के कारण तथा खुजाने से रोग बढ़ता है।

शमन :-

ठण्डे पानी से नहाने पर तथा कॉफी पीने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :-

फैगोपाइरम औषधि की तुलना डालीकौस, बोविस्टा व अटिका से की जाती है।

मात्रा :-

फैगोपाइरम औषधि के 3 शक्ति या 12x का प्रयोग किया जा सकता है।


फाइटोलक्का डिकेण्ड्र FAITOLAKKA DIKENDRA

 फाइटोलक्का डिकेण्ड्र FAITOLAKKA DIKENDRA 

परिचय-

फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। मुंह के अन्दर का ऊपरी जबड़ा लाल होकर फूल जाना अर्थात तालु का लाल होकर फूल जाना, तालु में सफेद दाग जगह-जगह बन जाना, तेज दर्द होने के साथ दर्द धीरे-धीरे बढ़कर कान, सिर, पीठ तथा शरीर के सभी अंगों तक पहुचने के साथ कुचलन जैसा दर्द महसूस होना तथा हिलने-डुलने की तीव्र इच्छा करना तथा हिलने-डुलने पर दर्द का बढ़ जाना आदि रोगी में उत्पन्न होने वाले लक्षणों में फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न होने वाले लक्ष्णों के आधार पर फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का उपयोग-

दांतों से संबन्धित लक्षण :- बच्चे में दांत निकलते समय दांत या मसूढ़ों में मिसलने होने के साथ दांत काटने या दांतों किटकिटाने की इच्छा होना आदि लक्षण उत्पन्न होने पर बच्चे को फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का सेवन कराने से दांत काटने व दांत किटकिटाने की आदत छूटती है और दांत आसानी से निकल आते हैं। इस औषधि के प्रयोग से दांत निकलते समय उत्पन्न होने वाली सभी बीमारियों को ठीक करती है।

बच्चों में होने वाली विसूचिका (हैजा) रोग के कारण बच्चे को भूरे रंग का दस्त बार-बार आने के साथ दस्त में आंव (सफेद रंग का पदार्थ) आना तथा विसूचिका में उत्पन्न कुछ अन्य लक्षण जैसे- कोई भी चीज मुंह में देने से उसे काटने लगना, मसूढ़ों में मिसलन होने के साथ अपने मसूढ़ों व दांतों को चबाने की कोशिश करना आदि। इस तरह बच्चे में उत्पन्न विसूचिका (हैजा) के साथ अन्य लक्षणों में फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का सेवन कराए। इससे विसूचिका के सभी लक्षण समाप्त होते हैं।

स्तन रोग से संबन्धित लक्षण :- स्तन का फूलकर कठोर होना तथा स्तनों का गर्म हो जाने के साथ उसमें दर्द होना। बच्चे को दूध पिलाते समय स्तनों का दर्द फैलकर पीठ तक पहुंच जाना आदि स्तनों रोग के लक्षणों में फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

प्रसव के बाद पहली बार स्त्री के स्तनों में दूध उतरने पर स्त्री में दुग्ध ज्वर के कारण स्तन फूलने का विकार उत्पन्न हो जाता है। ऐसे में स्त्री को फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का सेवन करना चाहिए।

यह औषधि स्तन में मवाद बनने, घाव बनने तथा मुंख खुले रह जाने के कारण जलन युक्त घाव बन जाने के साथ घाव से बदबूदार स्राव होना आदि स्तन रोग के लक्षणों में फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का प्रयोग लाभकारी है।

स्तन के फोड़े तथा स्तन में पड़ने वाली गांठों को समाप्त करने के लिए फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

गले से संबन्धित लक्षण :-

* गले में जलन होना, तालु का फूलकर लाल होना, लाली के बाद जगह-जगह सफेद धब्बे उत्पन्न होना, तेज दर्द होने के साथ दर्द कानों तक फैल जाना आदि गले के रोगों में फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि प्रयोग लाभकारी होता है।

* यह औषधि गलगण्ड (गले की गांठ) को समाप्त करने में लाभकारी होता है। अधिक बोलने के कारण यदि गले में जलन महसूस हो तो रोगी को फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि के उच्च शक्ति का सेवन कराए। इससे गले की जलन आदि दूर होती है। 

