होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है

होम्योपैथी एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथिक दवाइयाँ किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है।

भारत होम्योपैथिक चिकित्सा में वर्ल्ड लीडर हैं।

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है। होम्योपैथी में किसी भी रोग के उपचार के बाद भी यदि मरीज ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह रोग का मुख्य कारण सामने न आना भी हो सकता है।

होम्योपथी दवा मीठी गोली में भिगोकर देते हैं

होम्योपथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं।

होम्योपैथी की सबसे खास बात है कि आप डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं। इससे किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट होने का खतरा नहीं होता।

बैसीलीनम - BACILINUM

 बैसीलीनम BACILINUM 

परिचय-

बैसीलीनम औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों को ठीक करने में किया जाता है परन्तु इस औषधि का प्रयोग विशेष रूप से यक्ष्मा (टी.बी.) रोग से संबन्धित लक्षणों को दूर करने में अधिक लाभकारी माना गया है। बैसीलीनम औषधि यक्ष्मा (टी.बी.) रोग को ठीक करने में अत्यधिक लाभकारी है। इसके प्रभाव से शरीर में बनने वाले अधिक बलगम की मात्रा कम होती है। इस औषधि के प्रयोग से फेफड़ों में वायु अधिक मात्रा में पहुंचने लगती है जिससे खून में बनने वाले दूषित द्रव्य बाहर निकल जाती है और फेफड़ों की वायुकोष्ठ खुल जाती हैं जिसके कारण फेफड़ों में वायु अधिक मात्रा में जाने लगती है और धीरे-धीरे यक्ष्मा (टी.बी.) से संबन्धित लक्षण समाप्त होकर रोग ठीक हो जाता है। बैसीलीनम औषधि का विशेष प्रभाव रोगों में तब पड़ता है जब रोगी के शरीर में पीब जैसा पतला कफ अधिक मात्रा में बनने लगता है और रोगी व्यक्ति के शरीर में पीब अधिक मात्रा बनने से रोगी को सांस लेने में भी कठिनाई होती है और पीब सांस नली में भर जाती है जो बलगम के रूप में निकल ती रह ती है। ऐसे लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए बैसीलीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है जिसके फलस्वरूप शरीर में पीब का बनना बंद होकर शरीर से पीब बाहर निकलता है। रोगी को सांस लेने में उत्पन्न परेशानी को दूर करता है साथ ही यक्ष्मा (टी.बी.) रोग को भी समाप्त करता है। बैसीलीनम का प्रयोग यक्ष्मा (टी.बी.) के अतिरिक्त अन्य पुराने रोगों में भी लाभकरी माना गया है।

बैसीलीनम औषधि का प्रयोग उन वृद्ध व्यक्तियों के फेफड़ों की बीमारियों में लाभकारी है जिन व्यक्तियों को पुराने नजला-जुकाम की शिकायत बराबर बनी रहती है। इसके अतिरिक्त जिस व्यक्ति के फेफड़ों में खून का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता, रात को अचानक घुटने के दौरे पड़ते हैं और खांसते समय परेशानी होती है। ऐसे में बैसीलीनम औषधि के प्रयोग से रोग जल्द दूर होता है। दान्तों पर मैल जम जाने पर बैसीलीनम औषधि का प्रयोग से दान्तों पर जमी मैल साफ होती है। जिस व्यक्ति को बार-बार सर्दी-जुकाम होती रहती है, उसके लिए भी यह औषधि लाभकारी होती है।

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर बैसीलीनम औषधि का उपयोग :-

1. सिर से संबन्धित लक्षण :

बैसीलीनम औषधि का प्रयोग सिर दर्द के विभिन्न लक्षणों में किया जाता है, जैसे- रोगी व्यक्ति में अधिक चिड़चिड़ापन तथा उत्साहहीनता आ जाना। तेज सिर दर्द जो सिर की गहराई से उत्पन्न होता हुआ महसूस होता है और रोगी को अपने सिर पर रस्सी बांधने जैसा अनुभव होता रहता है। रोगी की त्वचा पर दाद और पलकों का छाजन अर्थात खुजली होना आदि सिर रोग से संबन्धित लक्षणों में बैसीलीनम का प्रयोग किया जाता है।

2. पेट से संबन्धित लक्षण :

पेट रोगग्रस्त होने पर उत्पन्न होने वाले विभिन्न लक्षण जैसे- पेट में दर्द रहना, ऊरू ग्रंथियां फूली हुई, आन्तों की टी.बी. होना, भोजन करने से पहले पतला दस्त आना, पेट में अधिक कब्ज बनना और कब्ज के कारण दुर्गन्धित हवा निकलना आदि पेट से संबन्धित लक्षण रोगी में उत्पन्न होने पर रोगी को ठीक करने के लिए बैसीलीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

3. सांस संस्थान से संबन्धित लक्षण :

सांस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को घुटन होना तथा नजले के कारण सांस लेने में परेशानी होना, तर दमा रोग तथा सांस नली में बुलबुले उठने जैसी आवाज निकलना के साथ श्लेष्मा-पूय बलगम निकलना आदि लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए बैसीलीनम औषधि देनी चाहिए।

सांस नली की सूजन से पीड़ित रोगियों में श्लेष्म-पूय बलगम बहुदण्डाणुक (पोली बैसलरी) होता है। यह रोगाणुओं की अनेक जातियों का सम्मिश्रण होता है और इससे व्यवहार में लाने का स्पष्ट संकेत रहता (कार्टियर)। यह औषधि आमतौर पर फेफड़ों में अतिरक्तसंकुलता (कोनगेशन) को दूर करती है और इस तरह यह औषधि यक्ष्मारोग को दूर करने में अधिक प्रभावशाली होता है।

5. त्वचा से सम्बंधित लक्षण :

बैसीलीनम औषधि का प्रयोग त्वचा से संबन्धित विभिन्न लक्षणों जैसे- त्वचा का एक विशेष प्रकार का रोग जिसमें त्वचा पर बारीक कीलें निकलती हैं और जिस पर कभी खुरण्ड नहीं जमते। त्वचा पर निकलने वाली यह कीलें बार-बार निकलती रहती हैं। रोगी व्यक्ति के गर्दन की ग्रन्थियां बढ़ी हुई तथा पलकों में छाजन रहती है। ऐसे त्वचा रोग के लक्षणों में रोगी को ठीक करने के लिए बैसीलिनम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

वृद्धि :

रात को तथा सुबह के समय तथा ठण्डी हवा में घूमने से रोग बढ़ता है।

संबन्ध :

बैसीलीनम औषधि का संबन्ध एण्टिमोनियम आयोडे, लैके, आर्सेनिकम आयोडे, मायोसोटिस, लेविको आदि से माना जाता है। इन औषधियों का प्रयोग रोगी में अधिक दुर्बलता होने पर जल्दी लाभ के लिए रोगी व्यक्ति को 5-10 बूंदें दी जाती हैं।

पूरक :

कल्के-फा और काली-का औषधि बैसीलीनम औषधि का पूरक है।

तुलना :

बैसीलीनम औषधि की तुलना टुबरकुलीनम औषधि से की जाती है। बैसीलीनम और टुबरकुलीनम दोनों ही औषधियों को यक्ष्मा रोग को दूर करने में अधिक लाभकारी माना गया है। इन दोनों औषधि का विशेषकर लाभ तब मिलता है जब फेफड़ों में यक्ष्मा रोग विकसित होने के छोटे-मोटे लक्षण उत्पन्न होने के आशंका हो। बैसीलीनम का प्रयोग ग्रन्थियों, सन्धियों, त्वचा और ह़ड्डियों की टी.बी. की शुरुआती अवस्था में करने से रोग दूर करने में यह अधिक लाभकारी होता है। बैसीलीनम टैस्टियम विशेषत: शरीर के निचले अंगों पर प्रतिक्रिया कर रोगों को दूर करती है।

मात्रा :

बैसीलीनम औषधि को 30 शक्ति से नीचे की शक्ति नहीं देनी चाहिए और नहीं यह औषधि बार-बार रोगी को देना चाहिए। इस औषधि को सप्ताह में एक बार लेना चाहिए। यह औषधि रोग में बहुत जल्दी लाभ पहुंचाती है। इस औषधि के एक डोज से ही रोग खत्म हो जाते हैं।


बादियागफ्रेश (वाटर स्पॉज) BADIAGA (Fresh-water-sponge)

 बादियागफ्रेश (वाटर स्पॉज) BADIAGA (Fresh-water-sponge) 

परिचय-

बादियाग औषधि कैल्शियम, एल्यूमीनियम और साइलीसिया को मिलाकर तैयार की जाती है। इन तीनों औषधियों को मिलाने से बनने वाली बादियाग औषधि अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने में बहुत ही लाभकारी है। बादियाग औषधि का प्रयोग मुख्य रूप से सर्दी से होने वाले रोग तथा शरीर के किसी भी अंग में गांठ उत्पन्न होने पर किया जाता है। बादियाग औषधि शरीर में बनने वाली विष (दूषित द्रव्य) को दूर करने में अधिक लाभकारी है। यह औषधि खून में अपनी प्रतिक्रिया कर कण्ठमाला रोग का लक्षण प्रकट करती है। यह औषधि पेशियों और उनके ऊपरी परत में होने वाले दर्द को दूर करती है। रोगी को हिलने-डुलने और कपड़े पहनने से रोगग्रस्त अंगों पर रगड़ होने से दर्द होना तथा रोगी में सर्दी सहन करने की क्षमता कम होना आदि में बादियाग औषधि लाभकारी है। ग्रिन्थयों की सूजन। पूरे शरीर में लकवा मार जाने जैसी स्थिति। गलगण्ड, आतशक (गर्मी का रोग), गिल्टी, लाल खसरा आदि में बादियाग औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। इस औषधि का प्रयोग गर्मी के मौसम में अच्छा रहता है और बरसात व सर्दी के मौसम में इसके सेवन से इस औषधि में मौजूद लक्षण रोगी में उत्पन्न हो सकते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षणों के आधार पर बादियाग औषधि का उपयोग :-

खांसी से संबन्धित लक्षण :

खांसी रोग से ग्रस्त रोगी को सर्दी लगने से नाक से तरल पानी की तरह बलगम का निकलना, अधिक छींके आना, छाती में दमा की तरह खिंचाव महसूस होना है तथा सांस लेने और छोड़ने में कठिनाई होना आदि लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को बादियाग औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है। बादियाग औषधि हूपिंग खांसी के साथ सुई चुभने जैसा दर्द उत्पन्न होने पर रोगी को यह औषधि देने से दर्द आदि में आराम मिलता है। इसके अतिरिक्त कुकर खांसी में भी बादियाग औषधि लाभकारी होती है। कुकर खांसी ऐसी खांसी है, जिसमें कफ निकालने के लिए पूरा जोर लगाना पड़ता है और कफ की गुठलियां बाहर आती हैं। इस खांसी में रोगी खांसते-खांसते बेदम हो जाता है और मवाद की तरह कफ की गुठलियां बाहर आती हैं। ऐसे में रोगी को बादियाग औषधि सेवन देनी चाहिए। इसके उपयोग से खांसी ठीक होती है।

सिर से सम्बंधित लक्षण :

सिर रोग ग्रस्त होने के साथ रोगी में उत्पन्न होने वाले लक्षण जैसे- रोगी को अचानक महसूस होना कि सिर बहुत बढ़ गया है और सिर के अन्दर कोई चीज भरी हुई है। रोगी के सिर और कनपटियों में दर्द होता है जो धीरे-धीरे आंखों तक फैल जाता है और वह दर्द दोपहर के बाद और अधिक बढ़ जाता है, आंखों के नीचे नीला घेरा बनने लगता है, सिर में सिकुड़ापन और खोपड़ी में तेज दर्द होने लगता है, सिर में खुश्की होती है। इस तरह के लक्षणों में कोई भी लक्षण से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए बादियाग औषधि का प्रयोग किया जाता है।

सिर में जड़ता और चक्कर आने जैसा अनुभव होना। सर्दी-जुकाम के साथ छींकें अधिक आना तथा नाक से पानी जैसा पतला बलगम निकलने के साथ दमा जैसा सांस और दम घोट देने वाली खांसी में भी यह औषधि लाभकारी है। इन्फ्लुएंजा रोग, हल्की सी आवाज भी बहुत तेज महसूस होना आदि सिर से सम्बंधित ऐसे लक्षणों में बादियाग औषधि का प्रयोग किया जाता है।

आंखों से संबधित लक्षण :

आंखों के रोगग्रस्त होने पर उत्पन्न होने वाले लक्षण, जैसे- बांई आंख की ऊपरी पलक में खिंचाव होना, आंखों के गोले में दर्द होना। दोपहर के बाद आंखों के गोले में रुक-रुककर होने वाला तेज दर्द। आंखों के इन रोगों में कभी-कभी कम या अधिक सिर दर्द होना तथा साथ ही आंखों के गोलक में दर्द बना रहना ऐसे आंखों के रोगों के लक्षणों में बादियाग औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

बालों से संबन्धित लक्षण :

जिसके बाल अधिक झड़ते हो, खल्वाट रोग (गंजापन), सिर में खुजली रहती है। सिर की त्वचा छूने से दर्द होता है। माथे पर भी फुंसियां जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए बादियाग औषधि का उपयोग करना अधिक लाभकारी होता है।

गांठ से संबन्धित लक्षण :

गांठ वाले स्थान पर सूजन होने के साथ गाल, गर्दन व गर्दन के पिछले भाग में, बगल में, कान की जड़ और जबड़े की गांठ आदि में सूजन उत्पन्न होना आदि ऐसे लक्षणों को दूर करने के लिए बादियाग औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

बादियाग औषधि का प्रयोग प्रमेह, गर्मी, प्लेग आदि किसी भी कारण से उत्पन्न होने वाले बाघी रोग में पत्थर की तरह सख्त होने वाली गांठों को तोड़ने के लिए किया जाता है। गांठों के रोग में बादियाग औषधि का सेवन करने के साथ इसके रस को रुई पर लगाकर गांठ पर लगाने से अधिक लाभ मिलता है।

बाघी रोग से संबन्धित लक्षण :

बाघी रोग में जांघ के जोड़ों में गांठ बन जाती है और फिर गांठ सख्त हो जाती है, जिसके कारण उस स्थान पर सूजन आ जाती है। ऐसे में बादियाग औषधि का सेवन करने और इसके रस का मदर टिंचर (मूलार्क) गांठ के ऊपर लगाने से रोग में जल्दी लाभ मिलता है।

कंठमाला से संबन्धित लक्षण :

बादियाग औषधि का उपयोग कंठमाला में अधिक लाभकारी होता है, विशेषकर जब गले की ग्रन्थियां अधिक कठोर हो गई हो और उनमें मवाद पैदा होकर गांठ पकने व फूटने लगा हो। ऐसे में बादियाग का उपयोग करने से कंठमाला नष्ट होता है। बादियाग औषधि के उपयोग से कंठमाला की बढ़ी हुई अवस्था, कंठमाला होने पर आंखों में जलन होना, दांई आंखों में स्नायविक पीड़ा रहना आदि में भी लाभ मिलता है।

बुखार से संबन्धित लक्षण :

बादियाग औषधि का उपयोग दूषित वायु के कारण होने वाले बुखार में भी लाभकारी होता है। इसके अतिरिक्त अधिक छींके आने व नाक से श्लेष्मा निकलने पर भी इस औषधि का सेवन लाभकारी होता है।

अन्य रोग :

गर्भाशय से खून का आना और रात को स्राव अधिक बढ़ जाना व सिर बढ़ा महसूस होना आदि में बादियाग औषधि का प्रयोग लाभकारी है। बादियाग औषधि का प्रयोग बवासीर, मस्से, दाहिने आंख के स्नायुओं में दर्द होना, हूपिंग खांसी में अधिक खांसने से बलगम निकलना, घोड़े के खुर की चोट आदि बीमारियों में लाभदायक है।

सांस संस्थान से संबन्धित लक्षण :

खांसी दोपहर के बाद बढ़ जाती है और गर्म कमरे में जाने पर खांसी कम हो जाती है। इस रोग में खांसने पर बलगम रोगी के मुंह या नाक से निकलकर अपने-आप दूर जा गिरता है। सांस रोग के ऐसे लक्षणों में बादियाग औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

रोगी में उत्पन्न काली खांसी जिसमें पीले रंग का गाढ़ा बलगम मुंह और नाक से निकलता रहता है। परागत ज्वर के साथ दमा में रोगी को सांस लेने में परेशानी होना, छाती की सूजन, गर्दन की सूजन और पीठ की सूजन के साथ फेफड़ों की झिल्ली की सूजन आदि लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को ठीक करने के लिए बादियाग औषधि का सेवन कराना चाहिए।

