होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है

होम्योपैथी एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथिक दवाइयाँ किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है।

भारत होम्योपैथिक चिकित्सा में वर्ल्ड लीडर हैं।

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है। होम्योपैथी में किसी भी रोग के उपचार के बाद भी यदि मरीज ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह रोग का मुख्य कारण सामने न आना भी हो सकता है।

होम्योपथी दवा मीठी गोली में भिगोकर देते हैं

होम्योपथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं।

होम्योपैथी की सबसे खास बात है कि आप डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं। इससे किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट होने का खतरा नहीं होता।

डाफ्ने इंडिका (DAPHNE INDICA)

 डाफ्ने इंडिका (DAPHNE INDICA)

परिचय-

यह औषधि निम्न ऊतकों, मांसपेशियों, हडि्डयों और त्वचा पर अपनी क्रिया करती है तथा उपदंश के विष में उपयोगी होती है। इसकी कमी से शरीर के विभिन्न अंगों में स्पार्किंग के समान झटके महसूस होते हैं। 

रोगी में तम्बाकू पीने की तीव्र इच्छा होती है तथा पेट में होने वाली जलन इस प्रकार महसूस होती है कि जैसे शरीर के सभी अंग शरीर से अलग हो गये हो और सांस, पेशाब और पसीने से दुर्गंध आती है। उपरोक्त लक्षणों में डाफ्ने इंडिका औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

डाफ्ने इंडिका औषधि का विभिन्न रोगों के लक्षणों उपयोग- 

सिर से सम्बंधित लक्षण : जब सिर में इस प्रकार की जलन महसूस हो रही है कि सिर फट जाएगा या ऐसा प्रतीत होता है कि सिर को धड़ से अलग किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में डाफ्ने इंडिका औषधि का प्रयोग करना उपयोगी होता है। 

पेशाब का रंग से सम्बंधित लक्षण : यदि पेशाब गाढ़ा, पीले रंग का होता है तथा पेशाब की गंध सड़े हुए अण्डे के गंध के समान हो तो डाफ्ने इंडिका औषधि का सेवन करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण : दांये पैर का अंगूठा सूजन लिए हुए, दर्दनाक, दर्द ऊपर की ओर बढ़ता हुआ पेट तथा हृदय तक पहुंच जाता हो, जांघों के बगल में और घुटनों में दर्द होता हो नितम्बों (हिप) में ठण्डक महसूस हो रही हो तो, गोली लगने के समान दर्द प्रतीत हो रहा हो तथा उपरोक्त दर्द ठण्ड के साथ बढ़ते हो तो डाफ्ने इंडिका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

नींद से सम्बंधित लक्षण : जब किसी व्यक्ति को बिल्कुल ही नींद न आती हो, इस प्रकार की अवस्था कई बार हडि्डयों के दर्द के कारण प्रकट होती है। डरावने सपने आते हों, नींद में चौक जाने के बाद सर्दी लगती हो तथा शरीर की त्वचा चिपचिपी हो जाती है तो इस दशा में डाफ्ने इंडिका औषधि का प्रयोग करना चाहिए। 

प्रतिविष :

ब्रायो, रस-टा औषधियों का उपयोग डाफ्ने इंडिका औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

तुलना :

फ्लोरिक एसिड, औरम, मेजीरियम, स्टैफिर्स।

डाफ्ने इंडिका औषधि के उपयोग की मात्रा :

पहले से छठी शक्ति तक।


डियुबांयसिया (DUBOISIA)

 डियुबांयसिया (DUBOISIA)

परिचय-

आमतौर पर यह औषधि स्नायुतन्त्र, आंख और श्वसन तन्त्र के ऊपरी भाग पर अधिक प्रभाव डालती है। कभी-कभी स्नायुतन्त्र के क्रियाशील होने के कारण रोगी को प्रतीत होता है कि उसके शरीर के किसी भी अंग में ताकत नहीं है, चलते-चलते व्यक्ति ठोकर खाकर गिर पड़ता है। पैरों में शून्यता आ जाती है तथा हाथ पैरों में कंपन होती है। रोगी आंख बन्द करके खडे़ होने पर गिर पड़ता है आदि लक्षणों के होने पर डियुबांयसिया औषधि का उपयोग किया जाता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षणों के आधार पर डियुबांयसिया औषधि का उपयोग :

मन से सम्बंधित लक्षण: स्मरणशक्ति कमजोर होने पर डियुबांयसिया औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण : आंखें बन्द करके खड़े न हो पाना, पीछे की ओर गिरने का अहसास होना आदि लक्षणों में डियुबांयसिया औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बंधित लक्षण : आंख आना (कांजक्टीविटिज), आंख के सामने अंधेरा छाना, तरुण आंख की पुतली का फैल जाना, समंजन का पक्षाघात (पैरालाइसिस ऑफ अक्कोम्मोडेशन), स्वच्छपटल की अतिरक्तसंकुलता (हाइपेरीमिया ऑफ रैटिना), समंजनदुर्बलता (वीकनेस ऑफ अक्कोम्मोडेशन),रक्तवाहिनियां पूर्ण और आड़ी तिरछी, नेत्रपटल फैले होने के कारण आंखों की दृष्टि का कमजोर होना। आंख के ऊपर, आंख और भौंह के बीच वाले भाग में दर्द आदि आंखों के विकार होने पर डियुबांयसिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

श्वसन संस्थान के रोग से सम्बंधित लक्षण : सूखी खांसी के कारण सांस लेने में परेशानी, आवाज में तीखापन, बोलने में कठिनाई तथा गले में भारीपन आदि अनेक रोग होने पर डियुबांयसिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी के अंगों के विभिन्न लक्षण : शरीर के बाहरी अंग कमजोर होना, शरीर का लड़खड़ाना, चलते समय ऐसा प्रतीत होना कि जैसे खाली स्थान पर पैर रख रहा हो तथा कमजोरी आदि होने पर डियुबांयसिया औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

बुखार : 

बुखार से पीड़ित रोगी को डियुबांयसिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे रोगी को बुखार से छुटकारा मिल जाता है। 

सम्बंध : 

डियुबांयसिया औषधि, मस्केरिन औषधि की विपरीत गुणों वाली औषधि है।

प्रतिविष : 

मार्फिया, पिलोकार्प औषधि का उपयोग डियुबांयसिया औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

तुलना : 

डियुबांयसिया औषधि की तुलना बेला, स्ट्रामों, हायोसा आदि औषधियों के गुणों से की जा सकती है।

मात्रा : 

तीसरी से बारहवीं शक्ति।


डिजिटैलिस DIJITALIS

 डिजिटैलिस DIJITALIS

परिचय-

उन सभी रोगों में प्रभावशाली कार्य करती है जहां प्रमुख रूप से हृदय रोग ग्रसित हो, जहां नाड़ी दुर्बल, अनियिमित, सविरामी और असाधारण रूप से शिथिल हो तथा बाहरी और आन्तरिक अंगों पर सूजन हो। हृदय की पेशियों में दुर्बलता और फैलाव पर इस औषधि की क्रिया सर्वोत्तम होती है। इस औषधि का उपयोग हृदय के नष्ट होने (विशेषकर जब अलिन्द विकम्पन (औरीक्युलर फीब्रिलेशन) आरम्भ हो जाता है) में किया जाता है। झुकी हुई अवस्था में लेटने से नाड़ी चलने की गति सामान्य से कम हो जाती है तथा बैठने पर नाड़ी की गति अनियमित और दोहरी चलती हुई प्रतीत होती है। इसका उपयोग हृदय रोग के अन्य लक्षणों जैसे अधिक शारीरिक दुर्बलता तथा शारीरिक शक्ति में कमी होना, बेहोशी, त्वचा का ठण्डापन और अनियमित श्वास, तम्बाकू के सेवन से होने वाले आंखों के विकार, यकृत की कठोरता, और यकृत की वृद्धि के फलस्वरूप होने वाले पीलिया आदि लक्षणों में किया जाता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षणों के आधार पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग :

मन से सम्बंधित लक्षण : मन में निराशा छाना, भय होना, भविष्य के बारे में चिन्तित होना, ज्ञानेन्द्रियों का कमजोर होना, मानसिक चिड़चिड़ापन तथा नाड़ी की गति बिल्कुल ही सुस्त होना आदि मानसिक विकारों में डिजिटैलिस औषधि का उपयोग किया जाता है।

सिर : चलते समय तथा उठते समय, हृदय रोगों में और यकृत के रोगों के साथ सिर में चक्कर आना, सिर में तेज दर्द जो नाक तक होता है, सिर में भारीपन के साथ ऐसा प्रतीत होना कि वह अभी नीचे की ओर गिर पड़ेगा, चेहरा नीले रंग का होना, भ्रम होना, नींद लगते ही तेज आवाज सुनाई देना, जीभ और होंठों का रंग नीला होना सिर से सम्बंधित विकारों में डिजिटैलिस औषधि का उपयोग करना लाभकारी होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों की पलकों में नीलापन, आंखों के आगे गहरे रंग की मक्खियां उड़ते हुए दिखाई पड़ना, हरा रंग पहचानने में भ्रम होना, सभी वस्तुएं हरे और पीली रंग की दिखाई पड़ना, आंखों की पुतलियों का अस्वाभाविक रूप से फैलना, आंखों की पलकों के सिरे का लाल होना तथा दृष्टि कमजोर होना आदि आंखों के रोगों में डिजिटैलिस औषधि का उपयोग किया जाता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण : मुंह का स्वाद मीठा और मुंह में हमेशा लार भरा रहना, जी का अधिक मिचलाना, अधिक दुर्बलता, आमाशय में सुन्नता व जलन, ठण्डी वस्तुएं खाने से नाक तक होने वाला तेज सिर दर्द, चलने-फिरने से बेहोशी और उल्टी होना, थोड़ा सा ही भोजन कर लेने के बाद अथवा भोजन की सुगंध से असहज महसूस होना, पाचनशक्ति का कमजोर होना तथा आमाशय का स्नायु का दर्द जिसका भोजन करने से कोई सम्बंध नहीं रहता आदि आमाशय से सम्बंधित विकारों में डिजिटैलिस औषधि का प्रयोग किया जाता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण : पेट के बांये हिस्से में नीचे से ऊपर की होने वाला दर्द, पेट का तेज दर्द, औदरिक महाधमनी (एब्डोमिनल अर्टो) में जलन, पेट का खाली लगना, यकृत की वृद्धि, जलन और दर्द आदि पेट के विकारों में डिजिटैलिस औषधि का सेवन किया जाता है।

मल से सम्बंधित लक्षण : राख के समान सफेद रंग का मल होना, मल का चिकना होना तथा पीलिया से पीड़ित रोगी को दस्त होना आदि विकारों में डिजिटैलिस औषधि लेना लाभकारी होता है।

मूत्र से सम्बंधित लक्षण : पेशाब करते समय पेशाब का बूंद-बूंद होना, गहरे रंग का गर्म पेशाब होना, मूत्राशय में जलन के साथ तेज दर्द का होना, अमोनिया के समान दुर्गंध महसूस होना, मूत्रमार्ग की जलन, पेशाब कर चुकने के बाद ऐसा महसूस होना कि मूत्राशय अभी खाली नहीं हुआ है, लिंग में सिकुड़न और जलन, पेशाब में ईंट के बारीक चूर्ण के समान तलछट जमा होना आदि मूत्र सम्बंधी रोगों में डिजिटैलिस औषधि उपयोगी होती है।

स्त्रियों के रोगों से सम्बंधित लक्षण: स्त्रियों में मासिक स्राव से पहले पेट और पीठ में प्रसव के दर्द के समान दर्द महसूस होना तथा गर्भाशय के बाहरी झिल्ली से रक्तस्राव होने पर डिजिटैलिस औषधि दी जाती है।

पुरुषों के रोग : स्वप्नदोष, सेक्स क्रिया के बाद जननांगों में अधिक दुर्बलता, अण्डकोश का बढ़ जाना, लिंग की सुपारी में सूजन तथा जननांगों के सूजन आदि विकारों में डिजिटैलिस औषधि का प्रयोग किया जाता है।

श्वसन संस्थान से सम्बंधित लक्षण : गहरी सांस लेने की इच्छा, सांस लेने की क्रिया का अनियमित होना, गहरी आहे भरना, खांसी के साथ सीने में कच्चेपन और दु:ख का अनुभव, मीठा-मीठा बलगम, वृद्धावस्था के समय का निमोनिया, सीने में दुर्बलता, सांस लेने में कष्ट, निरन्तर सांस लेने की इच्छा होना, फेफड़ों का तंग महसूस होना, श्वासनली की सूजन, फेफड़ों की निष्क्रिय, रक्तसंकुलता, जिसमें हृदय की अनुचित मांसपेशियों के कारण थूक में खून आता हो तथा रक्तनिष्ठीवन (हिमोप्टाइसिस) के साथ हृदय कमजोर होना आदि विकारों में डिजिटैलिस औषधि का उपयोग में लायी जाती है।

हृदय से सम्बंधित लक्षण : थोड़ी ही दूर तक चलने से शरीर में बहुत तेज धड़कन होने लगती है और ऐसा महसूस होता है कि कुछ देर और दूरी तक चलने से हृदय की धड़कन बन्द हो जाएगी, हृदय में हमेशा सूईयों के चुभने जैसा दर्द, हृदय की धड़कन अनियमित होना, नाड़ी की गति अधिक मन्द होना, हृदय का रंग नीला होकर उसके आकार में परिवर्तन होना, नाड़ी की गति बदलते रहना तथा कभी-कभी ऐसा प्रतीत होना कि हृदय की धड़कन रुक गई हो आदि हृदय सम्बंधी रोगों में डिजिटैलिस औषधि लेते हैं।

फेफड़ों के रोग : वृद्ध व्यक्तियों में फेफड़ों में जलन होना, न्यूमोनिया जिसमें आलूबुखारा के समान शरीर से कफ निकलता है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण : पैरों की सूजन, हाथ-पैरों का ठण्डा होना, गठिया का दर्द, जोड़ों पर सफेद चमकदार सूजन, मांसपेशियों की दुर्बलता, रात को उंगलियों की सूजन तथा टांगों में बिजली के करंट के समान महसूस होना आदि विकारों में डिजिटैलिस औषधि का उपयोग किया जाता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण : नींद में चौंककर जागना और नींद में ही ऐसा प्रतीत होना जैसे कि वह काफी ऊंचाई से नीचे फेंक दिया गया हो आदि लक्षणों में डिजिटैलिस औषधि का उपयोग किया जाता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण : तेज बुखार के साथ शरीर में अचानक होने वाली जलन और उसके बाद भारी स्नायविक दुर्बलता आदि में डिजिटैलिस औषधि का उपयोग किया जाता है।

त्वचा से सम्बंधित लक्षण: शरीर की त्वचा पर गहरे रंग के लाल चकत्ते जोकि पीठ पर अधिक होते हैं और चेचक के दानों के समान होते है तथा आंखों की पलकें, कान, होंठ और जीभ की नाड़ियां नीली रंग की होकर फैल जाती हैं।

वृद्धि : तनकर बैठने, खाना खाने के बाद संगीत सुनने से, कठिन परिश्रम से, बांयी करवट लेटने से तथा संभोग अधिक करने से रोग में वृद्धि होती है।

सम्बंध : एण्टि-क्रू, एपिस, आर्स, बेल, ब्राय, कोन, फेरम-फा, हेल, इपी, काली-फा, लैके, लोबे लायको, मर्क, नक्स-वो, ओपि, पल्स, रस-टा, सीपि, स्पाइ, सल्फ, टबे, वेरेट्रम और जिंक से तुलना की जा सकती है।

मात्रा : 

मूलार्क से तीसवीं शक्ति।


डेस्मोडियम गैंजेटिकम Desmodium Gangeticum

 डेस्मोडियम गैंजेटिकम Desmodium Gangeticum

विभिन्न रोगों में उपयोगी :

सिर दर्द से सम्बंधित लक्षण : जब किसी व्यक्ति को सिर दर्द में ऐसा महसूस होता हो कि उसके सिर को चारो ओर से कसकर बांध दिया गया हो तो ऐसी स्थिति में डेस्मोडियम गैंजेटिकम औषधि का उपयोग किया जाता है।

शारीरिक दर्द से सम्बंधित लक्षण: पूरे शरीर में नाड़ी दर्द के समान दर्द, रीढ़ की हड्डी में दर्द के कारण सीधे न बैठ पाना, हाथों तथा पैरों में जलन की अनुभूति तथा चेहरे से गर्मी का असर आदि होने पर डेस्मोडियम गैंजेटिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

ज्ञानेन्द्रियां : अनिद्रा, जड़िमायुक्त नींद।

बुखार से सम्बंधित लक्षण : सविरामी तथा अल्पविरामी बुखार जो सुबह के समय हल्की ठण्ड लेकर आता है और लगभग 2-3 घंटे तक रहता है, के साथ अनिद्रा और मानसिक अवसाद तथा ठण्ड महसूस होने पर डेस्मोडियम गैंजेटिकम औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

मात्रा : 

डेस्मोडियम गैंजेटिकम का मूलार्क, 3X, 6X तथा डेस्मोडियम गैंजेटिकम 30वीं शक्ति का प्रयोग करें।


डायोस्कोरिया विल्लोसा DIOSCOREA VILLOSA

 डायोस्कोरिया विल्लोसा DIOSCOREA VILLOSA

परिचय-

इस औषधि का उपयोग हमारे शरीर के विभिन्न प्रकार के दर्दों विशेषकर पेट दर्द एवं शरीर के आन्तरिक अंगों के दर्द में अत्यंत लाभकारी होता है। डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का नाम होमियोपैथिक की उन औषधियों के साथ लिया जाता है जिसका उपयोग एक से अधिक रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। इस औषधि का प्रयोग करने से पाचनशक्ति ठीक होती है। 