सिर से संबन्धित लक्षण :- सिर और पीठ में तेज दर्द होने के साथ पूरे शरीर में कुचलन जैसा दर्द महसूस होना, हिलने-डुलने की इच्छा करने के बाद भी हिल-डुल न सकना, हिलने-डुलने से दर्द का बढ़ जाना, रोगी के अन्दर सुस्ती पैदा होना, रोगी को सीधा बैठने से सिर चकराने लगना तथा थकान महसूस होना आदि रोगों में उत्पन्न ऐसे लक्षणों को दूर करने के लिए फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

बुखार से संबन्धित लक्षण :- तेज बुखार के कारण नाड़ी की गति तेज हो जाना तथा गर्मी मुख्य रूप से चेहरे तथा माथे पर महसूस होना आदि में फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का प्रयोग विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। इस औषधि के मूलार्क के 20 बूंदें बुखार में देने से बुखार जल्दी समाप्त होता है।

अन्य रोगों में उत्पन्न लक्षण :- यदि रोगी को साइटिका रोग हो और रोगी के कूल्हो में कुचलन जैसा दर्द महसूस हो रहा हो तो रोगी को फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का सेवन कराए।

यह औषधि अस्थि-वेस्ट के वात रोग जिसमें दर्द सर्दी के मौसम में खासतौर से बढ़ जाता है ऐसे लक्षणों में फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि हडडियों, शरीर के त्वचा और अस्थि वेष्ट की ग्रन्थियों पर लाभकारी प्रभाव डालती है।

विशेष :- कभी-कभी कुछ विशेष लक्षणों के कारण फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि के स्थान पर अन्य औषधि का भी प्रयोग किया जा सकता है।

* क्रोटोन टिग्लियत-बच्चे को दूध पिलाते समय पीठ तक फैलते हुए दर्द महसूस होने पर फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि के स्थान पर क्रोटोन टिग्लियम या साइलिसिया या पल्सेटिला का प्रयोग किया जा सकता है।

* फलैण्ड्रियम-दूध पिलाने के दौरान दुग्धवाही नली में दर्द होने पर फाइटोलक्का डिकेण्ड्रा औषधि के स्थान पर फलैण्ड्रियम का प्रयोग किया जा सकता है। 


फेरम फास्फोरिकम FERRUM FASFORIKAM

 फेरम फास्फोरिकम FERRUM FASFORIKAM

परिचय-

शरीर के किसी भी अंग की जलन को ठीक करने के लिए होमियोपैथिक चिकित्सा में जितनी भी औषधियां बनाई गई हैं, उसमें फेरम फास्फोरिकम औषधि सबसे अधिक लाभकारी है। फेरम फास्फोरिकम औषधि में लौह तत्व मौजूद होता है, जिसके कारण इस औषधि में खून को प्रवाहित करने की शक्ति होती है। इसके साथ ही फेरम फास्फोरिकम औषधि में फास्फोरस की मात्रा मौजूद होने के कारण यह फेफड़े और आमाशय से संबन्धित रोगों के लक्षणों को दूर करने में लाभकारी माना गया है। फेरम फास्फोरिकम औषधि में लोहे और फास्फोरस के मेल से बनने के कारण यह औषधि खून के बहाव को तेज करती है। इस औषधि के कारण होने वाले खून के बहाव में खून का रंग चमकीला लाल होता है और यह खून का बहाव शरीर के किसी भी द्वार से हो सकता है। वास्तव में फेरम फास्फोरिकम औषधि को ठीक से परीक्षण किया जाए तो इस औषधि में और भी बहुत से नए गुण पाये जा सकते हैं। फेरम फास्फोरिकम औषधि का प्रयोग उन व्यक्तियों में अधिक किया जाता है, जिसके शरीर में खून की कमी होती है। रोगी के शरीर में खून अधिक होता है, उसके लिए फेरम फास्फोरिकम के स्थान पर एकोनाइट औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर फेरम फास्फोरिकम औषधि का उपयोग :-

फेरम फास्फोरिकम औषधि का प्रयोग ऐसे रोगों में भी किया जाता है, जिसके शरीर में खून की अधिक कमी हो, खून की कमी के कारण उसका चेहरा पीला हो गया हो और कमजोरी होने के कारण शरीर का खून किसी एक स्थान पर एकत्रित हो गया हो। ऐसे में फेरम फास्फोरिकम औषधि सेवन करना लाभकारी होता है।

गठिया रोग से परेशान रोगी को भी फेरम फास्फोरिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है। परन्तु फेरम फास्फोरिकम औषधि का सेवन रोग में रस क्षरण की स्थिति पैदा होने से पहले ही किया जाना लाभकारी होता है।

