होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है

होम्योपैथी एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है। होम्योपैथिक दवाइयाँ किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन है।

भारत होम्योपैथिक चिकित्सा में वर्ल्ड लीडर हैं।

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में सैमुअल हैनीमैन द्वारा जर्मनी से हुई। आज यह अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी में काफी मशहूर है, लेकिन भारत इसमें वर्ल्ड लीडर बना हुआ है। यहां होम्योपथी डॉक्टर की संख्या ज्यादा है तो होम्योपथी पर भरोसा करने वाले लोग भी ज्यादा हैं।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है।

होम्योपैथी मर्ज को समझ कर उसकी जड़ को खत्म करती है। होम्योपैथी में किसी भी रोग के उपचार के बाद भी यदि मरीज ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह रोग का मुख्य कारण सामने न आना भी हो सकता है।

होम्योपथी दवा मीठी गोली में भिगोकर देते हैं

होम्योपथी हमेशा से ही मिनिमम डोज के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोशिश की जाती है कि दवा कम से कम दी जाए। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर दवा को मीठी गोली में भिगोकर देते हैं क्योंकि सीधे लिक्विड देने पर मुंह में इसकी मात्रा ज्यादा भी चली जाती है। इससे सही इलाज में रुकावट पड़ती है।

डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं।

होम्योपैथी की सबसे खास बात है कि आप डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं। इससे किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट होने का खतरा नहीं होता।

होमारस Homarus

 होमारस Homarus

परिचय-

होमारस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

अपच से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को अपच (भोजन का न पचना-डाइपेशिया) हो गया हो तथा इसके साथ ही गले में जलन हो रही हो और इसके साथ ही रोगी के सिर में दर्द हो रहा हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए होमारस औषधि उपयोग लाभदायक है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी के सिर में दर्द हो रहा हो, दर्द का असर माथे पर हो, इसके साथ ही कनपटियों में भी दर्द हो रहा हो और आंखों में भी दर्द हो रहा हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए होमारस औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के गले में दर्द हो रहा हो तथा कच्चेपन का अहसास हो रहा हो और ठोस बलगम भी निकल रहा हो तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए होमारस औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

आमाशय तथा पेट से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के आमाशय और पेट में दर्द होने लगता है तथा जब रोगी भोजन कर लेता है तो उसे दर्द से कुछ आराम मिलता है। इस प्रकार के लक्षणो से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए होमारस औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

उल्टी से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को उल्टी हो रही हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए होमारस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

शरीर के अंग से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को ठण्ड के कारण शरीर में दर्द हो रहा हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए होमारस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

खुजली से सम्बन्धित लक्षण :- यदि रोगी के शरीर के त्वचा पर खुजली हो रही हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए होमारस औषधि का उपयोग करना उचित होता है। 

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

दूध से, नींद आने के रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन . ह्रास) :-

गति करने से, भोजन करने के बाद रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

ऐस्टेक्स, एथूजा, आस्टेरियस तथा सीपिया औषधि के कुछ गुणों की तुलना होमारस औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

होमारस औषधि की छठी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


हाइड्रैंजिया Hydrangea

 हाइड्रैंजिया Hydrangea

परिचय-

मूत्रनली तथा मूत्र (पेशाब) में अधिक मात्रा में सफेद रंग के अणु जैसे लवण हो जाते हैं जिसको नष्ट करने के लिए हाइड्रैंजिया औषधि का उपयोग करना चाहिए। मूत्राशय में पथरी होने तथा अण्डाशय में दर्द होने और साथ ही पेशाब के साथ खून की कुछ मात्रा भी आता हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैंजिया औषधि उपयोगी है।

हाइड्रैंजिया औषधि का मूत्रनली पर अधिक प्रभाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप मूत्रनली से सम्बन्धित अनेक रोग ठीक हो जाते हैं। कमर में दर्द होने और इसके साथ रोगी में अधिक भ्रम पैदा हो रहा हो तथा चक्कर भी आ रहा हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए।

छाती में घुटन होने पर हाइड्रैंजिया औषधि का उपयोग करने से रोगी को अधिक आराम मिलता है।

यदि किसी रोगी के मूत्रनली में जलन हो रही हो तथा इसके साथ ही रोगी को बार-बार पेशाब करने की इच्छा हो रही हो और पेशाब करने में अधिक परेशानी हो रही हो, कूल्हे में तेज दर्द हो रहा हो अधिकतर बायें कूल्हे में, प्यास अधिक हो तथा साथ ही उसके पेट में कोई रोग हो गया हो, पु:रस्थ ग्रन्थि की क्रिया भी गड़बड़ा गई हो, पेशाब के साथ रेतीली कण भी आ रहे हों। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैंजिया औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध (डोज) :-