आमाशय से संबन्धित लक्षण :

रोगी का मुंह गर्म रहता है, प्यास अधिक लगती है, पेट में चुभने जैसा तेज दर्द होता है जो पेट से शुरू होकर धीरे-धीरे कशेरुका और कन्धों तक फैल जाता है। आमाशय रोगग्रस्त होने पर रोगी में ऐसे लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को ठीक करने के लिए बादियाग औषधि का सेवन कराना चाहिए।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :

स्त्रियों में मासिक धर्म के साथ जब खून आने लगता है तो उसे रक्तप्रदर कहते हैं। रक्तप्रदर होने पर स्त्री को रात के समय अपना सिर धीरे-धीरे बढ़ता हुआ अनुभव होता है। ऐसे में स्त्रियों को बादियाग औषधि देने से रक्तप्रदर के साथ उत्पन्न होने वाले अन्य लक्षण भी दूर होते हैं। बादियाग औषधि के प्रयोग से स्तन कैंसर भी ठीक होता है।

कान से संबन्धित लक्षण :

कान रोगग्रस्त होने पर उत्पन्न होने वाले विभिन्न लक्षणों जैसे-कान के निचली ग्रन्थियां का बढ़ जाना, कान की ग्रन्थियों में सूजन आना, सभी ग्रन्थियों का बढ़कर अण्डाकार हो जाना तथा इन ग्रन्थियों में से कुछ ग्रन्थियां का कठोर हो जाना और कुछ पककर फूट जाना जैसे लक्षण उत्पन्न होने के कारण कान से पीब बाहर आने लगता है। इस रोग में तेज चुभन वाली पीड़ा होती है जो दाईं ओर से शुरू होकर कंठास्थि तक पहुंच जाती है। इस रोग के होने पर कंधों के पीछे की ओर मोड़ने तथा छाती तानने या शरीर के किसी भी ओर हल्का मोड़ने पर दर्द तेज हो जाता है। रोगी में इस तरह के लक्षणों में से कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर बादियाग औषधि का सेवन कराना चाहिए। यह औषधि सभी लक्षणों को दूर कर रोग को ठीक करती है।

हृदय से संबन्धित लक्षण :

हृदय रोग में रोगी के हृदय के आस-पास विकार का अनुभव होने के साथ ही हृदय के पास तेज दर्द होता है तथा रोगी के पूरे शरीर में सुई चुभने जैसा दर्द होता रहता है। इस तरह के हृदय रोग में बादियाग औषधि का उपयोग करना अत्यधिक लाभकारी होता है।

गर्दन से संबन्धित लक्षण :

गर्दन कठोर होने या गर्दन अकड़ जाने पर बादियाग औषधि का उपयोग लाभकारी होता है। गर्दन में दर्द होने पर विशेषकर गर्दन के पिछले भाग में चुभन जैसा दर्द होने पर जो आगे की ओर झुकने या पीछे की ओर मुड़ने से अधिक तेज हो जाता है। ऐसे गर्दन के दर्द में बादियाग औषधि का सेवन करने से अकड़न और दर्द आदि में जल्दी आराम मिलता है।

त्वचा से संबन्धित लक्षण :

इस रोग में रोगी के त्वचा को छूने पर रोगी को दर्द होता है, रोगी के त्वचा पर दरारें पड़ जाती है और त्वचा पर दाग व चकत्ते आदि उत्पन्न हो जाते हैं। त्वचा पर ऐसे लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को बादियाग औषधि देनी चाहिए।

मांसपेशियों का दर्द :

यदि रोगी की मांसपेशियां और उसको ढकने वाली त्वचा में दर्द का अनुभव होता है तथा मांसपेशियों को छूने से भी दर्द का अनुभव होता है। मांसपेशियों का यह दर्द इतना असाधारण होता है कि पहना हुआ कपड़ा भी रोगग्रस्त अंगों को छू जाने से दर्द होने लगता है तथा ऐसा दर्द अनुभव होता है जैसे किसी ने उस अंगों को पीट या कुचल दिया हो। इस तरह के मांसपेशियों में उत्पन्न होने वाले संवेदनशील दर्द में बादियाग औषधि का उपयोग करने से रोग जल्द ठीक होता है।

शरीर के विभिन्न अंगों :

गर्दन और कन्धों में सुई चुभने जैसा दर्द होने पर बादियाग औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। इस औषधि का उपयोग कमर, नितम्बों और उसके निचले हिस्से में दर्द आदि उत्पन्न होने पर, गर्दन में अकड़न पैदा होने पर किये जाते हैं। कभी-कभी पेशियों और त्वचा पर ऐसे दर्द महसूस होता है, मानो किसी ने शरीर को कूट दिया है। शरीर में इस तरह दर्द उत्पन्न होने पर बादियाग औषधि का उपयोग करने से दर्द में जल्दी आराम मिलता है।

उपदंश रोग :

गर्मी से उत्पन्न होने वाले रोग तथा एड़ियों के फटने और खूनी बवासिर में भी बादियाग औषधि का उपयोग लाभकारी होता है।

वृद्धि :

ठण्डी हवा या ठण्डे मौसम में रहने से रोग बढ़ जाता है।

शमन :

गर्मी या गर्म कमरे में रहने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :

बादियाग औषधि की तुलना बैराइटा कार्ब, स्पांजिया, फाइटो, काली हाइड्रोजन, साइली , बैरा-का, लैपि-ए, मर्क, स्पाई, सल्फ, आयोड, मर्क तथा कोनियम से किया जाता है।

पूरक : 

बादियाग औषधि का पूरक सल्फर, मर्क्यू और आयोड है।

मात्रा : 

बादियाग 3x या बादियाग 6 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।


बैलसमम पेरूवियेनम (पेरूवियन बालसम फ्रॉम माइरॉक्सिलॉन पैररे)(बैल-पेरू) - Baal Peru

 बैलसमम पेरूवियेनम (पेरूवियन बालसम फ्रॉम माइरॉक्सिलॉन पैररे)(बैल-पेरू)

परिचय-

बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का प्रयोग रोगी में उत्पन्न होने वाले किसी भी प्रकार के स्राव को रोकने के लिए अधिक लाभकारी है। बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का प्रयोग अधिकतर ऐसे स्राव में विशेष रूप से लाभकारी होता है जिसमें स्राव से सड़न जैसी बदबू आती है और रोगी को बराबर प्रलेपक ज्वर (हैक्टीक फीवर) बना रहता है। रोगों में बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का प्रयोग 3 प्रकार से किया जाता है- 1. सेवन करना 2. लेप के रूप में और 3 स्टीम ऑटोमाइजर नामक यंत्र द्वारा धुंआ करके रोगी को सांस से ग्रहण कराना। शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न होने वाले लक्षणों के आधार पर बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का उपयोग :

1. नाक से संबन्धित लक्षण :

नाक से अधिक मात्रा में गाढ़े कफ की तरह स्राव होना, नाक में खुजली होना, नाक में छोटी-छोटी फुंसियां या घाव होना। अधिक पुराना नजला जिससे दुर्गन्ध आती हो। रोगी में उत्पन्न होने वाले ऐसे लक्षणों को ठीक करने के लिए बैलसमम पेरूवियेनम औषधि के प्रयोग करने से रोग समाप्त होता है।

2. सांस रोग (निमोनिया, थाइसिस और बांक्डाइटि) से संबन्धित लक्षण :

रोगी के फेफड़े से अधिक बदबूदार पीले या हरे रंग की गाढ़ी पीव या मक्खन की तरह सफेद बलगम निकलना। रोगी को बुखार होने के साथ बड़बड़ाने की इच्छा करना और रात को पसीना अधिक आना। ऐसे लक्षणों में रोगी को बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

3. खांसी से संबन्धित लक्षण :

रोगी को खांसी के साथ बलगम आता है और कभी-कभी खांसते समय बलगम के साथ खायी हुई पदार्थ की उल्टियां हो जाती है। रोगी के अन्दर से श्लेष्मा सरल और घड़-घड़ आवाजें निकलती रहती है। इन लक्षणों में बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का सेवन कराने से रोग ठीक होता है।

3. मूत्र रोग से संबन्धित लक्षण :

रोगी को कम मात्रा में पेशाब आता है तथा पेशाब के साथ सफेद रंग का पदार्थ निकलना या मूत्राशय का प्रतिश्याय आदि पेशाब से संबन्धित लक्षण दिखाई देने पर रोगी को बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का सेवन कराने से रोग जल्द ठीक होता है।

4. आमाशय से संबन्धित लक्षण :

पुरानी पेचिश अर्थात मल के साथ खून का आना तथा मल से तेज बदबूदार पीव और अधिक मात्रा में आंव आने पर रोगी को बैलसमम पेरूवियेनम औषधि सेवन करानी चाहिए। इससे आमाशय रोगग्रस्त होने पर उत्पन्न होने वाले अन्य लक्षण दूर होकर रोग ठीक होते हैं।

5. त्वचा रोग से संबन्धित लक्षण :

शरीर पर किसी भी कारण से बनने वाले घाव या पुराने सर्दी जुकाम से संबन्धित लक्षण उत्पन्न होने पर बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। किसी भी प्रकार के चर्म रोग, एक्जिमा के कारण त्वचा पर घाव बनना और उस घाव से बदबूदार गाढ़ा मवाद निकलना आदि लक्षण उत्पन्न होने पर बैलसमम पेरूवियेनम का प्रयोग लाभकारी होता है। त्वचा पर सूखी या तर खुजली होने पर बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

6. स्तन रोग से संबन्धित लक्षण :

यदि किसी स्त्री के स्तन की घुण्डी में घाव हो गया हो तो बैलसमम पेरूवियेनम औषधि के 15 बूंद देने से घाव ठीक होता है।

तुलना :

बैलसमम पेरूवियेनम की तुलना बालसमम टोलूटैनम और ओलियम कैरियोफीलम औषधि से की जाती है।

मात्रा :

बैलसमम पेरूवियेनम के 2x या 3 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। परन्तु प्रलेपक ज्वर होने पर बैलसमम पेरूवियेनम के 6ग देना चाहिए।

अन्य रोगों में बैलसमम पेरूवियेनम का उपयोग :

सामान्य रूप से उत्पन्न होने वाले रोग जैसे- मण्दरोही घावों, खुजली, स्तनों के निपल फटने पर, त्वचा का फटने आदि रोगों में बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का प्रयोग करने से यह त्वचा की शक्ति को बढ़ाकर रोग को ठीक करती है। यह कर्णाकुर को बढ़ाती है और बदबू को खत्म करती है।

सांस से संबन्धित रोगों में पिचकारी द्वारा 1 प्रतिशत सुरासार या ईथर के घोल का प्रयोग किया जा सकता है। पुरानी सांस नली की सूजन में बैलसमम पेरूवियेनम औषधि का उपयोग करने से सूजन ठीक होती है और कफ को खत्म करती है। इस रोग में बैलसमम पेरूवियेनम औषधि की मात्रा 5 से 15 बूंदे गोंद के पानी या अण्डे की सफेदी में मिलाकर देने से लाभ मिलता है।


बैरोज्मा केनैटा (बूचू) BAROSMA CRENATA (Buchu)

 बैरोज्मा केनैटा (बूचू) BAROSMA CRENATA (Buchu) 

परिचय-

बैरोज्मा केनैटा औषधि का प्रयोग मुख्य रूप से प्रजनन और मूत्र संस्थान तथा पीब के रंग वाले श्लेष्मा निकलना (म्युकोप्युरुलेंट डीसचार्जेस) पर किया जाता है, जिससे रोग में जल्दी लाभ मिलता है। बैरोज्मा केनैटा औषधि का प्रयोग मूत्र की उत्तेजना के अतिरिक्त पेशाब के साथ सफेद पदार्थ का आना (विसीकल कैटर्रे), पुर:स्थिग्रन्थिपरक रोग(प्रोस्टैटीक डीसकोर्डरस) तथा पथरी व प्रदर रोग में किया जाता है। बैरोज्मा केनैटा औषधि की तुलना-

बैरोज्मा केनैटा औषधि की तुलना कोपेवा, थूजा, पॉपूलस, चिमाफिला औषधि से किया जाता है।

मात्रा-

बैरोज्मा केनैटा औषधि के जड़ का रस अथवा इसके पत्तियों की चाय का सेवन किया जाता है।


बैप्टीशिया (जंगली नील) Baptisia (Wild indigo)

 बैप्टीशिया (जंगली नील) Baptisia (Wild indigo) 

परिचय-

बैप्टीशिया औषधि के सेवन से रोगी के शरीर में ऐसे लक्षण उत्पन्न होते हैं, जो लक्षण रोगों से संबन्धित होते हैं। इसके सेवन से रोगी व्यक्ति में हल्का बुखार आना, खून दूषित होने के कारण उत्पन्न रोग, मलेरिया तथा महावसाद (एक्सट्रेम प्रोस्ट्रेशन) आदि लक्षणों को पैदा कर उस रोग को ठीक करता है। बैप्टीशिया के उपयोग से अवर्णनीय रोग अनुभव होना बंद हो जाता है। इसके अतिरिक्त पेशियों में तेज दर्द और सड़ाव के लक्षण हमेशा मौजूद रहने पर, रोगी व्यक्ति के सांसों से, मल से, पेशाब, पसीना आदि से दुर्गन्ध आने पर बैप्टीशिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। महामारी के रूप में फैलने वाला इनफ्लूएंजा (हैजा) तथा बच्चों के आन्तों में मल के सड़ने से पैदा होने वाले विष जिसके कारण मल और डकारों से बदबू आती हो ऐसे में बैप्टीशिया औषधि के सेवन से मल साफ होकर रोग ठीक होता है। बैप्टीशिया का प्रयोग टाइफाइड ज्वर में अधिक लाभकारी है। यदि बैप्टीशिया का प्रयोग टाइफाइड ज्वर के समय ही उसके लक्षणों के अनुसार किया जाए तो रोग समय से पहले ही समाप्त हो जाता है। ऐलोपैथिक चिकित्सक के अनुसार रोग का समय पूरा न होने पर रोगी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाता है, परन्तु होम्योपैथिक चिकित्सक के अनुसार होम्योपैथिक चिकित्सा से रोग का प्रभाव घटकर रोग ठीक हो जाता है। टाइफाइड ज्वर, निमोनिया, हूपिंग कफ, कुकर खांसी आदि रोग होने पर उसकी चिकित्सा रोग के लक्षणों के आधार पर की जाती है। वैज्ञानिक चिकित्सा द्वारा रोग को दूर करने वाले सभी चिकित्सा कितने भी प्रभावकारी क्यों न हो परन्तु वे एक बात पर कभी स्थिर नहीं रहते हैं। किसी रोग को ठीक करने के लिए प्रयोग किये जाने वाले चिकित्सा से रोग तो ठीक होते हैं परन्तु कुछ साल बाद वही रोग अन्य रोग के रूप में उत्पन्न हो जाते हैं। होम्योपैथिक चिकित्सा विज्ञान का कहना है कि ऐलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान उन्नति कर रहा है, परन्तु अभी तक सफलता के अन्त तक नहीं पहुंच पाया है। अभी तक वे खोज में ही लगे हैं। अत: उन सबको असत्य, अवैज्ञानिक और आनुमानिक समस्या के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है। होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार बड़े-बड़े रोगों में सही चिकित्सा करने में भूल होने और औषधि प्रयोग के फल से भयंकर अनिष्ट होते देख कर ही होमियोपैथिक चिकित्सकों ने कहा था कि काम के अनुसार ही मनुष्य का जीवन-मरण निश्चित होता है। आनुमानिक ज्ञान द्वारा रोगी की चिकित्सा करना किसी तरह से लाभकारी नहीं है। रोग की चिकित्सा के लिए होमियोपैथिक एक तरफ आसान चिकित्सा पद्धति है तो दूसरी ओर रोगों के लक्षणों का पूरा ज्ञान न होने, लक्षण विचार और तदनुसार औषधि व्यवस्था वैसा ही कठिन है। अत: रोगों को दूर करने के लिए सिर्फ लक्षण ही चिकित्सा का मूल आधार है।

शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षणों के आधार पर फेरम आयोडेटम औषधि का उपयोग-

टाइफायड ज्वर : 