शरीर के विभिन्न लक्षणों के आधार पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग :

मन से सम्बंधित लक्षण : जब कोई व्यक्ति अपने मित्र का अथवा किसी परिचित का सही नाम भूल जाता है, उसे गलत नामों से पुकारता है तथा उसके मन में उत्तेजना और घबराहट रहती है तो डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा उपरोक्त लक्षणों में आर्स तथा फास औषधि का भी प्रयोग कर सकते हैं।

सिर से सम्बंधित लक्षण : सिर के दोनों ओर कनपटियों में हल्का-हल्का दर्द जो धीरे-धीरे करके घटता-बढ़ता रहता है तो डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण : सुबह के समय मुंह सूखा और कड़वा लगना, जीभ परतदार हो, प्यास न लगती हो, दुर्गंधयुक्त गैस की अधिक मात्रा में डकार आना, आमाशय का स्नायुशूल (न्युरेल्गिया ऑफ स्टोमेक), हृदय की जलन, उरोस्थि (स्टेरनम) के साथ बांहों तक दर्द होता हो, कड़वी तथा खट्टी डकारों के साथ-साथ हिचकी आती हो तथा पाचनतन्त्र का ऐसा दर्द जो खडे़ हो जाने पर ठीक हो जाता हो आदि विभिन्न आमाशयों के लक्षणों में डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

पेट का दर्द से सम्बंधित लक्षण : पेट में इस प्रकार का दर्द होना जो पेट से दूर शरीर के अन्य अंगों जैसे हाथ और पैरों की अंगुलियों में प्रकट होता हो, पेट में गड़गड़ाहट के साथ गैस का बनना, पाचन संस्थान में ऐंठन तथा जलन होना, पेट दर्द जिसमें धीरे-धीरे टहलने से दर्द कम होता है यह दर्द पेट से घूमता हुआ सीने से हाथों आदि अंगों तक हो जाता है, आगे की ओर झुकने तथा लेटने पर कष्ट बढ़ जाता हो, यकृत का तेज दर्द जो तेजी से गोली के समान ऊपर की ओर बढ़ता हुआ दांयें स्तन तक फैल जाता है, पित्ताशय (गाल ब्लेड्डर) से छाती, पीठ तथा बांहों का दर्द, वृक्कशूल (रेनल कोलिक) के साथ शरीर के बाहरी अंगों में दर्द होना तथा खाना खाने के तुरंत बाद मल त्यागने की इच्छा होना आदि लक्षणों के होने पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

हृदय सम्बंधी रोग से सम्बंधित लक्षण : हृदय का दर्द, उरोस्थि के पिछले हिस्से से हाथों तक का दर्द, सांस लेने में कठिनाई होना, हृदय की धड़कन कम होना तथा विशेष रूप से पेट के फूलने पर होने वाला दर्द जो सीने तक होता है आदि लक्षणों में डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

खूनी बवासीर से सम्बंधित लक्षण : रोगी व्यक्ति में शरीर के साथ यकृत तथा किसी धारदार हथियार लगने के समान दर्द का होना, बवासीर के मस्से अंगूर के गुच्छे के समान बढ़कर बाहर की ओर फैल जाते हैं जिसके कारण मलद्वार में दर्द उत्पन्न होता है, पीले रंग का दस्त आना जिसमें सुबह के समय दर्द में वृद्धि होती है, उसके बाद शरीर में अधिक दुर्बलता आती हो तथा ऐसा प्रतीत होता हो कि पेट की गैस और मल दोनों ही बहुत अधिक गर्म हैं। ऐसी स्थिति में डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पुरुषों के गुप्त रोग से सम्बंधित लक्षण : पुरुष के अन्दर सेक्स पावर में कमी, लिंग में उत्तेजना की कमी, पुरुषों के अण्डकोष तथा स्त्रियों के स्तनों में निकलने वाले पसीने से होने वाली गंध, स्वप्नदोष या अन्य कारणों से वीर्यपात होने के कारण होने वाली घुटनों की दुर्बलता आदि विभिन्न धातु सम्बंधी रोगों में डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का प्रयोग करते हैं।

स्वप्नदोष से सम्बंधित लक्षण : स्वप्नदोष की बीमारी में डायस्कोरिया औषधि लाभकारी होती है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति रातभर स्वप्न में स्त्रियों को देखता है जिसके परिणामस्वरूप रोगी को एक रात में दो-तीन बार स्वप्नदोष हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप रोगी को सुबह जागने के बाद बहुत अधिक कमजोरी महसूस होती है तथा रोगी के घुटने इतने अधिक कमजोर हो जाते हैं कि उन्हें खडे़ होने में ही बहुत अधिक कष्ट होता है। स्वप्नदोष के कारण रोगी के घुटने में बहुत अधिक दर्द होता है जिसके कारण उन्हें खडे़ होने में अधिक परेशानी महसूस होती है। स्वप्नदोष के रोग में डायस्कोरिया औषधि के अतिरिक्त अन्य औषधि का भी प्रयोग किया जा सकता है. जैसे- नक्सवोमिका, लाइकोपोडियम, सेलेनियम, कोनायम, कैलेडियम, जेल्सेमियम, एसिड-फास, डिजिटैलिस, नेट्रम-फास, फास्फोरस आदि।

स्त्रियों के रोग से सम्बंधित लक्षण : गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों के गर्भाशय के ऊपरी झिल्ली में दर्द के होने पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

श्वसन संस्थान से सम्बंधित लक्षण : सांस लेते समय ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि छाती में सांस लेने के लिए जगह नहीं मिल पा रही है तथा दुर्गंधित वायु की बड़ी-बड़ी डकारें आदि आने पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण : पीठ में लंगड़ापन (LAMENESS) की अनुभूति जो झुकने से बढ़ जाती है, जोड़ों में हल्का-हल्का दर्द और अकड़न का होना, गठिया का दर्द का तेजी के साथ जांघों के नीचे फैल जाना तथा जांघ के निचले हिस्से में दर्द का अधिक होना, पूरी तरह से शान्त बैठे रहने या लेटे रहने पर हल्का पड़ जाता है। नाखून के घावों की प्राराम्भिक अवस्था में जब पहले चुभन महसूस होती है तथा हाथ-पैरों की उंगलियों में संकुचन के साथ-साथ मांसपेशियों में ऐंठन होना आदि शारीरिक लक्षणों में डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। 

रूपात्मकताएं : 

शाम को तथा रात को, लेटे रहने से तथा दोहरा होने से इस औषधि के रोगी में वृद्धि, तथा सीधे होकर खड़ा रहने से, खुली हवा में टहलने से तथा दबाव देने से इस औषधि के रोगी में रोग के लक्षणों में कमी होती है।

दोषों को दूर करने वाला : 

डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का अधिक मात्रा में उपयोग करने से होने वाले दोषों को दूर करने के लिए कमो तथा कैम्फ औषधि का प्रयोग करें।

सम्बंध : 

कोलोसिन्थ, फास, पाडो, रस-टाक्स और साइली।

तुलना : 

डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि की तुलना कोलो, नक्स, कमो, ब्रायो आदि औषधियों से की जा सकती है।

ह्यस (एमेलिओरेशन): 

इस औषधी से पीड़ित रोगी को टहलने या चलने-फिरने से थकान आने लगती है लेकिन इसके बावजूद भी रोगी टहलना और चलना-फिरना जारी रखता हो तो उसका स्वास्थ्य धीरे-धीरे करके ठीक होने लगता है।


डौलीकौस प्यूरियन्स-म्यूक्यूना DOLICHOS PURIENS-MUCUNA

 डौलीकौस प्यूरियन्स-म्यूक्यूना DOLICHOS PURIENS-MUCUNA

परिचय-

इस औषधि में यकृत एवं त्वचा से सम्बंधित रोगों के लक्षणों की अधिकता पायी जाती है। वृद्धावस्था के समय होने वाली बवासीर, स्नायविक चेतना (नर्वस सेंसीबीलिटी), पूरे शरीर की खुजली आदि विकारों में तीव्र खुजली होती है।


शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षणों के आधार पर डौलीकौस प्यूरियन्स-औषधि का उपयोग :

गले से सम्बंधित लक्षण : गले में दर्द, जबड़े के दांयें कोण के नीचे की ओर बढ़ा हुआ जैसे वहां लम्ब रूप में कोई कांटा अड़ गया हो, मसू़ढ़ों में दर्द के कारण नींद न आती हो आदि लक्षणों में डौलीकौस प्यूरियन्स-म्यूक्यूना औषधि का उपयोग किया जाता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण : सफेद रंग का मल, यकृत की सूजन, खूनी बवासीर, पैर भीग जाने के कारण होने वाला पेट का दर्द, कब्ज, खुजली तथा पेट का फूलना आदि लक्षणों में डौलीकौस प्यूरियन्स-म्यूक्यूना औषधि का प्रयोग किया जाता है।

त्वचा से सम्बंधित लक्षण : डौलीकौस प्यूरियन्स-म्यूक्यूना औषधि का उपयोग बिना सूजन और दाना वाली तेज खुजली, कोहनी और घुटने के आस-पास तथा बालों वाले भागों में अधिक खुजली, पीलिया, धब्बों में पीलापन, रात के समय अधिक खुजली का होना तथा दाद-खाज-खुजली आदि लक्षणों में इसका अधिक उपयोग किया जाता है।

दांत : 

दांत निकलने के समय बच्चों के मसूढ़ों में संवेदनशीलता होना, मसूढ़ों में दर्द अधिक होना तथा मसूढ़ों का फूलना आदि लक्षणों में डौलीकौस प्यूरियन्स-म्यूक्यूना औषधि का उपयोग किया जाता है। 

रूपात्मकताएं : 

रात के समय, खुजली होने पर दांई ओर वृद्धि।

सम्बंध : 

रस-टा, बेला, हीपर, नाइट्रिक एसिड, फैगोपाइ।

मात्रा : 

इस औषधि की छठी शक्ति का उपयोग किया जाता है। खूनी बवासीर में इसके मूलार्क की मात्राएं बून्दों में।

नोट : पीलिया का रोग जिसमें सफेद मल निकलता है। पीलिया का रोग ठीक होने के बाद भी त्वचा में बिना किसी प्रकार विकार हुए खुजली होती रहती है और त्वचा का रंग कालापन लिए हुए होता है। 


डायोस्मा लिंकैरिस (DIOSMA LINCARIS)

 डायोस्मा लिंकैरिस (DIOSMA LINCARIS)

परिचय-

डायोस्मा लिंकैरिस औषधि जिन रोगजन्य लक्षणों को उत्पन्न करती है वे हैं आलस्य, स्नायु के कारण उत्पन्न अनिद्रा का रोग तथा रात्रि के समय आने वाला पसीना, चिड़चिड़ापन, रोने की इच्छा होना और रोगी होने का डर होना, तेज चक्कर आना, मस्तिष्क का दर्द जो प्रमुख रूप से सिर में होता है। आंखें चमकदार होने के साथ आंखों में आंसू आना और खुजली होना, कम सुनाई देना, कानों पर दबाव देने से कानों के अन्दर तेज शोर सुनायी पड़ना, जी मिचलाना, दुर्गंध युक्त सांस, साथ ही खालीपन की अनुभूति होना, उदरस्फार (मेटीओरिज्म) के साथ प्लीहा में दर्द होना, पेट के अन्दर दर्द के साथ जांघों में दबाव का अनुभव होना, गहरे खूनी रंग का पेशाब होना, बार-बार पीले रंग का दस्त होना जोकि रात के समय अधिक बढ़ जाते हैं, मासिक स्राव का अधिक मात्रा में होना जिसे स्त्रियों को पहले से ही महसूस होता है तथा कभी-कभी मासिक स्राव बढ़कर रक्तप्रदर के रूप में बदल जाता है, पेट में खाना खाने के बाद ऐंठन के साथ दर्द का होना, हाथों में गर्म या ठण्ड अहसास होने के साथ उंगलियों की आक्षेपी गतियां आरम्भ हो जाती हैं, टांगों की दुर्बलता, जो नीचे बैठने से और अधिक बढ़ जाती है। 

इस औषधि का उपयोग प्लीहा की सूजन (स्प्लेनिटीजै), स्नायविक अथवा साधु-सन्तों को होने वाले विकारों में जब मृत्यु हमेशा बना रहता है अथवा मिरगी या पागलपन के दौरे पड़ते हैं, जठरशूल (गैस्ट्रैल्गिया), आकिस्मक भय के साथ टांगों में कमजोरी और कम्पन होना आदि लक्षणों में उपयोगी होता है।


डलकैमेरा DULCAMARA

 डलकैमेरा DULCAMARA

परिचय-

बरसात या नमी के सीजन में ठण्ड लगने के कारण जुकाम, वात रोग या चर्मरोग हो, तो डलकैमेरा औषधि लाभकारी होती है। गर्मी के मौसम में अचानक ही वायु में नमी आ जाने से यदि किसी भी प्रकार का कष्ट हो तो इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है। एकोनाइट की पीड़ा भी ठण्ड लगने के कारण होती है परन्तु यह ऐसी ठण्डी हवा से होती है जिसमें कि नमी न हो और डलकैमेरा की पीड़ा ठण्ड लगने से तो होती है, परन्तु उस ठण्ड में नमी भी रहती है। शरीर के 

विभिन्न लक्षणों के आधार पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग: 

सिर से सम्बंधित लक्षण: मानसिक विकार, सिर के पिछले भाग का दर्द जो गर्दन के जोड़ों से आरम्भ होकर ऊपर की ओर बढ़ता जाता है। बातचीत करने से सिरदर्द में राहत मिलती है। मांगी हुई चीजें लेने से मना कर देता है। ठण्डे मौसम के दौरान सिर का पिछला भाग ठण्डा, भारी और दर्दनाक। सिर की त्वचा का दाद, बच्चों के सिर का गंजापन जिस पर मोटी और कत्थई रंग की पपड़ियां बनती हैं जिसे खुजलाने से खून बहने लगता है सिर के अन्दर सरासराहट होती है। उपरोक्त लक्षणों में डलकैमेरा औषधि उपयोग में लायी जाती है।

नाक से सम्बंधित लक्षण : सूखा नजला होना, नाक पूरी तरह से बन्द होना (सर्दी के मौसम में नाक बारिस होने के बाद जुकाम के कारण नाक बन्द हो जाती है), गाढे़ पीले रंग की खूनी पपड़ियां, नाक का अधिक बहना, नाक को गर्म करने की इच्छा होना, नवजात शिशु का नजला-जुकाम तथा हल्की सी भी ठण्ड लगने से नाक का बन्द हो जाना आदि लक्षणों में डलकैमेरा औषधि का उपयोग कर सकते हैं।

आंखों से सम्बंधित लक्षण : जब भी सर्दी-जुकाम होता है तो वह सबसे पहले आंखों को प्रभावित करता है। इसमें गाढे़ रंग का पीला स्राव, कणीय पलकें (ग्रेनुलर लीड्स), परागज ज्वर (हे-फीवर), खुली हवा में घूमने से आंखों से पानी का अधिक मात्रा में निकलना आदि आंखों से सम्बंधित विकारों में डलकैमेरा औषधि का उपयोग किया जाता है।

कानों से सम्बंधित लक्षण : कानों में दर्द होना, मच्छरों के समान भिनभिनाहट होना, सुई के समान चुभन महसूस होना, कर्णमूल ग्रन्थियों की सूजन, कान का बहना आदि विभिन्न कानों के लक्षणों में डलकैमेरा औषधि का उपयोग किया जाता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण : गालों का तेज दर्द जोकि बढ़ते हुए जबडे़ तक फैल जाना तथा गाल सहित पूरा चेहरा ठण्डा होना आदि लक्षणों में डलकैमेरा औषधि प्रयोग की जाती है।

मुख से सम्बंधित लक्षण : मुंह का लार चिपचिपे साबुन के समान होना, नमीदार मौसम में सर्दी लगने के कारण जीभ का खुरदरा और सूखा होना तथा गले के अन्दर मांस में खुरदापन और छिल जाने का अहसास, सर्दी के कारण होंठों के फोड़े तथा चेहरे के स्नायु का दर्द जो हल्की ठण्ड लगने के साथ ही बढ़ जाता हो आदि लक्षणों में डलकैमेरा औषधि का उपयोग किया जाता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण : सफेद चिपचिपा कफयुक्त उल्टी, भोजन में अरुचि, ठण्डे पेय पदार्थों के सेवन से न बुझने वाली प्यास, हृदय की जलन, जी मिचलाने के साथ मलत्याग की इच्छा होना, उल्टी होने के दौरान ठण्ड लगना आदि विकारों में डलकैमेरा औषधि उपयोग की जाती है।

पेट से सम्बंधित लक्षण : ठण्ड लगने के कारण होने वाला पेट दर्द, नाभि के आस-पास होने वाला दर्द तथा वंक्षण ग्रन्थियों की सूजन आदि में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।

मल से सम्बंधित लक्षण : मल हरे रंग का होना, पतला एवं चिपचिपा होना, खूनी श्लेष्मा, विशेषकर गर्मियों में जब मौसम अचानक ठण्डा हो जाता है में यह औषधि लाभकारी होती है।

मूत्र से सम्बंधित लक्षण: ठण्ड लगते ही मूत्रत्याग करना पड़ता है, मूत्रकृच्छ, पेशाब त्याग के समय दर्द होना, ठण्ड लगने से मूत्राशय का प्रतिश्याय, पेशाब में पीले गाढे़ रंग का पस आना तथा ठण्डे पानी में नंगे पैर चलने से उत्पन्न मूत्रकृच्छ में डलकैमेरा औषधि लाभकारी होती है।

