होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है

होम्योपैथी एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथिक दवाइयाँ किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है।

भारत होम्योपैथिक चिकित्सा में वर्ल्ड लीडर हैं।

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है। होम्योपैथी में किसी भी रोग के उपचार के बाद भी यदि मरीज ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह रोग का मुख्य कारण सामने न आना भी हो सकता है।

होम्योपथी दवा मीठी गोली में भिगोकर देते हैं

होम्योपथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं।

होम्योपैथी की सबसे खास बात है कि आप डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं। इससे किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट होने का खतरा नहीं होता।

काओलिन Kaolin

 काओलिन Kaolin

परिचय-

काली खांसी और सांस की नली में सूजन आने पर काओलिन औषधि का प्रयोग काफी असरदार रहता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काओलिन औषधि से होने वाले लाभ-

नाक से सम्बंधित लक्षण- नाक में जलन और बहुत तेज खुजली सी महसूस होना, नाक से पीले रंग का स्राव निकलना, नाक का बन्द होना, नाक में दर्द वाली फुंसियां निकलना आदि लक्षणों में रोगी को काओलिन औषधि देने से लाभ मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- आवाज की नली और छाती में दर्द, झिल्लीदार क्रूप जो नीचे सांस की नली तक फैल जाती है, भूरे से रंग का बलगम का आना, आदि लक्षणों में रोगी को काओलिन औषधि नियमित रूप से सेवन कराने से रोगी कुछ ही दिनों में बिल्कुल अच्छा हो जाता है।

मात्रा-

रोगी को उसके रोगों के लक्षणों को जानकर निम्न शक्तियों का विचूर्ण देने से लाभ होता है।


कोसो-ब्राएरा Kousso-Brayera

 कोसो-ब्राएरा Kousso-Brayera

परिचय-

कोसो-ब्राएरा औषधि शरीर में मौजूद कीड़ों को समाप्त करने में बहुत ही असरकारक मानी जाती है। इसके अलावा जी मिचलाना, उल्टी होना, चक्कर आना, नाड़ी का सामान्य तरीके से न चलना आदि रोगों को भी ये औषधि दूर करती है। तुलना-

कोसो-ब्राएरा औषधि की तुलना मैल्लोटस से की जा सकती है।

मात्रा-

कोसो-ब्राएरा औषधि का 1 औंस का तीसरा भाग गर्म पानी में मिलाकर 15 मिनट तक रखा रहने दें और इसके बाद अच्छी तरह से हिलाकर रोगी को पिला दें। अगर आप चाहे तो इस औषधि को लेने से पहले नींबू का रस भी लिया जा सकता है।


काली क्लोरिकम Kali Chloricum

 काली क्लोरिकम Kali Chloricum

परिचय-

काली क्लोरिकम औषधि मुंह के छालों में, स्त्री को गर्भकाल के दौरान मूत्ररोग हो जाने पर, गुर्दों की पुरानी सूजन में, जिगर की सूजन में बहुत उपयोगी साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली क्लोरिकम औषधि का उपयोग-

मुंह से सम्बंधित लक्षण- मुंह से बहुत ज्यादा मात्रा में खट्टी लार का बनना, जीभ का सूज जाना, मुंह में छाले होना और मुंह से बदबू का आना, मुंह के अन्दर भूरी जड़ वाले जख्म होना आदि लक्षणों में रोगी को काली क्लोरिकम औषधि देने से लाभ होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- रोगी को अपना पाचनसंस्थान और नाभि का भारी सा लगना, पेट का फूल जाना, रोगी को उल्टी के साथ हरा या काला सा पदार्थ का आना जैसे लक्षणों में अगर रोगी को काली क्लोरिकम औषधि दी जाए तो ये उसके लिए काफी लाभकारी साबित होती है।

मल से सम्बंधित लक्षण- रोगी को बहुत ज्यादा मात्रा में हरे रंग के दस्तों के आने पर काली क्लोरिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण- पेशाब के साथ अन्न का आना, पेशाब का बहुत कम मात्रा में आना, रक्तमेह, मूत्रलता (diuresis), केन्द्रक अन्नसार (nucleo-albumin) एवं पित्त (bile), फास्फोरिक एसिड की बढ़ी हुई मात्रा के साथ कुल घनसार की मात्रा का घट जाना जैसे लक्षणों में अगर रोगी को काली क्लोरिकम औषधि का सेवन कराया जाए तो ये उसके लिए काफी लाभकारी साबित होता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- रोगी को पीलिया रोग होना, खुजली, त्वचा का काला होना, चाकलेट जैसे रंग वाले चर्मरोग के लक्षणों में अगर रोगी को काली क्लोरिकम औषधि दी जाए तो उसको बहुत लाभ होता है।

मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर काली क्लोरिकम औषधि की 2x से लेकर 6x तक देने से लाभ होता है।

सावधानी-

काली क्लोरिकम औषधि को बहुत ही सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि ये औषधि जहरीली होती है।


काल्मिया लैटीफोलिया Kalmia Latifolia

 काल्मिया लैटीफोलिया Kalmia Latifolia

परिचय-

काल्मिया लैटीफोलिया औषधि जोड़ों के दर्द में बहुत ही प्रभावशाली असर करती है। इसके साथ ही यह रोजाना जी मिचलाना, नाड़ी का अनियमित गति से चलना आदि रोगों में भी अच्छा असर करती है। दिल के रोगों में भी काल्मिया लैटीफोलिया औषधि बहुत उपयोगी साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काल्मिया लैटीफोलिया औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण- सिर के घूमने के कारण चक्कर आना जो झुकने से ओर ज्यादा हो जाते है, दिमाग में अजीब-अजीब से ख्याल आना, माथे और कनपटियों में सिर से लेकर गर्दन के जोड़ और दांतों तक दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को काल्मिया लैटीफोलिया औषधि देने से लाभ होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण:- आंखों की रोशनी का कम हो जाना, आंखों को जरा सा भी हिलाने-डुलाने पर आंखों का अकड़ना और खिंचाव सा लगना, \'श्वेतपटलशोथ (आंखों के सफेद भाग में सूजन आ जाना) जैसे आंख के रोग के लक्षणों में काल्मिया लैटीफोलिया औषधि का प्रयोग करना लाभकारी रहता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- चेहरे पर दाईं तरफ स्नायु का तेजी से दर्द होना, जीभ में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना, चेहरे की हडि्डयों में चुभन और बहुत तेजी से होने वाला दर्द आदि लक्षणों में रोगी को काल्मिया लैटीफोलिया औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- पेट में पाचनसंस्थान का ऐसा महसूस होना जैसे कि उसमें कोई गर्म चीज रख दी हो, जी मिचलाने के साथ उल्टी होना, गर्मी के कारण जी का खराब होना, चक्कर आना, सिर में दर्द होना, पाचनसंस्थान के नीचे ऐसा महसूस होना जैसे कि वहां पर कोई चीज दबाई जा रही हो आदि लक्षणों के आधार पर काल्मिया लैटीफोलिया औषधि का सेवन करना उपयोगी रहता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण- पेशाब के बार-बार आने के साथ कमर में दर्द होना, डिफ्थेरियोत्तर गुर्दों में सूजन (पोस्ट नियरलेटिनल नेफ्रीटिसद्ध आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काल्मिया लैटीफोलिया औषधि बहुत ही असरदार साबित होती है।

दिल से सम्बंधित लक्षण- नाड़ी का बहुत ही धीरे-धीरे चलना, दिल की धड़कन का तेज होना जो आगे की ओर झुकने से ओर तेज हो जाती है, तंबाकू का सेवन करने के कारण दिल को होने वाले रोग, सांस लेने में परेशानी होना, पाचनसंस्थान से लेकर दिल की ओर दबाव पड़ना, बहुत तेज दर्द होने के कारण रोगी को सांस लेने में परेशानी होना, सीने में दिल के ऊपर स्कंध-फलकों में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, दिल के चारों तरफ बेचैनी सी होना आदि लक्षणों के रोगी में नज़र आने पर उसे काल्मिया लैटीफोलिया औषधि देने से लाभ होता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- स्त्री का मासिकस्राव समय से काफी पहले आ जाना, इसके साथ ही शरीर के अंगों, पीठ, जांघों के अन्दर तेजी से दर्द का होना, मासिकस्राव के बाद प्रदर रोग (योनि में से पानी का आना) हो जाना आदि स्त्रीरोगों से सम्बंधित लक्षणों में रोगी स्त्री को काल्मिया लैटीफोलिया औषधि देने से लाभ होता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण- पीठ में नीचे की ओर इस तरह का दर्द होना जैसे कि कमर टूट गई हो, गर्दन से लेकर नीचे बाजू तक दर्द होना, ऊपर वाली पीछे की तीन कशेरुकाओं में दर्द, जो स्कंध-फलक तक पहुंच जाता है, स्नायुमूलक कमर दर्द आदि लक्षणों में काल्मिया लैटीफोलिया औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- शरीर में दांई तरफ की त्रिकोणक पेशी में जोड़ों का दर्द, नितंबों से लेकर घुटनों और पैरों तक दर्द का होना, शरीर के अंगों में कमजोरी, सुन्न हो जाना, चुभन सा महसूस होना और ठण्ड सा लगना, बाएं बाजू का सुन्न हो जाना और उसमें सरसराहट सी होना, अन्त:प्रकोष्ठिका स्नायु (ulnar nerve) के साथ-साथ हाथ की तर्जनी उंगली में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, जोड़ों का गर्म, लाल, सूजन आना आदि लक्षणों में अगर रोगी को काल्मिया लैटीफोलिया औषधि का प्रयोग कराया जाए तो ये उसके लिए बहुत ही लाभकारी होती है।

नींद से सम्बंधित लक्षण- नींद के समय पर लेटने पर बिल्कुल भी नींद नहीं आती है, अगर आती भी है तो सुबह बहुत जल्दी ही आंख खुल जाती है आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काल्मिया लैटीफोलिया औषधि का सेवन लाभदायक रहता है।

वृद्धि-

आंखों को घुमाने पर, इधर-उधर देखने से, दोपहर के समय, थोड़ी सी भी हरकत करने से, बिस्तर पर लेटते ही रोग बढ़ जाता है।

शमन-

बैठने या बिल्कुल सीधा खड़े होने पर, सूरज के डूबने के बाद रोग कम हो जाता है।

तुलना-

काल्मिया लैटीफोलिया औषधि की तुलना स्पाइजीलिया और पल्सटिल्ला से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को काल्मिया लैटीफोलिया औषधि मूलार्क या 6x तक देने से लाभ होता है।


काली सिलिकेटम Kali Silicatum

 काली सिलिकेटम Kali Silicatum

परिचय-

काली सिलिकेटम औषधि किसी भी रोग को ठीक करने के लिए बहुत ही शक्तिशाली मानी जाती है। रोगी को हर समय सुस्ती सी महसूस होना, किसी काम को करने का मन न करना आदि में भी ये औषधि प्रभावशाली साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली सिलिकेटम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण- सिर के अन्दर खून का ज्यादा मात्रा में जमा होना, सिर में खून के बहाव का तेज होना, सिर का घूमना, सिर में ठण्डक महसूस होना, रोशनी में आते ही सिर में दर्द होना, नाक में जुकाम लगने के कारण स्राव के साथ खून आना, नाक में सूजन आना, इच्छा शक्ति का कमजोर होना आदि लक्षणों में रोगी को काली सिलिकेटम औषधि देने से लाभ होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- भोजन करने के बाद आमाशय का भारी सा महसूस होना, जी मिचलाना, जिगर में दर्द होना, पेट में कब्ज बनना, पेट में गैस बनना, मलत्याग के दौरान मलद्वार का सिकुड़ जाना आदि लक्षणों में काली सिलिकेटम औषधि लेने से लाभ होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- शरीर और शरीर के अंगों का सिकुड़ जाना, शरीर के अंगों में किसी चीज के रेंगने जैसा महसूस होना, पेशियों का फैलना, शरीर में कमजोरी और थकान सी महसूस होना जैसे लक्षणों के आधार पर काली सिलिकेटम औषधि रोगी को देने से आराम आता है।

वृद्धि-

खुली हवा में, हवा के झोंके से, ठण्ड लगने से, मेहनत करने से, गति करने से, कपड़े न पहनने से और नहाने से रोग बढ़ जाता है।

मात्रा-

रोगी को काली सिलिकेटम औषधि की ऊंची शक्तियां देने से वह कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।


काली सल्फ्यूरिकम Kali Sulphuricum

 काली सल्फ्यूरिकम Kali Sulphuricum

परिचय-

काली सल्फ्यूरिकम औषधि को बहुत ज्यादा विशल्कन (प्रोफ्युस डेस्क्युमेशन) के साथ पैदा होने वाले रोगों में, बहुत पुराने जलन के रोगों आदि में प्रयोग करने से लाभ मिलता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों में काली सल्फ्यूरिकम औषधि से होने वाले लाभ-

सिर से सम्बंधित लक्षण- रोजाना शाम के समय गठिया रोग के कारण सिर में दर्द होना, सिर में अलग-अलग जगहों में सिर के बाल उड़ने के कारण निशान से बन जाना, सिर में रूसी होना और तारगंज आदि लक्षणों में रोगी को काली सल्फ्यूरिकम औषधि देने से लाभ होता है।

कान से सम्बंधित लक्षण- कान में से पीले रंग का स्राव सा निकलना, कम्बुकर्णी नली के खराब होने के कारण कानों से सुनाई न देना जैसे लक्षणों में रोगी को काली सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- किसी व्यक्ति को सर्दी-जुकाम होने के कारण नाक में से पीला और चिपचिपा सा स्राव निकलना, नाक का बन्द हो जाना, नाक के द्वारा किसी तरह की खुशबू या बदबू का पता न चलना, गलग्रन्थि (गले की ग्रन्थि) का आप्रेशन करवाने के बाद सांस का मुंह से आना, सोते समय खर्राटे लेना आदि लक्षणों का प्रकट होना जैसे लक्षणों के आधार पर काली सल्फ्यूरिकम औषधि लेना लाभकारी रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- आमाशय में किसी रोग के कारण होने वाले लक्षणों में जीभ पर पीली और लेसदार परत का जम जाना, मुंह का स्वाद कड़वा होना, मसूढ़ों में दर्द होना, बार-बार पानी पीने के बाद भी प्यास लगते रहना, जी मिचलाना और उल्टी होना, आमाशय का ऐसा महसूस होना जैसे कि उसमे कोई भारी चीज रखी हुई हो, गर्म पीने वाले पदार्थों को पीने से आमाशय में तकलीफ सी होना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को काली सल्फ्यूरिकम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण- पेट का फूलना, पेट में कब्ज बनने के साथ ही बवासीर के साथ खून का आना, मल का पीले और लेसदार रूप में आना, पेट में तेजी से होने वाला दर्द, पेट को छूते ही ठण्डक सी महसूस होती है आदि लक्षणों में रोगी को काली सल्फ्यूरिकम औषधि खिलाने से आराम आता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- मासिकधर्म का समय से बहुत बाद में आना, मासिकधर्म के दौरान स्राव का कम मात्रा में आना, इसके साथ ही स्त्री को पेट में ऐसा महसूस होना जैसे कि उसने पेट में कुछ भारी चीज रखी हो, योनि में से खूनी प्रदर (योनि में से पानी आना) का आना जैसे लक्षणों में रोगी स्त्री को काली सल्फ्यूरिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

पुरुष रोगों से सम्बंधित लक्षण- किसी व्यक्ति को सूजाक (गिनोरिया) रोग के लक्षण नज़र आने पर, सूजाक रोग के दौरान लिंग में से पीले रंग का लेसदार स्राव का आना, अण्डकोषों में सूजन का आना, ग्लीट आदि लक्षणों में रोगी को काली सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- रोगी की छाती में बलगम के जमा होने के कारण अजीब-अजीब सी आवाजें होना, बच्चों को इंफ्लुएंजा रोग होने के बाद होने वाली खांसी, दमा रोग में खांसी के साथ पीला सा बलगम निकलना, शाम के समय और गर्म मौसम में गले में बहुत ज्यादा खराश होना आदि लक्षणों के आधार पर काली सल्फ्यूरिकम औषधि का प्रयोग करना असरकारक रहता है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण- शरीर के बाहरी अंगों गर्दन, पीठ आदि में तेज दर्द जो गर्म कमरे में और भी बढ़ जाता है, शरीर में घूम-घूमकर होने वाला दर्द जैसे लक्षणों में रोगी को काली सल्फ्यूरिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण- बुखार के लक्षण जैसे रात को सोते समय बुखार का तेज हो जाना, सविराम बुखार, रोगी की जीभ पीली सी और चिपचिपी होना आदि लक्षणों में काली सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन लाभकारी रहता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- रोगी के सिर और दाढ़ी में दाद का बनना जिसमें बहुत ज्यादा पपड़िया सी बनती है, खुजली, छाजन जिनमें खुजली और जलन होती रहती है, शीतपित्त के कारण उत्पन्न फुंसियां आदि चर्मरोगों से सम्बंधित लक्षणों में काली सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन असरकारक रहता है।

