होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है

होम्योपैथी एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथिक दवाइयाँ किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है।

भारत होम्योपैथिक चिकित्सा में वर्ल्ड लीडर हैं।

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है। होम्योपैथी में किसी भी रोग के उपचार के बाद भी यदि मरीज ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह रोग का मुख्य कारण सामने न आना भी हो सकता है।

होम्योपथी दवा मीठी गोली में भिगोकर देते हैं

होम्योपथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं।

होम्योपैथी की सबसे खास बात है कि आप डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं। इससे किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट होने का खतरा नहीं होता।

ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया (Aegle-Marmelos And Aegle Folia)

परिचय-

ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता हैं। जो इस प्रकार हैं- पेचिश , बुखार के साथ जलोदर होना, नपुंसकता, खूनी बवासीर तथा दस्त।

ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- याददास्त कमजोर हो जाना तथा मात्रायें लिखने में गलतियां करना, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना चाहिए।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के चेहरे पर तथा आंख व कान में गर्मी महसूस होना जो खाना खाने के बाद ठीक हो जाता है, ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को शाम के चार बजे से 8 बजे के बीच सिर में दर्द हो रहा हो, शाम को सिर के ऊपरी भाग में जलन महसूस हो रही हो, ये लक्षण खाना खाने के बाद ठीक हो जाता है तो ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

जलशोफ (जलोधर) से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के किसी भाग में जल जमा हो गया हो, पलकों के ऊपरी भाग में सूजन आ गई हो, हृदय रोग के कारण उत्पन्न सूजन, इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में हो तो उसे ठीक करने के लिए रोगी को ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का सेवन करना चाहिए।

बेरी-बेरी रोग को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना चाहिए।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- श्वासनलियों में जलन, निमोनिया , खांसी तथा सर्दी-जुकाम को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना चाहिए।

नाड़ी से सम्बन्धित लक्षण :- नाड़ी की गति तेज तथा अनियमित रूप से चलने पर रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का सेवन करना चाहिए।

जठरांत्र से सम्बन्धित लक्षण :- बवासीर , कब्ज , अपच तथा पेट में दर्द होना , भोजन करने की इच्छा न होना, भूख न लगना (अनोरेक्सिया), आमाशय के रोग, मुंह में बार-बार थूक आना (वाटरब्रस), आध्यमान (पेट फूलना), तेज आवाज के साथ मलद्वार से वायु निकलना तथा दोपहर के समय में इस प्रकार की समस्या अधिक होना। अमीबी (अमोएबीक) तथा दण्डाणुक पेचिश रोग। इस प्रकार के लक्षणों के रोगों को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग लाभदायक होता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- पेशाब बहुत कम मात्रा में होना, पीठ व कमर के भाग में हल्का-हल्का दर्द महसूस होना, दोपहर के समय में और भी तेज दर्द होना, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना चाहिए।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- खुजली तथा दाद रोग को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

पुरुष से सम्बन्धित लक्षण :- नपुंसकता रोग को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- इंफ्लुएंजा रोग को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग तब दिया जाता है जब रोगी को लगातार ज्वर रहे, पुराना बुखार जिसका सम्बन्ध यकृत एवं जिगर सम्बन्धित रोगों से जुड़ा हो उस रोग को ठीक करने के लिए ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

मात्रा :-

ऐग्ले-मार्मेलस एवं ऐग्ले-फोलिया औषधि की मूलार्क, 3x 6, 30, 200 शक्तियां का प्रयोग करना चाहिए।


एड्रिनैलिन (Adrenalin)


परिचय-

एड्रिनैलिन औषधि का प्रभाव अधिवृक्क ग्रन्थिमज्जा के कार्य पर अधिक होता है। शरीर के संवेदी तन्त्रिका पर इस औषधि का सक्रिय प्रभाव पड़ता है। एड्रिनैलिन औषधि की शरीर के समस्त अंगों पर उसी प्रकार क्रिया होती है जिस प्रकार वह संवेदीतंत्रिकान्तों (साइसपेथेटिक नर्व एन्टीगस) का उद्दीपन करती है।

श्लैष्मिक झिल्लियों पर इसका बाहरी प्रयोग करने से जल्दी ही यह थोड़ी देर के लिए रक्त का बहाव कम कर देता है, तथा आंखों में बूंद-बूंद टपकाने से सफेद पर्दा पीला पड़ जाता है और कई घंटों तक बना रहता है।

तेज आक्सीकरण (रेपिड ओक्सिडेशन) के कारण इस औषधि की क्रिया तब तक और तेज, प्रभावी, रोग को नष्ट करने वाली, हानि को दूर करने वाली होती है जब तक इसे लगातार दोहराया नहीं जाता है।

एड्रिनैलिन औषधि का मुख्य कार्य संवेदी तंत्रिकान्तों, प्रमुख रूप से आंत के क्षेत्र को उत्तेजित करना है। इसके फलस्वरूप परिसरीय लघु धमनियों में सिकुड़न पैदा हो जाती है और रक्तदाब बढ़ जाता है।

आमाशय तथा आंखों में इसका अधिक प्रभाव होता है, त्वचा में कम मात्रा में तथा दिमाग व फेफड़ों में बिल्कुल नहीं होता है, साथ ही ऐसा भी पाया गया है कि यह नाड़ी की गति को कम कर देती है तथा हृदय की गति को मजबूत करती है।

ग्रंथियों की बढ़ी हुई सक्रियता, शर्करामेह, श्वास केन्द्र की कमजोरी, आंख, जरायु (बच्चेदानी) तथा योनि के पेशी-ऊतकों की सिकुड़न, आमाशय, आन्तों तथा मूत्राशय के पेशी-तन्तुओं में ढीलापन आ जाना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए एड्रिनैलिन औषधि का प्रयोग का प्रयोग करना चाहिए।

एड्रिनैलिन औषधि का प्रयोग संकोचन क्रिया (वेसो-कोस्ट्रीकेशन एक्शन) के लिए किया जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि यह औषधि अधिक शक्तिशाली, अतिसार रोग को ठीक करने वाली तथा रक्तस्राव को बंद करने वाली है। यह शरीर के सभी भागों से होने वाले कशेरुका रक्तस्राव को रोकती है, जबकि इस औषधि का बाहरी उपयोग मुख (मुंह), नाक, कान, कंठ (गला), मलान्त्र, आमाशय, स्वरयन्त्र, जरायु (बच्चेदानी), मूत्राशय आदि पर एड्रिनैलिन औषधि का प्रभाव अधिक पड़ता है। रक्त के दोषपूर्ण जमाव के कारण उत्पन्न होने वाली रक्तस्राव की अवस्था को ठीक करने में इस औषधि का उपयोग लाभदायक है।

बाहरी अंगों पर एड्रिनैलिन औषधि का उपयोग करने के लिए इसके घोल की मात्रा 1:10,0,000-1:1,000 लेना चाहिए। यदि इस घोल को आपरेशन क्रिया में उपयोग करने के समय में आंख, नाक, गले तथा स्वरयन्त्र पर छिड़का या लगाया जाए तो यह खून नहीं बहने देती है।

जालीदार और फन जैसी आकृति वाले हडि्डयों के छिद्रों में जमा होने वाले रक्त और परागज ज्वर को ठीक करने के लिए एड्रिनैलिन औषधि की 1:50,000 मात्रा के घोल उपयोग करने से तुरन्त लाभ मिलता है। यहां पर इसकी तुलना हीपर औषधि से की जा सकती है क्योंकि स्राव को बाहर निकलने के लिए हीपर औषधि की मात्रा 1x का उपयोग किया जाता है।

वर्लहोफ्स (वोरल्होफस) रोग को ठीक करने के लिए एड्रिनैलिन औषधि की मात्रा 1:1,000 के अनुपात में इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है। इस औषधि का बाहरी उपयोग में स्नायुशूल (नाड़ियों में दर्द), स्नायुप्रदाह (नाड़ियों में जलन), शरीर के कई अंगों में दर्द को ठीक करने के लिए इसकी मात्रा 1:1,000 घोल के 1 से 2 मिनिम मलहम के रूप में उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

फेफड़ों में खून का जमना, दमा, गुर्दे की बीमारियां, धमनी में रुकावट (अर्टेरिओस्क्लेरोसिस), जीर्ण महाधमनीशोथ (क्रोनिक औरटिटिस.महाधमनी में सूजन होना), हृदयशूल (एंगिना पेक्टिओरिस. हृदय में दर्द), शरीर के कई अंगों से खून बहना, परागज, बुखार, हीमोफीलिया (हेमियोफिलिया), रक्ताल्पता-(खून की कमी) (क्लोरोसिस), छपाकी आदि रोगों को ठीक करने के लिए एड्रिनैलिन औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

चक्कर आना, उल्टी आना, जी मिचलाना, पेट में दर्द होना, कई प्रकार के औषधियों के दुष्प्रभाव के कारण हृदयघात होना (हियर फैल्युरे) हृदय का रोग), इस प्रकार के लक्षणों में एड्रिनैलिन औषधि का उपयोग कर सकते हैं क्योंकि एड्रिनैलिन औषधि वाहिका प्राचीरों में नाड़ियों के अंतिम सिरों पर दबाव डालकर बड़ी तेजी के साथ रक्तदाब को बढ़ा देती है।

एड्रिनैलिन औषधि की मात्रा :-

त्वचा के माध्यम से इंजेक्शन द्वारा 1 से 5 मिनिम (1:1000 घोल जैसे क्लोराइड) पानी में घोलकर प्रयोग करना चाहिए। खिलाने के लिए 5 से 30 मिनिम (1:1000 शक्ति का घोल) का उपयोग करना चाहिए।

सावधानी :- 

ऑक्सीजन के प्रति आकर्षण के कारण एड्रिनैलिन औषधि पानी और तनूकृत अम्लीय घोलों (एसिड सोल्युशंस) में खराब हो जाती है। इस औषधि के घोल को हवा और प्रकाश से बचाकर रखना चाहिए। इस औषधि का उपयोग जल्दी-जल्दी नहीं करना चाहिए, क्योंकि हृदय और धमनियों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है तथा जिसके कारण उनमें घाव उत्पन्न हो सकता है। होम्योपैथिक उपयोग के लिए 2x से 6x के तनूकरण (एटेन्युशंस) का उपयोग करना चाहिए।


एडोनिस वर्नेलिस (Adonis Vernalis)


परिचय-

हृदय के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि बहुत अधिक लाभदायक है। यह औषधि विशेषकर आमवात या इनफ्लुएंजा रोग या गुर्दे में सूजन के बाद, जब हृदय की पेशियों में चर्बी (फेट्टी डेजनिरेशन) हो जाती है तो एडोनिस वर्नेलिस औषधि बहुत लाभकारी है जिसके उपयोग से कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।

यह औषधि नाड़ी की गति को नियमित करती है और हृदय की सिकुड़ने की शक्ति को भी बढ़ाती है तथा पेशाब की मात्रा को बढ़ाती है। हृदय में पानी भर जाने (कारडीएक ड्रोप्सी) के रोग को ठीक करने में यह औषधि बहुत उपयोगी है।

हृदय में अधिक कमजोरी होना, हृदय की कार्य करने की गति कम हो जाना तथा नाड़ी की गति कम हो जाना, छाती में पानी भरना, जलोदर रोग आदि रोगों को ठीक करने में एडोनिस वर्नेलिस औषधि बहुत उपयोगी है।

एडोनिस वर्नेलिस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- सिर में हल्कापन महसूस होना, सिर में दर्द का असर सिर के पिछले भाग से होते हुए कनपटियों से लेकर आंखों तक होना, उठते समय सिर को जल्दी-जल्दी घुमाने से या लेटते समय सिर में चक्कर आने लगता है, कानों में भनभनाहट की आवाज महसूस होती हो, खोपड़ी कसी हुई महसूस हो रही हो तथा आंखें फैली हुई हो आदि लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- मुंह लसलसा हो गया हो, जीभ गन्दी और पीली पड़ गई हो और जीभ में दर्द हो रहा हो तथा जलन हो रही हो और ऐसा महसूस हो रहा हो जैसे जीभ जल गई हो, ऐसे रोगी का उपचार करने के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- पेशाब में तेलकण तैरते दिखाई दे रहे हों तथा उसमें कुछ अन्न के सामान कण तैरते हुए दिखाई दे रहे हों तो इस प्रकार के लक्षण को दूर करने के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- तेज भूख लग रही हो, पेट में भारीपन महसूस होना, बेहोश होना तथा घर से बाहर जाने पर कुछ आराम मिल रहा हो तो ऐसे रोग को ठीक करने के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- सांस लेने की इच्छा बार-बार हो रही हो, छाती पर कोई भारी बोझा रखने जैसा अहसास हो रहा हो तो इस लक्षणों को दूर करने के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि का उपयोग लाभकारी है।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बेचैनी हो रही हो तथा इसके साथ-साथ भयानक (डरावनी) सपने आ रहे हों तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- गर्दन में दर्द हो रहा हो, रीढ़ की हड्डी में अकड़न तथा दर्द हो रहा हो तो रोग को ठीक करने के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

हृदय रोग से सम्बन्धित लक्षण :- महाधमनी (एरोटीक) से आने वाले रक्त (खून) के वापसी में बहाव होना तथा द्विक्पर्दी (मिटरल), महाधमनी की सूजन (महाधमनी में सूजन), चर्बी होना (फेटी हर्ट), हृदय के अन्दरूनी भाग में सूजन (एण्डोकारडीटिस), हृदय में घाव के कारण सूजन (पेरीकोरडीटिस), हृदय के अगले भाग में दर्द होना, धड़कन में कष्ट तथा सांस लेने में परेशानी होना, शिरारक्त का अधिक संचित होना, दमा रोग, हृदय के भाग में चर्बी होना, हृदय के पेशियों में दर्द होना (माइकरडीटिस), हृदय की कार्य करने की गति अनियमित होना, हृदय में सिकुड़न तथा सिर में चक्कर आना, नाड़ी की गति तेज होना तथा अनियमित रूप से चलना। इन सभी रोगों को ठीक करने के लिए एडोनिस वर्नेलिस औषधि का उपयोग लाभकारी है।

एडोनिस वर्नेलिस औषधि का अन्य औषधियों से सम्बन्ध :- एडोनिस वर्नेलिस औषधि हृदय के कार्य शक्ति को बल प्रदान करता है तथा पेशाब की मात्रा को तेज करता है। चौथाई ग्रेन प्रतिदिन लेने पर या प्रथम दशमलव अवपेषण की 2 ग्रेन से 5 ग्रेन तक की मात्रा का उपयोग करने से धमनियों में दबाव बढ़ती है तथा धमनी प्रसार (डेस्टोल) भी बढ़ती है, इस औषधि के फलस्वरूप शिराओं में भरे हुए अधिक रक्त की मात्रा घट जाती है। इस प्रकार के लक्षण को दूर करने में डिजिटैलिस औषधि का उपयोग अच्छा है लेकिन इसका बार-बार उपयोग करने से अधिक लाभ नहीं होता है। इसलिए डिजिटैलिस, कैटेलिस, कनैवलेरिया तथा स्टोफैंयस औषधि से एडोनिस वर्नेलिस औषधि की तुलना कर सकते हैं।

मात्रा :-

एडोनिस वर्नेलिस औषधि की मूलार्क की 5 से 10 बून्दें का प्रयोग करना चाहिए।


ऐकोनाइटम नैपेल्लस (Acontum Napellus)


परिचय-

ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि तीव्र रोगों को ठीक करने के लिए बहुत उपयोगी है। इस औषधि का पुराने रोगों से कोई सम्बन्ध नहीं है। रोगों को ठीक करने के लिए सबसे पहले यह समझ लेना चाहिए कि नए और पुराने रोग क्या होते हैं। नए रोग कहने पर कुछ लोग सोचते हैं कि रोग थोड़े दिनों से ही हैं और पुराना रोग कहने पर बहुत से लोग सोचते हैं कि यह बहुत दिनों से चला आ रहा रोग है। रोग की प्रकृति को देखकर यह पता चलता है कि कुछ ही समय के बाद रोग अपने आप ठीक हो जाएगा, चाहे उसकी चिकित्सा हो या नहीं, उसे नया रोग या एक्युट कहते हैं और इसके विपरीत जो रोग शरीर में बहुत दिनों से चला आ रहा होता है तथा जिसे बिना किसी दूसरी शक्ति या औषधि शक्ति की सहायता से ठीक न किया जा सकता हो और रोगी का जीवन शक्ति असमर्थ हो, उसे पुराना रोग या क्रोनिक कहते हैं।

मृत्यु का भय, घबराहट और बेचैनी होना जैसे रोग का आक्रमण एकदम तेज होने पर ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप रोगी ठीक हो जाता है। इस औषधि का असर थोड़े समय के लिए होता है। जिस रोगी में इस प्रकार के लक्षण होते हैं, उसका रोग कुछ समय में अन्दर ही ठीक हो जायेगा। यदि रोगी ठीक होने वाला है, उस समय इस औषधि का उपयोग किया जाए तो रोग को ठीक होने में देर नहीं लगेगी।

यदि रोग का आक्रमण अचानक हो और उसके साथ मृत्यु का भय (डर) हो रहा हो तथा इसके साथ ही बेचैनी हो रही हो, अधिक घबराहट महसूस हो रही हो, डाक्टर के पास जाने पर रोगी यह कहता हो कि मैं जरूर मर जाऊंगा, ऐसे रोगी को 200 शक्ति ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि की एक खुराक देने से उसका रोग ठीक हो जाता है तथा डर भी खत्म हो जाता है।