स्त्रियों के रोग से सम्बंधित लक्षण: ठण्ड या नमी के कारण मासिक स्राव में अवरोध होना, मासिक स्राव के पहले दाना निकलना, मासिक स्राव का कष्ट के साथ होना, पूरे शरीर में धब्बे के समान होना, स्तन भारी तथा दर्दयुक्त होना आदि में डलकैमेरा औषधि उपयोग की जाती है।

श्वसन संस्थान से सम्बंधित लक्षण: खांसी होना जो ठण्ड तथा भीगे मौसम में बढ़ जाती हो, अधिक मात्रा में कफ निकलता हो, गले में गुदगुदेपन का अहसास होना, काली खांसी के काफी मात्रा में बलगम आना, सर्दियों के समय की होने वाली दर्दयुक्त खांसी, दमा के साथ श्वांस लेने की परेशानी तथा शारीरिक परिश्रम करने के बाद होने वाली परेशानी आदि में डलकैमेरा औषधि का उपयोग करते हैं।

पीठ से सम्बंधित लक्षण : गर्दन में अकड़न होना, कमर में दर्द ऐसा प्रतीत होना मानो कि वह लम्बे समय झुका रहा हो, ठण्ड लगने तथा भीग जाने के बाद गर्दन तथा कंधों के आर-पार अकड़न आदि में डलकैमेरा औषधि विशेष रूप से प्रयोग की जाती है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण : लकवा से पीड़ित अंग, बर्फ के समान ठण्डे पैर होना, हाथों पर मस्से तथा हथेलियों पर पसीना आना, जांघों में दर्द, आमवात और अतिसार की अवस्था आदि शरीर के बाहरी अंगों के लक्षणों में इस औषधि का उपयोग किया जाता है।

त्वचा सम्बंधी रोगों से सम्बंधित लक्षण : यदि ठण्ड लगने के कारण एक्जिमा हुआ हो या पित्ती उछलना (युटीकेरिया) आये, शरीर के विभिन्न अंगों जैसे चेहरे, जननांगों, हाथों आदि के दाने, चेहरे तथा हथेलियों आदि पर बडे़-बड़े कोमल मस्से आदि हो तो डलकैमेरा औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण : पूरे शरीर में जलन उत्पन्न करने वाली खुजली, शाम के समय अधिकतर पीठ में ठण्ड का अहसास होना, बर्फ के समान ठण्ड के साथ दर्द होना, त्वचा की सूखी गर्मी और जलन तथा ठण्ड के साथ प्यास लगना आदि लक्षणों में यह औषधि प्रयोग की जाती है।

वात रोग से सम्बंधित लक्षण : यदि ठण्ड लगकर हाथ-पैर और कमर में दर्द हो तथा इससे उत्पन्न वात रोग धीरे-धीरे पक्षाघात (PARALYSIS, LAKVA) में बदल जाए तो डलकैमेरा औषधि विशेष रूप से लाभकारी होती है। 

विरोधी सम्बन्ध : 

ऐसेटिक एसिड, बेल और लैके औषधियों के सेवन के पहले या बाद में डलकैमेरा औषधि का उपयोग नहीं करना चाहिए।

जबकि कैल्क, ब्रायो, लाइको, रस-टाक्स और सिपि के बाद डलकैमेरा औषधि का प्रयोग करने से इसके गुण बढ़ जाते हैं।

वृद्धि : 

साधारणतया ठण्ड से, ठण्डी हवा से, ठण्डे नम मौसम में, मासिक धर्म, फोड़े-फुंसियों और पसीने के दब जाने से इस औषधि के रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

पूरक : 

बैराइटा-कार्बोनिका,

ह्मस (ऐगग्रेवेशन) : 

हरकत करने से इस औषधि के रोगी के रोग के लक्षणों में कमी आती है।

मात्रा : 

डलकैमेरा औषधि की 2 से 30वीं शक्ति की मात्रा उपयोग में लायी जाती है।


डिफ्थेरीनम (DIOSMA LINCARIS)

 डिफ्थेरीनम (DIOSMA LINCARIS)

परिचय-

डिफ्थेरीनम औषधि विशेषरूप से श्वसन सम्बंधी रोगों से पीड़ित रहने वाले रोगियों तथा कंठमाला प्रकृति के रोगियों के लिए आवश्यक है। 

डिफ्थेरिनम औषधि के प्रधान लक्षण : रोग के प्रारम्भ होते ही नाक से खून निकलता है और बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है, शरीर का तापमान पहले की अपेक्षा घट जाता है। नाड़ी तेज और क्षीण हो जाती है। रोगी बेहोशी की अवस्था में पड़ा रहता है। बीमारी आरम्भ होते ही खतरनाक रूप धारण कर लेती है। गले की ग्रन्थि और जीभ फूल जाती है, जीभ लाल हो जाती है और अधिक मैली नहीं रहती है। नाक-मुंह और थूक बलगम आदि सभी अंगों में स्राव का होना तथा सांस में अधिक तेज बदबू आती है। तालुमूल और उसके आस-पास के स्थान पर सूजन हो जाता है और तालु काले रंग की हो जाती है। झिल्ली मोटी और काली हो जाती है। व्यक्ति कोई भी पीने वाली वस्तु आसानी से पी तो लेता है परन्तु पीने के बाद या तो उल्टी हो जाती है या नाक के द्वारा बाहर निकल जाती है।


डिफ्थीरिया और लैरेज्जियल डिफ्थीरियल और डिफ्थीरिया आरोग्य हो जाने के बाद लकवा हो जाए, तो इस औषधि से लाभ होगा।

सम्बंध : 

आर्स, बैप्टी, ब्रोम, कार्बो-ए, काष्टि, क्लोर, जेल्स, लैके, म्यूरे-ए, फास, जेल्स।

मात्रा : 

तीसवीं से 200 से उच्चशक्ति। इस औषधि को बार-बार नहीं देना चाहिए।


ड्रासेरा(ड्रासेरा रोटिन्डफोलिया) (DORYPHORA)

 ड्रासेरा(ड्रासेरा रोटिन्डफोलिया) (DORYPHORA) 

परिचय-

यह औषधि प्रमुख रूप से श्वसन अंगों को प्रभावित करती है। ड्रासेरा औषधि आमतौर पर काली खांसी के लिए बहुत अधिक उपयोगी होता है। इसीलिए होमियोपैथिक आविष्कारक हैनीमैन ने काली खांसी (हूपींग कफ) के लिए इसे प्रमुख औषधि माना है। 

विभिन्न लक्षणों के आधार पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग : 

सिर से सम्बंधित लक्षण : खुली हवा में सैर करते समय सिर में चक्कर आने के साथ बांई ओर गिरने का अहसास होना। चेहरे का बांया हिस्सा ठण्डा होने के साथ डंक लगने के समान दर्द का होना तथा दांई ओर आधे चेहरे पर सूखी गर्मी महसूस होने पर ड्रासेरा औषधि का सेवन करना चाहिए।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण : जी मिचलाना, खट्टे आदि पदार्थों से अरुचि तथा उनके दुष्प्रभावों को नष्ट करने के लिए ड्रासेरा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

श्वसन संस्थान से सम्बंधित लक्षण : सूखी खांसी, काली खांसी होना, रोगी को ऐसा प्रतीत होता है कि खांसी का एक दौरा जैसे ही आता है वैसे ही दूसरा खांसी का दौरा आरम्भ हो जाता है, रोगी को सांस लेने में कठिनाई होना, घुटन होना, पीले रंग का कफ निकलना, नाक और मुंह से रक्त का निकलना, ऊब लगना, गहरी कर्कश आवाज निकलना, गले में खराश का होना, स्वरयन्त्र की सूजन तथा तालु में खुरदरापन आदि होने पर ड्रासेरा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण : नितम्ब-ऊर्विका संधि (कोक्सो फीमोरल जोइंट) तथा जांघों में पक्षाघात के समान दर्द का होना, पैरों के जोड़ों में अकड़न, पैरों से चलने में परेशानी होना तथा लेटने पर बिस्तर का कठोर होना आदि लक्षणों में ड्रासेरा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बुखार से सम्बंधित लक्षण : आन्तरिक शीत, शीत कम्प के साथ गरम चेहरा, ठण्डे हाथ, प्यास न लगना तथा हमेशा ठण्ड लगना चाहे हाथ बिस्तर पर हो आदि लक्षणों के साथ उत्पन्न बुखार में ड्रासेरा औषधि का सेवन करना चाहिए।

क्षययुक्त खांसी से सम्बंधित लक्षण : टी.बी. से पीड़ित रोगी को लगातार खांसी होने पर ड्रासेरा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

रूपात्मकताएं : 

आधी रात बीतने के बाद, लेटने पर, बिस्तर की गर्मी से, पीने, गाने, हंसने से वृद्धि।

प्रतिविष : 

कैम्फ औषधि का उपयोग ड्रासेरा औषधि के हानिकारक प्रभाव को दूर करने के लिए किया जाता है।

तुलना : 

फ्लुओरोफार्म, चेलिडो, कोरेलि, क्यूप्रम, कैस्टेनिया, मेन्यान्थेस आदि औषधियों से ड्रासेरा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मात्रा : 

पहली से बारहवीं शक्ति।


डोरीफोरा (DORYPHORA)

 डोरीफोरा (DORYPHORA)

परिचय-

इस औषधि का उपयोग मूत्रांगों (युरिनरी ओरगेंस) से सम्बंधित विकारों पर अधिक होता है, जिस कारण इसे सूजाक (गिनोरिया) तथा ग्लीट (गीट) में किया जाता है। स्थानिक क्षोभ तथा ग्लीट के कारण बच्चों के पेशाब के मार्ग में होने वाला जलन, शरीर के बाहरी अंगों में भारी कंपन, शरीर में शून्यता का अनुभव होना, शरीर में सूजन तथा जलन आदि में डोरीफोरा औषधि लाभकारी होती है। 

पेशाब सम्बंधी रोग से सम्बंधित लक्षण : पेशाब करने में कठिनाई महसूस होना, पेशाब मार्ग में जलन तथा तेज दर्द, पीठ तथा उरुओं (लोइंस) में दर्द तथा अंगों में तेज कंपन आदि लक्षण होने पर डोरी फोरा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

प्रतिविष : 

स्ट्रामों औषधि का उपयोग डोरी फोरा औषधि के दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है।

तुलना : 

डोरीफोरा औषधि की तुलना एगारिक, एपिस, कैथ, लैके, काक्सि आदि औषधियों से की जा सकती है।

मात्रा : 

छठी से तीसवीं शक्ति।


डोलीकस Dolisos

 डोलीकस Dolisos

परिचय-

डालीकस की मुख्य क्रिया यकृत पर होती है। डालीकस औषधि इस प्रकार के उपसर्ग उत्पन्न करता है, जिसके कारण पीलिया का रोग हो जाता है। इससे कब्ज ठीक होकर मल सफेद रंग का होता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षणों के आधार पर डायोस्कोरिया विल्लोसा औषधि का उपयोग- 

आंखों से सम्बंधित लक्षण : आंखों में पीलापन आदि होने पर चेली, सिन्चे, आयो, प्लाम्ब आदि औषधियों के साथ डालीकस औषधि का भी उपयोग किया जा सकता है।

गले से सम्बंधित लक्षण : गले की नली में दाहिनी ओर तेज चुभन भरा दर्द होता है जिस कारण उसे कुछ भी निगलने में कठिनाई होने पर डालीकस औषधि उपयोगी होती है।

खांसी से सम्बंधित लक्षण : रात को सो जाने के बाद सूखी खांसी आने पर डालीकस औषधि उपयोग की जाती है।

खुजली से सम्बंधित लक्षण : पूरे शरीर में अधिक तेज खुजली होती है लेकिन इसके बावजूद एक भी दाना आदि नहीं होता है। पीलिया का रोग ठीक हो जाने के बाद भी ऐसी ही खुजली होती है। इसके उपचार हेतु डालीकस औषधि का उपयोग किया जाता है।

त्वचा से सम्बंधित लक्षण : यदि शरीर के किसी अंग की त्वचा में कालिमा आ जाए तो डालीकस औषधि का प्रयोग करते हैं।

दाद से सम्बंधित लक्षण : यदि सूखी दाद का असर त्वचा पर आ जाता है जो हाथ-पैरों पर अधिक प्रभाव दिखाते हैं तथा पीव वाली फुंसियों के समान हो जाते हैं। ऐसे लक्षणों में डालीकस औषधि लाभकारी होती है। 

सम्बंध : 

कल्के-का, चेली, हिपर, रैन, पोडो, रस-टा, सल्फर।


साइनोडिन डैक्टिलोन Cynodin Dactylon

 साइनोडिन डैक्टिलोन Cynodin Dactylon

परिचय-

साइनोडिन डैक्टिलोन औषधि खून का बहना, खूनी दस्त, जलोदर, योनि में से पानी आना आदि रोगों में काफी लाभकारी साबित होती है। 

विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर साइनोडिन डैक्टिलोन का उपयोग-

रक्तस्राव (खून का बहाव)- उल्टी में खून आना, नाक से खून आना, किसी नुकीली चीज के कट जाने के कारण जख्म बनने के कारण खून बहना, खूनी बवासीर आदि के लक्षणों में साइनोडिन डैक्टिलोन औषधि बहुत लाभकारी होती है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण- पेशाब का रुक-रुककर आना, कभी कम या कभी ज्यादा पेशाब आना, मूत्राशय की पथरी आदि मूत्ररोगों में साइनोडिन डैक्टिलोन औषधि नियमित रूप से सेवन कराने से बहुत लाभ होता है।

आंख से सम्बंधित लक्षण- आंखों से कम दिखाई देना, आंखों के आगे धुंधलापन छा जाना, मोतियाबिंद हो जाना आदि आंखों के रोगों के लक्षणों में रोगी को साइनोडिन डैक्टिलोन औषधि देने से लाभ होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- पुराने दस्त, सभी प्रकार के जलोदर, गर्मी के कारण उल्टी होना आदि लक्षणों में रोगी को साइनोडिन डैक्टिलोन औषधि का सेवन कराने से बहुत लाभ होता है।

मात्रा-

मूलार्क या 3x शक्ति।


कोरेलियम Corallium

 कोरेलियम Corallium

परिचय-

विभिन्न रोगों के लक्षणों में कोरेलियम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर में दर्द होना, सिर का भारी होना, दर्द जो आगे की ओर झुकने से तेज होता है, आंखें गर्म और बहुत तेज दर्द होना, माथे में दर्द जो बहुत गहराई में होता है, इसके साथ ही आंखों में गोलों के पीछे के हिस्से में दर्द होना, नाक से ठण्डी हवा में सांस लेने से दर्द तेज हो जाता है आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को कोरेलियम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण - नाक में अजीब सी गंध महसूस होना, नाक के नथुनों में जख्म होना, बलगम का बहुत ज्यादा गले के अंदर जाना, शरीर में ठण्डी हवा सी लगती हुई महसूस करना, सूखा जुकाम, नाक बंद होना और उसमें जख्म होना, नाक से खून बहना आदि लक्षणों के आधार पर कोरेलियम औषधि लेने से आराम मिलता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण - मुंह का स्वाद बहुत ज्यादा खराब होना, बीयर का स्वाद अजीब सा लगना, बाएं जबड़े के नीचे के हिस्से में दर्द होना, हर समय नमक खाने का मन करना जैसे लक्षणों में रोगी को नियमित रूप से कोरेलियम औषधि खिलाने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण - खंखारने पर गले से बहुत ज्यादा बलगम निकलता है, गला बहुत ज्यादा नाजुक अवस्था में पहुंच जाता है और उससे जरा सी भी हवा बर्दाश्त नहीं होती, नाक से बहुत ज्यादा मात्रा में स्राव होता है, सांस के साथ अंदर जाती हुई हवा ठण्डी महसूस होती है, दम सा घोट देने वाली खांसी होना, बार-बार खांसी उठती रहती है, खांसी के साथ सांस लेने वाले जगहों का बहुत ज्यादा नाजुक होना, काली खांसी होने के बाद दम सा घुट जाना और थकान महसूस होना आदि लक्षणों में कोरेलियम औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण - लिंग के मुंह और उसकी त्वचा पर जख्म होना, जिसके अंदर से पीला सा स्राव होता रहता है, रात को सोते समय वीर्य का निकल जाना, नपुसकता, जनेन्द्रियों पर बहुत ज्यादा पसीना आना आदि लक्षणों मे कोरेलियम औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण - त्वचा पर बड़े-बड़े लाल रंग के जख्म होना, हथेलियों और तलुओं में जलन होना, त्वचा पर लाल रंग के दाने होना जिसका रंग बाद में तांबे के जैसा होता है आदि लक्षणों में रोगी को कोरेलियम औषधि देने से लाभ मिलता है।

तुलना-

कोरेलियम औषधि की तुलना ड्रासेरा, बेला, मेफाई, कास्टि से की जा सकती है।

वृद्धि-

खुली हवा में, गर्म कमरे में, कमरा ठण्डा होने से रोग बढ़ जाता है और ओढ़ने या ढकने से रोग कम हो जाता है।

पूरक-

सल्फर।

मात्रा-

कोरेलियम औषधि की तीसरी से तीसवीं शक्ति तक रोगी को देने से लाभ मिलता है।


कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका Coca Erythroxylon Coca

 कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका Coca Erythroxylon Coca

परिचय-

कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि उन लोगों के लिए लाभकारी होती है जिन लोगों को ज्यादा ऊंचाई पर जाने की आदत होती है जैसे पहाड़ पर चढ़ना। ज्यादा ऊंचाई पर चढ़ने में व्यक्ति को दिल का तेज धड़कना, सांस लेने में परेशानी होना, कमजोरी और नींद न आने जैसे लक्षण नज़र आने पर अगर ये औषधि दी जाए तो ये उस व्यक्ति के लिए बहुत लाभकारी साबित होती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि का उपयोग-

