होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है

होम्योपैथी एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथिक दवाइयाँ किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है।

भारत होम्योपैथिक चिकित्सा में वर्ल्ड लीडर हैं।

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है। होम्योपैथी में किसी भी रोग के उपचार के बाद भी यदि मरीज ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह रोग का मुख्य कारण सामने न आना भी हो सकता है।

होम्योपथी दवा मीठी गोली में भिगोकर देते हैं

होम्योपथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं।

होम्योपैथी की सबसे खास बात है कि आप डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं। इससे किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट होने का खतरा नहीं होता।

थाइमस सर्पाइलस THYMUS SERPYLLUM

 थाइमस सर्पाइलस THYMUS SERPYLLUM

परिचय-

थाइमस सर्पाइलस औषधि का प्रयोग कई प्रकार के रोग के लक्षणों को समाप्त करने के लिए किया जाता है परन्तु यह औषधि बच्चों के श्वासयन्त्रों के संक्रमण, शुष्क, स्नायविक दमा आदि में विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। यह औषधि काली खांसी, बेहोशी तथा बलगम आदि को दूर करती है। कानों में घंटे की तरह तेज आवाज सुनाई देने के साथ सिर में दबाव महसूस होना। ग्रासनली में जलन होना, गले में जलन होना जो पानी या खाना निगलने पर बढ़ता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को थाइमस सर्पाइलस औषधि देने से रोग ठीक होता है। रक्तवाहिनियां फूली हुई तथा कालिमायुक्त आदि लक्षणों में थाइमस सर्पाइलस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मात्रा :-

थाइमस सर्पाइलस औषधि के मूलार्क का सेवन करना चाहिए।


टिलिया यूरोपा TILIA EUROPA

 टिलिया यूरोपा TILIA EUROPA

परिचय-

टिलिया यूरोपा औषधि अक्षि-पेशी की कमजोरी को दूर करने में लाभकारी होती है। यह औषधि शरीर से पतले व फीके रंग के खून का स्राव को रोकने के लिए प्रयोग की जाती है। प्रसव के बाद गर्भाशय की सूजन तथा अस्थिगन्हरों के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि को महत्वपूर्ण माना गया है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टिलिया यूरोपा औषधि का उपयोग :-

सिर से सम्बंधित लक्षण :- सिर के स्नायुओं में उत्पन्न ऐसा दर्द जो पहले सिर के दाईं ओर से शुरू होता है और फिर बाईं ओर होता है। आंखों के सामने पर्दा सा पड़ा दिखाई देता है। रोगी में हमेशा एक प्रकार का भ्रम बना रहता है और आंखों से कम दिखाई देता है। इस तरह के सिर से सम्बंधित लक्षणों में टिलिया यूरोपा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

नाक से सम्बंधित लक्षण:- यदि अधिक छींके आती हो और नाक से पानी का स्राव होता हो तो इस औषधि का प्रयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है। नाक से खून आने पर टिलिया यूरोपा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बंधित लक्षण:- आंखों से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें आंखों के सामने कोई जाली पड़ा हुआ महसूस होता है तथा दोनों आंखों की मिली हुई नज़रें होती है। इस तरह के लक्षणों में टिलिया यूरोपा औषधि लेनी चाहिए।

स्त्री रोग से सम्बंधित लक्षण :- गर्भाशय के आस-पास तेज दर्द होना या प्रसव के समय होने वाले दर्द की तरह दर्द महसूस होना। शरीर से गर्म पसीना आना। चलने पर अधिक मात्रा में चिपचिपा प्रदर-स्राव होना। योनि के मुख पर घाव होने से योनि का लाल होना। मलद्वार में जलन होना और वायु गैस का बनना। इस तरह के स्त्री से सम्बंधित लक्षणों में टिलिया यूरोपा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

त्वचा से सम्बंधित लक्षण :- त्वचा पर दाद होना तथा त्वचा पर होने वाली तेज खुजली जिसे खुजाने से आग की तरह जलन होती है। ऐसे लक्षणों में टिलिया यूरोपा औषधि का प्रयोग करें। त्वचा पर छोटी-छोटी व लाल-लाल फुंसियां उत्पन्न होना। नींद आने पर शरीर से गर्म पसीना अधिक मात्रा में आना तथा गठिया दर्द के साथ पसीना अधिक आना आदि लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग करें।

वृद्धि :-

दोपहर और शाम के समय, गर्म कमरे में तथा बिस्तर की गर्मी से रोग बढ़ता है।

शमन :-

ठण्डे कमरे में तथा गति करने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :-

टिलिया यूरोपा औषधि की तुलना लिलियम तथा बेला औषधि से की जाती है।

मात्रा :-

टिलिया यूरोपा औषधि का मूलार्क या 6 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


थाइरायडीनम THYRODINUM

 थाइरायडीनम THYRODINUM

परिचय-

थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग थाइरायड ग्रंथि में खून की कमी को दूर करने के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। यह औषधि शरीर के अन्दर मौजूद सूक्ष्म कणों को बढ़ाने (शीर्णता), पेशी की कमजोरी को दूर करने, पसीना को लाने तथा सिरदर्द आदि को दूर करती है। यह औषधि चेहरे व अंगों की स्नायविक कंपन तथा लकवा आदि रोग के लक्षणों को उत्पन्न करके रोग को जड़ से समाप्त करती है। हृदय में कंपन, आकार का बढ़ जाना, नेत्रोत्सेध (एक्सोफ्टेल्मस) और पुतलियों का फैल जाना। श्लैष्मिक शोथ और मन्दबुद्धि एवं गलगण्ड में इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। जोड़ों का दर्द एवं सूजन तथा बच्चों का क्षय रोग आदि लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि का प्रयोग ऐसी स्थिति में विशेष रूप से लाभकारी होता है जब किसी बच्चे का अण्ड थैली में नहीं उतरता है, ऐसी स्थिति में थाइरायडीनम औषधि आधा ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार बच्चे को देने से लाभ होता है। परिपोषण सम्बंधी यन्त्रों के नियमन, विवर्द्धन और विकास के लिए थाइरायडीनम औषधि सभी अंगों पर नियंत्रित रूप से प्रभाव डालती है जिसके फलस्वरूप उन अंगों का विकास सही रूप से होता है। थाइरायडीनम औषधि के सेवन से शरीर में थाइरायड की कमजोरी के कारण रोगी को मिठाई खाने की अधिक इच्छा होती रहती है। थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग विचर्चिका में उत्पन्न लक्षणों को समाप्त करने के लिए की जाती है। इस औषधि का प्रयोग बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास के साथ याददास्त को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह औषधि गलगण्ड, मोटापा, कमजोरी, पतले रोगी विशेष रूप से खून की कमी के कारण आई दुर्बलता को दूर करती है। आंखों से धुंधला दिखाई देना, स्तनों में फोड़ा होना, गर्भाशय के कीड़े, अधिक कमजोरी तथा अधिक खाने पर भी शरीर पतला रहना, रात को बिस्तर पर पेशाब करने की आदत, स्तनों में दूध का न बनना आदि लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है।

इसके अतिरिक्त बेहोशी, जी मिचलाना, ठण्ड अधिक महसूस होना, रोग के कारण कमजोरी, थकावट उत्पन्न होना, नाड़ी का कमजोर होना, बार-बार बेहोशी उत्पन्न होना, हृदय में कंपन होना, पैर-हाथ ठण्डे पड़ जाना, निम्न रक्तचाप (लो ब्लडप्रेशर) तथा ठण्ड के प्रति अधिक संवेदनशीलता आदि लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह औषधि का प्रयोग श्लैष्मिक शोफ और विभिन्न प्रकार के सूजनों में तेज क्रिया करती है और उसके लक्षणों को समाप्त करती है।


शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर थाइरायडीनम औषधि का उपयोग :-

मन से सम्बंधित लक्षण :- मानसिक रूप से असन्तुलन के कारण रोगी में अधिक चिड़चिड़ापन आ जाता है तथा रोगी की बातों को न मानने या बातों को काटने पर गुस्सा हो जाता है। छोटी-छोटी बातों पर लड़ने व गुस्सा करने लगता है। ऐसे मानसिक लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण :- रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसका सिर हल्का हो गया है। हमेशा सिरदर्द रहता है। आंखों के गोलक बाहर फैल जाते हैं। चेहरे की पेशियों में खून की कमी तथा होंठों पर जलन महसूस होती रहती है। जीभ पर गाढ़ा लेप जैसा महसूस होता है। सिर में पूर्णता व गर्मी महसूस होती है तथा चेहरा लाल हो जाता मानो रोगी बहुत गुस्से में हो। मुंह का स्वाद खराब होना आदि सिर से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि देने से रोग समाप्त होता है।

हृदय से सम्बंधित लक्षण :- हृदय की कमजोरी तथा नाड़ी की गति तेज होने के साथ लेटने में कष्ट होना। हृदय की धड़कन तेज होना (हाई ब्लडप्रेशर)। छाती के आस-पास घुटन महसूस होने के साथ ऐसा लगना जैसे छाती सिकुड़ गई है। हल्के काम करने पर ही हृदय में कंपन होने लगना। हृदय में तेज दर्द होना। हृदय में अपने-आप उत्पन्न होने वाली उत्तेजना तथा हृदय कमजोर होने के साथ अंगुलियों का सुन्न पड़ जाना आदि हृदय से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

नाक से सम्बंधित लक्षण :- नाक से सम्बंधित लक्षण जिसमें नाक सूखी रहती है परन्तु खुली हवा में जाने से नाक से नजला आने लगता है। ऐसे लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि लेनी चाहिए।

आंखों से सम्बंधित लक्षण :- आंखों की रोशनी समाप्त होने के साथ स्नायुपटल केन्द्र में काली बिन्दियां बनना आदि लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है।

गले से सम्बंधित लक्षण :- गले का सूख जाना, गले की नाड़ी में खून का जमा हो जाना, गले में कच्चापन महसूस होना, गले का घेंघा रोग होना, गलगण्ड तथा गले में जलन होना विशेष रूप से बाईं ओर। गले से सम्बंधी ऐसे लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि लेनी चाहिए।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण :- किसी कारण से आमाशय रोगग्रस्त होने पर रोगी में विभिन्न लक्षण उत्पन्न होते है जैसे- मिठाई खाने की अधिक इच्छा करना तथा ठण्डा पानी पीने की अधिक इच्छा करना। पेट में गड़गड़हट महसूस होना। जी मिचलना विशेषकर गाड़ी आदि से सफर करते समय। पेट फूल जाने के साथ पेट में वायुगैस का बनना आदि आमाशय के लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मूत्र से सम्बंधिक लक्षण :- पेशाब का अधिक मात्रा में आना, पेशाब का बार-बार आना तथा पेशाब के साथ सफेद रंग का या शर्करा की मात्रा आना। पेशाब से बनफ्शे की तरह गंध आना, मूत्रनली में जलन होना तथा पेशाब के साथ यूरिक एसिड अधिक मात्रा में आना आदि मूत्र से सम्बंधित लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। कमजोर बच्चे के बिस्तर पर पेशाब करने की आदतें विशेषकर स्नायविक व चिड़चिड़े बच्चे में ऐसी आदते उत्पन्न होने पर थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

सांस संस्थान से सम्बंधित लक्षण :- सूखी दर्द वाली खांसी के साथ हल्का कष्टकारी बलगम आना और ग्रासनली में जलन होना आदि लक्षणों में थाइरायडीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण :- जोड़ों में जलन होने के साथ मोटापा बढ़ने की प्रकृति तथा हाथ-पैरों में ठण्ड। कमर से नीचे की त्वचा में पपड़ियां बनना। हाथ-पैर ठण्डे पड़ जाना। अंगों में हल्का दर्द रहना। ठण्डी हवा से बंद कमरे में आने पर खांसी होना। पैरों में पानी भरना तथा पूरे शरीर में कंपन होना आदि बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि देने से रोग ठीक होता है। इस औषधि का प्रयोग बच्चों का सूखा रोग आदि को दूर करता है।

त्वचा से सम्बंधित लक्षण :- त्वचा सूखी व अपुष्ट। हाथ-पैर ठण्डा होना। त्वचा पर दाद होना। गर्भाशय के सौत्रिक फोड़े। त्वचा पर कत्थई रंग की सूजन होना। ग्रंथियों की पत्थर की तरह कठोर सूजन। त्वचा का सुन्न पड़ जाना। त्वचा पर मटमैला पसीना आना। कामला के साथ तेज खुजली। मछली की तरह त्वचा से पपड़ियां बनना तथा टी.बी. रोग के लक्षण वाले सूजन। सूखी खुजली होना जो रात को अधिक हो जाता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को थाइरायडीनम औषधि देने से रोग ठीक होता है।

वृद्धि :-

हिलने-डुलने या किसी भी प्रकार के शारीरिक हलचल होने पर, ठण्डी हवा में घूमने के बाद कमरे में आने पर तथा अधिक बोलने से रोग बढ़ता है।

शमन :-

पेट के बल लेटने से तथा आराम करने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :-

थाइरायडीनम औषधि की तुलना स्पांजिया, कल्के, फ्यूकस, लाइकोपस, नक्स-वो, ओपि, फास, मर्क, नैट्र-म्यू, लायको, काली-फा, जेल्स, कल्के-फा, बैरा-का, औरम, सीपि, साइ, वेरेट्रम, जिंक, ओपि तथा आयोडो थाइरीन औषधि से की जाती है।

मात्रा :-

थाइरायडीनम औषधि की 6 से 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।

सावधानी :-

थाइरायडीनम औषधि डेढ़ से 2 ग्राम की मात्रा में देनी चाहिए। रोगी को यह औषधि अधिक मात्रा में भी दी जा सकती है परन्तु अधिक मात्रा देने से नाड़ी की गति तेज हो जाती है। अत: ऐसे में औषधि का प्रयोग सावधानी से करें। हृदय की कमजोरी के साथ उच्च रक्तचाप होने पर तथा क्षयरोगियों के लिए औषधि की सामान्य मात्रा ही प्रयोग करना चाहिए।

विशेष:-

आयोडो थाइरीन औषधि एक प्रकार के थाइरायड ग्रंथि से निकला हुआ एक सक्रिय तत्व है जिसमें आयोडीन और नाइट्रोजन की अधिकता होती है। इसलिए इस औषधि के प्रयोग करने से पोषणक्रिया की रोगग्रस्तता दूर होती है, वजन घटता है तथा मधुमेह (डाइबिटीज) उत्पन्न कर सकता है। इस औषधि का प्रयोग मोटापे में सावधानीपूर्वक करना चाहिए।


टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा TONGO-DIPTRIX ODORATA

 टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा TONGO-DIPTRIX ODORATA

परिचय-

टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा औषधि का प्रयोग शरीर में उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के लक्षणों को दूर करने में लाभकारी होता है परन्तु इस औषधि का प्रयोग करने से इसकी क्रिया विशेष रूप से स्नायुओं के दर्द और काली खांसी पर होती है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा औषधि का उपयोग :-

सिर से सम्बंधित लक्षण:- सिर के स्नायुओं में फाड़ता हुआ दर्द होना, सिर में गर्मी व कंपन वाला दर्द होना तथा आंखों से अधिक आंसू आना। रोगी में उत्पन्न ऐसे मानसिक लक्षण जिसमें रोगी भ्रमित रहता है विशेषकर सिर के पिछले भाग के प्रति तथा रोगी में नींद की स्थिति बराबर बनी रहती है। इस तरह के लक्षणों में टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा औषधि का प्रयोग किया जाता है। दाईं ओर की पलक मे कंपन होना आदि लक्षण में इस औषधि का प्रयोग करें।