छोटे बच्चे को जब बुखार हो जाता है तो वह इसके कारण इस कदर बेचैन हो जाता है कि वह बिछौने पर कराहता है, बार-बार करवटें बदलता रहता है और रोता रहता है, उसको लिटाने से, गोद में लेने या घुमाने से भी चुप नहीं होता है। बच्चा कुछ देर पहले बिल्कुल अच्छा था, खेलता था, लेकिन अचानक बीमार पड़ गया हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित बच्चे के रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

डर के करण रोग की उत्पत्ति हो, सभा या समाज में जाने से, सड़क पार करने से रोग हो गया हो तथा रोगी को अंधेरे कमरे के अन्दर रहने का मन करता हो, इसके साथ-साथ रोगी को बेचैनी भी हो रही हो तो इस प्रकार के लक्षण को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि उन बच्चों के लिए विशेष गुणकारी औषधि है जो कि देखने में मोटे ताजे होते हैं, शरीर में खून तो अधिक हो लेकिन चेहरा लाल पड़ गया हो।

कभी-कभी गर्भवती स्त्री कहती है कि मैं प्रसव वेदना (बच्चे को जन्म देने के समय का दर्द) नहीं सह सकूंगी, बच्चे को जन्म देते समय मेरी मृत्यु हो जाएगी। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्रियों को 200 शक्ति ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि की एक खुराक देनी चाहिए, इससे उसका भय दूर हो जायेगा।

बच्चों और स्त्रियों के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि इसलिए अधिक उपयोग किया जाता है क्योंकि वे डर के कारण अक्सर बीमार हो जाते हैं।

विभिन्न लक्षणों में ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग-

तेज प्यास (अनक्यूंचेबल थ्रस्ट) से सम्बन्धित लक्षण :- बार-बार और अधिक मात्रा में पानी पीने पर भी रोगी की प्यास नहीं बुझती है तो ऐसे रोगी को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए, लेकिन यदि रोगी को तेज प्यास लग रही हो और पानी पीने पर एक बार में पानी पीया न जा रहा हो, रोगी थोड़ा-थोड़ा करके पानी पी रहा हो तो ऐसे रोगी को आर्सेनिक औषधि देना चाहिए। जबकि रोगी को प्यास तो तेज लग रही हो और फिर भी वह बहुत देर के बाद अधिक मात्रा में पानी पी रहा हो तो ऐसे रोगी को ब्रायोनिया औषधि देना चाहिए।

शुष्क वायु से रोग की उत्पत्ति (कोमप्लैंटस बाई एक्सपोस्युर टू ड्राई कोल्ड एअर) से सम्बन्धित लक्षण :- सूखी तथा ठण्डी हवा लगने से वात, कफ, जलन और बुखार रोग हो गया हो या कोई अन्य रोग हो गया हो तो ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए। लेकिन यदि वायु में किसी प्रकार की नमी न रहे फिर भी रोगी को ठण्ड का अहसास हो रहा हो तथा खुश्क और गर्म वायु के कारण उत्पन्न रोग को ठीक करने के लिए ब्रायोनिया, कास्टिकम और नक्स-वोमिका औषधि का उपयोग करते हैं। जबकि नम ठण्डी हवा लगने से होने वाले रोग को ठीक करने के लिए डलकैमेरा, रस-टाक्स, नक्स-मस्केटा और नेट्रम-सल्फ औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सूजन, प्रदाह (इनफ्लेमेशन) से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के किसी भाग में जलन या रक्त की अधिकता होने पर ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभदायक है। ज्वलनकारी ज्वर, आंख, कान, तालू, फेफड़ा, दिल, आंतड़ियां तथा शरीर के किसी भी भाग में तेज जलन या रक्त का संचय होने पर, खून या रस के वहां पर जमने से पहले इस औषधि का उपयोग करना चाहिए। जबकि खून अच्छी तरह से जम जाए तो बेलाडोना औषधि का उपयोग करना चाहिए, खून जमकर फैल जाने पर ब्रायोनिया और एपिस औषधि का उपयोग करना चाहिए, मवाद जम जाने पर हिपर तथा साइलिशिया औषधि का उपयोग करना चाहिए।

जुकाम से सम्बन्धित लक्षण :- खुश्क ठण्डी हवा लगने तथा एकाएक पसीना रुक जाने से यदि जुकाम हो गया हो तथा बार-बार छींके आ रही हों, नाक से पतला गर्म पानी निकल रहा हो, शरीर में हल्का दर्द हो और बुखार रहे तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभकारी है। जबकि जाड़े के मौसम में जुकाम के बन्द हो जाने और गले में खराश होने पर नक्स-वोमिका, ऐमोन-कार्ब और सैम्बयूकस औषधि का उपयोग लाभदायक होता है। जुकाम के साथ सिर में गर्मी, नसों के फड़कने, गले और तालू में सूजन होने पर बेलाडोना औषधि का उपयोग करना चाहिए। जुकाम सूख जाने पर ब्रायोनिया, चायना औषधि का उपयोग करने से लाभ मिलता है।

स्नायुशूल से सम्बन्धित लक्षण :- रेल या घोड़े की सवारी के समय खुश्क ठण्डी हवा लगने से नसों में तेज दर्द होने लगता है, चेहरा लाल हो जाता है, चेहरे पर जलन होती है और ऐसा महसूस होता है कि मानो आग के शोले चेहरे पर गिर गए हों, कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि चेहरे पर चींटिया रेंग रही हैं और कभी-कभी ऐसा महसूस हो रहा हो कि नसों के अन्दर बर्फ की तरह का ठण्डा पानी दौड़ रहा है तो ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए। जबकि यदि चेहरे के बांई तरफ के स्नायु में दर्द के साथ जलन भी हो रही हो तो स्पाइलीजिया औषधि का उपयोग करना चाहिए, चेहरे के बांई तरफ का स्नायु तेज दर्द के साथ सुन्न पड़ गया हो तो कालचिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए, यदि चेहरा पर सुखापन आ गया हो तो एमिल नाइट्रोसम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- अचानक खुश्क ठण्डी हवा लगकर आंखों में सूजन, लाली, गर्मी तथा जलन, तेज दर्द, बालू की तरह किरकिराहट होने पर ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए, लेकिन यदि आंख में कुछ पदार्थों के चले जाने से ऐसा हो रहा हो तो आर्निका या सल्फर औषधि का उपयोग करना चाहिए, बांई आंख की पुतली में तेज दर्द हो रहा हो तो स्पाईजीलिया ऐकोनाई औषधि का उपयोग करना चाहिए।

कान से सम्बन्धित लक्षण :- यदि बच्चे को खुश्क हवा तथा उत्तरी हवा में घुमाने के बाद बच्चा चीख़ने और रोने लगे, तथा इसके साथ-साथ उसे बुखार भी आ गया हो, बेचैनी के कारण किसी तरह से चुप नहीं हो रहा हो, गोद में टहलना पसन्द करता हो और कान के पास बार-बार हाथ ले जाता हो, इस प्रकार के लक्षण यदि बच्चे में है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए। जबकि यदि बच्चे के कान में जलन हो रही हो तथा उसे कान कटता हुआ महसूस हो रहा हो, उसके कान में इस प्रकार का दर्द हो रहा हो जैसे कि किसी प्रकार के कीड़े का डंक लग गया हो तथा कान पर दर्द और जलन हो रहा हो, गाने सुनने से परेशानी हो रही हो तो उसे नेट्रम-कार्व या सैब औषधि देना चाहिए।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- चेहरे के ऊपरी भाग में सुखापन हो गया हो और फीका पड़ गया हो, एक गाल लाल और दूसरा फीका हो गया हो, चेहरा फूल गया हो और सुखापन हो गया हो, रोगी को ऐसा महसूस हो रहा हो कि चेहरा बढ़ रहा है और फूल रहा है तो इस प्रकार के लक्षण को दूर करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए। जबकि यदि चेहरा पर फीका अनुभव हो रहा हो तो कैमो औषधि का उपयोग करना चाहिए, यदि चेहरा फूल रहा हो और लाल हो गया हो तो बेल, ओपि औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मूत्र-संस्थान (युरिनरी ओरगेंस) से सम्बन्धित लक्षण :-

* गुर्दे तथा मूत्राशय (किडनी एंड ब्लेडर) पर ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का लाभदायक प्रभाव होता है। बार-बार पेशाब करने की इच्छा के साथ दर्द और बेचैनी हो रही हो, पेशाब थोड़ा, गर्म, लाल या काला हो रहा हो, पेशाब करने में दर्द महसूस हो रहा हो तथा पेशाब बूंद-बूंद करके आ रहा हो और मूत्र-नली में जलन हो रही हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है।

* ठण्ड लगने पर बच्चों को पेशाब कराने पर वे रोते हैं और उन्हें बेचैनी हो रही हो तो इस प्रकार के लक्षणो में रोगी को ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि देना चाहिए। जबकि यदि रोगी में खाली पेशाब थोड़ा, गर्म और लाल या काला हो रहा हो तो उसे एपिस, आर्स, बेल, कैन्थ औषधि देना चाहिए, यदि पेशाब रुक-रुककर आ रहा हो तो एपिस, हायोस या स्ट्रैमो औषधि का उपयोग करना चाहिए।


स्त्री जननेन्द्रिय से सम्बन्धित लक्षण :-

* रक्त प्रधान स्त्री (शरीर में रक्त की अधिकता वाली स्त्री) का मासिकधर्म ठण्ड लगने तथा डरने या क्रोधित होने से रुक गया हो तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभकारी है। ऐसे स्त्री के योनि खुश्क, गर्म हो गया हो और स्पर्श सहन न हो रहा हो तथा जिस प्रकार प्रसव (बच्चे को जन्म देने के समय योनि से खून बहता है उस प्रकार का स्राव) के समय में स्राव होता है उस प्रकार से स्राव हो रहा हो, शरीर गर्म और खुश्क हो गई हो तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है।

* अचानक मासिकधर्म रुक जाने पर डिम्भकोष में जलन हो रही हो, भय या क्रोध से गर्भपात हो जाने की आशंका हो तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए जबकि यदि रोगी स्त्री में केवल योनि खुश्क, गर्म और स्पर्श सहन न होने का लक्षण हो तो उसे बेल औषधि देना चाहिए, बच्चेदानी से रक्त का स्राव हो रहा हो तो उसे हेमा, सिकेल या इपिकैक औषधि देना चाहिए।


पक्षाघात से सम्बन्धित लक्षण :- खुश्क, ठण्डी हवा लगने से शरीर पर पक्षाघत (लकवा) का प्रभाव, रोग ग्रस्त भाग पर ठण्ड अधिक लगना और झनझनाहट हो तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभदायक है। यदि रोग ग्रस्त भाग पर झनझनाहट हो तो कैनाबिस इन्डिका और स्टैफिसैग्रिया औषधि देना चाहिए, ठण्ड से होने वाले पक्षाघात में रस-टाक्स, सल्फर और कास्टिकम औषधि देना चाहिए, इस प्रकार के लक्षण होने पर ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि के अलावा इन औषधियों को दे सकते हैं, अत: ऐसे लक्षण होने पर ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि की तुलना कैनाबिस इन्डिका, स्टैफिसैग्रिया, रस-टाक्स, सल्फर और कास्टिकम औषधि से कर सकते हैं।

प्रसव (बच्चे को जन्म देना) से सम्बन्धित लक्षण :- बच्चे को जन्म देते समय यदि बहुत अधिक परेशानी स्त्री को हो रही हो या किसी यंत्र के द्वारा उसका प्रसव कराया जा रहा हो और नवजात शिशु सांस न लेता हो, बेहोश पड़ा हो या दिल की तकलीफ़ के कारण सांस लेने में दम घुटता सा मालूम होता हो तो इस प्रकार के लक्षण में ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए। यदि नवजात शिशु का पेशाब किसी कारण से रुक जाए और कई दिनों तक न हो तो उसे ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि देनी चाहिए इसके अलावा कोई भी दवा नहीं देना चाहिए। जबकि बच्चे को जन्म देने के बाद यदि माता को मूत्राभाव-(मूत्र की कमी या मूत्र का रुक जाना) हो तो एक खुराक कास्टिकम औषधि का सेवन कराना चाहिए इससे उसका यह रोग ठीक हो जाएगा।

सिर दर्द से सम्बन्धित लक्षण :- डर, क्रोध, और रजोधर्म (मासिकधर्म) के एकाएक रुक जाने के कारण सिर में खून की अधिकता से सिर में दर्द और चक्कर आना, सिर की चोटी पर तेज दर्द होना जिसके कारण सिर फटता हुआ मालूम पड़े और रात के समय दर्द में और तेजी होना तथा चलने-फिरने से और खुली हवा में रहने से कुछ आराम मिलता हो, लू, लपट लगने तथा खासकर के धूप में सोने से सिर में दर्द तेज हो जाना, जाड़े के मौसम में उत्तर की खुश्क ठण्डी हवा से रेल या घोड़े की सवारी से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। रक्त प्रधान (रक्त की अधिकता) व्यक्तियों का जुकाम रुक जाने पर और साथ ही सिर में दर्द होना। इस प्रकार के लक्षण यदि किसी व्यक्तियों में है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि बहुत उपयोगी है। रोगी के आंखों के भौं पर तेज दर्द हो रहा हो, सिर में दर्द होने के साथ ही बेचैनी हो रही हो, तेज प्यास लग रही हो और भय अधिक हो तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभदायक है।

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को अधिक भय हो, अधिक चिन्ता हो, भय के कारण कई चीजों को नष्ट करने का मन कर रहा हो, रोगी को प्रलाप की अवस्था (शोक की अवस्था) हो और वह अप्रसन्न हो, ऐसी अवस्था होने पर भी रोगी को बेहोशी कम आती हो। भविष्य के प्रति निराश तथा भयभीत हो, मौत से डरता हो, रोगी यह सोचता हो कि मृत्यु होने वाली है, रोगी अपनी मौत के दिन की भविष्यवाणी भी कर देता है। भीड़भाड़ तथा सड़क पार करते समय अधिक डर लगता हो, व्याकुलता अधिक हो, बार-बार करवटें बदल रहा हो, चौंकने की प्रवृति बढ़ जाती है, दर्द सहन नहीं हो रहा हो, दर्द के कारण रोगी पागल सा हो जाता है। किसी संगती में रहने का मन नहीं कर रहा हो, रोगी अधिक उदास रहता हो। कभी तो रोगी यह सोचता है कि उसके शरीर का अंग अस्वाभाविक रूप से मोटा हो गया है तथा जो कुछ अभी-अभी किया है वह एक सपना था। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में है तो उसका उपचार करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

दांतों के दर्द से सम्बन्धित लक्षण :- दांत के दर्द में ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग बहुत राहत देने वाला है लेकिन यह ध्यान देना चाहिए कि दांत का दर्द पुराना हो तथा इसके साथ रोगी को अधिक घबराहट हो रही हो तथा बेचैनी हो रही हो।

मुख (मुंह) से सम्बन्धित लक्षण :- मुख के अन्दर सूखापन और गुदगुदाहट होना, जीभ में सूजन तथा जीभ के अगले भाग में गुदगुदी होना, दांत अधिक ठण्डा हो जाना, निचला जबड़ा लगातार चलना जैसे कुछ चबा रहा हो, मसूढ़े अधिक गर्म तथा उसमें जलन के साथ दर्द होना, जीभ पर सफेद परत जम जाना, इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में हैं तो उसका उपचार करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

जलन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुखार हो, सिर तथा रीढ़ और नसों में जलन हो रही हो, कभी-कभी रोगी को ऐसी जलन होती है कि उसके शरीर पर किसी ने मिर्च लगा दी हो। इस प्रकार के लक्षण को दूर करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभकारी है।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- गले में जलन, लाली, खुश्की, टॉन्सिल की वृद्धि, सूजन, गले में दर्द, निगलने में तकलीफ और गले में सूजन हो, लेकिन इन लक्षणों के साथ-साथ रोगी को अधिक घबराहट, बेचैनी तथा रोगी के शरीर में रक्त की अधिकता, खुश्की तथा ठण्डी हवा से रोग के लक्षणों में वृद्धि हो तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :-

* खुश्क ठण्डी हवा लगने से खूनी पेचिश हो गया हो तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभकारी है।

* शारीरिक परिश्रम करने के बाद बर्फ का पानी पीने से पेट में जलन हो रही हो, मुंह से पेट तक जलन हो रही हो, दर्द ऐसा महसूस हो रहा हो जैसे कि पेट का कोई भाग कट गया हो तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है।

* उल्टी तथा पेशाब करने में अधिक परेशानी हो रही हो तो रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है लेकिन रोगी को इन लक्षणों के साथ डर तथा बेचैनी भी होना चाहिए।

* बच्चे को पानी के समान पतला दस्त हो रहा हो तथा डर और बेचैनी हो रही हो तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

* बुखार के साथ अचानक तेज ऐंठन हो रही हो, आंव, दस्त में खून आ रहा हो, घास के रंग का हरा दस्त आए तो इस प्रकार के लक्षण होने पर ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग बहुत लाभकारी है।