वृद्धि-

शाम के समय और गर्म कमरे में बैठने से रोग बढ़ जाता है।

शमन-

ठण्डी और खुली हवा में घूमने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

काली सल्फ्यूरिकम औषधि की तुलना पल्सेटिला, हाइड्रैस, कैलि बाइ और नेट्रम-म्यूर के साथ की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के मुताबिक काली सल्फ्यूरिकम औषधि की 3x से 12x तक देने से आराम आता है।


काली पर्मागानिकम Kali Permanganicum

 काली पर्मागानिकम Kali Permanganicum

परिचय-

काली पर्मागानिकम औषधि रोगी के गले में, नाक में और आवाज की नली में तेज जलन होने पर बहुत उपयोगी साबित होती है। इसके अलावा डिफ्थीरिया, मासिकधर्म कष्ट के साथ आना, सांप तथा दूसरे जहरीले जानवरों के जहर को समाप्त करने के लिए भी ये औषधि बहुत असरकारक साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली पर्मागानिकम औषधि का उपयोग-

सांस से सम्बंधित लक्षण- रोगी की नाक से खून का आना, रोगी को थोड़े-थोड़े समय के बाद बार-बार उठने वाली खांसी जो उसे बहुत परेशान कर देती है, रोगी को अपनी आवाज की नली कच्ची सी महसूस होती है, रोगी के गले के अन्दर सूजन सी हो जाती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को काली पर्मागानिकम औषधि का सेवन कराना बहुत ही लाभदायक साबित होता है।

गले से सम्बंधित लक्षण- रोगी के गले में सूजन आने के साथ तेज दर्द होना, रोगी जब खखार कर बलगम निकालता है तो बलगम के साथ खून भी आ जाता है, रोगी की नाक के पीछे के छेद में हर समय दर्द सा होता रहता है, रोगी की गर्दन की पेशियां दर्द करती रहती है, रोगी जैसे ही सांस लेता है और छोड़ता है तो उसकी सांस में से बदबू आने लगती है, रोगी के गले में सूजन का आना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को काली पर्मागानिकम औषधि सेवन कराना काफी अच्छा रहता है।

मात्रा-

रोगी को काली पर्मागानिकम औषधि का 2x शक्ति का तनुकरण देने से रोगी कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।

नोट-

स्थानीय व्यवहार के लिए काली पर्मागानिकम औषधि को 250 ग्राम पानी में 1 ड्राम घोलकर घोल बनाया जा सकता है। इस घोल को कैंसर, जख्म, पुराना जुकाम तथा दूसरी किसी भी तरह की बदबू को कम करने के लिए किया जाता है। स्त्रियों के प्रदर रोग (योनि में से पानी का आना) तथा पुरुषों के सूजाक रोग में इसका इस्तेमाल इंजेक्शन के रूप में किया जाता है।

विशेष जानकारी-

काली पर्मागानिकम औषधि को अफीम द्वारा शरीर में पैदा हुए जहर को समाप्त करने के लिए एक बहुत ही प्रभावशाली रासायनिक प्रतिविष के रूप में जाना जाता है। ये अफीम पर प्रत्यक्ष क्रिया करता है तथा ऑक्सीकरण के द्वारा उसके जहर को कम कर देता है। काली पर्मागानिकम औषधि तब बहुत असरदार क्रिया करती है जब वह आमाशय के अन्दर अफीम या मार्फिन के पूरी तरह संपर्क में आता है। होम्योपैथिक चिकित्सा का सबसे बड़ा सिद्धान्त यह है कि जैसे ही पता चलता है कि रोगी ने जहर खा लिया है उसी समय पानी में 2 ग्रेन से लेकर 5 ग्रेन तक काली पर्मागानिकम औषधि को घोलकर रोगी को पिला देना चाहिए। अगर जहर ज्यादा मात्रा में खा लिया गया हो तो इस औषधि की मात्रा बढ़ा भी सकते हैं।


क्रियोजोटम Kreosotum

 क्रियोजोटम Kreosotum

परिचय-

क्रियोजोटम औषधि का उपयोग पूरे शरीर में जलन होना, त्वचा के छोटे-छोटे जख्मों से खून का आना, तन्त्रिका से सम्बंधित बहुत पुराने रोग, कैंसर को पैदा करने वाले रोग, खून का आना, मासिकधर्म के बन्द होने के बाद होने वाले रोग, बच्चों के दांत निकलते समय होने वाले रोग आदि में बहुत लाभकारी साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर क्रियोजोटम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण- सिर में दर्द होना, स्त्री को मासिकधर्म आने के दौरान सिर में दर्द होना, सिर के पीछे के हिस्से में दर्द होना जैसे लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि को सेवन कराने से लाभ होता है।

मन से सम्बंधित लक्षण- गाना सुनते समय भावुक हो जाने के कारण रोगी को रोना आ जाना, दिल की धड़कन का तेज हो जाना, किसी भी बात को कुछ ही देर में भूल जाना, किसी से भी ढंग से बात न करना, हर चीज के लिए जिद करना, बच्चे की हर चीज लेने के लिए जिद करना लेकिन लेने के बाद उस चीज को कुछ ही देर में फेंक देना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को क्रियोजोटम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

कान से सम्बंधित लक्षण - कानों के चारों ओर के हिस्से में फुंसियां होना, कान के अन्दर फुंसियां होना, किसी के तेज आवाज में बोलने पर ही उसकी बात सुनाई देना, कानों में अजीब सी भिनभिनाहट होते रहना जैसे कान के रोगों के लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि का प्रयोग कराते रहने से आराम आता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों की पलकों के लाल होने के साथ-साथ सूज जाना, आंखों से नमकीन आंसू निकलते रहना आदि लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि देने से लाभ मिलता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- चेहरे का हर समय रोता हुआ सा बनाकर रखना, चेहरे का आकार अजीब सा बनाना, चेहरे का गर्म होना और गालों का लाल होना जैसे लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि देने से लाभ होता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण - होंठों से खून का निकलना, बच्चे के दांत निकलते समय बहुत ज्यादा दर्द होना और रात को बच्चे का सो न पाना, मुंह का स्वाद खराब होना, दान्तों का रंग काला सा होना, मसूढ़ों से खून का आना जैसे लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण - नाक से बदबूदार स्राव का आना, बूढ़े लोगों को होने वाला पुराना जुकाम, तीखा कच्चापन, ल्यूपस आदि जैसे नाक के रोगों के लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - जी का मिचलाना, भोजन करने के बाद काफी देर तक उल्टी होते रहना, आमाशय के अन्दर बहुत ज्यादा ठण्डक सी महसूस होना, आमाशय में दर्द होना लेकिन कुछ खाते ही आराम आ जाना, पानी पीने के बाद उसका स्वाद कड़वा सा लगना आदि लक्षणों में क्रियोजोटम औषधि का सेवन करना अच्छा रहता है।

गले से सम्बंधित लक्षण - गले में जलन सी महसूस होना, ऐसा लगना जैसे कि गला बन्द हो गया हो, गले में से पीब जैसी बदबू का आना। ऐसे लक्षणों के आधार पर रोगी को क्रियोजोटम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण - पेट का फूल जाना, बवासीर के दौरान खून का जलन के साथ आना, दस्त होना, मल का गहरे रंग में, खून के साथ, बदबूदार रूप में आना, बच्चों के दांत निकलने के दौरान होने वाला दस्त का रोग, त्वचा का सूखना, शरीर में थकान सी महसूस होना जैसे लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि देने से लाभ होता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- स्त्री की योनि खुजली होना, योनि के आसपास के हिस्से में जलन और सूजन होना, योनि के आसपास के हिस्से और जांघों के बीच के हिस्से में बहुत तेजी से होने वाली खुजली, मासिकधर्म के दौरान लड़कियों का कम सुनाई देना, शरीर के बाहर और अन्दर के भागों में खुजली सी होना, संभोगक्रिया करने के बाद खून का आना, मासिकधर्म समय से काफी दिनों पहले आ जाना और काफी दिनों तक बने रहना, गर्भकाल के दौरान उल्टी और लार का ज्यादा आना, मासिकधर्म के दौरान स्राव का रुक-रुककर आना, मासिकधर्म के दौरान दर्द का तेज होना, बच्चे को जन्म देने के बाद बदबूदार स्राव का आना जैसे लक्षणों में रोगी स्त्री को क्रियोजोटम औषधि देने से लाभ होता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण- पेशाब का बदबू के साथ आना, पेशाब करते समय योनि में तेजी से होने वाली खुजली, पेशाब करने के लिए लेटना पड़ता है, नींद में ऐसा महसूस होना जैसे कि पेशाब कर रहे हों, रात को सोने के थोड़ी देर बाद ही पेशाब का आना, पेशाब आते ही तुरन्त पेशाब करने के लिए भागना जैसे लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है। 

सांस से सम्बंधित लक्षण - शाम के समय बहुत तेज खांसी होने के साथ-साथ उल्टी होना और छाती में दर्द होना, आवाज की नली के अन्दर दर्द होने के साथ-साथ आवाज का खराब होना, इंफ्लुएंजा रोग के बाद खांसी होना, बूढ़े लोगों को सर्दी के दिनों में होने वाली खांसी, खांसी होने के बाद हर बार काफी मात्रा में बलगम का आना, छाती में कच्चापन महसूस होने के साथ-साथ जलन और दर्द होना, उरोस्थि पर अन्दर की ओर दबाव सा पड़ना आदि लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि का सेवन नियमित रूप से कराने से लाभ मिलता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण - कमर में खिंचाव के साथ दर्द होना, जो जनेन्द्रियों और नीचे की ओर जांघों तक फैल जाता है, शरीर में बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को क्रियोजोटम औषधि देने से लाभ मिलता है।

बाहरीय अंग से सम्बंधित लक्षण - नितंबों, जोड़ों और घुटनों में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, नितंबों के जोड़ों में किसी चीज के घुसा देने जैसा दर्द होना जैसे लक्षणों में रोगी को क्रियोजोटम औषधि खिलाने से लाभ होता है। 

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- शाम के समय रोगी के शरीर पर बहुत तेजी से होने वाली खुजली, पैरों के तलुवों में जलन महसूस होना, त्वचा में छोटे-छोटे जख्मों के होने के कारण लगातार खून बहते रहना, हाथों की उंगलियों के पीछे की परत पर छाजन होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को क्रियोजोटम औषधि देने से आराम मिलता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण - रोगी को बहुत ज्यादा बेचैनी महसूस होना, सोते समय पूरी रात करवटें सी बदलते रहना, सुबह उठने पर सारे अंगों में लकवा सा मार देना महसूस होना, पूरी रात अजीब-अजीब से सपने आते रहना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को क्रियोजोटम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

प्रतिविष-

नक्स, कार्बो, आर्से, फास्फो, सल्फ। 

वृद्धि-

खुली हवा में, सर्दी लगने से, आराम करने से, लेटने पर, मासिकधर्म आने के बाद रोग बढ़ जाता है।

शमन-

गर्माई से, चलने-फिरने से, गर्म-गर्म भोजन करने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

क्रियोजोटम औषधि की तुलना फूलिगो लिग्नाइ, कार्बोलिक एसिड और आयोडम लैकेसिस से की जा सकती है।

मात्रा-

क्रियोजोटम औषधि की 3 से 30 शक्ति तक रोगी को देने से लाभ होता है।

जानकारी-

जिन लोगों को रोग बहुत ही जल्दी घेर लेते है उन्हें क्रियोजोटम औषधि की 200 शक्ति तक देने से आराम मिलता है।


काली नाइट्रिकम-नाइट्रम Kali Nitricum-Nitrum

 काली नाइट्रिकम-नाइट्रम Kali Nitricum-Nitrum

परिचय-

काली नाइट्रिकम औषधि खूनी दस्त, पेशाब में जलन होना, दस्त आना, दमा रोग, पेशाब का बार-बार आना जैसे रोगों में बहुत अच्छा असर करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली नाइट्रिकम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण- रोगी के सिर में बहुत तेजी से दर्द का होना, सिर के घूमने के कारण चक्कर आना, दिमाग थका हुआ सा महसूस होना, झुकने के कारण सिर में ज्यादा दर्द होना, खोपड़ी का बहुत ज्यादा नाजुक सा लगना, सिर में ऐसा लगना जैसे कि वह पीछे की ओर गिर रहा हो जैसे लक्षणों में रोगी को काली नाइट्रिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण :- आंखों से सब कुछ धुंधला सा दिखाई देना, आंखों में बहुत तेज जलन होना, आंखों में से हर समय आंसू से निकलते रहना, आंखों के सामने अजीब-अजीब सी चीजें दिखाई देना आदि आंखों के रोगों के लक्षणों में काली नाइट्रिकम बहुत ही उपयोगी साबित होती है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसकी नाक सूज रही हो, नाक के दायें नथुने में सूजन का ज्यादा लगना, बार-बार छींके आना, नाक की नोक का लाल होना और उसमें खुजली मचना आदि लक्षणों में रोगी को काली नाइट्रिकम देने से लाभ मिलता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- जीभ पर फुंसियां हो जाने के कारण उसका लाल हो जाना, जीभ की नोक पर जलन महसूस होना, गले का सिकुड़ा हुआ सा लगने के साथ दर्द होना आदि लक्षणों में काली नाइट्रिकम औषधि बहुत लाभकारी होती है।

मल से सम्बंधित लक्षण- मल का बिल्कुल पतला, पानी जैसा, खून के साथ आना, गाय के बछड़े का मांस खाने के कारण दस्त आना जैसे लक्षणों में रोगी को काली नाइट्रिकम औषधि देने से आराम मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण- मासिकस्राव का समय से काफी पहले ही आ जाना, स्राव का ज्यादा मात्रा में, काले रंग का आना, मासिकस्राव आने से पहले और आने पर कमर में दर्द हो जाना, योनि में से पानी आना, मासिकस्राव के दौरान डिम्बप्रदेश में जलन के साथ दर्द होना आदि लक्षणों में काली नाइट्रिकम औषधि बहुत ही लाभकारी होती है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- गले में खराश सी महसूस होना, रोगी को सुबह के समय खांसी उठने के साथ बलगम में खून का आना और छाती में दर्द होना, सांस की नली में सूजन आना, दमा रोग होने के साथ ही सांस लेने में परेशानी होना, जी मिचलाना, छाती का सिकुड़ा हुआ सा महसूस होना, सुबह के समय घुटन सी महसूस होना, टी.बी रोग की नई-नई अवस्थाएं, सांस लेने में परेशानी इतनी ज्यादा बढ़ जाना कि रोगी को पानी पीना भारी हो जाता है, बलगम में से खट्टी सी बदबू आना, आवाज की नली में खराबी हो जाना आदि लक्षणों में रोगी को काली नाइट्रिकम औषधि देने से लाभ होता है।

दिल से सम्बंधित लक्षण- रोगी को दिल में ऐसा महसूस होना जैसे कि दिल में कोई कुछ चुभा रहा हो, नाड़ी का कमजोर हो जाना, दिल की धड़कन का तेज हो जाना आदि लक्षणों में काली नाइट्रिकम औषधि का सेवन लाभकारी रहता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- हाथ और हाथ की सारी उंगलियों में सूजन आ जाना, कंधों और जोड़ों में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, स्कन्ध-फलकों के बीच के हिस्से में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को काली नाइट्रिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

वृद्धि-

गाय के बछड़े का मांस खाने से, सुबह और दोपहर के समय रोग तेज हो जाता है और घूंट-घूंट करके पानी पीने से रोग कम हो जाता है।

प्रतिविष-

ओपियम, नाइट्रि-स्प्रिट-डिल्सस।

तुलना-

काली नाइट्रिकम औषधि की तुलना गन पाउडर, कैना-सैटा, लाइका, सैंग्वी और एलियम सैटा औषधियों से की जा सकती है।

मात्रा-

काली नाइट्रिकम औषधि की 3x से 30 शक्ति तक रोगी को उसके रोग के लक्षणों को देखकर देने से लाभ होता है।


काली आयोडेटम Kali Iodatum

 काली आयोडेटम Kali Iodatum

परिचय-

शरीर में से पारे के जहर को दूर करने के लिए काली आयोडेटम औषधि बहुत चमत्कारिक औषधि मानी जाती है। रोगी के शरीर में किसी भी तरह से पारे के पहुंच जाने पर रोगी के शरीर में जहर फैल जाने के बाद अगर ये औषधि दी जाती है तो पारे के जहर का असर शरीर में से कम होने लगता है। इसके अलावा ये औषधि गण्डमाला (गले की गांठे) रोग में, उपदंश विष (फिरंग रोग के कारण शरीर में फैलने वाला जहर), कान में सांय-सायं की आवाजें सी गूंजना, शरीर में बार-बार पित्त का उछलना, नाई से दाढ़ी बनवाते समय उस्तरे लगने के कारण दाढ़ी में खाज हो जाना आदि रोगों में भी ये औषधि लाभकारी असर करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली आयोडेटम औषधि का उपयोग-