नाक से सम्बंधित लक्षण:- नाक का बंद हो जाना तथा नाक से पानी की तरह पतला नजला निकलने पर टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण:- जांघों के जोड़ों और घुटनों में फाड़ता हुआ दर्द होने पर विशेष रूप से बाईं ओर अधिक दर्द होने पर टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

तुलना :-

टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा औषधि की तुलना मेलीलोटस, ऐन्यौजैन्थस, ऐस्पेरूप और कौमारिन, ट्रिफोलि, नैफ्थ या सैबाडिल्ला औषधि से की जाती है। 

मात्रा :-

टोंगों-डिप्ट्रिक्स ओडोरैटा औषधि के मूलार्क या उच्च शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


टिटैनियम TITANIUM

 टिटैनियम TITANIUM

परिचय-

टिटैनियम औषधि का प्रयोग विभिन्न प्रकार के लक्षणों में किया जाता है। इस औषधि के लक्षण हड्डियों और मांसपेशियों में उत्पन्न लक्षणों से मिलते जुलते हैं जिसके कारण हड्डियों और मांसपेशियों से सम्बंधित लक्षणों में यह औषधि तेज क्रिया करके लक्षण को समाप्त करती है। त्वचा के टी.बी. रोग होने पर इस औषधि का बाहरी प्रयोग करना चाहिए। त्वचा रोग व जुकाम आदि में भी इस औषधि का बाहरी प्रयोग किया जा सकता है।


शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टिटैनियम औषधि का उपयोग :-

आंखों से सम्बंधित लक्षण :- रोगी के आंखों में उत्पन्न ऐसे लक्षण जिसमें व्यक्ति एक बार में किसी वस्तु का आधा भाग ही देख पाता है। ऐसे लक्षण में टिटैनियम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण:- रोगी में उत्पन्न ऐसे लक्षण जिसमें सिर चकराने के साथ किसी वस्तु का लम्बाकार आधा ही दिखाई देता है। ऐसे लक्षणों में टिटैनियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। गुर्दे की जलन, फोड़े, शोष और नाक की सूजन आदि को समाप्त करने के लिए टिटैनियम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

पुरुष रोग से सम्बंधित लक्षण :- यौनदुर्बलता तथा सम्भोग के समय जल्दी वीर्यपात हो जाना आदि लक्षणों में टिटैनियम औषधि का प्रयोग करें।

विशेष :-

सेब में 0.11 प्रतिशत टिटैनियम होती है।


टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया TINOSPORA CORDIFOLIA

 टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया TINOSPORA CORDIFOLIA

परिचय-

टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि का प्रयोग करने से वीर्य की दुर्बलता खत्म होकर वीर्य पुष्ट होता है। यह बुखार को ठीक करती है विशेष रूप से सविरामी बुखार को। यह औषधि पीलिया, प्लीहा (तिल्ली) के घाव (स्प्लेनिक अफैक्शन), कुष्ठ रोग, आमवाती गठिया (जोड़ों का दर्द) तथा त्वचा के रोग आदि को ठीक करती है। गौण उपदंश (सकैन्ड्री साइफील्स), प्रदर-स्राव, मूत्र रोग, पेशाब करने में कठिनाई तथा सूजाक रोग आदि को दूर करने के लिए इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि का उपयोग :-

बुखार से सम्बंधित लक्षण :- पुराने या नए मलेरिया का बुखार होना तथा दोपहर के बाद ठण्ड लगना और कंपकंपी होना। पित्त की उल्टी होना और अधिक प्यास लगने के साथ सिरदर्द होना। पुराने बुखार के रोग के साथ पुराना सुजाक रोग तथा वीर्यपात के कारण उत्पन्न शारीरिक कमजोरी। कुनीन औषधि के सेवन से उत्पन्न हानि जिसके कारण बुखार होता तथा हाथों व चेहरे पर जलन होती रहती है। पीलिया रोग होना आदि। इस तरह के लक्षणों में रोगी को टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि देने से बुखार के साथ उत्पन्न होने वाले सभी लक्षण समाप्त होते हैं।

मूत्र से सम्बंधित लक्षण:- मूत्राशय से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें पेशाब बार-बार आता है परन्तु पेशाब करने पर कम मात्रा में पेशाब आता है। पेशाब करते समय मूत्रनली में जलन होती है। सूजाक रोग के कारण पेशाब के साथ पीब का आना आदि मूत्र रोग के लक्षणों में रोगी को टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि लेनी चाहिए। 

मात्रा :-

टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया औषधि के मूलार्क, 1x, 3x या 6 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


ट्रिब्यूलस टेरेस्ट्रिस TRIBULUS TERRESTRIS

 ट्रिब्यूलस टेरेस्ट्रिस TRIBULUS TERRESTRIS

परिचय-

ट्रिब्यलस टेरेस्ट्रिस औषधि का प्रयोग कई प्रकार के लक्षणों को समाप्त करने के लिए किया जाता है जिसके फलस्वरूप यह औषधि उससे सम्बंधित लक्षणों को समाप्त करती है। इस औषधि की विशेष क्रिया मूत्र से सम्बंधित लक्षण जैसे- पेशाब करने में कष्ट होना, जननेन्द्रिय की कमजोरी, वीर्य का पतला होना, वीर्यपात होना तथा वीर्य की अपुष्टता आदि को दूर करती है। इस औषधि को पुर:स्थग्रंथिय की सूजन, मूत्राशय में पथरी बनना और लिंग में उत्तेजना पैदा होना आदि में प्रयोग किया जाता है। इस औषधि के प्रयोग से हस्तमैथुन से होने वाले रोग आदि दूर होने के साथ वीर्यपात व स्वप्नदोष आदि भी दूर होता है। अधिक सम्भोग के कारण उत्पन्न नपुंसकता, पेशाब न रोक पाने के साथ कारण पेशाब करते समय दर्द होना आदि लक्षणों में ट्रिब्यलस टेरेस्ट्रिस औषधि का प्रयोग किया जाता है। मात्रा :-

ट्रिब्यलस टेरेस्ट्रिस औषधि के मूलार्क की 10 से 20 बूंद प्रतिदिन 3 बार लेनी चाहिए।


टोरूला सेरेविसी TORULA CEREVISIAE

 टोरूला सेरेविसी TORULA CEREVISIAE

परिचय-

टोरुला सेरेविसी औषधि के परिक्षण करने के बाद इसके कुछ ही लक्षणों के बारे में पता चल पाया है। इस औषधि का प्रयोग प्रमेह रोग, आमिष (विजातीय) द्रव्यों और पाचक रसों से उत्पन्न होने वाली अत्यधिक संवेदनशीलता आदि को दूर करने के लिए किया जाता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टोरूला सेरेविसी औषधि का उपयोग :-

सिर से सम्बंधित लक्षण :- सिर और गर्दन के पीछे दर्द होना। तेज सिर दर्द के साथ पूरे शरीर में दर्द होना तथा कब्ज के कारण दर्द और बढ़ जाना। व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा होना तथा स्नायविक पीड़ा आदि लक्षणों से पीड़ित रोगी को टोरूला सेरेविसी औषधि देने से रोग समाप्त होता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण:- यदि अधिक छींकें आती हो और नाक से सांय-सांय की आवाज आती हो तो टोरूला सेरेविसी औषधि का सेवन करें। नाक के पिछले भाग से नजला होने पर टोरूला सेरेविसी औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण:- आमाशय में गड़बड़ी के कारण मुंह का स्वाद खराब होना। जी मिचलाना। पाचनशक्ति का कमजोर होना। आमाशय और पेट में गैस बनने के साथ अधिक डकारें आना। पूरे पेट में दर्द होना। पूर्णता की अनुभूति। पेट में गड़गड़ाहट होना तथा ऐसा दर्द जो बराबर अपना स्थान बदलता रहता है। पेट का फूल जाना। कब्ज का बनना। दस्त से खट्टी बदबू आना, खमीरी तथा उबसन जैसी गंध आना आदि आमाशय से सम्बंधित लक्षणों को समाप्त करने के लिए टोरूला सेरेविसी औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण :- पीठ में दर्द होने के साथ कोहनियां थकी और कमजोर होना और घुटनों के चारों ओर थकावट व कमजोरी महसूस होना। हाथ-पैर बर्फ की तरह ठण्डे और सुन्न हो जाना आदि लक्षणों में टोरूला सेरेविसी औषधि का सेवन करने से रोग समाप्त होता है।

नींद से संबंधित लक्षण :- रोगी को ठीक से नींद न आना। रोगी को रोग होने के कारण या नींद में डरावने सपने के कारण बार-बार नींद टूट जाना जिसके कारण वह बेचैन रहता है। इस तरह के लक्षणों को दूर करने के लिए टोरूला सेरेविसी औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

त्वचा से सम्बंधित लक्षण :- त्वचा पर उत्पन्न ऐसे फोड़े जो बार-बार होते रहते हैं। टखनों के चारों ओर खुजलीयुक्त फोड़ा। त्वचा पर कत्थई रंग के धब्बे वाले चर्मरोग। इस तरह के त्वचा से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को टोरूला सेरेविसी औषधि देने से रोग समाप्त होता है।

मात्रा :-

टोरूला सेरेविसी औषधि की 3 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। त्वचा रोगों में फोड़ों और सूजन में खमीर की पट्टी बांधना अधिक लाभकारी होता है। रोग में विशुद्ध खमीरी केक का भी सेवन किया जा सकता है।


ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ TRICHOASANTHES DIOIUM

 ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ TRICHOASANTHES DIOIUM

परिचय-

ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का प्रयोग मुख्य रूप से पुराना मलेरिया का बुखार, काला-ज्वर (कालाजार) तथा जी मिचलाना व उल्टी को ठीक करने के लिए किया जाता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का उपयोग :-

मन से सम्बंधित लक्षण :- रोगी की मानसिक हालत बिगड़ने के कारण उसमें अधिक निराशा उत्पन्न होता है और उसे ऐसा महसूस होने लगता है जैसे कि वह किसी भी काम को कर नहीं सकता है। ऐसे मानसिक लक्षण वाले रोगी को ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि देनी चाहिए।

सिर से सम्बंधित लक्षण :- सिर चकराना विशेषकर बिस्तर पर लेटते समय तथा बुखार के साथ तेज सिर दर्द होना आदि सिर से सम्बंधित लक्षणों में ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का सेवन करना चाहिए।

आंखों से सम्बंधित लक्षण :- आंखों का पीला होना तथा पुतलियों का फैल जाना आदि लक्षणों में रोगी को ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि देने से लक्षण समाप्त होते हैं।

मुंह से सम्बंधित लक्षण :- प्यास का अधिक लगने के साथ गले में सूखापन महसूस होना। मुंह से लार का अधिक आना तथा मुंह का स्वाद खराब होना। मुंह के अन्दर पानी का भरना तथा मुंह का स्वाद कड़वा होना आदि मुंह से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि देने से रोग ठीक होता है।

गले से सम्बंधित लक्षण :- गले में जलन होने पर ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का सेवन करने से जलन आदि दूर होती है।

उल्टी, डकारें व हिचकी से सम्बंधित लक्षण :- जी मिचलाना व साथ पेट का फूल जाना। उल्टी करने से मुंह से रेशेदार बलगम का आना तथा कभी-कभी खून मिला हुआ बलगम आना। पानी पीने के बाद डकार व उल्टी होना आदि लक्षणों में रोगी को ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का सेवन कराना चाहिए।

भूख से सम्बंधित लक्षण :- अधिक भूख लगना तथा ठण्डी चीजे खाने की अधिक इच्छा होना आदि लक्षणों में ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण :- बाहरी अंगों से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें पूरे शरीर पर जलन होने के साथ अधिक प्यास लगती है। ऐसे लक्षणों में ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि लेनी चाहिए। निम्नागों में सूजन आने पर भी इस औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण :- पेट से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें भोजन करने के बाद भी पेट खाली-खाली सा लगता रहता है तथा बेचैनी के साथ पेट में गर्मी महसूस होती रहती है। जिगर और प्लीहा बढ़ जाने के कारण उन अंगों में दर्द होता रहता है जो छींकने, खांसने या चलने से और बढ़ जाता है। इस तरह के लक्षणों में ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

दस्त से सम्बंधित लक्षण :- हरे-पीले रंग के दस्त आने के साथ अधिक मात्रा में दस्त आना तथा दस्त के साथ पित्त, श्लेष्मा तथा खून का आना। दस्त बार-बार आने के कारण अधिक थकान महसूस होना तथा मलद्वार में दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि देनी चाहिए।

मूत्र से सम्बंधित लक्षण :- पेशाब का कम मात्रा में तथा लाल रंग का आना। पेशाब रुकने के साथ दस्त व उल्टी का आना आदि मूत्र से सम्बंधित लक्षणों में ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का सेवन करें।

बुखार से सम्बंधित लक्षण :- बुखार के ऐसे लक्षण जिसमें रोगी को 11 से 12 बजे सर्दी लगने के साथ बुखार उत्पन्न होता है, पूरे शरीर में जलन रहती है, शरीर का तापमान बढ़ जाता है, सिरदर्द रहता है तथा अधिक प्यास लगती है। ऐसे लक्षणों वाले बुखार में ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का सेवन कराने से बुखार जल्दी ठीक होता है। तेज बुखार के साथ उल्टी, जी मिचलाना, मुंह में अधिक पानी आना तथा अगले दिन बुखार का और तेज हो जाना। पुराने बुखार में जिसके कारण जिगर एवं प्लीहा बढ़ जाना। ऐसे लक्षणों में ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का सेवन कराना चाहिए।

मात्रा :-

ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि के मूलार्क, 3x, 6x या 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।

विशेष :-

ऐसे सभी बुखार जिनमें पित्त की प्रमुखता होती है, उनमें आंखों से किसी वस्तु का आधा भाग दिखाई देने वाले लक्षण उत्पन्न होते हैं। ऐसे लक्षणों वाले बुखारों को ठीक करने के लिए पित्त की प्रमुखता होती है। ऐसे लक्षणों में ट्रिकोसैन्थेस डाइयोआ औषधि का प्रयोग अत्यंत लाभकारी माना गया है। इस औषधि में सिर दर्द, मुंह में पानी का आना, मिचली व उल्टी आदि को समाप्त करने की शक्ति होती है।


ट्रिफोलियम प्रैटेन्स TRIFOLIUM PRATENES

 ट्रिफोलियम प्रैटेन्स TRIFOLIUM PRATENES

परिचय-

ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि का प्रयोग विभिन्न प्रकार के लक्षणों को समाप्त करने के लिए किया जाता है। इस औषधि में लालास्राव उत्पन्न करने की एक विशेष गुण मौजूद होता है। अत: लालाग्रंथियों में खून एकत्रित हो जाने पर इस औषधि का प्रयोग करने से अधिक मात्रा में लालास्राव होने के साथ ग्रंथियों में जमा हुआ खून निकल जाता है। इस औषधि का प्रयोग कान की जड़ की ग्रंथि में जलन होना, बदबूदार स्राव होना, सूखी खुरण्ड बनकर उतरने वाली पपड़ियां आदि में प्रयोग किया जाता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि का उपयोग :-