मलान्त्र से सम्बन्धित लक्षण :- मलद्वार में दर्द होने के साथ रात को खुजली और सुई चुभोने जैसा दर्द होना, बार-बार थोड़ा-थोड़ा मलत्याग होना तथा मल का रंग हरा, कूटी हुई वनस्पति जैसे टुकड़ों में होना, पेशाब का रंग लाल होना, हैजा जैसी अवस्था हो जाना तथा उसके साथ रोगी को बहुत अधिक बेचैनी, घबराहट तथा भय होना। खूनी बवासीर। बच्चों को पानी की तरह दस्त होना तथा इसके साथ बच्चों का अधिक रोना तथा चिल्लाना, नींद न आना और बेचैनी होना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- उल्टी आना तथा इसके साथ-साथ भय होना, अधिक गर्मी लगना तथा अधिक पसीना निकलना, पेशाब बार-बार आना, ठण्डे पानी की प्यास लगना, पानी के अलावा हर चीज का स्वाद कड़वा लगना। अधिक प्यास लगना। पानी पीते ही उल्टी आना तथा रोगी यह कहता हो कि अब मैं मर जाऊंगा। पित्त का रंग हरा तथा श्लैष्मिक और रक्त युक्त हो जाना। आमाशय पर अधिक दबाव महसूस होने के साथ सांस लेने में कष्ट होना। खून की उल्टी होना। आमाशय से ग्रासनली (भोजननली) तक जलन होना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पुरुष से सम्बन्धित लक्षण :-

* रक्त प्रधान (खून की अधिकता वाले पुरुष) पुरुषों को अचानक ठण्ड लगने से उनके अण्डकोष में वृद्धि तथा उसमें दर्द और सूजन हो तो ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

* लिंगमुंड पर चींटियों के रेगनें जैसा अहसास हो रहा हो तथा डंक लगने जैसी अनुभूति हो रही हो अण्डकोष में कुचले जाने जैसा दर्द तथा कठोरपन महसूस हो रहा हो, कुछ समय के लिए लिंग में उत्तेजना होकर वीर्यपात हो जाना तथा लिंग में दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।


हृदय से सम्बन्धित लक्षण :- हृदय में रोग होने के साथ बायें कंधे में दर्द होना। छाती में सुई चुभने जैसा दर्द होना। धड़कन की गति तेज होने के साथ बेहोशी होने की समस्या होना, उंगलियों में सुरसुराहट तथा नाड़ी तेज चलना, नाड़ी तेज, कठोर, तनी और उछलती हुई महसूस होना। नाड़ी कभी-कभी रुक-रुककर चलती हुई महसूस होता हो। रोगी जब बैठता है तब उसकी कनपटियों और गले की नाड़ियों को महसूस किया जा सकता हो। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में है तो उसका उपचार करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के पीठ में सुन्नपन होना तथा पीठ में अकड़न तथा दर्द महसूस होना। पीठ में कुचलन (कुचलने जैसा दर्द) तथा रसकन (क्राउलिंग) और सरसराहट महसूस होना। गर्दन के पिछले भाग में अकड़न तथा स्कन्ध-फलकों के बीच दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि लाभदायक है।

रक्तस्राव से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के किसी भी भाग से रक्त का स्राव (खून का बहना) हो रहा हो तो ऐसी स्थिति में ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए क्योंकि इसके उपयोग से रक्त का स्राव होना बंद हो जाता है और इसलिए इस अवस्था में यह बहुत उपयोगी है।

श्वास-संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :-

* न्यूमोनिया की शुरुआती अवस्था में पसीने निकलने के साथ तेज बुखार हो, कष्टदायक सूखी खांसी में और तेज नब्ज और भरी हुई रहने पर ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि लाभकारी है।

* न्यूमोनिया का असर रोगी के चेहरे से पता चलता हो, रोगी यह कहता हो कि मेरी मृत्यु हो जायेगी, मै कुछ ही समय में मर जाऊंगा और रोगी को मृत्यु का भय और बेचैनी रहती है। रोगी के छाती में सुई सी चुभन होती है और तेज दर्द होता है, रोगी को पीठ के बल लेटने के अलावा किसी और तरह से लेट न पा रहा हो। रोगी जरा ऊंचा होकर पीठ के बल लेटना पसन्द करता हो। जरा से खांसने से कफ के साथ खून निकलने लगता हो, क्षय (टी.बी.) रोग न होने पर भी अपने आप खून की उल्टी हो रही हो और खून का रंग बिल्कुल लाल हो तो इस प्रकार के लक्षण से पीड़ित रोगी के रोग का उपचार करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए, इसके उपयोग से रोगी को बहुत लाभ मिलता है।


नाक से सम्बन्धित लक्षण :- गंध के प्रति भारी संवेदनशीलता (गंध का अधिक अनुभव होना), नासिकामूल पर दर्द। नजला होने के साथ अधिक छींके आती हों। नथुनों में जलन तथा दर्द हो। नाक से चमकदार लाल खून निकल रहा हो। श्लैष्मिक झिल्ली सूखी हुई, नाक बंद, सूखा या हल्का बह रहा हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- बुखार किसी न किसी कारण से हुआ हो जैसे कि ठण्डी हवा लग जाना, पसीना दब जाने का बुरा प्रभाव और परिश्रम करने के बाद ही भीग जाना या नहाने से तथा इस बुखार के साथ यदि रोगी को भय, डर तथा मृत्यु का भय लग रहा हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

ठण्ड से सम्बन्धित लक्षण :- ठण्ड हाथ-पैरों से आरम्भ होकर छाती और सिर की तरफ चढ़ता है, एक गाल में सूखापन तथा गर्मी महसूस हो रही हो, दूसरा गाल ठण्डा पीला हो गया हो जरा भी हिलने या रजाई से हटने से ठण्ड अधिक तेज महसूस हो रहा हो तथा डर और भय और बेचैनी हो रही हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

ताप (गर्मी) से सम्बन्धित लक्षण :-

त्वचा बिल्कुल खुश्क और गर्म हो गया हो, चेहरा पर सूखापन और प्यास अधिक मालूम होती है और रोगी एक ही बार बहुत ज्यादा और ठण्डा पानी पी लेता है, रोगी को बेचैनी और घबराहट होती है। रोगी परेशानी के कारण बार-बार करवटें बदलता रहता है, एक स्थान पर वह नहीं रह सकता हो। शाम के समय में तथा नींद न आने पर लक्षणों में और वृद्धि हो, बुखार बहुत देर तक रहता हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के कई अंगों में सुन्नपन, सुरसुराहट, तेज दर्द महसूस होना, हाथ-पैरों में बर्फ जैसी ठण्ड महसूस होना और असंवेदनशीलता महसूस हो रही हो। बाहों में कुचलने जैसा दर्द, भारीपन और सुन्नपन महसूस होना। बायें बाजू में नीचे की तरफ दर्द होना। हाथ गर्म तथा पैर ठण्डे होना। हडि्डयों के जोड़ों में आमवाती जलन होना, रात के समय में इन जोड़ों में तेज दर्द होना, हडि्डयों के जोड़ों पर लाल चमकदार सूजन होना। हड्डी के जोड़ ढीले पड़ना तथा कमजोर होना, जोड़ में दर्द तथा कड़कड़ाहट होना। रोगी को ऐसा महसूस हो रहा हो कि नीचे की जांघ पर पानी की बूंदें टपक रही हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को नींद में डरावने सपने आते हों, बेचैनी हो रही हो। अनिन्द्रा के साथ बेचैनी और करवटें बदलते रहना। सोते-सोते अचानक चौंक पड़ना, सपने आने के साथ छाती पर दबाव महसूस करना। वृद्धों में अनिन्द्रा रोग। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सावधानी :-

ज्वर के शुरुआती अवस्था में ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि नहीं देना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। जब तक रोगी को बुखार की अवस्था में उसे मृत्यु का डर न लग रहा हो, घबराहट न हो रही हो, बेचैनी, रोग का लक्षण तेज न हो और रोग अचानक न हो और तेज न हो तब तक ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि रोगी को नहीं देना चाहिए।

सम्बंध :-

रोग की नई अवस्था (एक्युट स्टेट) में ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि उपयोगी है जबकि पुरानी रोग की अवस्था में (क्रोनिक स्टेट) में सल्फर औषधि उपयोगी है।

अम्ल पदार्थ, शराब और कॉफी, खट्टे फल तथा नींबू का शर्बत ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि की क्रिया को और अधिक प्रभावी करते हैं।

शमन (एमेलिओरेशन) :-

खुली हवा में टहलने से, गरम कमरे में रहने, शाम तथा रात को, धूम्रपान करने से, पीड़ित अंग का सहारा लेकर लेटने से, संगीत से, शुष्क तथा ठण्डी वायु इस औषधि के लक्षणों में कमी होती है।

मात्रा (डोज) :-

ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि की मात्रा ज्ञानेन्द्रियों के रोगों के लिए छठी शक्ति, रक्तसंकुचन अवस्थाओं के लिए पहली व तीसरी शक्ति उपयोगी है। ऐकोनाइटम नैपेल्लस औषधि तीव्र (तेज) क्रिया करने वाली औषधि है।


ऐक्टिया स्पाइकेटा (Actaea Spicata)


परिचय-

छोटे-छोटे जोड़ों के दर्द को ठीक करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग लाभकारी होता है। कलाई के दर्द, अंगुलियों के जोड़ों में सूजन, दर्द, स्पर्श करने में असहनीय दर्द होना, सुरसुराहट होने के साथ दर्द होना और रात के समय में इस दर्द में और तेजी होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग अधिक लाभदायक होता है।

आमवात के रोग को ठीक करने में ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि बहुत लाभदायक है। कलाई का दर्द, पूरे शरीर में जलन के साथ दर्द तथा जिगर और गुर्दे के भाग में अधिक दर्द महसूस होना, हृदय की ओर रक्त को ले जाने वाली नाड़ियों में रुकावट, छूने तथा चलने-फिरने में दर्द का अधिक बढ़ जाना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग लाभकारी है।

ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- 

* रोगी अधिक डरपोक स्वभाव का हो जाता है, किसी बात पर जल्दी चौंक पड़ता है और भ्रम में उलझा रहता है, कॉफी पीने से सिर की ओर खून का दौरा अधिक तेज हो जाता हो, चक्कर अधिक आते हों, सिर में इस प्रकार का दर्द होता है जैसे कि सिर फड़फड़ा रहा है तथा खुली हवा में जाने पर दर्द से कुछ राहत मिल जाती हो। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में हैं तो उसका उपचार करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

* सिर में दर्द तथा दर्द का प्रभाव माथे से चलकर कपाल तक हो, माथे पर अधिक गर्मी लग रही हो, सिर के बाएं भाग में अधिक तेज दर्द हो रहा हो और दर्द ऐसा महसूस हो रहा हो जैसे कि वहां की हड्डी कुचल गई हो। खोपड़ी की चमड़ी में खुजली और गर्मी महसूस हो रही हो तथा नाक का ऊपरी भाग लाल हो गया हो और जुकाम हो गया हो, इस प्रकार के लक्षण को दूर करने के ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि उपयोग करना चाहिए।


आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- पाचन संस्थान में इस प्रकार का दर्द होना जैसे कि किसी ने वहां के भाग को फाड़ दिया हो तथा उसमें भाला गाड़ दिया हो तथा इसके साथ ही उल्टी हो रही हो। आमाशय तथा पाचन संस्थान में ऐंठन जैसा दर्द हो रहा हो तथा साथ ही सांस लेने में परेशानी और घुटन महसूस हो रही हो। खाना खाने के बाद सुस्ती आ रही हो। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में देखने को मिल रहा हो तो उसका उपचार करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- ऊपर के जबड़े में तेज दर्द हो रहा हो तथा दर्द का असर दान्तों से शुरू होकर चेहरे की हडि्डयों (मलर बोंस) तथा कनपटियों तक फैल जाता है और चेहरे और सिर पर पसीना अधिक आ रहा हो तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग लाभदायक है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- पेट में दर्द के साथ खिंचाव हो रहा हो और ऐसा महसूस हो रहा हो कि पेट में कोई नोकदार चीज चुभ गई है और पेट फुल रहा हो। इस प्रकार के लक्षण से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रात के समय में सोने पर अनियमित तथा उखड़ा हुआ सांस लेने पर मजबूर होना, अधिक घुटन महसूस हो रही हो, ठण्डी हवा लगने पर दम घुट रहा हो तो इस प्रकार के लक्षण को दूर करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- कूल्हों में तेज दर्द होना, हडि्डयों के छोटे जोड़ों में दर्द होना तथा कलाई में दर्द होना, हाथ की उंगलियों में दर्द होना, टखनों में दर्द होना, पैर के अंगूठों में आमवाती रोग जैसा दर्द होना, हल्की सी थकान होने पर जोड़ों में सूजन तथा कलाई में सूजन होना, किसी भी प्रकार के कार्य को करने से सूजन आ जाती है तथा सूजन वाले भाग लाल पड़ जाते हैं। हाथों में लकवा जैसी स्थिति उत्पन्न होना। बाजुओं में अकड़न महसूस होना, घुटनों में दर्द होना। खाने तथा बातचीत करने या कुछ खाने के बाद आलस्य आना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

सम्बन्ध :- 

ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि की तुलना कई प्रकार के औषधियों जो इस प्रकार हैं-कालो, ऐकोन, कौलेफाइलम, सिमिसीफूगा और लिडम के साथ कर सकते हैं।

मात्रा :- 

ऐक्टिया स्पाइकेटा औषधि की तीसरी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


एक्टिया रेसेमोसा-सीमीसिफ्यूगा (Actaea Racemosa Cimicifuga)


परिचय-

स्नायु की धड़कन अनियमित होना, ऐंठन होना, अकड़न होना, बेहोशी होना, स्नायु में दर्द होना, बिना कंपकंपी के साथ ठण्ड लगना और स्त्रियों के मासिकधर्म के समय में ये सभी लक्षण अधिक दिखाई पड़ते हैं। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

रोगी के पेशियों में आमवात की शिकायत हो, गर्दन में अकड़न हो, सिर के पीछे अधिक खिंचाव हो रहा हो तथा रोगी अपना मस्तिष्क दर्द और अकड़न के कारण घुमा न पा रहा हो, आमवात रोग में पेशी के ऊपरी भाग में दर्द हो रहा हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी ठीक करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि उपयोगी है।

स्त्रियों के कई अंगों पर एक्टिया रेसेमोसा औषधि का प्रभाव बहुत अधिक होता है तथा कई प्रकार के रोग जो स्त्री रोग से संम्बन्धित होते हैं वह इस औषधि के प्रभाव से ठीक हो जाता है।

स्त्रियों के गर्भाशय की ऊपरी झिल्ली में जब दर्द का असर एक भाग से दूसरे भाग में होता है तो उस रोग को ठीक करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है।

स्त्रियों के गर्भाशय में रोग होने के साथ अक्सर शरीर में अनेक स्थानों पर सुई की चुभन जैसा दर्द होने पर एक्टिया रेसेमोसा औषधि से उपचार करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप स्त्रियों को इस प्रकार के लक्षणों के रोग ठीक हो जाते हैं।

अपने आप को घायल करने का प्रयास करना, एक बात करते-करते दूसरी बात करने लगना, रोने जैसे स्वभाव हो जाना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाने जैसा भ्रम की अनुभूति होना, सिर ढका-ढका सा लगना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

रोगी को ऐसा महसूस हो रहा हो कि जैसे सिर फटकर बाहर आ जाएगा, खोपड़ी खुल जाएगी, सिर उड़ जाएगा, आंखें बाहर आ जाएंगी तथा गर्दन के पीछे रीढ़ की हड्डी उतर जायेगी आदि भ्रम की स्थिति में एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

नाचने-कूदने या अधिक परिश्रम करने के बाद मांसपेशियों में तेज दर्द हो रहा हो, या किसी अन्य प्रकार के कठोर कार्य करने के बाद मांसपेशियों में तेज दर्द हो रहा हो तो इस प्रकार के लक्षण को दूर करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

एक्टिया रेसेमोसा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :-सिर में दर्द होने के साथ ही रोगी को ऐसा महसूस हो रहा हो कि सिर में बाहर की ओर दबाव पड़ रहा है तथा ऊपर की ओर खिंचाव हो रहा है अर्थात रोगी को ऐसा महसूस हो रहा है कि मानो मस्तिष्क के ऊपरी भाग पर तेज दर्द होने के कारण खोपड़ी उड़ जाएगी। यह दर्द इतना तेज होता है कि दर्द का असर आंखों तक होता है तथा इसके बाद दर्द का असर मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) को प्रभावित करता है। रोगी को नींद नहीं आती है तथा वह दु:ख और चिन्ता में डूब जाता है। रोगी को कभी-कभी ऐसा लगता है कि दर्द के कारण वह पागल हो जाएगा। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्त्रियों के मासिकधर्म से सम्बन्धित लक्षण :-स्त्रियों को मासिकधर्म के समय में अधिक स्राव (योनि से खून अधिक निकलना) होने पर तथा इसके साथ-साथ कमर तथा कूल्हों में दर्द हो रहा हो और दर्द का प्रभाव जांघों से नीचे की ओर होता हुआ महसूस हो रहा हो तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

वय:सन्धि काल (यौवन अवस्था) के समय स्त्रियों के स्तन में लगातर दर्द हो रहा हो तथा मासिकधर्म और रजोनिवृति (मासिकधर्म बन्द हो जाने का समय) के समय इस प्रकार के लक्षण अधिक हो तो रोगी का उपचार एक्टिया रेसेमोसा औषधि से किया जा सकता है।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :-