नाक से सम्बंधित लक्षण- उपदंश (फिरंग) रोग के लक्षणों वाले रोगी जैसे हल्की सी ठण्ड लग जाने से या मौसम के बदलाव से रोगी को तुरन्त ही जुकाम हो जाना, नाक से बहुत ज्यादा मात्रा में, पीले रंग का, गाढ़े से स्राव का आना, रोगी को बार-बार छींके आना, रोगी जब नाक छिनकता है तो उसकी नाक में से पपड़ियां सी और हड्डी के टुकड़े निकलते है, नाक की हड्डी का बहुत ही नाजुक हो जाना, नाक की हड्डी का सड़ जाना, नाक की जड़ में बहुत तेज दर्द होना आदि में रोगी को काली आयोडेटम औषधि देने से रोगी कुछ ही दिनों में बिल्कुल स्वस्थ हो जाता है।

गले से सम्बंधित लक्षण- रोगी के गले में गहरा जख्म होना, गले की कौड़ी में किसी तरह का जख्म होना, रोगी के गले में से गाढ़ा, नमकीन सा बलगम निकलना, रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसके गले के अन्दर छेद से हो गए हो जैसे लक्षणों वाले रोगी को काली आयोडेटम औषधि देना बहुत ही उपयोगी साबित होता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण- रोगी के दिमाग में खून का बहाव बहुत तेज हो जाना, हर समय बेहोशी सी छाए रहना, आंखों का बिल्कुल लाल हो जाना, सांस का बहुत तेजी से चलना, रोगी को ऐसा लगना जैसे कि उसके दिमाग में पानी भर गया हो आदि लक्षणों के आधार पर काली आयोडेटम औषधि का प्रयोग कराना रोगी के लिए काफी अच्छा रहता है।

बाहरीय अंग से सम्बंधित लक्षण- रोगी के जोड़ों में सूजन आना, रोगी का हर समय बेचैन सा रहना, चिड़चिड़ा सा हो जाना, शरीर के जोड़ों में बहुत तेज दर्द होना। इस तरह के लक्षणों में रोगी को काली आयोडेटम औषधि देने से लाभ मिलता है।

वृद्धि-

रात के समय, ठण्डी हवा में, आराम करने से रोगी का रोग बढ़ जाता है।

शमन-

घूमने से, खुली हवा में, हर समय किसी तरह की हरकत करने से रोगी का रोग कम हो जाता है ।

मात्रा-

रोगी को काली आयोडेटम औषधि की 1 से 3 शक्ति देने से रोगी कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो जाता है। 


काली म्यूरिएटिकम Kali Muriaticum

 काली म्यूरिएटिकम Kali Muriaticum

परिचय-

काली म्यूरिएटिकम औषधि का उपयोग हर तरह की ग्रन्थियों की सूजन, पीब, बलगम, प्रमेह, गर्मी के रोग, कान की सूजन, स्तनों की सूजन आदि में काफी लाभदायक रहता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली म्यूरिएटिकम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण- रोगी को सिर में तेज दर्द होने के साथ उल्टी होना, सिर में बहुत ज्यादा रूसी होना, रोगी के मन में विचार आता रहता है कि वह एक दिन भूखा मर जाएगा आदि लक्षणों में रोगी को काली म्यूरिएटिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों में पीब के साथ छोटी-छोटी फुंसियां निकलना, आंखो में जख्म, आंख का फूल जाना, आंख की पुतलियों की अपारदर्शिता जैसे आंख के रोग के लक्षणों में रोगी को काली म्यूरिएटिकम औषधि का प्रयोग कराना लाभकारी रहता है।

कान से सम्बंधित लक्षण- कान के अन्दर से पुराना स्राव आने का रोग, कान के आसपास की ग्रन्थियों में सूजन आ जाना, कान के अन्दर अजीब-अजीब सी आवाजें गूंजना, कान के जड़ की ग्रंथियों में जलन सी होना, कान के बाहर से बहुत ज्यादा स्राव सा होना जैसे लक्षणों में रोगी को काली म्यूरिएटिकम औषधि देने से लाभ होता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- नाक में से सफेद रंग का गाढ़ा सा बलगम का आना, नाक के अन्दर लेसदार पपड़ियां सी जमना, रोगी को ठण्ड के कारण दम सा घुटता हुआ महसूस होना, नाक से खून का आना आदि नाक के रोगों के लक्षणों में काली म्यूरिएटिकम औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- गालों में सूजन आने के कारण दर्द होने पर रोगी को काली म्यूरिएटिकम औषधि का प्रयोग कराने से आराम आता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- मुंह के अन्दर सफेद से छाले होना, मुंह के जबड़े और गर्दन के पास की ग्रंथियों में सूजन आ जाना, जीभ के ऊपर सफेद रंग की, सूखी या चिपचिपी सी परत का जमना आदि लक्षणो में काली म्यूरिएटिकम औषधि लेने से लाभ होता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- चेहरे पर बहुत सारे मुहासें निकलना और छाजन होना, त्वचा पर गाढ़ी, सफेद रंग की मवाद भरे हुए छाले निकलना, त्वचा पर सफेद सी पपड़ियों का जमना, घुटनों में बहुत तेजी से होने वाली जलन आदि में काली म्यूरिएटिकम औषधि बहुत उपयोगी मानी जाती है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- गठिया रोग के कारण रोगी को बुखार आ जाना, शरीर के जोड़ों में चारों तरफ सूजन और स्राव होना, किसी भी तरह की हरकत करते समय गठिया का दर्द तेज हो जाता है, लिखते समय हाथों का अकड़ जाना, रात के समय होने वाला गठिया का दर्द जो बिस्तर में लेटने से बढ़ता है और कमर के नीचे के हिस्से से लेकर पैरों तक होता है, ऐसे लक्षणों में रोगी को काली म्यूरिएटिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- मासिकधर्म के दौरान स्राव का समय से काफी बाद में या पहले आना, स्राव का ज्यादा मात्रा में, गहरे काले रंग का, तारकोल की तरह का आना, योनि में सफेद गाढ़ा सा पानी आना, सुबह उठते ही सफेद बलगम की उल्टी कर देना, स्तनों का बहुत ही नाजुक हो जाना जिनको छूते ही दर्द होने लगता है आदि लक्षणों के आधार पर काली म्यूरिएटिकम औषधि का प्रयोग करना काफी असरदार रहता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- गले में खराश सी हो जाना, आवाज का बिल्कुल बन्द हो जाना, दमा रोग होना, भोजन का सही तरह से न पचना, थोड़ी-थोड़ी देर में तेजी से उठने वाली खांसी, खांसी के दौरान सफेद गाढ़ा सा बलगम आना, सांस की नलियों के अन्दर भरे हुए गाढ़े, लेसदार बलगम से गुजरती हुई हवा के कारण छाती में आवाज होती है, ऐसे लक्षणों में रोगी को तुरन्त ही काली म्यूरिएटिकम औषधि का सेवन कराना शुरू कर देने से आराम आता है।

मल से सम्बंधित लक्षण- पेट में कब्ज का बनना, मल का हल्के रंग में आना, चर्बी बढ़ाने वाली चीजें खाने के बाद दस्त आना, खूनी दस्त, मल का बड़ी तेजी के साथ और चिकना आना, बवासीर में काला और गाढ़ा सा खून आना जैसे लक्षणों में रोगी को काली म्यूरिएटिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण- पेट का फूल जाना, पेट के कीड़े होने कारण मलद्वार में खुजली होना, पेट का बहुत ज्यादा मुलायम होना और पेट में सूजन आना जैसे लक्षणों में रोगी को काली म्यूरिएटिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- रोगी को भोजन करने के बाद भी बार-बार भूख लगना, पानी पीने के बाद भूख का शान्त होना, मुंह के अन्दर पानी भर जाना, आमाशय में दर्द होने के साथ-साथ कब्ज का बनना, भारी चीजें खाने के बाद बदहजमी हो जाना आदि लक्षणों के किसी रोगी में नजर आने पर उसे तुरन्त ही काली म्यूरिएटिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

गले से सम्बंधित लक्षण- गले की नसों में सूजन आ जाना और जलन होना, गले की नसों का इतना बढ़ जाना कि रोगी को सांस ले पाना मुश्किल हो जाता है, गले में भूरे रंग का निशान पड़ना, हास्पिटल में काम करने वाले व्यक्तियों को होने वाली गले में जलन जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को काली म्यूरिएटिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

वृद्धि-

भारी भोजन करने से, चर्बीदार चीजों का सेवन करने से, किसी तरह की हरकत करने से रोग बढ़ जाता है।

तुलना-

काली म्यूरिएटिकम औषधि की तुलना बेलाडोना, ब्रायों, मक्र्यू, पल्सा और सल्फ से की जा सकती है।

मात्रा-

काली म्यूरिएटिकम औषधि की 3x से लेकर 200 शक्ति तक रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर देने से लाभ होता है।


काली सायनैटम Kali Cyanatum

 काली सायनैटम Kali Cyanatum

परिचय-

काली सायनैटम औषधि को जीभ में कैंसर होने पर और स्नायु का दर्द होने के कारण परेशानी होने पर इस्तेमाल करना लाभकारी रहता है। इसके अलावा उल्टी होने के कारण सिर में दर्द होने, गृध्रसी (साइटिका) और मिर्गी आदि रोगों में भी ये औषधि काफी असरदार मानी जाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों में काली सायनैटम औषधि से होने वाले लाभ-

जीभ से सम्बंधित लक्षण- रोगी की जीभ में छालों के रूप में जख्म से हो जाना जिनके किनारे सख्त से रहते है, बोलने में परेशानी होती है, वाकशक्ति (आवाज) चली जाती है लेकिन दिमागी कमजोरी बनी रहती है, ऐसे लक्षणों में रोगी को काली सायनैटम औषधि देने से लाभ मिलता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- कनपटियों में तेजी से होने वाला स्नायु का दर्द, जो रोजाना एक ही समय पर उठता है, कोटरप्रदेश तथा अध:हनुप्रदेश (आधे जबड़े में दर्द होना) में दर्द होने के कारण रोगी का तेजी से चिल्लाना और बेहोश हो जाना जैसे लक्षणों में रोगी को काली सायनैटम औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- रोगी को लेटते ही खांसी चालू हो जाती है जिसके कारण वह सो भी नहीं पाता, सांस लेने में परेशानी होती है जिसके कारण वह गहरी सांस भी नहीं ले पाता, इस तरह के सांस रोग से सम्बंधित लक्षणों में काली सायनैटम औषधि का प्रयोग काफी लाभदायक रहता है।

वृद्धि-

सुबह के 4 बजे से लेकर शाम को 4 बजे तक रोग बढ़ जाता है।

तुलना-

काली सायनैटम औषधि की तुलना स्टैनम, सेड्रान, मेजीटियम और प्लैटीना से की जा सकती है।

मात्रा-

काली सायनैटम औषधि को रोगी को उसके रोग के लक्षणों को जानकर 6x से 200 शक्ति तक देने से लाभ मिलता है।


काली हाइड्रायडिकम Kali Hydriodicum

 काली हाइड्रायडिकम Kali Hydriodicum

परिचय-

काली हाइड्रायडिकम औषधि का उपयोग उपदंश के कारण होने वाले किसी भी प्रकार के रोग को दूर करने के लिए किया जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली हाइड्रायडिकम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण- रोगी को बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा हो जाने के कारण किसी से ढंग से बात न करना, हर समय दुखी और उदास बैठे रहना, सिर में खून जमा हो जाना, रोगी को गर्मी और ज्यादा जलन होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काली हाइड्रायडिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण- बहुत तेजी से होने वाला सिर दर्द, सिर के दोनों तरफ दर्द का होना, सिर के ऊपर गांठों के रूप में सूजन आना, आंखों के ऊपर और नाक की जड़ पर तेजी से दर्द का होना, दिमाग का ऐसा लगना कि वह बड़ा हो रहा है, मुंह के अन्दर जबड़े में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना आदि लक्षणों में काली हाइड्रायडिकम औषधि उपयोगी होती है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- नाक पर सूजन आने के कारण नाक का लाल होना, नाक के अन्दर से बहुत ज्यादा मात्रा में, तीखा, गर्म, पानी जैसा स्राव का आना, पुराना जुकाम होना, बार-बार छींके आना, नाक के अन्दर रूखापन आ जाना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को काली हाइड्रायडिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों के अन्दर का सफेद भाग लाल हो जाना, पलकों में फुंसी होने के कारण सूजन आ जाना, आंखों से कीचड़ आना आदि लक्षणों में रोगी को काली हाइड्रायडिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

कान से सम्बंधित लक्षण- कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें गूंजना, कानों के अन्दर बहुत तेजी से होने वाला दर्द आदि लक्षणों में रोगी को काली हाइड्रायडिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- लार का ज्यादा आना, अधिजठर में बेहोशी सी लगना, ठण्डी चीजों का सेवन करने से और दूध पीने से परेशानी बढ़ जाती है, प्यास का बहुत तेज लगना, पेट का फूलना, आमाशय में बहुत तेजी से जलन और दर्द का होना जैसे लक्षणों में रोगी को काली हाइड्रायडिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण- मासिकधर्म का समय पर न आना, मासिकधर्म के दौरान स्राव का ज्यादा मात्रा में आना, मासिकस्राव आने के दौरान रोगी स्त्री को ऐसा महसूस होता है जैसे उसके गर्भाशय को धोया जा रहा हो, गर्भाशय में सूजन आना, प्रदर रोग, नई दुल्हनों में गर्भाशय की जलन की अवस्थाएं आदि लक्षणों के आधार पर काली हाइड्रायडिकम औषधि को लेना लाभकारी होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- रोगी के सुबह उठने पर बहुत तेजी से खांसी का होना, फेफड़ों में सूजन का आना, आवाज की नली कच्ची सी महसूस होती है, रात को सोते समय अचानक ऐसा महसूस होता है जैसे कि दम सा घुट रहा हो और नींद खुल जाती है, खांसी के साथ हरे रंग का बलगम आना, निमोनिया हो जाना, फेफड़ों से होकर पीठ तक किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना, सीढ़ियों में चढ़ते समय सांस लेने में परेशानी होने के साथ-साथ दिल में भी दर्द का होना आदि लक्षणों में काली हाइड्रायडिकम औषधि बहुत उपयोगी होती है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- हडि्डयों में बहुत तेज दर्द का होना, टांग की लंबी हड्डी का सूज जाना और छूने पर दर्द करना, गठिया रोग जो रात को तथा ठण्डे मौसम में परेशान करता है, जोड़ों में खिंचाव होना, कमर और कमर के नीचे के हिस्से में दर्द होना, नितंबों में दर्द होने के कारण चलने में परेशानी होना, बैठने पर जनेन्द्रियों में किसी चीज के रेंगने जैसा महसूस होना जैसे लक्षणों के किसी व्यक्ति में नज़र आने पर उसे काली हाइड्रायडिकम औषधि देने से लाभ होता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- त्वचा पर और खासकर टांगों पर नीले से रंग के धब्बे पड़ना, चेहरे पर मुहांसे होना, शरीर पर छोटे-छोटे फोड़े होना, ग्रंथियों का बढ़कर सख्त हो जाना, शरीर में गर्मी तेज होना, छोटे बच्चों में मलद्वार की त्वचा का फट जाना, मुंह, आंखों की पलकें, गले के काग आदि में सूजन हो जाना, पूरे शरीर के ऊपर गांठें सी होना आदि चर्मरोगों के लक्षणों के किसी रोगी में नज़र आने पर उसे काली हाइड्रायडिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

वृद्धि-

गर्म कपड़ों को पहनने से, गर्म कमरे में, रात के समय, नम मौसम में रोग बढ़ जाता है और चलने से तथा खुली हवा में टहलने से रोग कम हो जाता है।

प्रतिविष-

हीपर।

तुलना-

काली हाइड्रायडिकम औषधि की तुलना आयोड, मर्क्यू, सल्फ, मेजी, चोपचीनी से किया जा सकता है।

मात्रा-

रोगी को काली हाइड्रायडिकम औषधि की 1x से लेकर 6x तक देने से रोगी ठीक हो जाता है।


काली कार्बोनिकम Kali Carconicum

 काली कार्बोनिकम Kali Carconicum

परिचय-

काली कार्बोनिकम औषधि का प्रयोग शरीर की क्रियाशीलता कम होने अथवा शरीर में खून का बहाव रुक जाने के कारण होने वाले रोगों में बहुत असरकारक होता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली कार्बोनिकम औषधि का इस्तेमाल-

सिर से सम्बंधित लक्षण- किसी रोगी को सवारी करते समय ठण्डी हवा लगने के कारण सिरदर्द हो जाना, सिर को घुमाते समय चक्कर से आना, कनपटियों में किसी चीज के चुभने के जैसा दर्द होना, सिर के पीछे के हिस्से में एक ही तरफ हल्का-हल्का सा दर्द होना, बस आदि में सफर करते समय जी मिचलाने लगना, सिर का ढीला सा महसूस होना, सिरदर्द का जम्भाइयों के साथ शुरू होना, बालों में बहुत ज्यादा रूसी होना और बालों का झड़ने लगना जैसे सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि देने से लाभ होता है।