टाइफायड ज्वर में रोगी के पूरे शरीर में चोट लगने जैसा दर्द अनुभव होता है तथा रोगी को पहले ठण्डक का अनुभव होता है और धीरे-धीरे रोगी व्यक्ति के पूरे शरीर में, मस्तिष्क, कमर और हाथ-पांव में ऐंठन सा दर्द अनुभव होने लगता है। इसके बाद रोगी व्यक्ति दिन प्रतिदिन कमजोर होता चला जाता है और साथ ही रोगी को अधिक नींद आने लगती है। रोगी व्यक्ति के चेहरे पर निराशा रहती है, चेतना शक्ति इतना कम हो जाती है कि कुछ पूछने पर जवाब देने से पहले ही सो जाता है या घबराहट के मारे बेहोश हो जाता है। रोगी व्यक्ति के जीभ के अगले भाग पर सफेद रंग का मैल जमा हो जाता है, जो पीला या भूरे रंग का होता है। रोग अधिक बढ़ जाने पर रोग का लक्षण बिल्कुल साफ हो जाता है। रोगी अपने बिस्तर पर बार-बार करवटें लेता रहता है और उसे देखने से ऐसा प्रतीत होता है मानो वह कोई चीज इकट्ठा कर रहा है। रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे उसके शरीर के सभी अंग बिस्तर पर इधर-उधर फैल गया हो और वह उसे एकत्रित करने की कोशिश करता है। इस तरह रोग में अनुभव होने से रोगी को नींद नहीं आती। रोगी के पेट में गड़-गड़ की आवाज होना, पेट के नीचे और जांघों के बीच दर्द अनुभव होना। दर्द वाले स्थान पर दबाने से अन्दर बज-बज की आवाज आना और फिर पतले दस्त होना। मल और मूत्र से बदबू आना। टाइफायड बुखार में उत्पन्न होने वाले इन सभी लक्षणों में बैप्टीशिया औषधि का प्रयोग किया जाता है। इससे रोगी में उत्पन्न लक्षण समाप्त होकर रोग ठीक होता है।

मानसिक रोग :

मानसिक रोग से ग्रस्त रोगी का मन हमेशा भ्रमित रहता है। रोगी व्यक्ति सोचने व समझने में असमर्थ रहता है। किसी बातों का फैसला करने में असमर्थ रहना, मन का भटकते रहना, मन में ऐसी भावना पैदा होना कि जैसे शरीर कई भागों में बंट गया है। मन में ऐसे विचार आना कि उसका शरीर टूट गया है या दोहरा हो गया है। रोगी व्यक्ति के मन में टूटे हुए अंगों को इकट्ठा करने का विचार करना और बार-बार करवटें लेना। रोगी व्यक्ति का रोना, भटकाव, बड़बड़ाना, बातें करते-करते नींद आ जाना तथा विषाद के साथ गहरी नींद का आना आदि मानसिक रोगों में बैप्टीशिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे मानसिक संतुलन बना रहता है और रोग ठीक होता है।

सिर रोग : 

सिर के रोगों में रोगी व्यक्ति हमेशा भ्रमित रहता है, उसे ऐसा महसूस होता है मानों वह पानी में तैर रहा है। रोग में चक्कर आना, नाक की जड़ में दबाव अनुभव होना, माथे की त्वचा में खिंचाव महसूस होना तथा सिर के पीछे की ओर भी खिंचाव महसूस होना। सिर का भारी होना तथा सुन्नपन जैसा लगना। आंखों के गोलक में दर्द होना तथा मस्तिष्क में दर्द महसूस होना। तेज नींद का आना, बाते करते-करते सो जाना तथा टाइफायेड ज्वर के शुरू में ही सुनाई न देना और पलकें भारी हो जाना आदि सिर रोग के लक्षणों में बैप्टीशिया औषधि का उपयोग करना लाभकारी होता है तथा रोग में जल्द आराम मिलता है। 

चेहरे रोग : 

रोग में अनिमेष दृष्टि (बेसोट्टेड लूक)। चेहरे का रंग गहरा लाल हो जाना, नाक की जड़ में दर्द होना और जबड़े में पेशियां कठोर हो जाना आदि चेहरे के रोग के लक्षण है। ऐसे बैप्टीशिया औषधि के सेवन से रोग ठीक होता है। 

मुंह के रोग : 

इस रोग में रोगी व्यक्ति का मुंह कड़वा हो जाता है तथा दान्त और मसूढ़ों में दर्द रहता है। मसूढ़ों व मुंह में घाव हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति के सांसों से बदबू आती रहती है। रोगी को जीभ पर ऐसा महसूस होता है मानो उसकी जीभ जल गई हो। जीभ पीली व कत्थई रंग की हो जाना, जीभ के किनारे लाल और चमकदार होना, मध्य भाग में सूखी और कत्थई रंग की साथ ही किनारे सूखे और चमकदार तथा तल कटा-फटा और उसमें दर्द होना। भोजन आदि करने पर दर्द होना तथा घुटन सी महसूस होना आदि मुंख रोग के लक्षणों में बैप्टीशिया औषधि का सेवन करना चाहिए। इससे मुंह के दर्द और घाव व छाले आदि भर जाते हैं। 

गले का रोग :

गले के रोग होने पर गलतुण्डिका (टॉन्सिल) रोग के कारण कोमल तालु में गहरी लाली पड़ जाती है। आहार नली सिकुड़ जाती है। भोजन करने में परेशानी व दर्द होता है। गले में खराश होने पर दर्द होता है और साथ ही बदबूदार द्रव्य का स्राव होता है। हृदय के पास सिकुड़न महसूस होता है। इस तरह के गले से संबन्धित लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए बैप्टीशिया औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। 

आमाशय : 

आमाशय रोगग्रस्त होने पर रोगी व्यक्ति को भोजन निगलने में दर्द होता है तथा ग्रासनली में ऐंठन होने के कारण उल्टियां हो जाती है। आमाशय में पैदा होने वाले दूषित विकारों के कारण रोगी को बुखार आ जाता। रोगी व्यक्ति को भूख नहीं लगती है तथा प्यास अधिक लगने लगता है। आमाशय की कमजोरी तथा पाचनतंत्र में दर्द तथा आमाशय में ठोस पदार्थ अनुभव होता है। शराब या बीयर पीने से रोग बढ़ जाता है। हृदय अधिक सिकुड़ जाता है और आमाशय तथा आंतों के घाव में सूजन पैदा हो जाती है। आमाशय से संबन्धित ऐसे लक्षण उत्पन्न होने पर रोग को ठीक करने के लिए रोगी को बैप्टिशिय औषधि का सेवन करना चाहिए। बैप्टिशिय औषधि के सेवन से दर्द, घाव व बुखार आदि में जल्द लाभ मिलता है। 

पेट रोग :

पेट रोगग्रस्त होने पर रोग से दांया भाग अधिक प्रभावित होता है जिसके कारण पेट फूल जाता है और पेट में गड़-गड़ाहट रहती है। पित्ताशय प्रदेश के ऊपर भाग में दर्द होता है और दस्त लगते हैं। रोगी व्यक्ति का दस्त पतला, गहरे रंग का तथा दस्त के साथ बदबूदार खून स्राव होता है। जिगर व पेट के आस-पास दर्द होता है और दस्त के साथ आंव(सफेद रंग का चिकना पदार्थ) आता। पेट के इस रोग में बैप्टीशिया औषधि का सेवन अधिक लाभकारी होता है। इससे पेट के सभी विकार दूर होते हैं और दर्द आदि समाप्त होता है।

स्त्री रोग :

स्त्रियों में होने वाले रोगों में बैप्टीशिया औषधि का उपयोग लाभकारी होता है, जैसे- हिस्टिरिया रोग, चोट लगना या रात को जागने के कारण बुखार होना। गर्भस्राव होने पर बैप्टीशिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। मासिक धर्म का समय से पहले अत्याधिक मात्रा में आना। सूति स्राव तीखा और दुर्गन्धित रहना। प्रसूति ज्वर होना आदि स्त्री रोग में बैप्टीशिया औषधि लाभकारी है। 

सांस संस्थान :

सांस रोग के लक्षण जैसे- फेफड़ों में खिंचाव जैसा अनुभव होना। सांस लेने में परेशानी, खुले स्थान पर सोने की इच्छा करना तथा कमरे आदि में घुटन महसूस होना। रोगी को डरावने स्वप्ने और भय के कारण नींद न आना। छाती में दर्द व सिकुड़ापन या खिंचाव महसूस करना आदि सांस रोग के लक्षणों में बैप्टिशिय औषधि का सेवन करने से यह सभी लक्षणों को समाप्त कर रोग को ठीक करता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण : 

गर्दन में थकावट या भारीपन महसूस होना। शरीर में अकड़न और दर्द रहना। बाजूओं और टांगों में दर्द और खिंचाव। त्रिकास्थि, नितम्बों और टांगों के आस-पास दर्द होना। रोगी को ऐसा अनुभव होना मानों किसी ने शरीर को कुचल दिया हो। अधिक देर लेटने से पीठ में दर्द व जख्म हो जाना। बाहर अंगों में उत्पन्न होने वाले ऐसे लक्षणों में बैप्टिशिय औषधि का सेवन करना चाहिए। इस औषधि के सेवन से अंगों की थकावट व दर्द आदि दूर होते हैं।

अनिद्रा रोग : 

इस रोग में रोगी को नींद नहीं आती और वह हमेशा बेचैन रहता है। रात को डर अधिक लगता है और सोने पर डरावने सपने आते हैं। रोगी को ऐसा महसूस होना मानो उसका शरीर टुकड़े-टुकड़े हो गये हो और बिस्तर पर बिखरा हो। बोलते-बोलते सो जाना आदि अनिद्रा रोग के लक्षण है। अत: ऐसे रोगों में बैप्टिशिय औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

त्वचा रोग : 

त्वचा रोग में पूरे शरीर व हाथ-पैरों पर नीले रंग के दाग पड़ जाते हैं। रोगी को त्वचा पर जलन होती है और त्वचा में गर्मी अनुभव होती है। शरीर के किसी अंग पर होने वाले सड़े-गले घाव तथा नींद का अधिक आना, हल्की बड़बड़ाहट और त्वचा का सुन्न पड़ जाना आदि त्वचा रोग के लक्षण है। त्वचा से सम्बंधित इन लक्षणों में बैप्टिशिया औषधि का सेवन करना चाहिए। इससे जलन, दर्द व दाग आदि जल्द ठीक होते हैं।

बुखार : 

बुखार के विभिन्न लक्षणों जैसे- बुखार होने पर रोगी को सर्दी लगना, पूरे शरीर में आमवाती दर्द व थकान बना रहना। पूरे शरीर में गर्मी महसूस होने के साथ-साथ बीच-बीच में ठण्ड भी लगना। दोपहर से पहले लगभग 11 बजे तक ठण्डी का असर रहना। कमजोरी के कारण पैदा होने वाला बुखार, टाइफायड ज्वर तथा सामुद्रिक ज्वर आदि में बैप्टीशिया औषधि का सेवन लाभकारी होता है।

वृद्धि : 

नमोदार गर्मी, कोहरे तथा घर के अन्दर रोग बढ़ता है।

तुलना :

बैप्टीशिया औषधि की तुलना आर्सेनिक से की जाती है। ऐलान्थस में बैप्टिशिय के अपेक्षा अधिक शक्ति पायी जाती है।

प्रतिविष :

टाइफायड और टाइफस ज्वर में आर्सेनिक औषधि के सेवन से हानि होने पर बैप्टीशिया औषधि का सेवन करने से उसका असर समाप्त हो जाता है और रोग में आराम मिलता है।

मात्रा :

बैप्टीशिया 12 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। बैप्टीशिया औषधि का प्रभाव रोगों पर धीरे-धीरे होता है। अत: इसका प्रयोग रोग में कई बार किया जा सकता है।


बैराइटा असेटिका (ऐसीटेट ऑफ बेरियम) BARYTA ACETICA (Acetate of Barium)

 बैराइटा असेटिका (ऐसीटेट ऑफ बेरियम) BARYTA ACETICA (Acetate of Barium) 

परिचय-

बैराइटा असेटिका औषधि का प्रयोग पक्षाघात (लकवा) के रोग में किया जाता है। यह औषधि लकवा रोग के उस अवस्था को उत्पन्न कर उसे ठीक करता है जिसमें पक्षाघात पैरों से शुरू होकर ऊपर की ओर फैलता है। यह औषधि लकवा रोग में अत्यधिक लाभकारी है। बैराइटा असेटिका औषधि बुढ़ापे में होने वाले खाज में भी लाभकारी है। शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर बैराइटा असेटिका औषधि का उपयोग -

मन :

रोग के कारण रोगी को भूलने की आदत पड़ जाती है तथा रोगी में आत्मविश्वास की भारी कमी रहती है। इस रोग में रोगी अपने ही दो विचारों के जाल में हमेशा उलझा रहता है। ऐसे रोग में बैराइटा असेटिका का सेवन कराने से रोग ठीक होते हैं।

बाहरी अंग के रोग :

रोगी के बायें पैर में खिंचाव वाला दर्द अनुभव होता रहता है। त्वचा पर चींटियां रेंगने जैसा अनुभव होता रहता है तथा रोगी को गर्म सुई चुभोने जैसा दर्द होता है। इस तरह के लक्षणों में बैराइटा असेटिका का सेवन करना चाहिए।

पक्षाघात (लकवा) मार जाना, कमर दर्द तथा पेशियों व जोड़ों में आमवाती दर्द होने पर भी बैराइटा असेटिका का प्रयोग लाभकारी होता है।

मात्रा :

बैराइटा असेटिका दूसरी और तीसरी शक्ति का चूर्ण को बार-बार दिया जा सकता है।


बैराइटा आयोडेटा (आयोडाइड ऑफ बैराइटा) (बैरा-आयो) BARYTA IODATA (IODIDE OF BARYTA)

 बैराइटा आयोडेटा (आयोडाइड ऑफ बैराइटा) (बैरा-आयो) BARYTA IODATA (IODIDE OF BARYTA) 

परिचय-

बैराइटा आयोडेटा औषधि का प्रयोग गले से संबन्धित रोगों में अधिक किया जाता है। यह औषधि लसीका प्रणाली (लाइफेथिक सिस्टम) पर अपनी प्रतिक्रिया कर खून में सफेद कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाती है। बैराइटा आयोडेटा औषधि गले के अन्य रोग जैसे गलतुण्डिका व गलक्षत को ठीक करता है। ग्रिन्थयां कठोर होना मुख्य रूप से गले की ग्रन्थियां और स्तन कठोर होने पर बैराइटा आयोडेटा औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। गर्दन की ग्रिन्थयां फूल जाने तथा रोगी का शारीरिक व मानसिक विकास रुक जाने पर भी इस औषधि के प्रयोग करने से आयोडेटा की कमी दूर हो शारीर व मस्तिष्क का सही विकास होता है। बैराइटा आयोडेटा औषधि का प्रयोग आंखों में दर्द होने पर भी करना लाभकारी होता है। अण्डकोष की पुरानी सूजन तथा अण्डकोष का कठोर होना आदि रोगों में बैराइटा आयोडेटा औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है। यह औषधि गले के रोगों को दूर कर शरीरिक और मानसिक विकास करता है।

तुलना :

बैराइटा आयोडेटा औषधि की तुलना एकोनाइट, लाइकोटोनम, लेपिस, कॉनियम, मर्क्यू आयोड और कार्बो ऐनि से किया जाता है।

मात्रा :

बैराइटा आयोडेटा औषधि 2 और 3 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।


बर्बेरिस एक्विफोलियम मैहोनिया (माउंटेन ग्रेप) BERBERIS AQUIFOLIUM MAHONIA (MOUNTAIN GRAPE)

 बर्बेरिस एक्विफोलियम मैहोनिया (माउंटेन ग्रेप) BERBERIS AQUIFOLIUM MAHONIA (MOUNTAIN GRAPE) 

परिचय-

बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि का प्रयोग मुख्य रूप से त्वचा रोगों में करने से लाभ होता है। यह औषधि चिर प्रतिश्यायी रोगों, सामान्य रूप से उत्पन्न होने वाले ऐसे रोग जो आसानी से उत्पन्न नहीं हो पाता है, यकृत की दुर्बलता, आलस्य तथा अपूर्ण रूपान्तरण संबन्धी साक्ष्य रोगों में लाभकारी होता है। इस औषधि के सेवन से सभी ग्रन्थियों को बल मिलता है और शरीर का पोषण ठीक प्रकार से होता है। बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर किया जाता है :-

1. सिर से संबन्धित लक्षण :

जिस व्यक्ति को पित्त के कारण सिर दर्द रहता है उसे बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि का सेवन करना चाहिए। कानों के ऊपर रस्सी बांधने जैसा महसूस होना तथा ऐसा दर्द होना मानो सिर से गर्म भाप निकल रहा हो। शरीर पर पपड़ीदार छाजन उत्पन्न होना आदि रोगों में बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