सिर से सम्बंधित लक्षण :- रोगी जब सुबह सोकर उठता है तो उसका मन भ्रमित रहता है और उसके सिर में दर्द रहता है। रोगी को ऐसा लगता है जैसे उसके सिर का अगला भाग ठीक से काम नहीं कर रहा है। मानसिक काम करने की इच्छा नहीं होती है तथा याददाश्त कमजोर होने लगती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि देने से रोग समाप्त होता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण :- मुंह से अधिक मात्रा में लालास्राव (लार का गिरना) होना तथा गले में जलन होने के साथ खराश होना आदि मुंह से सम्बंधित लक्षणों में ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है।

सांस संस्थान से सम्बंधित लक्षण :- नाक से नजला आना तथा पतले पानी की तरह श्लेष्मा निकलने के साथ सांस संस्थानों में अधिक जलन होना। आवाज का खराब होना तथा गले में घुटन महसूस होना। रात के समय ठण्ड लगने के साथ ही खांसी आना विशेषकर खुली हवा में खांसी का और तेज हो जाना। परागज बुखार के समय होने वाले जुकाम। खांसी के ऐसे लक्षणों जिसमें खांसते-खांसते रोगी को बेहोशी जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। काली खांसी का दौरा पड़ना तथा रात को खांसी के दौरा और बढ़ जाना। इस तरह के सांस संस्थान से सम्बंधित लक्षणों में ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पीठ से सम्बंधित लक्षण:- पीठ से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें गर्दन अकड़ जाती है और मस्तिष्क को क्रियाशील करने वाली पेशियों में बांयटे पड़ जाती है। पीठ से सम्बंधित ऐसे लक्षण गर्मी से व मालिश करने से शान्त रहता है। इस तरह के लक्षणों में ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण :- यदि हथेलियों में चुनचुनाहट होती हो। हाथ-पैर ठण्डे पड़ गए हो तथा जांघों के अन्दर घाव हो गया हो तो ऐसे लक्षणों में ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि का सेवन करना चाहिए।

तुलना :-

ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि की तुलना ट्रिफोलियम रेपेन्स से की जाती है।

मात्रा :-

ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि के मूलार्क का प्रयोग किया जाता है।

विशेष :-

ट्रिफोलियस प्रैटेन्स औषधि के स्थान पर ट्रिफोलियम रेपेन्स औषधि का प्रयोग विशेष लक्षणों के आधार पर किया जाता है जैसे- कान के जड़ में सूजन होना। लालाग्रंथियों में खून जमा होने जैसा महसूस होना। दर्द व कठोरता उत्पन्न होना विशेषकर निम्नहनुग्रंथियों में तथा लेटने पर रोग का बढ़ जाना। मुंह में पानी की तरह लार का आना तथा लेटने पर लार का और अधिक आना। मुंह और गले में खून जैसा स्वाद महसूस होना। ऐसा महसूस होना जैसे हृदय बंद हो गया है, रोगी में डर उत्पन्न होना साथ ही उठकर बैठने तथा टहलने पर आराम मिलना। चेहरे पर अधिक पसीना आना आदि।


टर्नेरा TURNERA

 टर्नेरा TURNERA 

परिचय-

टर्नेरा औषधि जननेन्द्रियों से सम्बंधित लक्षणों, स्नायविक कमजोरी तथा नपुंसकता आदि को दूर करती है। स्नायविक कमजोरी से उत्पन्न यौन कमजोरी। बुढ़ापे के कारण बार-बार पेशाब का आना। लम्बे समय तक पुर:स्थग्रंथि स्राव। गुर्दे और मूत्राशय का प्रतिश्याय आदि को दूर करने के लिए इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। महिलाओं में कामोत्तेजना का अभाव तथा युवतियों में स्वाभाविक मासिकस्राव की स्थापना करने के लिए टर्नेरा औषधि का प्रयोग किया जाता है।

मात्रा :-

टर्नेरा औषधि के मूलार्क 10 से 30 बूंद की मात्रा में लगभग 30 ग्राम पानी में मिलाकर दिन में 2 बार लेनी चाहिए।


रैननकुलस बल्बोसस (Ranunculus Bulbosus)

 रैननकुलस बल्बोसस (Ranunculus Bulbosus) 

परिचय-

रैननकुलस बल्बोसस औषधि त्वचा तथा पेशीतन्तु पर विशेष क्रिया करती है और इस औषधि के प्रमुख चारित्रिक प्रभाव वक्षप्राचीरों पर अधिक देखने को मिलता है। यह नाड़ियों से सम्बन्धित रोग, वात और गठिया रोग (न्युरेल्जिक,अर्थिरिटिक एण्ड र्हयुमेटिक अफेकशन) को ठीक करने में बहुत उपयोगी है। शराब पीने के कारण उत्पन्न लक्षण जैसे- दिन के समय में दिखाई न देना और ऐसा महसूस होना कि मानो आंखों के सामने कोहरा सा छा गया है आदि बुरे प्रभावों को दूर करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि बहुत उपयोगी है।

विभिन्न लक्षणों में रैननकुलस बल्बोसस औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- स्वभाव चिड़चिड़ापन होने के साथ ही माथे पर तथा नेत्रगोलकों में दर्द होना। खोपड़ी पर ऐसा महसूस होना कि जैसे कोई कीड़ें-मकोड़ें रेंग रहे हों। माथे पर अंदर से बाहर की ओर दबाव के साथ दर्द होना। इस प्रकार के सिर से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- आंखों के सामने धुंधलापन दिखाई देना, आंखों में चीसें मचने के साथ ही दबाव महसूस होना और आंखों के सामने धुआं दिखाई देना। दाहिनी आंख के ऊपर दर्द होना, चलने तथा खड़े होने पर कुछ आराम मिलना। कनीनिका पर दाद होना। कनीनिका से पानी निकलने के साथ ही तेज दर्द होना, रोशनी के सामने जाने से आंखें चौंधियां जाती है और आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है तथा आंखों से पानी निकलने लगता है। इस प्रकार के आंखों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

छाती से सम्बन्धित लक्षण :- छाती दर्द होना और भी कई प्रकार की परेशानियां होना, पर्शुका और पसलियों में दर्द होना, अन्तरापर्शुका-स्थल और इसके दोनों कुक्षिदेश में ऐसा महसूस होना कि ये भाग किसी चीज से कुचल गए हैं। अन्तरापर्शुका की हडि्डयों के जोड़ों में दर्द होना। ऐंठन होने के साथ ही हिचकी आना। बेहोशी की समस्या होने के साथ ही हिचकी आना तथा हिचकी आने के बाद बेहोश हो जाना। खुली हवा में चलते समय छाती में ठण्ड महसूस होना। छाती में स्कन्ध-फलकों के बीच के भाग में सुई के चुभने जैसा दर्द होना और सांस लेने तथा हिलने-डुलने से इस प्रकार के लक्षणों में वृद्धि होना। छाती की हडि्डयों के जोड़ों में दर्द होना और ऐसा महसूस होना की यह दर्द छाती के ऊपरी त्वचा में घाव होने के कारण हो रहा है। पेट पर दबाव असहनीय होता है, स्कन्ध-फलकों के निचले किनारों की पेशियों में दर्द होना, शारीरिक कार्य करने के कारण उत्पन्न छोटे-छोटे त्वचा पर धब्बों में जलन होना। इस प्रकार के छाती से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- त्वचा पर जलन और तेज खुजली होना तथा इस भाग को छूने पर इस प्रकार के लक्षणों में वृद्धि होना। त्वचा पर कठोर फुंसियां होना। त्वचा पर दाद के समान ही घाव होना जिसमें तेज खुजली होना। ठण्ड का प्रभाव होने पर त्वचा पर छाले पड़ना। हथेलियों में खुजली होना। हथेलियों पर छालेदार घाव होना, इन घावों को छूने पर अधिक दर्द होना। त्वचा सींग के समान मोटी और कठोर होना। हथेलियों और उंगलियों की नोंक पर दरारें पड़ना। त्वचा पर पीबदार घाव तथा फफोलेदार घाव होना। इस प्रकार के चर्मरोग से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पसलियों से सम्बन्धित लक्षण :- पसलियों की हडि्डयों के बीच में दर्द होना तथा यह दर्द सांस लेने, हिलने-डुलने या शरीर को इधर-उधर घुमाने से होता है, दर्द ऐसा महसूस होता है जैसे कि सुई गड़ रही हो। छाती में टीस मारता हुआ दर्द होना। ठण्ड लगकर छाती की झिल्ली में सूजन होना तथा न्यूमोनिया रोग होने के साथ ही छाती के अंदर और पसलियों की हडि्डयों के बीच में टीस मारते हुए दर्द होना और नम मौसम में रोग के लक्षणों में वृद्धि होना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

स्त्रियों से सम्बन्धित लक्षण :- ज्यादातर बैठे रहने से, बैठे-बैठे सोने या टाइप का काम या पियानों बजाने से कंधों के किनारे के पुट्ठों पर दर्द होना और किसी किसी स्थान पर जलन होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- ऐसा महसूस होना कि सारा शरीर पीटा गया है, कुचलन के साथ दर्द होना। डंक मारे जैसी जलन होना तथा इसके साथ ही दर्द होना। कंधों की मांसपेशियों में दर्द होना, अस्थिपंजर में दर्द होना, शरीर की कई प्रकार की नाड़ियों में दर्द होने के साथ ही चुभन होना और दर्द गतिशील होना। शाम के समय में अधिक डर लगना तथा अकेला नहीं रहने का मन करना, राक्षसों और प्रेतों का भय लगना। कई प्रकार की आकृतियों के देखने से डर लगना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का सेवन करना चाहिए।

दाद तथा खुजली से सम्बन्धित लक्षण:- पसलियों की नाड़ियों में दर्द होने के बाद या पहले दाद होना या खुजली होना, छाले नीले रंग का हो जाना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

गति करने से, खुली हवा में रहने से, रोग ग्रस्त भागों को छूने से, मौसम में परिवर्तन होने से, नम तथा तूफानी मौसम में और शाम के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। ठण्डी हवा में सभी प्रकार के घाव उत्पन्न हो जाते हैं।

शमन (एमेलिओरेशन) :-

आराम करने से, गर्म सिकाई करने से और गर्म मौसम में रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन):-

* शरीर को मोड़ने और घुमाने पर कमर की पेशियों और हडि्डयों में दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकु-ऐकिस औषधि का उपयोग करते है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। अत: रैननकु-ऐकिस औषधि के कुछ गुणों की तुलना रैननकुलस बल्बोसस औषधि से कर सकते हैं।

* श्वासनिका-फुस्फुसीय इन्फ्लुएंजा, सिर में अधिक दबाव महसूस होने के साथ ही चक्कर आना और रक्ताघात होने की सम्भावना महसूस होना, रात के समय में जांघों में दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकु-ग्लैसिएलिस तथा रेनडीयर फ्लावर कार्लिना औषधियों से कर सकते हैं और इसी प्रकार के लक्षणों को रैननकुलस बल्बोसस औषधि से भी ठीक कर सकते हैं। अत: रैननकु-ग्लैसिएलिस तथा रेनडीयर फ्लावर कार्लिना औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रैननकुलस बल्बोसस औषधि से कर सकते हैं।

* शाम के समय में बिस्तर पर लेटने से माथे और खोपड़ी में कोई चीज रेंगते हुए महसूस होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननक-रेपेन्स औषधि का प्रयोग करते है और इस प्रकार के लक्षणों को रैननकुलस बल्बोसस औषधि से भी ठीक कर सकते है। अत: रैननक-रेपेन्स औषधि के कुछ गुणों की तुलना रैननकुलस बल्बोसस औषधि से कर सकते हैं।

* कांख में फोड़ा होने पर इसको ठीक करने के लिए रैननकु-फ्लैम्यूला औषधि का प्रयोग करते है और इसी प्रकार के फोड़ें को ठीक करने के लिए रैननकुलस बल्बोसस औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। अत: रैननकु-फ्लैम्यूला औषधि के कुछ गुणों की तुलना रैननकुलस बल्बोसस औषधि से कर सकते हैं।

* क्रोटोन, यूफोर्ब, मेजीरि तथा ब्रायों औषिधियों के कुछ गुणों की तुलना रैननकुलस बल्बोसस औषधि से कर सकते हैं।


प्रतिविष :-

कैम्फर, रस-टा तथा ब्रायो औषधि का उपयोग रैननकुलस बल्बोसस औषधि के हानिकारक प्रभाव को दूर करने के लिए किया जाता है।

प्रतिकूल:-

स्टैफि तथा सल्फ।

मात्रा (डोज) :-

रैननकुलस बल्बोसस औषधि की मूलार्क का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। शरीर में कंपन होने के साथ ही रोना तथा चिल्लाना, इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि के दस से तीस बूंदों तक की मात्राओं का उपयोग करना चाहिए तथा अन्य अवस्थाओं में अधिकांशत: इसकी तीसरी से तीसवीं शक्ति का उपयोग करना चाहिए। पुरानी साइटिका पेन में पैर की एड़ी पर इसके मूलार्क का लेप करें।


रेडियम ब्रोमाइड (Radium Bromide)

 रेडियम ब्रोमाइड (Radium Bromide)

परिचय-

होम्योपैथिक चिकित्सा में रेडियम का महत्वपूर्ण संयोजन है, 18,00,000 शक्ति की रेडियम किरणें शुगर ऑफ मिल्क पर डालकर इसका विचूर्ण तैयार किया जाता है। आमावात (जोड़ों का दर्द) व गठिया, गुलाबी, मुहांसे, तिलों, चर्म रोग, निम्न रक्तचाप, हर वक्त शरीर में दर्द होना तथा ऐंठन होना आदि लक्षणों में इसका प्रयोग होता है। रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग उन रोगियों पर किया जाता है जो अकेला व अंधेरे में रहने से डरता हो तथा रोगी में हर समय कई लोगों के बीच में रहने की इच्छा होती है, उसके शरीर में अधिक थकावट होती है, वह चिड़चिड़ा स्वभाव का होता है, सारे शरीर में खुजली हो जाती है, त्वचा में जलन होती है और ऐसा महसूस होता है कि पूरे शरीर में आग लगी पड़ी हो।