मन से सम्बंधित लक्षण- रोगी को अकेले रहने में डर सा महसूस होना, हर चीज के लिए जिद करना, रोगी का स्वभाव तुरन्त ही बदल जाना जैसे कि अभी हंस रहा है तो अगले ही पल में रोने लगेगा, किसी से सही तरह से बात न करना, जरा सा भी शोर होते या किसी के छूते ही डर के मारे चीखने-चिल्लाने लगना जैसे मानसिक रोग से सम्बंधित लक्षणों के आधार पर रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण :- रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसकी आंखों में कुछ चीज चुभ रही हो, आंखों के आगे जालीदार और काले रंग के से धब्बे नज़र आना, सुबह उठने पर आंखों में से कीचड़ निकलने के कारण दोनों पलकों का आपस में चिपक जाना, पलकों के ऊपर सूजन सी आ जाना, पलकों और भौंहों के बीच वाली जगह पर सूजन आ जाना, ज्यादा संभोगक्रिया करने के कारण आंखों की रोशनी का कमजोर हो जाना, दोनों आंखों को बन्द करने पर ऐसा लगना जैसे कि कोई रोशनी दिमाग में घुस रही हो, इस तरह के आंखों के रोगों के लक्षणों में काली कार्बोनिकम औषधि लेने से आराम होता है।

कान से सम्बंधित लक्षण- कानों के अन्दर बहुत तेजी से खुजली मचना, ऐसा लगना जैसे कि कान में कोई चीज चुभ रही हो, कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें आना जैसे लक्षणों में रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- नाक के अन्दर से पीछे के हिस्से में से स्राव सा होते रहना, नाक के नथुनों में दर्द सा होना, पपड़ी जमना, नाक से श्लेष्मा के साथ खून का आना, नाक के नथुनों में आगे की ओर पपड़ियां सी जमना, मुंह को धोते समय नकसीर फूटने के कारण नाक से खून का आ जाना आदि नाक से सम्बंधित रोगों के लक्षणों में काली कार्बोनिकम औषधि का प्रयोग करना अच्छा रहता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- मुंह के अन्दर मसूढ़ों का दांतों से अलग हो जाने के कारण उनमें से हर समय पीब सी निकलती रहती है, मुंह में छाले से होना, जीभ का पूरी तरह से सफेद हो जाना, मुंह का स्वाद बहुत ज्यादा गन्दा हो जाना, मुंह में हर समय लार सी बनते रहना आदि लक्षणों में रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण- रात को सोते समय बार-बार पेशाब आने के कारण उठना पड़ता है, पेशाब करने से पहले काफी देर तक पेशाब की नली पर दबाव पड़ता है, रोगी को खांसते समय या छींक आने पर भी अपने आप ही पेशाब निकल जाता है, ऐसे लक्षणों में अगर रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि दी जाए तो ये उसके लिए काफी लाभकारी होती है।

पेट से सम्बंधित लक्षण- पेट का फूल जाना, रोगी के जिगर में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना, जिगर में होने वाले पुराने रोगों के कारण दर्द होना, पीलिया और पेट में पानी भरना आदि पेट के रोगों के लक्षणों में रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

पुरुष रोगों से सम्बंधित लक्षण- पुरुष को स्त्री के साथ संभोग करने के कारण बहुत सारी परेशानियां हो जाना, संभोगक्रिया के समय स्त्री को खुश न कर पाना, वीर्य का अपने आप ही निकल जाने के कारण कमजोरी आना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- स्त्री को मासिकधर्म समय से काफी पहले ही आ जाना, मासिकधर्म के दौरान स्राव का काफी मात्रा में आना, या मासिकधर्म का समय से बहुत पहले आ जाना और स्राव का कम मात्रा में आना, स्त्री की जनेन्दियों में दर्द होना, कमर में दर्द होना जो नितंब की पेशियों से होता हुआ नीचे की ओर पहुंच जाता है, पेट के अन्दर बहुत तेजी से होने वाला दर्द, स्त्रियों में मासिकधर्म का सही समय पर न आने के कारण स्तनों के रोग हो जाना और पेट में पानी भर जाना, लड़कियों का पहला मासिकधर्म बहुत ही दर्द के साथ आता है, बच्चे को जन्म देने के बाद स्त्री को होने वाली परेशानियां, गर्भाशय में से खून का आना, इस तरह के स्त्री के रोगों के लक्षणों में अगर स्त्री को नियमित रूप से काली कार्बोनिकम औषधि का सेवन कराया जाए तो उसको बहुत जल्दी आराम मिल जाता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- रोगी को हर समय मीठी चीजें खाने का मन करना, रोगी को पेट के अन्दर ऐसा महसूस होना जैसे कोई गेंद सी रखी हुई है, दम सा घुटता हुआ महसूस होना, ज्यादा ठण्डा पानी पीने से पेट का खराब हो जाना, बूढ़े लोगों को भूख न लगना, पेट में गैस बनना, जलन होना, पेट का फूलना, बहुत ज्यादा खट्टी-खट्टी डकारें आना, जी का मिचलाना, खट्टी सी उल्टी होना, किसी भी खाने की चीज को देखते ही जी का खराब हो जाना, पाचनसंस्थान में होने वाला दर्द जो पीठ तक पहुंच जाता है, इस तरह के आमाशय रोग से सम्बंधित लक्षणों में अगर काली कार्बोनिकम औषधि का सेवन किया जाए तो काफी लाभकारी रहता है।

गले से सम्बंधित लक्षण- गले का बहुत ज्यादा सूख जाना जैसे गला अन्दर से जल गया हो, गले में चिपचिपा सा दर्द होना जैसे गले में मछली का कांटा फंसा हुआ हो, किसी भी चीज को खाने पर निगलने में परेशानी होना, भोजन धीरे-धीरे आहारनली के अन्दर पहुंच जाता है, सुबह उठने पर गला बलगम से भरा हुआ होता है, इस तरह के लक्षणों में रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

मलान्त्र से सम्बंधित लक्षण- रोगी के मलद्वार में चारों ओर छोटी-छोटी सी फुंसियां निकलना जिनमें हर समय खुजली होती रहती है, मल का सही तरह से आने पर भी उसके साथ खून का आना, मलक्रिया के करीब 1 घंटे पहले मलद्वार में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना, खूनी बवासीर होना, खांसते समय बवासीर के मस्सों में बहुत तेजी से दर्द का होना, मलान्त्र और मलद्वार में जलन और खुजली सी होना जैसे लक्षणों में काली कार्बोनिकम औषधि का सेवन करना लाभदायक रहता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण- भोजन करने के तुरन्त बाद ही नींद आ जाना, नींद का रात को 2 बजे के करीब खुल जाना और उसके बाद किसी भी तरह से नींद का न आना। इस तरह के लक्षणों में काली कार्बोनिकम औषधि का प्रयोग करना असरकारक होता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- रोगी की त्वचा में इस तरह की जलन होना जैसे कि किसी ने पूरे शरीर पर सरसों का लेप कर दिया हो ऐसे लक्षण होने पर यदि काली कार्बोनिकम औषधि ली जाए तो त्वचा की जलन दूर हो जाती है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- शरीर के अंगों में सूजन आने के साथ-साथ बहुत तेजी से होने वाला दर्द, घुटने में सूजन सी आना, कमर और टांगों का बिल्कुल भी काम न कर पाना, शरीर के अंगों मे बेचैनी और भारीपन सा महसूस होने के साथ झटके लगना, कंधे से लेकर कलाई तक बेचैनी सी होना, शरीर के अंगों का एकदम से सुन्न हो जाना, हाथ-पैरों की उंगलियों के पोरों में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, पैर के अंगूठे में खुजली होने के साथ दर्द का होना, नितंबों से घुटनों तक दर्द होना, बूढ़े लोगों को होने वाला लकवा और जलोदर (पेट में पानी भरना) आदि लक्षणों में काली कार्बोनिकम औषधि का सेवन करना लाभदायक रहता है।

दिल से सम्बंधित लक्षण- रोगी को अपने दिल में ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसका दिल काम नहीं कर रहा हो, दिल का अनियमित गति से धड़कना, दिल के भाग में तेजी से होने वाली जलन, नाड़ी का बहुत तेजी से चलना, दिल का दौरा पड़ने की आशंका होना आदि दिल के रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को काली कार्बोनिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

वृद्धि-

संभोगक्रिया करने के बाद, ठण्डे मौसम में, कॉफी और शोरबा पीने से, सुबह के 3 बजे के आसपास, बांई ओर तथा पीड़ित अंग का सहारा लेकर लेटने से, गर्म मौसम में, दिन के समय रोग बढ़ जाता है।

शमन-

चलते-फिरते रहने से रोग कम हो जाता है।

प्रतिविष-

कैम्फ, काफिया।

पूरक-

कार्बो-वेज।

तुलना-

काली कार्बोनिकम औषधि की तुलना ब्रायो, लाइको, नेट्रम-म्यूर, नाइट्रिक-एसिड और स्टैनम के साथ की जा सकती है।

मात्रा-

काली कार्बोनिकम औषधि की 3 से ऊंची शक्ति या 6x का विचूर्ण रोगी को देने से लाभ होता है।


काली फास्फोरिकम Kali Phosphoricum

 काली फास्फोरिकम Kali Phosphoricum

परिचय-

विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली फास्फोरिकम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण- रोगी व्यक्ति का किसी भी दूसरे व्यक्ति से बात करने का मन न करना, थोड़ी सी मेहनत करते ही थक जाना, स्त्रियों में हिस्टीरिया रोग हो जाना, बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा हो जाना, हर समय डरते से रहना, दूसरे लोगों से शर्माना, याददाश्त कमजोर हो जाना, रात को सोने पर नींद का न आना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर के पीछे के हिस्से में दर्द होना, लेटने के बाद, बैठे-बैठे अचानक खड़े होने पर, ऊपर की ओर देखने से सिर का घूमना, पढ़ाई करते समय होने वाला सिर का दर्द, सिर में दर्द होने के साथ-साथ आमाशय के अन्दर अजीब सी हलचल होना, आमाशय का खाली सा लगना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों की रोशनी कम होना, डिफ्थीरिया रोग के बाद थकान होने से पलकों का नीचे की ओर लटकना, आंखों की रोशनी कम होने के साथ दिमाग का कमजोर होना, आंखों में ऐसा महसूस होना जैसे कि उसमें कुछ गिर गया हो आदि आंखों के रोग के लक्षणों में रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- नाक के अन्दर किसी तरह का रोग होने के कारण बदबू का आना, नाक में से स्राव का बदबू के साथ आना जैसे लक्षणों में रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि का सेवन कराने से आराम आता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण - सांसों में से बदबू का आना, जीभ पर मैले से रंग की परत जमना, दांतों में दर्द होने के साथ-साथ मसूढ़ों से खून का आना, दांतों पर लाल रंग की मैल का जमना, मसूढ़ों का बहुत ज्यादा कोमल और पीछे की ओर हटना आदि लक्षणों में रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- चेहरे के रंग का नीला होना, चेहरे का पिचक जाने के साथ-साथ आंखों का धंस जाना, चेहरे के दाईं ओर स्नायु का दर्द होना जैसे लक्षणों में रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि का सेवन नियमित रूप से कराने से लाभ मिलता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - रोगी को बार-बार भूख का लगना, भोजन करने के बाद भी दुबारा भूख का लग जाना, पेट के फूल जाने के कारण पेट में दर्द होना, आमाशय का बिल्कुल खाली सा महसूस होना, आमाशय में किसी तरह का घाव हो जाना आदि आमाशय रोग के लक्षणों में रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि खिलाने से आराम मिलता है।

पेट- पेट में सूजन आना, दस्त होना, मलक्रिया के समय मल में से गन्दी सी बदबू का आना, किसी तरह से डर जाने के कारण दस्त हो जाना, भोजन करते समय दस्त आना, मल के साथ खून का आना, हैजा होना आदि लक्षणों में रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- मासिकधर्म का समय से काफी दिनो के बाद आना और स्राव का बहुत ही कम मात्रा में आना, मासिकस्राव के बाद यौन उत्तेजना का तेज होना, जनेन्द्रियों तथा गर्भाशय में बहुत तेजी से होने वाली जलन, रोगी स्त्री का बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा हो जाना, चेहरा पीला हो जाना, बात-बात में रोने लगना, स्राव का ज्यादा मात्रा में, गहरे लाल रंग में, पतले रूप मे, बदबू के साथ आना, दुर्बल और निष्फल प्रसव वेदनायें आदि लक्षणों मे रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

पुरुष रोगों से सम्बंधित लक्षण- रात को सोते समय अपने आप ही वीर्य का निकल जाना, संभोग क्रिया में सफल न होना, संभोग करने के बाद शरीर में कमजोरी सी महसूस होना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण- पेशाब करते समय पेशाब के साथ खून का आना, पेशाब आते समय उसे थोड़ी देर तक रोकना भी मुश्किल हो जाना, पेशाब का रंग बहुत ज्यादा पीला होना, बार-बार पेशाब का आना आदि लक्षणों में रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- थोड़ा सा ऊपर जाने पर ही सांस का फूल जाना, खांसी के साथ पीले रंग का बलगम निकलना, दमे का रोग होना, थोड़ा सा खाना खाते ही सांस का रोग बढ़ जाना जैसे सांस के रोग के लक्षणों के आधार पर रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि का नियमित रूप से सेवन कराने से आराम मिलता है।

ज्वर (बुखार) से सम्बंधित लक्षण- किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान साधारण अवस्था से भी कम हो जाने जैसे बुखार के लक्षणों में रोगी को काली फास्फोरिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

बाहरीय अंग से सम्बंधित लक्षण- रोगी के कमर और जनेन्द्रियों में पक्षाघाती खंजता, मेहनत करने से रोग बढ़ जाना, दर्द के साथ ही निराशा और उसके बाद में थकान सी महसूस होना जैसे लक्षणों के आधार पर काली फास्फोरिकम औषधि का सेवन लाभकारी रहता है।

वृद्धि-

भोजन करने से, सर्दी लगने से और सुबह के समय रोग बढ़ जाता है।

शमन-

गर्मी से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

काली फास्फोरिकम औषधि की तुलना आर्स, कास्टि, लैक, जेल्स ओर म्यूर-एसिड के साथ कर सकते है।

मात्रा-

किसी भी रोगी को उसके रोग के लक्षण के आधार पर काली फास्फोरिकम औषधि की 3x से 12x तक देने से लाभ मिलता है।

जानकारी-

कुछ मामलों में रोगी के लक्षणों को देखकर काली फास्फोरिकम औषधि की ऊंची शक्तियां भी रोगी को दे सकते है।


काली बाइक्रोमिकम Kali Bichromicum

 काली बाइक्रोमिकम Kali Bichromicum

परिचय-

विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली बाइक्रोमिकम औषधि का उपयोग-

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों की पलकों में सूजन के साथ जलन होना, आंखों में से पीला सा रेशेदार स्राव निकलना, पलकों पर जख्म सा महसूस होना लेकिन उसमें न तो दर्द और न ही रोशनी में आने पर परेशानी होती है, आंखों के गोलों के ऊपर दांई तरफ स्नायुशूल, आंखों में हल्का-हल्का सा दर्द होने के साथ तेजी से जलन होना, आंख के अन्दर सूजन आना, आंखों का नाखूना, आंखों की पुतलियों में सूजन होना, पलकों के अन्दर के भाग में बिन्दुकित जमाव जैसे आंखों के रोग के लक्षणों में रोगी को काली बाइक्रोमिकम औषधि देने से लाभ होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण- कोई व्यक्ति बैठे-बैठे से अचानक उठता है तो उसका सिर घूमने लगता है, जी मिचलाने लगता है, भौंहों के ऊपर सिर में दर्द होना, आंखों के आगे धुंधलापन छा जाना, छोटे बच्चों का नजला दब जाने के कारण उनके आधे सिर में दर्द होना, माथे में हर समय एक ही आंख के ऊपर होने वाला दर्द आदि लक्षणों में काली ब्राइक्रोमिकम औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