2. चेहरे से संबन्धित लक्षण :

जिस व्यक्ति के चेहरे पर मुंहासे, चकत्ते, फुंसियों आदि उत्पन्न हो उसे बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। यह मुंहासे आदि चेहरे के रोगों को दूर करके चेहरे को साफ करती है।

3. मूत्र से संबन्धित लक्षण :

मूत्र रोग में सुई चुभने व ऐंठनयुक्त दर्द होना। पेशाब से गाढ़ा श्लेष्मा, चमकदार लाल रंग का तलछट आदि निकलना। इस तरह के मूत्र रोगों में बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

4. त्वचा से संबन्धित लक्षण :

यदि किसी की त्वचा खुश्क, पपड़ीदार, खुरदरा हो गया हो और त्वचा पर फुंसियां उत्पन्न हो रही हो तो उसे बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि का सेवन करना चाहिए। सिर में उत्पन्न होने वाली ऐसी फुंसियां जो चेहरे और गर्दन तक फैल जाती है उसे ठीक करने के लिए इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। स्तनों पर फुंसियां उत्पन्न होने के साथ दर्द होना। दानेदार फुंसियां, मुंहासे, सूखा छाजन, तेज खुजली, ग्रन्थियों का कठोर होना आदि त्वचा रोगों में बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

तुलना :

बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि की तुलना कार्बोलिक एसिड, योनीम, बर्बेरिस बुल्गैरिस तथा हाईड्रैस्टिस से की जाती है।

मात्रा :

बर्बेरिस एक्विफोलियम औषधि के मूलार्क को अधिक मात्रा में रोगी को दिया जा सकता है। परन्तु औषधि का प्रयोग रोग के अनुसार ही करना चाहिए।


बेलाडौना (डेडली नाईटशेड) (बेला) BELLADONNA (DEADLY NIGHT SHADE)

 बेलाडौना (डेडली नाईटशेड) (बेला) BELLADONNA (DEADLY NIGHTSHADE) 

परिचय-

बेलाडौना औषधि का प्रयोग करने से इस औषधि का प्रभाव मुख्य रूप से स्नायुतन्त्र पर पड़ता है जिसके कारण सक्रिय रक्तसंकुलता, तेज उत्तेजना, ज्ञानेन्द्रियों की विशिष्ट क्रिया का पलट जाना, स्फुरण, लकवा और दर्द जैसी शांत लक्षणों को उत्पन्न कर उससे संबन्धित रोगों को जड़ से समाप्त करता है। बेलाडौना औषधि के सेवन करने से शरीर पर औषधि भिन्न प्रतिक्रिया कर विभिन्न प्रकार के लक्षणों, जैसे- शरीर गर्म रहना, त्वचा लाल होना, तमतमाता हुआ चेहरा, चमकदार आंखें, गर्दन की नाड़ियों में जलन, मन में उत्साह, सभी ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति का बढ़ जाना, शोकग्रस्त, नींद का अधिक आना, बेहोशी की स्थितियां (कोनव्युल्सीव मुवमेन्टस), मुंह और गले की खुश्की के साथ पानी पीने से घृणा, अचानक आने व जाने वाला तंत्रिकाओं का दर्द (न्युरेलरीक पैन) तथा जलन आदि लक्षणों को ठीक करता है। मिर्गी के दौरों के बाद मितली आना और उल्टी होना आदि क्रिया में बेलाडौना औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आरक्त ज्वर के लिए बेलाडौना औषधि सबसे अधिक लाभकारी होती है। इस रोग में बेलाडौना औषधि 30 शक्ति की मात्रा का सेवन करना चाहिए।

इस औषधि का प्रयोग हवाई यात्रा के समय होने वाले अनेक शिकायतों में लाभकारी है। यह औषधि भय, अधीरता और प्यास का अधिक लगना कम करता है। 

अचानक उत्पन्न होने वाले किसी रोग में तेज दर्द के लिए भी यह अधिक लाभकारी औषधि है।

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न होने वाले लक्षणों के आधार पर बेलाडौना औषधि का उपयोग :

1. मन से संबन्धित लक्षण :

मानसिक रोग से ग्रस्त रोगी अपने ही विचारों के विभिन्न रूपों में भटकटा रहता है। रोगी को अनेक प्रकार के स्वप्न आते हैं और अनेक प्रकार की चीजें दिखाई देती हैं तथा रोगी को अपने वस्तविकता के कोई ज्ञान नहीं रह जाता। मानसिक रोगी अपने अनेक विचारो में ही उलझकर चिन्तन करता रहता है। मन के कुछ ऐसे विचार भी उत्पन्न होते हैं जिसके कारण रोगी भयभीत और घबराया हुआ रहता है। मानसिक रोग से ग्रस्त रोगी को भूतप्रेत और भयानक चेहरे, प्रलाप, भय लगना, इच्छा के विरूद्ध उत्पन्न आकृतियां दिखाई देना, अधिक गुस्सा आना, दूसरे को मार डालने जैसी इच्छा पैदा होना तथा भागने जैसी मनोभावना बनी रहना आदि लक्षणों से पीड़ित रोगी को बेलाडौना औषधि का सेवन कराना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से रोगी का भय दूर होता है तथा अनचाहे रूप से दिखाई देने वाली आकृति का आना समाप्त हो जाता है। मानसिक रोग में यदि रोगी को अचेतन की स्थिति बनती रहती है तथा ज्ञानशक्ति का पलट जाने के साथ आंखों में आंसू आ जाना आदि मानसिक अवस्था के लक्षण उत्पन्न होते हैं तो रोगी को बेलाडौना औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है। इस औषधि के सेवन से मानसिक रोग में उत्पन्न होने वाले सभी लक्षण दूर होते हैं।

2. सिर रोग से संबन्धित लक्षण :

सिर से संबन्धित लक्षणों में बेलाडौना औषधि का सेवन अत्यधिक लाभकारी माना गया है। इस औषधि के सेवन से सिर से संबन्धित विभिन्न लक्षण, जैसे- सिर में चक्कर आने के साथ ही सिर के बाईं ओर या पीछे की ओर गिरने जैसा महसूस होना। त्वचा पर हल्का छूने से दर्द होना। शरीर में जलन व गर्मी होने के साथ ही हृदय धड़कने से सिर दर्द का अनुभव होना जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। इन लक्षणों में से कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को बेलाडौना औषधि का सेवन करना चाहिए।

सिर के अन्य लक्षण जैसे सर्दी-जुकाम रूकने से या अन्य कारणों से उत्पन्न होने वाला सिर दर्द। धूप में निकलने व दोपहर के बाद बढ़ने वाला सिर दर्द तथा ऐसे सिर दर्द जो शोरगुल, झटका लगना तथा लेटने के कारण भी बढ़ जाता है। सिर को दबाने से या झुकने से सिर दर्द कम हो जाता है। सिर दर्द होने पर रोगी सिर को तकिये के अन्दर रखता है, सिर पीछे की ओर खिंच जाता है और बार-बार इधर-उधर लुढ़कता रहता है। रोगी हमेशा गहरी सांस भरता रहता है, बाल बिखर जाते हैं, खुश्क रहते तथा झड़ते हैं। सिर दर्द दाईं ओर अधिक होता रहता है और लेटने पर बढ़ जाता है। सर्दी लगने तथा बाल आदि कटवाने पर भी सिर दर्द होता रहता है। इस तरह के सिर रोग से संबन्धित लक्षणों में से कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर उस लक्षणों से ग्रस्त रोगी को बेलाडौना औषधि का सेवन कराना चाहिए। बेलाडौना औषधि के प्रयोग से सिर से संबन्धित सभी प्रकार के लक्षण दूर होते हैं।


3. चेहरे से संबन्धित लक्षण :

यदि किसी व्यक्ति का चेहरा लाल, नीला लाल, गर्म, सूजा हुआ तथा चमकदार हो गया है। चेहरे की पेशियों में सुन्नता आ गई है, ऊपर वाला होंठ सूजा हुआ है, चेहरे के स्नायुओं में दर्द रहता है तथा स्फुरणशील पेशियां हैं तो इस तरह के चेहरे से संबन्धित लक्षणों में बेलाडौना औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है।

4. आंखों से संबन्धित लक्षण : 

यदि किसी व्यक्ति को लेटने से आंखों की गहराई में जलन होती है। नेत्रपटल फैल गया है। आंखों की सूजन और आंखें बाहर की ओर फैली हुई महसूस हो, आंखें स्थिर हो गई हो, चमकदार, श्वेतपटल लाल और खुश्क हो गया है और उसमें जलन होती है। तेज रोशनी बर्दाश्त न कर पाता है तथा आंखों में गोली लगने जैसा दर्द होता। नेत्रोत्सेध (एक्सोफ्थालम्युस) आंखों का वह रोग जिसमें आंखें बाहर निकल आती है। सोने पर अनेक प्रकार की आकृति दिखाई देती हैं। अंग गिरते हुए दिखाई देता है। आंखों के ऐसे लक्षण जिसमें व्यक्ति को सामान्य से अधिक वस्तु दिखाई देती हैं। तिर्येकदृष्टि (स्क्वाइटींग), पलकों की ऐंठन। आंखें बंद करने पर भी आंखें अधखुले जैसा लगना। पलकों की सूजन तथा आंखों के निचले भाग में खून का जमाव होना आदि आंखों से संबन्धित रोगों में बेलाडौना औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे आंखों के सभी रोग दूर होते हैं और आंखों में ठण्डक व मन में शान्ति का अनुभव होता है।

5. कानों से संबन्धित लक्षण :

कान से संबन्धित विभिन्न लक्षण जैसे- कान के बीच भाग में और बाहर चीरने-फाड़ने जैसा दर्द होना। कानों में भिनभिनाहट जैसी आवाज सुनाई देना। कान की झिल्ली फूल जाना और खून का जमाव होना। कान के निचली ग्रन्थियों में सूजन आ जाना जिसके कारण ऊंची आवाज सुनाई न देना। सुनने की शक्ति बढ़ जाना। कान के बीच में सूजन होना। तेज दर्द के कारण रोने की स्थिति बन जाना। बच्चे में कान रोग से संबन्धित लक्षण उत्पन्न होने पर बच्चे सोते-सोते ही अचानक दर्द के कारण जाग उठता है। कान के अन्दर जलन व स्पन्दनशील दर्द होना जो हृदय की धड़कन से सम्पर्क रखता है। कान का फोड़ा जिसमें खून भरा रहता है। कान की नली की नयी या पुराने रोग उत्पन्न होने पर। अपनी आवाज अपने कानों में गुंजते रहते रहने जैसा लक्षण। इस तरह के कान से संबन्धित लक्षणों से कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को बेलाडौना औषधि देना चाहिए। बेलाडौना औषधि के प्रयोग से कान से संबन्धित उत्पन्न होने वाले सभी लक्षण समाप्त होते हैं और साथ ही कान के स्राव, सूजन, दर्द तथा अन्य कानों के आन्तरिक रोग भी ठीक होते हैं।

6. नाक से संबन्धित लक्षण :

नाक की नोक में सुरसुराहट होना। नाक से होने वाले स्राव में दुर्गंध आना। नाक सूजकर लाल हो जाना। नकसीर अर्थात नाक में निकलने वाली छोटी-छोटी फुसिंयों के फूट जाने के साथ ही दर्द से चेहरा लाल हो जाना। तेज जुकाम और नाक से निकलने वाले द्रव्य में खून का मिला होना आदि नाक से संबन्धित लक्षणों में से किसी भी लक्षण से ग्रस्त रोगी को बेलाडौना औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे नाक के रोग ठीक होते हैं तथा दर्द आदि कम होता है।

7. मुंख से संबन्धित लक्षण :

मुंह में खुश्की होने के साथ दांतों में जलनयुक्त दर्द होना। मसूढ़ों में फोड़ा होना तथा जीभ के किनारे लाल दिखाई देना। जीभ पर झरबेर की रंगत के छोटे-छोटे लाल दाने निकल आना। दांतों में सबसबाहट होने के कारण दांतों को पीसना, जीभ का सूज जाना और हकलाहट उत्पन्न होना आदि मुंह से संबन्धित लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को बेलाडौना औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

8. गले से संबन्धित लक्षण :

किसी कारण से गला बिल्कुल सूख जाना और गले में पानी की कमी महसूस होना। अत्याधिक रक्तसंकुलता (कोनगेशन) अर्थात खून का एकत्रित होना। गले का रंग लाल होना दायीं ओर अधिक लाल होना।

किसी कारण से गलतुण्डिकायें अर्थात गले की ग्रन्थि का बढ़ जाना। गले में घुटन महसूस होना। भोजन आदि निगलने में परेशानी होना। गले में कुछ फंसने जैसा अनुभव होना। आहार नली सूखा महसूस होना तथा गले का सिकुड़ा हुआ महसूस होना।

गले में ऐंठन सा दर्द होना। बार-बार निगलने की आदत बन जाना तथा ऐसा महसूस होना मानो गला खरोंचा जा रहा है। 

इस तरह के गले लक्षणों से ग्रस्त रोगी को बेलाडौना औषधि का सेवन कराना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग में जल्द आराम मिलता है।


9. आमाशय से संबन्धित लक्षण :

आमाशय का रोग ग्रस्त होने से भूख का न लगना। मांस और दूध से मन का भटक जाना। ऐंठन वाला दर्द होना। आमाशय का सिकुड़ जाना तथा आमाशय से उत्पन्न होने वाले दर्द का रीढ़ की हड्डी तक फैल जाना। रोग में मितली और उल्टी की इच्छा बना रहना। प्यास का अधिक लगना विशेषकर ठण्डे पानी को पीने की इच्छा अधिक करना। आमाशय में ऐंठन से दर्द होना, सूखी उबकाइयां, तरल पदार्थो से घृणा तथा बेहोश पैदा करने वाली हिचकी का आना। पानी से डरना तथा उल्टी होने पर बिना रुके उल्टी करना। इस तरह के आमाशय से संबन्धित लक्षणों से ग्रस्त रोगी को बेलाडौना औषधि का सेवन करना चाहिए। इससे आमाशय से संबन्धित सभी रोग ठीक होते हैं।

10. मल रोग से संबन्धित लक्षण :

पतला दस्त आना, हरे रंग का दस्त आना दस्त में आंव का आना आदि मल रोग में बेलाडौना औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है। शौच करते समय सर्दी लगना। मलाशय में डंक मारने जैसा दर्द होना तथा ऐंठन वाला दर्द होना। मल रुकने से गैस बनना तथा गैस के कारण बवासीर रोग उत्पन्न होना तथा कमर दर्द होना आदि मल रोग में बेलाडौना औषधि का प्रयोग करना लाभकारी है। इससे बवासीर में होने वाले मस्से सूख जाते हैं और कब्ज आदि भी दूर होता है। गुदा का चिर जाना (प्रोलेप्सस एनी) आदि में भी बेलाडौना औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

11. मूत्र रोग से संबन्धित लक्षण :

मूत्र रोग से संबन्धित लक्षण जैसे- पेशाब रुक जाना अथवा मूत्र नली में होने वाले अन्य रोग। पेशाब नली में कीड़ा रेंगने जैसा महसूस होना। पेशाब का कम मात्रा में आना तथा कूथने की आदत बन जाना। पेशाब का रंग गहरा, फास्फेट से भरपूर होना। मूत्राशय वाले भाग स्पर्शकातर होना। पेशाब का बार-बार आना या पेशाब का बूंद-बूंद कर आना। पेशाब बार-बार और अधिक मात्रा में आना। पेशाब से खून का आना। पुर:स्थग्रन्थियां बढ़ जाना आदि लक्षण। इस तरह के लक्षण जिन व्यक्तियों में उत्पन्न होता है उसे बेलाडौना औषधि का सेवन करना चाहिए।

12. पुरुष रोग के लक्षण :

अण्डकोष का कठोर होने के साथ अण्डकोष में खिंचाव और जलन उत्पन्न होना। जननांगों पर रात को अधिक पसीना आना। पुर:स्थ द्रव्य(प्रोस्टैटीक फ्ल्युइड) बहना। संभोग की इच्छा कम हो जाना। इस तरह के पुरुषों में उत्पन्न होने वाले लक्षणों में रोगी को बेलाडौना औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है। इस औषधि के प्रयोग से नपुंसकता दूर होती है और पुरुष शक्ति बढ़ती है।

13. स्त्री रोग के लक्षण :