* स्त्रियों को ठण्ड का अनुभव न होने पर भी कंपकंपी होना, बेहोशी होना, अंसगत बातें करना, शोक में डूब जाना, अधिक परेशानी महसूस करना, लम्बी सांसें भरना, उदास रहना तथा अनिद्रा होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री कभी-कभी यह सोचती है कि कहीं वह पागल तो नहीं हो जाएगी। इस प्रकार के लक्षण यदि किसी स्त्री में है तो उसके रोग का उपचार एक्टिया रेसेमोसा औषधि से हो सकता है।

* हिस्टीरिया रोग के लक्षण यदि स्त्रियों में अधिक देखने को मिलता है तो उसका उपचार भी एक्टिया रेसेमोसा औषधि से हो सकता है।


गठिया रोग से सम्बन्धित लक्षण :-गठिया रोग का सबसे अधिक प्रभाव पेशी के मध्य भाग पर अर्थात पेट पर होता है, इस अवस्था के रोगी का उपचार करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए, इससे रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। कई प्रकार के स्नायुविक रोगों को ठीक करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि लाभकारी है।

गर्भकाल से सम्बन्धित लक्षण :-स्त्रियों को गर्भकाल के समय में अनिद्रा और उबकाई की समस्या होना, बच्चें को जन्म देने के समय में जैसा दर्द होता है उस प्रकार का दर्द होना, पेट में तेज दर्द होना, तीसरे महीने में गर्भपात हो जाना, इन लक्षणों से पीड़ित स्त्री का उपचार करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

प्रसव (बच्चे को जन्म देना) से सम्बन्धित लक्षण :-बच्चे को जन्म देने के बाद आंखों में तेज दर्द होना, बच्चे को जन्म देने के प्रारिम्भक स्थिति में कंपकंपी अधिक होना, बेहोशी होना जिसके कारण स्नायुविक उत्तेजना (नाड़ियों की उत्तेजना) बढ़ जाना। गर्भाशय मुख कड़ा पड़ जाना, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री को तेज दर्द होता है तथा पेट में खिंचन तथा ऐंठन जरा सी आवाज से और भी तेज हो जाती है, इन लक्षणों के होने पर उपचार करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

प्रसव के समय नींद से सम्बन्धित लक्षण :-बच्चे को जन्म देने के समय में दर्द के कारण स्त्री को नींद नहीं आती, इधर-उधर छटपटाती है, यदि जरा सी नींद आ भी जाती है तो डरावने सपने देखने लगती है, नींद के बाद ताजगी कभी नहीं मिलती है इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री अपने को हल्का महसूस नहीं करती है। इस प्रकार के लक्षण यदि स्त्रियों को बच्चे जन्म देने के समय में हो तो उसका उपचार करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

खांसी से सम्बन्धित लक्षण :-स्त्रियों को सूखी खांसी हो रही हो, वह जब भी बोलने या बात करने का प्रयास करती है तो उसकी खांसी और बढ़ जाती हो, इस प्रकार के लक्षण यदि स्त्रियों में हो तो उसका उपचार करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग लाभदायक है।

गले से सम्बन्धित लक्षण :-गले के आस-पास और रीढ़ पर दबाव के कारण उबकाइयां होने के साथ-साथ उल्टियां हो रही हो तथा गले के अन्दर कुछ गड़ने जैसा दर्द महसूस हो रहा हो तो इन लक्षणों को दूर करने के लिए एक्टिया रेसेमोसा औषधि का उपयोग लाभकारी है।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

मासिकधर्म के समय में तथा वय:संधिकाल (यौवन अवस्था) के समय में जितना अधिक रक्तस्राव होता है उतना ही अधिक कष्ट होता है, ठण्ड से, सीलन से, सीलन भरी हवा से, सिलाई करने से शराब का सेवन करने से परेशानी और बढ़ जाती है, अत: इस प्रकार की अवस्था में एक्टिया रेसेमोसा औषधि का अधिक असर नहीं होता है इसलिए इन अवस्था में इस औषधिक का अधिक उपयोग करने की अवश्यकता पड़ सकती है।

शमन (एमेलिओरेशन-ह्रास) :-

खुली हवा में रहने, लगातार धीरे-धीरे चलने, रोग को दबाने तथा गर्म कपड़े ओढ़ने से रोग के कुछ लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :- 

कैलोफायलम तथा पल्स औषधियों के कुछ गुणों की तुलना एक्टिया रेसेमोसा औषधि कर सकते हैं।


अचिरैंथेस आस्पेरा (Achyranthes Aspera)


अचिरैंथेस आस्पेरा औषधि का उपयोग कई प्रकार के लक्षणों जैसे- मूत्रल (पेशाब अधिक होना), दस्त, संकोचक (अस्ट्रीजेंट), पेचिश, कष्ट के साथ माहवारी आना तथा कुत्ते और सांप के काटने पर उसके जहर का प्रभाव कम करने के लिए इसका उपयोग लाभकारी है।

अचिरैंथेस आस्पेरा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण:- 

नासूर, फोड़े, सूजन, जहरीले घाव, त्वचा पर लाल धब्बा होने, पूरे शरीर पर जलन के साथ दर्द होने पर इस अचिरैंथेस आस्पेरा औशधि का उपयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण:- 

अतिसार, हैजा रोग, पानी की तरह मल होना, पीला तथा अधिक मात्रा में श्लैष्मिक पपड़ियों के साथ मल होना, अधिक प्यास लगना, आमाशय में दर्द होना, मिचली और उल्टी होना। इन लक्षणों से पीडि़त रोगी के रोग को ठीक करने के लिए अचिरैंथेस आस्पेरा औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

नाड़ी से सम्बन्धित लक्षण:- 

सूत्रवात नाड़ी (थ्रीडी पल्स)-नाड़ी का तेज या कम चलना, इस प्रकार के लक्षण को ठीक करने के लिए अचिरैंथेस आस्पेरा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मात्रा:-

अचिरैंथेस आस्पेरा औशधि की मूलार्क, 3, 6 शक्तियां का प्रयोग करना चाहिए।


ऐसेटिक ऐसिड (Acetic Acid)


परिचय- 

ऐसेटिक ऐसिड औषधि शरीर में अधिक खून की कमी होने (रक्ताल्पता) पर बहुत उपयोगी है। अधिक कमजोरी होना, बार-बार बेहोशी होना, सांस लेने में कमजोरी महसूस होना, अधिक पेशाब आना, पसीना अधिक निकलना, शरीर के किसी भाग से रक्त का स्राव होना और शरीर का रंग पीला पड़ जाना, शरीर में अधिक कमजोरी होने के साथ पेशियां ढीली व थुलथुली हो गई हो तथा शरीर में अधिक कमजोरी आ गई हो तो इन लक्षणों से पीड़ित रोगी का इलाज करने के लिए यह बहुत उपयोगी है।

त्वचा के ऊपरी परतों में कैंसर रोग होना, शरीर के अन्दरूनी तथा बाहरी दोनों ही प्रकार के कैंसर रोग को ठीक करने में ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग लाभकारी है।

स्त्री रोग होने के साथ-साथ जोड़ों में दर्द होना तथा गांठ बनने और पेट में वायु बनने पर इस औषधि का उपयोग लाभकारी है।

ऐसेटिक ऐसिड औषधि के 1x घोल का उपयोग करने से सख्त फोड़े नर्म पड़ जाते हैं तथा उनमें पीव पैदा हो जाती है, जिसके बाद फोड़ों को फोड़कर पीब निकाल देने से फोड़ा ठीक होने लगता है।

अधिक मात्रा में पेशाब आ रहा हो, पुराना दस्त रोग हो गया हो, क्षय (टी.वी.) होने के साथ-साथ जलन हो रही हो और अधिक तेज प्यास लग रही हो तथा किसी भी तरल पदार्थ के पीने पर भी प्यास नहीं बुझ रही हो लेकिन बुखार होने पर प्यास बिल्कुल भी नहीं लग रही हो। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है। इस औषधि का उपयोग करने के बाद ठण्डे पीने वाले पदार्थ का उपयोग नहीं करना चाहिए।

रोगी को मानसिक परेशानी अधिक हो तथा रोगी की शारीरिक स्थिति ढीली पड़ गई हो, रोगी की मानसिक स्थिति इतनी बिगड़ गई हो कि उसे तुरन्त की घटी हुई घटना याद न आ रही हो। रोगी अपने ही बच्चों की पहचान नहीं कर पाता है तथा रोगी को अशुभ चिन्ता अधिक होने लगती है। रोगी का स्वभाव अधिक चिड़चिड़ा हो जाता है तथा हर समय व्यवसाय के बारे में चिन्तित रहता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

अधिक पुराने टी. बी. रोग में खांसी होना, हाथ पैरों में सूजन होना लेकिन सूजन होने की शुरुआत पैरों से होती है, दस्त हो गया हो और सांस लेने में परेशानी हो रही हो, टी.बी. रोग के साथ बुखार हो गया हो, रात के समय में शरीर से पसीना अधिक निकल रहा हो, फेफड़े से खून बह रहा हो, छाती और पेट में जलन हो रही हो तथा छाती में घड़घड़ाहट हो रही हो तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि लाभकारी है।

चोट लगने पर, ऑपरेशन कराने के बाद और क्लोरोफार्म रोग होने के बाद ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग लाभकारी होता है। पागल कुत्ते और बिल्ली के काटने पर उसके जहर को दूर करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग लाभदायक होता है, इसके उपयोग से इनके जहर जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं।

ऐसेटिक ऐसिड औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :-नशीली चीजों का सेवन करने के कारण होने वाला सिर में दर्द या सिर में चक्कर आने के साथ सिर की ओर रक्त का प्रवाह अधिक लग रहा हो, कनपटियों की नाड़ियां तनी हुई रहती हैं, जीभ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक दर्द महसूस हो रहा हो तो ऐसे लक्षणों के रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि उपयोग लाभकारी है।

मन से सम्बन्धित लक्षण :-रोगी का स्वभाव चिड़चिड़ा हो, व्यवसाय के कार्यों को करने में अधिक चिन्तित मन होने के कारण उत्पन्न रोग की अवस्था को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग लाभदायक है।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :-

* चेहरे का रंग पीला होना तथा मोम जैसा हो जाना, एक गाल का रंग फीका और दूसरे का लाल होना, आंखें अन्दर की ओर धंसी हुई लग रही हो तथा आंखों के चारों ओर काले रंग के घेरे बन गये हो, चेहरे से पसीना अधिक निकल रहा हो।

* होठों का कैंसर रोग हो गया हो, गाल अधिक गर्म तथा तमतमाया सा लग रहा हो, बायें जबड़े के जोड़ पर दर्द हो रहा हो।


इस प्रकार चेहरे से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :-

* मुंह से अधिक लार निकल रहा हो, अधिक प्यास लग रही हो। आमाशय में खमीर बन रहा हो, ठण्डे पानी पीने से दर्द महसूस हो रहा हो, किसी भी प्रकार का भोजन करने पर उल्टी हो रही हो, पाचन संस्थान से सम्बन्धित अंग में हल्का-हल्का दर्द महसूस हो रहा हो, रोगी को ऐसा महसूस हो रहा हो जैसे कि उसके पेट में कोई फोड़ा हो गया हो और उस फोड़े के कारण दर्द हो रहा है तथा जलन हो रही हो।

* आमाशय में कैंसर होने के साथ-साथ खट्टी डकारें आ रही हो तथा उल्टी भी आ रही हो, मुंह के अन्दर जलनकारी लार आ रहा हो।

* शरीर में हायड्रोक्लोरिक अम्ल की अधिकता हो जाना तथा पाचनतंत्र में दर्द होना।

* आमाशय और छाती में तेज जलन होना तथा साथ में दर्द होना, इसके बाद त्वचा में ठण्ड महसूस होना और माथे पर से ठण्डा पसीना निकलना।


इस प्रकार के आमाशय से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि उपयोग लाभकारी है जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :-

* रोगी को ऐसा महसूस हो रहा हो कि उसका पेट अन्दर की ओर धंसता जा रहा है, बार-बार पानी की तरह दस्त हो रहा हो, सुबह के समय में इस प्रकार के दस्त का प्रभाव तेज होता है।

* जलोदर रोग होना तथा इस रोग के साथ ही आंतों से रक्त का स्राव होना।


इस प्रकार के पेट से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मूत्र (पेशाब) से सम्बन्धित लक्षण :-

पेशाब अधिक मात्रा में हो रहा हो और मधुमेह रोग होने के साथ शरीर में अधिक कमजोरी आ गई हो तो रोगी के रोग का उपचार करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण :-

* मासिकधर्म के समय में अधिक रक्त का स्राव होना।

* प्रसव (बच्चे को जन्म देना) के बाद रक्तस्राव होना।

* गर्भकाल के समय जी मिचलाने के साथ-साथ स्तन का भाग अधिक बढ़ गया हो तथा उसमें दर्द हो रहा हो और स्तन में दूध बहुत अधिक भर गया हो, स्तन का दूध नीले रंग का हो गया हो तथा दूषित हो गया हो इसके साथ ही दूध पारदर्शी और खट्टा हो गया हो।

* स्तनपान के समय में दूध पिलाने वाली स्त्रियों के शरीर में खून की कमी हो गई हो।


इस प्रकार के स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी स्त्री को है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग लाभदायक है।

गर्भावस्था के समय से सम्बन्धित लक्षण :-

* गर्भावस्था के समय में योनि से अधिक खून निकल रहा हो तो ऐसेटिक ऐसिड औषधि के घोल में रुई को भिगोकर योनि में जहां तक हो सके अन्दर तक रखने से रक्त का निकलना रुक जाता है। ऐसेटिक ऐसिड औषधि के घोल का एक भाग तथा पानी का नौ भाग मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।

* गर्भावस्था में दिन रात मुंह से पानी का आना, खट्टी डकारें और उल्टी होना आदि इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी स्त्री में है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग लाभदायक होता है।


पीठ से सम्बन्धित लक्षण :-

कमर में दर्द हो रहा हो तथा पेट के बल लेटने से दर्द कम हो रहा हो तो ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

रक्तस्राव से सम्बन्धित लक्षण :-शरीर के कई भागों के निकास मार्ग जैसे-नाक, गला, फेफड़ा, पेट, मलद्वार, गर्भाशय, जरायु (गर्भाशय के ऊपरी झिल्ली) आदि से खून निकल रहा हो, चोट लगकर नाक से खून निकल रहा हो तो इन लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि उपयोग करना चाहिए।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :-

* सांस लेने पर सांय-सांय की आवाज तथा घरघराहट हो रही हो, सांस लेने में परेशानी हो रही हो और सांस लेते समय खांसी हो रही हो।

* सुखी खांसी से झिल्लीदार नालियों में उत्तेजना हो रही हो, श्वास-प्रणाली तथा श्वास नलियों के अन्दर उत्तेजना हो रही हो, गले के अन्दर कुछ फंसा-फंसा सा लग रहा हो, श्वास-नलियों से अधिक स्राव हो रहा हो तथा इसके साथ गले में जलन होना।


इस प्रकार के श्वसन संस्थान से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग लाभदायक है जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :-शरीर का कोई अंग नष्ट होना तथा पैरों और टांगों में दर्द होना। यदि ये लक्षण रोगी में है तो उसका उपचार करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :-

त्वचा का रंग पीला पड़ जाना, त्वचा मोम जैसी मुलायम लग रही हो, त्वचा में जलन हो रही हो, गर्मी महसूस होना तथा त्वचा से अधिक मात्रा में पसीना निकलना तथा किसी जहरीले कीड़े का डंक लग जाना, शिराओं में सूजन होना, इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि उपयोगी है।

बुखार से सम्बन्धित लक्षण :-रोगी को बुखार के साथ रात के समय में पसीना अधिक निकल रहा हो, बायां गाल लाल पड़ गया हो तथा गाल पर दाग पड़ गया हो, बुखार होने के साथ में रोगी को प्यास नहीं लग रही हो, पसीना अधिक मात्रा में ठण्डा आ रहा हो तो इन लक्षणों को दूर करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

ऐसेटिक ऐसिड औषधि का सम्बन्ध :-

* ऐसेटिक ऐसिड औषधि कई प्रकार के दवाओं के बुरे प्रभावों को दूर करती है।

* डिब्बाबंद व मसालेदार मांस के जहरीले प्रभावों को नष्ट कर देती है।

* क्लोरोफार्म, गैस के धुएं तथा कोयला, अफीम और धतूरे के दुष्प्रभावों को ऐसेटिक ऐसिड औषधि दूर करती है।

* साइडर सिरका अर्थात सेब का सिरका, कार्बोलिक ऐसिड के गलत प्रभावों को ऐसेटिक ऐसिड औषधि नष्ट कर देती है।


ऐसेटिक ऐसिड औषधि का अन्य औषधियों से तुलना :-

अगर किसी रोगी को पेशाब में शर्करा की अधिकता हो तथा इसके साथ-साथ रोगी को पसीने अधिक आ रहा हो तो उसे एमोनि एसिटेट देते है। इस प्रकार के लक्षण में रोगी को एमोनि एसिटेट के अलावा ऐसेटिक ऐसिड औषधि भी दे सकते हैं जिससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। अत: एमोनि एसिटेट के कुछ गुणों की तुलना ऐसेटिक ऐसिड औषधि से कर सकते हैं।