फेरम फास्फोरिकम औषधि का सेवन ऐसे रोगियों के लिए भी लाभकारी है, जो रोगी खून की कमी के कारण उत्पन्न होने वाले मन्दाग्नि के फलस्वरूप पेट के विकारों से पीड़ित रहते हैं और उन्हें अधिक डकारें आती है। ऐसे में फेरम फास्फोरिकम औषधि का सेवन कराने से रोगी बहुत जल्द ही ठीक हो जाता है।

कमजोरी और खून की कमी के कारण जिन व्यक्तियों को रात में पसीना आना आदि रोग हो तो ऐसे रोग में फेरम फास्फोरिकम औषधि का सेवन लाभकारी होता है।


फेल टौरी़ FEL TAURI

 फेल टौरी़ FEL TAURI

परिचय-

फेल टौरी औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों को ठीक करने में किया जाता हैं। फेल टौरी औषधि शरीर में बनने वाली वसा पदार्थों को पतला कर शरीर में उसकी मात्रा को सन्तुलित करती है तथा ग्रहणी स्रावों (ड्यूडेनल सेक्रेशनस) व आंतों की पुर:सरण (पेरिस्टैल्टीक एक्शन) क्रिया को बढ़ती है। यह औषधि पित्त को पतला कर बाहर निकालती है। यह औषधि अधिक दस्त को रोकने वाली होती है। इसके अतिरिक्त पाचनतन्त्र का खराब होना, दस्त लाने तथा गले के जोड़ों पर उत्पन्न होने वाले दर्द में यह औषधि अधिक लाभकारी होती है। यह औषधि पित्त की नलियों में रुकावट को दूर करने तथा पित्त पथरी को गलाकर निकालने में सहायक होता है। कामला (पीलिया) रोग में भी फेल टटौरी औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फेल टौरी औषधि का उपयोग :-

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- रोगी को यदि डकारें अधिक आती हो और साथ ही आमाशय व अधिजठर प्रदेश में गड़गड़ाहट होती हो तो इस तरह के लक्षणों में फेल टौरी औषधि का सेवन करना चाहिए। तेज पुर:सरण गतियां। भोजन करने के बाद आलस्य उत्पन्न होने के साथ नींद आना आदि लक्षणों में फेल टौरी औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

तुलना :-

फेल टौरी औषधि की तुलना मर्क्यू-डिल्स, कोलेस्टेरिन तथा कैज्कुलोबिलाइ से की जाती है।

मात्रा :-

रोग के अनुसार फेल टौरी औषधि के निम्न शक्ति का प्रयोग किया जाता है।

विशेष :-

पित्त पथरी को तोड़ने के लिए यदि फेल टौरी औषधि के स्थान पर कैल्कुलोबिलाई का प्रयोग कर रहें है तो कैल्कुलोबिलाइ का 10 या 12x का प्रयोग करें।


फेरम आयोडेटम Ferrum Iodatum

 फेरम आयोडेटम Ferrum Iodatum

परिचय-

फेरम आयोडेटम औषधि आयरन और आयोडीन को होमियोपैथिक तरीके से मिश्रण करके बनाया जाता है। फेरम आयोडेटम औषधि अनेक प्रकार के रोग जैसे- गले की गांठें, ग्रिन्थयों के रोग तथा फोड़े आदि को ठीक करता है। यह औषधि गुच्छे के रूप में उत्पन्न होने वाले फोड़े को नष्ट करती है और विस्फोटक (चेचक) रोग होने पर गुर्दे की सूजन आदि को दूर करती है। यह औषधि गर्भाशय की झिल्ली का चिर जाना तथा शरीरिक कमजोरी को दूर करती है। यह औषधि खून की कमी को दूर करता है। फेरम आयोडेटम औषधि का प्रयोग खून की कमी (रक्ताल्पता), भूख न लगना, पेशाब में सफेद पदार्थ का आना। पीलिया आदि रोगों में भी लाभकारी होता है। यह औषधि मासिकधर्म रुक जाने के कारण नेत्रोत्सेधी तथा गलगण्ड (एक्सोफ्थाल्मीक गोइट्रे) रोगों को ठीक करता है। शरीर में जैवी द्रव्य के समाप्त होने के बाद शरीर में होने वाली कमजोरी को दूर करने के लिए फेरम आयोडेटम औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। चेहरे पर पीले रंग की फुंसियां उत्पन्न होने पर तथा चेहरे का लाल होना आदि रोगों में इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।


शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फेरम आयोडेटम औषधि का उपयोग :-

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- भोजन करने के बाद गले में ही भोजन अटका हुआ महसूस होना आदि लक्षणों में रोगी को फेरम आयोडेटम औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है।

पेट से संबन्धित लक्षण :- हल्का भोजन करने पर भी पेट भरा हुआ महसूस होना, पेट फूला हुआ महसूस होना तथा आगे झुकने पर परेशानी होना आदि लक्षणों में फेरम आयोडेटम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

गले से संबन्धित लक्षण :- गले में अटकने जैसा महसूस होने के साथ सुई चुभन जैसा दर्द होना। गले का दर्द दो भागों में बंटकर दूर तक फैल जाना तथा गले में कर्कशता महसूस होना। इस तरह के लक्षणों वाले रोगियों को फेरम आयोडेटम औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है।

सांस संस्थान संबन्धित लक्षण :- अधिक नजला बनना तथा नाक, सांस नली तथा स्वरयन्त्र से श्लैमा का अधिक निकलना। उरोस्थि के नीचे दबाव महसूस होना। नाक में कंठमाला की तरह सूजन होना। छाती में घुटन महसूस होना तथा रक्तनिष्ठीवन (हीमोप्टिसीज) आदि लक्षणों में रोगी को फेरम आयोडेटम औषधि का सेवन करान से रोग ठीक होता है और नजला आदि निकल जाता है।

मूत्र से संबन्धित लक्षण :- पेशाब गहरे रंग का आना। पेशाब में मीठे गंध का आना। मूत्रनली व मलाशय में कुछ चलने जैसा महसूस होना। कभी-कभी पेशाब करते हुए ऐसे महसूस होना मानो पेशाब मूत्रनली के नोक पर अटक गया हो। पेशाब करने में परेशानी व दर्द का अनुभव होना। खून की कमी तथा बच्चों में बिस्तर में पेशाब करने की आता। इस तरह के लक्षणों के रोगियों को फेरम आयोडेटम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे मूत्र रोग के सभी परेशानी समाप्त होती है।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- अधिक देर बैठने पर ऐसा महसूस होना मानो कोई चीज योनि के अन्दर घुसा जा रहा हो। योनि में नीचे की ओर अधिक दबाव महसूस होना। गर्भाशय की पश्चनति (रेट्रोवर्शन) और स्थानच्युति (प्रोलैप्स)। प्रदर रोग में योनि से सफेद रंग का गाढ़ा पदार्थ का निकलना। मासिकधर्म का रुक जाना या मासिकधर्म का कम मात्रा में आना। योनि में खुजली के साथ दर्द होना। स्त्रियों में इस तरह के लक्षणों को ठीक करने के लिए फेरम आयोडेटम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे स्त्री रोग ठीक होता है। गर्भाशय को छूने से तेज दर्द होना, कपाटों में जलन व खुजली होना। गर्भाशय की सूजन आदि सभी लक्षणों में फेरम आयोडेटम औषधि का प्रयोग से रोग ठीक होता है।

मात्रा :-

फेरम आयोडेटम औषधि की 3 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।


फेरम मेटालिकम FERRUM METALLICOM

 फेरम मेटालिकम FERRUM METALLICOM

परिचय-

फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों में उत्पन्न लक्षणों को दूर करने में किया जाता है परन्तु फेरम मेटालिकम औषधि मुख्य रूप से कमजोर व दुर्बल रोगी के लिए अधिक लाभकारी है, विशेष रूप से उन रोगियों के लिए जिसमें खून की कमी या पीलिया रोग के कारण कमजोरी उत्पन्न हुआ है। खून में दूषित द्रव्य का अधिक बनना, चिड़चिड़ापन, अतिसंवेदनशीलता तथा किसी सक्रिय प्रयास के बाद रोग का अधिक होना। बोलने या चलने-फिरने में कमजोरी महसूस होना। शारीरिक रूप से ठीक होने के बाद भी कमजोरी महसूस होना। त्वचा, श्लैष्म कलाओं व चेहरे का रंग लालिमायुक्त पीलापन। चेहरा, छाती व फेफड़ों में खून का अधिक बहाव होना तथा खून का कई भागों में बंट जाना। कूट-रक्तबाहुल्य (प्सयुडो प्लेथोरा) तथा पेशियों का थुलथुला व ढीला हो जाना। इस तरह के लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग अत्यन्त लाभकारी माना गया है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फेरम मेटालिकम औषधि का उपयोग :-