कान से सम्बंधित लक्षण- कान में सूजन आने के साथ-साथ बहुत तेजी से होने वाला दर्द, कान के अन्दर से पीले रंग का, गाढ़ा सा, रेशेदार, बदबू के साथ स्राव का आना, बांई तरफ के कान में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द महसूस होना जैसे लक्षणों में रोगी को काली ब्राइक्रोमिकम औषधि लेने से आराम मिलता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- बच्चों की नाक बन्द होना लेकिन फिर भी उसमें से हर समय श्लैष्मिक स्राव होते रहना, नाक की जड़ पर दबाव पड़ने के साथ बहुत तेजी से दर्द होना, नाक से बदबूदार, गाढ़ा, हरा-पीला सा रेशेदार स्राव का निकलते रहना, नाक के पीछे के छेदों से हर समय श्लेष्मा बहता रहता है, नाक से सांस लेने में परेशानी होना, बार-बार छींकों का आना, सर्दी-जुकाम होने के साथ-साथ नाक भी बन्द हो जाती है, नाक के द्वारा किसी भी चीज की खुशबू या बदबू का पता नहीं चलता, ऐसे लक्षण अगर किसी व्यक्ति में नज़र आते हैं तो उसे तुरन्त ही काली बाइक्रोमिकम औषधि देना शुरू कर देने से वह कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- पूरे चेहरे पर लाल-लाल से दाने से निकल जाना, मुंहासे होना, आंखों के गोलों के नीचे की हड्डी का काफी नाजुक हो जाना, चेहरे का बिल्कुल लाल हो जाना जैसे लक्षणों में रोगी को काली ब्राइक्रोमिकम औषधि खिलाने से लाभ होता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- मुंह का सूख जाना, मुंह के अन्दर से चिपचिपी सी लार गिरते रहना, जीभ का लाल, चिकना, अजीब सी आकार की और सूखी हो जाना, जीभ के ऊपर दांतों के निशान से पड़ जाना, जीभ पर हर समय ऐसा महसूस होना जैसे कि कोई बाल सा चिपका हो आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काली ब्राइक्रोमिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- भोजन करने के बाद आमाशय का इतना भारी हो जाना जैसे कि किसी ने उसमें बहुत सारा सामान रख दिया हो, जिगर, प्लीहा और रीढ़ की हड्डी में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द महसूस होना, पानी पीने का बिल्कुल मन न करना, मांस खाने के बाद उसको पचाने में परेशानी होना, मन में ऐसी इच्छा होना कि जैसे बीयर पीनी हो और खट्टी चीजें खानी हो लेकिन बीयर पीते ही जी मिचलाने लगना और उल्टी हो जाना, उल्टी में सिर्फ पीले रंग का पानी सा निकलना आदि आमाशय रोग के लक्षणों में रोगी को काली बाइक्रोमिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

मल से सम्बंधित लक्षण- मल का सुबह के समय बार-बार आना, मल का लप्सी जैसा चिपचिपा सा आना, मल के साथ खून का आना, मलद्वार का ऐसा महसूस होना जैसे कि उसको किसी ने बन्द कर दिया हो, रोजाना पेट में कब्ज बनने के साथ-साथ कमर में आर-पार दर्द होना, पेशाब का रंग कत्थई सा आना जैसे लक्षणों के किसी रोगी में नज़र आने पर उसे काली बाइक्रोमिकम औषधि का सेवन कराना चाहिए।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण- रोगी को पेशाब करने के बाद ऐसा महसूस होना जैसे कि अभी भी पेशाब आ रहा है, पेशाब की नली में जलन होना, पेशाब में रेशेदार श्लेष्मा सा आना, पेशाब करने में रुकावट सी महसूस होना, गुर्दों में खून जमा हो जाने के कारण सूजन आ जाना, पेशाब का थोड़ा-थोड़ा सा आना, पेशाब के साथ खून , श्लेष्मा, पीब आना आदि लक्षणों में रोगी को काली बाइक्रोमिकम औषधि का सेवन कराना अच्छा रहता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण- रोगी की कमर के आर-पार बहुत तेजी से होने वाला दर्द, जरा सा भी चलने में परेशानी सी महसूस होना, दर्द का ऊरुसंधियों तक फैल जाना, पुच्छास्थि और त्रिकास्थि तक ऊपर-नीचे की ओर फैलने वाला दर्द जैसे लक्षणों में रोगी को काली ब्राइक्रोमिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- शरीर के अलग-अलग अंगों में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, ठण्ड के कारण हडि्डयों में दर्द होना, हडि्डयों का बहुत ज्यादा कमजोर हो जाना, बांई ओर के घुटने में दर्द होना जो गतिशील रहने से कम हो जाता है, चलते-फिरते समय एड़ियों में दर्द होना, सूजन और अकड़न तथा सारे जोड़ों की कड़कड़ाहट, कण्डरा-पेशियों में सूजन और दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को काली ब्राइक्रोमिकम औषधि देने से लाभ होता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण- लिंग में खुजली और दर्द होने के साथ फुंसियां होना, रात के समय रोग का बढ़ना, लिंग की जड़ पर रात को जागने पर सिकुड़न, लिंग के उत्तेजित होने पर दर्द होना, गर्मी के कारण लिंग पर जख्म सा हो जाना जिसमें से चिपचिपा सा स्राव होता रहता है आदि लक्षणों के प्रकट होने पर काली बाइक्रोमिकम औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण- स्त्री की योनि में से पीला, चिपचिपा पानी सा निकलना, योनि में खुजली, जलन और उत्तेजना होना, गर्भाशय के ऊपर की झिल्ली में खुरदरापन आना, गर्म मौसम में परेशानी का बढ़ना जैसे स्त्री रोगों के लक्षणों में स्त्री को काली ब्राइक्रोमिकम औषधि देने से लाभ मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- थोड़ी-थोड़ी देर के बाद उठने वाली खांसी, खांसी के साथ बहुत ज्यादा मात्रा में पीले रंग का, लेसदार, चिपचिपा, बलगम का निकलना, आवाज की नली में गुदगुदी सी होना, जुकाम होने के कारण आवाज की नली में सूजन आ जाना, खांसी होने के साथ उरोस्थि में दर्द जो कंधों तक फैल जाता है, जिस जगह पर सांस की नली 2 भागों में बंट जाती है खांसते समय उस जगह दर्द होता है, बीच वाली उरोस्थि से लेकर पीठ तक दर्द होना, इन सारे लक्षणों के किसी व्यक्ति में नज़र आने पर उसे तुरन्त ही काली बाइक्रोमिकम औषधि का सेवन कराना शुरू कर देने से लाभ होता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण- भोजन करने के बाद उसी समय पेट में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, आंतों के अन्दर पुराना जख्म, दांई तरफ के अध:पर्शुक में दर्द होना, जिगर का वसीय अन्त:स्पन्दन, पेट के सिकुड़ जाने के साथ दर्द और जलन होना जैसे पेट के रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को काली ब्राइक्रोमिकम औषधि खिलाने से आराम आता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- चेहरे पर मुहांसे निकलना, त्वचा के ऊपर छोटी-छोटी सी फुंसियां निकलना जैसे चेचक के दाने निकलते हैं, फोलेदार फुंसियों में खुजली होना आदि चर्मरोगों के लक्षणों में रोगी को काली ब्राइक्रोमिकम औषधि का सेवन कराने से आराम मिलता है।

प्रतिविष-

आर्से, लैके।

वृद्धि-

बीयर पीने से, सुबह के समय, गर्म मौसम में, कपड़े उतारते समय रोग बढ़ जाता है।

शमन-

गर्मी से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

ब्रोमियम, हीपर, इण्डिगो, कल्के, एण्डि-क्रूड, ब्रोमि, अमोनि-कास्टि, सल्फ्यू-एसिड, इपिक औषधि से की जा सकती है।

मात्रा-

3x, 30x तथा ऊंची शक्तियां भी।


काली ब्रोमैटम Kali Bromatum

 काली ब्रोमैटम Kali Bromatum

परिचय-

काली ब्रोमैटम औषधि याददाश्त कमजोर होने पर, आंखों, गले और त्वचा की श्लैष्मिक झिल्लियों की सुन्नता, चेहरे के मुहांसे, यौनशक्ति का कम हो जाना में काफी असरदार साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली ब्रोमैटम औषधि का उपयोग-

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- चेहरे पर मुहांसे और छोटी-छोटी फुंसियां सी निकलना, रोगी के छाती, कंधों और चेहरे पर खुजली ज्यादा होना, त्वचा का सुन्न होना, खुजली आदि चर्मरोगों के लक्षणों में रोगी को काली ब्रोमैटम औषधि देने से लाभ होता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण- रोगी को हर समय नींद सी आते रहना, नींद में बेचैनी सी महसूस होना, मन में कोई परेशानी, दुख या ज्यादा संभोगक्रिया करने के कारण नींद का न आना, निशाभीति (रात के समय डर का लगना), रात को सोते समय दांतों को पीसना, नींद में डरावने सपने आना, नींद में चलना आदि रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को काली ब्रोमैटम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण- पेशाब की नली का सिकुड़ जाना, बार-बार पेशाब आने के साथ प्यास का लगना, मधुमेह, पेशाब के रंग का पीला होना, डकार आना और उल्टी होना आदि लक्षणों में रोगी को काली ब्रोमैटम औषधि देने से लाभ मिलता है।

पुरुष रोगों से सम्बंधित लक्षण- रात को सोते समय गन्दे सपने देखने के कारण लिंग में उत्तेजना बढ़ जाना और व्यक्ति को स्वप्नदोष हो जाना, रोगी को कमजोरी और नपुसंकता होना, ज्यादा संभोगक्रिया करने के कारण होने वाले रोग जैसे याददाश्त कमजोर हो जाना, अंगों का सुन्न हो जाना, आधी नींद के दौरान कामोत्तेजना का तेज होना जैसे लक्षणों में रोगी को काली ब्रोमैटम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ होता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- मासिकधर्म आने से पहले सिर में दर्द शुरू हो जाना, मासिकस्राव का कम मात्रा में आना, स्त्री के अन्दर यौन उत्तेजना का तेज होना, डिम्बाशयशूल के साथ भारी स्नायविक व्याकुलता, योनि में खुजली होना, डिम्बग्रन्थियों फुंसियां आदि लक्षणों में रोगी को काली ब्रोमैटम औषधि देने से लाभ मिलता है।

मन से सम्बंधित लक्षण- रोगी के मन में गलत-गलत से विचारों का आना, भगवान के ऊपर से विश्वास उठ जाना, याददाश्त का कमजोर हो जाना, उसका दिमाग कहीं पर नहीं लगता, हर समय इधर-उधर घूमता रहता है, हर समय डरते सा रहना जैसे कोई उसे जहर खिलाने वाला हो, किसी के बोले हुए शब्दों को दोहरा तो सकता है लेकिन खुद अपने मन से कुछ नहीं बोल सकता, अंधेरे से डरना, मन में अजीब-अजीब सी बातों का आना, कभी भी रोने-चिल्लाने लगना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काली ब्रोमैटम औषधि खिलाने से आराम मिलता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण- रोगी को ऐसा लगना जैसे कि उसका सिर है ही नहीं अथवा सिर का सुन्न हो जाना, सर्दी-जुकाम होने के कारण गले का बन्द हो जाना, चेहरे का गुस्से में लाल हो जाना, बहुत ज्यादा पागलपन होने के साथ कंपन सा होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काली ब्रोमैटम औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

गले से सम्बंधित लक्षण- गले के काग और गलतोरणिका में खून का जमा हो जाना, गलतोरणिका, ग्रसनी और आवाज की नली का सुन्न हो जाना, किसी भी चीज को खाने पर निगलने में परेशानी होना (खासतौर से तरल पदार्थों को) आदि लक्षणों में काली ब्रोमैटम औषधि का सेवन अच्छा रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- भोजन करने के तुरन्त बाद ही उल्टी हो जाना, बार-बार तेजी से प्यास का लगना, हिचकी का बार-बार आना आदि लक्षणों में रोगी को काली ब्रोमैटम औषधि देना बहुत उपयोगी होता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण- रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसका पेट बाहर निकल रहा हो, बच्चों को हैजा रोग होने के साथ दिमाग में बेचैनी होना, पेशियों का फैलना, दस्त का हरा, पानी जैसा होना, तेज प्यास का लगना, उल्टी होना, आंखों का अन्दर की ओर घुस जाना, उदासी रहना, पेट के अन्दर ठण्डक सी महसूस होना, दस्त के साथ खून का अधिक आना, पेट का अन्दर की ओर घुस सा जाना, इस तरह के पेट से सम्बंधित रोगों के लक्षणों में काली ब्रोमैटम औषधि बहुत ही उपयोगी साबित होती है।

वृद्धि-

दिमागी मेहनत करने से, भावुकता से, ज्यादा संभोगक्रिया करने से, रात के समय, गर्भावस्था में, मासिकस्राव आने से पहले, बीच में और बाद में रोग बढ़ जाता है।

शमन-

किसी काम को करते रहने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

काली ब्रोमैटम औषधि की तुलना एम्ब्रा, बेल, कैम्फ, कुप्रम, जेलस, हायो, इग्ने, काली-फा, लैके, लायको, मर्क, नक्सवोमिका, ओपि, प्लम्ब, साइ, टरेण्टु, जिंक, जस्त औषधियों से की जा सकती है।

मात्रा-

काली ब्रोमैटम औषधि की 3x तक मात्रा रोगी को देने से लाभ मिलता है।


काली आर्सेनिकम Kali Arsenicum

 काली आर्सेनिकम Kali Arsenicum

परिचय-

काली आर्सेनिकम औषधि हर तरह के त्वचा के रोगों के लिए बहुत ही असरकारक औषधि मानी जाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काली आर्सेनिकम औषधि का उपयोग-

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- रोगी की त्वचा बिल्कुल सूख जाना और उसके ऊपर झुर्रियां सी पड़ जाना, रोगी को बहुत तेज होने वाली खुजली जो रोगी के कपड़े उतारते समय बहुत ज्यादा होती है, स्त्रियों को होने वाले मुहांसें और फुंसियां जो मासिकस्राव के दौरान और बढ़ जाती है, पुरानी छाजन, खुजली, रोगी के शरीर पर लाल-लाल सी फुंसियों का निकल आना, रोगी के बांहों और घुटनों के अन्दर के जोड़ों पर दरारें सी पड़ना, त्वचा का कैंसर जिसमें लक्षण पूरी तरह से सामने आए बिना ही अचानक गम्भीर अवस्था में आ जाता है, रोगी की त्वचा के नीचे बहुत सारी मात्रा में छोटी-छोटी सी गांठे निकल आती हैं। इस तरह के लक्षणों में अगर रोगी को काली आर्सेनिकम औषधि दी जाए तो रोगी कुछ ही समय में स्वस्थ हो जाता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- रोगी स्त्री के गर्भाशय के मुंह पर गोभी के फूल के जैसे फोड़े-फुंसियों के निकलने के साथ बहुत तेजी से होने वाला दर्द, बदबू के साथ आने वाला स्राव तथा उघनास्थियों के नीचे दबाव सा महसूस होना जैसे लक्षणों में रोगी को काली आर्सेनिकम औषधि देने से आराम मिलता है।

मात्रा-

रोगी को काली आर्सेनिकम औषधि की 3x से 30 शक्ति तक देने से लाभ मिलता है।


काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम Cajuputum-Oleum Wittnebianum

 काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम Cajuputum-Oleum Wittnebianum

परिचय-

जिस प्रकार लौंग का तेल शरीर के लिए बहुत ज्यादा लाभकारी होता है, काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम औषधि भी उसी तरह से शरीर को लाभ पहुंचाती है। ये औषधि पेट के फूलने और जीभ के रोगों को ठीक करने में बहुत ही असरदार साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण- रोगी को अचानक ऐसा महसूस होना जैसे कि उसका सिर बहुत ज्यादा बड़ा हो गया हो और उसको सिर को सम्भालना मुश्किल हो रहा हो जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- आमाशय के रोग के लक्षणों में रोगी के आमाशय में थोड़ी सी भी उत्तेजना होते ही उसे हिचकी आना शुरू हो जाती है, इस तरह के लक्षण में अगर रोगी को काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम औषधि दी जाए तो ये उसके लिए बहुत लाभकारी होती है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- किसी भी सख्त चीज को खाकर निगलते समय रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसकी गले की नली सिकुड़ गई हो, भोजन खाने की नली में घुटन सी होना, जीभ का फूलकर ऐसा हो जाना जैसे कि उसने पूरे मुंह को घेर लिया हो आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण- पेट फूलने के कारण पेट में दर्द होना, आंतों का स्नायविक अफारा, पेशाब करने पर पेशाब में से बहुत तेज बदबू का आना, हैजा रोग की गम्भीर स्थिति आदि लक्षणों में रोगी को काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम औषधि देने से लाभ होता है।

तुलना-

काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम औषधि की तुलना बोविस्टा, नक्समास्के, असाफी, इग्ने, बैप्टी से की जा सकती है।

मात्रा-

काजूपुटम-ओलियम विट्टनेबियेनम औषधि की 1x से 3x तक रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर देने से उसके रोग में आराम आता है।


काहिनका Cahinka

 काहिनका Cahinka

परिचय-

काहिनका औषधि हर तरह के शोफज विकारों (शरीर के किसी अंग में पानी भर जाना) में बहुत लाभकारी साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर काहिनका औषधि से होने वाले लाभ-

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण- रोगी को बार-बार पेशाब करने के लिए जाना पड़ता है, सफर करने के दौरान व्यक्ति को बार-बार पेशाब करने के लिए जाना पड़ता है, पेशाब का रंग लाल सा आना, पेशाब करने की ग्रन्थियों वाले भाग में जलन आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को काहिनका औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