रात को पसीना अधिक निकलने पर बेजोइन ओडेरी फेरम-स्पाइडस-वुड औषधि देते हैं, लेकिन इसके जगह पर ऐसेटिक ऐसिड औषधि का भी प्रयोग किया जा सकता है। अत: बेजोइन ओडेरी फेरम-स्पाइडस-वुड औषधि के कुछ गुणों की तुलना ऐसेटिक ऐसिड औषधि से कर सकते हैं।

हृदय और वृक्क के रोगों के साथ पेट में जल भर गया हो और बहुत अधिक पुराना दस्त हो गया हो तो ऐसे रोगों को ठीक करने के लिए आर्से, चायना, डिजिटैलिस लिएट्रिस का उपयोग किया जाता है लेकिन इसके अलावा ऐसेटिक ऐसिड औषधि का भी प्रयोग इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी पर कर सकते हैं। इसलिए एमोनि एसिटेट, बेजोइन ओडेरी फेरम-स्पाइस-वुड, आर्से , चायना, डिजिटैलिस औषधियों के कुछ गुणों की तुलना ऐसेटिक ऐसिड औषधि से कर सकते हैं।

छोटे बच्चों के क्षय रोग (टी.बी.) रोग तथा सूखे रोग और कई प्रकार के क्षय रोगों को ठीक करने के लिए ऐसेटिक ऐसिड औषधि का उपयोग बहुत अधिक लाभदायक है। इस प्रकार के रोगों को अन्य औषधियों जैसे- ऐब्रो, आयोड, सैनी, टयूबर ठीक कर सकते हैं इसलिए इन रोगों के लक्षणों को ठीक करने में इन औषधियों के साथ ऐसेटिक ऐसिड औषधि की तुलना की जा सकती है।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

चित लेटने से, आराम करने या ठण्ड लगने से रोग लक्षणों में वृद्धि होती है।

ह्रास (एमेलिओरेशन) :-

पेट के बल लेटने पर रोग के कुछ लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

मात्रा (डोज) :-

ऐसेटिक ऐसिड औषधि की तीसरी से तीसवी शक्ति का प्रयोग रोगों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। काली खांसी में ऐसेटिक ऐसिड औषधि को बार-बार दे सकते हैं बाकि अन्य रोगों के लक्षणों में इसे बार-बार नहीं देना चाहिए।


असेटैनिलियडम- ऐन्टीफेब्रीनम (Acetanilidum - Antefebrinum)


परिचय-

असेटैनिलियडम औषधि हृदय और श्वास क्रिया को तथा रक्तदाब को बढ़ने से रोकती है और तापमान को नीचे गिरा देती है। नील रोग और निपात रोग (कोलेप्स) रोग को ठीक करने में इस औषधि का उपयोग लाभकारी है। ठण्ड के प्रति बढ़ी हुई सुग्राह्मता (ससपेटीबिलीटी) को यह ठीक कर सकता है। आंखों के अन्दरूनी भाग में पीलापन आ गया हो तो इस औषधि का उपयोग लाभकारी है।

असेटैनिलियडम औषधि निम्नलिखित लक्षणों में उपयोगी हैं- 

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- 

दृष्टि-मण्डल की पीलिमा (आंख का अन्दरूनी भाग पीला पड़ गया हो), दृष्टिक्षेत्र सिकुड़ा हुआ हो तथा आंख की पुतलियां अस्वाभाविक (असमान रूप) रूप से फैल गई हो तो ऐसे लक्षणों के रोगी को ठीक करने के लिए असेटैनिलियडम औषधि उपयोग लाभकारी है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को अपना सिर ऐसा महसूस हो रहा हो कि बहुत बड़ा हो गया है, बेहोशी पड़ने लगे तथा कुछ भी समझ में न आ रहा हो कि क्या करना है क्या नहीं। ऐसे लक्षणों के दूर करने के लिए असेटैनिलियडम औषधि का उपयोग लाभदायक है।

हृदय से सम्बन्धित लक्षण :- हृदय में कमजोरी आ गई हो, हृदय की नीली श्लैष्मिक झिल्लियां अनियमित हो गई हों तथा पैरों व टखनों में दर्द महसूस हो रहा हो, पेशाब में अन्न के समान पदार्थ आना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए असेटैनिलियडम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

असेटैनिलियडम औषधि का अन्य औषधियों से सम्बन्ध :- 

एण्टीपाइरिन औषधि से असेटैनिलियडम औषधि की तुलना की जा सकती है।

मात्रा (डोज) :-

असेटैनिलियडम औषधि का उपयोग एक से तीन ग्रेन तक सिर दर्द तथा स्नायुशूल (नाड़ियों में दर्द) और बुखार को ठीक करने के लिए किया जाता है। होम्योपैथिक उपयोग के लिए तीसरी शक्ति का प्रयोग करें।


एब्सिन्थियम- कॉमन वार्मवुड (Absinthium Common Warmwood)


परिचय- 

एब्सिन्थियम औषधि का असर मिर्गी के रोगी पर बहुत अधिक होता है तथा मिर्गी के रोगी के लिए यह औषधि लाभदायक है। जब रोगी को दौरा पड़ता है और स्नायुविक कंपन्न (नाड़ियों में कंपन्न) होती है। अचानक तेज चक्कर आना तथा रोगी के मन में भ्रम पैदा हो जाना तथा बेहोशी की स्थिति होने पर इस औषधि का उपयोग लाभदायक है। स्नायविक उत्तेजना और अनिद्रा की स्थिति में एब्सिन्थियम औषधि का उपयोग लाभदायक है। वात के कारण शिशु (छोटे बच्चे) में बैचेनी की स्थिति में इसका उपयोग लाभकारी है। कुकुरमुत्ता से होने वाली बीमारी को यह ठीक कर सकता है। शरीर में कंपन होना, स्नायु (नाड़ियों में दर्द) में दर्द, उत्तेजना होना और अनिद्रा की स्थिति में यह लाभदायक है।

एब्सिन्थियम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :-सिर के पीछे की ओर चक्कर आने के साथ-साथ पीछे गिरने जैसी स्थिति होना, बहुत अधिक भ्रम पैदा होना, सिर के नीचे तकिये रखने का मन कर रहा हो। आंखों की पुतलियां असमान रूप से फैली हों। चेहरा नीला पड़ गया हो, सिर के पिछले भाग में हल्का-हल्का दर्द महसूस हो रहा हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को एब्सिन्थियम औषधि दी जाती है।

मुख (मुंह) से सम्बन्धित लक्षण :-जबड़ों में जकड़न होना, जीभ को दांतों से काट लेना, जीभ लड़खड़ाती हो, जीभ ऐसा लग रहा हो कि वह फूलकर बहुत बड़ी हो गई हो और बाहर को फैली हुई हो। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में है तो उसे ठीक करने में एब्सिन्थियम औषधि लाभदायक है।

मन से सम्बन्धित लक्षण :-रोगी का मन भ्रमित हो, डरावनी चीजें दिखाई दे रही हो, चोरी करने का मन कर रहा हो, स्मरण शक्ति कमजोर हो गई हो। रोगी को कुछ भी पता न चल रहा हो जैसे कि अभी-अभी क्या हुआ था, क्या नहीं। किसी से भी किसी प्रकार का सम्बंध नहीं रखने का मन कर रहा हो तथा स्वभाव निर्दयी हो गया हो तो इस प्रकार के लक्षण से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए एब्सिन्थियम औषधि का उपयोग लाभकारी है।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- कंठ ऐसा महसूस हो रहा हो जैसे कि गर्म पानी से जल गया हो तथा कोई गोला लटक रहा हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए एब्सिन्थियम औषधि का उपयोग फायदेमंद है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी का जी मिचला रहा हो, उबकाई तथा डकारें आ रही हो। कमर तथा पेट के चारों तरफ सूजन महसूस हो रही हो तथा पेट में वायु बनने के कारण पेट फूला हुआ हो। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए एब्सिन्थियम औषधि लाभदायक है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बन्धित लक्षण :- पेशाब करने की बार-बार इच्छा हो रही हो, पेशाब से तेज गंध (बदबू) आ रही हो तथा पेशाब का रंग गहरा पीला हो तो एब्सिन्थियम औषधि का उपयोग लाभदायक है।

जनन प्रणाली से सम्बन्धित लक्षण :- दायें डिम्ब प्रदेश में भाला गड़ने जैसा दर्द महसूस हो रहा हो, वीर्यपात होने के साथ ही जननांग ढीला व कमजोर हो गया हो। स्त्रियों को समय से पहले ही रजोनिवृत्ति (मासिकधर्म का आना बन्द हो जाना) हो गई हो तो इस प्रकार के लक्षण को ठीक करने के लिए एब्सिन्थियम औषधि का उपयोग लाभकारी है।

स्तन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को ऐसा महसूस हो रहा हो कि उसके छाती पर कोई बोझ रखा हुआ है, हृदय की गति अनियमित हो गई हो, हृदय की क्रिया कंपनशील हो गई हो जो पीठ में सुनी जा सकती हो तो ऐसे लक्षणों को दूर करने के लिए एब्सिन्थियम औषधि का उपयोगी है।

शरीर का बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- हाथ-पैरों में दर्द हो रहा हो, लकवा रोग के लक्षण (पारलिटिक्स साइप्टोंस) दिखाई दे रहे हों तो इस प्रकार के रोग को ठीक करने के लिए एब्सिन्थियम औषधि उपयोग करना चाहिए।

एब्सिन्थियम औषधि का दूसरे औषधियों से सम्बन्ध :- आर्टीमिसिया, हाइड्रोसायनिक एसिड, सीना, सुरासार तथा सिक्यूटा से एब्सिन्थियम औषधि की तुलना कर सकते हैं।

मात्रा (डोज) :-

एब्सिन्थियम औषधि की प्रथम से छठी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


ऐकैलिफा इन्डिका (Acalypha Indica)


परिचय-

ऐकैलिफा इन्डिका औषधि का उपयोग फेफड़ों के रोगों को ठीक करने के लिए लाभकारी है। सुबह के समय में अचानक सूखी खांसी के साथ खून आना और शाम के समय में स्याही की तरह जमा हुआ खून आए तथा इन सब लक्षणों के होते हुए भी बुखार न हो, सुबह के समय में अधिक कमजोरी महसूस हो रही हो तथा दोपहर के समय में शरीर में शक्ति आ जाती हो तो ऐसे लक्षणों के रोगी को ठीक करने में इस औषधि का उपयोग बहुत लाभकारी है।

पोषण नली और श्वास संस्थान पर ऐकैलिफा इन्डिका औषधि का लाभकारी प्रभाव देखने को मिलता है।

ऐकैलिफा इन्डिका औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- तेज सूखी खांसी होने के बाद खूनी बलगम निकलना, सुबह के समय में खांसी के साथ साफ रक्त निकलना और शाम के समय में काले रंग का थक्केदार खून निकलना, रात के समय में खांसी और तेज हो जाना तथा छाती में तेज दर्द महसूस होना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकैलिफा इन्डिका औषधि का उपयोग लाभकारी है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के आंतों तथा आमाशय में जलन महसूस हो रही हो, रोगी को दस्त हो गया हो तथा मलत्याग करते समय पड़पड़ाहट की आवाज के साथ वायु निकल रही हो, पेट में मरोड़ के साथ दर्द हो रहा हो, मल के साथ रक्त निकल रहा हो जैसे लक्षण शाम के समय में अधिक दिखाई दे रहे हों तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए ऐकैलिफा इन्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

त्वचा रोग से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर का रंग पीला हो गया हो जैसे पीलिया रोग हो गया है, त्वचा में सूजन आ गई हो तथा त्वचा पर खुजली मच रही हो तो इस प्रकार के लक्षण को ठीक करने के लिए ऐकैलिफा इन्डिका औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

छाती से सम्बन्धित लक्षण :- सूखी खांसी हो तथा बहुत अधिक परेशान करने वाली खांसी हो, बलगम के साथ खून भी निकल रहा हो, सुबह तथा शाम के समय में खांसी का प्रभाव और तेज हो जाता हो। छाती के पास लगातार तेज दर्द महसूस हो रहा हो, सुबह के समय में बलगम के साथ निकलने वाले खून का रंग चमकदार, लाल और थोड़ी मात्रा में निकल रहा हो, दोपहर के बाद निकलने वाले खून में गहरा रंग हो तथा जमा हुआ निकल रहा हो। नाड़ी कोमल और दबावशील हो। ग्रासनली, ग्रसनी तथा आमाशय में जलन महसूस हो रही हो तो ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए ऐकैलिफा इन्डिका औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

सुबह के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

ऐकैलिफा इन्डिका औषधि का दूसरे औषधि से सम्बन्ध (रिलेशन):-

आर्नि, हेमै, इपि, मिलफोलियम, ऐकोन, काली-नाइट्रि तथा फास्फोरस के साथ ऐकैलिफा इन्डिका औषधि की तुलना कर सकते हैं।

मात्रा (डोज) :-

ऐकैलिफा इन्डिका औषधि की तीसरी से छठी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


एस्कुलस-हिप्पोकैस्टेनम (Aesculus - Hippocastanum)


परिचय-

एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का प्रभाव (क्रिया) निचली आंत पर होता है। बवासीर के रोग में शिराओं में रक्तसंचित (खून जमा होना) होता रहता है और वे फूल जाती हैं, साथ ही कमर में दर्द भी होता है, लेकिन वास्तविक रूप से कब्ज नहीं होता है लेकिन अधिक दर्द हो रहा हो तथा इसके साथ ही हल्का रक्त का स्राव (खून बहना) हो रहा हो तथा शिराओं में रक्त (खून) जम रहा हो और साथ ही शिरायें (वेरीकोज वेंस) सूजी हुई हो और उसका रंग बैंगनी हो गया हो, शरीर की सभी क्रियाएं-आंतें, पाचन, हृदय की गति मन्द पड़ गई हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इसका उपयोग लाभदायक है। 

यदि यकृत शिराओं की क्रिया मन्द पड़ गई हो, रक्त का प्रभाव कम हो गया हो तथा इसके साथ कब्ज की शिकायत भी हो, हल्का-हल्का कमर में दर्द हो, ऐसा लग रहा हो कि कमर टूट गई है और रोगी व्यक्ति अपने दिन भर के कार्य को करने में असमर्थ हो, शरीर के कई अंगों में दर्द हो रहा हो, रोगी व्यक्ति को ऐसा महसूस हो रहो हो कि उसके शरीर के कई भागों में रक्त जमा हो रहा है, गले के अन्दर की शिराओं में खून जमा होकर रुक गया हो और श्लैष्मिक झिल्लियां खुश्क और सूजी हुई हो तो एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग लाभदायक होता है और रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण : रोगी उदास और चिड़चिड़ा हो गया हो, सिर भारी, भ्रमित, ठण्डा तथा दर्द युक्त महसूस हो रहा हो, माथे पर दबाव महसूस हो रहा हो, लगातार दायीं कोख में सुई जैसे चुभने के दर्द का अहसास हो रहा हो। रोगी के सिर के पिछले भाग से लेकर आगे माथे तक दर्द हो रहा हो तथा इसके साथ-साथ खोपड़ी में कुचले जाने जैसा दर्द महसूस हो रहा हो, ये लक्षण सुबह के समय में अधिक देखने को मिल रहा हो। इस प्रकार के लक्षण होने पर एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग लाभदायक है। माथे में दांयी ओर से बांयी ओर की स्नायुशूल की सूचीवेधी में दर्द हो रहा हो तथा इसके बाद पाचन संस्थान के आधे भाग में तेज दर्द हो रहा हो और बैठे-बैठे, चलते-चलते सिर में चक्कर हो रहा हो तो एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

नाक से सम्बन्धित लक्षण : रोगी व्यक्ति को सांस लेने पर ठण्डी वायु का अहसास हो रहा हो तथा नाक से सांस लेने वाले वायु के प्रति संवेदशील हो रहा होता है। जुकाम के साथ छीकें आ रही हो तथा नाक से सांस लेने वाली नली में दबाव पड़ रहा हो। नाक की हड्डी की झिल्लियां तनी हुई तथा फूली हुई हो। इन सभी लक्षणों के होने का कारण यदि यकृत की क्रिया में खराबी होना है तो एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण : आंखें भारी तथा गरम महसूस हो रही हो तथा उससे पानी निकल रहा हो और नेत्र-गोलकों में दर्द हो रहा हो तथा रक्तवाहिनियों में रक्त का बहाव बढ़ गया हो तो एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग लाभदायक होता है तथा इसके प्रयोग से रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण : मुंह का स्वाद कषैला हो गया हो, लार अधिक आ रही हो, जीभ पर मोटी परत जमी हो तथा मुंह ऐसा लग रहा हो कि वह गर्म पानी से जल गया हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण : आमाशय में ऐसा महसूस हो रहा हो कि पत्थर रखा हो तथा तेज दर्द हो रहा हो, खाना खाने के तीन घंटे के बाद यह दर्द महसूस हो रहा हो तथा यकृत के भाग में तेज दर्द तथा भारीपन महसूस हो रहा हो तो ऐसे रोगी का रोग ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग किया जाना फायदेमंद होता है।

उदर (पेट) से सम्बन्धित लक्षण : यदि किसी रोगी को यकृत और पाचन तंत्र के भाग में हल्का-हल्का दर्द महसूस हो रहा हो, नाभि के भाग में दर्द हो रहा हो तथा पीलिया रोग हो गया हो तो ऐसे लक्षणों वाले रोगी को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि उपयोग करना चाहिए।