मानसिकता से संबन्धित लक्षण :- मानसिक रूप से परेशान रहना, किसी काम में मन न लगना, अधिक चिड़चिड़ापन, शोरगुल व अधिक लोगों में मन का न लगना तथा रोगी की किसी बातों को काटने से रोगी को जल्दी गुस्सा आ जाना। रक्तबहुल प्रकृति। इस तरह के मानसिक रोगों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग लाभकारी है।

सिर से संबन्धित लक्षण :-

* रोगी के सिर में जलनयुक्त दर्द होना तथा रोगी को सिर में हथौड़े मारने जैसा दर्द होना। डंक मारने या किसी जानवर के काट लेने से होने वाला सिर दर्द। मासिक धर्म से पहले कानों में टनटनाहट की आवाज सुनाई देना। तेज सिर दर्द के साथ सिर में जलन व खून का जमा होना, सिर दर्द का धीरे-धीरे दांतों तक फैल जाना तथा बाहरी अंग ठण्डा पड़ जाना आदि रोगों के लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है। 

* सिर के पिछले भाग में दर्द होने के साथ गर्दन में आवाज गूंजना, खोपड़ी में दर्द होना जिसके कारण बालों को लटकाकर रखना पड़ता है। इस तरह के लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग दूर होता है। 

* रोगी के सिर में जलन व दर्द के साथ हथौड़ी पीटने जैसा दर्द होना साथ ही दर्द वाले स्थान पर खून का बहाव होना। नाड़ी में भारीपन महसूस होना, चेहरा तमतमाया हुआ मानो रोगी गुस्से में हो। रोगी का चेहरा पहले सफेद और फिर तमतमाया सा हो जाना। रोगी को भूख अधिक लगना और भोजन शुरू करते ही अचानक भूख का समाप्त हो जाना। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगियों को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।


आंखों से संबन्धित लक्षण :- आंखों से साफ हल्का लाल रंग का पानी निकलना, प्रकाशभीति अर्थात तेज रोशनी आंखों पर बर्दाश्त न कर पाना तथा कोई किताब पढ़ने पर ऐसा महसूस होना मानो अक्षर चल रहा हो। इस तरह के लक्षणों वाले रोग में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

चेहरे से संबन्धित लक्षण :- चेहरे का रंग लाल होना तथा चेहरे पर दर्द महसूस होना। गुस्सा करने या कोई काम करने पर चेहरा लाल हो जाना। चेहरे का लाल भाग सफेद हो जाना तथा खून रुक जाने के कारण चेहरा फूल जाना आदि चेहरे से संबन्धित लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

चेहरे पर हरे या पीले रंग की झांइयां व दर्द होना, चेहरा चमकीला और लाल होना, हल्का गुस्सा करने या हल्का काम करने पर रोगी का चेहरा लाल, पीला हो जाना, सिर में खून का बढ़ जाना, नसें फूल जाना, रोगी के चेहरे पर गर्मी महसूस होना, सिर में तेज दर्द होना तथा हृदय धड़कने से भी दर्द होना। इस तरह के लक्षण से पीड़ित रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए। यह औषधि रोगों में तीव्र क्रिया करके रोग को जल्दी ठीक करता है।

नाक से संबन्धित लक्षण :- नाक की श्लैष्म कला ढीला होकर सूज जाना तथा उनमें खून की कमी के कारण उसका रंग पीला हो जाना आदि लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग से रोग ठीक होता है।

मुंह से संबन्धित लक्षण :- दांतों में तेज दर्द होना, दांतों में दर्द होने पर बर्फ का ठण्डा पानी मुंह में रखने से दर्द में आराम मिलना, मुंह का स्वाद खराब होना तथा मुंह में अण्डे की तरह चिपचिपापन महसूस होना आदि लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से मुंह का स्वाद ठीक होता है और दर्द आदि भी दूर होते हैं।

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- भूख का अधिक लगना या भूख का बिल्कुल न लगना। खट्टे पदार्थ से परहेज तथा खट्टे पदार्थ खाते ही दस्त का लग जाना। भोजन करने के तुरन्त बाद ही उल्टी हो जाना। भोजन करने के बाद डकारें अधिक आने के साथ जी मिचलाना। भोजन करने के बाद जी मिचलाने और उल्टी होना। आधी रात का उल्टी होना। अण्डे खाने पर उल्टी होना। भोजन करने के बाद आमाशय का फूल जाना तथा आमाशय में दबाव महसूस होना। आमाशय में गर्मी व जलन होना। पेट की परतों में दर्द होना तथा पाचन तन्त्र का खराब होना। उल्टी व डकारें आना तथा दिन में खाया हुआ पदार्थ रात को उल्टी हो जाना। रोगी को दस्त लगना तथा दस्त के समय दर्द न होना परन्तु दस्त के साथ अपच पदार्थ आना। रोगी में इस तरह के कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे आमाशय का रोग दूर होता है और उल्टी आदि विकारों को समाप्त करता है।