विभिन्न लक्षणों में रेडियम ब्रोमाइड औषधि का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी व्यक्ति निराश रहता है तथा अंधेरे में रहने का मन करता है, डर अधिक लगता है और कई लोगों के बीच में रहने का मन करता है, शरीर में अधिक थकावट होती है तथा चिड़चिड़ा स्वभाव का हो जाता है तथा इसके साथ ही और भी कई रोग शरीर में हो जाते हैं। इस प्रकार के मन से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- सिर में चक्कर आने के साथ ही सिर में दर्द होना, लेटे रहने पर कुछ आराम मिलना। सिर के पिछले भाग में और सिर के ऊपरी भाग में दर्द होना तथा इसके साथ ही कई प्रकार की परेशानी होना। दाई आंख के ऊपरी भाग में तेज दर्द होना, इस दर्द का असर सिर के पिछले भाग और सिर के आगे के भाग में होता है तथा जब रोगी व्यक्ति खुली हवा में रहता है तो उसे दर्द से कुछ आराम मिलता है। सिर भारी लगना और माथे पर दर्द होना और इसके साथ ही दोनों आंखों में दर्द होना। नाक के अन्दरूनी भागों में खुजली होना और रूखापन महसूस होना तथा इसके साथ ही खुली हवा में कुछ आराम मिलना। दाहिने निचले जबड़ों के कोणों में हल्का-हल्का दर्द होना। आंखों में तेज दर्द होना और इसके साथ ही सिर में दर्द होना। इस प्रकार के सिर से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का सेवन करना चाहिए।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- मुंह में रूखापन होना, मुंह का स्वाद धातु के समान होना, जीभ के अंतिम भाग में चुभन होना। इस प्रकार के मुंह से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- आमाशय के अंदर खालीपन महसूस होना तथा आमाशय में गर्मी की अनुभूति होना, मिठाइयां तथा आइसक्रीम खाने की इच्छा न होना, मिचली आना तथा आमाशय का अंदर की ओर धंसने जैसा महसूस होना। इस प्रकार के आमाशय से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी को गैस की डकारें आती रहती हैं। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का उपयोग लाभदायक है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- पेट में तेज ऐंठन तथा दर्द होना, गड़गड़ाहट होना, पेट में गैस बनना, मैकबर्नी बिन्दु तथा गवग्रहान्त्र-वंक (sigmoid flexure), पेट फूलना, कब्ज होना तथा पतला मलत्याग होना और मलद्वार पर खुजली होना तथा बवासीर का रोग होना। इस प्रकार के पेट से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- पेशाब में ठोस पदार्थो तथा क्लोराइड्स का अत्याधिक आना, गुर्दे में चुभन होना, पेशाब में अन्न के समान पदार्थ आना। आमवाती लक्षण (जोड़ों में दर्द के समान लक्षण) होने के साथ ही गुर्दे में सूजन होना। बिस्तर पर पेशाब हो जाना। इस प्रकार के मूत्र से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप इस प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण:- योनि में तेज खुजली होना। मासिकस्राव देर से या अनियमित रूप से आना तथा इसके साथ ही पीठ में दर्द होना। स्राव होने के साथ ही पेट में तथा जांघों के पास दर्द होना। दाहिनी स्तन में दर्द होना और स्तन को जोर से मलने पर आराम मिलना। इस प्रकार के स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी स्त्री को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रुक-रुककर खांसी होना तथा इसके साथ ही अधि-उरोस्थि-खात के ऊपर सुरसुरी होना। सूखी खांसी होना तथा खांसी का प्रभाव तेज होना। गला शुष्क रहने के साथ ही उसमें दर्द होना और छाती में सिकुड़न महसूस होना। इस प्रकार के श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- गर्दन के पिछले भाग में दर्द होना। ग्रीवा-कशेरुकाओं में दर्द होना और इसके साथ ही इस भाग में खुजली होना और सिर को सामने की ओर लटकाने पर अधिक खुजली होना। इस प्रकार के पीठ से सम्बन्धित लक्षण होने पर जब रोगी व्यक्ति खड़ा होता है या बैठता है तो उसे कुछ आराम मिलता है। कमर में तथा त्रिकास्थि में दर्द होना और दर्द हड्डी में महसूस होना, इस प्रकार के दर्द होने पर जब रोगी व्यक्ति लगातार कुछ कार्य करता है तो उसके दर्द में कुछ कमी आती है। कंधों के बीच में और कमर तथा त्रिकास्थि भाग में दर्द होना तथा चलने पर आराम मिलना। इस प्रकार के पीठ से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के सभी अंगों में, हडि्डयों में और घुटनों व टखनों में तेज दर्द होना तथा कंधों, बांहों, हाथों व उंगलियों में तेज दर्द होना। पैर, बांह और गर्दन का कठोर महसूस होना और ऐसा लगना की ये अंग हिलने पर टूट जायेंगी। बांह भारी महसूस होना। कंधों में कड़कड़ाहट होना। पैर तथा ऊरु-पेशियों में दर्द होना। हडि्डयों में जलन होना, सूजन होना, दर्द होना, इस प्रकार के लक्षणों में रात के समय में तेजी आना और उंगलियों की त्वचा में जलन होना। नाखूनों में सूजन तथा दर्द होना। इस प्रकार के शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- त्वचा पर छोटी-छोटी फुंसियां होना। त्वचा पर विभिन्न प्रकार के चर्मरोग होने के साथ ही उसमें जलन के साथ ही खुजली होना और सूजन तथा लाल-लाल दाने होना। त्वचा की टी.बी. रोग तथा त्वचा पर घाव होना। पूरे शरीर में खुजली होने के साथ ही जलन होना और ऐसा महसूस होना कि पूरे शरीर में आग लग गई है। सारे शरीर पर फोड़ें-फुंसियां होना। इस प्रकार के चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का सेवन करना चाहिए।

नींद से सम्बन्धित लक्षण:- सारे शरीर में आलस होने के साथ ही ठीक प्रकार से नींद न आना और पूरा शरीर अस्थिर लगना। इस प्रकार के नींद से सम्बन्धित लक्षण होने के साथ ही नींद के समय में आग तथा किसी कार्य में व्यस्त रहने के सपने देखना। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का उपयोग लाभदायक है।

ज्वर से सम्बन्धित लक्षण:- पूरे शरीर के अन्दरूनी भाग में ठण्ड महसूस होना और दोपहर के समय में इतना तेज ठण्ड लगना कि उसके कारण से दांत कटकटाने लगना। शरीर के अन्दरूनी भागों में ठण्ड महसूस होने के साथ ही त्वचा का गर्म रहना तथा इसके साथ ही मलत्याग करने की इच्छा होना और पेट फूलना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

कैंसर से सम्बन्धित लक्षण:- ऐलोपैथी चिकित्सा में कैंसर रोग को ठीक करने के लिए रेडियम की किरणें देकर उपचार करते हैं उससे कुछ समय के लिए आराम हो जाता है। लेकिन पूरा फायदा न होने पर होम्योपैथिक चिकित्सा के द्वारा कैंसर रोग को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि की शक्तिकृत दवा का सेवन करने से रोग ठीक हो जाता है।

शमन (एमेलिओरेशन) :- खुली हवा में रहने तथा लगातार किसी कार्य में लगे रहने, गर्म पानी से स्नान करने, लेटने तथा शरीर पर दबाव देने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

लेटकर उठने पर, बैठे से खड़े होने पर, भोजन के बाद तथा हाथ-पैर चलाने पर और रात के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

* फोड़ें-फुंसियां होना तथा इसकों छूने से ये किसी और स्थान पर हो जाते हैं और देर से इसके लक्षण दिखाई देते हैं। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐनाकार्डियम औषधि का उपयोग करते हैं, ऐसे ही लक्षणों को ठीक करने के लिए रेडियम ब्रोमाइड औषधि का भी उपयोग कर सकते हैं। अत: ऐनाकार्डियम औषधि के कुछ गुणों की तुलना रेडियम ब्रोमाइड औषधि से कर सकते हैं।

* रस-टा, सीपि, यूरेनियम, आर्से, कास्टि, पल्सा तथा एक्सरे औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रेडियम ब्रोमाइड औषधि से कर सकते हैं।


प्रतिविष :-

रस-वेने, टेलूरि औषधियों का उपयोग रेडियम ब्रोमाइड के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

मात्रा (डोज) :-

रेडियम ब्रोमाइड औषधि की तीसवीं और बारहवीं शक्ति के विचूर्ण का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


रैफानस (Ranphanus)

 रैफानस (Ranphanus) 

परिचय-

प्लीहा और यकृत में दर्द होना तथा दर्द ऐसा लगता है जैसे इस भाग में सुई चुभोई जा रही हो। यह पित्त और लालस्राव को बढ़ाती है। मूली पर नमक लगाकर खाने से कई प्रकार के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं। पेट का अधिक फूलना और पेट में वायु का गोला बनना। मेदग्रंथियों से अधिक मात्रा में स्राव होने लगता है तथा इसके साथ ही त्वचा तेल युक्त हो जाती है। हिस्टीरिया रोग होने के साथ ही पीठ और बांहों में ठण्ड लगना। उत्तेजना होने के साथ ही नींद न आना। स्त्रियों को संभोग के प्रति उत्तेजना होना। पेट में गैस बनने के कारण दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न लक्षणों में रैफानस औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- बच्चों से लगाव न होना तथा अधिकतर लड़कियों के प्रति लगाव न होना तथा उदासीपन होना। सिर में दर्द होना और इसके साथ ही उदासीपन होना। निचले पलकों में सूजन होना। इस प्रकार के सिर से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- गर्भाशय से लेकर गले तक गर्म गेंद अड़ी होने जैसी अनुभूति होना तथा गले में गर्मी महसूस होने के साथ ही जलन होना। इस प्रकार के गले से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- सड़ी-सड़ी डकारें आना, पाचनतंत्र में जलन होना तथा इसके बाद गर्म डकारें आना। इस प्रकार के आमाशय से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- उबकाई आने के साथ ही उल्टी आना और भूख न लगना। पेट फूलना, पेट का कठोर हो जाना, वायु मुंह के द्वारा निकलना या मलद्वार से निकलना। नाभि के आस-पास मरोड़ होना। मल तरल, झागदार, कत्थई और कफ युक्त होना और इसके साथ ही आंतों पर पट्टी जैसी सूजन होना। उल्टी के साथ मल पदार्थ का आना। इस प्रकार के पेट से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :- जननांगों की नाड़ियों की उत्तेजना बढ़ जाना (स्नायविक क्षोभ)। मासिकस्राव अधिक आना और बहुत समय तक बने रहना। स्त्रियों में संभोग के प्रति अधिक उत्तेजना पैदा होना और बच्चों के प्रति उदासीपन होना और संभोग की उत्तेजना होने के कारण नींद न आना। इस प्रकार के स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- पेशाब गंदा होना तथा पेशाब में खमीर जैसा तलछट पदार्थ आना। पेशाब अधिक मात्रा में आना और पेशाब दूध जैसा गाढ़ा होना। इस प्रकार के मूत्र से सम्बन्धित लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

छाती से सम्बन्धित लक्षण :- छाती में दर्द होना तथा इस दर्द का असर पीठ तथा गले तक होना। छाती के केन्द्रस्थल पर भारीपन महसूस होना तथा ठण्ड लगना। ऐसे रोगी के रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

अतिसार से सम्बन्धित लक्षण :- नये तथा पुराने दोनों ही प्रकार के अतिसार को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग होता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- मल का रंग पहले पीला होता है तथा बाद में हरा हो जाता है और फेनयुक्त होता है, मल तेज वेग के साथ मलद्वार से बाहर निकलता है लेकिन उसके साथ वायु जरा सी भी नहीं निकलती है। इस प्रकार के मल से सम्बन्धित लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का सेवन करना चाहिए।

आंख से सम्बन्धित लक्षण:- पुतली आंख के अंदर गोलाकार भाग में घूमती है तथा आंख की पलक हर समय फड़कती रहती है और कभी-कभी तो इतना ज्यादा फड़कती है कि इसकी वजह से कोई भी वस्तु साफ नहीं दिखाई देती है। इस प्रकार के आंख से सम्बन्धित लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

दांत से सम्बन्धित लक्षण:- दांतों में दर्द होना तथा दांतों की नाड़ियों में दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

* प्लीह-वंक के पास (स्पिलिनिक फेक्चर) अधिक कष्ट होना। इस प्रकार के लक्षण को ठीक करने के लिए मोमोर्डिका औषधि का प्रयोग करते हैं और ठीक इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैफानस औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं। अत: मोमोर्डिका के कुछ गुणों की तुलना रैफानस औषधि से कर सकते हैं।

* ऐनाका, आर्जेन्ट-ना, ब्रैसिका तथा कार्बो औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रैफानस औषधि से कर सकते हैं।


मात्रा (डोज):-

रैफानस औषधि की तीसरी से तीसवीं शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। 


रैननकुलस स्क्लेरैटस (Ranunculus Scleratus)

 रैननकुलस स्क्लेरैटस (Ranunculus scleratus)

परिचय-

चर्म रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि अपने जैसे ही अन्य औषधियों से अधिक उत्तेजनशील है। दांतों में चबाए जाने जैसा तथा बरमें द्वारा छेद किए जाने जैसा दर्द होना, बिम्बिका (पेमफिगस), एक नियमित समय पर होने वाले रोग, आमाशय में तेज दर्द होने के साथ ही बेहोशी महसूस होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न लक्षणों में रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बन्धित लक्षण:- सिर के बाईं ओर एक छोटी सी जगह में दांत में चबाने जैसा दर्द होना। सांपों, मुर्दों तथा लड़ाइयों आदि के डरावने सपने आना। सर्दी तथा जुकाम होने पर नाक से अधिक मात्रा में पानी की तरह का पदार्थ बहना और इसके साथ ही अधिक छींकें आना और पेशाब होने के साथ ही जलन होना। इस प्रकार के सिर से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- दांत और मसूढ़ें को छूने पर दर्द होना। जीभ पर नक्शे के समान दाग होना। मुंह के अंदर भाग में घाव होना। जीभ पर घाव होने के साथ ही जलन होना। इस प्रकार के मुंह से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का उपयोग करना लाभदायक है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- यकृत के ऊपरी भाग में दर्द होना तथा इसके साथ ही अतिसार होना। पेट के दाहिनी कूट पसलियों के पीछे डाट लगे होने जैसा दबाव होना और गहरी सांस लेने से इस प्रकार के लक्षणों में वृद्धि होना। नाभि के पीछे डाट लगने जैसा महसूस होना। इस प्रकार के पेट से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग फायदेमंद होता है।

छाती से सम्बन्धित लक्षण:- छाती की हडि्डयों को छूने पर दर्द महसूस होना। प्रतिदिन शाम के समय में छाती में कुचलने जैसा दर्द होना और इसके साथ ही कमजोरी महसूस होना। उरोस्थि के नीचे त्रिकोण-उपास्थि के पीछे जलन होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- त्वचा पर छालेदार घाव होना और इसके साथ ही घाव फफोले के रूप में हो जाना। घाव के चारों ओर से जलनशील तरल पदार्थ बहने लगता है तथा इसके साथ ही जलन होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- जम्हाई आने के साथ ही झुनझुनी होते हुए दर्द होना और शाम के समय में और रात के समय में इस प्रकार के लक्षण प्रकट होते रहते हैं। दर्द होने के कारण बेहोशीपन जैसी समस्या भी हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का सेवन करना चाहिए।

यकृत से सम्बन्धित लक्षण :- यकृत के स्थान पर दर्द होने पर इसको ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- चेहरे पर मकड़ी के जाले होने जैसी अनुभूति होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

जीभ से सम्बन्धित लक्षण :- जीभ चितकबरी होना, जीभ पर नक्से के समान रेखाए दिखाई देना, जीभ पर सफेद, पारदर्शी लेप जमना। जीभ में जलन तथा रूखापन महसूस होना। इस प्रकार के जीभ से सम्बन्धित लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

नाक से सम्बन्धित लक्षण:- नाक में घाव होना या नाक की पोर में दायीं ओर गहराई पर दर्द होना, नाक से तरल पदार्थ बहना और इसके साथ ही छींके आना। इस प्रकार के लक्षण होने के साथ ही रोगी को पेशाब करने में परेशानी होती है। इस प्रकार के नाक से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के कई भागों में बरमे के द्वारा छेद किए जाने जैसा दर्द होना तथा दायें पैर के अंगूठे में अचानक जलन के साथ ही चुभन महसूस होना। पैर के घुटने पर जलन के साथ दर्द होना, विशेषकर पैर के झूलते रहने पर। हाथ-पैरों की उंगलियों की जोड़ों में दर्द होना। इस प्रकार के शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि का प्रयोग फायदेमंद होता है। 

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन):-

शाम के समय में, आधी रात से पहले, गहरी सांस लेने पर तथा हाथ-पैरों को चलने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) :-

आधी रात के बाद रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

ब्राय, कैन्थ, ग्रेफा, फेरम-फा, हिपर, काली-बा, लैके, मर्क, नेट्र-म्यू, रस-टा तथा एपिस औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि से कर सकते हैं।