कंठ (गला) से सम्बन्धित लक्षण : यदि कंठ में गर्म, खुरदरा, खुश्क महसूस हो रहा हो, खाना को निगलते समय सुई चुभने जैसा दर्द हो रहा हो। ग्रसनी (भोजननली) की शिराओं में फुलाव और सूजन हो गया हो। कण्ठवायु (गले की नली) के प्रति संवेदनशील (सांस लेने पर वायु ठण्डा लग रहा) हो, गला छिला तथा सिकुड़ा हुआ महसूस हो रहा हो, दोपहर के समय में खाना खाते समय जब खाना को निगल रहे हों, गले में आग की तरह जलन हो रहा हो। अधिक दुबले-पतले व पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को अपने गले में ठण्ड महसूस हो रही हो। रोगी व्यक्ति जब खंखार रहा हो तब गांठ के रूप में रेशेदार बलगम निकल रहा हो और बलगम का स्वाद मीठा-मीठा लग रहा हो तो ऐसे लक्षणों के रोगियों को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

मलान्त्र से सम्बन्धित लक्षण : रोगी व्यक्ति के मलान्त्र भाग में हल्का-हल्का दर्द हो रहा हो। रोगी व्यक्ति को ऐसा लग रहा हो कि उसके मलान्त्र के भाग में छोटी-छोटी लकड़ी के टुकड़े भर दिये गए हैं। जब रोगी व्यक्ति मलत्याग कर रहा होता है तो उसे तेज दर्द होता है और मलद्वार खुरदरा हो गया हो तथा मल त्याग करने पर मलान्त्र बाहर निकल आती हो। बवासीर रोग होने के साथ पीठ में गोली की तरह ऊपर को चलता हुआ तेज दर्द महसूस हो रहा हो, बादी और खूनी बवासीर हो गया हो, स्त्री रोगी को रजोनिवृतिकाल (मासिकधर्म आने के समय) में बादी व खूनी बवासीर अधिक परेशान कर रही हो, रोगी के श्लैष्मिक झिल्ली में सूजन हो गया हो और मल में रुकावट हो रही हो। ऐसे रोगियों के रोग को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग लाभदायक होता है। जिन व्यक्तियों के पेट में कीड़े होने के कारण पेट में दर्द हो रहा हो उनके पेट के कीड़े को मारकर मलद्वार के रास्ते बाहर निकालने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि उपयोग करना चाहिए। रोगी के मलद्वार में अधिक जलन हो रही हो तथा इसके साथ-साथ पीठ पर ऊपर से नीचे की तरफ ठण्ड महसूस हो रही हो तो एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग बहुत उपयोगी तथा लाभदायक हो सकता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बन्धित लक्षण : पेशाब बार-बार आ रहा हो तथा थोड़ा-थोड़ा कर के आ रहा हो, पेशाब गर्म तथा कीचड़ के रंग का हो। गुर्दे में दर्द हो रहा हो और दर्द बांयी ओर के गुर्दे से होते हुए मूत्रनली की तरफ हो रहा हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पुरुष से सम्बन्धित लक्षण : शौच क्रिया करता है तो उस समय पु:रस्थ द्रव्य (प्रोस्टेट फाइंड) निकलता हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण : स्त्रियों के जघनास्थियों (साइस्मफाइसिस पुबीस) (जांघों के पास) लगातार गीला हो तथा ऐसा लग रहा हो की द्रव्य पदार्थ वहां टपक रहा है, प्रदर गहरा पीला, चिपचिपा, जघनास्थियों के पास का मांस ऐसा लग रहा है जैसे कि वह छिल गया है तथा यह मासिकधर्म के बाद ज्यादा महसूस हो रहा हो तो ऐसे स्त्रियों के रोग को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्तन से सम्बन्धित लक्षण : रोगी को घुटन महसूस हो रही हो, स्त्रियों को अपने हृदय की क्रिया तेज तथा भारी लग रही हो, धड़कन की गति पूरे शरीर में महसूस हो रही हो। रोगी को स्वरयंत्र (कण्ठ) में जलन महसूस हो रही हो। यकृत की बीमारियों के कारण खांसी हो रही हो, छाती के पास गर्मी महसूस हो रही हो। बवासीर के रोगियों को हृदय के आस-पास दर्द महसूस हो रहा हो तो ऐसे रोगियों के रोग को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण : रोगी के हाथ-पैरों में अकड़न तथा दर्द हो रहा हो, रोगी को यह दर्द गोली की तरह महसूस होता है तथा दर्द का प्रभाव बायें कंधे के ऊपरी भाग से नीचे के बाजुओं में महसूस होता हो। हाथ की उंगलियों का ऊपरी भाग में सुन्नपन महसूस हो रहा हो तो एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण : रोगी व्यक्ति को गर्दन में ऐसा दर्द महसूस होता है जैसे कोई व्यक्ति सुई चुभो रहा है, दोनों गर्दन के बीच हल्का-हल्का दर्द होता रहता है, गर्दन के पीछे का भाग बहुत अधिक कमजोर हो जाता है। दर्द का असर कमर से लेकर कूल्हे तक हो जाता है, जब रोगी व्यक्ति चलने तथा झुकने का कार्य करता है तो दर्द का असर और तेज हो जाता है। चलते समय पैर का नीचे का भाग अपने आप मुड़ जाता है, पैर के तलुवों में जलन, थकान, तथा सूजन महसूस होती है, हाथ-पैर धोने पर लाल हो जाते हैं और भारी लगते हैं। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में है तो उसका उपचार करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि बहुत उपयोगी है।

ज्वर (बुखार) से सम्बन्धित लक्षण : रोगी व्यक्ति को शाम के समय में ठण्ड लगती है। ठण्ड का असर पीठ में ऊपर से नीचे की ओर होता है, बुखार का प्रभाव शाम को 7 बजे से 12 बजे तक होता है, शाम के समय में बुखार तेज होता है तथा त्वचा गर्म तथा खुश्क हो जाती है और बुखार के साथ शरीर से बहुत अधिक गर्म पसीना निकलता है। इस प्रकार के लक्षण होने पर एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि उपयोग लाभकारी है।

ह्रास : 

सुबह जागने पर, किसी भी प्रकार की गति करने पर, चलने-फिरने से, मलत्याग करने से, खाना खाने के बाद, दोपहर बाद, खड़े होने पर तथा ठण्डी हवा में रहने से लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि का दूसरी औषधियों से सम्बन्ध : 

मलान्त्र में जलन होने पर एस्कुलस ग्लैब्रा औषधि को देते हैं, इस प्रकार के लक्षण होने पर एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि की तुलना एस्कुलस ग्लैब्रा औषधि से कर सकते हैं।

अधिक दर्दनाक, गहरे बैगनी रंग वाले, बवासीर के बाहरी मस्से, साथ ही कब्ज व सिर में दर्द तथा चक्कर होने पर और यकृत-शिराओं में रक्त का जमाव होने पर। आवाज मोटी, गले के अन्दर गुदगुदी, दृष्टि दोष उत्पन्न होने तथा आंशिक रूप से पक्षाघात (लकवा) होने पर फाइटोलक्का औषधि का उपयोग करते हैं, इस प्रकार के लक्षण को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि की तुलना फाइटोलक्का औषधि से कर सकते हैं।

मलान्त्र की शिराओं में रक्त का जमाव तथा अधिक तेज दर्द के साथ बवासीर होने पर नेगुण्डियम अमेरिकैनम औषधि उपयोगी है (इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी को मूलार्क की दस-दस बूंदों की मात्रायें, हर दो घंटे के बाद दे सकते हैं)। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि की तुलना नेगुण्डियम अमेरिकैनम औषधि से कर सकते हैं।

एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि की तुलना और भी औषिधियों से कर सकते हैं, जो इस प्रकार हैं- नक्स तथा सल्फर, कोलिनसोनिया तथा एलो औषधि।

मात्रा :

एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम औषधि की मूलार्क से तीसरी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


एब्रोटेनम-सदर्नवुड (Abrotanum - Southernwood)


परिचय- 

सुखण्डी रोग (इस रोग के कारण रोगी का शरीर सूखने लगता है) को ठीक करने के लिए एब्रोटेनम औषधि बहुत उपयोगी है। विशेषकर तब जब शरीर के अंग बहुत अधिक सूखे रोग से प्रभावित हो। किसी अन्य रोग के दब जाने के कारण कोई दूसरा रोग होने पर जैसे कि दस्त के रुक जाने पर गठिया हो जाना, विशेष रूप से गठिया रोग होने पर एब्रोटेनम औषधि का उपयोग बहुत लाभदायक होता है।

यदि कोई बच्चा बहुत ही झगड़ालू और बदमिजाज होता है, जो चीज सामने देखता है उसी पर गुस्से से लात मार देता है या बच्चों के अण्डकोष में वृद्धि हो गया है या बच्चे के नाक से खून निकल रहा है तो एब्रोटेनम औषधि का उपयोगी है।

एक बीमारी के दबने से दूसरी बीमारी उत्पन्न हो गई हो तो इस एब्रोटेनम औषधि का उपयोग लाभकारी होता है और इसके उपयोग से वह बीमारी ठीक हो जाती है। उदाहरण के लिए कर्णमूल (मम्पस-कान की जड़) का उपचार करने के कारण दबाव पड़ने पर अण्डकोष (टेस्टस) या स्तनों का बढ़कर सख्त हो जाना जैसे लक्षण हो तो एब्रोटेनम औषधि का उपयोग लाभकारी होगा।

यदि पेचिश या दस्त की बीमारी किसी दवा (क्रुड मेडीसिंस) से अचानक रुक जाए और इसके बाद वात रोग हो जाए तो इस रोग को ठीक करने के लिए एब्रोटेनम औषधि उपयोगी होगा।

एब्रोटेनम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण: चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाना तथा दरार पड़ना, चेहरे की त्वचा ठण्डा होना, त्वचा रूखा तथा पीला हो जाता है, आंखों के चारों ओर नीले छल्ले पड़ना तथा नकसीर रोग होना। इन लक्षणों को ठीक करने के लिए एब्रोटेनम औषधि का उपयोग बहुत अधिक लाभदायक है।

मन से सम्बन्धित लक्षण : रोगी में चिड़चिड़ापन होना, जिद्दी होना, जल्दी घबरा जाना तथा जल्दी निराश हो जाना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी ठीक करने के लिए एब्रोटेनम औषधि का उपयोग लाभदायक है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण : जीभ का स्वाद चिपचिपा लगना, भूख अधिक लगना, रात के समय में आमाशय में तेज दर्द होना, उल्टी होना जैसे लक्षण यदि रोगी में हैं तो उसका उपचार करने के लिए एब्रोटेनम औषधि का उपयोग करना चाहिए इससे बहुत अधिक लाभ मिलता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण : पेट के अन्दर कठोर गांठें हो गई हो, दस्त तथा कब्ज की समस्या हो, खूनी दस्त हो रहा हो तथा बवासीर रोग हो गया हो तो ऐसे रोगी का उपचार करने के लिए एब्रोटेनम औषधि का उपयोग किया जाना चाहिए।

सांस संस्थान से सम्बन्धित लक्षण : सांस लेने तथा छोड़ने में परेशानी होना, दस्त के बाद सूखी खांसी होना, हृदय तथा इसके आस-पास के क्षेत्र में तेज दर्द होने पर रोगी का उपचार एब्रोटेनम औषधि से करने पर रोग ठीक हो जाता है।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण : रोगी का गर्दन कमजोर हो, सिर को ऊपर उठाकर नहीं रख पा रहा हो तथा कमर दर्द हो रहा हो तो उस रोगी का उपचार एब्रोटेनम औषधि से कर सकते है।

गठिया रोग से सम्बन्धित लक्षण : यदि गठिया वात के रोगी (रीयुमेइक पैसेंट) को पतले दस्त आ रहे हो तथा हल्का दर्द हो रहा हो और यदि कब्ज हो गया हो, दर्द एकदम से बढ़ रहा हो तो एब्रोटेनम औषधि का उपयोग लाभदायक है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण : कंधों, भुजाओं, कलाइयों और टखनों में दर्द हो रहा हो, उंगलियों और पैरों में पिन चुभने जैसा दर्द हो रहा हो, हाथ तथा पैरों में दर्द हो रहा हो तो ऐसे रोगी का उपचार एब्रोटेनम औषधि से कर सकते है, इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

त्वचा रोग से सम्बन्धित लक्षण : चेहरे पर दाने निकल रहे हो या दाने निकल कर दब गये हों, चमड़ी का रंग बैगनी हो गया हो, सिर के बाल झड़ रहे हों, फटी ऐड़ियों में खुजली हो रही हो तो एब्रोटेनम औषधि का उपयोग लाभदायक है, जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :

फेफड़े के चारों तरफ की झिल्लियों में सूजन होने पर ऐकोनाइट और ब्रायोनिया औषधि का उपयोग करते हैं, जबकि फेफड़े के जिस तरफ रोग का प्रभाव अधिक हो, उस तरफ सांस की रुकावट हो तो एब्रोटेनम औषधि का प्रयोग करने से अधिक लाभ मिलता है और रोग ठीक हो जाता है। अत: इन दोनों औषधियों की तुलना एक दूसरे से कर सकते हैं।

बच्चों के सूखे रोग को ठीक करने के लिए जिस प्रकार आयोडियम, नेट्रम-म्यूर, आर्ज नाइट्र, लाइका, सैनिक्यूला, ट्यूबक्लूलिनम औषधियों का उपयोग किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से एब्रोटेनम औषधि का उपयोग किया जा सकता है।

गठिया रोग को ठीक करने में एब्रोटेनम औषधि की तुलना स्कोफुलेरिया, ब्रायोनिया, बेंजोइक एसिड तथा सुखण्डी रोग में आयोडिन, नेट्रम-म्यूरि से तुलना कर सकते हैं।

एब्रोटेनम औषधि का ह्रास :- 

ठण्डी हवा में रहने तथा स्राव को रोकने तथा गति करने से एब्रोटेनम औषधि का असर कम हो जाता है।

मात्रा (डोज) :-

एब्रोटेनम औषधि की तीसरी से तीसवी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


एब्रोमा रैडिक्स-उलट कम्बल मूल (Abroma Redix-Olat Kabal Root)


परिचय-

स्त्री के रोग को ठीक करने के लिए एब्रोमा रैडिक्स औषधि का उपयोग बहुत लाभदायक होता है।

स्त्रियों को मानसिक परेशानी की समस्या, अनियमित मासिकधर्म होना, मासिकधर्म में अधिक कष्ट होना, मासिक धर्म में स्राव अधिक होना तथा कम होना तथा प्रदर रोग को ठीक करने में एब्रोमा रैडिक्स औषधि उपयोग बहुत लाभदायक है।

मात्रा (डोज):-

एब्रोमा रैडिक्स औषधि की मूलार्क, 2x, 3x शक्तियां का प्रयोग करना चाहिए।


एक्विलेजिया (Aquilegia)


परिचय-

एक्विलेजिया औषधि का प्रयोग वात रोग (पेट में वायु बनना) को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता है।

बच्चेदानी में वायु का गोला बनना, वायु के कारण पसलियों में दर्द होना आदि लक्षणों को ठीक करने के लिए इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। स्त्रियों को मासिकधर्म के समय में होने वाले रोगों के साथ हरे रंग के पदार्थों की उल्टी होना, सुबह के समय में अनिद्रा होना, शरीर की स्नायुविक कम्पन (नाड़ियों में कंपन होना), प्रकाश और शोरगुल के प्रति संवेदनशील होना, मासिकधर्म में तेज दर्द आदि इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए एक्विलेजिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मासिकधर्म के समय में स्राव बहुत कम होना तथा इसके साथ ही कमर पर तेज दर्द होना तथा दर्द का असर पूरे शरीर पर होना। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए एक्विलेजिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मात्रा (डोज) :-

एक्विलेजिया औषधि की पहली शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


एबिस नाइग्रा (ब्लैक स्प्रुस) (एबि नाइ)(Abies Nigra)


परिचय-

कई प्रकार के रोग जिनमें आमाशय से सम्बन्धित लक्षण अधिक देखने को मिलते हैं, उन रोगों को ठीक करने में एबिस नाइग्रा औषधि बहुत लाभदायक है। इसकी क्रिया का प्रभाव आमाशय के श्लैष्मिक किनारों पर होती है और इसका प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। जिन रोगों में पाचन दोष अधिक देखने को मिलता है, उन रोगों को ठीक करने में भी यह औषधि बहुत उपयोगी है। बूढ़े व्यक्तियों को होने वाला हृदय रोग तथा भूख कम लगने वाले रोग, चाय तथा तम्बाकू के कारण उत्पन्न रोग, कब्ज तथा शरीर के बाहरी रोम छिद्रों तथा रंध्रों में होने वाले दर्द को ठीक करने के लिए यह अधिक उपयोगी है।

मन अत्यधिक खिन्न और उदास रहता है तथा पागलपन की अवस्था बनी रहती है, पढ़ने या लिखने के कार्य करने में असमर्थ होना, मस्तिष्क में धुंधला सा रहना, हल्का-हल्का सिर में दर्द रहना, अजीबों-गरीब अनुभव होना जिसे व्यक्त न कर पाना, बुरा-बुरा सा महसूस होना, सिर गर्म और गालों पर लालिमा तथा भारीपन महसूस होना। ये लक्षण यदि रोगी में है तो उसका उपचार करने के लिए एबिस नाइग्रा औषधि बहुत उपयोगी है।