मल से संबन्धित लक्षण :- रात को भोजन करने के बाद भोजन का न पचना, शौच जाने के बाद भी शौच का बना रहना। मल कठोर व सूख जाना तथा कमर या मलाशय में ऐंठनयुक्त दर्द होना। मलद्वार का चीर जाना तथा मलद्वार में खुजली होना। इस तरह के लक्षणों को दूर करने के लिए फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

मूत्र से संबन्धित लक्षण :- पेशाब का अपने आप निकल जाना तथा दिन के समय पेशाब का अधिक आना, मूत्रनली में गुदगुदाहट तथा मूत्रनली की गुदगुदाहट धीरे-धीरे बढ़कर मूत्राशय तक पहुंच जाना। इस तरह के मूत्र रोगों से संबन्धित लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- मासिक धर्म नियमित समय के एक-दो दिन बाद आना। गर्भाशय से मांस का टुकड़ा निकलना। कमजोरी, त्वचा कोमल तथा खून की कमी होने के बाद भी चेहरा आग की तरह लाल रहना। मासिक धर्म नियमित समय से बहुत पहले तथा अधिक मात्रा में आना तथा मासिक धर्म के बाद भी योनि से पीले रंग का पानी का स्राव होते रहना। योनि को छूने से योनि में दर्द होना। गर्भपात होने के कारण शरीर का झुक जाना तथा योनि का चिर जाना। इस तरह के स्त्री रोगों के लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग कर रोग को ठीक किया जाता है। यह औषधि योनि संबन्धी विकारों को दूर कर मासिकधर्म को नियमित करती है।

स्त्री को मासिकधर्म जल्दी-जल्दी आना या मासिकधर्म आने के बाद अधिक दिनों तक मासिक स्राव जारी रहना, मासिक धर्म के समय मुंह लाल होने के साथ कानों में आवाज सुनाई देना। मासिक धर्म पीले रंग का व पानी की तरह पतला आना जिसके कारण स्त्रियों में अधिक कमजोर आ जाना। ऐसे लक्षणों में स्त्री को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।

सांस संस्थान से संबन्धित लक्षण :- छाती में घुटन महसूस होना, सांस लेने में परेशानी, छाती में खून का बहाव तेज होना, गले में खराश होना, उत्तेजना युक्त सूखी खांसी और रक्तनिष्ठीवन (हीमोप्टिसीज), खांसी के साथ सिर के पिछले भाग में दर्द होना आदि लक्षण। इस तरह के सांस रोगों से संबन्धित लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

पसीने से संबन्धित लक्षण:- यदि रोगी को अधिक मात्रा में पसीना आता है और अधिक पसीना आने के कारण कमजोरी उत्पन्न हो गया है तो ऐसे में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

हृदय से संबन्धित लक्षण :- हृदय की धड़कन तेज होना (हाई ब्लडप्रेशर) तथा हिलने-डुलने से धड़कन की गति और अधिक तेज हो जाने के साथ घुटन महसूस होना। खून की कमी के कारण शरीर में थकावट एवं दर्द पैदा होना। नाड़ी कोमल, मन्द और कमजोर होना। हृदय से खून का बहाव रक्तवाहिनियों में होना और फिर रक्तवाहिनियों से हृदय में खून आ जाने के कारण रक्तवाहिनियों के नीचे का भाग पीला हो जाना। हृदय से संबन्धित ऐसे लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से लाभ मिलता है और हृदय की गति सामान्य होती है।

शरीर के बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षण :- कंधों का गठिया रोग। पेट के जैवी द्रव्य के समाप्त होने के बाद पेट में पानी का भरना। कमर में उत्पन्न होने वाले ऐसा दर्द जो टहलने से आराम मिलता है। नितम्ब के जोड़, पैरों की लम्बी हडडी, तलुओं और एड़ी में दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

त्वचा से संबन्धित लक्षण :- त्वचा का रंग पीला होना तथा चेहरे का रंग सहज ही लाल हो जाना तथा त्वचा दबाने से उनमें गड्ढा पड़ जाना आदि त्वचा के रोगों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