मस्तिष्क से सम्बंधित लक्षण-

किसी व्यक्ति का हमेशा अकेले बैठे रहना, किसी अजीब सी उलझन में घिरे रहना, चिड़चिड़ा होना, किसी से ढंग से बात न करना आदि लक्षणों में अगर रोगी को कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि दी जाए तो ये उसके दिमाग पर बहुत अच्छा असर करती है।

सिर से सम्बंधित लक्षण-

सिर के पीछे के हिस्से में दर्द होना, सिर का घूमना, सिरदर्द के साथ चक्कर आना और आंखों के आगे बिजली सी चमक आना, कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें सुनाई देना, आंखों से एक ही चीज का दो-दो दिखाई देना, जीभ पर बहुत ज्यादा मैल जम जाना, ज्यादा ऊंचाई पर जाने से सिर में दर्द होना आदि सिर के रोगों के लक्षणो में रोगी को कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि का सेवन कराने से आराम पड़ता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- 

मुंह में बहुत तेज जलन होना जैसे कि कोई मिर्ची खा ली हो, शराब और तंबाकू का नशा करने का मन करना, पेट का फूलना, हर समय सिर्फ मीठा खाने का मन करना बाकी सब चीजों से अरुचि हो जाना आदि आमाशय रोग के लक्षणों में रोगी को कोका-एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि देने से लाभ होता है।

हृदय (दिल) से सम्बंधित लक्षण- 

दिल का अचानक बहुत तेज धड़कना, दिल का कमजोर होना, सांस लेने में परेशानी होना आदि दिल के रोगों के लक्षणों में अगर रोगी को नियमित रूप से कोका-एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि दी जाए तो कुछ ही समय में उसके दिल के रोग के सारे लक्षण समाप्त होकर वह व्यक्ति बिल्कुल स्वस्थ हो जाएगा।

अनिद्रा-

किसी व्यक्ति को नींद आने पर भी आराम न मिल पाना, शरीर का पूरे दिन थका हुआ सा रहना आदि लक्षणों में कोका-एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है।

दांतों से सम्बंधित लक्षण-

दांतों में किसी तरह की सड़न होने में, दर्द होने पर आदि लक्षणों में रोगी को कोका-एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

पुरुष-

किसी व्यक्ति को मधुमेह (डायबिटीज) होना और उसी के कारण नपुसंकता भी आ जाना आदि पुरुष रोगों के लक्षणों में कोका-एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि अच्छा असर करती है।

मूत्ररोग से सम्बंधित लक्षण-

बार-बार पेशाब करने की इच्छा करना, रात को सोते समय बिस्तर पर पेशाब निकल जाना आदि मूत्ररोगों के लक्षणों में रोगी को कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि का सेवन कुछ दिन तक नियमित रूप से कराने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- 

रोगी व्यक्ति के गले से छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में बलगम का निकलना, आवाज का सही तरह से न निकलना, ज्यादा बोलने से गले में दर्द होना, सांस का फूलना, सांस लेने में परेशानी होना आदि सांस के रोगों के लक्षणों में रोगी को रोजाना कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका औषधि देने से कुछ ही समय में उसके ये सारे सांस रोग के लक्षण समाप्त हो जाएंगे।

वृद्धि-

सीढ़ियां चढ़ने से, पहाड़ पर चढ़ने आदि से रोग बढ़ जाता है।

शमन-

शराब पीने से, घुड़सवारी कराने से, खुली हवा में रोग कम हो जाता है।

तुलना-

आर्से, पौलिन, सिप्रिपीडियम, कमो आदि से कोका- एरिथ्रोक्सीलन कोका की तुलना की जा सकती है।

मात्रा-

मूलार्क या तीसरी शक्ति तक।


साइप्रिपेडियम Cypripedium

 साइप्रिपेडियम Cypripedium 

परिचय-

गठिया रोग के कारण आई हुई कमजोरी, बच्चों के दांत निकलने के रोग या आंतों के रोग के कारण पैदा हुई स्नायविकता, स्त्रियों का मासिकधर्म बंद होने के बाद होने वाला सिरदर्द आदि लक्षणों के आधार पर साइप्रिपेडियम औषधि का इस्तेमाल करने से लाभ होता है। तुलना-

अम्बरा, काली-ब्रोमें, वैलेरियाना, इग्नेशिया आदि से साइप्रिपेडियम की तुलना की जा सकती है।

मात्रा-

साइप्रिपेडियम औषधि का मूलार्क या 30 शक्ति तक रोगी को देना चाहिए।


क्यूप्रम मेटालिकम Cuprum Metallicum

 क्यूप्रम मेटालिकम Cuprum Metallicum

परिचय-

विभिन्न रोगों के लक्षणों में क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण- हर समय अपने आप से ही बाते करते रहना, दूसरों से सही तरह से बात न करना, डरते हुए से रहना, किसी चिंता में डूबे रहना, सिर में चक्कर आना, दिमाग में तथा आंखों को घुमाने पर बहुत तेज दर्द होना, दिमाग में सूजन आना आदि सिर के रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को क्यूप्रम मेटालिकम औषधि देने से आराम मिल जाता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों में दर्द सा रहना, आंखें अंदर की ओर धंसी हुई, बिल्कुल लाल सुर्ख लगना, आंखों के अंदर के गोलों का तेज घूमना, आंखों का बंद होना आदि आंखों के रोगों के लक्षणों में क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- चेहरा बिगड़ा हुआ सा लगना, होंठ नीले होना, होंठों के सिकुड़ने के साथ मुंह से झाग आना आदि लक्षणों में क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से लाभ होता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- नाक में ऐसा लगना जैसे कि उसमें बहुत ज्यादा खून जमा हो गया हो जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को क्यूप्रम मेटालिकम औषधि खिलाने से आराम पड़ जाता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- मुंह का स्वाद बहुत ज्यादा कड़वा होना, बोलते समय बीच-बीच में हकलाना, लार का अधिक मात्रा में गिरना, जीभ का बाहर की तरफ निकलना, जीभ में लकवा मार जाना आदि मुंह के रोगों के लक्षणों में रोगी को क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिल जाता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- बहुत ज्यादा हिचकियां आना, जी मिचलाना, उल्टी आना, पेट में दर्द होना, दस्त होना, मुंह का स्वाद कड़वा होना, मन में ऐसा महसूस होना जैसे कि ठण्डा पानी पीना है आदि आमाशय रोगों के लक्षणों में क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन लाभदायक रहता है।

उदर (पेट) से सम्बंधित लक्षण- पेट में दर्द कभी कम और कभी तेज होना, पेट का सख्त सा होना, सिकुड़ जाना, शरीर के अंदर के अंगों के स्नायु में दर्द आदि पेट के रोगों के लक्षणों में रोगी को क्यूप्रम मेटालिकम औषधि देने से लाभ होता है।

मल से सम्बंधित लक्षण- मल का काले रंग का आना, मलक्रिया के दौरान मल के साथ खून आना, दर्द होना, कमजोरी महसूस होना, हैजा होने के साथ ही पेट और पिण्डलियों में मरोड़े उठना आदि लक्षणों के आधार पर क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन लाभदायक रहता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण- मासिकधर्म में स्राव का समय के काफी बाद में आना और काफी दिनों तक रहना, मासिकस्राव से पहले या उसके दौरान ही मासिकस्राव दब जाने के बाद ऐंठन जो छाती तक फैल जाती है, पैरों का पसीना दब जाने के बाद पैदा होने वाले रोग, बच्चे को जन्म देते समय होने वाला दर्द आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

हृदय (दिल) से सम्बंधित लक्षण- दिल में दर्द होना, नाड़ी का धीरे-धीरे चलना, दिल की धड़कन तेज अनियमित होना आदि दिल के रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को क्यूप्रम मेटालिकम औषधि खिलाने से आराम मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे कि दम घुट रहा हो जो आधी रात के बाद ज्यादा हो जाता है, छाती में आक्षेप और सिकुड़न होना, काली खांसी होना जिसमें पानी पीने से आराम मिलता है, इसके साथ ही उल्टी और चेहरा नीला सा पड़ना, गले में परेशानी होना, सांस लेने में परेशानी होने के साथ ही आमाशय में खराबी होना, मासिकस्राव से पहले आक्षेपयुक्त सांस लेने में परेशानी होना, दिल में दर्द होने के साथ दमे के लक्षण तथा ऐंठन आना आदि लक्षणों के आधार पर क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन नियमित रूप से करने से लाभ मिलता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- हाथ ठण्डे होना, हथेलियों में ऐंठन, पेशियों में फड़कन और फैलना, शरीर के अंगों में कमजोरी होना, पैरों की पिण्डलियों में तलुवों में ऐंठन, मिर्गी का दौरा पड़ना जो घुटनों से शुरू होता है, पेशियों का अनियमित सुकड़ाव जो उंगलियों से शुरू होता है जैसे लक्षणों के आधार पर क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन लाभदायक रहता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- त्वचा का रंग नीला होना, त्वचा का बिल्कुल ठण्डा पड़ना, त्वचा पर जख्म होना, खुजली वाले चकते पड़ना, जोड़ों पर फुंसियां होना, कोढ़ आदि चर्मरोगों के लक्षणो में क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण- बहुत गहरी नींद आने के साथ शरीर में झटके लगना, नींद के दौरान पेट में लगातार गड़गड़ाहट होना आदि लक्षणों के आधार पर क्यूप्रम मेटालिकम औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

प्रतिविष-

बेला, हीपर, कैम्फर, डलकामारा, स्टैफिसै, कोनियम आदि औषधियों का उपयोग क्यूप्रम मेटालिकम औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

पूरक-

कल्केरिया।

तुलना-

क्यूप्रम मेटालिकम औषधि की तुलना आर्स, बेल, कैम्फ, कैन्थ, कार्बो-वे, डेजी, इपी, कालीपा, लैके, लैरों, नाजा, ओपि, फास, सिके, स्ट्रेम, टेरा, और वैरेट्रम से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी के लक्षणों को जानकर अगर उसे क्यूप्रम मेटालिकम औषधि की छठी से तीसवीं शक्ति तक दी जाए तो लाभ होता है।

वृद्धि-

मासिकधर्म के दौरान, उल्टी करने से, छूने से रोग बढ़ता है।

शमन-

ठण्डा पानी पीने रोग कम हो जाता है।


क्लिमैटिस इरेक्टा Clematis Erecta

 क्लिमैटिस इरेक्टा Clematis Erecta

परिचय-

क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि गले की गांठों, गठिया, सूजाक रोग के रोगियों के लिए काफी लाभदायक है। इसके अलावा त्वचा, ग्रंथियों, जनेन्द्रियों तथा मूत्रांगों पर इसकी खास क्रिया होती है और उनमें भी ये अण्डकोशों पर अच्छा असर डालती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण- कनपटियों में बहुत तेज दर्द होना, सिर में मवाद भरी हुई, खुजली वाली छोटी-छोटी फुंसियां निकलना, सिर चकराना जो खुली हवा में सही हो जाता है आदि सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि का सेवन कराने से आराम पड़ जाता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों में जरा सी भी हवा लगने पर उनमें जलन होना, पलकों की पुरानी जलन, मीमोबों ग्रंथियों में सूजन और दर्द, आंखों के आगे अजीब-अजीब सी चीजे नज़र आना आदि आंखों के रोगों के लक्षणों में क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि का सेवन कराना रोगी के लिए अच्छा रहता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण - चेहरे और नाक पर सफेद रंग के दाने से निकलना, चेहरा झुलसा हुआ सा लगना, नीचे वाले जबड़े की ग्रंथियों में सूजन वाली सख्त गांठें निकलना, चेहरे के दाएं तरफ के हिस्से आंखों, कानों और कनपटियों में दर्द महसूस होना आदि लक्षणों में क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि का प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है।

दांतों से सम्बंधित लक्षण- दांतों में बहुत तेज दर्द होना, दांतों का साधारण से ज्यादा बड़ा महसूस होना आदि दान्त रोग के लक्षणों में रोगी को क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि खिलाने से आराम आता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- दिन में किसी भी समय भोजन करने के बाद शरीर के सारे अंगों में कमजोरी सी महसूस होना, धमनियों में तपकन सा लगना आदि लक्षणों में क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि देने से लाभ होता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण- अण्डकोषों का बिल्कुल सख्त हो जाना और उनमें बहुत तेज दर्द होना, सूजन आना, भारी होकर लटक जाना, लिंग में तेज दर्द होना, पेशाब के रास्ते में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना आदि पुरुष रोगों के लक्षणों में क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि का प्रयोग करना रोगी के लिए लाभकारी होता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण- पेशाब का बार-बार आना लेकिन बहुत ही कम मात्रा में, पेशाब करने की नली में जलन होना, पेशाब की नली का सिकुड़ जाना, पेशाब का बूंद-बूंद करके टपकते रहना आदि मूत्ररोगों में रोगी को क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- चमड़ी पर लाल रंग के छोटे-छोटे, खुजली वाले दाने निकलना, चेहरे, हाथों, खोपड़ी और सिर के पीछे के हिस्से में बहुत ज्यादा खुजली होना, ग्रंथियों गर्म, दर्द वाली सूजी हुई लगना, स्त्रियों के स्तनों की ग्रंथियों में कठोरता आ जाना और फोड़ा निकलना आदि चर्मरोगों के लक्षणों में रोगी को क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि का प्रयोग कराना काफी लाभदायक सिद्ध होता है।

वृद्धि-

खुली हवा में रोग का बढ़ जाना। रात को, बिस्तर में, ठण्डे पानी से नहाने से, हर महीने अमावस के आने के पास के दिनों में रोग बढ़ जाता है।

तुलना-

क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि की तुलना क्लिमैटिस विटाल्बा, साईली, स्टैफिसे, पेट्रोलियम, ओलिएण्डर, सर्साप, कैन्थ, फास्फो-एसिड, पल्सा से की जा सकती है।

प्रतिविष-

ब्रायों, कैम्फर औषधि का उपयोग क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि के दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है।

मात्रा-

रोगी को क्लिमैटिस इरेक्टा औषधि की तीसरी से तीसवीं शक्ति तक देने से लाभ होता है।


सिस्टस कैनाडेंसिस Cistus Canadensis

 सिस्टस कैनाडेंसिस Cistus Canadensis

परिचय-

जिन लोगों के गले में गांठें होने के लक्षण जैसे रोगी की आंखों में से मवाद आना, आदि लक्षण नज़र आते है तो उन लोगों को अगर सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि दी जाए तो ये उसके लिए बहुत लाभकारी होती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों में सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि का उपयोग-

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- चेहरे की त्वचा पर जख्म होना, कैंसर का फोड़ा फट जाने पर उसमें से खून बहना, नाक की नोक में दर्द होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि का प्रयोग कराना अच्छा रहता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- मसूढ़ों में सूजन और खून आना, मुंह का स्वाद बहुत ज्यादा खराब होना, मुंह में ठण्डक महसूस होना, सांस में से बदबू आना, दांतों में पीब पड़ना और खून बहना, जीभ को बाहर निकालने में परेशानी होना आदि लक्षणों में रोगी को सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि खिलाने से आराम मिलता है।

कान से सम्बंधित लक्षण- कान में से पानी जैसा स्राव होते रहना, बदबूदार पीब निकलना, कानों के ऊपर या उनके आसपास के भाग में छोटे-छोटे दाने निकलना आदि कान के रोगों के लक्षणों में सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि का उपयोग लाभदायक रहता है।

कंठ (गला) से सम्बंधित लक्षण- जीभ और गले का ठण्डा महसूस होना, गले का बहुत नाजुक महसूस होना, जरा सी भी हवा गले में लगते ही दर्द शुरू हो जाना, गले की ग्रन्थियों में सूजन आना और पीब बन जाना, गर्दन में सूजन आ जाना, गले में गर्मी और खुजली सी महसूस होना आदि लक्षणों में रोगी को सिस्टस कैनाडेंसिस का सेवन कराने से आराम मिलता है। 

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- भोजन करने से पहले और भोजन करने के बाद में आमाशय के अंदर ठण्डक सी महसूस होना, मन में बार-बार पनीर खाने की इच्छा करना जैसे लक्षण नज़र आने पर रोगी को सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

मल से सम्बंधित लक्षण- फलों को खाने से या कॉफी पीने से होने वाले दस्त, पानी जैसे पतले दस्त आना, बार-बार मलक्रिया के लिए भागना आदि लक्षणों के आधार पर सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि का सेवन लाभप्रद रहता है।

वक्ष (छाती) से सम्बंधित लक्षण - छाती में ठण्ड सी लगती हुई महसूस होना, गर्दन के ऊपर गांठे निकल आना, स्तनों का सख्त हो जाना, फेफड़ों में से खून आते रहना आदि लक्षणों में रोगी को सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि खिलाने से लाभ होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- कलाई में तेज दर्द होना, हाथों पर दाद से निकलना, पैरों का ठण्डा पड़ जाना, जनेन्द्रियों पर जख्म और उसके आसपास के हिस्सों में सख्त सी सूजन आ जाना आदि लक्षण नज़र आने पर रोगी को सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण- गलें में ठण्डक सी लगने के कारण पूरी रात नींद न आ पाने जैसे लक्षणों में सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि काफी अच्छा असर करती है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - स्त्री के स्तन सख्त से हो जाना और उनमें जलन होना, ठण्डी हवा लगते ही परेशानी हो जाना, योनि में से बदबूदार पानी आना जैसे स्त्री रोगों के लक्षणों मे रोगी को सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि का सेवन नियमित रूप से कराने से लाभ मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- रात को सोने के लिए जाने पर दमे के दौरे का अचानक उठ जाना, सांस की नली में ऐसा महसूस होना जैसे कि कुछ अटक गया हो, दमे का दौरा पड़ने से पहले अजीब सी सरसराहट महसूस होना आदि लक्षणों में सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि का सेवन काफी लाभप्रद रहता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- पूरे शरीर की त्वचा पर खुजली सी महसूस होना, त्वचा के ऊपर छोटी-छोटी दर्द वाली फुंसियां होना, ग्रन्थियों का सख्त हो जाना और उनमे जलन सी होना, हाथों की त्वचा सख्त, मोटी, झुर्रीयुक्त हो जाना, रात को सोते समय पूरे शरीर में खुजली होने के कारण नींद न आना, आधे सिर में दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को अगर सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि दी जाए तो ये उसके लिए काफी लाभकारी होती है।