क्रियानाशक :-

कैम्फर औषधि का उपयोग रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

मात्रा (डोज):-

रैननकुलस स्क्लेरैटस औषधि पहली से तीसरी शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। 


रौवोल्फिया सर्पेटिना (Rauwolfia Serpentina)

 रौवोल्फिया सर्पेटिना (Rauwolfia Serpentina)

परिचय-

उच्च रक्तदाब, केन्द्रीय स्नायु जाल की उत्तेजित अवस्था, पागलपन की गम्भीर अवस्था आदि प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए रौवोल्फिया सर्पेटिना औषधि का उपयोग होता है। बच्चे को जन्म देने वाली माता को बुखार होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रौवोल्फिया सर्पेटिना औषधि उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप बुखार ठीक हो जाता है।

उच्च रक्तदाब की अवस्था में बाहिकाओं में किसी प्रकार की एथिरोमी (अर्थोमेटोस) परिवर्तन नहीं पाया जाता। यह एक उत्तेजनात्मक औषधि के रूप में भी कार्य करती है।

मात्रा (डोज) :-

रौवोल्फिया सर्पेटिना औषधि की मूलार्क का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


रटानिया (Ratanhia)

 रटानिया (Ratanhia)

परिचय-

मलान्त्र से सम्बन्धित कई प्रकार के रोगों के लक्षणों को ठीक करने के लिए रटानिया औषधि का उपयोग करना लाभकारी होता है। यह प्रस्तारी-अर्म (प्टेरीगीयम) को आरोग्य कर चुकी है। तेज हिचकी आने पर इस औषधि से उपचार करने से लाभ मिलता है। कटे-फटे स्तन के घावों को ठीक करने के लिए इसका उपयोग लाभदायक है जिसके फलस्वरूप स्तन के इस प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं। सूची-कृमि को मारने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। विभिन्न लक्षणों में रटानिया औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- मलत्याग करते समय सिर को सामने की ओर झुकाकर बैठने पर सिर में फटने जैसा दर्द होना। नाक से सिर की ऊपर की त्वचा तनी हुई महसूस होना। इस प्रकार के सिर से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रटानिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- आमाशय में ऐसा महसूस होना जैसे की उसमें छूरियां चलाई जा रही हो। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रटानिया औषधि का उपयोग लाभदायक है।

मलान्त्र से सम्बन्धित लक्षण :- मलान्त्र में ऐसा दर्द होता है जैसे कि मलान्त्र में टूटे शीशे भर दिए गए हो। मलत्याग करने के बाद मलद्वार पर कई घण्टों तक जलन तथा दर्द होना। मलद्वार सिकुड़ी हुई महसूस होना। मलद्वार में गर्म होने के साथ ही छुरी से काट दिए जाने जैसा महसूस होना। मलत्याग करने के लिए बहुत जोर लगाना जिसके कारण बवासीर के मस्सें बाहर निकल पड़ते हैं, मलद्वार के पास की त्वचा पर दरारें पड़ जाती है और इसके साथ ही सिकुड़न होती है तथा आग की तरह जलन होती है, ठण्डे जल से मस्सें को धोने से कुछ आराम मिलता है। मलद्वार के पास से कुछ तरल पदार्थ का स्राव होता है। पेट में सूची-कृमि होना और मलद्वार पर खुजली होना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रटानिया औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

दांत में दर्द से सम्बन्धित लक्षण :- स्त्रियों को गर्भावस्था के शुरू-शुरू के महीने में दांत में दर्द होता है और ऐसा महसूस होता है कि मानों दांत लम्बे हो गये हैं, लेटने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है, इसलिए रोगी उठकर घूमता है। ऐसे रोगी के रोगों को ठीक करने के लिए रटानिया औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

स्तन से सम्बन्धित लक्षण :- दूध पिलाने वाली महिलाओं के चुचकों में दरारें पड़ना तथा फटना। बच्चे को जन्म देने के समय स्तन चिटक जाते हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रटानिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आंतों से सम्बन्धित लक्षण :- आंतों की क्रिया ठीक प्रकार से नहीं होती है और कब्ज की समस्या बनी रहती है, मल कठोर होता है जिसके कारण से मलत्याग करने में देर तक जोर लगाना पड़ता है। मलत्याग करने के बाद मलद्वार पर तेज दर्द होता है और ऐसा महसूस होता है कि मलद्वार में कांच के टुकड़े गड़ रहे हैं। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रटानिया औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- पेट में ऐसा दर्द होता है जैसे कि किसी ने चाकू मार दी हो। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रटानिया औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :- गर्भावस्था के समय में, लेटने से, रात के समय में, रोग ग्रस्त भाग को छूने से, मलत्याग करने से और उसके बाद, भोजन करने के बाद रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन):- टहलने से, ठण्डे पानी से स्नान करने से, गर्म पानी से धोने पर रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

ब्राय, कैन्थ, कार्बो-एसि, साइक्ले, हायो, पेट्रो, फास, रस-टा, थूजा, वेरेटम, लैके, लायको, मैग-का, नैट्र-म्यू, नाइ-ए, नक्स-वो, एस्कु औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रटानिया औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा (डोज) :-

रटानिया औषधि की तीसरी से छठी शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। अनेकों मलान्त्रपरक रोगों में स्थानिक मलहम का उपयोग अधिक लाभदायक सिद्ध होता है। 


रस ग्लाब्रा (Rhus Glabra)

 रस ग्लाब्रा (Rhus Glabra)

परिचय-

रस ग्लाब्रा औषधि के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इसके सेवन से आंते इतनी शुद्ध हो जाती है कि मलद्वार से गंदी वायु निकलना बंद हो जाती है और मल से बदबू भी नहीं आती है। जख्म को ठीक करने के लिए यह एक बहुत ही लाभकारी औषधि है। इसके सेवन से और भी कई प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं जो इस प्रकार हैं- नाक से खून बहना, माथे के पिछले भाग में दर्द होना, मलद्वार से बदबूदार हवा निकलना, हवा में उड़ने के सपने देखना, शरीर में अधिक कमजोरी आने के कारण अधिक पसीना आना, मुंह में घाव होना, दूध पीने वाले बच्चे के मुंह में छाले होना। शरीर के किसी भी भाग में जख्म बनने पर इसका प्रयोग करने से रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

विभिन्न लक्षणों में रस ग्लाब्रा औषधि का उपयोग :-

मुंह से सम्बन्धित लक्षण:- स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के मुंह के अंदर छाले होना तथा मुंह के अंदर घाव होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस ग्लाब्रा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मलद्वार से सम्बन्धित लक्षण :- कब्ज की शिकायत होने के कारण मलद्वार से बदबूदार हवा निकलना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस ग्लाब्रा औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

यह पारद क्रिया की प्रतिविष है और पारद चिकित्सा के बाद उपदंश की द्वितीयावस्था में उपयोग की जाती है।

मात्रा (डोज):-

रस ग्लाब्रा औषधि की मूलार्क का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। कोमल, स्पंज से मसूढ़ें, मुंह के अंदर घाव, गले में सूजन आदि में इसका प्रयोग लेप की तरह होता है। इसकी पहली शक्ति का प्रयोग अधिकतर किया जाता है।


रैम्नस कैलीफोर्निका(Rhamnus Californica)

 रैम्नस कैलीफोर्निका(Rhamnus californica)

परिचय-

आमवात और पेशियों में दर्द होने की स्थिति में रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करने से इस प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। इस औषधि का प्रयोग और भी कई प्रकार के रोगों के लक्षणों को ठीक करने के लिए किया जाता है जो इस प्रकार हैं- पेशी में दर्द होने के साथ मासिकधर्म कष्ट के साथ आना, सिरदर्द होना, गर्दन और चेहरे के जोड़ों में दर्द होना, हडि्डयों के जोड़ों में दर्द होना, जोड़ों पर सूजन होना, मूत्राशय में सिकड़न होना, शरीर से अधिक पसीना निकलना तथा हृदय की हडि्डयों के जोड़ों में दर्द होना। विभिन्न लक्षणों रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि में का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- स्नायविक (नाड़ियों में दर्द होना) होने के साथ ही बेचैनी होना तथा मन चिड़चिड़ा होना। आलस होने के साथ ही मानसिक रूप से कोई कार्य करने में कमजोरी आना और बुद्धि नष्ट होने लगना, कोई पढ़ने का कार्य करते समय मन को एकाग्र न रख पाना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बन्धित लक्षण:- सिर में चक्कर आने के साथ ही भारीपन महसूस होना, सिर में भारी कुचल जाने जैसी अनुभूति होना और सिर पर दबाव देने से कुछ आराम मिलना, चलने पर प्रत्येक कदम पर सिर फटने जैसा दर्द होता है। सिर में जलन होने के साथ ही दर्द होता है तथा सिर के पिछले भाग और सिर के ऊपरी भाग में सामने की ओर झुकते समय अधिक दर्द होता है। बाईं कनपटी में हल्का-हल्का दर्द होता है। माथे के बाईं ओर हल्का-हल्का दर्द होता है जो पीछे की ओर व माथे के ऊपर तक फैल जाता है। दाईं ओर गहराई तक पलकों में ऐंठन होना। इस प्रकार के सिर से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

कान से सम्बन्धित लक्षण :- ऊंचा सुनाई देना तथा कान में दर्द होना, किसी चीज को चबाते समय दायें कनपटी के नीचे गहराई तक दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है। 

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- चेहरा गर्म तथा चमकता हुआ लगता है और गण्ड-प्रर्वधों से बाहर की ओर दबाव महसूस होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- मसूढ़ों और होंठों के बीच घाव होना, जीभ पर परत जमना तथा इसके साथ ही जीभ के बीच का भाग साफ होना और गुलाबी धब्बा उस बीच के भाग में होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- गले में सूखापन तथा खुरदरापन महसूस होना, दाईं ओर तालुमूलग्रंथि पर दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

आंतों से सम्बन्धित लक्षण :- कब्ज की शिकायत होना तथा इसके साथ ही कुछ मलद्वार से वायु भी निकलती है। मलद्वार पर सिकुड़न होना और इसके साथ ही सूखा हुआ मलत्याग होना। पेट फूलने के साथ ही दस्त होना। इस प्रकार के आंतों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- अधिक मात्रा में पेशाब का आना, मूत्रनली के अगले भाग में सुरसुरी होना और सुबह के समय में जरा-सी एक-एक बूंद करके पेशाब टपकता रहता है। इस लक्षण के होने के साथ ही संभोग करने की अधिक इच्छा होती है। इस प्रकार के मूत्र से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- उरोस्थि के नीचे घुटन महसूस होती है, दाईं अन्तरापर्शुका-पेशियों को दबने पर दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

हृदय से सम्बन्धित लक्षण :- नाड़ी की गति अनियमित रूप से चलती है या मन्द गति से चलती है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण:- पेशियों की क्रियाओं पर नियन्त्रण रखने में असमर्थ होना, पैरों में दर्द होना, शराबी की तरह चलना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :- शाम के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

* जोड़ों का दर्द, पेट से सम्बन्धित लक्षण, पेट में दर्द, दस्त होना, खूनी बवासीर होना, बहुत लम्बे समय से चले आ रहे रोगों को ठीक करने के लिए रैम्नस कैथैर्टिका या रैम्नम फ्रैंग्गुला औषधि का प्रयोग करते हैं, इस प्रकार के रोगों को रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि से भी ठीक कर सकते हैं। अत: रैम्नस कैथैर्टिका के कुछ गुणों की तुलना रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि से कर सकते हैं।

* कब्ज की समस्या होना, अजीर्ण रोग को ठीक करने के लिए तथा आंतों को पुष्ट करने के लिए रैम्नस पुर्शियाना तथा कैस्कैरा सैग्रैडा औषधि का प्रयोग करते हैं, ठीक इस प्रकार की अवस्था में रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि प्रयोग कर सकते हैं। अत: रैम्नस पुर्शियाना तथा कैस्कैरा सैग्रैडा औषधि के कुछ गुणों की तुलना रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि से कर सकते हैं। इस प्रकार की अवस्था में औषधि के मूलार्क की दस से पन्द्रह बूंदों का उपयोग करना चाहिए।


मात्रा (डोज) :- रैम्नस कैलीफोर्निका औषधि की मूलार्क की पन्द्रह बूंदें का हर चौथे घंटे में उपयोग करना चाहिए।


रस टाक्सिकोडेन्ड्रन (Rhus Toxicodendron)

 रस टाक्सिकोडेन्ड्रन (Rhus Toxicodendron)

परिचय-

रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि तन्तु-ऊतक को विशेष रूप से प्रभावित करती है, जिनमें संधियों (हडि्डयों के जोड़ों), पुट्ठों, आवरणों-कण्डराकलाओं आदि तन्तु-ऊतक प्रमुख हैं और इसके फलस्वरूप इन अंगों में दर्द और अकड़न उत्पन्न हो जाती है। रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग वात और गठिया रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग विशेषकर उन रोगियों पर किया जाता है जो अधिक भीगने के कारण या अधिक परिश्रम करने के कारण से उनका शरीर गर्म हो जाता है तथा भीगने या स्नान करने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग लाभदायक है।

रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग चर्म रोगों, जोड़ों का दर्द, श्लेष्म कलाओं से सम्बन्धित रोगों तथा आंत्रिक-ज्वर से सम्बन्धित रोगों को ठीक करने के लिए बहुत ही लाभकारी है।

रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग इस प्रकार के रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है जो इस प्रकार है-ऐसा शल्योत्तर रोग (ऑपरेशन के कारण उत्पन्न विकार) जो बढ़ता रहता है और इसके साथ ही ऐसा दर्द होता है जैसे उस अंग को फाड़ा जा रहा हो। इस प्रकार के लक्षण के साथ ही जब रोगी गति करता है तो उसे आराम मिलता है।

रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग कई प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए किया जाता है जो इस प्रकार हैं- मोच आ जाने पर या बहुत भारी बोझ उठाने के कारण उत्पन्न रोग, पसीने आने की अवस्था में भीगने के कारण उत्पन्न रोग, शरीर के रक्त में खराबी होने के कारण उत्पन्न रोग, कोशिकाओं में सूजन और संक्रामक आग की तरह जलनयुक्त घाव की प्रारिम्भक अवस्थाएंं तथा ठण्डे मौसम में उत्पन्न होने वाले आमवात रोग।

इस औषधि का प्रयोग उन रोगियों पर किया जाता है जिनमें इस प्रकार के लक्षण होते हैं- हिलने-जुलने या गति करने से रोग के लक्षणों में कमी होती है और स्थिर रहने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