स्त्रियों में होने वाले कुछ ऐसे रोग जिसमें शरीर के निचले अंगों में दबाव जैसा दर्द अन्तरंग जननांगों पर फैल जाते हैं तथा योनि सूखी और गर्म रहती है। जांघों के आर-पार खिंचाव होने जैसा दर्द होता। त्रिकास्थि में दर्द होता रहता है। मासिक धर्म संबन्धी परेशानी जैसे मासिक धर्म का अधिक मात्रा में आना, खून चमकता हुआ लाल रंग का आना, समय से पहले ही मासिक धर्म का अधिक मात्रा में आना तथा खून का गर्म रहना। एक नितम्ब से दूसरे नितम्ब तक काटता हुआ दर्द होना। मासिक धर्म और सूतिकास्राव के साथ गर्म व बदबूदार स्राव होना। अचानक उत्पन्न होने वाला प्रसव दर्द जो अपने आप समाप्त हो जाता है। स्तनों में जलन होना, जलन युक्त दर्द होना, रंगत लाल होना, एक स्तन से दूसरे स्तन तक लाल लकीरें बनना। स्तनों का भारी हो जाना और स्तनों कठोर व लाल रंग का हो जाना। स्तनों में गांठ होना (ट्युर्मस ऑफ ब्रैस्ट) होना तथा लेटने पर दर्द होना। रक्तस्राव अधिक बदबूदार, गर्म और तेजी से स्राव होना। सूतिकास्राव (लोकिया) की मात्रा कम होना। इस तरह के स्त्री रोग से संबन्धित लक्षणों में बेलाडौना औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है। इससे मासिक धर्म संबन्धी सभी रोग दूर होते हैं और दर्द व अन्य स्त्री रोग भी ठीक होता है।

14. सांस संस्थान से संबन्धित लक्षण :

नाक में खुश्की होना, गलतोरणिका (फोसेस), स्वरयंत्र और सांस नली में खुश्की होना। गले में गुदगुदी के साथ सूखी खांसी आना जो रात को बढ़ जाती है तथा स्वरयंत्र में दर्द अनुभव होना। दम घुटने जैसा अनुभव होना तथा सांस क्रिया का बढ़ जाना। सांस रोग। आवाज कर्कश तथा आवाज का खराब होना। असहनीय दर्द वाला कर्कशता। खांसी के साथ बायें कूल्हे में दर्द होना। खांसी रुक-रुक कर आना, काली खांसी होने पर आमाशय में दर्द होना और बलगम के साथ खून आना। खांसते समय सुई चुभन जैसा दर्द होना। स्वरयंत्र में कुछ अटकने जैसा दर्द होना जिसके कारण खांसी उत्पन्न होना। तेज आवाज। सांस लेते व छोड़ते समय कराहना। सांस से संबन्धित इन लक्षणों में से कोई भी लक्षण से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए बेलाडौना औषधि का सेवन कराना लाभकारी है। इससे सांस के सभी रोग व दर्द समाप्त होते हैं।

15. हृदय से संबन्धित लक्षण :

हृदय रोग के कारण धड़कन तेज रहती है और धड़कन की प्रतिक्रिया सिर में अनुभव होती है साथ ही रोगी को सांस लेने में कठिनाई महसूस होती है और हल्का काम करने पर भी धड़कन की गति बढ़ जाती है। रोगी व्यक्ति के पूरे शरीर में जलन वाला दर्द होता है। रोगी को दो हृदय की धड़कने सुनाई देती जो शरीर के किसी छिद्र से खून बहने का संकेत देती हैं। अचानक ऐसा लगता है मानो हृदय अधिक बढ़ गया है। नाड़ी की गति तेज होने के साथ उसमें कमजोरी आ जाना। हृदय से संबन्धित इन लक्षणों में रोगी को ठीक करने के लिए बेलाडौना औषधि का प्रयोग किया जाता है। इससे धड़कन की गति सामान्य होती है और रोग ठीक होता है।

16. बाहरी अंगों के लक्षण :

यदि किसी व्यक्ति को हाथ-पैरों में गोली लगने जैसे लक्षण वाले दर्द महसूस होते हैं। जोड़ों में सूजन आ जाती है, सूजन वाले स्थान चमकदार लाल रंग का हो जाता है और उस पर लाल रंग की लकीरें बन जाती हैं। रोगी व्यक्ति लड़खड़ाकर चलता है, चलने पर गठिया दर्द बढ़ जाता है। प्रसव के बाद जांघों के ऊपरी हिस्से में दर्द व जलन होता हो। सभी अंगों में झटका महसूस होता हो। अंगों में लकवा मार जाने जैसा महसूस होता है। लड़खड़ाने पर अपने आप को स्थिर होने में परेशानी तथा हाथ-पैरों का ठण्डा पड़ जाना। इस तरह के बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए बेलाडौना औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से अंगों का दर्द, जलन व कमजोरी आदि सभी लक्षण दूर होते हैं।

17. गर्दन से संबन्धित लक्षण :

गर्दन से संबन्धित विभिन्न लक्षण जैसे-गर्दन का अकड़ जाना। गर्दन की ग्रन्थियों में सूजन आ जाना। गर्दन के जोड़ों में ऐसा दर्द महसूस होना मानो किसी ने गर्दन तोड़ दिया हो। इस तरह के लक्षणों से ग्रस्त रोगी को बेलाडौना औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

18. कमर से संबन्धित लक्षण :

पीठ पर तेज दर्द होने के साथ कमर, कूल्हों व जांघों में दर्द होना आदि कमर रोगों में बेलाडौना औषधि का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

19. त्वचा से संबन्धित लक्षण :

त्वचा में रूखापन और सूजन आ जाना, त्वचा छूने से दर्द होना, त्वचा में जलन होना, त्वचा के आरक्त दाने जो फैलता है। लाल रंग का रक्तिम दाग और चेहरे पर फुन्सियां। ग्रन्थियां सूजी में सूजना होना। लाल फोड़ें। गुलाबी मुंहासे तथा पीब युक्त घाव होना। त्वचा का रंग लाल और पीला होना तथा त्वचा पर जलन पैदा होकर उस स्थान को कठोर बना देना आदि त्वचा से सम्बंधित लक्षणों में बेलाडौना औषधि का प्रयोग लाभकारी है। इससे त्वचा से संबन्धित सभी रोग ठीक होते हैं।

20. बुखार(ज्वर) :

अत्यधिक बुखार होने के साथ बुखार में तेजी उत्पन्न होना और शरीर से दूषित द्रव्य का कम निकलना। पूरे शरीर में बुखार के कारण जलन, तीखी, तेज गर्मी का बनना। पैर बर्फ जैसा ठण्डा हो जाना। ऊपर की खून की नली तनी हुई होना। सिर को छोड़कर पूरे शरीर में तेज पसीना आना तथा बुखार के कारण प्यास अधिक लगना आदि बुखार होने पर बेलाडौना औषधि का सेवन किया जाना लाभकारी होता है।

21. नींद से संबन्धित लक्षण :

नींद न आने से बेचैनी बना रहना, सोते-सोते अचानक चिलाकर उठ बैठना और सोते हुए दांत किटकिटाना। रक्तवाहिकाओं में जलन के कारण नींद पूरी न होना और नींद में चिल्लाना। अनिद्रा रोग में परेशानी के बाद नींद आने पर नींद में ही चौंक पड़ना। हाथों को सिर के नीचे रखकर सोना आदि नींद से संबन्धित लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए बेलाडौना औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। इससे अनिद्रा रोग में अधिक लाभ मिलता है। इससे नींद अच्छी आती है और नींद न आने से होने वाली थकावट दूर होती है। 

वृद्धि : 

रोगग्रस्त स्थान को छूने से, क्षेप और हवा लगने पर, शोरगुल, दोपहर के बाद तथा लेटने पर रोगी में बढ़ता है।

शमन : 

झुकने से रोगी को आराम मिलता है।

तुलना :

बेलाडौना औषधि की तुलना सैग्वीसोरवा आफिसिनैलिस 2x 6x से किया जाता है। इसके अतिरिक्त मेण्ड्रेगोरा, स्ट्रामोनियम, होइट्जिया तथा एट्रोपिया से किया जाता है।

प्रतिविष :

बेलाडौना औषधि के प्रयोग करने में असावधानी के कारण यदि कोई हानि होती है तो उस हानि को रोकने के लिए कैम्फर, काफि, ओपियम और ऐकोनाइट औषधि का प्रयोग किया जाता है। 

पूरक :

कल्केरिया औषधि बेलाडौना औषधि का पूरक औषधि है। यह अधिकतर कुछ दिन पुराने रोग तथा परम्परागत रूप से एक दूसरे से होने वाले रोगों में भी लाभकारी है।

मात्रा :

बेलाडौना औषधि के 1 से 3 शक्ति या उच्च शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। किसी नये रोग के रोगी में बेलाडौना औषधि का प्रयोग बार-बार किया जा सकता है।


बैराइटा म्यूरिएटिका (बेरियम क्लोराइड) (बैरा-म्यूरि) BARYTA MURIATICA (BARIUM CHORIDE)

 बैराइटा म्यूरिएटिका (बेरियम क्लोराइड) (बैरा-म्यूरि) BARYTA MURIATICA (BARIUM CHORIDE) 

परिचय-

बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का उपयोग बूढ़े व्यक्तियों में जैवी विक्षतियों (औरगैनिक लेसंस) तथा मानसिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार के विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। बुढ़ापे में उत्पन्न होने वाले धमनी की कठोरता एवं मस्तिष्क संबन्धी रोग में भी बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह बुढ़ापे में होने वाले सिर दर्द, सिर का भारीपन, मस्तिष्क में खून की कमी के कारण चक्कर आना और कानों में आवाज सुनाई देना आदि लक्षणों में भी बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का उपयोग किया जाता है। बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का प्रयोग पोषण नली (एलीमेंट्री केनल) के लिए किया जाता है जिसका प्रभाव मुख्य रूप से मलाशय, पेशियों और जोड़ों पर पड़ता। इससे शारीरिक कमजोरी और शरीर की अकड़न दूर होती है। इस औषधि के प्रयोग से शरीर में सफेद रक्तकणों की वृद्धि होती है और वाहिका प्रजनन (वेस्कुलर डीजनरेशन) ठीक रहता है। यह औषधि नाड़ियों में उत्पन्न होने वाले तनाव को दूर करती है। यह औषधि उच्च प्रकुंचन दबाव के अनुपात में निम्न अनुशिथिलन तनाव के साथ मानसिक तथा हृदय संबन्धी लक्षणों में लाभकारी होता है। बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि अनेक प्रकार के रोग जैसे पाचन क्रिया ठीक करना, दस्त का अधिक आना, उल्टी, मिचली, ओकाई, पेट में दर्द आदि में प्रयोग किया जाता है। बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि में हृदयद्वार की कठोरता एवं सिकुड़न को दूर करने की शक्ति पाई जाती है। यह भोजन करने के तुरन्त बाद हृदय में उत्पन्न होने वाले दर्द को दूर करता है। पेट स्पर्शकतार हो जाता है। बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का प्रयोग धमनी विस्फार तथा गलतुण्डिका के जीर्ण विवर्धन में भी लाभकारी होता है।

जननेन्द्रिय रोग :

स्त्री और पुरुष दोनों में अधिक कामवासना उत्पन्न होने पर भी इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह आक्षेप तथा पागलपन की ऐसी अवस्था जिसमें सम्भोग की इच्छा बनी रहती है और आत्महत्या की भावना पैदा होती है। आरिगेनम, प्रसूति के लिए प्लैटि तथा पुरुष को ऐसिड पिक्रि, कैन्थर व शराबियों की तरह लक्षण पैदा होता है। इस तरह के स्त्री-पुरुष रोगों में बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का सेवन करना चाहिए। इससे कामवासना दूर होती है।

पक्षाघात(लकवा) से सम्बंधित लक्षण :

पक्षाघात की ऐसी स्थिति जिसमें शरीर बर्फ की तरह ठण्डा हो जाता है। इस तरह के पक्षाघात में बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का प्रयोग पक्षाघात को ठीक करता है। यह औषधि मस्तिष्क और मेरूदण्ड की कठोरता तथा पेशियों की शक्ति कम हो जाती है। इन्फ्लुएंजा और डिफ्थीरिया के बाद आंशिक पक्षाघात, सुबह के समय सुस्ती, हाथ-पैरों में कमजोरी, पेशियों में अकड़न आदि में भी बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का सेवन करना चाहिए।

जिस बच्चे को मुंह खोलकर हर समय रहने की आदत हो उसे भी यह औषधि दी जा सकती है। बुद्धिहीन तथा बहरेपन में भी यह औषधि लाभकारी है।

कान रोग से सम्बंधित लक्षण :

कानों में भिनभिनाहट, किसी चीज को चबाते या निगलते समय या छींकते समय कानों में आवाज होना। कानों का ऐसा दर्द जो ठण्डे पानी पीने से ठीक हो जाता हो। कान के जड़ में सूजन आ जाना तथा कानों से बदबूदार पीब का निकलना। नाक साफ करने से कान के बीच का भाग फैल जाना आदि कानों के रोगों में बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का प्रयोग करें। इससे कान के सभी रोग ठीक होते हैं।

गले का रोग :

गले के रोग से ग्रस्त होने पर भोजन निगलने में परेशानी होती है। गले की ग्रिन्थयां सूज जाती है तथा कम्बुकर्णी नलियों में सुन्नता अनुभव होना साथ ही छींकें और कानों में आवाजें आना। ऐसा महसूस होना मानो गले की नली अधिक फैल गई हो। इस तरह के गले के रोग में बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का सेवन करना चाहिए।

श्वास रोग से सम्बंधित लक्षण :

बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का प्रयोग सांस रोग में किया जाता है। इस औषधि का प्रयोग बुढ़ापे में सांस नली में उत्पन्न सूजन तथा हृदय के फैल जाने से होने वाली परेशानी में किया जाता है। यह औषधि फेफड़ों में जमी हुई बलगम को निकालता है। हृदय की नाड़ियों में कठोरता को दूर करने में किया जाता है। यह बुढ़ापे के कारण सांस रोग में धमनियों के तनाव को कम करता है।

आमाशय रोग :

आमाशय रोग के कारण अधिजठर में खालीपन महसूस होना। उबकाई और वमन आना तथा सिर की ओर चढ़ती हुई गर्मी का अनुभव होना आदि आमाशय रोग में बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का प्रयोग सावधानी के साथ किया जा सकता है।

मूत्र रोग :

पेशाब में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है तथा क्लोराइड पदार्थ कम हो जाता है। मूत्र रोग में बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि का सेवन करें।

पेट के रोग :

पेट के विभिन्न रोग जैसे जलन, क्लोमगन्थि की कठोरता, पेट की धमनियों का फैल जाना, वक्षण ग्रन्थियों की सूजन तथा मलाशय में आक्षेपयुक्त दर्द आदि में बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि के सेवन से लाभ मिलता है।

तुलना :

बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि की तुलना प्लम्बम आयोड, औरम म्यूरि से किया जाता है।

मात्रा :

बैराइटा म्यूरिएटिका 3x या 200 शक्ति सेवन किया जा सकता है। यह औषधि रोगों में धीरे-धीरे असर करती है। अत: इसकी मात्रा को दोहराया जा सकता है।

सावधानी :

बैराइटा म्यूरिएटिका औषधि को मात्रा से अधिक सेवन करने पर रोगी में कुबड़ापन आ सकता है। इस औषधि से शरीर में सफेद रक्तकण बढ़ता है। अत: इसके अधिक सेवन से चेहरा सफेद सा हो जाता है।


एवेना सैटाइवा (Avena Sativa)

 एवेना सैटाइवा (Avena Sativa)

परिचय-

एवेना सैटाइवा औषधि मस्तिष्क तथा स्नायु प्रणाली पर विशेष क्रिया करती है। शरीर में किसी प्रकार से टी.बी (क्षय) रोग होने या कमजोरी लाने वाली बीमारी के बाद इसका सेवन करने से शरीर जल्दी पुष्ट और रोगी ताकतवर हो जाता है। समस्त स्नायु और मस्तिष्क का ठीक प्रकार से काम न करने के कारण स्नायुविक सुस्ती, सैक्स क्रिया का कम हो जाना, नींद न आना अनजाने में वीर्य का निकल जाना, बहुत दिनों तक वीर्य का अपने आप निकल जाने से रोगी में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है तथा शराब पीने के कारण उत्पन्न स्नायु रोग आदि को ठीक करने के लिए एवेना सैटाइवा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