तुलना-

सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि की तुलना बेल, कल्क-कार्ब, ग्रैफ, हिपरसल्फ, कैलि-बाइ, नाइट्रऐसिड, फास और सल्फ के साथ कर सकते हैं।

वृद्धि-

हल्की सी ठण्डी हवा लगते ही, ज्यादा दिमाग वाला काम करने से, उत्तेजना से रोग बढ़ जाता है।

शमन-

भोजन करने के बाद रोग कम हो जाता है।

प्रतिविष-

रस-टा, सीपिया आदि औषधियों का उपयोग सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि के दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है।

मात्रा-

किसी भी रोग के लक्षणों के आधार पर रोगी को सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि की 1 से 3 शक्ति दी जा सकती है।

जानकारी-

शरीर के जिस अंग से बदबूदार स्राव होता है उस स्थान को सिस्टस कैनाडेंसिस औषधि का घोल बनाकर धोने से स्राव रुक जाता है।


कुरारी-वूरारी Curare- Woorari

 कुरारी-वूरारी Curare- Woorari

परिचय-

अगर किसी भी व्यक्ति के निम्नलिखित लक्षण नज़र आते है जैसे- पैरों की मांसपेशियों में लकवा मार जाना, चल-फिर न पाना, सांस की मांसपेशियों में लकवा मार जाना, शरीर के किसी भी अंग के मुड़ने में परेशानी होना, स्नायु तंञ में कमजोरी आ जाना, किसी काम में मन न लगना, सिर में तेज दर्द होना, आंखों के आसपास काले धब्बे होना, कानों में बहुत तेज दर्द होना, जीभ और मुंह दायीं ओर मुड़ जाना, स्त्रियों का मासिकधर्म समय से पहले आना, मासिकधर्म के दौरान सिर और गुर्दों में दर्द होना, खांसते-खांसते उल्टी होना। इस तरह के लक्षणों में कूरारी-वुरारी बहुत ही लाभकारी औषधि साबित होती है। 

विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर कुरारी-वुरारी औषधि का उपयोग-

दिमाग से सम्बंधित लक्षण - मन में हर समय अजीब सी हलचल मचते रहना, अपने फैसले को बार-बार बदलते रहना, हर समय सोचते रहना आदि दिमागी रोग के लक्षण प्रकट होने पर कुरारी-वुरारी औषधि बहुत ही लाभ करती है।

सिर से सम्बंधित लक्षण - पूरे सिर में इस तरह का दर्द होना जैसे की बहुत सारी सुईंया एक साथ चुभ रही हो, सिर में किसी तरह का तरल पदार्थ भरा होना लगना आदि सिर के रोग के लक्षणों में कुरारी-वूरारी औषधि बहुत ही लाभ करती है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण - किसी व्यक्ति की आंखों में कोई रोग हो जाने पर किसी तरह के लक्षण प्रकट होने पर जैसे, आंखों में कुछ चुभने जैसा दर्द होना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, दाईं आंख की पलक का गिर जाना आदि में कुरारी-वूरारी औषधि बहुत लाभकारी साबित होती है।

कान से सम्बंधित लक्षण - कान में बहुत तेज दर्द होना, कान के खण्डकों का सूज जाना, उनमें अजीब-अजीब सी आवाजें आना आदि कान के रोगों के लक्षण पैदा होने पर रोगी को कुरारी-वूरारी औषधि नियमित रूप से सेवन कराई जाए तो रोगी कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण - नाक से बहुत ज्यादा बलगम आना, नाक के ऊपर गांठें पैदा हो जाना, नाक से बदबू आना आदि नाक के रोगों के लक्षणों में कुरारी-वूरारी औषधि बहुत लाभदायक है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण - चेहरे और मुंह पर लकवा मार जाना, जीभ और मुंह दोनों दाईं तरफ हो जाना, चेहरा बिल्कुल लाल पड़ जाना आदि लक्षणों के नज़र आने पर रोगी को तुरंत ही कुरारी-वूरारी औषधि का सेवन कराना चाहिए।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - स्त्रियों का मासिकधर्म समय से पहले आना और बहुत दर्द के साथ आना, मासिकधर्म के दौरान पेट, गुर्दों और सिर में दर्द होना, गाढ़ा सा बदबू के साथ स्राव आना जैसे मासिकधर्म के रोग के लक्षणों के नज़र आने पर स्त्री को तुरंत ही कुरारी-वूरारी औषधि का सेवन कराना चाहिए।

सांस से सम्बंधित लक्षण - सांस लेने में परेशानी होना, सूखी खांसी होना, खांसते-खांसते उल्टी होना जाना, कमजोरी आना आदि लक्षणों के प्रकट होते ही रोगी को कुरारी-वूरारी औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

चमड़ी (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण - त्वचा पर कोढ़ निकल आना, फोड़े निकलना, खुजली होना, त्वचा पर भूरे रंग के दाग-धब्बे हो जाना आदि चर्मरोग के लक्षणों में रोगी को कुरारी-वूरारी औषधि का सेवन कराने से आराम आता है।

वृद्धि-

नमी से सदिर्यों के मौसम में, ठण्डी हवा में, आधी रात के बाद 2 बजे, शरीर के दाएं भाग का बढ़ना।

तुलना-

सिस्टिसिन, कोनियम, कास्टिकम, क्रोटेलस, नक्स आदि से कुरारी-वूरारी की तुलना की जाती है।

मात्रा-

कुरारी-वूरारी औषधि की छठी से तीसवी शक्ति तक रोगी को देने से आराम आता है।


क्लेरोडेण्ड्रेन इन्फोर्चुनेटम Clerodendron Infortunatum

 क्लेरोडेण्ड्रेन इन्फोर्चुनेटम Clerodendron Infortunatum

परिचय-

क्लेरोडेण्ड्रेन इन्फोर्चुनेटम औषधि पाचनतंत्र में आई हुई किसी भी तरह की खराबी को दूर करने में बहुत असरदार साबित होती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर क्लेरोडेण्ड्रेन इन्फोर्चुनेटम औषधि का उपयोग-

पेट से सम्बंधित लक्षण- बार-बार दस्त आना, जी मिचलाना, पेट में कीड़े होने के कारण दर्द होना, मल का पानी की तरह पतला, पीला, झाग के रूप में आना, लार का ज्यादा मात्रा में आना आदि लक्षणों में रोगी को क्लेरोडेण्ड्रेन इन्फोर्चुनेटम औषधि खिलाने से आराम आता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण - जिगर और तिल्ली में किसी तरह की खराबी आने के कारण होने वाला बुखार, दोपहर के बाद होने वाला बुखार, चेहरे और आंखें जलती हुई सी महसूस होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को क्लेरोडेण्ड्रेन इन्फोर्चुनेटम औषधि का प्रयोग कराने से लाभ होता है।

मात्रा-

मूलार्क, 3x, 6x, 30 शक्तियां।


कोबाल्टम Cobaltum

 कोबाल्टम Cobaltum

परिचय-

कोबाल्ट औषधि का सेवन मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) की स्नायविक कमजोरी का लक्षण नज़र आने पर काफी लाभकारी साबित होता है। इसके अलावा किसी भी तरह की मानसिक परेशानी के कारण शरीर में किसी प्रकार का दर्द उभर आना, सिर में हल्का-हल्का दर्द होना, जीभ के आसपास की त्वचा का फट सा जाना, जीभ पर सफेद सा मैल जम जाना, दांतों में दर्द, जिगर में दर्द, मलद्वार से खून आना, लेकिन मल के साथ खून का न आना, वीर्य का निकल जाना, नपुंसकता होना, कमर में दर्द होना, पेशाब की नली के पीछे के हिस्से में दर्द, अंगों का कांपना, पैरों पर पसीना आदि लक्षणों के आधार कोबाल्ट औषधि का सेवन कराने से रोगी को बहुत लाभ होता है। 

विभिन्न प्रकार के रोगों के लक्षणों के आधार पर कोबाल्ट औषधि के उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण- दिमाग में हर समय किसी प्रकार का तनाव रहना जिसके कारण शरीर में रोग पैदा हो जाना आदि मानसिक रोगों के लक्षणों में कोबाल्ट औषधि का सेवन बहुत लाभकारी होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर में हल्का-हल्का सा दर्द होना, सिर को आगे की ओर झुकाने से ज्यादा दर्द होना आदि सिर के रोगों के लक्षणों में कोबाल्ट औषधि का सेवन करने से बहुत लाभ होता है।

दांत से सम्बंधित लक्षण - दांत में दर्द होना, जीभ के आसपास की त्वचा का फट जाना, जीभ पर सफेद रंग की परत सी छा जाना आदि लक्षणों में कोबाल्ट औषधि बहुत ज्यादा लाभकारी साबित होती है।

उदर (पेट) से सम्बंधित लक्षण - पेट में बहुत तेज दर्द होना, तिल्ली में भयंकर दर्द उठना आदि पेट के रोगों के लक्षणों में कोबाल्ट औषधि का सेवन करने से कुछ ही समय में पेट के रोग के सारे लक्षण समाप्त हो जाते हैं।

मलान्त्र से सम्बंधित लक्षण - अगर किसी व्यक्ति के मलद्वार से हर समय खून टपकता रहे लेकिन मलक्रिया के दौरान उसमे खून न आए इस तरह के लक्षणों में रोगी को कोबाल्ट औषधि का सेवन कराने से बहुत लाभ होता है।

पुरुषों से सम्बंधित लक्षण - दांएं अण्डकोश में दर्द होना, लिंग में से वीर्य निकलते रहना, नपुसंकता, कमर में दर्द होना, टांगों का कमजोर पड़ना, पेशाब की नली के पीछे के हिस्से में दर्द होना, जनेन्द्रियों और पेट पर भूरे रंग के निशान पड़ना आदि पुरुष रोग के लक्षणों में रोगी को कोबाल्ट औषधि का नियमित रूप से सेवन कराने से लाभ होता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण - रात को नींद न आना, शरीर का बिल्कुल ढीला पड़ जाना, गंदे-गंदे सपने आना आदि ल़क्षणों में कोबाल्ट औषधि का सेवन बहुत लाभकारी साबित होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण - हाथ की कलाई में हल्का दर्द उठना, जिगर की तरफ से जांघों में बहुत तेज दर्द होना, घुटने कमजोर पड़ जाना, अंगों का कांपना, पैरों में पसीना आना आदि लक्षणों में रोगी को कोबाल्ट औषधि देने से बहुत लाभ होता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण - त्वचा एकदम रूखी सी होना, नितंब, ठोड़ी और सिर पर छोटी-छोटी नुकीली फुंसियों जैसे चर्म रोगों के लक्षणों में रोगी को कोबाल्ट औषधि का सेवन बहुत लाभ करता है।

तुलना-

कोबाल्ट की तुलना कैना इण्डिका, सीपिया, जिंकम, ऐंग्नस, सेलीनियम आदि से की जाती है।

मात्रा-

कोबाल्ट औषधि की छठी से तीसवीं शक्ति तक रोगी को देने से लाभ होता है।


कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस Collinsonia Canadensis

 कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस Collinsonia Canadensis

परिचय-

कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि दिल के रोगों और बवासीर के रोगों को दूर करने में बहुत ही उपयोगी मानी जाती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर में हल्का-हल्का सा दर्द होना जो अक्सर खूनी बवासीर रोग के दब जाने के कारण होता है, बहुत समय पुराना नजला, जीभ पर पीले रंग की परत सी जम जाना, मुंह का स्वाद बहुत ज्यादा खराब हो जाना आदि सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि देने से लाभ मिलता है।

मलान्त्र से सम्बंधित लक्षण - मलान्त्र रोग के लक्षणो में रोगी को ऐसा लगता है जैसे उसके मलान्त्र में बड़ी नुकीली चीजें भरी पड़ी हो, मलान्त्र का सिकुड़ा हुआ सा महसूस होना, मलान्त्र में खून का बहुत ज्यादा जमा हो जाना, मल का सख्त रूप में आना, मुश्किल कब्ज के साथ-साथ खूनी बवासीर जो मलद्वार से बाहर फैल जाती है, मलद्वार और अवजठर, में हल्का-हल्का सा दर्द होना, स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान कब्ज होना, मासिक धर्म का कष्ट के साथ आना, पेट में बहुत ज्यादा हवा का भर जाना, कभी कब्ज और कभी दस्त हो जाना, मलद्वार में खुजली होना आदि लक्षणों के आधार पर कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि का प्रयोग करना अच्छा रहता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - मासिक धर्म का कष्ट के साथ, योनि में खुजली सी होना, गुप्तांगों में सूजन आना और उसका लाल होना, बैठने पर गुप्तांगों में परेशानी होना, झिल्लीदार कष्टार्तव के साथ-साथ कब्ज का रोग होना, योनि में खुजली होना, मासिकधर्म के दौरान स्राव आने के बाद जांघों में ठण्डक महसूस होना, योनि पर सूजन आना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि देने से आराम आता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण - ज्यादा तेज बोलने से या तेज आवाज में गाना गाने से खांसी उठना, आवाज की नली में बहुत तेज दर्द होना, गले में खराश सी होना, सूखी खांसी जो बहुंत परेशान कर देती है आदि लक्षणों के किसी भी व्यक्ति में नज़र आने पर रोगी को कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

दिल से सम्बंधित लक्षण - दिल की धड़कन का बहुत तेज होना, दिल में पानी भरना, दिल के रोग के लक्षणों के समाप्त होते ही बवासीर का रोग हो जाना या मासिकस्राव आना, दम सा घुटता हुआ महसूस होना, सांस लेने में परेशानी होना, बेहोशी छाना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि खिलाने से लाभ मिलता है।

प्रतिविष-

नक्स वोमिका औषधि का उपयोग कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

तुलना-

कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि की तुलना एस्कुलस, एलोज, हैमामे, लाइकोपस, नेगुण्डो, सल्फ, नक्स आदि से की जा सकती है।

वृद्धि-

भावुकता के कारण, मानसिक उत्तेजना बढ़ने से, ठण्ड से, आधी रात को, गर्भावस्था के दौरान रोग तेज हो जाता है।

शमन-

गर्मी से रोग कम हो जाता है।

मात्रा- कोलिन्सोनिया कैनाडेन्सिस औषधि का मूलार्क से तीसरी शक्ति तक। 


कोकेना Cocaina

 कोकेना Cocaina

परिचय-

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर कोकेना औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण- हर समय दिमाग में कुछ न कुछ सोचते रहना, आंखों के सामने अजीब-अजीब सी चीजों का नज़र आने का वहम होना, हर किसी को गुस्से से घूरते हुए रहना, नींद न आना, अकेले बैठे रहने का मन करना आदि मानसिक रोगों के लक्षणों में रोगी को कोकेना औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण- सिर में ऐसा महसूस होना जैसे कि सिर में बहुत तेज जलन हो रही है या सिर फट रहा हो, आंखों की पुतलियों का फैल जाना, सिर में अजीब-अजीब सी चीजें रखी हुई महसूस होना आदि लक्षणों में कोकेना औषधि का सेवन अच्छा रहता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों से कम दिखाई देना, तनाव का बढ़ जाना, अनिमेष आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को कोकेना औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

कंठ (गला) से सम्बंधित लक्षण - गले का सूखा हुआ महसूस होना, गले में जलन होना, दम सा घुटना, बोलने में परेशानी होना आदि लक्षणों में कोकेना औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - आमाशय का सख्त सा होना, भूख न लगना, मन में मीठा खाने की इच्छा होना, आंतों और आमाशय से खून का आना आदि लक्षणों में कोकेना औषधि का प्रयोग करना लाभकारी रहता है।

स्नायु प्रणाली से सम्बंधित लक्षण - पेशियों में खिंचाव आना, शराब का सेवन ज्यादा करने से शरीर में झटके लगना, बुढ़ापे में शरीर का कांपना, कंपकंपी के साथ शरीर के किसी अंग में लकवा मारना, हाथ और बाजुओं का सुन्न होना आदि लक्षणों में कोकेना औषधि नियमित रूप से लेने से लाभ होता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण - लेटने के कई घंटों के बाद भी नींद न आना, हर समय बैचेनी सी महसूस होना, आदि लक्षणों के आधार पर कोकेना औषधि का सेवन अच्छा रहता है।

ज्वर (बुखार) से सम्बंधित लक्षण - शरीर का बिल्कुल ठण्डा हो जाना, त्वचा का रंग बहुत ज्यादा पीला हो जाना आदि लक्षण नज़र आने पर रोगी को कोकेना औषधि देने से लाभ मिलता है।

तुलना-

कोकेना औषधि की तुलना स्टोवेन से की जा सकती है।

मात्रा-

निम्न शक्तियां।

जानकारी-

कोकेना औषधि त्वचा या मसूढ़ों के किसी तरह के रोग होने पर दिए जाने वाले हानिकारक परिणामों को दूर करती है।