विभिन्न लक्षणों में रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी उदास रहता है और हर वक्त दु:खी रहता है, आत्महत्या करने की सोचता रहता है, अधिक बेचैनी होती है और इसके साथ ही लगातार स्थिति बदलते रहने का स्वभाव रहता है, रोगी कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहता है तथा चीखता और चिल्लाता रहता है और इसके साथ ही जहर खा लेने जैसा डर लगता है। दिमाग ठीक प्रकार से कार्य नहीं करता है, रात के समय में बहुत अधिक चिंता होती रहती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी बिस्तर पर ठीक प्रकार से लेट नहीं पाता है और उसे बेचैनी होती रहती है। घबराहट होने पर रोने का मन करता है। खुली हवा में घुमने से कुछ आराम मिलता है। मानसिक कमजोरी बहुत अधिक हो जाती है। दिमागी कार्य करने का मन नहीं करता है। आत्महत्या करने की इच्छा होती है लेकिन आत्महत्या करने का साहस नहीं होता। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि उपयोग लाभदायक है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जैसे उसने अपने माथे पर पट्टी बांध रखी हो, उठते समय चक्कर आता रहता है, सिर में भारीपन महसूस होता है, मस्तिष्क ढीला-ढाला प्रतीत होता है और चलते या उठते समय ऐसा महसूस होता है कि कोई चीज खोपड़ी से टकरा रही है। खोपड़ी संवेदनशील हो जाती है जिसके कारण रोगी सिर के जिस भाग की तरफ लेटता है उसमें अधिक दर्द होता है। बिछौने से उठने या चलने या झुकने से चक्कर आने लगता है तथा लेटते समय रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। सिर के पीछे के भाग में भी दर्द होता है तथा दर्द वाले भाग को छूने पर और भी तेज दर्द होता है। माथे पर दर्द होता है जो वहां से पीछे की ओर बढ़ता है। खोपड़ी पर घाव-फुंसियां हो जाती है जो बुरी तरह से खुजलाती हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- आंखों के आस-पास के भागों में सूजन हो जाती है और सूजन वाले भाग लाल हो जाते हैं और चक्षुगन्हरीय कोशिका में सूजन हो जाती है। आंखों के भाग में जलन होती है। आंखों से बहुत अधिक पानी गिरता रहता है। पलकों में सूजन हो जाती है और उसमें जलन भी होती है और उसमें से पानी निकलता रहता है। पलकों में जलन होती है और पलके आपस में चिपक जाती हैं तथा उनमें सूजन आ जाती है। आंखों पर पुरानी चोट लगने के कारण रोग उत्पन्न हो। आंख के कनीनिका में खून जमने लगता है। कनीनिका में तेज घाव हो जाता है जिसमें जलन होती है। ठण्ड लगने के कारण, नमी के कारण और वात के कारण उत्पन्न आंखों में जलन वाले रोग। आंखों को घुमाने या दबाने पर दर्द होता है और आंखों को हिलाने में कठिनाई होती है तथा आंखों पर कई प्रकार के घाव हो जाते हैं और इसके साथ ही आंखों में जलन होती है। नाड़ियों में सूजन हो जाती है। पलकों को खोलने पर गर्माहट महसूस होती है तथा अधिक मात्रा में आंखों से पानी गिरता रहता है और ऐसा लगता है जैसे आंख झुलस गई हो। इस प्रकार के आंखों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग करना चाहिए।

कान से सम्बन्धित लक्षण :- कानों में दर्द होता रहता है तथा इसके साथ ही ऐसा महसूस होता है कि उसके अंदर कुछ घुसा हुआ है और कानों में सूजन हो जाती है। कानों में से खून मिला हुआ पीब निकलने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का सेवन करना चाहिए।

नाक से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को छींके आती रहती हैं और अधिक भींगने के कारण जुकाम हो जाता है। नाक की नोक लाल हो जाती है और उस पर दर्द होता रहता है और कभी-कभी नाक पर सूजन भी हो जाती है। झुकने पर नाक से खून निकलने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- चबाते समय जबड़ों में कड़कड़ाहट होने के साथ ही दर्द होता है। जबड़ों में अचानक दर्द होने लगता है तथा इसके साथ जबड़ों के पास की हडि्डयों में भी दर्द होता रहता है। चेहरे पर सूजन हो जाती है और उस पर घाव हो जाता है। गाल की हडि्डयों को छूने पर दर्द होता है। कान के आस-पास की ग्रंथियों पर सूजन हो जाती है और दर्द होता है। चेहरे के ऊपर की त्वचा पर दर्द होता है तथा सर्दी होने के कारण दर्द तेज हो जाता है, शाम के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- मसूढ़ों-में-सूजन-तथा-घाव भी हो जाता है तथा इसके साथ ही रोगी के दांत ढीले और लम्बे महसूस होते हैं। जीभ लाल और फटी हुई महसूस होती है, जीभ की नोक त्रिकोणाकार हो जाती है तथा इसकी परत सूखी और किनारे पर लाल हो जाते हैं। मुंह के ठोढ़ी पर चारों ओर ज्वर होने जैसे छाले हो जाते हैं। मुंह के कोणों पर घाव हो जाता है। जबड़ें की हडि्डयों पर दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का सेवन करना चाहिए।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- गले पर घाव हो जाता है तथा इसके साथ ही ग्रंथियों पर सूजन हो जाती है। किसी चीज को निगलते समय चुभने जैसा दर्द होता है, कानों के आस-पास की ग्रंथियों में सूजन हो जाती है और बायीं ओर की ग्रंथियों में अधिक सूजन हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- किसी भी चीज की भूख नहीं रहती है और साथ ही अधिक प्यास लगती है। मुंह का स्वाद कड़वा हो जाता है। जी मिचलाने लगता है और चक्कर आने लगता है और भोजन करने के बाद पेट फूलने लगता है। दूध पीने की इच्छा होती है। अधिक प्यास लगने के साथ ही मुंह तथा गले में खुश्की होती है। आमाशय में पत्थर के समान दबाव महसूस होता है। भोजन करने के बाद शरीर अधिक सुस्त हो जाता है तथा नींद सी छायी रहती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना लाभदायक है।

पसीने से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को पसीना अधिक आता है तथा वह सो जाता है तब पसीना अधिक आता है, पसीना आने पर पित्त गायब हो जाते हैं। होंठों पर मोती की तरह छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं। अधिक कमजोरी आ जाती है तथा खूनी दस्त भी आने लगते हैं तथा टाइफाइड रोग भी हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- पेट में तेज दर्द होता है और पेट के बल लेटने से आराम मिलता है। छाती के आस-पास की ग्रंथियों में सूजन हो जाती है। आरोही वृहदांत्र प्रदेश में दर्द होता रहता है। पेट में दर्द होता है और दर्द इतना तेज होता है कि रोगी को झुकना पड़ता है। भोजन करने के बाद पेट फूलने लगता है। जागने पर पेट में हवा गड़गड़ाती है परन्तु लगातार गति करने से पेट फूलना बंद हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मलान्त्र से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को दस्त लग जाता है और दस्त के समय में मलत्याग करने पर मल के साथ खून की कुछ मात्रा भी आने लगती है अर्थात रक्तातिसार हो जाता है और मल में लाल-लाल श्लेष्मा (कफ जैसा पदार्थ) निकलता है। रोगी को पेचिश हो जाता है तथा जांघों में होकर नीचे की ओर फाड़ता हुआ दर्द होता है। मल से शव जैसी बदबू आती है। मल झागदार आता है तथा मलत्याग करने पर दर्द नहीं होता है। इस प्रकार के मलान्त्र से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- पेशाब गंदा काला-काला और गाढ़े रंग का होता है और पेशाब कम मात्रा में होता है तथा इसके साथ ही पेशाब में सफेद रंग का तेल के समान पदार्थ आता है। पेशाब करने में परेशानी होती है और इसके साथ ही पेशाब के साथ खून की कुछ मात्रा आती है। इस प्रकार के मूत्र से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

पुरुष रोग से सम्बन्धित लक्षण :- पुरुष ग्रंथियों तथा शिश्न के पास की त्वचा पर सूजन होती है तथा गहरे लाल रंग की फुंसियां हो जाती है तथा अण्डकोष पर सूजन होने के साथ ही खुजली होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :- योनि पर सूजन आने के साथ ही खुजली हो जाती है। चलने-फिरने पर छाती के पास के भाग में दर्द तथा अकड़न होती है। मासिकधर्म नियमित समय से पहले और अधिक मात्रा में आता है तथा स्राव चिर और जलन युक्त होता है। प्रसव होने के बाद स्त्री को बुखार हो जाता है तथा इसके साथ ही उसकी योनि से कुछ मात्रा में खून का स्राव होता है, स्राव पतला होता है और स्तन में दूध कम होता है और साथ ही योनि नली में ऊपर की ओर गोली लगने जैसा दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि अधिक उपयोगी है।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को परेशान करने वाली सूखी खांसी हो जाती है, आधी रात से सुबह तक, ठण्ड के समय में या सोने से हाथ को बाहर निकालते समय खांसी बहुत अधिक परेशान करती है। छाती के ऊपर सुरसुराहट होती है। कार्य करने की शक्ति से अधिक परिश्रम करने के कारण शरीर का खून नष्ट होने लगता है और खून चमकता हुआ लाल होता है। इंफ्लुएंजा रोग होने के साथ ही शरीर की सभी हडि्डयों में दर्द होना। अधिक बोलने के कारण मुंह से आवाज न निकलना। छाती में दबाव महसूस होती है और गड़ती हुई दर्द के कारण श्वास लेने में परेशानी होती है। वृद्ध व्यक्तियों को सांस लेने में परेशानी होती है तथा इसके साथ ही श्वास लेने वाली नलियों में जलन होती है तथा इसके कारण खांसी होती है जागने पर अधिक और कफ छोटी-छोटी गांठों के समान बलगम युक्त होती है। इस प्रकार के श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

हृदय से सम्बन्धित लक्षण :- कार्य करने की शक्ति से अधिक परिश्रम करने के कारण हृदय की कार्य करने की शक्ति का नष्ट हो जाना। नाड़ी तेज गति से चलना और कमजोर हो जाना तथा अनियमित गति से चलना तथा इसके साथ ही बायें बाजू में सुन्नपन हो जाना। शान्त बैठे रहने पर हृदय के पास कम्पन होना और हृदय की कार्य गति अनियमित होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- खाना खाते समय कंधों के बीच में दर्द होना, कमर में दर्द होना और अकड़न होना तथा गति करने से या किसी कठोर चीज पर लेटने से आराम मिलता है और बैठे रहने पर अधिक पीठ में दर्द होता है। गर्दन की हडि्डयों में अकड़न के साथ ही दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का सेवन करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के कई हडि्डयों के जोड़ों पर गर्माहट महसूस होती है तथा इसके साथ ही उस पर सूजन आ जाती है और दर्द भी होता है। कण्डराओं, पेशीबन्धों व प्रावरणियों में तेज फाड़ता हुआ दर्द होता है तथा इसके साथ ही हडि्डयों के जोड़ों में दर्द होता है, इस दर्द का असर गर्दन की हडि्डयों, नितम्बों और शरीर के बाहरी अंगों में फैल जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी जब अपने हाथ-पैरों को चलाता है तो कुछ आराम मिलता है। हाथ-पैर कठोर हो जाती है तथा इसके साथ ही लकवा रोग जैसा प्रभाव भी देखने को मिलता है और ठण्डी तथा ताजी हवा सहन नहीं होती, इसके साथ ही त्वचा में दर्द होता है। अन्त:प्रकोश्टिका स्नायु में दर्द होता है। जांघों में फाड़ता हुआ दर्द होता है। ठण्ड के समय में, नए मौसम में और रात के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। अत्यधिक परिश्रम करने तथा ठण्ड लगने के बाद अंगों में सुन्नपन महसूस होता है तथा रेंगने पर और भी अधिक सुन्नपन महसूस होता है। कई अंगों में लकवा रोग जैसा प्रभाव देखने को मिलता है। घुटने के जोड़ों के आस-पास दर्द होता है तथा दौड़ने से भी तेज दर्द होता है। पैरों में सुरसुरी होती है तथा हाथ और उंगलियों की शक्ति कम हो जाती है और उंगलियों की नोकों में कुछ रेंगने जैसी अनुभूति होती है। इस प्रकार के शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुखार होने के साथ ही बेचैनी होती है, शरीर कांपने लगता है और जीभ सूखी व कत्थई रंग की हो जाती है, पागलपन जैसी स्थिति भी हो जाती है, दांतों पर मैल जमा रहता है, दस्त भी हो जाता है। बुखार लगने के साथ ही ठण्ड अधिक लगती है और सूखी खांसी भी हो जाती है और बेचैनी होती है। बुखार होने के साथ ही छपाकी रोग हो जाता है। चक्कर भी आता रहता है। ठण्ड के समय में रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जैसे उसके शरीर पर ठण्डा पानी डाला जा रहा है और दोपहर के समय में बुखार लगने के साथ ही शरीर में अंगड़ाई होती है। हाथ-पैरों में वात रोग होने के कारण दर्द होता है और ऐंठन होती रहती है, दर्द आराम करते समय और भी तेज हो जाता है लेकिन हाथ-पैर चलाते समय दर्द कम होता है। रोगी के शरीर के कई अंगों में शक्ति कम हो जाती है और रोगी अंगों को ऊपर नहीं उठा पाता है। कमजोरी के कारण पैरों में दर्द होता रहता है और दर्द के कारण अपनी स्थिति बदलती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- त्वचा लाल सूजी हुई हो जाती है तथा इसके साथ ही उस स्थान पर खुजली होती है। त्वचा पर दाद हो जाता है तथा इसके साथ ही छपाकी रोग हो जाता है और फोड़ें तथा फुंसियां हो जाती है जिसमें दूषित पानी भरा रहता है। ग्रंथियों में सूजन आ जाती है। कोशिकाओं में सूजन आ जाती है। त्वचा पर छाजन रोग हो जाता है और त्वचा पर पपड़ियां जम जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का सेवन करना चाहिए।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को नींद में कार्य करने के सपने आते हैं और गहरी नींद आती है तथा इसके साथ ही ठण्ड भी लगती है। आधी रात से पहले नींद नहीं आती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

वात रोग से सम्बन्धित लक्षण :- कई प्रकार के वात रोग और गठिया रोगों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग किया जाता है। हडि्डयों, जोड़ों, पुट्ठों और नसों या कही भी ठण्ड लगने या भीगने या पसीने के एकाएक ही दब जाने से वात रोग उत्पन्न हो और गति करने से आराम मिलता हो तो इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का उपयोग करना चाहिए।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

नींद के समय में, भीगे रहने पर, बरसाती मौसम में और वर्षा होने के बाद, रात के समय में, आराम करते समय, अच्छी तरह से भीगने पर, पीठ के बायीं या दायीं करवट लेटने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) :-

गर्म खुश्क मौसम में गति करने से, चलने से, स्थिति बदलते रहने से, गर्म सिंकाई करने से और अंगों को फैलाने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

* आर्निका, ब्रायो, नेट्रम-सल्फ, राडो ओर सल्फ औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि से कर सकते हैं।

* जिन सब नए रोगों में रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि उपयोगी होता है अधिकतर उन्ही रोंगों की पुरानी अवस्था में कैल्केरिया-कार्ब औषधि उपयोगी होती है।


पूरक:-

ब्रायो, कल्के-फ्लेरि, फाइटो (आमवात)। छपाकी में इसके बाद बोविस्टा दें।

विरोधी औषधि :-

एपिस औषधि के बाद और पहले रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रतिकूल:-

एपिस।

प्रतिविष:-

दूध से धोने और ग्रिंडेलिया का घोल अत्यन्त प्रभावशाली होता है।

मात्रा (डोज) :-

रस टाक्सिकोडेन्ड्रन औषधि की 6 से 30 शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। इसके पौधे के मूलार्क की विषाक्तता के लिए इसी की 200 शक्ति और उच्चतर शक्तियां प्रतिविष हैं।


रूटा (ROOTA)

 रूटा (ROOTA) 