एवेना सैटाइवा औषधि की सेवन से अफीम और मार्फिया की आदत छूट जाती है और किसी प्रकार की हानि भी नहीं होती है।

लकवा रोग (पारालाइसीस अगीटैंस), मिर्गी रोग, डिफ्थीरिया रोग के बाद होने वाला लकवा रोग तथा आमवात रोग को ठीक करने के लिए एवेना सैटाइवा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सर्दी-जुकाम तथा नजला रोग को ठीक करने के लिए एवेना सैटाइवा औषधि की 20, 20 बूदों की मात्रा को गुनगुने पानी में डालकर सेवन करें तथा इसका सेवन एक-एक घंटे के बाद करना चाहिए।

एवेना सैटाइवा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- 

* स्त्रियों को मासिकधर्म के शुरु होने के समय में होने वाला स्नायुविक सिरदर्द के साथ खोपड़ी में जलन होने पर एवेना सैटाइवा औषधि का उपयोग लाभदायक है।

* सिर के पीछे के भाग में दर्द (ओस्सीपिटल हैडेक) होने के साथ पेशाब में फास्फेट पदार्थ का आना।

* मासिकधर्म के समय में अधिक कष्ट होना तथा शरीर में खून की कमी होना।


इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एवेना सैटाइवा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- पेट में अधिक वायु हो जाने के कारण पेट का फूलना, स्नायुशूल (नाड़ियों में दर्द होना), कई घंटे के बाद ही ऊपरी पेट में इसी प्रकार का दर्द होना, बार-बार पीले रंग के दस्त आना, मलद्वार में जलन होना। इस प्रकार के लक्षण होने पर एवेना सैटाइवा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

अल्फालफा औषधि की तुलना एवेना सैटाइवा औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

एवेना सैटाइवा औषधि की मूलार्क की 10 से 20 बूंदों की मात्राओं तक गर्म पानी से सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है।

एजाडिरेक्टा इण्डिका (Azadirachta Indica)

 एजाडिरेक्टा इण्डिका (Azadirachta Indica)

परिचय-

एजाडिरेक्टा इण्डिका औषधि का हिन्दी नाम नीम है। इस औषधि का उपयोग साधारण फोड़ा, घाव तथा दूषित घाव इत्यादि में ही प्रयोग किया जाता है। नीम की छाल को सुखाकर खूब महीन कूटकर पीस लें और जब किसी रोगी को बुखार हो तो उसे तीन चार घंटे के अन्तराल पर इस औषधि की खुराक देना चाहिए जिसके फलस्वरूप बुखार ठीक हो जाता है, इसके बाद कमजोरी को दूर करने के लिए दिन भर में दो से तीन बार नीम की छाल का काढ़ा बनाकर पिलाने से शरीर जल्दी ही स्वस्थ्य हो जाता है। एजाडिरेक्टा इण्डिका औषधि का प्रयोग बुखार तथा शरीर के विभिन्न भागों के जोड़ों में दर्द को ठीक करने के लिए किया जाता है। छाती की हडि्डयों, कमर, कंधों, पसलियों और हाथ-पैरों में दर्द तथा हाथ-पैरों की उंगलियों में जलन को दूर करने के लिए इस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मन उदास रहना, कुछ भी याद नहीं रहना, बाहर जाने या घूमने फिरने से डर लगना, चक्कर आना, सिर में दर्द होना, थोड़ी ही सर्दी से आंखों में लाली पड़ जाना तथा जलन होना, शरीर के ऊपरी भाग से अधिक पसीना निकलना, चेहरा फीका पडना, गले तथा मुंह के अन्दर अधिक लार आना, प्यास न लगना, मुंह चिपचिपा होना, पानी पीने के बाद भी प्यास नहीं बुझना, छाती में जलन होना, पेट फूलना, पेट में गड़बड़ी होना, कब्ज की शिकायत अधिक होना, सुबह के समय में देर से स्नान करने से खांसी होना, सांस लेने में खिंचाव महसूस होना, नाड़ी की गति तेज होना, हाथ-पैर सुन्न होना, हथेली व तलवे में जलन होना आदि इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोगों को ठीक करने के लिए एजाडिरेक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

एजाडिरेक्टा इण्डिका औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को भूलने की आदत पड़ गई हो, चक्कर आ रहा हो, सिर में दर्द हो रहा हो, आंखों में जलन तथा दायें नेत्रगोलक में दर्द हो रहा हो तो इन लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरेक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बुखार से सम्बन्धित लक्षण :- हाथों में ठण्ड लगना, दोपहर के बाद बुखार होना, चेहरे तथा हाथों और पैरों में आग की तरह जलन होना तथा शरीर के ऊपरी भाग से अधिक पसीना निकलना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरेक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

सेड्रान, आर्सेनिक तथा नेट्रम म्यूरि औषधियों की तुलना एजाडिरेक्टा इण्डिका औषधि से की जाती है।

मात्रा :-

एजाडिरेक्टा इण्डिका औषधि की 6, 30, 200 शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


एजाडिरैक्टा इण्डिका - AZADIRACHTA INDICA

 एजाडिरैक्टा इण्डिका AZADIRACHTA INDICA

परिचय-

एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का प्रयोग कई प्रकार के रोगो को ठीक करने के लिए किया जाता है जो इस प्रकार हैं- पीनस (ओजिना), खुजली (ऐसी खुजली जिसमें से पानी की तरह पीब निकलता है) तथा विम्बिका (पेम्हिगस) रोग। एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी हर समय निराश रहता है, याददाश्त कमजोर हो जाती है, किसी भी शब्दों को लिखते समय मात्राओं की गलती करता है, किसी भी व्यक्ति के नामों को याद नहीं रख पाता है, वह एक दिन की बातों को दूसरे दिन याद नहीं रख पाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को चक्कर आते रहते हैं तथा सुबह दस बजे अधिक चक्कर आता है, जब वह बैठकर उठने की कोशिश करता है तो उसे अधिक चक्कर आता है, सिर में दर्द होता रहता है, जब रोगी खुली हवा में झुकने का कार्य करता है तो उसके सिर में और भी तेज दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग लाभकारी है।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर में दर्द होता रहता है, तथा इसके साथ ही उसके आंखें लाल हो जाती है तथा उसमें जलन होने लगती है, सिर भारी-भारी महसूस होता है, दायें नेत्रगोलाक में दबाव महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि उपयोग करना चाहिए।

कान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के कानों में भिनभिनाहट महसूस होती है अर्थात रोगी को ऐसा लगता है कि उसके कानों में गुदगुदी हो रही है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

नाक से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के कान से पानी जैसा पदार्थ निकलने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को प्यास बहुत कम लगती है, मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है, मुंह चिपचिपा हो जाता है, जीभ जलनशील तथा दर्द युक्त हो जाती है, रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जीभ गर्म पानी से जल गया हो, लार अधिक निकलता है तथा लार का स्वाद नमकीन होता है, खाने को निगलने में कठिनाई होती है, पानी तथा मांस को निगलने में और भी अधिक कठिनाई होती है, अत्यधिक प्यास लगती है, रोगी को कभी-कभी प्यास बिल्कुल नहीं लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- गले में जलन होने पर एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करने से गले का जलन ठीक हो जाता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बेचैनी होती है, पेट में वायु बनने लगती है और जब यह वायु मलद्वार से बाहर निकलता है तो अधिक बदबू आती है, पाचनतंत्र में होने वाला दर्द होता है, नाभि के आस-पास के भाग में चुभन जैसा दर्द होता है जो रोगी को आगे की ओर झुकने लिए बाध्य कर देता है तथा इसके साथ-साथ ही हृदय में जलन होने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि उपयोग करना उचित होता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बहुत कम मात्रा में मलत्याग होता है तथा कब्ज की शिकायत हो जाती है, रोगी जब मलत्याग करता है, मल कठोर तथा सख्त होता है और इसके साथ ही रोगी के आंतों में जलन होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

पुरुष रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के प्रजननांगों में भारी उत्तेजना होती है, पेशाब बहुत कम आता है, पेशाब का रंग गाढ़ा होता है तथा जलन पैदा करने वाला होता है और उससे बदबू आती है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी जब दोपहर के समय में स्नान कर लेता है तो उसे अधिक खांसी होने लगती है, बलगम सफेद गाढ़ा रंग का होता है, रोगी को बहुत अधिक परेशानी होती है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर के कई भागों में सुन्नपन महसूस होती है, तलुओं तथा हथेलियों में जलन होता है, शरीर के कई अंगों के जोड़ों में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बहुत कम नींद आती है तथा वह सोते समय बिस्तर पर करवट लेता रहता है, रोगी को रात के समय में सपने आते रहते हैं तथा सपने में ऐसा लगता है कि वह लड़ रहा है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के त्वचा पर खुजली होती है, उसके इस रोग का उपचार करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुखार हो जाता है तथा इसके साथ ही रोगी को सर्दी या जुकाम भी होता है, रोगी को बुखार चार बजे शाम से शुरु होता है और आठ बजे तक रहता है, शरीर के कई भागों में जलन तथा गर्मी होने लगती है, रोगी को पसीना बहुत अधिक आता है, रोगी के गर्दन, माथे तथा शरीर के अन्य भागों से पसीना अधिक आता है तथा शरीर के निचले भागों से पसीना नहीं निकलता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

मात्रा :- 

एजाडिरैक्टा इण्डिका औषधि की 6, 30, 200 शक्तियां का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस (Astacus Fluviatilis)

 अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस (Astacus fluviatilis)

परिचय-

अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस औषधि का प्रयोग चर्म रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है। अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को पूरे शरीर पर ठण्डक महसूस होती है और खुजली होने लगती है, लसीका ग्रंथियां बढ़ जाती हैं, साथ ही दुग्ध निर्मोक विसप और जिगर में कुछ खराबियां उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

बुखार से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बहुत सर्दी लगती है, हवा बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती है, कपड़े उतारने पर परेशानी अधिक बढ़ जाती है और इसके साथ तेज बुखार हो जाता है और सिर में दर्द होने लगता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस औषधि का उपयोग लाभकारी है।

पीलिया से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की ग्रंथियां में सूजन आ जाती है तथा इसके साथ ही उसे पीलिया रोग हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध :-

रस, होमर, बाम्बिकस तथा एपिस औषधियों की तुलना अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

अस्टेकैस फ्लूवियाटिलिस औषधि की 3 से 30वीं शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


आस्टेरियस रुबेन्स (ASTERIAS RUBENS)

 आस्टेरियस रुबेन्स (ASTERIAS RUBENS)

परिचय-

जो व्यक्ति मोटे थुलथुले और जिनकी प्रकृति साइकोटिक (प्रमेह-विष-दूषित) है, इस प्रकार के रोग को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग करना चाहिए। स्नायु रोग, हिस्टीरिया, कोरिया रोग (ताण्डव रोग) को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग करना चाहिए। आस्टेरियस रुबेन्स औषधि कई प्रकार के कैंसर रोग जैसे-स्तन कैंसर तथा शरीर के किसी भी भाग के कैंसर रोग को ठीक करने में उत्तम है। इस औषधि के प्रभाव से इस प्रकार के कैंसर ठीक हो जाते हैं। स्त्री तथा पुरुष की कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए इसका उपयोग उत्तम है।

स्त्रियों को सिर में दर्द तथा गर्भाशय और स्तन में दर्द तथा जलन होने लगता है तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग करना चाहिए।

यदि किसी रोगी के स्तन पर चमकीला लाल दाग दिखाई पड़ता है, जो फट जाता है और उसमें से पीब जैसे पदार्थों का स्राव होने लगता है। ऐसा घाव धीरे-धीरे सम्पूर्ण स्तन को रोग ग्रस्त कर देता है, स्तन से जो पीब जैसा पदार्थ निकलता है उसमें से बदबू आती है, घाव के किनारों पर पीलापन रहता है तथा घाव का तल लाल हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि उपयोग करना चाहिए।

आस्टेरियस रुबेन्स औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को किसी दूसरे व्यक्ति का विरोध बर्दाश्त नहीं होता है, मस्तिष्क में झटके लगते हैं और गर्मी महसूस होती है। रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे गरम हवा ने उसको घेर रखा हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग करना चाहिए।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी का चेहरा लाल हो जाता है, नाक के दोनों ओर तथा ठोढ़ी पर और मुंह पर दाने निकल आते हैं, यौवन प्राप्ति के समय में चेहरे पर मुहासें निकलने लगते हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :- स्त्रियों के पेट में दर्द होने लगता है तथा इसके साथ ही अन्य मासिकधर्म से सम्बन्धित रोग हो जाना, स्तन में सूजन होना तथा उनमें दर्द होना, बायें स्तन में अधिक कष्ट होना, स्तन में घाव होना तथा दर्द होना, बायें हाथ की उंगलियों में दर्द होना, इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी को बहुत अधिक परेशानी होती है। संभोग करने की उत्तेजना बढ़ जाती है तथा इसके साथ ही मन में कई ऊट-पटांग बाते आने लगती हैं। स्तन-ग्रन्थि में गांठें पड़ जाती है और कठोरता आ जाती है, लगातार हल्का-हल्का दर्द होता है और उनके आस-पास की स्नायु (नाड़ी) में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण स्त्री रोगी को है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग लाभदायक है।

स्तन से सम्बन्धित लक्षण :- स्तन फूलकर कठोर हो जाते हैं, बायें स्तन तथा बाजू के नाड़ियों में दर्द होने लगता है। छाती की हडि्डयों में दर्द होता है। रोगी को ऐसा महसूस होता है कि बायां स्तन अन्दर की ओर खींचा जा रहा है और दर्द बाजू से लेकर छोटी उंगली के सिरे तक फैल जाता है। बायें हाथ और उसकी उंगलियों की सुन्नता बढ़ जाती है। स्तन का घाव जब कैंसर का रूप ले लेता है तब स्तन की ग्रंथियां सूज जाती हैं तथा कठोर हो जाती है और उनमें गांठें बन जाती हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी स्त्री के रोग को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्नायु जाल से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की चाल रुक जाती है, शरीर की पेशियां इच्छानुसार कार्य नहीं करती है। कभी-कभी मिर्गी का दौरा पड़ने लगता है तथा शरीर की स्फूर्ति खत्म हो जाती है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को कब्ज की शिकायत हो जाती है, रोगी जब मलत्याग करता है तो उसका मल जैतून जैसा होता है, रोगी को अतिसार (दस्त) हो जाता है तथा मल पानी जैसा पतला हो जाता है, मल का रंग कत्थई होता है और मल बड़ी तेजी के साथ निकलने वाला होता है। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग करना चाहिए।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर पर खुजली का दाग हो जाता है और शरीर पर एक प्रकार का ऐसा दाग हो जाता है जिसमें घाव से बदबू आती है। चेहरे पर मुहांसें हो जाते हैं, खाज हो जाता है तथा छाजन हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी में है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग करना चाहिए।

रोगी के चरित्र गत कुछ ऐसे लक्षण जिनको दूर करने के लिए आस्टेरियस रुबेन्स औषधि का उपयोग लाभदायक हैं-

* स्तन कैंसर जिसमें रोगी को खरोच मारने जैसा दर्द महसूस होता है।

* मासिकधर्म शुरु होने के पहले स्तनों का अधिक फूल जाना।

* मस्तिष्क में खून की अधिकता हो जाने के कारण सिर में दर्द होना तथा दर्द सुबह के समय में अधिक होता है।

* माथा गर्म रहना तथा रोगी को ऐसा महसूस होता कि उसका माथा आग पर रखी हुई है।

* छोटी-छोटी बात पर चिढ़ होना।

* मिर्गी का दौरा शुरु होने के चार से पांच दिन पहले ही पूरा शरीर फड़कने लगता है।

* स्त्रियों में बहुत अधिक संभोग करने की इच्छा होती है।

* बायें हाथ व उंगुलियों का सुन्नपन होना।

* कब्ज की समस्या रहने के साथ रोगी को मलत्याग नहीं होता है और होता भी है तो मल सख्त तथा गेन्द की तरह गोल होता है।

* रोगी व्यक्ति को दस्त हो जाता है।


सम्बन्ध (रिलेशन) :-

कोनियम, आर्से, कार्बो तथा कौण्डुरंगों औषधियों की तुलना आस्टेरियस रुबेन्स औषधि से कर सकते हैं।

प्रतिविश :-

प्लम्ब तथा जिंक औषधियां आस्टेरियस रुबेन्स औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करती है।

वृद्धि :-

कॉफी पीने से, रात के समय में, ठण्डे तर मौसम में, शरीर के बायें भाग में लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (ह्रास) :-