कोलोसिन्थिस COLOCYNTHIS

 कोलोसिन्थिस COLOCYNTHIS

परिचय-

कोलोसिन्थिस औषधि मोटे लोगों के लिए काफी लाभकारी सिद्ध होती है। इसके अलावा जो व्यक्ति बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा होता है, जिन स्त्रियों का मासिकस्राव बहुत ज्यादा मात्रा में आता है उनके लिए भी ये औषधि लाभकारी होती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर कोलोसिन्थिस औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण - व्यक्ति का बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा हो जाना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाना, दूसरों से नफरत करना आदि लक्षणों में रोगी को कोलोसिन्थिस औषधि देने से लाभ होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर को बाईं तरफ घुमाने पर चक्कर आना, सिर के दोनों तरफ दर्द के साथ उल्टी और जी मिचलाना, माथे में दर्द जो झुकने से, पीठ के बल सोने से या पलकें घुमाने से तेज हो जाता है। इन सिर के रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को कोलोसिन्थिस औषधि का सेवन कराने से आराम आता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण - आंखों में इस तरह का दर्द होना जैसे आंखों में कुछ चुभ रहा हो, जो दबाव देने से कम हो जाता है, आंखों के गठिया के रोग के कारण होने वाली परेशानी, अधिमंथ विकसित होने से पहले आंखों के गोलों में बहुत तेज दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को कोलोसिन्थिस औषधि खिलाने से लाभ मिलता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण - चेहरे के बाईं तरफ सूजन और दर्द होना, स्नायु में दर्दके साथ ठण्ड सी महसूस होना, दांतों का लंबा महसूस होना, आमाशय का दर्द जो हमेशा दांत में या सिर में दर्दके साथ आता है आदि लक्षणों में कोलोसिन्थिस औषधि का प्रयोग करने से आराम आता है। 

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - मुंह का स्वादबहुत ज्यादा कड़वा होना, जीभ का खुरदरा होना, भूख का ज्यादा लगना, आमाशय में कोई बहुत सख्त चीज पड़ी हुई मालूम होना आदि आमाशय रोग के लक्षणों में रोगी को कोलोसिन्थिस औषधि देने से लाभ होता है।

उदर (पेट) से सम्बंधित लक्षण - पेट में बहुत तेज दर्दहोना, जिसकी वजह से रोगी को पेट हाथों से पेट को दबाना पड़ता है, पेट में दर्द के साथ पिण्डलियों में ऐंठन आना, नाभि के नीचे के भाग में दर्द होना, कुछ भी खाने पर दस्त हो जाना, मल के साथ बदबू का आना आदि पेट के रोगोंके लक्षणों में रोगी को कोलोसिन्थिस औषधि का प्रयोग कराने से आराम मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - स्त्री के डिम्बाशय के अंदर किसी चीज के चुभा देने जैसा बहुत तेज दर्द महसूस होना, डिम्बग्रन्थियों में छोटी-छोटी गोल-गोल गांठें होना, नीचे की ओर दबाव के साथ ऐंठन आना आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में रोगी स्त्री को कोलोसिन्थिस औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण - पेशाब का बार-बार आना, बदबू के साथ आना, लिंग के छेद में खुजली होना, लिंग में ऐंठन आना, पेशाब करने के दौरान पूरे पेट में दर्द होना, मलत्याग के समय पेशाब करने की नली में जलन होना, पेशाब के साथ सफेद रंग का स्राव आना आदि मूत्ररोगों के लक्षणों में रोगी को कोलोसिन्थिस औषधि देने से लाभ होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण - शरीर में सारे अंगों में एकसाथ खिंचाव पैदा हो जाना, दायें कंधे की त्रिकोणिका पेशी में दर्द होना, नितंब में ऐंठन के साथ दर्द होना, नितंबों से घुटनों तक दर्द होना, नितंबों के जोड़ अपनी जगह से हट जाना, जांघ की दाईं ओर नीचे की तरफ दर्द होना, पुट्ठे और कण्डुराओं का सिकुड़ जाना, सुन्नपन और उसके साथ दर्द होना, बाएं घुटनें के जोड़ में दर्द होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को कोलोसिन्थिस औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

वृद्धि-

शाम को, गुस्सा करने से, भोजन करने के बाद, आराम करते समय, हरकत करने से, रोग बढ़ जाता है।

शमन -

मुड़कर, दोहरा हो जाने से, जोर से दबाने से, कॉफी पीने से, गर्म प्रयोगों से, हवा भरने में, पेट के बल लेटने से रोग कम हो जाता है।

प्रतिविष -

काफि, स्टैफिसै (रायल), कमो, औषधियों का उपयोग कोलोसिन्थ औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

तुलना -

लोबोलिया , डिपोडियम पैकटेटम, डायोस्कोरिया, कमोमि, काक्कूलस, मर्क्यू, प्लम्बम, मैग्नी-फा से कोलोसिन्थिस की तुलना की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को उसके लक्षणों के आधार पर कोलोसिन्थिस औषधि की छठी से तीसवीं शक्ति तक देने से आराम आता है।


कोनियम Conium

 कोनियम Conium

परिचय-

कोनियम पुराने जमाने की एक बहुत ही प्रसिद्ध औषधि है, जिसकी एक दार्शनिक ने बहुत ही खूबसूरत व्याख्या की है। टांगों का कांपना, चलने-फिरने में परेशानी होना, कुछ दूर चलते ही शरीर का जवाब दे देना, कमजोरी, खून की कमी आदि लक्षण जो ज्यादा बुढ़ापे के लक्षण होते हैं इस समय कोनियम औषधि बहुत ही असरदार काम करती है। इसके अलावा मूत्ररोग, याददाश्त का कमजोर हो जाना, जनेन्द्रियों का कमजोर पड़ जाना, मासिकधर्म बंद होने की अवधि में बहुत परेशानी होना, स्त्री और पुरुषों को शादी से पहले होने वाली परेशानियां, सुबह-सुबह बिस्तर छोड़ने का मन न करना, शरीर का टूटा-टूटा सा लगना, नींद न आना आदि लक्षणों में भी ये औषधि अच्छा काम करती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर कोनियम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण - किसी भी चीज को रखकर कुछ ही समय में भूल जाना की कहां रखी है, किसी काम में मन न लगना, किसी से बात करने का मन न करना, दिमाग पर जरा सा जोर पड़ते ही सिरदर्द होना आदि लक्षणों में कोनियम औषधि बहुत अच्छा लाभ करती है और याददाश्त को भी तेज करती है।

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर का अचानक ऐसा लगना कि वह घूम रहा हो, जरा सा भी शोर होते ही सिर में दर्द होना, चक्कर के साथ एकदम बेहोश हो जाना, उल्टी आना, धूप में निकलते ही सिर का ऐसा लगना कि वह जल रहा हो, सिर पर कोई भारी सा वजन रखा हुआ महसूस होना आदि सिर के रोगों के लक्षण नज़र आने पर कोनियम औषधि के सेवन से लाभ होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण - आंखों की पलकों पर छोटी-छोटी सी फुंसियां निकलना, आंखों की रोशनी का कम होना, आंखों से आंसुओं का बहना, आंख की पेशियों में लकवा मार जाना, मोतियाबिंद हो जाना आदि आंखों के रोगों के लक्षणों में नियमित रूप से कोनियम औषधि का सेवन करने से बहुत लाभ होता है।

कान से सम्बंधित लक्षण - कानों से सुनाई न देना, कानों में से खून जैसा स्राव होना आदि कान के रोगों के लक्षणों में कोनियम औषधि का सेवन करने से कान के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।

नाक से सम्बंधित लक्षण - अचानक नाक से नकसीर (नाक से खून आना) आ जाना, नाक में दर्द होना आदि नाक के रोग के लक्षणों में कोनियम औषधि बहुत लाभ करती है।

उदर (पेट) से सम्बंधित लक्षण - जिगर में और उसके आसपास के हिस्से में बहुत तेज दर्द होना, पुराना पीलिया रोग, दाएं अवजठर में दर्द होना, सूजन आना, किसी चीज के पेट में घुसा देने जैसा दर्दनाक दर्द होना आदि पेट के रोगों के लक्षणों में कोनियम औषधि का नियमित सेवन बहुत अच्छा असर करता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - जीभ की जड़ में दर्द होना, दर्द के साथ उल्टी आना, कलेजे में जलन होना, लगातार डकारें आना, रात को सोते समय पेट में जलन होना, आमाशय में अम्लपित्त और कलेजे में जलन आदि आमाशय के रोगों के लक्षण प्रकट होने पर कोमानिया औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

मल से सम्बंधित लक्षण - हर थोड़ी-थोड़ी देर बाद मलत्याग के लिए जाने की इच्छा होना, मलत्याग के समय मलातन्त्र में जलन और परेशानी होना, मलत्याग के बाद हर बार शरीर के कांपने के साथ कमजोरी आना आदि लक्षणों के नज़र आने पर तुरन्त ही कोनियम औषधि देने से लाभ होता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण - पेशाब करते समय परेशानी होना, पेशाब का रुक-रुककर आना, पेशाब का अपने आप ही बूंदों के रूप में हर समय टपकते रहना आदि मूत्ररोग के लक्षणों में कोनियम औषधि का नियमित रूप से सेवन करने से लाभ होता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण - पुरुष के अंदर संभोग की इच्छा तेज होने पर भी संभोग क्रिया में सफल न हो पाना, लिंग का कमजोर पड़ जाना, अण्डकोश का सख्त और बढ़ जाना आदि पुरुष रोगों के लक्षणों मे कोनियम औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - मासिकधर्म का दर्द के साथ आना, स्तनों का ढीला पड़ना और सिकुड़ना, स्तनों के निप्पलों में सुई चुभने जैसा दर्द होना, उत्तेजना का बढ़ना, मासिकस्राव समय के बाद में आना और कम मात्रा में आना, योनि के बाहर के हिस्से में खुजली हो जाना, गर्भ का अपने आप ठहर जाना, पेशाब करने के बाद सफेद पानी आना आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में स्त्री को नियमित रूप से कोनियम औषधि का सेवन कराने से कुछ समय में उसके सारे रोग दूर हो जाते हैं।

खांसी से सम्बंधित लक्षण - रात को सोते समय बहुत तेज-तेज सूखी खांसी होना, गले में एक जगह पर खराश बढ़ने पर अचानक खांसी हो जाना आदि खांसी के लक्षणों में कोनियम एक बहुत ही लाभकारी औषधि साबित होती है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण- दोनों कंधों के बीच पीठ में दर्द होना, रीढ़ की हड्डी में दर्द होना, कमर और कमर के नीचे के हिस्से में दर्द होना आदि लक्षणों के नज़र आने पर रोगी को तुरन्त ही कोनियम औषधि का सेवन कराने से पीठ का हर तरह का दर्द कुछ ही समय में चला जाता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण - हाथ-पैरों की उंगलियों का सुन्न हो जाना, शरीर का कांपना, जनेन्द्रियों का कमजोर पड़ जाना, हाथों में पसीना आना आदि लक्षणों के प्रकट होते ही रोगी को कोनियम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण - अचानक बहुत तेज सूखी खांसी उठना, खांसते समय गले में दर्द होना, रात को सोते समय बहुत तेज खांसी का चलना, सांस अटक-अटककर आना, छाती में दर्द होना, थोड़ा सा चलते ही सांस तेजी से चलने लगना आदि लक्षणों में कोनियम औषधि रोगी को देने से कुछ ही समय में लाभ हो जाता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण - बगल की ग्रंथियों में दर्द के साथ पूरे बाजू का सुन्न हो जाना, त्वचा और नाखूनों का पीला पड़ जाना, ग्रंथियों में सुई के चुभने जैसा दर्द होना, रात को सोते समय पसीना ज्यादा आना आदि चर्मरोगों के लक्षणों में कोनियम औषधि बहुत ही लाभकारी साबित होती है।

वृद्धि-

सोने से, सोते समय करवट बदलने से, ब्रह्मचर्य का पालन करने से, मासिकधर्म आने के दिनों या उससे पहले, ठण्ड लग जाने से, शारीरिक या मानसिक परिश्रम करने से रोग बढ़ जाता है।

शमन- 

भूखा रहने पर, अंधेरे में, अंगों को नीचे की ओर लटकाने से, हिलने-डुलने से, दबाव देने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

कोनियम औषधि की तुलना किसी तरह की चोट लगने पर आर्निका और रस-टाक्स के साथ, कैंसर के रोग मे आर्स के तथा ऐस्टेर के साथ और गिल्टियों में सूजन आने पर कैल्क और सोरि के साथ की जाती है।

मात्रा-

रोगी को कोनियम औषधि की छठी से तीसवीं शक्ति तक देने से लाभ मिलता है।

जानकारी-

ग्रंथियों के बढ़ जाने की हालत में और आंशिक लकवा मार जाने की हालत में रोगी को कोनियम औषधि ज्यादा मात्रा में भी दे सकते हैं।


काण्डियुरैंगो Condurango

 काण्डियुरैंगो Condurango

परिचय-

काण्डियुरैंगो औषधि का सेवन करने से भोजन पचाने की क्रिया तेज होती है तथा आमाशय की जिन ग्रंथियों से पाचक रस निकलकर मांस, दाल इत्यादि प्रोटिड-खाद्यों को पचाता है उन सभी ग्लैण्डों पर इस औषधि का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। ये औषधि आमाशय के कैंसर के कारण पैदा हुए पेट के दर्द को भी समाप्त करती है। रीढ़ की हड्डी में टी.बी. होने के कारण व्यक्ति के चलने-फिरने की समाप्त हुई शक्ति को भी ये औषधि दुबारा लौटा देती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर काण्डियुरैंगो औषधि का उपयोग-

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - आमाशय की श्लैष्मिका झिल्ली में पुरानी जलन होना, आमाशय के अंदर जख्म के कारण जलन और दर्द होना, भोजन की नली के सिकुड़ जाने के कारण दर्द होना, भोजन करते ही उल्टी हो जाना आदि आमाशय के रोगों के लक्षणों में काण्डियुरैंगो औषधि का सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण - मलद्वार की त्वचा का फट जाना, मलद्वार या होठों का कैंसर आदि लक्षणों में काण्डियुरैंगो औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

तुलना-

काण्डियुरैंगो औषधि की तुलना आस्टेरियस, कोनियम, हाइड्रे, आर्से आदि से की जाती है।

मात्रा-

काण्डियुरैंगो की मूलार्क या छाल, भोजन करने से पहले 0.32 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ, अर्बुदों में तीसवीं शक्ति।


कोमोक्लैडिया डेंटाटा Comocladia Dentata

 कोमोक्लैडिया डेंटाटा Comocladia Dentata

परिचय-

कोमोक्लैडिया डेंटाटा औषधि आंखों और त्वचा के रोगों में लाभदायक रहती है। इसके अलावा कमर के नीचे के हिस्से में, पेट में, जोड़ों और घुटनों में दर्द होना आदि लक्षणों में बहुत लाभकारी रहती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों में कोमोक्लैडिया डेंटाटा औषधि का उपयोग-

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों की रोशनी का कमजोर हो जाना, दांई तरफ की आंख से सिर्फ हल्की सी रोशनी ही दिखाई पड़ना, आंखों की पलकों का स्नायुशूल होने के साथ ऐसा महसूस होना जैसे कि आंखें काफी बड़ी हो गई हैं और बाहर निकल रही हैं ये परेशानी आग के पास बैठने से ज्यादा बढ़ जाती है। इस प्रकार के लक्षणों में कोमोक्लैडिया डेंटाटा औषधि का प्रयोग लाभदायक रहता है।

वक्ष (छाती) से सम्बंधित लक्षण - स्त्री के बाएं तरफ के स्तन की गांठ का फूल जाना और उसमें दर्द होना, खांसी के समय छाती में बाईं ओर दर्द होना और वह दर्द कंधे के जोड़ तक पहुंच जाना आदि लक्षणों में रोगी को कोमोक्लैडिया डेंटाटा औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण - त्वचा पर खुजली के साथ लाल रंग की छोटी-छोटी फुंसियां निकलना, पूरी त्वचा का लाल हो जाना, कोढ़ होना, त्वचा पर लाल लकीरे सी पड़ जाना, छालों या फुंसियों जैसा छाजन होना आदि चर्मरोगों के लक्षणों में रोगी को कोमोक्लैडिया डेंटाटा औषधि देने से लाभ मिलता है।

वृद्धि-

छूने से, गर्मी से, आराम करते समय, रात को रोग बढ़ जाता है।

शमन -

खुली हवा में, खुजली करने से, घूमने-फिरने से रोग कम होता है।

तुलना-

कोमोक्लैडिया डेंटाटा औषधि की तुलना ऐनाकार्डि, यूफोर्बिय, रस से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर कोमोक्लैडिया डेंटाटा औषधि की पहली से 30 शक्ति तक देने से लाभ मिलता है।


कन्वैल्लैरिया मैजालिस Convallaria Majalis

 कन्वैल्लैरिया मैजालिस Convallaria Majalis 

परिचय-

कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि दिल के रोगों में बहुत ही लाभकारी होती है। ये औषधि दिल को सही तरह से काम करने के लायक बनाती है। दिल के रोगों के लक्षणों जैसे दिल का कमजोर पड़ जाना, दिल में खून सही मात्रा में न पहुंच पाना, सांस लेने में परेशानी होना, दिल में पानी भरना, स्नायुतंत्र का कमजोर हो जाना आदि लक्षणों में ये औषधि लाभकारी होती है। 

विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर कन्वैल्लैरिया मैजालिस का उपयोग-

दिल से सम्बंधित लक्षण - दिल के रोग के लक्षण जैसे- दिल में जलन होना, सांस लेने में परेशानी होना, दिल का बहुत तेज धड़कना, थोड़ा सा भारी काम करते ही दिल का कांपने लगना, नशे के कारण होने वाले दिल के रोग में रोगी को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