पुरुष रोगों से सम्बंधित लक्षण- रोगी के अण्डकोषों और शुक्र नलिकाओं में खिंचाव सा महसूस होना, पेशाब करते समय तीखी सी गंध के साथ-साथ दर्द भी तेज हो जाता है, इस तरह के लक्षणों में रोगी को काहिनका औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण- रोगी को गुर्दों के आसपास के भाग में तेजी से दर्द महसूस होना जो पीछे की ओर झुककर बैठने से कम हो जाता है, हर समय शरीर में थकावट सी महसूस होना जैसे लक्षणों में काहिनका औषधि का सेवन काफी लाभकारी रहता है।

तुलना-

काहिनका औषधि की तुलना एपोसाइनम, आर्से, काफिया से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को काहिनका औषधि की 3x या उससे कम शक्ति भी देना लाभकारी होता है।


जस्टिसिया रुब्रम Justicia Rubrum

 जस्टिसिया रुब्रम Justicia Rubrum

परिचय-

जस्टिसिया रुब्रम औषधि किसी व्यक्ति को बलगम में खून आने पर या खून की उल्टी होने पर देने से लाभ पहुंचाती है। (जैसा कि टी.बी. के रोग की अवस्थाओं में होता है) यह औषधि रक्तनिष्ठीवन, में लाभकारी होती है। मात्रा-

किसी रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर जस्टिसिया रुब्रम औषधि का मूलार्क या 3x से 6x तक देना चाहिए।


जूनीपेरम कम्यूनिस Juniperus Communis

 जूनीपेरम कम्यूनिस Juniperus Communis

परिचय-

जूनीपेरम कम्यूनिस औषधि को गुर्दो में होने वाले स्राव के कारण जलन होने में, सभी तरह के जलोदर में, पेशाब का न आना, बूढ़े व्यक्तियों की पाचनक्रिया का खराब होना और पेशाब कम मात्रा में आना आदि में उपयोग किया जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जूनीपेरम कम्यूनिस औषधि का उपयोग-

पेशाब से सम्बंधित लक्षण-

पेशाब का बूंद-बूंद के रूप में आना, पेशाब का कम मात्रा में, खून के साथ और बदबूदार आना, गुर्दे का बहुत ज्यादा भारी महसूस होना, पेशाब के साथ धातु का आना, गुर्दों का बहुत ज्यादा कमजोर हो जाना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जूनीपेरम कम्यूनिस औषधि देने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को खांसी होने के साथ-साथ ज्यादा या कम मात्रा में पेशाब के आने में रोगी को जूनीपेरम कम्यूनिस औषधि का सेवन कराना चाहिए।

तुलना-

जूनीपेरम कम्यूनिस औषधि की तुलना सैबाइना, जूनीपेरस विजिनियानस से कर सकते हैं।

मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर जूनीपेरम कम्यूनिस औषधि का मूलार्क देने से लाभ होता है। 


जस्टिसिया एढाटोडा Justicia Adhatoda

 जस्टिसिया एढाटोडा Justicia Adhatoda

परिचय-

जस्टिसिया एढाटोडा औषधि को हर तरह के सर्दी-जुकाम के रोग में उपयोग करने से लाभ मिलता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जस्टिसिया एढाटोडा औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर का बहुत ज्यादा भारी सा महसूस होना जैसे कि किसी ने सिर में बहुत भारी वजन रख दिया हो, माथे के ऊपर जलन सी महसूस होना, सिर के दोनों ओर कंपन महसूस होना आदि लक्षणों में रोगी को जस्टिसिया एढाटोडा औषधि देने से लाभ मिलता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण -

आंखों के चारों तरफ पीले-पीले से निशान से बनना जैसे लक्षणों में रोगी को जस्टिसिया एढाटोडा औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण -

रोगी की जीभ पर सफेद मैल की सी परत का जम जाना, भूख न लगना, जीभ का सूख जाना, रोगी को बार-बार ठण्डा पानी पीने की प्यास लगना आदि लक्षणों में जस्टिसिया एढाटोडा औषधि का सेवन करने से आराम आता है।

मल से सम्बंधित लक्षण -

रोगी को पेट में कब्ज बनने पर मलक्रिया में बाधा उत्पन्न होने जैसे लक्षण प्रकट होने पर जस्टिसिया एढाटोडा औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है। 

मन से सम्बंधित लक्षण -

रोगी का किसी से बात न करना, बाहर जाने पर डर सा महसूस होना, किसी काम को करने से पहले ही डर जाना कि कहीं काम खराब न हो जाए आदि ऐसे लक्षणों में रोगी को जस्टिसिया एढाटोडा औषधि देने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण -

रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि उसके फेफड़ें सिकुड़ रहे हों, छाती के आरपार कसाव सा महसूस होना, रोगी को खांसी होते समय पूरे शरीर का कांपने लगना, सांस लेते समय परेशानी होने के साथ-साथ बलगम के साथ खून का आना, ऐसा महसूस होना जैसे कि सांस उखड़ रही हो, बांई तरफ लेटने पर रोगी की हालत और ज्यादा खराब हो जाना, रोगी को अगर किसी गर्म कमरे में रखा जाए तो उसकी हालत खराब हो जाती है, खांसी के साथ छींकों का भी बार-बार आना, दमे का रोग होना, उरोस्थि प्रदेश से होने वाली सूखी खांसी, काली खांसी आदि लक्षणों में रोगी को जस्टिसिया एढाटोडा औषधि का प्रयोग कराना लाभकारी रहता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण -

बुखार के लक्षणों में रोगी को सबसे पहले रोजाना शाम होते-होते ठण्ड सी लगने लगती है, रात को काफी सारा पसीना आता है, रोगी को हल्का-हल्का सा बुखार और खांसी भी रहती है, इस तरह के लक्षणों में अगर रोगी को जस्टिसिया एढाटोडा औषधि दी जाए तो लाभ होता है।

वृद्धि-

बन्द कमरे में, बातचीत करने से, सर्दी लग जाने से रोग बढ़ जाता है।

शमन-

शान्त रहने से, अकेले रहने से, खुली हवा में घूमने से रोग बढ़ जाता है।

तुलना-

जस्टिसिया एढाटोडा औषधि की तुलना एको, एरा, एका-इ, ब्राय, यूफ्रे, स्पन्ज से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर जस्टिसिया एढाटोडा औषधि की 3x, 6x और तीसवीं शक्ति देने से लाभ होता है। 


जस्टीशिया अधाटोडा बसाका Justicia Adhatoda Basaca

 जस्टीशिया अधाटोडा बसाका Justicia Adhatoda Basaca

परिचय-

जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि को सभी तरह की सर्दी-जुकाम और खांसी को दूर करने में चमत्कारिक औषधि के रूप में माना जाता है। रोगी को चाहे किसी भी प्रकार की खांसी क्यों न हो इस औषधि के इस्तेमाल से वह ठीक हो जाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को अपने सिर का बहुत ज्यादा भारी सा लगना, बाहर निकलते ही सिर में दर्द शुरू हो जाना, सिर का बहुत ज्यादा भारी सा होना, आंखों में से पानी निकलने के साथ-साथ सर्दी-जुकाम होना जिसके कारण नाक में से बहुत ज्यादा स्राव आता रहता है, बार-बार छींकों का आना, नाक के बन्द हो जाने के कारण किसी चीज की खुशबू या बदबू का पता न चलना, खांसी होना जैसे लक्षणों में रोगी को जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि का प्रयोग कराना लाभकारी रहता है।

गले से सम्बंधित लक्षण-

रोगी का गला और मुंह का बुरी तरह से सूख जाना, किसी भी चीज को खाते-पीते समय निगलने में भारी परेशानी होना, गले में से चिपचिपा सा बलगम निकलना आदि लक्षणों में रोगी को जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि देने से लाभ मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण-

रोगी के उरोस्थि प्रदेश से उठने वाली सूखी खांसी जो पूरी छाती में फैल जाती है, गले में खराश होना, आवाज की नली में दर्द सा होना, खांसी के साथ-साथ छींकों का भी आना, दौरे के रूप में उठने वाली खांसी के साथ सांस न ले पाने के कारण दम सा घुटना, छाती के आस-पास कसाव सा महसूस होना, दमा के दौरे उठना, रोगी को कमरे में बन्द करने से उसकी हालत और खराब हो जाना जैसे लक्षणों के आधार पर जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि लेने से आराम आता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण-

किसी रोगी के चेहरे पर अगर आंखों के आसपास के भाग में नीले-नीले से निशान से पड़ जाते है तो उस रोगी व्यक्ति को जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि का सेवन कराने से काफी लाभ होता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को रोजाना शाम होते ही ठण्ड सी लगने लगती है लेकिन रात को पसीना भी काफी आता है, फेफड़ों की टी.बी या फेफड़ों के दूसरे रोगों के कारण खांसी और हल्का सा बुखार रहना आदि लक्षणों में अगर रोगी को जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि दी जाए तो ये उसके लिए काफी असरदार साबित होती है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण-

रोगी की जीभ बिल्कुल सूख सी जाना और उसके साथ ही ऐसा महसूस होना जैसे कि बहुत सारा ठण्डा पानी पी लिया जाए इस तरह के लक्षणों में रोगी को जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि देने से लाभ मिलता है।

मल से सम्बंधित लक्षण-

किसी रोगी को पेट में कब्ज बनने के कारण मलक्रिया में परेशानी जैसे लक्षण पैदा होने पर जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि सेवन कराने से लाभ मिलता है। 

तुलना-

जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि की तुलना सीपा और यूफ्रेशिया के साथ की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को जस्टीशिया अधाटोडा बसाका औषधि की 3x, 6x और 30वीं शक्तियां देने से लाभ होता है। 


जुंकस इफ्फ्यूसस Juncus Effusus

 जुंकस इफ्फ्यूसस Juncus Effusus

परिचय-

जुंकस इफ्फ्यूसस औषधि पेशाब से सम्बंधित रोगों जैसे पेशाब करते समय परेशानी होना, पेशाब का बूंद-बूंद करके आना, पेशाब के संग धातु का आना में विशेष तौर पर लाभकारी होती है। इसके अलावा बवासीर के रोगियों में दमे के रोग के लक्षण, नींद में बड़बड़ाते रहना, पेट में गैस का बनना, जोड़ों में सूजन और पित्त की थैली में पथरी आदि रोगों में ये औषधि लाभकारी होती है। मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर जुंकस इफ्फ्यूसस औषधि की मूलार्क या 1x शक्ति देने से लाभ होता है।


जुग्लान्स रेजिया Juglans Regia

 जुग्लान्स रेजिया Juglans Regia

परिचय-

जुग्लान्स रेजिया औषधि को त्वचा के बहुत से रोगों को ठीक करने के लिए बहुत ही असरकारक माना जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जुग्लान्स रेजिया औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर के पीछे के हिस्से में बहुत तेजी से दर्द होना, रोगी को ऐसा भ्रम होता है जैसे कि उसका सिर हवा में तैर रहा है आदि लक्षणों में रोगी को जुग्लान्स रेजिया औषधि देने से लाभ होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

स्त्री का मासिकधर्म समय से पहले आना, स्राव का काला और राल जैसा जमा हुआ आना, पेट का फूलना जैसे लक्षणों में जुग्लान्स रेजिया औषधि का सेवन करने से रोगी को आराम मिलता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण-

चेहरे के ऊपर मुहांसे और काले से दाने उभरना, त्वचा पर छोटी-छोटी फुंसियों का खुजली के साथ होना, खोपड़ी के ऊपर सफेद रंग का दाद होने के साथ कानों के चारों तरफ दर्द होना, कक्षा ग्रन्थियों से मवाद सी बहते रहना, खोपड़ी का लाल होने के साथ-साथ रात के समय बहुत तेज खुजली होना आदि लक्षणों में जुग्लान्स रेजिया औषधि का प्रयोग लाभकारी रहता है।

तुलना-

जुग्लान्स रेजिया औषधि की तुलना जुग्लान्स सिनेरिया से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को जुग्लान्स रेजिया औषधि का मूलार्क या कम शक्तियां देने से लाभ होता है।


जॉनोसिया अशोका Jonosia Ashoka

 जॉनोसिया अशोका Jonosia Ashoka

परिचय-

भारत में एक पेड़ पाया जाता है जिसका नाम होता है अशोक, जॉनोसिया अशोका औषधि को इसी पेड़ की छाल से तैयार किया जाता है, ये औषधि स्त्रियों के बहुत से रोगों में लाभकारी होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जॉनोसिया अशोका औषधि का उपयोग-

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

आमाशय के रोगों के लक्षणों में रोगी को बार-बार प्यास सी लगती रहती है, रोगी का मन ऐसा करता है जैसे कि उसे हर समय खट्टी-मीठी चीजें खाने को मिलती रहे, बहुत ज्यादा जी का मिचलाना, पेट में कब्ज का बनना, खूनी बवासीर आदि लक्षणों में रोगी को जॉनोसिया अशोका औषधि देने से लाभ मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण-

स्त्री का मासिकधर्म समय से काफी दिनों के बाद आना और स्राव का ज्यादा मात्रा में आना, मासिकधर्म का कष्ट के साथ आना, मासिकस्राव आने से पहले डिम्बग्रन्थियों में दर्द, मासिकस्राव का अधिक मात्रा में होना, योनि में उत्तेजना बढ़ना, योनि में से पानी का आना जैसे स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षणों में जॉनोसिया अशोका औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर के पीछे के एक हिस्से में दर्द होना, सिर में खून जमने के कारण दर्द हो जाना, आंखों के अन्दर के गोलों में दर्द होना, रोशनी में आते ही आंखों का बन्द हो जाना, नाक में जुकाम होने के कारण बहुत ज्यादा मात्रा में पानी जैसा स्राव का आना, सूंघने की शक्ति का समाप्त हो जाना आदि लक्षणों में रोगी को जॉनोसिया अशोका औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को रात को सोते समय नींद का न आना, नींद में कहीं दूर की यात्रा करने के सपने आना जैसे लक्षणों के आधार रोगी को जॉनोसिया अशोका औषधि देने से लाभ होता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण-

रोगी की रीढ़ की हड्डी में दर्द जो पेट और जांघों तक पहुंच जाता है, इस तरह के लक्षणों में अगर रोगी को जॉनोसिया अशोका औषधि दी जाए तो लाभकारी होता है।

तुलना-

जॉनोसिया अशोका औषधि की तुलना बाइबर्नम, ओपुलस, बाइबर्नम प्रनिफोलिम से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर जॉनोसिया अशोका औषधि का मूलार्क या 3x शक्ति तक देने से लाभ होता है। 


जुग्लान्स सिनेरिया Juglans Cinerea

 जुग्लान्स सिनेरिया Juglans Cinerea

परिचय-

जुग्लान्स सिनेरिया औषधि का उपयोग जिगर के खराब होने के कारण सिर के पीछे के हिस्से में तेजी से होने वाले दर्द में होता है। इसके अलावा छाती, कांख और स्कंधफलक में दर्द होने के साथ रोगी को दम सा घुटना, पित्त की थैली में पथरी होने में भी ये औषधि बहुत असरकारक साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जुग्लान्स सिनेरिया औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

रोगी के सिर में ऐसा महसूस होना जैसे कि बहुत सारा वजन सिर पर रखा हो, सिर में दर्द, सिर के पीछे के हिस्से में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, सिर का ऐसा महसूस होना जैसे कि वह बहुत बड़ा हो गया है, आंखों और पलकों के चारों तरफ छोटी-छोटी सी फुंसियां निकलना आदि लक्षणों में रोगी को जुग्लान्स सिनेरिया औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण-

नाक के अन्दर गुदगुदी सी महसूस होना, बार-बार छींके आते रहना, जुकाम होने से पहले उरोस्थि के नीचे दर्द सा होना, रोगी को ऐसा लगना जैसे कि उसका दम घुट रहा हो, इसके बाद बहुत ज्यादा मात्रा में नाक के अन्दर से गाढ़ा सा श्लैष्मिक स्राव का होना जैसे लक्षणों के रोगी में नजर आने पर रोगी को जुग्लान्स सिनेरिया औषधि देने से लाभ मिलता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण-

रोगी के मुंह और गले में ऐसा महसूस होना जैसे कि कुछ जल रहा हो, जीभ का सूख जाना, गलतुण्डिका प्रदेश में बाहर की ओर दर्द सा होना। इस तरह के मुंह से सम्बंधित रोगों के लक्षणों में जुग्लान्स सिनेरिया औषधि का प्रयोग करना लाभकारी रहता है।

मल से सम्बंधित लक्षण-

मल का पीला और हरे रंग का आना, इसके साथ ही कूथन और मलद्वार में जलन सी होना, कैम्प डायरिया आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जुग्लान्स सिनेरिया औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को बहुत ज्यादा डकारें आना, पेट में गैस बनने के कारण पेट का फूल जाना, जिगर के पूरे भाग में दर्द होना आदि आमाशय से सम्बंधित रोगों के लक्षणों में रोगी को जुग्लान्स सिनेरिया औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण-