परिचय-

रूटा औषधि की सबसे अधिक क्रिया अस्थि-वेष्ट पर होती है, विशेष रूप से उस समय जब चोट लगने से अस्थि-वेस्ट में कष्ट या दर्द पैदा हो जाता है। इस औषधि का प्रयोग उन रोगियों पर भी करते है जिनके रोग को ठीक करने के लिए आर्निका औषधि का प्रयोग किया जाता है, इन रोगियों के लक्षण इस प्रकार हैं- गिरने के बाद कुचल जाने की तरह दर्द होता है तथा लंगड़ापन रोग उत्पन्न हो जाता है, पूरे शरीर में दर्द महसूस होता है। लेकिन आर्निका औषधि के प्रयोग और रूटा औषधि के प्रयोग में इतना फर्क है कि इसके रोगी में हडि्डयों के विभिन्न अंगों तथा उस करवट में, जिस पर वह लेटता है, उसमें दर्द और कुचलने की अधिक अनुभूति होती है। रूटा औषधि का प्रयोग उन रोगियों पर भी करते हैं जो एक ही अवस्था में अधिक देर नहीं बैठ सकता और बार-बार अपनी अवस्था बदलना चाहता है। यदि किसी रोगी के पेट में कांच चला गया हो तो उस अवस्था में रोगी के पेट में बहुत अधिक दर्द होता है और रोगी किसी प्रकार का स्पर्श सहन नहीं कर पाता है। बिस्तर की चादर की रगड़ से रोगी तड़प उठता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा औषधि का प्रयोग करना चाहिए, इसके प्रयोग से कांच पेट से बाहर निकल जाता है। यदि कोई भारी वस्तु उठाने के कारण गर्भाशय भी अपने स्थान से हटकर बाहर आ जाए तो इस प्रकार की अवस्था को ठीक करने के लिए रूटा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

विभिन्न लक्षणों में रूटा औषधि का उपयोग-

कलाई से सम्बन्धित लक्षण:- कलाई में दर्द होता रहता है और सुन्नता रोग भी होता है। कलाई में जो दर्द होता है, वह ठण्ड के मौसम में और नम मौसम में और भी अधिक बढ़ जाता है। कलाईयों को हिलाने और डुलाने पर दर्द से आराम मिलता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण:- अधिक पढ़ने-लिखने, महीन सिलाई का काम करने तथा आंखों पर बहुत अधिक जोर पड़ने के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों का उपचार करने के लिए रूटा औषधि का उपयोग लाभदायक है। आंखें थकी-थकी लगती है, उनमें दर्द हो रहा हो या उनमें ऐसी जलन हो जैसे आग का गोला उठ रहा हो तो इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा औषधि का उपयोग करना चाहिए। आंखों पर बहुत अधिक जोर पड़ने के कारण दबाव उत्पन्न होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा औषधि का प्रयोग करना चाहिए। आंखों की देखने की शक्ति कम हो जाती है तथा चश्मा लगाने के कारण उत्पन्न आंखों के रोग। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मलद्वार से सम्बन्धित लक्षण:- मलद्वार से सम्बन्धित कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए रूटा औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।


रस वेनेनैटा(Rhus venenata)

 रस वेनेनैटा(Rhus venenata)

परिचय-

रस वाले औषधियों में इसका उपयोग प्रमुख है। इस औषधि का उपयोग तेज चर्म रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए किया जाता है। विभिन्न लक्षणों में रस वेनेनैटा औषधि का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- अत्यधिक उदासीनता होने लगती है तथा जीवित रहने की इच्छा होती है और हर समय हताशा महसूस होती है और इसके साथ ही कई प्रकार के रोग के लक्षण भी हो जाते हैं- सिरदर्द, जीभ के नीचे सूजन, शरीर में लकवे जैसा प्रभाव आदि। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस वेनेनैटा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- माथे पर दर्द होना, सिर में दर्द होना, चलने-फिरने और झुकने पर सिर में अधिक दर्द होता है और लक्षणों में वृद्धि होती है। माथे और सिर पर सूजन आने के कारण आंखें बंद हो जाती है, कानों में फफोलेदार छाले पड़ना और इसके साथ ही जलन होना। नाक लाल और चमकीली दिखाई देना। चेहरे पर सूजन होना। इस प्रकार के सिर से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस वेनेनैटा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

जीभ से सम्बन्धित लक्षण :- जीभ की कोन लाल होने के साथ ही बीच से फटने लगती है और जीभ के नीचे छालें पड़ जाते हैं। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस वेनेनैटा औषधि का सेवन करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- सुबह के चार बजे पेट में दर्द होने के साथ दस्त आना और दस्त में मल पानी की तरह तरल, सफेद और अधिक मात्रा में होता है तथा तेजी से निकलता है, मल करने से पहले पाचनतंत्र में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस वेनेनैटा औषधि का प्रयोग करना लाभकारी है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- दायें बाजू और कलाई में लकवा रोग का प्रभाव दिखाई देना और इसका असर उंगलियों तक दिखाई देना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस वेनेनैटा औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- त्वचा पर खुजली होती है तथा गर्म जल से त्वचा को धोने से कुछ आराम मिलता है। त्वचा पर फफोलेदार छाले पड़ना। त्वचा पर घाव होने के साथ ही लाली पड़ना। त्वचा की ग्रंथियों पर लाल-लाल दाने पड़ना और इसके साथ ही दीर्घास्थियों में रात के समय में खुजली और दर्द होना। इस प्रकार के चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रस वेनेनैटा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन) :- ऐनाका औषधि के कुछ गुणों की तुलना रस वेनेनैटा औषधि से कर सकते हैं।

प्रतिविष :- क्लिमैटिस। कैलीफोर्निया पॉयजन ओक (रस डाइवर्सिलोबा) के समान है। यह रेडियम की प्रतिविष है और इसकी अनुगामिनी है।

मात्रा (डोज) :- रस वेनेनैटा औषधि की छठी से तीसवीं शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


रिक्टा पल्मोनेरिया Ricta Palmoneriya

 रिक्टा पल्मोनेरिया 

परिचय-

रिक्टा पल्मोनेरिया औषधि नये जुकाम को ठीक करने के लिए बहुत ही लाभकारी औषधि है। रोगी के नाक से अधिक मात्रा में पानी की तरह का तरल पदार्थ बहता रहता है और जब इस अवस्था में नाक से पानी बहना रुक जाता है तो नाक के अंदर पपड़ी जम जाती है जिसको निकालने में कठिनाई होती है, नाक के अंदर उत्तेजना होती है जिसके कारण रोगी अपने नाक को बार-बार साफ करते रहता है लेकिन नाक को साफ करने पर कुछ भी नहीं निकलता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिक्टा पल्मोनेरिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए। विभिन्न लक्षणों में रिक्टा पल्मोनेरिया औषधि का उपयोग-

सिर तथा नाक से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के सिर और नाक की जड़ों में भारीपन महसूस होता है और इसके साथ ही सिर में दर्द होता है और दबाव महसूस होता है। रोगी को नाक से पानी जैसा तरल पदार्थ बहता रहता है। जब नाक का स्राव रुक जाता है तो नाक के अंदर पपड़ी जम जाती है। रोगी को बार-बार नाक साफ करने की इच्छा होती है। रात के समय में खांसी भी हो जाती है और खांसी इतनी तेज होती है कि जिसके कारण वह न तो लेट सकता है और न ही सो सकता है। वह बैठे रहने पर मजबूर हो जाता है। छोटी माता निकलने के बाद बच्चों को सूखी खांसी हो जाती है। इस प्रकार के सिर तथा नाक से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिक्टा पल्मोनेरिया औषधि का सेवन करना चाहिए।

खसरा या छोटी माता से सम्बन्धित लक्षण :- खसरा या छोटी माता निकलने के बाद तेज खांसी आती है तथा इसके साथ ही रोगी को नींद भी नहीं आती है, खांसी सूखी आती है जो बाद में ढीली पड़ जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिक्टा पल्मोनेरिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

क्षय रोग से सम्बन्धित लक्षण :- क्षय रोग से पीड़ित रोगी को लगातार थका देने वाली खांसी होती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिक्टा पल्मोनेरिया औषधि का उपयोग लाभदायक है। 

परागज ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- परागज ज्वर से पीड़ित रोगी के माथे और सिर के ऊपरी भाग में दर्द हो तथा नाक एकदम बंद हो जाए तथा लगातार छींकें आए तो इस औषधि के प्रयोग करने से रोग जल्दी ही ठीक हो होने लगता है।

वात रोग से सम्बन्धित लक्षण :- घुटने में जलन हो रही हो तथा अचानक पैदा होने वाले वात रोग जिसमें जलन भी होती है तथा रोग अधिक पुराना हो, रोगी को इतना तेज दर्द होता है कि वह दर्द असहनीय हो जाता है, रोगी रोने तथा चिल्लाने लगता है, रोगी घबराया हुआ रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिक्टा पल्मोनेरिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

लाइकोपोडियम, कालीब्राइकोम, एकोनाइट, कैंफर, नक्स-वोमिका, एमोनो कार्ब और सैम्बुक्स औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रिक्टा पल्मोनेरिया औषधि से कर सकते हैं।


रिसिनस कौम्यूनिस-बोफैरीरा(Ricinus Communis-Bofareira)

 रिसिनस कौम्यूनिस-बोफैरीरा(Ricinus communis-Bofareira)

परिचय-

पाचनतंत्र की नलियों पर रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि की प्रभावशाली क्रिया होती है। इस औषधि से स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के स्तन में दूध की मात्रा बढ़ जाती है। उल्टी तथा दस्त होने के समय में इस औषधि का उपयोग करने से इस प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं। आलस और कमजोरी को दूर करने के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है। विभिन्न लक्षणों में रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- चक्कर आना, सिर के पिछले भाग में दर्द होना, सिर में रक्त का संचालन ठीक प्रकार से न होने के कारण दर्द होना, कानों में भिनभिनाहट सी आवाजें सुनाई देना, चेहरा फीका पड़ना और मुंह के अन्दरूनी भाग में सूजन होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- भूख नहीं लगती है और इसके साथ ही तेज प्यास लगती है, आमाशय में जलन होती है, मुंह के अन्दरूनी भाग में पानी अधिक भर जाता है तथा इसके साथ ही जी मिचलता रहता है। बार-बार उल्टी आना। पेट के अन्दरूनी भाग में दबाव महसूस होना। मुंह में सूखापन होना। इस प्रकार आमाशय से सम्बन्धित के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- पेट में गड़गड़ाहट होने के साथ ही मलान्त्र की पेशियों में सिकुड़न होना, पेट में दर्द होना, दस्त लगना और बार-बार मलत्याग करने की इच्छा होना। मल चावल की धोवन-सा होना, साथ ही बांयटे और ठण्डा महसूस होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि का सेवन करना चाहिए।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के बाहरी अंगों में ऐंठन तथा दर्द होना और इसके साथ ही मल पतला होना। मलद्वार पर जलन होना। मल हरा होता है तथा चिपचिपा और रक्त मिला हुआ मल होता है। बुखार होना और इसके साथ ही नींद आना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि का प्रयोग करना लाभकारी है।

हैजे से सम्बन्धित लक्षण:- हैजे की अवस्था में रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि का उपयोग लाभकारी है इसलिए हैजे की बीमारी इसके उपयोग से कुछ ही समय में ठीक हो जाता है। हैजे के लक्षण इस प्रकार हैं- दस्त का प्रकोप तेज होना तथा इसके साथ ही उल्टी आना, हाथ पैरों में ऐंठन होना लेकिन हैजे के लक्षण एकाएक ही प्रकट नहीं होते। शुरू-शुरू में कुछ घंटों तक या दो से तीन दिन तक बदहजमी होने के साथ ही पतले दस्त आते हैं, फिर धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते अंत में हैजे का रूप धारण करता है। हाथ पांव ठण्डा रहता है और लेकिन पेट में दर्द नहीं होता है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

* गर्मी के मौसम में शरीर पर फोड़ें-फुंसियां होने के साथ ही उल्टी आना। इस रोग को ठीक करने के लिए तथा पीब बनाने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए रेसोर्सिन औषधि का उपयोग होता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि का भी उपयोग कर सकते हैं। अत: रेसोर्सिन औषधि के कुछ गुणों की तुलना रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि से कर सकते हैं। 

* पेशियों की ऐंठन को ठीक करने के लिए कोलोस टेरापिना औषधि का उपयोग किया जाता है तथा ऐसे ही लक्षण को ठीक करने के लिए रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि का भी उपयोग किया जाता है। अत: कोलेस टेरापिना औषधि के कुछ गुणों की तुलना रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि से कर सकते हैं।

* आर्से तथा वेराट्र औषधि के कुछ गुणों की तुलना रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि से कर सकते हैं।


मात्रा (डोज) :-

रिसिनस कैम्यूनिस-बोफैरीरा औषधि की तीसरी शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। दुग्धस्राव बढ़ाने के लिए, पांच-पांच बूंदे हर चौथे घंटे में प्रयोग करना चाहिए तथा पत्तों की पुल्टिस का स्थानिक प्रयोग भी कर सकते हैं।


रोजा डैमैस्केना Rosa Damascena

 रोजा डैमैस्केना Rosa Damascena

परिचय-

रोजा डैमैस्केना औषधि का उपयोग परागज-ज्वर (हे-फीवर) के शुरुआती अवस्था में किया जाता है तथा जब कम्बुकर्णी (कान की अंदर की नलियां) नलियां रोग ग्रस्त हो जाती है। इसके प्रयोग से इस प्रकार के रोग जल्दी ही ठीक हो जाते हैं। विभिन्न लक्षणों में रोजा डैमैस्केना औषधि का उपयोग-

कान से सम्बन्धित लक्षण :- कान से कम सुनाई देता है और कान में दर्द होता है। कान में से पीब जैसा पदार्थ बहने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रोजा डैमैस्केना औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन):-

* परागज ज्वर में फ्लीयम प्रैटेन्स टिमौथी ग्रास ज्वर युक्त दमा, नाक और आंखों में खुजली, छींके तथा श्वासकष्ट में 6 से 30 शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए।

* नैफ्था, यूफ्रेशि, सैबाडि, सीपि औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रोजा डैमैस्केना औषधि से कर सकते हैं।


मात्रा (डोज) :-

रोजा डैमैस्केना औषधि की निम्न शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


रियूम(Rheum)

 रियूम(Rheum)

परिचय-

बच्चे के दांत निकलते समय पतले दस्त में रियूम औषधि का उपयोग लाभदायक है। बच्चों के दांत निकलते समय मल से और उसके पूरे शरीर से खट्टी बदबू आने पर इस औषधि का उपयोग करने से रोग के लक्षण ठीक हो जाते हैं। इस प्रकार के लक्षण होने पर बच्चे को कितना भी स्नान कराया जाए या धुलाया जाए फिर भी बच्चे के शरीर से खट्टी बदबू नहीं जाती है। अम्लातिसार रोग से पीड़ित बच्चें के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि का अधिक उपयोग किया जाता है, दांत निकलते समय और भी कई प्रकार के लक्षणों को दूर करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।

विभिन्न लक्षणों में रियूम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को डर अधिक लगता है तथा वह कई प्रकार की चीजों को मांगता है और रोता रहता है। बच्चे के इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रात को नींद नहीं आती है और बच्चा उछलता-कूदता रहता है, चीखता-चिल्लाता रहता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है। 

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- सिर के बालों के नीचे से पसीना निकलता रहता है और लगातार अधिक मात्रा में पसीना निकलता रहता है। चेहरे पर ठण्डा पसीना निकलता है और विशेषकर मुंह और नाक के आस-पास के भागों से अधिक पसीना निकलता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- मुंह से अधिक मात्रा में लाल रंग का स्राव होने लगता है। दांतों में ठण्डक महसूस होती है। दांतों में दर्द होना तथा और भी कई प्रकार की परेशानियां होना, इस प्रकार के लक्षणों से बच्चा यदि पीड़ित होता है तो वह चिड़चिड़ा स्वभाव का हो जाता है। उसके सांस से खट्टी बदबू आती है। इस प्रकार के मुंह से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