ज्वर (बुखार) से सम्बंधित लक्षण - कमर और रीढ़ की हड्डी में ठण्ड लगने के साथ आने वाला बुखार, ठण्ड के समय बार-बार प्यास लगना और दर्द होना, बुखार के दौरान सांस लेने में परेशानी होना आदि बुखार के लक्षणों में रोगी को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि का सेवन कराने से आराम आता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- कमर के नीचे के हिस्से में दर्द होना, टांग और पैर के अंगूठें में दर्द होना, हाथों का कांपना, घुटनों और कलाईयों में दर्द होते रहना आदि लक्षणों में रोगी को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि देने से कुछ ही समय में रोगी को आराम आ जाता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण- रोगी को पेशाब कम मात्रा में आना लेकिन बार-बार आना, पेशाब करने की जगह पर हल्का-हल्का सा दर्द होना, ऐसा महसूस होना जैसे कि मूत्राशय फूल गया हो, पेशाब में बदबू आना, शरीर पर सूजन आ जाना आदि मूत्ररोगों के लक्षणों में रोगी को नियमित रूप सें कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि देने से लाभ होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - स्त्री की योनि और पेशाब करने की नली में जलन या खुजली सी होना, गर्भाशय में दर्द होना, कमर के नीचे के हिस्सों के जोड़ों में दर्द होना, जो टांगों में भी पहुंच जाता है आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में स्त्री को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि सेवन कराने से लाभ होता है।

तुलना-

कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि की तुलना डिजिटेलिस, क्रैटिगस और लिलियम से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि की तीसरी शक्ति देने से लाभ होता है।

जानकारी-

दिल की धड़कन बंद होने के लक्षणों में मूलार्क की 1 से 15 बूंदों की मात्रा रोगी को देने से लाभ होता है।


कन्वैल्लैरिया मैजालिस Convallaria Majalis

 कन्वैल्लैरिया मैजालिस Convallaria Majalis 

परिचय-

कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि दिल के रोगों में बहुत ही लाभकारी होती है। ये औषधि दिल को सही तरह से काम करने के लायक बनाती है। दिल के रोगों के लक्षणों जैसे दिल का कमजोर पड़ जाना, दिल में खून सही मात्रा में न पहुंच पाना, सांस लेने में परेशानी होना, दिल में पानी भरना, स्नायुतंत्र का कमजोर हो जाना आदि लक्षणों में ये औषधि लाभकारी होती है। 

विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर कन्वैल्लैरिया मैजालिस का उपयोग-

दिल से सम्बंधित लक्षण - दिल के रोग के लक्षण जैसे- दिल में जलन होना, सांस लेने में परेशानी होना, दिल का बहुत तेज धड़कना, थोड़ा सा भारी काम करते ही दिल का कांपने लगना, नशे के कारण होने वाले दिल के रोग में रोगी को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

ज्वर (बुखार) से सम्बंधित लक्षण - कमर और रीढ़ की हड्डी में ठण्ड लगने के साथ आने वाला बुखार, ठण्ड के समय बार-बार प्यास लगना और दर्द होना, बुखार के दौरान सांस लेने में परेशानी होना आदि बुखार के लक्षणों में रोगी को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि का सेवन कराने से आराम आता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- कमर के नीचे के हिस्से में दर्द होना, टांग और पैर के अंगूठें में दर्द होना, हाथों का कांपना, घुटनों और कलाईयों में दर्द होते रहना आदि लक्षणों में रोगी को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि देने से कुछ ही समय में रोगी को आराम आ जाता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण- रोगी को पेशाब कम मात्रा में आना लेकिन बार-बार आना, पेशाब करने की जगह पर हल्का-हल्का सा दर्द होना, ऐसा महसूस होना जैसे कि मूत्राशय फूल गया हो, पेशाब में बदबू आना, शरीर पर सूजन आ जाना आदि मूत्ररोगों के लक्षणों में रोगी को नियमित रूप सें कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि देने से लाभ होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - स्त्री की योनि और पेशाब करने की नली में जलन या खुजली सी होना, गर्भाशय में दर्द होना, कमर के नीचे के हिस्सों के जोड़ों में दर्द होना, जो टांगों में भी पहुंच जाता है आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में स्त्री को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि सेवन कराने से लाभ होता है।

तुलना-

कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि की तुलना डिजिटेलिस, क्रैटिगस और लिलियम से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को कन्वैल्लैरिया मैजालिस औषधि की तीसरी शक्ति देने से लाभ होता है।

जानकारी-

दिल की धड़कन बंद होने के लक्षणों में मूलार्क की 1 से 15 बूंदों की मात्रा रोगी को देने से लाभ होता है।


क्रोमिकम एसिडम CHROMICUM ACIDUM

 क्रोमिकम एसिडम CHROMICUM ACIDUM

परिचय-

डिफ्थीरिया, नाक के पीछे के हिस्से में रसौली और जीभ के ऊपर कलाबुर्द (एपीथेलियोमा) आदि के लक्षणों में क्रोमिकम एसिडम बहुत ज्यादा लाभकारी साबित होती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर क्रोमिकम एसिडम औषधि का इस्तेमाल-

नाक से सम्बंधित लक्षण - नाक के अंदर जख्म होना, बदबू वाला स्राव आना आदि नाक के रोगों के लक्षणों में रोगी को क्रोमिकम एसिडम औषधि देने से लाभ होता है।

कंठ (गला) से सम्बंधित लक्षण - डिफ्थीरिया, गले में जलन होना, बलगम आना आदि गले के रोगों में रोगी को क्रोमिकम एसिडम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

शरीर से सम्बंधित बाहरी लक्षण - शरीर के सारे अंगों में बैचेनी होना, स्कंध-फलकों और गर्दन में दर्द, पैरों और घुटनों में दर्द होना आदि लक्षणों में क्रोमिकम एसिडम औषधि का सेवन करने से आराम आता है।

मल से सम्बंधित लक्षण - रोगी को बार-बार पतले दस्त होना, दस्तों के साथ जी का मिचलाना और चक्कर आना, बवासीर, कमर के नीचे के हिस्से में कमजोरी आना आदि लक्षणों में रोगी को अगर नियमित रूप से क्रोमिकम एसिडम औषधि सेवन कराई जाए तो उसके लिए लाभकारी होता है।

तुलना-

क्रोमिकम एसिडम औषधि की तुलना कालीबाई, रस, क्रोमियम सल्फेट आदि से की जाती है।

मात्रा-

रोगी को क्रोमिकम एसिडम औषधि की तीसरी से छठी शक्ति तक देने से उसका रोग ठीक हो जाता है।


कोपेवा Copaiva

 कोपेवा Copaiva

परिचय-

कोपेवा औषधि की साधारणत: पेशाब करने का यंत्र, पेशाब करने की नली, सांस लेने के यंत्र की श्लैष्मिक झिल्ली के यंत्र की श्लैष्मिक झिल्ली के ऊपर खास क्रिया होती है। पेशाब करने के यंत्र और पेशाब करने की नली में इसकी क्रिया होने के कारण ही रोगी के शरीर में सूजाक रोग की जलन के लक्षण पैदा हो जाते हैं, इसीलिए प्रमेह रोग की शुरुआती अवस्था में जब पेशाब करते समय जलन हो, बार-बार पेशाब आए, पेशाब बूंद-बूंद करके दर्द के साथ आए, पेशाब के साथ सफेद रंग का पतला मवाद के आने जैसे लक्षण नज़र आए तब ये जलन धीरे-धीरे पेशाब करने की नली तक जाकर पेशाब के साथ गोंद के जैसा लेसदार श्लैष्मा और खून निकलता है और पेशाब गंदा नज़र आता है, इस समय भी अगर कोपेवा औषधि का प्रयोग नियमित रूप से किया जाए तो लाभकारी होता है। 

विभिन्न रोगों के लक्षणों में कोपेवा औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर में दर्द होना, माथे के ऊपर हल्का-हल्का सा दर्द जो के सिर के पीछे के हिस्से में फैलकर फिर दुबारा माथे पर आ जाता है इसके साथ ही सिर में जलन भी हो जाती है, ज्यादा तेज आवाज होते ही रोगी के सिर में दर्द शुरू हो जाता है आदि सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को कोपेवा औषधि देने से लाभ होता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण - नाक से बहुत ज्यादा गाढ़ा, बदबूदार बलगम सा निकलना जो रात को सोते समय गले के अंदर तक चला जाता है, नाक में जलन और खुश्की, नाक की हडि्डयों पर पपड़ी सी जम जाना आदि लक्षणों में कोपेवा औषधि का सेवन लाभदायक रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - भोजन करते समय भोजन का स्वाद ऐसा लगना जैसे कि उसमें बहुत ज्यादा नमक भरा हो, मासिकधर्म के दौरान या शीतपित्त निकलने के बाद पेट में बहुत से रोग होना, आंतों में हवा भर जाना, बार-बार मलत्याग के लिए जाना, मलक्रिया के समय बहुत ज्यादा परेशानी होना और दर्द होना आदि आमाशय रोगों के लक्षणों मे रोगी को कोपेवा औषधि देने से आराम मिलता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण - पेशाब का जलन के साथ और जोर लगाकर आना, पेशाब एक बार में न आकर बूंद-बूंद के रूप में आना, पेशाब रुक जाने के कारण मसाने में, मलान्त्र में और मलद्वार में दर्द होना, पेशाब करने की नली के मुंह पर सूजन आ जाना, पेशाब का रंग हरा गंदा सा होना आदि लक्षणों के आधार पर अगर नियमित रूप से कोपेवा औषधि का प्रयोग किया जाए तो मूत्ररोगी कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।

मलान्त्र से सम्बंधित लक्षण - मल के साथ आंव का आना, पेट में दर्द होना, मलद्वार में बवासीर का रोग होने के कारण खुजली और जलन होना आदि लक्षणों में कोपेवा औषधि रोगी को खिलाने से लाभ होता है।

पुरुष से सम्बंधित लक्षण - रोगी के अंडकोषों में सूजन आना और उनका मुलायम होना आदि लक्षणों में रोगी को कोपेवा औषधि देने से लाभ मिलता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - स्त्री के योनि और मलद्वार में खुजली होने के साथ पीब के साथ खून आना, मासिकधर्म में स्राव ज्यादा और बदबू के साथ आना, इसके साथ ही चारों ओर भ्रमण करने वाला दर्द जो कूल्हों की हडि्डयों तक फैल जाता है, जी का मिचलाना आदि लक्षणों में रोगी को कोपेवा औषधि देने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण - रोगी को खांसी के साथ बहुत ज्यादा मात्रा में मिट्टी के रंग का पीब जैसा बलबम आना, सांस की नलियों का नजला होना जिसके साथ हरे रंग का बदबूदार स्राव निकलता रहता है, आवाज की नली, सांस की नलियों आदि में खराबी होना आदि सांस के रोगों के लक्षणों में रोगी को कोपेवा औषधि देने से लाभ होता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण - त्वचा पर गुलाबी से रंग के छोटे-छोटे दाने निकलना, त्वचा पर जलन होना खासकर पेट के आसपास की त्वचा में, शीतपित्त के साथ बुखार और कब्ज होना आदि चर्मरोगों के लक्षणों में रोगी को कोपेवा औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

तुलना -

सैंटालम, कैनाबिस, कैथ, बैरोस्मा, क्यूबेबा, एपिस, वेस्पा, इरिजरोन, सेनेशियों, सीपिया से कोपेवा की तुलना की जाती है।

प्रतिविष -

बेला, मर्क्यू।

मात्रा-

कोपेवा औषधि की पहली से तीसरी शक्ति तक रोगी को देने पर अगर रोगी को लाभ न पहुंचे तो इस शक्ति को बढ़ाकर पहली से छठी शक्ति तक भी कर सकते हैं। 


साइमेक्स लेक्टुलैरिअस Cimex Lectularius

 साइमेक्स लेक्टुलैरिअस Cimex Lectularius

परिचय-

किसी व्यक्ति को बुखार या पारी से आने वाले बुखार जिसमें रोगी को पूरे दिन थकान सी रहती है, हर समय नींद सी आती रहती है, रोगी को पैर पूरे फैलाने में परेशानी होती है और उसे पैरों को मोड़कर ही सोना पड़ता है जैसे लक्षणों के आधार पर साइमेक्स लेक्टुलैरिअस औषधि बहुत अच्छी मानी जाती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर साइमेक्स लेक्टुलैरिअस औषधि का उपयोग-

बुखार से सम्बंधित लक्षण - किसी व्यक्ति को अचानक पूरे शरीर में ठण्ड के साथ कंपकपी आना, बुखार के बढ़ने के साथ प्यास का कम होना, गले में इस तरह का दर्द होना जैसे कि किसी ने गला दबा रखा हो, पानी पीने से गले में दर्द होना आदि बुखार के लक्षणों में रोगी को साइमेक्स लेक्टुलैरिअस औषधि का नियमित रूप से सेवन कराना लाभकारी होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर में बहुत ज्यादा तेजी से होने वाला दर्द, ज्यादा गुस्सा आना, शीतावस्था की शुरुआत में उत्तेजना होना, माथे की दाईं हड्डी के नीचे दर्द होना आदि सिर के रोगों के लक्षणों में साइमेक्स लेक्टुलैरिअस औषधि बहुत अच्छा असर करती है।

कब्ज से सम्बंधित लक्षण -

गला सूखना जैसे कि बहुत समय से पानी न मिला हो, मलक्रिया करते समय परेशानी होना, मल का सख्त गुठलियों के रूप में आना, मलद्वार में जख्म होना, स्त्रियों की योनि में बाएं डिम्ब तक बहुत तेज दर्द होना आदि कब्ज रोग के लक्षणों में रोगी को साइमेक्स लेक्टुलैरिअस औषधि देने से लाभ होता है।

तुलना-

साइमेक्स लेक्टुलैरिअस औषधि की तुलना ऐमाने म्यूर, कास्टि, एपिस, युपेट पर्फो से की जा सकती है।

मात्रा-

3x शक्ति से 200 शक्ति तक।


सिक्यूटा विरोसा Cicuta Virosa

 सिक्यूटा विरोसा Cicuta Virosa

परिचय-

सिक्यूटा विरोसा शरीर में किसी भी प्रकार की ऐंठन को दूर करने के लिए बहुत ही लाभदायक औषधि मानी जाती है जैसे किसी व्यक्ति को मिर्गी, हिस्टीरिया, अजीर्णता, दांत निकलते समय रोग के कारण ऐंठन आने में लाभदायक होता है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर सिक्यूटा विरोसा का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण - रोगी अजीब-अजीब सी हरकते करता है जैसे कभी हंसता है, कभी रोता है, अपने आप ही नाचने, गाने लगता है, खुली आंखों से सपने देखने लगता है, हर किसी को देखकर डरने लगता है, छोटी-छोटी बातों पर सबसे लड़ने लगना आदि मानसिक रोगों के लक्षणों के नज़र आने पर रोगी को तुरन्त ही सिक्यूटा विरोसा औषधि का सेवन कराना चाहिए।

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर के रोग के लक्षण जैसे सिर का एक ही तरफ झुक जाना, गर्दन में बुरी तरह दर्द करने वाला बुखार, गर्दन की पेशियों में खिंचाव आना, चक्कर आने के साथ ही पेट में दर्द और पेशियों में ऐंठन आना, किसी चीज को लगातार घूरते ही रहना, दिमाग पर नज़र न आने वाली चोट लगने से रोगी को लकवा मार जाना आदि लक्षणों में रोगी को सिक्यूटा विरोसा औषधि खिलाने से आराम पड़ता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण - किसी भी अखबार या किताब को पढ़ते समय उसके अक्षर साफ-साफ नज़र न आना, आंखों की पुतलियों का फैल जाना, आंखों से एक ही चीज का 2-2 दिखाई देना, आंखों का पथरा जाना, सामने रखी हुई चीज का एकदम से नज़र न आना आदि लक्षण अगर किसी रोगी में हो तो उसे तुरन्त ही सिक्यूटा विरोसा औषधि देनी चाहिए।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण - चेहरे पर बहुत छोटे-छोटे लेकिन काफी सारी फुंसिया और दाने निकलना और कुछ दिनों के बाद उनके ऊपर मोटी, पीली सी पपड़ी जम जाना, चेहरा का बिल्कुल लाल होना, जबड़े का अटक जाना, हर समय दान्तों को चबाते रहना आदि लक्षणों के किसी भी व्यक्ति में नज़र आने पर उसे तुरन्त ही सिक्यूटा विरोसा औषधि देने से आराम पड़ता है।

कंठ (गला) से सम्बंधित लक्षण - गले का बिल्कुल सूख सा जाना, किसी भी खाने या पीने की चीज को निगलते समय परेशानी होना, आहारनली में हड्डी अटक जाने के कारण होने वाले रोगों के लक्षणों में रोगी को सिक्यूटा विरोसा औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - रोगी को बहुत तेज प्यास लगना, आमाशय में जलन होने के साथ दबाव पड़ना, बार-बार हिचकी आना, पेट में जलन होना, मन का ऐसा करना जैसे कि कोयले आदि चीजे खा लें, भूख कम लगने के साथ बेहोशी छाना और मुंह में झाग आना आदि लक्षणों में रोगी को सिक्यूटा विरोसा औषधि का प्रयोग कराने से लाभ मिलता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण - बैचेनी और चिड़चिड़ेपन के साथ अफारा होना, पेट में गड़गड़ाहट होना, पेट का फूलना और बहुत तेज दर्द होना, पेट में दर्द के साथ लकवा मार जाना आदि लक्षणों के किसी रोगी में नज़र आने पर उसे तुरन्त ही सिक्यूटा विरोसा औषधि का सेवन कराना चाहिए।