एबिस नाइग्रा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

पेट के ऊपरी भाग में कोई चीज़ अटकी हुई महसूस होना :-रोगी को ऐसा महसूस होता है कि उसके पेट के ऊपरी भाग में कोई अण्डे के सामान चीज अटकी हुई है जो न बाहर आती है न नीचे उतरती है। इसके कारण रोगी के पेट में दर्द होता है तो रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एबिस नाइग्रा औषधि बहुत उपयोगी है।

खाने के बाद पेट में दर्द होना :- जिन रोगियों को खाना खाने के बाद पेट में दर्द होता है, उन रोगियों के लिए एबिस नाइग्रा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सुबह के समय भूख न लगना :- जिन रोगियों को सुबह के समय में भूख बिल्कुल नहीं लगती है, लेकिन दोपहर और रात के समय में खाने की इच्छा तेज होती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लिए एबिस नाइग्रा औषधि लाभकारी है।

बूढ़े व्यक्तियों को बदहजमीं (खाना न पचना) की बीमारी होना :-बूढ़े व्यक्तियों की बदहजमी होने तथा इसके साथ हृदय रोग का लक्षण भी दिखाई दें तो उपचार के लिए एबिस नाइग्रा औषधि बहुत उपयोगी है।

चाय तथा तम्बाकू का सेवन के कारण बदहजमी होना :- चाय और तम्बाकू के सेवन के कारण बदहजमी होने पर तथा पेट के रोग होने पर उपचार करने के लिए एबिस नाइगा्र औषधि लाभदायक है। चाय तथा तम्बाकू के सेवन से अक्सर रोगी में उत्साहहीनता तथा रात को नींद न आना आदि लक्षण होते हैं तो ऐसे रोगियों के लिए यह एबिस नाइग्रा औषधि लाभदायक है।

छाती में कुछ अटका हुआ सा महसूस होना :- रोगी को ऐसा लगता है कि छाती में कुछ अटका हुआ है और खांसने पर ऐसा लगता है कि अटका हुआ चीज़ निकल गया, छाती में दर्द महसूस होता है। खांसी के बाद मुंह में पानी भर जाता है तथा गले में घुटन महसूस होती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एबिस नाइग्रा औषधि बहुत उपयोगी है।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी के पीठ के नीचे के भाग में दर्द हो रहा हो तो उसके दर्द को ठीक करने में एबिस नाइग्रा औषधि उपयोगी है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- सिर गर्म होने के साथ-साथ गाल लाल, सुस्ती तथा नींद न आने के लक्षण रोगी में है तो उसके रोगी को ठीक करने के लिए एबिस नाइग्रा औषधि उपयोगी है।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रात के समय में नींद न आने के कारण भूख लगने के लक्षण रोगी में है तो उसका रोग एबिस नाइग्रा औषधि से ठीक हो सकता है।

कान से सम्बन्धित लक्षण :-कान के बाहरी नली में दर्द होने पर एबिस नाइग्रा औषधि का उपयोग लाभदायक होता है।

गले से सम्बन्धित लक्षण :-गला बैठने जैसा महसूस होना, ऐसा लगना जैसे कि कोई चीज़ गले के नली के अन्दर चिपकी हुई है। इस प्रकार के लक्षण होने पर एबिस नाइग्रा औषधि का उपयोग लाभदायक होता है।

बुखार से सम्बन्धित लक्षण :-रोगी को बुखार के साथ-साथ गर्मी तथा ठण्ड का बारी-बारी से महसूस होना तथा पेट में दर्द होने पर एबिस नाइग्रा औषधि का उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :-स्त्रियों का मासिकस्राव बन्द रहना या देर से आना सांस लेने में कठिनाई होना, लेकिन सांस छोड़ने में आसानी होना। इन लक्षणों से पीड़ित स्त्री का उपचार करने के लिए एबिस नाइग्रा औषधि उपयोगी है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

एबिस नाइग्रा औषधि की तुलना ब्रायो, कैमो, इग्ले, नक्स-वो, लैक्टि क-ए औषधियों से कर सकते हैं।

मात्रा (डोज) :-

एबिस नाइग्रा औषधि की 1 से 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


एबिस कैनाडैंसिस-पाइनस कैनाडैंसिस (हेमलाक स्प्रुस) (Abies Canadensis - Pinus Canadensis)


परिचय :-

एबिस कैनाडैंसिस औषधि श्लैष्मिक झिल्लियों को प्रभावित करती है और आमाशय के रोग से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने में लाभदायक होती है। यह आंतों के रोगों को ठीक करने में बहुत ही सहायक औषधि है। कुपोषण तथा कमजोरी को दूर करने में यह बहुत उपयोगी है।

जिन रोगियों को सांस लेने में परेशानी होती है और हर समय लेटे रहने का मन करता है, त्वचा ठण्डी तथा चिपचिपी रहती है तथा हाथ ठण्डे पड़ जाते हैं और शरीर में अधिक कमजोरी महसूस होती है और जिसका दायां फेफड़ा व यकृत कठोर महसूस होता है, इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए एबिस कैनाडैंसिस औषधि बहुत उपयोगी है।

एबिस कैनाडैंसिस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोग को ठीक करने में बहुत उपयोगी हैं-

भूख अधिक लगने के साथ यकृत की क्रिया कमजोर हो जाना :- रोगी को पेट में खरोचने जैसी भूख अर्थात तेज भूख लगती है। खुरचन के कारण रोगी भूख से ज्यादा खाना खा जाता है, रोगी इतना अधिक खा लेता है कि उसे पता ही नहीं लगता कि उसने कितना खाया है, अधिक खाना खाने के कारण रोगी का पेट फूल जाता है जिसके कारण हृदय पर दबाव पड़ता है और हृदय की गति तेज होने लगती है। इससे हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एबिस कैनाडैंसिस औषधि प्रयोग करना चाहिए।

शरीर में अधिक कमजोरी महसूस होना तथा हर समय लेटे रहने की इच्छा करना - रोगी को अपने शरीर में बहुत अधिक कमजोरी महसूस होने लगती है, हर समय लेटे रहने का मन करता है और शरीर में सुस्ती होने लगती है। ऐसे लक्षण खान-पान में पौष्टिकता की कमी के कारण होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए एबिस कैनाडैंसिस औषधि बहुत उपयोगी है।

नसों में बर्फ की तरह ठण्डा खून बहना महसूस होना :- रोगी को बहुत अधिक ठण्ड लगती है, हाथ तथा त्वचा ठण्डी पड़ जाती है, रोगी को बुखार हो जाता है तथा इसके साथ-साथ रोगी को ऐसा महसूस होता है कि नसों में बहुत अधिक ठण्डा खून बह रहा है। पीठ में ऊपर से नीचे की तरफ ठण्ड महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए एबिस कैनाडैंसिस औषधि बहुत उपयोगी है।

गर्भाशय की ऊपरी झिल्ली का अपने स्थान से हटना :- स्त्रियों के जरायु के आगे के भाग पर हल्का-हल्का दर्द महसूस होता है और चलने तथा दबने के कारण यह दर्द कम हो जाता है। स्त्रियों को अपना गर्भाशय कोमल तथा कमजोर महसूस होती है। जरायु (गर्भाशय की ऊपरी झिल्ली) अपने स्थान से हट जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्रियों के रोग को ठीक करने के लिए एबिस कैनाडैंसिस औषधि बहुत उपयोगी है।

शलगम, गाजर तथा अचार खाने की इच्छा :- रोगी को गाजर, शलजम तथा अचार खाने की इच्छा अधिक होती है, मोटा अन्न खाने की इच्छा भी बहुत अधिक होती है। रोगी को बहुत अधिक ठण्ड लगती है, शरीर में कमजोरी बहुत अधिक महसूस होती है, भूख तेज लगती है, चटनी तथा अचार खाने की इच्छा अधिक होती है। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एबिस कैनाडैंसिस औषधि बहुत उपयोगी है।

दायें कन्धे के ब्लड (स्केपुला) में दर्द होना :- यदि किसी रोगी के दायें कन्धे में दर्द हो रहा हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए एबिस कैनाडैंसिस औषधि बहुत उपयोगी है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- सिर में हल्का-हल्का दर्द महसूस हो रहा हो तथा ऐसा लगता है कि रोगी नसे में है तथा स्वभाव चिड़चिड़ा हो तो उसके रोग को ठीक करने में एबिस कैनाडैंसिस औषधि लाभदायक है।

ज्वर (बुखार) से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुखार कंपकंपी के साथ होता है, खून बर्फ के समान ठण्डा महसूस हो रहा हो, ठण्ड पीठ पर ऊपर से नीचे की ओर महसूस हो रही हो, ऐसा लग रहो हो कि हड्डी के जोड़ों के बीच ठण्डा पानी रख दिया गया हो तथा त्वचा चिपचिपी व लेसदार हो जाती है और रात को पसीना अधिक निकल रहा हो तो रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एबिस कैनाडैंसिस औषधि बहुत उपयोगी है।

मात्रा :-

एबिस कैनाडैंसिस औषधि की 30 व 200 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


आर्जेन्टम नाइट्रिकम, सिलवर नाइट्रेट (Aregentum Nitricum)


परिचय-

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग उन रोगियों के लिए किया जाता है जिन रोगियों के दिमागी लक्षण बड़े ही आश्चर्य जनक होते हैं जैसे- रोगी के मन में तरह-तरह की बेकार की बातें आती हैं, रोगी बड़ा ही डरपोक होता है, कोई भी काम करने से पहले ही वह घबराने लगता है और रोगी के मन में एक प्रकार का डर पैदा हो जाता हैं। जब रोगी रास्ते में चलते समय ऊंची-ऊंची बिल्डिंगो को देखता है तो उसे चक्कर आने लगता है और रोगी को ऐसा भी महसूस होता है कि पूरी बिल्डिंग उसके ऊपर गिरने को आ रही है। जब रोगी ऊंची बिल्डिंगों को देखता है तो उसके कान में सनसनाहट होने लगती है, शरीर कांपने लगता है तथा उसके शरीर से पसीना निकलने लगता है।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग उन रोगियों के लिए भी किया जाता है, जिनमें ये लक्षण हो जैसे- रोगी किसी पुल या ऊंची जगह को पार करता है तो वह उस समय यह सोचता है कि शायद वह वहां से गिर जायेगा और मर जायेगा, कभी-कभी तो वह सचमुच ही गिर जाता है।

जब रोगी किसी ऊंचे मकान की खिड़की पर से नीचे की तरफ देखता है तो उस समय वह यह सोचता है कि यहां से कूद पड़ना क्या खतरनाक है और दिमागी कमजोरी के कारण कभी-कभी वह सचमूच ही कूद पड़ता है। इस प्रकार के मानसिक लक्षणों में भी रोगी को आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जा सकती है।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि और ऐकोनाइट औषधि का प्रयोग उन रोगियों के लिए भी किया जा सकता है जिसे मृत्यु का डर बना रहता है और वह कभी-कभी मृत्यु के समय होने वाले दर्द को महसूस करता है, जैसे- चर्च या सिनेमाहाल को जाते समय रोगी को मलत्याग करने का अनुभव होता है और एक प्रकार का डर महसूस करता है। रोगी को सिर्फ चर्च या सिनेमाहाल को जाते समय ही नहीं बल्कि कहीं भी जाते समय, किसी मित्र से मिलते समय या किसी मीटिंग में बहुत बड़े-बड़े आदमियों से मिलने जाते समय मल त्यागने की इच्छा होती है। जिसके कारण रोगी में स्नायु दुर्बलता (नर्वस वीकनेस) हो जाती है। ऐसे ही कुछ लक्षणों के रोगियों को जेल्सेमियम औषधि भी दिया जा सकता है लेकिन इन लक्षणों के अतिरिक्त कुछ अन्य लक्षण होने पर ही जेल्सेमियम औषधि दिया जा सकता है क्योंकि जेल्सेमियम औषधि की तुलना आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि से की जा सकती है।

कई रोगी ऐसे भी होते हैं जो किसी कार्य करने से पहले ही डर तथा सन्देह अनुभव करते हैं कि शायद वह कार्य सफल न हो। रोगी बहुत अधिक उदास रहता है। इन रोगियों की स्मरणशक्ति (सोचने की शक्ति) बहुत अधिक कमजोर होती है। ऐसे रोगी बहुत अधिक जल्दी-जल्दी चलता है और किसी न किसी कार्य को करने में लगा रहता है ऐसे लक्षणों के रोगियों को आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि के बदले में ऐनाका, क्रियोजो, मर्क, लैक, रक्स-मस, फास-ऐसिड औषधि भी दी जा सकती है।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि उन रोगियों को भी दिया जा सकता है। जिसके मन में कभी-कभी यह विचार आता है कि समय बहुत धीरे-धीरे चल रहा है (टाईम पासेस स्लोली) और वह इसलिए जल्दी-जल्दी कार्य करने लगता है लेकिन उसे यह भी विचार आता है कि कार्य करने में बहुत देरी हो रही है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगियों को कैनैबिस इन्डिका औषधि भी दी जा सकती है। ऐसे ही कुछ लक्षणों के रोगियों को ग्लोनायन, ऐलूमिना, मर्क-साल, नक्स-मस, मेडोराइनम और नक्स-वोम औषधियां भी दी जा सकती है लेकिन आर्जेन्टम नाइट्रिकम और कैनेबिस औषधि की शक्ति उन औषधियों से कहीं ज्यादा होती है।

कुछ रोगियों में यह भी लक्षण देखने को मिलता है कि समय बहुत जल्दी खत्म हो रहा है, ऐसे रोगियों को काक्यूलस और थेरेडियन औषधि दी जा सकती है।

कुछ ऐसे भी रोगी होते हैं जिन्हें ठण्डी हवा, ठण्डी चीजें, बर्फ,मलाई बर्फ अच्छा लगता है। दरवाजे तथा खुली खिड़कियां उसे बहुत पसन्द आती है। रोगी को गर्म कमरे के अन्दर घुटन महसूस होती है, कमरे के अन्दर यदि बहुत से आदमी हो, चर्च, डांसहाल, मेला का स्थान या किसी सभा में उसे परेशानी महसूस होती है। जिस जगह पर बहुत से आदमियों की भीड़ हो ऐसे स्थान में जाते हुए उसे बहुत अधिक डर महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जा सकती है।

जो रोगी बहुत अधिक दुबला-पतला होता है। जवानी में ही बूढ़े की तरह दिखाई देने लगता है, चेहरे पर झुरियां पड़ जाती है, दिन-प्रतिदिन दुबला होता जाता है, विशेष करके सिर से नीचे का धड़ अधिक दुबला पड़ जाता है। ऐसे रोगियों का उपचार करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जाती है।

यदि किसी बच्चे को सूखे की बीमारी है, जिसमें बच्चा सूख कर दुबला पड़ जाता है, बूढ़ों की तरह दिखाई देता है तो बच्चे के इस रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग कर सकते हैं और इसके बदले इन रोगियों को एब्रोटेनम, आयोडियम और सार्सा पैरिला औषधि भी दी जा सकती है।

कुछ रोगियों में मिठाई खाने की इच्छा बहुत अधिक होती है और उसके मल के साथ आंव भी आता है तो ऐसे रोगियों को आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जा सकती है, लेकिन ऐसे रोगियों में चीनी, मिठाई या मिठाई से बनी चीजें खाने की इच्छा तेज होनी चाहिए। ऐसे लक्षण वाले रोगियों को चायना, लाइको, सल्फ औषधि भी दे सकते हैं।

यदि किसी रोगी को ऐसा महसूस हो रहा हो कि उसके शरीर का कोई अंग, अंश या पूरा शरीर बढ़ रहा है। ऐसे रोगी को सिर में दर्द होना, सिर का बढ़ जाना, डिम्बकोष में कोई रोग हो जाना तथा डिम्बाशय का फूल जाना महसूस हो रहा हो लेकिन ऐसी कोई बात रोगी में देखने को नहीं मिलती हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग कर सकते हैं।

जिन रोगियों को यह अनुभव होता है कि मेरा सिर बहुत बड़ा हो गया है, खोपड़ी की हडि्डयां पतली पड़ गई हैं, आंखें इतनी बड़ी हो गई हैं, कि गड्ढ़े के बाहर निकल पड़ेंगी, जीभ बहुत बड़ी होकर लटक रही है और सिर का एक भाग टोकरी की तरह बड़ा महसूस हो रहा हो तो ऐसे रोगी को इलाज के लिए पेरिस औषधि दी जा सकती है लेकिन ऐसे ही लक्षणों से पीड़ित रोगी को जेल्सेमियम औषधि भी दी जा सकती है।

यदि किसी रोगी को अपना ठुड्डी बड़ा होना महसूस हो रहा हो तो ऐसे रोगी के उपचार के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जाती है। इसके अतिरिक्त ग्लोनायन औषधि भी रोगी को दी जा सकती है।

यदि रोगी को एक स्थान से दूसरा स्थान बहुत दूर महसूस हो रहा हो तो उसका उपचार के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जाती है इसके अतिरिक्त कैन-इन्डि औषधि भी रोगी को दी जा सकती है।