बुखार से संबन्धित लक्षण :- शरीर के बाहरी अंगों में ठण्ड लगना और सिर व चेहरे पर गर्मी महसूस होना। सुबह के समय ठण्ड के कारण शरीर में कंपकंपी होना। हथेलियों और तलुवों में गर्मी महसूस होना। शरीर से अधिक पसीना आने के साथ कमजोरी आना आदि लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

ताप (गर्मी) से संबन्धित लक्षण:- प्यास का अधिक लगना, चेहरा बहुत सुर्ख हो जाता है। हथेली और पैर के तलुवे बहुत गर्म रहते हैं। रोगी का पूरा शरीर गर्म रहता है और चलने-फिरने व भोजन करने या बात करने से रोग में आराम मिलता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।

शीत (ठण्डी) से संबन्धित लक्षण :- चेहरा तमतमाकर लाल हो जाना, हाथ-पैर ठण्डे और सुन्न पड़ जाना। पांव बर्फ की तरह ठण्डे हो जाना तथा अधिक प्यास लगना आदि शीत रोगों के लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन कराएं।

खून की खराबी व स्राव :- यदि रोगी के शरीर के किसी भी अंग से खून निकल रहा हो तो रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि देने से खून का स्राव बन्द होता है। रोगी के शरीर से हल्के रंग का खून बार-बार निकलना तथा खून के साथ काले रंग का खून थक्के के साथ निकलना आदि लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।

फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग अन्य अंगों से होने वाले रक्तस्राव (खून का बहाव) को रोकने के लिए भी किया जाता है जैसे- फेफड़े, गर्भाशय, नाक और गुर्दों से खून का निकलना। यदि अधिक खून निकल जाने के कारण शरीर में खून की कमी व कमजोरी हो तो रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि देनी चाहिए।

विशेष प्रयोग :-

बुखार में किनाइन का अधिक प्रयोग करने से रोगी को बुखार हो गया हो तथा तिल्ली बढ़ गई हो तथा हाथ-पैरों में सूजन आ गई हो तो ऐसी हालत में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन कराना चाहिए। इस औषधि के सेवन से किनाइन से होने वाली हानि समाप्त होकर रोग ठीक होता है।

वृद्धि :-

पसीना अधिक आने, आराम से बैठने, ठण्डे पानी से नहाने तथा धूप में रहने से रोग बढ़ता है।

शमन :-

धीरे-धीरे टहलने से तथा उठने पर रोग कम होता है।

प्रतिविष :-

फेरम मेटालिकम औषधि के अधिक सेवन से या अन्य असावधानी के कारण हानि हुआ हो तो उसे दूर करने के लिए आर्सेनिक और हीप औषधि का प्रयोग किया जाता है।

पूरक :-

चाइना, एलूमि और हैमामेलि फेरम मेटालिकम औषधि के पूरक है।

मात्रा :-

फेरम मेटालिकम औषधि के 2 से 6 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।

तुलना :-

फेरम मेटालिकम औषधि की तुलना फेरम असेटिकम, फेरम आर्सेनिकम, फेरम ब्रोमैटम, फेरम सायनैटम, फेरम मैग्नेटिकत, फेरम म्यूरिएटिकम, फेरम सल्फ्यूरिकत, फेरम टाटैरिकम तथा फेरम प्रोटोक्सालेटम से की जाती है।

फेरम मेटालिकम औषधि से तुलना की जाने वाली इन सभी औषधियों का प्रयोग रोगों में उत्पन्न कुछ विशेष लक्षणों के आधार पर किया जाता हैं, जैसे-

फेरम असेटिकम :-

फेरम मेटालिकम के स्थान पर फेरम असेटिकम औषधि के प्रयोग करने से नए रोग तथा पेशाब में धातु का आना दूर होता है। इसके अतिरिक्त दाएं कंधों में दर्द होना, नकसीर, कमजोरी, शरीर का पीला पड़ जाना, बच्चों की दुर्बलता व थकान, पैरों की शिरायें फूल जाना, हरे-हरे रंग का बलगम अधिक मात्रा में आना, दमा, शान्त बैठने या लेटने से कष्ट होना, यक्ष्मा (टी.बी.) खांसी का लगातार आना, भोजन करने के बाद उल्टी, रक्तनिष्ठीवन आदि रोगों में फेरम मेटालिकम औषधि के स्थान पर फेरम असेटिकम का प्रयोग लाभकारी होता है।