मलान्त्र से सम्बंधित लक्षण - सुबह के समय पतले से दस्त आना, बार-बार पेशाब आना, मलान्त्र में बहुत ज्यादा खुजली होना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को सिक्यूटा विरोसा औषधि का सेवन कराने से आराम मिलता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण - सांस लेने में परेशानी होना, छाती का कसा हुआ सा महसूस होना, दिल की पेशियों में ऐंठन आना, छाती में गर्मी सी महसूस होना आदि लक्षणों के आधार रोगी को सिक्यूटा विरोसा औषधि देने से लाभ मिलता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण - गर्दन की पेशियों में खिंचाव आना और ऐंठन सी महसूस होना, सिर में पीछे की ओर खिंचाव सा होना, पीठ का पीछे की ओर झुक जाना, शरीर के किसी भी अंग को मोड़ने में दर्द होना, मासिकधर्म के दौरान पुच्छास्थि (रीढ़ की हड्डी के नीचे का भाग) में बहुत तेज दर्द सा महसूस होना आदि लक्षणों में अगर रोगी को सिक्यूटा विरोसा औषधि नियमित रूप से सेवन कराई जाए तो काफी लाभकारी होती है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण - त्वचा पर पीले रंग की बहुत सारी फुंसियां निकलना, त्वचा के ऊपर बिना खुजली के होने वाली छाजन, जिसमे स्राव सूखकर सख्त सा हो जाता है और उसका रंग नींबू के छिलके जैसा पीला हो जाना आदि लक्षणों के आधार पर सिक्यूटा विरोसा औषधि का प्रयोग करना लाभदायक रहता है।

वृद्धि-

किसी के द्वारा छूने से, हवा लगने से, चोट लग जाने से, तंबाकू का सेवन करने से रोग बढ़ जाता है

शमन-

गर्मी से रोग कम हो जाता है।

प्रतिविष-

ओपियम, आर्निका।

तुलना -

सिक्यूटा विरोसा औषधि की तुलना सिक्यूटा मैक्यूलेटा, हाइड्रोस्यानिक एसिड, कोनियम, ईनैन्थिस, स्ट्रिकनिया, बेला से कर सकते हैं।

मात्रा -

सिक्यूटा विरोसा औषधि की 6 से लेकर 200 शक्ति तक रोगी को देने से लाभ होता है।


क्राइसैरोबिनम Chrysarobinum

 क्राइसैरोबिनम Chrysarobinum

परिचय-

त्वचा पर किसी तरह के दाग-धब्बे होना, पैरों के दाद, मुहांसों आदि चर्म रोगों में क्राइसैरोबिनम औषधि बहुत ज्यादा लाभकारी होती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर क्राइसैरोबिनम औषधि का उपयोग-

आंखों से सम्बंधित लक्षण - तेज रोशनी में आते ही आंखों का बंद हो जाना, पलकों में सूजन आना, आंखों से गीढ़ आना, नज़र कमजोर हो जाना आदि आंखों के रोगों के लक्षणों में रोगी को क्राइसैरोबिनम औषधि देने से तुरन्त लाभ होता है।

कान से सम्बंधित लक्षण - कान के पीछे के हिस्से में दर्द होना, कान के अंदर मैल जमा होना, कम सुनाई देना आदि कान के रोग के लक्षण पता चलते ही रोगी को क्राइसैरोबिनम औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

तुलना -

क्राइसैरोबिनम में क्राइसोफैन मिला हुआ होता है, जो बहुत तेजी से ऑक्सीजनीकृत होकर क्राइसोफैनिक एसिड में बदल जाता है। ये रुबार्ब और सेन्ना में भी पाया जाता है।

मात्रा-

क्राइसैरोबिनम औषधि रोगी को खिलाने के लिए तीसरी शक्ति से छठी शक्ति तक प्रयोग की जाती है।

जानकारी-

क्राइसैरोबिनम औषधि का प्रयोग बाहरी प्रयोग के लिए लगभग 0.26 से 0.52 ग्राम तक लगभग 28 मिलीलीटर वैसलीन में मिलाकर किया जाता है।

सावधानी-

क्राइसैरोबिनम औषधि का बाहरीय प्रयोग करते समय सावधानी बरतना जरूरी है क्योंकि ये त्वचा में जलन पैदा करती है।


सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा (एक्टिया रेसमोसा) Cimicifuga Racemosa, Actaea Racemosa

 सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा (एक्टिया रेसमोसा) Cimicifuga Racemosa, Actaea Racemosa

परिचय-

सिमिसिफ्यूगा औषधि स्त्री रोगों के लिए एक बहुत ही लाभकारी औषधि मानी जाती है। मासिकधर्म आने पर स्त्रियों को कई तरह की परेशानी होती है उनमे ये औषधि उनके दर्दों को कम करती है। इसके अलावा हिस्टीरिया रोग में, गैस के कारण हाथ-पैरों का सुन्न हो जाना आदि लक्षणों के नज़र आने पर भी ये औषधि बहुत लाभकारी साबित होती है। लेकिन सिर्फ शारीरिक लक्षणों के आधार पर ही सिमिसिफ्यूगा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि का उपयोग-

मन से सम्बंधित लक्षण- दिमाग में ऐसा लगना कि जैसे किसी ने बहुत ही भारी काम दे रखा हो सोचने वाला, गाड़ी में घूमने पर डर लगना, अपने आप से ही बाते करना, अजीब-अजीब सी चीजें दिखाई देना आदि मानसिक रोग के लक्षणों में रोगी को सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि का सेवन कराने से बहुत लाभ होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण- सिर में अजीब सा दर्द होना, अलग-अलग तरह के विचार आना, अजीब-अजीब सी आवाजें आना, जरा सा शोर होते ही सिर दर्द होना आदि लक्षण नज़र आते ही रोगी को तुरन्त सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि देने से आराम आता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों की रोशनी कम होने के साथ गोणिका रोग (पेल्वीक ट्रौबल्स), आंखों में जलन होना, आंख से लेकर सिर तक दर्द आदि लक्षणों में रोगी को सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि का सेवन कराने से तुरन्त ही आराम आ जाता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण - गले पर किसी तरह का जोर पड़ने के कारण जी ऐसा होना जैसे कि उल्टी होने वाली हो, किसी चीज ने काटा हो इस प्रकार का दर्द आदि आमाशय के रोगों के लक्षणों में सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - मासिकधर्म का समय पर न आना, डिम्ब प्रदेश में दर्द जो जांघों के आगे के हिस्से पर ऊपर-नीचे की ओर होता रहता है, मासिकधर्म आने से पहले दर्द होना, मासिकस्राव ज्यादा मात्रा में, गाढ़ा, बदबू के साथ आना, कमर में दर्द होना, स्तनों के नीचे दर्द होना आदि स्त्री रोगों के लक्षणों में सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि का सेवन करने से लाभ होता है।

जिन स्त्रियों के अंदर वात धातु के कारण हिस्टीरिया रोग होता है उन्हें कई प्रकार के मासिकधर्म के रोग भी घेर लेते हैं, ऐसी स्त्रियों का मासिकधर्म के दौरान स्राव या तो बहुत कम आता है या कभी बहुत ज्यादा मात्रा में आता है, कभी-कभी तो ये स्राव बिल्कुल ही नहीं आता है। कई मामलों मे स्त्रियों का मासिकधर्म आने से पहले बहुत ज्यादा दर्द होता है लेकिन जैसे ही मासिकधर्म आता है यह दर्द कम होने लगता है। इन लक्षणों के आधार पर अगर स्त्री को नियमित रूप से सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि दी जाए तो कुछ ही समय में उसके ये लक्षण नज़र आना बंद हो जाते हैं।

गर्भावस्था की बहुत सारी परेशानियां जैसे उल्टी आने का मन करना, सिर में दर्द होना, गैस बनने के कारण दर्द होना आदि में सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि बहुत ही चमत्कारिक तरीके से काम करती है। हिस्टीरिया रोग से ग्रस्त लड़की जब गर्भवती होती है तो उस समय हिस्टीरिया रोग के कारण स्त्री को बहुत सारी परेशानियां घेर लेती है। बहुत से लोगों का मानना है कि गर्भवती स्त्री को बच्चे के जन्म से करीब 15-20 दिन पहले अगर सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि का सेवन कराया जाए तो उसको बच्चे के जन्म के समय किसी तरह की परेशानी नहीं होती और बच्चा आसानी से पैदा हो जाता है, लेकिन यह किसी-किसी मामले में ही होता है क्योंकि हर गर्भवती स्त्री की प्रकृति एक ही तरह की नहीं होती, सभी के ल़क्षण अलग-अलग प्रकार के होते हैं और जब तक हर स्त्री के सारे लक्षण न मिले तो सिर्फ रोग या रोग के नाम पर 1 या 2 लक्षणों के आधार पर ही इस औषधि का इस्तेमाल करना सही नहीं कहा जा सकता, इसलिए इसे इतना लाभकारी नहीं कह सकते।

गर्भवती स्त्री के बच्चे के जन्म लेने के दर्द के शुरू होते ही (लेबर पैन) कंपकपी होना महसूस होना, हिस्टीरिया के लक्षण नज़र आते ही, बच्चे के जन्म लेने के दर्द के रुकते ही, गर्भाशय का मुंह न खुलना आदि लक्षण प्रकट होते ही उसे सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि देने से लाभ होता है।

मासिकधर्म के दौरान स्त्रियों की स्नायुमण्डली (नर्वस सिस्टम) कमजोर हो जाती है इस हालत में अगर स्त्री को सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि दी जाए तो थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि सब ऐन्टिसोरिक औषधियों का असर बहुत ही गम्भीर और चिरस्थाई होता है और अगर वो समलक्ष्ण विशिष्ट और उच्चशक्ति संपन्न हो तो बहुत ही प्रबल क्रिया के साथ रोग बढ़ सकता है। इसलिए एक बहुत ही महान व्यक्ति न पहले नक्सवोमिका का इस्तेमाल करके औषधि की शक्ति सहिश्णुता प्राप्त कर लेने के उपदेश दिये है, अगर ऐसा न किया जाए तो इस औषधि से पूरी तरह लाभ प्राप्त नहीं होगा। मासिकधर्म के दिनों में अगर स्त्री को कोई भयानक रोग घेर लेता है तो उसे ज्यादा ताकत वाली औषधियों का बार-बार सेवन नहीं करना चाहिए। इस हालत में स्त्री को नक्सवोमिका की एक खुराक देकर लक्षणों के आधार पर ही कुछ घंटों के बाद दूसरी औषधि दे देनी चाहिए।

सांस से सम्बंधित लक्षण - रोगी के गले में ऐसे लगना जैसे कि कुछ अटक रहा हो, सांस का रुक-रुककर चलना, सूखी खांसी होना जो रात को सोते समय ज्यादा चलती है आदि सांस के रोग के लक्षणो में रोगी को सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि देने से लाभ होता है।

हृदय (दिल) से सम्बंधित लक्षण- नाड़ी का धीरे-धीरे चलना, बाजू सुन्न होना, ऐसा महसूस होना कि दिल की धड़कन बंद हो रही हो और दम सा घुट रहा है, बाएं स्तन के नीचे के हिस्से में दर्द होना आदि दिल के रोग के लक्षण प्रकट होने पर रोगी को सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि का सेवन कराने से कुछ ही समय में लाभ हो जाता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण- रीढ़ की हड्डी के ऊपर के हिस्से में छूने पर दर्द होना, गर्दन और कमर में खिंचाव सा आना, पसलियों के बीच के हिस्से में गठिया होना, कमर की पेशियों का ऐंठना आदि पीठ के रोगों के लक्षणों में रोगी को सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि का नियमित रूप से सेवन कराने से लाभ होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- हाथ-पैरों में धीरे-धीरे बढ़ने वाला दर्द होना, शरीर में बैचेनी सी महसूस होना, पेट की पेशियों में गठिया होना, जनेन्द्रियों में खिंचाव के साथ हल्का-हल्का दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि देने से आराम पड़ जाता है।

वृद्धि-

सुबह के समय, सर्दी से, मासिकधर्म के दौरान, मासिकस्राव जितना ज्यादा होगा दर्द भी उतना ही ज्यादा होगा आदि मे रोग बढ़ जाता है।

शमन- 

गरमाई से, खाना खाने से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि की तुलना रैमनस कैलिफोर्निका (रैम्नुस कैलीफोरनिका) डेरिस पिन्नाटा (डेरीस पिंनटा), आरिस्टोलोचिया मिलहोमेन्स (ऐरीस्टोलीकिक मील्गोमेंस) कौलोफाइलम, पल्सा, एगारिकस, मैकरोटिन आदि से की जाती है।

मात्रा -

सिमिसिफ्यूगा रेसमोसा औषधि की पहली से तीसवीं शक्ति तक रोगी को देने से लाभ मिलता है।


साइमेक्स CIMEX-CANTHIA

 साइमेक्स CIMEX-CANTHIA

परिचय-

जिस बुखार के अंदर शरीर टूटा-टूटा सा रहता है, किसी काम को करने का मन नहीं करता, नींद सी आती रहती है ऐसे लक्षण नज़र आते हो तो साइमेक्स औषधि बहुत लाभ करती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर साइमेक्स औषधि का इस्तेमाल-

सिर से सम्बंधित लक्षण - सिर में बहुत तेज दर्द होना, बहुत तेज गुस्सा आना, माथे की दाईं ओर की हड्डी के नीचे दर्द होना आदि सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को साइमेक्स औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

स्त्री से सम्बंधित लक्षण - स्त्री की योनि से लेकर बाएं डिम्ब तक बहुत तेज दर्द होना जैसे की किसी ने कुछ चीज घुसा दी हो आदि स्त्री रोग के लक्षणों में स्त्री को साइमेक्स औषधि देने से आराम आता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण - शरीर में बहुत तेज ठण्ड लगने के साथ कंपकंपी होना, शरीर के सारे जोड़ों में दर्द होना, बदबू के साथ पसीना आना, बुखार के बढ़ने के साथ-साथ प्यास का कम होना आदि बुखार के लक्षणों में रोगी को साइमेक्स औषधि का सेवन नियमित रूप से कराने से लाभ होता है। 

कब्ज से सम्बंधित लक्षण - 

पेट में कब्ज बनना, आंतों में सूखा मल जमा होना, मलान्त्र में जख्म होना आदि आंतों के रोग के लक्षणों में रोगी को साइमेक्स औषधि खिलाने से लाभ मिलता है।

मात्रा-

रोगी को उसके रोग के लक्षणों के आधार पर साइमेक्स औषधि की छठी से 200 वीं शक्ति तक देने से आराम आता है।


सिनाबेरिस Cinabaris

 सिनाबेरिस Cinabaris

परिचय-

सिनाबेरिस औषधि किसी व्यक्ति की पलकों में स्नायूशूल के दर्द और गर्मी के कारण शरीर में पैदा हुए जख्मों को भरने में बहुत लाभकारी होती है। 

विभिन्न प्रकार के लक्षणों के आधार पर सिनाबेरिस औषधि का उपयोग-

रक्त से सम्बंधित लक्षण- किसी व्यक्ति के अगर नाक से खून निकलता हो, आमाशय से खून बहता हो, बवासीर रोग के कारण खून ज्यादा बहता हो ऐसे लक्षणों में रोगी को सिनाबेरिस औषधि का सेवन कराना काफी लाभप्रद रहता है।

उपदंश, प्रमेह से सम्बंधित लक्षण- लिंग के मुंह का सूज कर फूल जाना, मस्से होना, खून निकलना, अण्डकोषों का बढ़ जाना आदि लक्षणों में अगर रोगी को सिनाबेरिस औषधि का सेवन कराया जाए तो लाभ होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों में आंसुओं की नली से शुरू होकर दर्द का आंखों के चारो ओर की कनपटी तक फैल जाना, आंखों में किसी चीज का चुभना सा महसूस होना, आंख के अंदर के सफेद भाग का लाल हो जाना, आंखों से कम दिखाई देना, पलकों का सूज जाना, पुतलियों में निशान से पड़ जाना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को सिनाबेरिस औषधि दी जाए तो आराम मिलता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- नाक की जड़ का भारी सा महसूस होना, नाक की जड़ पर दबाव पड़ना, पुराना सर्दी-जुकाम होने पर नाक से गोन्द की तरह लेसदार सा स्राव होना जो नाक के द्वारा गले में पहुंच जाता है आदि लक्षणों के आधार पर सिनाबेरिस औषधि का सेवन काफी लाभप्रद रहता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण- सिर में खून जमा हो जाने के कारण होने वाला सिर का दर्द, रात को और दिन में हाथ-पैरों का ठण्डा हो जाना, जोड़ों में ठण्डापन महसूस होना, जोड़ों के आसपास खुजली सी महसूस होना आदि सिर के रोगों के लक्षणों में रोगी को सिनाबेरिस औषधि का प्रयोग कराने से आराम आता है।

प्रतिविष-

हिपर, सल्फ औषधि का उपयोग सिनाबेरिस औषधि के दोषों को दूर करने में किया जाता है।

पूरक-

थूजा।

वृद्धि-

शाम को, रात के समय, सोने के बाद, दाईं करवट लेटने से, छूने से, रोशनी से, सीलन से रोग बढ़ता है।

शमन-

खुली हवा में, रात को भोजन के बाद, सूरज की रोशनी से रोग कम हो जाता है।

तुलना-

हिपर, नाइट्रि-एसिड, थूजा, सीपिया से सिनाबेरिस औषधि की तुलना की जा सकती है।

मात्रा-

1, 3x, 30 और 200 शक्ति तक।