यदि रोगी को अपनी आंख के पलकों, सिर, कोई वस्तु, एक टांग बड़ा महसूस हो रहा है तो रोगी का उपचार के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जाती है इसके अतिरिक्त कैन-इन्डि औषधि भी रोगी को दी जा सकती है।

अण्डकोष के फूल जाने पर रोगी को उपचार के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जाती है इसके अतिरिक्त सैबैडिला औषधि भी रोगी को दी जा सकती है।

यदि कोई रोगी अपने आप को बहुत अधिक लम्बा महसूस कर रहा हो तो उसे उपचार के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जाती है इसके अतिरिक्त प्लैटि, पैले, ओपि और स्टैमो औषधि भी रोगी को दी जा सकती है।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि उन रोगियों को भी दिया जा सकता है जिन रोगियों को सिर में चक्कर आ रहा हो, कान में भनभनाइट शब्द के साथ पैरों में कमजोरी महसूस हो रही हो और शरीर कांप रहा हो। सिर को कसकर बांधने से आराम मिलता हो, खुली हवा में रहने से सिर में दर्द और भी तेज हो रहा हो तथा सिर के दाहिनी तरफ अक्सर दर्द हो रहा हो, दर्द तीव्रता तथा जलन के साथ हो रहा हो। ऐसे रोगी जब मानसिक कार्य करते हैं तो उनका दर्द और भी तेज हो जाता है, रोगी को ऐसा लगता है कि सिर बहुत बड़ा हो गया है। रोगी के सिर के जिस भाग की तरफ दर्द होता है। उस भाग की तरफ की आंखें रोगी को बहुत बड़ी महसूस होती है। ऐसे रोगी को उपचार के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि के अलावा बोर, ग्लोन तथा सिमिस औषधि भी दी जा सकती है।

आधे सिर के दर्द से पीड़ित रोगी के रोग की चिकित्सा के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जाती है। आधे सिर में दर्द होने के कारण रोगी पागल सा हो जाता है, जब यह दर्द बहुत तेज हो जाता है तो रोगी का शरीर में कंपन होने लगती है और रोगी बेहोश सा हो जाता है। सिर को किसी कपड़े से कसकर बांधने से और उल्टी हो जाने से रोगी को आराम मिलता है। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में नज़र आता है तो उसे आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि देते हैं। इससे उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

आंखों के कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि लाभदायक है। आंखों में तेज दर्द होने के कारण आंखें सुर्ख हो जाती हैं, आंखों से मवाद आता है, किसी रोशनी को देखने में परेशानी होती है आदि लक्षण यदि रोगी में हो तो उसका उपचार करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि अधिक उपयोगी है।

यदि रोगी के आंख का कोना खून जैसा लाल होकर फूल गया हो और आंख के किनारे का लाल मांस का टुकड़ा बढ़ गया हो तो उसे ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी होती है।

यदि किसी रोगी के आंखों के सामने सांप की तरह पतली चीज़ उड़ती हुई नज़र आती हो, गर्म कमरे के अन्दर या आग के सामने रहने से परेशानी हो रही हो, आंखों में ठण्डा पानी लगाने या ठण्डी खुली हवा में रहने से आराम मिलता हो तथा आंखों की सिकाई करने से आराम मिलता हो तो ऐसे रोगी का उपचार करने के लिए मर्क-साल औषधि दी जाती है लेकिन इसके अलावा आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि भी रोगी को दे सकते हैं।

यदि रोगी की आंखें बहुत लाल हो गई हों तो उपचार के लिए बेलाडोना औषधि का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन यदि रोगी के आंखों में लाली के साथ सफेद दाने भी दिखाई देते हैं तो रोगी को उपचार करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत अधिक उपयोगी होती है।

यदि रोगी के आंखों से बहुत अधिक मवाद निकल रहा हो या आंख के अन्दर मवाद रुक जाने से आंखों में सूजन आ गई हो तो उसे ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत अधिक उपयोगी है, लेकिन यदि आंखों में से बहुत अधिक गाढ़ा मवाद आ रहा हो तो पल्सेटिला औषधि भी दी जा सकती है।

यदि आंखों में दानें पड़कर सूजन हो तो रोगी की चिकित्सा करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जा सकती है। पलकों में सूजन होने पर भी इस औषधि को दिया जा सकता है।

यदि किसी व्यक्ति को बहुत अधिक बारीक अक्षरों की पुस्तक पढ़ने से नज़र खराब हो गई हो तो उसकी नज़र को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है। रोगी को पास की चीजें ठीक से दिखाई न दें और दूर की चीजें आसानी से दिखाई दें, पढ़ते समय पास से न पढ़ सकने पर पुस्तक को दूर बढ़ाना पड़े, ताकि अक्षर ठीक तरह से दिखाई दें तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि लाभदायक है।

यदि किसी रोगी के चेहरे पर बून्द बून्द पसीना जम रहा हो, चेहरा पीला, नीला सूखा हो गया हो, आंखें और गाल बैठ गये हों, वह जवानी में ही बूढ़ा और रोगी मालूम पड़ रहा हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि अधिक उपयोगी है।

भूख का न लगना, पेचिश का दर्द, अरुचि, पतले दस्त, जीभ पर कांटे पड़ जाना, पेट में हवा भर जाना, जीभ में दर्द होना, जोर-जोर से डकार आना, मलद्वार में से जोर से हवा का निकलना, मीठी चीजों को खाने की इच्छा अधिक होना आदि लक्षण तथा इन लक्षणों के अतिरक्ति रोगी का मल हरा तथा आंव मिला हो रहा हो और मलत्याग करने पर हवा के निकलने के साथ मल के छींटे इधर-उधर पड़ रहा हो तो रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

यदि किसी बच्चे की माता अधिक मीठी चीजें खाती हो और बच्चे को हरे रंग का पतला मल आ रहा हो और बच्चे को मलत्याग करते समय हवा निकलने के साथ मल के छींटे इधर-उधर पड़ रहा हो और यहां तक की मलत्याग करते समय फट-फट की आवाज सुनाई दें तो बच्चे के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि देना चाहिए और माता को मीठी चीजें खाने के लिए मना कर देना चाहिए।

जिन बच्चों को सूखे की बीमारी के साथ हैजा (कलरा इनफेंटम) रोग भी हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत ही उपयोगी है। अधिक मिठाई खाकर जिन बच्चों का पेट खराब हो गया हो उनके लिए भी आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि लाभदायक है। पुरानी पेचिश के रोग में, जिसमें अन्तड़ियों में घाव होने का अनुमान हो उसके रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि लाभदायक है।

विभिन्न रोगों में आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग :-

पेशाब से सम्बन्धित लक्षण :-

* मूत्र-नली की सूजन, दर्द और जलन होने पर रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि लाभदायक है। पेशाब के साथ खून आता हो और पेशाब रुक-रुक कर होता हो तथा सूजाक रोग की अवस्था में जब मवाद आ रहा हो तो रोग को ठीक करने में आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि उपयोगी है।

* स्त्रियों के सूजाक रोग और पीब युक्त प्रदर रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि उपयोगी है। स्त्रियों के जरायु के मुंह में दर्द के साथ घाव होने और उसमें खून निकलने पर आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का उपयोग अधिक लाभदायक है।

* बेहोशी में दिन-रात पेशाब हो जाना, मूत्रनली में जलन होना, मूत्र नली में खुजली होना, मूत्रनली में कांटे गड़ने जैसा दर्द होना, पेशाब बहुत कम होना तथा गहरे रंग का होना। पेशाब करने के बाद भी पेशाब की कुछ बून्दें टपकती रहती हैं। पेशाब करते समय पेशाब की धार बंट जाती है, सूजाक रोग होना, पेशाब करते समय तेज दर्द होना तथा पेशाब में रक्त की मात्रा निकलना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।


नाक से सम्बन्धित लक्षण :- सुंगध की पहचान न कर पाना, नाक में खुजली, नाक में कोई जख्म होना, नजला-जुकाम, इसके साथ ठण्ड अधिक लगना तथा आंख से आंसू निकलने के साथ सिर में दर्द होना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- गला बैठकर आवाज भारी हो जाने पर रोग का उपचार करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि उपयोगी है।

लकवा से सम्बन्धित लक्षण :-

* कई प्रकार के लकवा रोग (पक्षाघात) को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि उपयोगी है।

* शरीर की नियमित क्रिया खराब हो जाने के कारण हाथ-पैरों का कड़ा और सुन्न पड़ जाना और उनमें तेज टीस की तरह दर्द होने पर रोग को ठीक करने में आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

* बांयें फेफड़े और दिल में टीस मारने जैसा दर्द होना, सांस लेने में परेशानी होना, पीठ और पांव कमजोर तथा सुन्न पड़ जाना। इस प्रकार के लक्षण यदि रोगी में है तो उसे आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि दी जा सकती है।

* हृदय रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

* लकवा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक कमजोरी हो तो आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि लाभदायक होता है।


आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :

* आमाशय का दर्द (पेट में दर्द), मन्दाग्नि (अपच) और आमाशय के घावों को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

* अतिसार (दस्त) तथा पेचिश रोग को ठीक करने के लिए भी आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि उपयोगी है।

* उबकाई आना, जी मिचलाना, पेट के अन्दरुनी भाग में सूजन तथा दर्द होना, पेट के सभी भागों में दर्द होना, पेट में दर्द के साथ दान्तों से कुतरने जैसी आवाज सुनाई देना, पेट में जलन तथा सिकुड़न होना, डकार लेने का प्रयास करना लेकिन डकार न आना, मीठी चीजों की खाने की इच्छा करना, शरीर के बांई ओर की पसलियों के नीचे घाव होकर दर्द होना, आमाशय के अन्दर कंपन और अकड़न होना तथा पनीर और नमक खाने की इच्छा करना, इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।


पीठ से सम्बन्धित लक्षण :

* पीठ की बीमारी के साथ रोगी को बहुत अधिक आलस्य हो और इसके साथ ही हाथ के अगले भाग और पैर के निचले भाग में खासतौर पर तलुवों में थकान महसूस हो तो रोगी के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

* पीठ में अधिक तेज दर्द होना, रात के समय में गर्दन पर तेज दर्द होना तथा रीढ़ के पिछले भाग में दर्द महसूस हो। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।


मिर्गी से सम्बन्धित लक्षण : मिर्गी रोग जिसमें रोगी को दौरे पड़ने के कई घंटे पहले ही रोगी की आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं तथा धनुष टंकार रोग (इस रोग के कारण रोगी का शरीर धनुष की तरह अकड़ जाता है) जिसमें रोगी को बहुत बेचैनी महसूस होती हो तो ऐसे रोगी का उपचार करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग करे। 

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- गाल धंसा हुआ, बूढ़े जैसा दिखाई पड़ना, चेहरा पीला और नीला पड़ना तथा हडि्डयों के ऊपर की खाल तनी हुई महसूस होती है। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण : मसूढ़े अधिक मुलायम हो जाते हैं जिनमें से रक्त का स्राव (खून निकलना) होना, जीभ पर छाले उभरना, जीभ के आगे का भाग लाल दिखना तथा दर्द होना, दान्तों में दर्द होना, जीभ का स्वाद तांबे और स्याही जैसा लगना, मुंह में घाव होना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

गले से सम्बन्धित लक्षण : गले तथा मुंह के अन्दर अधिक गाढ़ा श्लेष्मा (थीक मुसस) जमा हो जाना, जिसे रोगी को खखार कर मुंह से बाहर निकालना पड़ता है। गले में खरखराहट होना तथा दर्द होना, खाना को निगलते समय कांटे की तरह चुभन होना, गले के आन्तरिक हिस्से का लाल पड़ जाना, धूम्रपान करने वालों को नजला होना तथा इसके साथ ही गले के अन्दर बाल अड़ने जैसी गुदगुदी होना तथा दम घुटना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण : पेट में दर्द, पेट का अधिक फूलना, आमाशय के बाई ओर की छोटी पसलियों के नीचे सुई की चुभन जैसा दर्द होना तथा पेट में घाव होना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग का उपचार करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

दस्त से सम्बन्धित लक्षण : मल पानी की तरह होना, आवाज तथा हवा के साथ मल का त्याग होना, हरा मल होना साथ ही पेट का अधिक फूलना, बदबूदार मल निकलना, खाना खाते ही तुरन्त दस्त हो जाना, पेय-पदार्थ पीने पर तुरन्त ही मलद्वार से पानी जैसा पदार्थ बाहर निकल जाना, मीठा खाने की इच्छा होना, मानसिक सन्तुलन ठीक न होना तथा मलद्वार में खुजली होना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

पुरुष रोग से सम्बन्धित लक्षण :- नपुंसकता रोग होना, सम्भोग की चेष्टा करते ही लिंग ढीला पड़ जाना, कैंसर रोग होना, सम्भोग की इच्छा नहीं होना, जननांग सिकुड़ जाना, सम्भोग करते समय दर्द महसूस होना आदि लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :

मासिक धर्म शुरू होने पर आंतों में दर्द होना, स्तनों के पास दर्द होना, रात के समय में सम्भोग क्रिया करने की उत्तेजना अधिक होना, मासिकधर्म में अधिक मात्रा में रक्त का स्राव होने के कारण योनि का छिल जाना, किसी भी समय रक्त का स्राव होना, मासिकधर्म के दो सप्ताह बाद गर्भाशय के ऊपरी झिल्ली से रक्त का स्राव होना तथा बाई डिम्बग्रन्थि का दर्दनाक रोग। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि लाभकारी है।

श्वास संस्थान रोग से सम्बन्धित लक्षण :

ऊंची आवाज में बोलने पर खांसी होना, पुरानी खराश, दम घुटने वाली खांसी होना, गले के अन्दर कई बाल अड़ने जैसा अनुभव होना, सांस लेने में परेशानी होना, छाती का ठोस महसूस होना, धड़कन तथा नाड़ी का अनियमित और रुक-रुककर चलना, दांई तरफ शरीर को करके लेटने में परेशानी महसूस होना, छाती में तेज दर्द होना, हृदय के रोग, इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि बहुत उपयोगी है।

त्वचा रोग से सम्बन्धित लक्षण :

त्वचा में खिंचाव होना, त्वचा मुरझाई हुई लगना, त्वचा का शुष्क हो जाना तथा त्वचा पर चकत्ते से निशान हो जाना आदि लक्षण यदि रोग में तो इसका उपचार आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि से करना चाहिए।

अनिद्रा रोग से सम्बन्धित लक्षण :

नींद न आना, बहुत अधिक सोचने के कारण नींद न आना, सांपों के सपने देखना आदि लक्षण यदि रोगी में है तो इसका उपचार आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि से हो सकता है।

ज्वर (बुखार) से सम्बन्धित लक्षण :

ठण्ड के साथ जी का मिचलाना, शरीर पर वस्त्र न डालने पर ठण्ड लगना और बुखार हो जाना तथा घुटन महसूस होना जैसे लक्षण यदि रोगी में हो तो इसका उपचार आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि से कर सकते हैं।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि और लिलियम औषधि में तुलना :

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि और लिलियम औषधि में समान गुण पाये जाते हैं क्योंकि दोनों औषधियों में गर्भाशय की बीमारी को ठीक करने की शक्ति होती है। यदि रोगी उत्तेजना में आकर पतले दस्त कर रहा हो तो इन दोनों ही औषधियों से यह रोग ठीक हो सकता हैं। यदि लक्षणों के अनुसार एक औषधि का प्रयोग एक दूसरे की तुलना में उपयुक्त न लगे तो आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का उपयोग करना ही उचित होता है। ऐसा इसलिए उचित रहता है क्योंकि खनिज औषधियों का प्रभाव कई वर्षों तक रहता है।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का सल्फर या कास्टिम औषधि से तुलना :

पीठ और बाहरी अंगों पर आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का असर बहुत अधिक होता है। जब किसी रोगी के कमर में दर्द हो रहा हो, खड़े होने या चलने पर यह दर्द घट जाए लेकिन अपनी जगह से उठने पर दर्द बहुत अधिक बढ़ जाता हो तो रोगी के रोग को ठीक करने के लिए सल्फर औषधि बहुत उपयोगी है लेकिन इस प्रकार के लक्षण से पीड़ित रोगी का उपचार आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि से भी हो सकता है।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि की तुलना :

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि के गुणों की तुलना नाइट्र-एसिड, नेट्रम्-म्यूर, आरम और क्यूप्रम औषधि से कर सकते हैं।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :

ठण्डा खाना, चीनी खाना, आइसक्रीम खाना, ठण्डी हवा में रहने तथा अधिक मानसिक परिश्रम का कार्य करने पर आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि अधिक करना पड़ सकता है।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि की ह्रास :

खुली हवा में रहने, चेहरे पर हवा की झोंक अच्छी लगने तथा ठण्डे पानी से नहाने पर आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का असर कम हो जाता है।

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि के दोषों को दूर करना :

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि का बहुत अधिक दुरुपयोग किया गया हो तो उसके विष के प्रभाव को नष्ट करने के लिए नेट्रम्यूरियेटिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए। उस समय तो नेट्रम्यूरियेटिकम औषधि का उपयोग और भी जरूरी हो जाता है, जब श्लैष्मिक झिल्ली रोग ग्रस्त हो गई हो।

मात्रा :

आर्जेन्टम नाइट्रिकम औषधि की तीसरी से तीसवीं शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।