फेरम आर्सेनिकम :-

यकृत में कटे-फटे जैसा महसूस होना तथा प्लीहा रोग के साथ बुखार होना, भोजन का न पचना तथा पेशाब में अन्न कणों का आना आदि को दूर करने के लिए फेरम मेटालिकम के स्थान पर फेरम आर्सेनिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है। खून की कमी एवं पीलिया रोग। त्वचा शुष्क होना, छाजन, हैजा, त्वचा पर पीले दाने निकलना आदि में फेरम आर्सेनिकम का प्रयोग करना लाभकारी होता है। इन रोगों में \'फेरम आर्सेनिकम 3x\' का प्रयोग किया जाता है।

फेरम ब्रोमैटम :-

योनि से चिपचिपा स्राव होना, तेजाब की तरह त्वचा छील देने वाली प्रदर स्राव, गर्भाशय भारी महसूस होना, गर्भाशय का अपने स्थान से हट जाना तथा सिर सुन्न हो जाने जैसा महसूस होना आदि लक्षणों में फेरम ब्रोमैटम का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

फेरम सायनैटम :-

स्नायुजाल के रोगग्रस्त होने के साथ चिड़चिड़ापन और दुर्बलता व अति संवेदनशिलता विशेष रूप से सुबह के समय, मिर्गी के दौड़े पड़ने पर, हृदय का दर्द, जी मिचलाना, पेट का फुलना, दस्त का रुक जाना आदि रोगों में फेरम सायनैटम का प्रयोग किया जाता है।

फेरम मैग्नेटिकत :-

फेरम मैग्नेटिकत का प्रयोग हाथ-पैरों पर छोटे-छोटे मस्से होने पर करने से रोग ठीक होता है।

फेरम म्यूरिएटिकम :-

यौवनारम्भ के दौरान शुक्रमेह या अधिक पेशाब का आना, गहरे व पानी की तरह पतले दस्त का आना, डिफ्थेरिया, छालेदार फुंसियां, अण्डकोष की सूजन, गहरे लाल रंग का थक्केदार खून का आना, सम्भोग के समय दर्द होना, दायें कंधे में दर्द, दायें कोहनी में दर्द व ऐंठन के साथ गोल-गोल लाल रंग के धब्बे आना, पेशाब में चमकदार कण का आना तथा खून की कमी के कारण होने वाले रोग आदि के लक्षणों में फेरम म्यूरिएटिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

इन रोगों में फेरम म्यूरिएटिकम औषधि की मात्रा भोजन करने के बाद 3x का प्रयोग किया जाता है।

चिर अन्तरालीय गुर्दे की सूजन में फेरम म्यूरिएटिकम के मूलार्क 1-5 बूंदें दिन में 3 बार लेनी चाहिए।

फेरम सल्फ्यूरिकत औषधि :- 

पानी की तरह पतले दस्त आना तथा दस्त के समय दर्द होना। मासिकधर्म कष्ट के साथ आना, मासिकधर्म के बीच दबाव व जलन महसूस होना तथा मासिकधर्म के साथ सिर की ओर खून का अधिक बहाव महसूस होना। गलगण्ड (बेस्डोवस डीसिज)। त्वचा पर छाले होना, पित्ताशय में दर्द, दांत का दर्द, अम्लता तथा डकारों के साथ अपचा हुआ भोजन आना आदि रोगों में फेरम सल्फ्यूरिकत औषधि का प्रयोग किया जाता है।

फेरम पनीट्रिकम औषधि :- 

खांसी के साथ रक्तबहुल आदि में फेरम पनीट्रिकम औषधि प्रयोग किया जाता है।

फेरम टाटैरिकम :-

हृदय में दर्द होने तथा हृदय के मुंह पर गर्मी महसूस होने पर फेरम टाटैरिकम का प्रयोक करना लाभकारी होता है।

फेरम प्रोटोक्सालेटम :-

रोगी के शरीर में खून की कमी होने पर ही फेरम प्रोटोक्सालेटम का प्रयोग किया जाता है। इस रोग में फेरम प्रोटोक्सालेटम 1x का प्रयोग किया जाता है।

मात्रा :-

कमजोरी के कारण खून में हेमाटिन की कमी हो जाती है। अत: रोगी की ऐसी अवस्था में फेरम मेटालिकम औषधि की उच्च शक्ति का प्रयोग करें। रक्तबहुल व रक्तस्राव की अवस्था में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि की निम्न शक्ति का प्रयोग किया जाता है।