मासिक स्राव रुक या दब जाने से रोगी के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

मात्रा :-

आस्टेरियस रुबेन्स औषधि की छठी शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस (Astrgalus Mollssimus)

 ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस (Astrgalus mollssimus)

परिचय-

जिस प्रकार तम्बाकू, मारफीन तथा सुरासार का प्रभाव मनुश्यों पर पड़ता है, ठीक उसी प्रकार से ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस औषधि का प्रभाव पशुओं पर पड़ता है। शरीर में विषाक्ता (शरीर में जहर फैलना) फैलने की प्रारिम्भक अवस्था में मिथ्याभ्रम (हालल्युनेशन) अथवा पागलपन के साथ दृष्टिदोष हो जाता है जिसके कारण से रोगी पशु की तरह-तरह विचित्र, हास्यप्रद हरकतें करता है। जब एक बार पशु को यह पौधा मुंह में लग जाता है तो फिर वह कोई और चीज खाना पसन्द नहीं करता है। दूसरी अवस्था में शरीर सूख जाता है, आंखें धंस जाती हैं, बाल झाड़ने लगते हैं और शरीर में बहुत कमजोरी आ जाती है जिसके कारण चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है और कुछ ही महीनों के बाद पशु मर जाता है। ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के दाईं कनपटी और ऊपर के जबड़ों में तथा बाईं भौहें के ऊपर दर्द होता है, चेहरे की हडि्डयों में तेज दर्द होता है, चक्कर आने लगता है, जबड़ें में दबाव के साथ दर्द होता है तो ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के आमाशय में अधिक कमजोरी आ जाती है और उसमें खालीपन महसूस होता है, ग्रासनली और आमाशय में जलन होती है तो ऐसी स्थिति में ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस औषधि का सेवन करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के दांए पैर के बाहरी भाग में एड़ी से लेकर अंगूठे तक सरसराहट होने लगती है, बाईं पिण्डली बर्फ जैसी ठण्डी महसूस होती है। ऐसी अवस्था में रोगी को ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस औषधि का सेवन कराना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

व्हाइट लोकोबीड, रैटल वीड, बैराइटा, एरागैलस लैम्बर्टी तथा आक्सीट्रोपिस औषधियों की तुलना ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

ऐस्ट्रागैलस मोल्लिस्सीमस औषधि की 6 शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


आर्सेनिकम मेटालिकम (Arsenicum metallicum)

 आर्सेनिकम मेटालिकम (Arsenicum metallicum)

परिचय-

पुराने रोग की छिपी हुई अवस्था को आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि बाहर कर देती है, इसके प्रयोग से छिपा हुआ रोग दूसरे से तीसरे हफ्ते में ही बाहर हो जाता है तथा शरीर के विभिन्न भागों में सूजन महसूस होती है। आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी में उत्साह की कमी होती है, उसका स्मरणशक्ति कमजोर होता है, अकेले रहने की इच्छा उत्पन्न होती है, किसी भी चीजों को देखकर चिढ़ होती है, सिर बहुत बड़ा प्रतीत होता है, सिर के बाईं ओर दर्द होता है जो आंखों और कानों के अन्दर तक फैल जाता है, नीचे की ओर झुकने और लेटने से सिर में दर्द बढ़ जाता है, माथे पर सूजन हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को अकेले रहने का मन करता है, कोई उसकी ओर देखता है तो उसे गुस्सा आ जाती है, चिड़चिड़ाहट होती है, सिर में भारीपन महसूस होता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि का उपयोग लाभकारी है।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी का चेहरा लाल और सूजन युक्त हो जाता है, चेहरे पर खुजली तथा जलन होने लगती है। आंखों में सूजन आ जाती है तथा उससे पानी निकलने लगता है और जलन होने लगती है। आंखें कमजोर हो जाती है तथा आंखों की रोशनी कम हो जाती है, रोशनी अच्छी नहीं लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के जीभ के ऊपर सफेद परत जम जाती है और उस पर दांतों के निशान पड़े रहते हैं, मुंह में दर्द होता है तथा घाव हो जाता है तथा इसके साथ-साथ दांतों में भी दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :-

* रोगी के यकृत प्रदेश में जलन तथा दर्द होने लगता है और कंधे और रीढ़ की हड्डी फैल जाती है।

* प्लीहा रोग में होने वाला दर्द और इस दर्द का असर ऊरुसन्धि (ग्रोइन) तक होता है।

* स्तन में हाने वाला दर्द कूल्हे (हीप) और प्लीहा तक फैल जाता है।

* अतिसार, जलनयुक्त, पतला, पानी के समान दस्त होने और इसके साथ दर्द कम हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।


अतिसार (दस्त) से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को अतिसार हो जाता है, मलद्वार से पानी की तरह दस्त आते हैं, जब रोगी मलत्याग कर लेता है तो उसे कुछ आराम मिलता है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

वृद्धि :-

झुकने या नीचे की ओर देखने से, लेटने से और प्रकाश से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (ह्रास) :-

अंधेरे में, कुछ चुभाने से, तनकर बैठने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध :-

एनाकार्ड, जेल्स, फास, सल्फ, औषधियों की तुलना आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि से कर सकते है।

मात्रा :-

आर्सेनिकम मेटालिकम औषधि की छठी शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


एरम ड्रैकोण्टियम (ARUM DRACONTIUM)

 एरम ड्रैकोण्टियम (ARUM DRACONTIUM)

परिचय-

ग्रसनीशोथ (भोजननली) हो जाने के कारण रोगी को खाने में परेशानी होती है, गले में दर्द होता है, गले में छिलन होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एरम ड्रैकोण्टियम औषधि का उपयोग लाभदायक है। एरम ड्रैकोण्टियम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है- 

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को सिर में भारीपन महसूस होता है तथा उसके कानों में गोली लगने जैसा दर्द होता है, दायें कान के पीछे लगातार दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए एरम ड्रैकोण्टियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

कंठ (गले) से सम्बन्धित लक्षण :- गले में खुश्की होना, दर्द होना, खाना को निगलते समय अधिक कष्ट होना, छिलन महसूस होना, गला साफ करने की बार-बार कोशिश करना आदि इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एरम ड्रैकोण्टियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी को खांसी भी रहती है तथा गले में दर्द रहता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण : -

रोगी को मूत्रत्याग करने की बार-बार इच्छा होती है, जलन और चीस मारता हुआ दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एरम ड्रैकोण्टियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सांस से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को सांस लेने वाले अंगों में परेशानी होने लगती है जिसके कारण वह सांस ठीक से नहीं ले पाता है, उसके स्वरयंत्र में अत्यधिक श्लेष्मा जमा हो जाता है, रात के समय में दमा जैसी अवस्था हो जाती है, बलगम गाढ़ा और भारी निकलता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए लिए एरम ड्रैकोण्टियम औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

सम्बन्ध (तमसंजपवदे) :- 

* एरम इटालिकम औषधि का उपयोग दिमागी थकान के साथ सिर के पिछले भाग में दर्द को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता है, ठीक ऐसे ही अवस्था में रोग को ठीक करने के लिए एरम ड्रैकोण्टियम औषधि का उपयोग कर सकते हैं।


* श्लेष्म कलाओं में जलन और घाव को ठीक करने के लिए एरम-मैक्यूलेटम औषधि का उपयोग किया जाता है, ठीक इस प्रकार के लक्षण में रोग को ठीक करने के लिए एरम ड्रैकोण्टियम औषधि का भी उपयोग हो सकता है।



मात्रा :- 

एरम ड्रैकोण्टियम औषधि की प्रथम शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


एरम ट्रिफाइलम (ARUM TRIPHYLLUM)

 एरम ट्रिफाइलम (ARUM TRIPHYLLUM)

परिचय-

एरम ट्रिफाइलम औषधि की क्रिया भी एरम मैक्यूलेटम, इटैलिकम तथा ड्रेकोण्टिम औषधियों के समान होती है। इन सभी औषधियों में तेज विष (तेज जहर) होता है जो कफ बनाने वाली तलो की जलन तथा ऊतकों को नष्ट कर देता है। एरम ट्रिफाइलम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी सिर को तकिये में गाड़ता रहता है, अत्यधिक गर्म कपड़े पहनने तथा गर्म कॉफी पीने से सिर में दर्द हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- आंखों के ऊपरी पलकों, विशेष रूप से बाईं पलकों में कंपन होने लगती है, इस प्रकार के लक्षणों को दूर करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

नाक से सम्बन्धित लक्षण :- नाक के नथुनों में तेज दर्द होना, नाक में से तेज जलनकारी कफ के समान मल निकलने लगता है जो नाक के चमड़ी को छील देने वाला होता है और जिसके कारण नाक में कच्चे-कच्चे घाव बन जाते हैं। नाक बंद हो जाता है, मुंह से सांस लेना पड़ता है, नाक को कुरेदते रहने की आदत पड़ जाती है, नजला हो जाता है और दूषित पानी नाक से बहने लगता है। नाक के ऊपर बड़ी-बड़ी फुंसियां हो जाती है, चेहरा फटा-फटा सा लगने लगता है, चेहरा गर्म महसूस होता है, जब तक नाक से खून नहीं निकल जाता तब तक लगातार नाक कुरेदते रहने की आदत पड़ जाती है। इस प्रकर के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

नाखून से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी अपने नाखूनों को दांतों से काटता रहता है तथा जब तक उंगलियों के नाखून से खून नहीं निकल जाता तब तक वह ऐसा करता ही रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- मुंह के अन्दर ऊपरी भाग तथा तालु में कच्चेपन महसूस होती है, होंठ फटे हुए रहते हैं तथा उनमें जलन होने लगती है, मुंह के कोण फट जाते हैं तथा उसमें दर्द होता है, जीभ लाल, खुरदरी हो जाती है तथा उसमें दर्द होने लगता है, रोगी होंठों को तब तक कुतरता रहता है जब तक खून नहीं निकल जाता है, होंठो में तेज जलन होती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- गले की ग्रन्थियों में सूजन आ जाती है, गला सिकुड़ा हुआ, सुजा हुआ होता है तथा उसमें जलन होने लगती है, रोगी को लगातार खंखारने की आदत हो जाती है, फेफड़ों में दर्द महसूस होता है। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी जब गाना गाता है तो उसे और भी अधिक परेशानी होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

त्वचा रोग से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर पर लाल दानें हो जाते हैं, कहीं-कहीं खुरदरे दानें निकल आते हैं जिनका तल लाल होता है तथा संक्रामक चर्म रोगों को ठीक करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

टाइफाइड ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- टाइफ़ाइयेड ज्वर से पीड़ित रोगी के रोग को भी एरम ट्रिफाइलम औषधि ठीक कर देता है तथा इससे रोगी को बहुत आराम मिलता है।

जुकाम से सम्बन्धित लक्षण :- जुकाम रोग से पीड़ित रोगी में यदि और भी कई लक्षण है जैसे- नाक से जहरीला पानी निकलना, जिसके कारण नाक और उसकी ऊपर की त्वचा के होंठ छिल जाते हैं और जलन होती है, नाक की नथुने पर घाव हो जाता हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

खांसी से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को खांसी हो जाती है तथा जब खांसता है तो उसका कफ नहीं निकलता है, बाद में कफ अपने आप निकल जाता है, कफ में पीली धारियां दिखाई देती है, रोगी के मुंह का किनारा छिल जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोगों को ठीक करने के लिए एरम ट्रिफाइलम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

वृद्धि :-

उत्तरी तथा पश्चिमी हवा में रहने तथा लेटने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन :-

गर्मी से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध :-

ऐलान्थस, एलियम सीपा तथा अमोनि-कार्बो औषधियों से एरम ट्रिफाइलम औषधि की तुलना कर सकते हैं।

प्रतिविष :-

छाछ, पल्सा तथा असे एसिड औषधियों का उपयोग एरम ट्रिफाइलम औषधि के विष को नष्ट करने के लिए करना चाहिए।

मात्रा :-

एरम ट्रिफाइलम औषधि की तीसरी से तीसवीं शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


एनोमेप्सिस कैलीफोर्निका - ANEMOPSIS CALIFORNIC

 एनोमेप्सिस कैलीफोर्निका (ANEMOPSIS CALIFORNIC)

परिचय-

एनोमेप्सिस कैलीफोर्निका औषधि श्लेष्म कलाओं (म्युकोस मेम्ब्रेंस) की एक प्रमुख लाभदायक औषधि है। विभिन्न लक्षणों में एनोमेप्सिस कैलीफोर्निका औषधि का उपयोग-

नाक से सम्बन्धित लक्षण :- नाक की श्लेष्म कला के पुराने जलन (प्रदाह) के साथ नाक की झिल्ली का ढीलापन तथा अधिक स्राव (नाक से पानी की तरह पदार्थ निकलना) होना तथा नजले की अवस्था में जब सिर और गले के अन्दर रुकावट महसूस होती है तब इस औषधि का उपयोग किया जाता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :-

* कटे हुए घावों, मोच तथा नीली पड़ी मांस पेशियों को ठीक करने के लिए यह लाभदायक औषधि है।

* हृदय रोग में जब दिल की धड़कन तेजी से धड़कता है तब उसे शान्त करने के लिए एनोमेप्सिस कैलीफोर्निका औषधि का प्रयोग बहुत अधिक लाभदायक होता है।


पाचन शक्ति से सम्बन्धित लक्षण :- पाचन क्रिया की शक्ति को बढ़ाने के लिए भी यह औषधि बहुत अधिक लाभदायक है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

पाइपर मेथिस्टिकम औषधि से एनोमेप्सिस कैलीफोर्निका औषधि की तुलना की जा सकती है।

मात्रा :-

एनोमेप्सिस कैलीफोर्निका औषधि की अर्क का सेवन स्प्रे के रूप में करने से कई प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं।


ऐंगुस्टुरा वेरा (Angustura vera)

 ऐंगुस्टुरा वेरा (Angustura vera)

परिचय-

जोड़ों का दर्द जिसके कारण रोगी को चलने-फिरने में बहुत अधिक परेशानी महसूस होती है तथा लकवा का प्रभाव अधिक होता है, रोगी को कॉफी पीने की अधिक इच्छा होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि का प्रयोग करना चाहिए। श्लेष्मकलाओं तथा मेरू-प्ररेक तन्त्रिकाओं पर ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि का लाभदायक प्रभाव देखने को मिलता है।

विभिन्न लक्षणों में ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि का उपयोग-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर में दर्द होता है, गालों में तेज दर्द होता है, शरीर के कई अंगों में खिंचाव, शंख-पेशियों में तथा जबड़ा खोलते समय दर्द होता है, हनु-संधियों, चर्वणिका पेशियों में एक प्रकार का ऐसा दर्द होता है जैसे कि वे अधिक थक गई हो, गाल की हडि्डयों में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के जीभ का स्वाद कड़वा हो जाता है, कॉफी पीने की अधिक इच्छा होती है, नाभी से लेकर छाती तक के भाग में दर्द होता है, रोगी को उबकाई आती है जिसके साथ-साथ रोगी को खांसी भी हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :-

* रोगी के पेट के नीचे के भाग में खुजली होती है, गर्दन की कशेरुकाओं में दर्द होता है तथा उसमें खिंचाव होता है।

* रीढ़ की हड्डी के पिछले भाग में दर्द होता है जो दबाव देने से बढ़ जाती है।

* गर्दन के पिछले भाग में तथा त्रिकास्थि में दर्द होना और इसके साथ-साथ रोगी के पीठ के निचले भाग में दर्द होता है और झटके लगते है, रोगी की पीठ पीछे की ओर झुक जाती है।

* इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।


शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के मांसपेशियों तथा जोड़ों में अकड़न और तनाव होता है तथा शरीर के कई अंगों में चलते समय दर्द होता है, बाहें थकी हुई और भारी महसूस होती हैं, कभी-कभी तो कई अंगों में लकवा रोग का प्रभाव देखने को मिलता है, हाथ की अंगुलियां ठण्डी पड़ जाती है, घुटनों में दर्द होने लगता है, हडि्डयों के जोड़ों पर कड़कड़ाहट महसूस होती है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को टी.बी. रोग हो जाता है तथा इसके साथ ही शरीर के कई अंगों पर घाव हो जाते हैं जिसके कारण दर्द बहुत अधिक होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन) :- नक्स, मर्क्यूरियस, ब्रूसिया-कुचला, रूटा औषधि से ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि की तुलना कर सकते हैं।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :- शोरगुल स्थान तथा तरल पदार्थों का सेवन करने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