आंख से सम्बन्धित लक्षण :- धुंधलापन दिखाई देना, अधिक सपने आते हैं, मलत्याग करते समय कंपकंपी होती है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी विभिन्न प्रकार का भोजन मांगता है, पर इस भोजन से जल्दी ही ऊब जाता है। पेट के अन्दरूनी भाग में कंपन होता है। पेट भरा-भरा सा लगता है। इस प्रकार के आमाशय से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- मलत्याग करने से पहले ही पेशाब करने की अधिक इच्छा होती है लेकिन पेशाब होता नहीं है। मल से खट्टी बदबू आती है, मल चिपचिपा होता है तथा मलद्वार में कंपन, सिकुड़न और मलद्वार में जलन होती है। बच्चे के दांत निकलते समय दस्त लग जाए तथा मल से खट्टी बदबू आए तथा उसके पेट में दर्द हो, मलत्याग करने के लिए अधिक जोर लगाना पड़ता हो लेकिन मल ठीक से त्याग न हो। इस प्रकार के मल से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुदबुदाहट की अनुभूति होना, जैसेकि सभी मांसपेशियों और जोड़ों में छोटे-छोटे बुलबुले उठ रहे हो। ऐसा महसूस होना जैसे की कुछ चीज बुदबुद करते हुए पक रहा है। रोगी जिस अंग को दबाकर सोता है वह अंग ऐसा लगता है कि सो गया है, जिस अंग पर भार पड़ता है वह अंग सो जाता है। सारे शरीर में कमजोरी महसूस होती है तथा भारीपन भी महसूस होता है, रोगी देखने में ऐसा लगता है कि उसे किसी ने गहरी नींद से जगा दिया है, ऐसा महसूस होता है कि मानसिक चेतना आ गई हो लेकिन शरीर अभी तक सोया पड़ा रहता है। शरीर से ठण्डा पसीना निकलता रहता है, मुंह और हथेलियों से अधिक पसीना निकलता है। इस प्रकार के शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बच्चों से सम्बन्धित लक्षण :- बच्चों को हैजा रोग। लगातार पानी जैसे झाग के समान दस्त आना, दस्त होने के साथ ही नाभि के पास चीरने-काटने जैसा दर्द होना। दांत निकलते समय पेट में दर्द होना और अतिसार होना। चिकनाहट के साथ झागदार दस्त होना तथा मल से खट्टी बदबू आना और पेट में मरोड़ होना। खट्टी बदबूदार मलत्याग करते समय या उल्टी करते समय बच्चा चीखता-चिल्लाता रहता है और पेट में दर्द होता रहता है। बच्चा धीरज नहीं रख पाता है और बहुत सी चीजें खाने के लिए मांगता है लेकिन चीज देने पर या अपने पसंद की चीज ले लेने पर भी उसे वह नापसंद कर देता है और बाद में वह उसे फेंक देता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है। 

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

रात के समय में, दांत निकलते समय, किसी अंग से ओढ़ना हटाने पर, दस्त आते समय, भोजन करते समय, गर्मियों के मौसम, भोजन करने के बाद तथा हिलने-डुलने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) :-

गर्मी से, कपड़ा ओड़ने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

* हीपर, पोडो, कमो, इपिका, मैग्नी-फा औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रियूम औषधि से कर सकते हैं।

* दूध हज्म न होने और बच्चे के शरीर में खट्टी बदबू रहने से मैग्ने-कार्ब के बाद इसका पूरक सम्बन्ध है।


प्रतिविष :-

कमो, कैम्फर औषधियों का उपयोग रियूम औषधि के हानिकारक प्रभाव को दूर करने के लिए किया जाता है।

पूरक :-

मैग्नी-कार्बो।

अनुपूरक: -

कल्के-का, बेल, पल्स, रस-टा तथा सल्फ।

मात्रा (डोज) :-

रियूम औषधि की तीसरी छठी शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। 


रूटा ग्रैवियोलेन्स (Ruta Graveolens)

 रूटा ग्रैवियोलेन्स (Ruta Graveolens)

परिचय-

इस औषधि का प्रभाव हडि्डयों, मांसपेशियों, आंखों और गर्भाशय पर होता है। शरीर का कोई अंग कुचल जाने या अन्य हडि्डयों तथा हडि्डयों की आवरण झिल्ली पर आई यांत्रिक (औजार से) चोटे इसका प्रभाव क्षेत्र होती है। शरीर के कई अंगों में दर्द होना और ऐसा महसूस होना कि दर्द वाला अंग कुचल गया है, मोच आ गई है, मोच वाले स्थान पर जलन के साथ खुजली होती है। पीलिया रोग होने के साथ ही अधिक आलसपन होना और शरीर में कमजोरी महसूस करना तथा निराशा अधिक होना। चोट लगने के कारण कुचली हुई हडि्डयां। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप इस प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं।

विभिन्न लक्षणों में रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- सिर में ऐसा दर्द होता है कि जैसे नाखून गड़ रहा हो, कभी-कभी दर्द ऐसा महसूस होता है कि जैसे शराब पीने के बाद दर्द हो रहा है। सिर के हडि्डयों पर घाव होना तथा इसके साथ ही तेज दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

नाक से सम्बन्धित लक्षण:- नाक से खून बहना तथा एक बार खून निकलने के बाद खून रुक जाने के बाद फिर से नाक से खून बहने लगना अर्थात नकसीर रोग और इसके साथ सिर में दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण:- आंखों का अधिक उपयोग करने के कारण सिर में दर्द होना, आंखें लाल और गर्म लगना। सिलाई करने या सूक्ष्म अक्षरों को पढ़ने के कारण आंखों में दर्द होना। पढ़ते समय थकान महसूस होना तथा आंखों में दर्द होना। नेत्रकोटरों में गहराई तक दबाव महसूस होना। भौंहों के ऊपर दबाव महसूस होता है। आंखें कमजोर हो जाती है तथा आंखों की रोशनी भी कम हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- आमाशय में हल्का-हल्का चबाये जाने जैसा दर्द होता है तथा इसके साथ ही पाचनतंत्र में भी दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- मूत्रत्याग करने के बाद मूत्राशय की नली में दबाव महसूस होता है और दर्द भी होता है। मूत्रत्याग करने की बार-बार इच्छा होती है और मूत्राशय भरा हुआ महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मलान्त्र से सम्बन्धित लक्षण:- मलत्याग करने में परेशानी होती है तथा मल कठिनाई के साथ निकलता है तथा मलत्याग करने के लिए जोर लगाना पड़ता है। कब्ज की समस्या रहने के साथ ही मल में खून की कुछ मात्रा तथा कफ जैसा पदार्थ निकलता है और मल फेनिला होता है। मलत्याग करने के लिए बैठते समय मलान्त्र में तेज फाड़ने जैसा दर्द होता है। निचली आंतों को रोग ग्रस्त करने वाला कैंसर रोग होना। मलत्याग करते समय, हर बार प्रसव के बाद मलान्त्र बाहर निकल आती है। मलत्याग करने की बार-बार इच्छा तो होती है पर मलत्याग करते समय मलत्याग नहीं हो पाता है। झुकते समय मलान्त्र बाहर की ओर फैल जाती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को खांसी के साथ ही अधिक मात्रा में गाढ़ा और पीला बलगम निकलता है, छाती पर कमजोरी महसूस होती है। उरोस्थि के ऊपर दर्द होता है और छाती पर ऐंठन होने के साथ ही दम फूलने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण:- गर्दन की हडि्डयों, पीठ और कूल्हों में दर्द होता है। पीठ पर दर्द होता है जो पीठ पर दबाव देने तथा पीठ के बल लेटने से कम होता है। कमर में दर्द होता है जिसका असर सुबह के समय में अधिक होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का प्रयोग करना उचित होता है। 

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रीढ़ की हड्डी पर कुचलने जैसा दर्द होता है। कमर और कूल्हों में दर्द होता है। कूल्हे और जांघ इतने कमजोर हो जाते हैं कि कुर्सी से उठते समय टांगें ठीक प्रकार से काम नहीं करती है। उंगलियों में खिंचाव उत्पन्न हो जाता है। कलाइयों और हाथों में दर्द और अकड़न होता है। गृध्रसी रोग होना तथा रात को लेटने पर इस रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। कमर से लेकर नीचे कूल्हों व जांघ तक दर्द होता है तथा जांघ की पेशियां छोटी महसूस होती है। कण्डराओं में दर्द होता है। निम्न गुल्फ की दृढ़ कण्डराओं में दर्द होता है। पैर पसारते समय जांघों में दर्द होता है। पैरों और टखनों की हडि्डयों में दर्द होता है। इनमें से किसी प्रकार के लक्षण होने के साथ ही रोगी को बेचैनी भी होती है, ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि का उपयोग लाभदायक है।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :- नम मौसम में, लेटने पर, ठण्ड से तथा भीगी आबोहवा से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) :- हाथ-पैर चलाने से रोग के लक्षण नश्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

रटानिया, कार्डुअस, जैबोरैण्डी, फाइटो, रस-टा, सिलीका तथा आर्निका के कुछ गुणों की तुलना रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि से कर सकते हैं।

प्रतिविष:-

कैम्फर औषधि का उपयोग रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए करना चाहिए।

पूरक:-

कल्के-फासफो।

मात्रा (डोज) :-

रूटा ग्रैवियोलेन्स औषधि की पहली से छठी शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। गण्डिकाओं पर इस औषधि के मूलार्क का स्थानिक प्रयोग और आंखों के लिये लोशन का प्रयोग करना चाहिए।


रुमेक्स क्रिस्पस (Rumex Crispus)

 रुमेक्स क्रिस्पस (Rumex Crispus)

परिचय-

शरीर के कई अंगों में दर्द होता है तथा दर्द न तो स्थिर रहता है और न लगातार बना रहता है। गले में लगातार गुदगुदी होती रहती है और खांसी होती रहती है। गुदगुदी नीचे की श्वास नली से होते हुए ऊपरी की नली तक होती है। गले को छूने पर खांसी उत्पन्न होती है, हल्की सी हवा लगने पर लक्षणों में वृद्धि होती है। चादर से सारा शरीर और सिर ढक लेने से खांसी बंद हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का उपयोग किया जाता है। रुमेक्स क्रिस्पस औषधि श्लैष्मिक झिल्लियों के स्राव को घटाती है और साथ ही स्वरनली और श्वासप्रणाली की श्लैष्मिक झिल्लियों की बोधगम्यता को बढ़ाती है। त्वचा पर रुमेक्स क्रिस्पस औषधि की विशिश्ट क्रिया होती है, जिसके फलस्वरूप तेज खुजली उत्पन्न होती है। लसीकावाहिनियां बढ़ जाती हैं और स्रावों की प्रतिकूलता पाई जाती है।

विभिन्न लक्षणों में रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का उपयोग-

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- जीभ के किनारे पर लेप जैसी परत जम जाती है, पेट के अन्दरूनी भागों में कठोर पदार्थ महसूस होता है, हिचकी आती है, जी मिचलाने लगती है, मांस नहीं खा सकता, मांस खाने से डकारें आना और तेज खुजली उत्पन्न होना। अधिक शराब पीने के कारण होने वाला पीलिया रोग तथा जिसके कारण पाचनतंत्र में सूजन हो जाती है और पेट के अंदर हल्का-हल्का दर्द होता रहता है और छाती में गोली लगने जैसा तेज दर्द होता है, दर्द का असर गले तक फैल जाता है, किसी प्रकार की गति करने या बात-चीत करने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। खाना खाने के बाद बायें स्तन में दर्द होता है तथा पेट फूलने लगता है। इस प्रकार के आमाशय से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

खांसी से सम्बन्धित लक्षण :- खांसी से पीड़ित रोगी को गले में सूखापन महसूस होता है। जरा सा भी कफ निकलने पर बेहोशी छा जाती है। ठण्डी हवा मुंह में जाने से या सांस लेने से खांसी तेज हो जाती है। बायीं करवट लेटने से खांसी और भी तेज हो जाती है। खंखारने पर कफ निकलता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का सेवन करना चाहिए।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी का गला बैठ जाता है और शाम के समय में ठण्ड लग जाने से रोगी की अवस्था और भी गम्भीर हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को ऐसा महसूस होता है कि गले में कुछ अटका हुआ है और जो निगलने की क्रिया करने से ऊपर से नीचे उतर जाता है लेकिन बाद में तुरन्त ऊपर आ जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है। 

छाती से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को छाती के पिछले भाग में खुरचने जैसी अनुभूति होती है और बायीं ओर के फेफड़ों में दर्द होता है। बार-बार सर्दी लगने पर रोगी की अवस्था और भी गम्भीर हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- नाक सूखी रहती है और गले के अन्दरूनी भागों में गुदगुदी होने के कारण खांसी होती है। नाक तथा श्वासप्रणाली से अधिक मात्रा में कफ जैसा पदार्थ का स्राव होता रहता है। सूखी खांसी या परेशानी पैदा करने वाली खांसी होती है जो नींद नहीं आने देती। जोर से बातें करने से और श्वास के साथ ठण्डी हवा लेने से और रात के समय में लक्षणों में वृद्धि होती है। मुंह पतला, पनीला और झागदार बलगम से भरा रहता है, बाद में रेशेदार तथा कठोर बलगम आता है। श्वास लेने में भी परेशानी होती है। उरोस्थि के पीछे वात के कारण घाव हो जाता है, विशेषकर बायी ओर, बाएं कंधे के आस-पास होता है। गले के आस-पास के भाग में वात के कारण घाव हो जाता है और इसके कारण दर्द भी होता है। गले के अंदर कोई ढेला होने की अनुभूति होती है। रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का प्रयोग इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए जिसके फलस्वरूप इस प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं और रोगी को आराम मिलता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी का मल कत्थई रंग का और पानी की तरह होता है, सुबह के समय में खांसी तेज होती है और खांसी इतनी तेज होती है कि बिस्तर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है। टी.बी. रोग। मलद्वार में खुजली होती है और ऐसा महसूस होता है कि जैसे मलद्वार में कोई ढेला अटका पड़ा है। बवासीर रोग। इस प्रकार के मल से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का सेवन करना लाभदायक होता है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- त्वचा पर तेज खुजली होती है तथा विशेषकर कमर से नीचे के अंगों में। कपड़े उतारते समय ठण्डी हवा लगने से लक्षणों में वृद्धि होती है। त्वचा पर जुलपित्ती होती है तथा खुजली मचने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।


शरीर के विभिन्न अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के कई अंगों में खुजली होती है, जो ठण्ड लगने से और गर्मी के मौसम में और भी अधिक बढ़ने लगती है। योनि में जब तेज खुजली होती है, उस समय जरा सी भी खुली हवा या मलत्याग करने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। खांसते समय अपने आप पेशाब निकल जाता है। सुबह के समय में दस्त होता है जो पांच से दस बजे के बीच में होता है, रोगी को दस्त इतना तेज होता है कि बिस्तर छोड़ कर भागना पड़ता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए रुमेक्स क्रिस्पस औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है। 

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :- शाम के समय में, ठण्डी हवा में, सांस लेने से, बाई छाती में, नंगे रहने पर लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) :- लेटने से तथा ठण्डी हवा से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :- कास्टि, ड्रास, हायोस, फास, सैंग्वि, सल्फर तथा बेल औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रुमेक्स क्रिस्पस औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा (डोज):- रुमेक्स क्रिस्पस औषधि 3 से 6 शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।