गर्दन की पेशियों का सख्त हो जाना, स्कंधफलक के नीचे दांई तरफ के भाग में दर्द, कमर की कशेरुकाओं में दर्द होना जैसे लक्षणों में रोगी को जुग्लान्स सिनेरिया औषधि का प्रयोग कराने से आराम मिलता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण-

पीलिया रोग होने के साथ ही जिगर के भाग और स्कंधफलक में दर्द होना, शरीर में गर्मी के कारण खुजली और चुभन सी महसूस होना, त्वचा पर छोटी-छोटी फुंसियां निकलना, त्वचा का बिल्कुल लाल हो जाना जैसे कि आरक्तज्वर (Scarelatina) में रोगी को होता है, रोगी के जननेन्द्रियों, हाथों और त्रिकास्थि पर छाजन होना, रक्तविकार के कारण त्वचा में विकार होना आदि चर्मरोगों से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को जुग्लान्स सिनेरिया औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

वृद्धि-

चलने-फिरने से रोग बढ़ जाता है।

शमन-

गर्मी के कारण, कसरत करने से, खुजली करने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

जुग्लान्स सिनेरिया औषधि की तुलना ब्रायों, आइरिस, चेलिडो से की जा सकती है।

मात्रा-

जुग्लान्स सिनेरिया औषधि की मूलार्क या 3 शक्ति तक रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर देने से लाभ मिलता है। 


जिंजिबर Zingiber

 जिंजिबर Zingiber

परिचय-

जिंजिबर औषधि को पाचनशक्ति के कमजोर होने पर, प्रजनन संस्थान और सांस के रोगों में प्रयोग करने से बहुत लाभ होता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जिंजिबर औषधि से होने वाले लाभ-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

रोगी के आधे सिर में दर्द होना (माईग्रेन), आंखों की भौंहों के ऊपर दर्द होना, आंखों के सामने हर समय चिंगारियां सी उठती हुई नज़र आना, सिर का ऐसा महसूस होना जैसे कि सिर घूम रहा हो या बिल्कुल खाली हो आदि सिर से सम्बंधित रोगों के लक्षणों में रोगी को जिंजिबर औषधि देने से लाभ मिलता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को ऐसा लगना जैसे कि उसकी नाक बन्द हो गई हो, नाक में बहुत तेजी से होने वाली खुजली, नाक में छोटी-छोटी लाल रंग की फुंसियां सी निकलना आदि लक्षणों में रोगी को जिंजिबर औषधि देने से आराम मिलता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

आमाशय का बहुत ज्यादा भारी लगना जैसे कि किसी ने उसमें कोई भारी चीज रखी हो, भोजन करने के बाद काफी समय तक उसका स्वाद का बना रहना, तरबूज और खरबूज खाने या गन्दा पानी पीने से पैदा होने वाले आमाशय के रोग, पेट में एसिडिटी (गैस) होना, सुबह उठने पर आमाशय का भारी सा लगना, प्यास का बहुत तेजी से लगना, पेट से लेकर उरोस्थि के नीचे के भाग में दर्द जो खाने से तेज हो जाता है, इस तरह के लक्षणों में रोगी को जिंजिबर औषधि देने से आराम आ जाता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण-

पेट में बहुत तेजी से होने वाला दर्द, दस्त का बहुत ज्यादा मात्रा में और पतला सा आना, गन्दा पानी पीने से दस्त का आना, पेट का फूल जाना, स्त्री को गर्भावस्था के दौरान मलद्वार गर्म सा लगना और उसमें दर्द होना, आंतों में से पुराना स्राव का आना, बवासीर के मस्से गर्म और दर्द भरे आदि लक्षणों में जिंजिबार औषधि का उपयोग अच्छा रहता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण-

पेशाब का बार-बार आना, पेशाब की नली में बहुत तेज दर्द और जलन होना, पेशाब का गाढ़ा, गन्दे रंग का और बदबू के साथ आना, पेशाब के रास्ते से पीले रंग का स्राव सा आना, टायफाइड के बुखार के बाद पेशाब का बिल्कुल न आना, पेशाब करने के बाद भी पेशाब का बूंदों के रूप में टपकते रहना आदि लक्षणों के आधार पर जिंजिबर औषधि का सेवन लाभकारी रहता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण-

पुरुष की लिंग की त्वचा में बहुत तेज खुजली होना, लिंग में उत्तेजना होने के बाद दर्द का होना, रात के समय यौन उत्तेजना का तेज होना, शुक्रमेह जैसे लक्षणों में रोगी को जिंजिबर औषधि का प्रयोग कराना असरकारक रहता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण-

रोगी के गले में आवाज की नली में किसी जहरीले कीड़े द्वारा डंक मारने जैसा महसूस होना, सांस लेने में परेशानी होना, गले में खराश सी महसूस होना, छाती में किसी चीज की चुभन महसूस होती है, दौरे के रूप में सूखी खांसी का उठना, सुबह के समय बलगम का ज्यादा निकलना, दमा का प्रभाव सुबह के समय ज्यादा होता है आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जिंजिबर औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण-

शरीर के सारे जोड़ों का बहुत ज्यादा कमजोर सा लगना, हाथों की हथेलियों और पैरों के तलुवों में जलन सी होना, पीठ में लकवा होना आदि इस तरह के लक्षणों में रोगी को जिंजिबर औषधि का उपयोग कराना अच्छा रहता है।

प्रतिविष-

नक्स।

तुलना-

जिंजिबर औषधि की तुलना कैलोडि से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी के लक्षणों को देखकर अगर जिंजिबर औषधि की 1x से 6x शक्ति तक दी जाए तो काफी लाभ होता है। 


जेलसिमियम निटिडम Jailsium Nitidum

 जेलसिमियम निटिडम Jailsium Nitidum 

परिचय-

जेलसिमियम निटिडम औषधि को रोगी के चलने-फिरने की शक्ति बिल्कुल समाप्त हो जाने पर और उसकी ग्रन्थियां बिल्कुल ढीली और सुस्त पड़ जाती है। ऐसे लक्षणों में जेलसिमियम औषधि का उपयोग करने से रोगी को बहुत लाभ मिलता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जेलसिमियम निटिडम औषधि का उपयोग-

बुखार से सम्बंधित लक्षण-

बच्चों को रुक-रुक कर आने वाला बुखार जिसमे रोगी को बहुत हल्का सा बुखार रहता है, बच्चे के शरीर में बहुत कमजोरी आ जाती है, बच्चा हर समय नींद में ही रहता है, चाहकर भी बच्चा कमजोरी के मारे कोई काम नहीं कर सकता, बच्चे को आने वाला बुखार कमर से माथे के पीछे के हिस्से तक ऊपर और नीचे लगातार चढ़ता-उतरता रहता है, बच्चे का ठण्ड के मारे कांपते रहना, नाड़ी का बहुत धीरे-धीरे चलना आदि लक्षणों में रोगी को जेलसिमियम निटिडम औषधि का सेवन कराना बहुत लाभदायक रहता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

रोगी के सिर के निचले हिस्से में हल्का-हल्का सा दर्द होता है जिसके कारण रोगी को सिर के नीचे ऊंचा तकिया लगाकर सोना पड़ता है, शराब का सेवन करने वाले लोगों को होने वाला सिर का दर्द, सिर में खून का बहाव कम होने के कारण होने वाला सिर का दर्द जो सिर के पिछले हिस्से से शुरू होकर पूरे सिर में फैल जाता है तथा पेशाब करने पर कम हो जाता है, उल्टी होने के कारण होने वाला सिर का दर्द जिसमें सिरदर्द शुरू होने से पहले रोगी को आंखों से दिखाई देना कम हो जाता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को जेलसिमियम निटिडम औषधि का सेवन कराना उपयोगी साबित होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को आंखों से साफ तरह दिखाई न देना, आंखों की पुतलियों का फैल जाना, रोगी को आंखों से हर चीज दो-दो रूप में दिखाई देना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जेलसिमियम निटिडम औषधि देना बहुत ही उपयोगी साबित होता है।

मन से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को अचानक कोई बुरी खबर मिलने के कारण सदमा सा बैठ जाना, रोगी में बहुत ज्यादा उत्तेजना बढ़ जाना, रोगी का हर समय डरा-डरा सा रहना जैसे कि कोई उसे मारने आ रहा हो, रोगी को डर के मारे दस्त हो जाना, रोगी की सोचने-समझने की शक्ति बिल्कुल कमजोर हो जाना, अगर कोई व्यक्ति रोगी के पास आता है तो रोगी गुस्से में आ जाता है वो हर समय अकेला ही रहना चाहता है जैसे मानसिक रोगों के लक्षणों में रोगी को जेलसिमियम निटिडम औषधि देना बहुत ही लाभकारी रहता है।

वृद्धि-

तंबाकू का सेवन करने से, ज्यादा मानसिक परिश्रम करने से, सिर को नीचा करके सोने से और सूरज की गर्मी से रोगी का रोग बढ़ जाता है।

शमन-

रोगी के पेशाब करने पर रोगी का रोग कम हो जाता है।

मात्रा-

रोगी को जेलसिमियम निटिडम औषधि देने से रोगी कुछ ही समय में स्वस्थ हो जाता है।


जेक्विरिटी Jequirity

 जेक्विरिटी Jequirity

परिचय-

आंखों में सूजन होना तथा जलन का चेहरे और गर्दन तक फैल जाना, आंखों की पुतलियों की सूजन आदि आंखों के रोगों के लक्षणों में रोगी को जेक्विरिटी-आर्बरस प्रिकेटोरियस औषधि देने से लाभ होता है। तुलना-

जेक्विरिटी-आर्बरस प्रिकेटोरियस औषधि की तुलना जेक्विरिटॉल से की जा सकती है।

मात्रा-

जेक्विरिटी-आर्बरस प्रिकेटोरियस औषधि शरीर में बाहर लगाने के लिए तनुकृत मूलार्क तथा खिलाने के लिए 3x इस्तेमाल कर सकते हैं। 


जैनोसिया अशोका या सराका इण्डिका Janosia Asoka Or Saraca Indica

 जैनोसिया अशोका या सराका इण्डिका Janosia Asoka Or Saraca Indica

परिचय-

जैनोसिया अशोका औषधि का उपयोग गर्भाशय के विभिन्न रोगों में, शरीर के थके होने में, हिस्टीरिया रोग के लक्षणों में, रात को सोते-सोते बार-बार जाग जाना, नींद न आना आदि रोगों में करना काफी असरदार माना जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जैनोसिया अशोका औषधि का उपयोग-

आंखों से सम्बंधित लक्षण-

आंखों के अन्दर का सफेद भाग लाल हो जाना, आंखों में जलन और खुजली होना, आंखों से हर समय आंसू निकलते रहना, रोशनी में आते ही आंखें बन्द हो जाना, आंख की ऊपर की पलक में गुहेरियां निकलना, पास की चीज साफ नज़र न आना, आंखों का कोई सा भी काम करने पर आंखों का थक सा जाना आदि आंखों के रोग के लक्षणों में रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि देने से लाभ मिलता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर का बहुत ज्यादा भारी होना जैसे कि किसी ने सिर पर कोई वजन रखा हो, सिर में खून का बहाव तेज हो जाने के कारण सिर में दर्द होना जो मासिकस्राव आने से कम हो जाता है, रोजाना होने वाला सिर का दर्द जो नहाने के बाद कुछ कम होता है, सिर के घूमने के कारण चक्कर आना आदि लक्षणों में रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि देने से आराम आता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण-

नाक से बहुत ज्यादा मात्रा में पानी जैसा स्राव आना, बार-बार छींकों का आना, नाक के नथुनों में दर्द सा होना, नाक से खून आना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि देना बहुत ही उपयोगी साबित होती है।

कान से सम्बंधित लक्षण :-

कानों में तेजी से होने वाला दर्द, कानों में ठण्ड लगने से कम सुनाई देना आदि लक्षणों में रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि देने से लाभ होता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण :-

चेहरे पर छोटी-छोटी सी फुंसियां निकलना, चेहरे का रंग पीला होना, चेहरे का गर्म होने के साथ-साथ लाल हो जाना जैसे लक्षणों के आधार पर जैनोसिया अशोका औषधि का उपयोग लाभकारी रहता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण :-

स्त्री का मासिकस्राव रुक जाने के कारण सिर में दर्द होना, मासिकस्राव का समय से न आना, कम मात्रा में आना, पीले रंग का, बदबू के साथ, पानी जैसा आना, दिल की धड़कन का तेज होना, हिस्टीरिया रोग के साथ भूख का न लगना आदि लक्षणों में रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि का प्रयोग कराने से आराम मिलता है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण-

रात को सोते समय बार-बार पेशाब का आना, पेशाब के साथ खून का आना, पेशाब की नली में दर्द होना, पेशाब का अपने आप ही बूंद-बूंद करके आना, कमर में दर्द होना आदि लक्षणों में जैनोसिया अशोका औषधि का सेवन लाभकारी होता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण-

अण्डकोषों में सूजन आना, अण्डकोषों में खिंचाव के साथ दर्द का होना, अण्डकोष में खुजली होना, सोते हुए सपने देखते समय वीर्य निकल जाना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि देना काफी लाभकारी होता है।

मल से सम्बंधित लक्षण-

पेट में कब्ज का बनना, मलक्रिया के लिए 3-4 दिन बाद जाना पड़ता है, मलक्रिया से पहले मलद्वार में दर्द होना, खूनी या सूखी बवासीर के साथ खुजली और दर्द होना आदि लक्षणों मे जैनोसिया अशोका औषधि का उपयोग करना अच्छा रहता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण-

मुंह का सूखना, बार-बार प्यास का लगना, जीभ पर सफेद रंग की मोटी सी परत का जमना, मसूढ़ों से खून का आना और दांत में दर्द होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि का प्रयोग कराने से आराम मिलता है।

गले से सम्बंधित लक्षण-

गले में दर्द होने के साथ गले का लाल होना, रोगी का खांसते रहना, ठण्ड का बड़ी जल्दी लग जाना जैसे गले के रोगों के लक्षणों में रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि देने से आराम पड़ जाता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण -

बार-बार जी मिचलाना, गर्मी के कारण उल्टी हो जाना, पाचनसंस्थान में तेजी से दर्द का हो जाना, भोजन करने का मन न करना, भूख लगने पर भी भोजन कम खाया जाता है, रोगी का मन करना कि वह खट्टी-मीठी चीजें खाता रहे, दूध को देखते ही जी का खराब हो जाना जैसे लक्षणों में जैनोसिया अशोका औषधि का प्रयोग लाभकारी रहता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण -

पेट का सख्त सा हो जाना, पेट के फूलने के साथ ऊपर और नीचे की ओर दौड़ती हवा जो शाम के समय ज्यादा हो जाती है आदि लक्षणों में रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि देने से लाभ मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण -

सांस का बहुत तेजी से चलना, चलते-फिरते समय सांस लेने में परेशानी होना, जो दोपहर और शाम को ज्यादा होती है, खांसी का दर्द के साथ आना जैसे लक्षणों में जैनोसिया अशोका औषधि लेने से लाभ होता है।

दिल से सम्बंधित लक्षण -

दिल का बहुत तेजी से धड़कना जो चलने-फिरने से या आगे की ओर मुड़ने से अधिक महसूस होना, छाती के आर-पार कसाव सा महसूस होना, नाड़ी का तेजी से चलना आदि लक्षणों में रोगी को जैनोसिया अशोका औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण -

कमर के नीचे के भाग और पीठ में दर्द जो पेट और जांघों की ओर फैल जाता है जैसे लक्षणों में जैनोसिया अशोका औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण -

सूखी गर्मी के साथ पूरे शरीर में बेचैनी होना, सर्दी लगने के कारण प्यास का न लगना, गालों का लाल होना, चेहरे का गुस्से से लाल होना, नाक का बहना आदि लक्षणों के आधार पर जैनोसिया अशोका औषधि का प्रयोग करना काफी असरदार रहता है।

मात्रा-

जैनोसिया अशोका औषधि का मूलार्क या 2 से 3 शक्ति तक रोगी को उसके रोग के लक्षणों को देखकर देने से लाभ होता है।


जैट्रोफा Jatropha

 जैट्रोफा Jatropha

परिचय-

जैट्रोफा औषधि को पेट के रोगों में बहुत उपयोगी माना जाता है। हैजा और दस्तों में ये औषधि बहुत लाभकारी मानी जाती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जैट्रोफा औषधि से होने वाले लाभ-

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

हिचकी आना और उसी के बाद बहुत ज्यादा उल्टी होना, शराब पीने के कारण जी का खराब होना और उल्टी होना, इसी के साथ गले में भी तेज जलन होना, प्यास का बार-बार लगना, आमाशय के अन्दर जलन और गर्मी महसूस होना, पाचन संस्थान में ऐंठन के साथ दर्द होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जैट्रोफा औषधि देने से लाभ होता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण -

पेट का फूल जाना, पेट में से अजीब-अजीब सी आवाजें आना, जिगर में और दायें कंधे के जोड़ के नीचे से कंधे तक दर्द होना, पेशाब का बड़ी तेजी में आना आदि पेट के रोगों के लक्षणों में रोगी को जैट्रोफा औषधि देने से लाभ होता है।

मल से सम्बंधित लक्षण-

मल का अचानक आना, ज्यादा मात्रा में आना, मल पानी जैसा आना, पेट के अन्दर से बहुत तेज-तेज आवाजें आना जिसका सम्बंध ठण्ड, ऐंठन, जी मिचलाना और उल्टी से होता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को जैट्रोफा औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण -

शरीर की पेशियों में ऐंठन आना खासतौर से पिण्डलियों, टांगों और पैरों की पेशियों में, पूरे शरीर में ठण्डक महसूस होना, टखनों, पैरों और पैरों की उंगलियों में दर्द होना, एड़ियों का बहुत ज्यादा नाजुक हो जाना आदि लक्षणों के किसी व्यक्ति में नज़र आने पर उसे जैट्रोफा औषधि देने से लाभ होता है।

शमन-

ठण्डे पानी में हाथ को डालने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

जैट्रोफा औषधि की तुलना वेराट्र, गम्बोजि, जैट्रोफा और यूरेन्स से की जा सकती है।

मात्रा-

3 शक्ति से 30 शक्ति तक।


जकारैण्डा Jacaranda

 जकारैण्डा Jacaranda

परिचय-

जकारैण्डा औषधि पुरुषों को होने वाले कुछ रोगों में बहुत असरदार साबित होती है। इसके अलावा गठिया का रोग, सुबह के समय उल्टी होना, पेशाब से सम्बंधित रोगों के लक्षणों में भी ये औषधि बहुत अच्छा असर करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जकारैण्डा औषधि से होने वाले लाभ-

सिर से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को सर्दी-जुकाम लगने के कारण सिर भारी हो जाता है, आंखों में तेजी से दर्द होने के साथ जलन और पानी भी निकलता रहता है, रोगी बैठा हो और अगर अचानक से उठता है तो उसको चक्कर आने के साथ-साथ सिर भी भारी हो जाता है, इस तरह के लक्षणों में रोगी को जकारैण्डा औषधि देने से लाभ मिलता है।

गले से सम्बंधित लक्षण -

गले में भोजन की नली के अन्दर छाले से महसूस होना, गले में खुश्क हो जाना, सिकुड़ सा जाना और दर्द होना जैसे लक्षणों में जकारैण्डा औषधि बहुत ही उपयोगी साबित होती है।

पेशाब से सम्बंधित लक्षण -

पेशाब करने के रास्ते में जलन सी महसूस होना, पेशाब करने के रास्ते से पीले रंग के स्राव का आना जैसे लक्षणों में जकारैण्डा औषधि बहुत ही प्रभावशाली साबित होती है।

पुरुषों से सम्बंधित लक्षण -

पुरुष के लिंग में बहुत तेज जलन और दर्द होना, लिंग के मुंह की चमड़ी का पीछे की ओर न होना, लिंग के मुंह पर सूजन के साथ दर्द होना, गर्मी के कारण लिंग पर जख्म होना, लिंग के ऊपर छोटी-छोटी सी फुंसियां निकलना जिनमें हर समय खुजली सी होती रहती है आदि पुरुष रोग से सम्बंधित लक्षणों में जकारैण्डा औषधि बहुत ही उपयोगी साबित होती है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण -

रोगी के दाएं घुटने में गठिया का दर्द होना, कमर के भाग में कमजोरी सी आना, सुबह के समय पेशियों के अकड़ जाने के कारण दर्द होना, हाथों के ऊपर खुजली वाली फुंसियां निकलना, सूजाक और उपदंश के कारण उत्पन्न जोड़ों की सूजन जैसे लक्षणों में रोगी को जकारैण्डा औषधि देने से लाभ मिलता है।

तुलना-

जकारैण्डा औषधि की तुलना मर्ककॉर, थूजा, कोलैल, रूब और मर्क स औषधियों से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी के लक्षण जानकर अगर उसके मुताबिक जकारैण्डा औषधि की मूलार्क या 6x शक्ति तक दी जाए तो रोगी कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।


जलापा-एक्सोगोनियम पर्गा Jalapa-Exogonium Purga

 जलापा-एक्सोगोनियम पर्गा Jalapa-Exogonium purga

परिचय-

जलापा-एक्सोगोनियम पर्गा औषधि बच्चों के बहुत से रोगों के लिए काफी असरदार होती है। जो बच्चे पूरे दिन अच्छी तरह से खेलते-कूदते रहते हैं और रात होते ही चीखने-चिल्लाने लगते है, बेचैन रहते है और पूरी रात परेशान करते है, उनके लिए ये औषधि बहुत ही अच्छी रहती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों में जलापा-एक्सोगोनियम पर्गा औषधि का उपयोग-

आमाशय से सम्बंधित लक्षण-

बच्चे के पेट में तेज दर्द होना, पेट का फूल जाना, जी मिचलाना, जीभ का कोमल, चिकनी और सूखी सी होना, मलद्वार में दर्द होना, रोगी का चेहरा नीला और ठण्डा होना, दस्त का पानी जैसे पतले रूप में आना आदि लक्षणों में रोगी को जलापा-एक्सोगोनियम पर्गा औषधि देने से लाभ होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण -

रोगी की बांहों और टांगों में हल्का-हल्का सा दर्द होना,पैरों के तलुवों में जलन सी होना, पैर के अंगूठे के बड़े जोड़ पर चसचसाहट सी होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को जलापा-एक्सोगोनियम पर्गा औषधि प्रयोग कराने से आराम मिलता है।

प्रतिविष-

इलैटेरि, कैना-सैटा।

तुलना-

जलापा-एक्सोगोनियम पर्गा औषधि की तुलना कैम्फ-कोलो से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को जलापा-एक्सोगोनियम पर्गा औषधि 3 से 12 शक्ति तक देने से लाभ मिलता है।


जेबोरैण्डी (जेबोरै) Jaborandi

 जेबोरैण्डी (जेबोरै) Jaborandi

परिचय-

जब कोई व्यक्ति अपनी पुरानी बीमारी का इलाज करवाता है तो उसके स्वास्थ्य में सुधार होते समय उसको बहुत ज्यादा मात्रा में पसीना आता है उस समय जेबोरैण्डी औषधि का उपयोग काफी असरकारक होता है। इसके अलावा गर्भावस्था में, मधुमेह रोग में भी रोगी को बहुत ज्यादा पसीना आना, मुंह का सूखना, बार-बार प्यास का लगना आदि में भी इस औषधि का इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर जेबोरैण्डी औषधि का उपयोग-

आंखों से सम्बंधित लक्षण-

रोगी को मोतियाबिन्द होने के कारण आंखों से न दिखाई देना, आंखों से हर समय आंसू निकलते रहना, आंखों का ऑप्रेशन कराने के बाद आंखों में कई तरह की परेशानियां आ जाना, आंख की पुतलियों का सिकुड़ जाना, पलकों की बंधनी पेशियों में दर्द होना जैसे लक्षणों में जेबोरैण्डी औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण-

यौवनारंभ काल में लड़की की यौन उत्तेजना तेज होना, हाथ-पैरों का ठण्डा हो जाना, बहुत ज्यादा पसीने का आना जैसे लक्षणों में स्त्री को जेबोरैण्डी औषधि का इस्तेमाल कराने से लाभ मिलता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण-

मुंह और गले का बहुत ज्यादा सूखना, बार-बार तेजी से प्यास का लगना, खून का बहाव बढ़ जाना लेकिन नसों का तनाव और ताप का गिर जाना आदि लक्षणों में जेबोरैण्डी औषधि लेने से लाभ मिलता है।

तुलना-

जेबोरैण्डी औषधि की तुलना एमिल नाई नामक औषधि से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर जेबोरैण्डी औषधि की मात्रा देने से लाभ मिलता है।

जानकारी-

जेबोरैण्डी औषधि शरीर के अन्दर लार और पसीना निकालने वाली ग्रन्थियों में क्रिया प्रकट करके उन ग्रन्थियों में काफी समय तक जलन पैदा करती है, जिसमें से हर समय लार बहती रहती है और पसीना आता रहता है। नाक से स्राव और आंखों से काफी मात्रा में पानी गिरता रहता है।


इलाटेरियम Elaterium

 इलाटेरियम Elaterium

परिचय-

इलाटेरियम औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने में किया जाता है परन्तु इलाटेरियम औषधि मुख्य रूप से श्लेष्मिक परतों पर क्रिया करती है जिसके परिणाम स्वरूप श्लेष्मकला से अधिक मात्रा में तरल और लिसलिसा कफ निकलता है। वास्तव में इलाटेरियम औषधि पहली बार श्लेष्मकला, गला, नाक, आमाशय और आंखों से निकलने वाली तरल \'श्लेष्म का शोषण करती है जिसके कारण इसकी मुख्य क्रिया आमाशय पर होती है। इसकी क्रिया के फलस्वरूप लक्षण उत्पन्न होते हैं तो आमाशय का तरल रस द्रवित होकर उत्तेजना ला देता है जिसके कारण उल्टी हो जाती है और दस्त आ जाते हैं। अधिक उत्तेजना बनी रहने के कारण उल्टियां हो जाती हैं। शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर इलाटेरियम औषधि का उपयोग-

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को अधिक उबकाइयां आने के साथ पानी की तरह पतले पदार्थो की उल्टियां हो रही है तो रोगी को इलाटेरियम औषधि देने से रोग ठीक होता है।

पेट से संबन्धित लक्षण :- पेट और आंतों में काटने-फाड़ने की तरह दर्द होने के साथ मरोड़ पैदा होने पर रोगी को इलाटेरियम औषधि का सेवन करना चाहिए।

दस्त से संबन्धित लक्षण :- पानी की तरह पतले दस्त अधिक मात्रा में आना आदि रोगों में इलाटेरियम औषधि देनी चाहिए। यदि किसी रोगी को पानी की तरह झागदार या हरे रंग का दस्त आता हो तो ऐसे लक्षणों में रोगी को इलाटेरियम औषधि देने से रोग ठीक होता है।

बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षण :- यदि रोगी के बांयें कूल्हे से पैर के अंगूठे तक हल्की पीड़ा हो रही हो या तेज दर्द हो रहा हो तो रोगी को इलाटेरियम औषधि का सेवन कराने से दर्द में जल्द आराम मिलता है।

तुलना :-

इलाटेरियम औषधि की तुलना काल्चि, क्रोटा-टि, कालो ग्रेटि, सिके तथा वेरेट्रम-ए औषधि से की जाती है।

विशेष :-

* यदि रोगी को हैजा रोग की तरह अधिक तेज दस्त के साथ उल्टियां आती हैं जिसमें दस्त अधिक मात्रा में झागदार व हल्के हरे रंग का होता है तो ऐसे में रोगी को इलाटेरियम औषधि देने से जल्द लाभ मिलता है। 

* यदि किसी रोगी के गुर्दे की सूजन हो तो रोगी को इलाटेरियम औषधि देनी चाहिए परन्तु ध्यान रखें कि रोगी में ऊपर के लक्षण भी होना चाहिए।

* यदि रोगी में उबकाई व उल्टियों के साथ जिगर के आस-पास सूजन और पीलिया रोग हो गया है तो रोगी को इलाटेरियम औषधि देना लाभकारी होता है।

* यदि शरीर में तेज गर्म के साथ रोगी को उबकाइयां व उल्टियां आती है या ग्रधृसी (साइटिका) में असहनीय दर्द होता है तो रोगी को इलाटेरियम औषधि देनी चाहिए।


इस्क्युलस हिपोकैस्टेनम ISQYALS HIPOKAISVEUM

 इस्क्युलस हिपोकैस्टेनम ISQYALS HIPOKAISVEUM 

परिचय-

इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि रक्तवाहिनी नाड़ियों पर विशेष रूप से क्रिया करती है और उससे संबन्धित लक्षणों को समाप्त करती है। यह औषधि शरीर के विभिन्न अंगों और शिराओं से संबन्धित लक्षणों को दूर करने में अधिक लाभकारी होती है। त्रिक-प्रदेश (रीढ़ की हडडी के नीचे का भाग) के अन्दर हल्की-हल्की पीड़ा होने पर इस औषधि का प्रयोग करने से दर्द से आराम मिलता है। कमर में दर्द जो झुकने या चलने पर बढ़ जाते हैं। बवासीर, श्वेत प्रदर तथा गर्भाशय की झिल्ली के अपने स्थान से हट जाने के कारण उत्पन्न दर्द। ऐसे दर्द में भी इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि का प्रयोग किया जाता है। यदि किसी रोगी को मलाशय में भारीपन के साथ ऐसा महसूस होता है जैसे मलाशय में कुछ चुभन की तरह दर्द हो रहा हो तो ऐसे दर्द में इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

यदि गला, गर्दन, मुंख तथा मलाशय की श्लैष्मिक झिल्लियों में सूजन आ गई हो और उसमें जलन, गर्मी, सूखापन तथा उधड़न महसूस होने के साथ घाव बनने जैसा महसूस होता है तो ऐसे में रोगी को इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि देने से लाभ होता है। इसके अतिरिक्त अन्य लक्षणों में इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

शरीर के विभिन्न अंगों से संबन्धित लक्षणों के आधार पर इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि का उपयोग :-

सांस संस्थान से संबन्धित लक्षण :- जुकाम अधिक होने के कारण नाक से अधिक मात्रा में पानी की तरह पतला बलगम निकलना तथा नाक से बलगम निकलने के साथ नाक में जलन होना तथा ठण्डी हवा में सांस लेने से नाक में जलन और बढ़ जाना। रोगी को बार-बार थूक निगलने की इच्छा होना। गले में जलन तथा डंक मारने जैसा दर्द होना। गले के अन्दर सूखापन और सिकुड़ापन महसूस होना। इस तरह के उत्पन्न होने वाले लक्षणों को ठीक करने के लिए रोगी को इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि देनी चाहिए। इस औषधि के सेवन से यह औषधि सांस संस्थान पर तेजी से क्रिया कर रोग को जल्दी ठीक करता है।

पीठ से संबन्धित लक्षण :- इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि पीठ के निचले भाग पर विशेष रूप से क्रिया करती है। यह पीठ में लगातार धीमा-धीमा दर्द होने के साथ कूल्हे और त्रिकप्रदेश (रीढ़ की हडडी के नीचे का भाग) में दर्द महसूस होना तथा चलने या झुकने से दर्द का अधिक बढ़ जाना। ऐसे लक्षणों में रोग को ठीक करने के लिए इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

मलाशय से संबन्धित लक्षण :- इस औषधि का प्रयोग बवासीर रोग में करने से लाभकारी होता है विशेष रूप से बवासीर की उस अवस्था में जब मलद्वार में मस्से निकल आते हैं। पीठ दर्द के साथ-साथ मलद्वार में भारीपन और सूखापन महसूस होना तथा ऐसा महसूस होना मानो कोई गोल पदार्थ मलद्वार में चुभ रही हो तो ऐसे लक्षणों में रोगी को इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि के प्रयोग से रोग दूर होता है। यह औषधि कांच का निकलना (गुदाभ्रंश) आदि को भी ठीक करता है। यदि किसी रोगी में बवासीर रोग के साथ कमर दर्द तथा भारीपन जैसे लक्षण उत्पन्न हो तो रोगी को इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि देनी चाहिए। मलद्वार में चोट लगने की तरह दर्द होने पर भी इस औषधि का सेवन करना चाहिए।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- इस औषधि का प्रयोग गर्भाशय के अपने स्थान से हट जाने तथा जलन होने पर भी किया जाता है। श्वेतप्रदर (योनि से सफेद रंग का स्राव होना) में भी इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। 

सर्दी-जुकाम से संबन्धित लक्षण :- यदि सर्दी लगने के साथ गले में भी दर्द रहता हो तो उसे इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि का सेवन कराना चाहिए। कुछ अन्य लक्षणों में इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि के स्थान पर आर्सेनिक औषधि का भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे- सर्दी के साथ पतले पानी की तरह नजला आना। सांस के द्वारा अन्दर जाने वाली ठण्डी हवा से उत्पन्न होने वाली परेशानी तथा उधड़ने की तरह दर्द होना। नए या पुराने गले का दर्द जिसमें खाल निचोड़ने जैसा महसूस होता है तथा साथ ही स्वरयन्त्र की पुरानी जलन आदि लक्षण। इस तरह के लक्षणों में से कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को ठीक करने के लिए इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि दी जा सकती है।

मात्रा :-

इस्क्यूलस हिपोकैस्टेनम औषधि 3 शक्ति से उच्च शक्ति का प्रयोग किया जाता है।