मात्रा (डोज) :- ऐँगुस्टुरा वेरा औषधि की छठी शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


ऐन्हालोनियम (ANHALONIUM)

 ऐन्हालोनियम (ANHALONIUM)

परिचय-

ऐन्हालोनियम औषधि मस्कल पदार्थ से बनाई जाती है, मस्कल एक तेज नशीली स्प्रिट है जिसे पल्के फर्टे से खींचा जाता है। पल्के मैक्सिको के आगेव अमेरिकाना (अगेव अमेजीकाना ओर मेक्सिको) में तैयार किया जाता है जिसे वहां मेग्वे (मेग्वे) के नाम से जाना जाता है और मैक्सिको का राष्ट्रीय पेय पदार्थ है। भारतीय लोग इसे पेयोट कहकर पुकारते हैं। यह हृदय को कमजोर करती है तथा पागलपन की स्थिति पैदा कर देती है। कान की नाड़ियों पर इसका ठीक प्रभाव पड़ता है क्योंकि इसके सेवन से कान से सुनने की शक्ति ठीक हो जाती है। यह नशे की ऐसी अवस्था उत्पन्न करती है जिसमें विचित्र प्रकार की वस्तुएं आती है, अधिक मात्रा में सुन्दर और विभिन्न प्रकार के अदलते-बदलते रंग दिखाई देते हैं तथा शारीरिक शक्ति बढ़ी हुई प्रतीत होती है, रोगी को बड़े-बड़े राक्षस तथा अनेक प्रकार की भयंकर आकृतियां भी दिखाई देती हैं।

ऐन्हालोनियम औषधि हृदय को शक्ति प्रदान करती है, तथा श्वास प्रणाली को तेज करती है, पेट में गैस बनने के कारण पागलपन की स्थिति और नींद न आना, दिमागी थकान होना, पागलपन की स्थिति होना, आधे सिर में दर्द तथा भ्रम पैदा होना जिसमें रोगी को कई चीजें रंग-बिरंगी दिखाई देती हैं। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए।

शरीर की पेशियों में अधिक कमजोरी आ जाना, जोड़ों में दर्द होना तथा शरीर के आधे भाग में दर्द होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐन्हालेनियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

विभिन्न लक्षणों में ऐन्हालोनियम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को समय का पता नहीं चलता है, शब्दों का ठीक प्रकार से उच्चारण नहीं कर पाता है, रोगी को अविश्वास अधिक होता है तथा वह आलसी हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐन्हालोनियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर में दर्द होने के साथ ही आंखों की दृष्टि कमजोर हो जाती है। चलते-चलते रंग-बिरंगी चीजें दिखाई देने लगती हैं, बेकार बैठे रहने से तबीयत खराब हो जाती है, नेत्रपटल फैल जाती है तथा चक्कर आने लगता है तथा दिमाग थक जाता है, विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी चीटियां दिखाई देती हैं तथा साधारण प्रकार की आवाजें भी कानों में जोर-जोर से गूंजती रहती हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :- आगेव औषधि की तुलना ऐन्हालोनियम औषधि से कर सकते हैं। ऐन्हालोनियम औषधि का नशा कैनाबिस इण्डिका तथा औनैंथे औषधि के समान ही है।

मात्रा (डोज) :-

ऐन्हालोनियम औषधि की अर्क का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


ऐनीलीनम (Anilinium)

 ऐनीलीनम (Anilinium)

परिचय-

रोगी के सिर में अधिक चक्कर आना और सिर में दर्द होने पर ऐनीलीनम औषधि बहुत उपयोगी है। विभिन्न लक्षणों में ऐनीलीनम औषधि का उपयोग-

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के चेहरे का रंग नीला पड़ जाता है। इस प्रकार के लक्षण से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए ऐनीलीनम औषधि का प्रयोग लाभकारी है।

सूजन से सम्बन्धित लक्षण :- लिंग (पेनिस) तथा अण्डकोष (स्कर्टम) में दर्द तथा सूजन हो तो इस प्रकार को ठीक करने के लिए ऐनीलीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है जिसके प्रभाव से रोग ठीक हो जाता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- मूत्रनलियों में सूजन होना तथा शरीर में खून की कमी होने के साथ त्वचा का रंग फीका (डिस्कोलोरेशन ऑफ स्कीन) होना, होंठ नीला पड़ना, भूख नहीं लगना (एनोरेक्सिया) तथा पाचन दोष उत्पन्न होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐनीलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

त्वचा रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सारे शरीर में खुजली होने लगती हैं। इस प्रकार के लक्षण को ठीक करने के लिए ऐनीलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सम्बंध (रिलेशन) :- 

आर्सेनिक, एण्टिपाइरिन औषधि से ऐनीलीनम औषधि की तुलना की जा सकती है।


ऐंथेमिस नोबिलिस (ANTHEMIS NOBILIS)

 ऐंथेमिस नोबिलिस (ANTHEMIS NOBILIS)

परिचय-

ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि की प्रकृति सामान्य कोमल (मुलायम) जैसी है। यह औषधि पाचन दोष को ठीक करने वाली है। ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि ठण्डी हवा तथा ठण्डी चीजों के प्रति संवेदनशील होती है। विभिन्न लक्षणों में ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का उपयोग-

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को जुकाम हो जाता है तथा आंख से आंसू निकलता रहता है, छींके आने लगती हैं और नाक से स्वच्छ जल बहता रहता है। कमरे के अन्दर लक्षणों में वृद्धि होती है। गले के अन्दर सिकुड़न (कोंस्ट्रीक्शन) तथा गले के अन्दर छीलन महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बंधित लक्षण :- रोगी के यकृत-प्रदेश में दर्द (एचिंग पद रिजन ऑफ लिवर), पेट के अन्दर तथा टांगों में ऐंठन तथ ठण्ड महसूस होती है, मलद्वार में खुजली के साथ ऐंठन होती है और दर्द महसूस होता है, मल सफेद रंग का होता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को मूत्राशय फैला हुआ महसूस होता है, अण्डकोष (वृषणरज्जु-स्पेरमेटिक कोर्ड) में दर्द महसूस होता है। पेशाब करने में रुकावट होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को तलुवों में खुजली होती है और यह खुजली इस तरह से होती है जैसे - बिवाइयां फट गई हो, झुर्रीदार मांस (गूसेफ्लेस) हो गया हो। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मात्रा (डोज) :- ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि की तीसरी शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।

ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि की प्रकृति सामान्य कोमल (मुलायम) जैसी है। यह औषधि पाचन दोष को ठीक करने वाली है। ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि ठण्डी हवा तथा ठण्डी चीजों के प्रति संवेदनशील होती है। विभिन्न लक्षणों में ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का उपयोग-

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को जुकाम हो जाता है तथा आंख से आंसू निकलता रहता है, छींके आने लगती हैं और नाक से स्वच्छ जल बहता रहता है। कमरे के अन्दर लक्षणों में वृद्धि होती है। गले के अन्दर सिकुड़न (कोंस्ट्रीक्शन) तथा गले के अन्दर छीलन महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बंधित लक्षण :- रोगी के यकृत-प्रदेश में दर्द (एचिंग पद रिजन ऑफ लिवर), पेट के अन्दर तथा टांगों में ऐंठन तथ ठण्ड महसूस होती है, मलद्वार में खुजली के साथ ऐंठन होती है और दर्द महसूस होता है, मल सफेद रंग का होता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को मूत्राशय फैला हुआ महसूस होता है, अण्डकोष (वृषणरज्जु-स्पेरमेटिक कोर्ड) में दर्द महसूस होता है। पेशाब करने में रुकावट होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को तलुवों में खुजली होती है और यह खुजली इस तरह से होती है जैसे - बिवाइयां फट गई हो, झुर्रीदार मांस (गूसेफ्लेस) हो गया हो। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मात्रा (डोज) :- ऐंथेमिस नोबिलिस औषधि की तीसरी शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस-मिनरैलिस (Aethiops mercurialis-mineralis)

 एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस-मिनरैलिस (Aethiops mercurialis-mineralis)

परिचय-

एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि गण्डमाला संबन्धी रोग, आंख में दर्द होना, खाज तथा खुजली जिसमें अधिक जलन तथा दर्द होता है, पपड़ीदार जलन, शरीर में जहरीले तत्व की उत्पति होना आदि रोगों को ठीक करने में उपयोगी है। एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- त्वचा के रोग जो मधुमक्खी के छत्ते जैसा हो तथा छाजन रोग से मिलता-जुलता रोगों को ठीक करने के लिए एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि का उपयोग किया जाता है।

ग्रन्थियों से सम्बन्धित लक्षण :- गण्डमाला में किसी प्रकार के रोग तथा ग्रंथियों में सूजन हो जाने पर एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि का प्रयोग लाभदायक है, इसके प्रभाव से रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए इस औषधि की तीसरी शक्ति के विचूर्ण का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

कान से सम्बन्धित लक्षण :- कान बहने पर एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि का प्रयोग करने से कान बहना बंद हो जाता है। इस रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की तीसरी शक्ति के विचूर्ण का उपयोग करना उचित होता है।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- आंखों के सफेद पर्दे में घाव होने पर एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि का उपयोग करना चाहिए, लेकिन इस रोग को ठीक करने के लिए एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि की तीसरी शक्ति के विचूर्ण उपयोग करना फायदेमंद होता है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

एथियोप्स एण्टिमोनेलिस औषधि की तुलना एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

एथियोप्स मर्क्यूरियेलिस औषधि की निम्न शक्ति वाले विचूर्ण, मुख्यत: दूसरी दशमलव शक्ति का प्रयोग रोगों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


अटिस्टा इण्डिका - ATISTA INDICA

 अटिस्टा इण्डिका ATISTA INDICA

परिचय-

अटिस्टा इण्डिका औषधि उन रोगों को ठीक करने के लिए उपयोग में लिया जाता है जो गर्मी के कारण उत्पन्न होता है जैसे- अतिसार (दस्त) तथा पेट में गैस बनना। अटिस्टा इण्डिका औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की स्मरण शक्ति (याददास्त) कमजोर हो जाती है तथा शरीर में स्फूर्ति कम होती है तथा उदासीपन होता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- सुबह के समय में सिर में चक्कर आने लगता है, किसी चीज को चबाने से कनपटी के भाग में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी जब रोशनी की तरफ देखता है तो उसकी आंखे चौंधिया सी जाती है और जब आंखों को खोलता है तो कुछ सेकेडों के लिए उसे रोशनी कांपती हुई दिखाई देती है जिसके कारण उसे आंखों को बन्द करना पड़ता है। नींद से जागने पर रोशनी कांपती हुई नज़र आती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

कान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की सुनने की शक्ति तेज हो जाती है जिसके कारण कानों के अन्दर घूं-घूं की आवाज सुनाई देती है।

नाक से सम्बन्धित लक्षण :- नाक से खून बहने लगता है (नकसीर रोग), सूखी सर्दी तथा जुकाम होना। ऐसे रोग को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि उपयोग करना चाहिए।

दांत से सम्बन्धित लक्षण :- मसूढ़ों से खून निकलने लगता तथा दंतमूल पर हल्का-हल्का दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

रुखापन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को ऐसी प्यास लगती है जिसमें रोगी पानी तो पीता है लेकिन उसकी प्यास नहीं बुझती तथा उसका गला सूखा सा रहता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुखार होने के बाद कई सप्ताहों तक गले की नलियों (टॉन्लिस) में जलन होने लगती है। इस प्रकार के लक्षण को दूर करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

जीभ से सम्बन्धित लक्षण :- सुबह के समय में रोगी इधर-उधर थूकता रहता है, कभी-कभी तो रोगी को उल्टी भी हो जाती है, उल्टी में स्वाद नमकीन होता है, उबकाइयां आती हैं, जीभ का स्वाद खट्टा हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को तेज भूख लगती है, जब वह तरल खाद्य पदार्थ खाता है तो उसका भूख कम हो जाता है तथा भूख लगना बंद हो जाती है, नींबू की शिकंजी पीने की इच्छा अधिक होती है, पेट में जलन होने लगती है, आमाशय में भारीपन महसूस होता है, पेट में गैस बनने लगती है, जिसमें डकार आने से कुछ समय के लिए अस्थाई रूप से आराम मिलता है, खाना खाने के तीन से चार घण्टे के बाद कलेजे में जलन होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के नाभि के चारों ओर दर्द होने लगता है तथा पेट में मरोड़ होने लगती है तथा गुर्दे में खिंचावदार दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

हृदय तथा नाड़ी से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुखार होने के समय में धड़कन तथा नाड़ी पूर्ण, कठोर तथा तेज हो जाती है और जब उसका बुखार ठीक हो जाता है तो उसे अधिक कमजोरी महसूस होती है। नाड़ी धीमी गति से चलने लगती है, रोगी को ऐसी अवस्था में अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुखार होने के साथ कब्ज की समस्या भी हो जाती है और दस्त भी हो जाता है जिसके कारण मल पानी की तरह फीका मिट्टी जैसी होती है, मल के साथ खून भी निकलता है, कभी-कभी तो मल के साथ खून तेजी से निकलने लगता है। इस प्रकार के लक्षण होने पर उपचार करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पुरुष रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की संभोग करने की इच्छा खत्म हो जाती है लेकिन उसको रात के समय में अधिक उत्तेजना होती है जिसके कारण वीर्यपात हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शरीर के अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के सभी अंगों में कमजोरी आ जाती है तथा भारीपन महसूस होता है, टांगें सो सी जाती है तथा जब रोगी तनकर खड़ा होता है तो उसके टांगों में दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बुखार से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को ठण्ड महसूस होती है तथा इसके साथ ही उसे बुखार हो जाता है तथा उसे प्यास नहीं लगती है, जब बुखार का ताप तेज होता है तो उसे प्यास तेज लगती है, बुखार सुबह पांच बजे के लगभग होता है और अगले दिन सबुह तीन से चार बजे तक रहता है, हर तीसरे दिन बुखार हो जाता है। इस प्रकार के बुखार रोग को ठीक करने के लिए अटिस्टा इण्डिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मात्रा :-

अटिस्टा इण्डिका औषधि की मूलार्क, 2x, 3x, 6 आदि शक्तियों का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


एम्पीलोप्सिस (AMPELOPSIS)

 एम्पीलोप्सिस (AMPELOPSIS)

परिचय-

एम्पीलोप्सिस औषधि का प्रयोग गुर्दे में पानी भरने का रोग (रेनल ड्रोपसीस), जलवृषण (हाड्रोसिल.अण्डकोष में पानी भरना) तथा गले का रोगों को ठीक करने में किया जाता है। हैजे के रोग से पीड़ित रोगी के रोग में यदि शाम के छ: बजे के बाद लक्षणों में वृद्धि हो रही हो तथा साथ में आंख की पुतली में फैलाव हो तो इन लक्षणों को ठीक करने के लिए एम्पीलोप्सिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

कोहनी के जोड़ों में दर्द होना तथा कमर में दर्द होना, शरीर के कई अंगों में दर्द होना तथा उल्टी आना, पेट में दर्द तथा इसके साथ गड़गड़ाहट होना और दस्त होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए एम्पीलोप्सिस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मात्रा (डोज) :-

एम्पीलोप्सिस औषधि की दूसरी से तीसरी शक्ति का प्रयोग रोगों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।


अटिस्टा रैडिक्स (Atista radix)

 अटिस्टा रैडिक्स (Atista radix)

परिचय-

अटिस्टा रैडिक्स औषधि के प्रयोग से कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं जो इस प्रकार हैं- पेट में कीड़े होना तथा पेचिश रोग। अटिस्टा रैडिक्स औषधि की शक्ति अटिस्टा-इण्डिका औषधि की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है और इसका उपयोग अमीबी तथा दण्डाणुक पेचिश की दोनों अवस्थाओं में किया जाता है।

रोगी को खूनी मल हो रहा हो तथा इसके साथ ही उसके नाभि में तेज दर्द हो रहा हो, पेचिश का प्रकोप सर्दी के मौसम में अधिक हो तो अटिस्टा रैडिक्स औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

रोगी के पेट में कीड़े होना तथा इसके साथ ही यदि उसके पेट में गैस बन रहा हो तथा उसके पित्ताशय में दर्द हो रहा हो तो उसके इस रोग को ठीक करने अटिस्टा रैडिक्स औषधि का उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप उसके पेट के कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाता है और उसका रोग भी ठीक हो जाता है।

मात्रा :-

अटिस्टा रैडिक्स औषधि की मूलार्क, 3x, 12, 30 शक्तियां का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।