पेट के अन्दरूनी भाग से लेकर मूत्रनली के अतिंम सिरे तक तेज झटके लगते हुऐ दर्द हो रहा हो, मूत्रनली में कोई रोग उत्पन्न हो गया हो तथा इसके साथ ही लिंग में दर्द हो रहा हो, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी व्यक्ति खाना खा लेता है तो उसके बाद और भी तेज दर्द होता है, श्लेष्म कलायें ढीली-ढीली हो जाती है तथा पाचन क्रिया भी गड़बड़ा जाती है, इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए चिमाफिला, बर्बेरिस, परेरा, यूवा, सैबाल, लाइको, जियम तथा आक्सीडेण्ड्रान औषधियों में से काई भी औषधि का प्रयोग करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने लिए इस औषधि का प्रयोग कर सकते है जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है। अत: इन सभी प्रकार के औषधियों की कुछ गुणों की तुलना इससे कर सकते हैं।

पु:रस्थग्रन्थि का अधिक बढ़ जाना तथा पु:रस्थग्रन्थि में सूजन हो जाने पर रोग को ठीक करने के लिए पोलिक्टिकम औषधि के मूलार्क या फांट का प्रयोग करना चाहिए तथा ऐसे ही लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैंजिया औषधि के मूलार्क या फांट का उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है। अत: पोलिक्टिकम औषधि के समगुण की तुलना इससे कर सकते हैं।

हाइड्रैंजिया औषधि की मात्रा :-

मूलार्क।


हूरा ब्राजीलिएनिसस Hura Braziliensis

 हूरा ब्राजीलिएनिसस Hura Braziliensis

परिचय-

हूरा ब्राजीलिएनिसस औषधि का उपयोग कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए तब किया जाता है, जब रोगी को ऐसा महसूस होता है कि उसका शरीर किसी गीली खाल से बंधा हुआ है और उसके शरीर के कई अंगों पर छाले पडे़ हो तथा नाखून के नीचे कांटा चुभने जैसा अहसास हो रहा हो, माथे की चमड़ी जोर से खिंची हुई महसूस हो रही हो, गर्दन अकड़ी हुई तथा पीठ में दर्द हो रहा हो, उंगलियों की नाकों पर जलन हो रही हो और हडि्डयों के सभी भागों तथा मलद्वार के पास की हडि्डयों में खुजली और फुंसियां हो गई हो। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए। सम्बन्ध (रिलेशन) :-

कुष्ठ रोग को ठीक करने तथा त्वचा के रोग को ठीक करने के लिए कैलोट्रॉपिस या मदुरा एल्बम औषधि के गुणों की तुलना हूरा ब्राजीलिएनिसस औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

हूरा ब्राजीलिएनिसस औषधि की छठी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


हाइड्रैस्टिस(हाइड्रैस्टिस कैनेडेन्सिस) Hydrastis

 हाइड्रैस्टिस(हाइड्रैस्टिस कैनेडेन्सिस) Hydrastis

परिचय-

हाइड्रैस्टिस औषधि की क्रिया श्लेष्म कलाओं पर अधिक होती है जिसके फलस्वरूप उनसे गाढ़ा, पीला, रेशेदार स्राव होता है। यदि किसी रोगी के गले, आमाशय, गर्भाशय तथा मूत्रनली से अधिक मात्रा में गाढा़ लसलसा पदार्थ निकलने लगता है तो इस प्रकार के रोगी का उपचार करने के लिए इसका प्रयोग करना चाहिए। शरीर के कई भागों में कफ की तरह का पदार्थ जमने वाले रोग हो जाये तो उस रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है। इस प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी के नाक तथा अन्य भाग से कफ जैसा जमा हुआ पदार्थ निकलता है तथा यह पदार्थ गाढ़ा और पीला रंग तथा चिपचिपा, लेसदार और खींचने से सूत की तरह बढ़ने वाला का होता है। कफ जैसा पदार्थ रोगी के कई अंगों से निकलता है जैसे- नाक, योनिद्वार, मुंह आदि।

हाइड्रैस्टिस औषधि धीरे-धीरे असर करने वाली और गम्भीर क्रिया करने वाली औषधि है। इस औषधि का अधिकतर प्रयोग उन रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है जो हाजमा खराब होने के कारण होता है।

हाइड्रैस्टिस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

सिर दर्द से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर में दर्द होता रहता है और इसके साथ ही उसका पाचन तन्त्र खराब हो जाता है और इसके साथ ही रोगी को जुकाम भी हो जाता है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि उपयोग लाभदायक है।

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी हर समय निराश रहता है, मृत्यु का डर लगता रहता है और मृत्यु की इच्छा भी करता है तथा इसके साथ ही उसे श्लेष्मा कलाओं से सम्बन्धित रोग हो जाता है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का उपयेाग करना चाहिए।

आंख से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी का आंख और चेहरा पीला हो जाता है, पलकों पर सूजन, पलकों के किनारे पर सुर्खी रहती है, कोर्निया में घाव हो जाता है जिसमें गाढ़ा, पीला चिपचिपा कीचड़ की तरह पीब जमा हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

कान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी का कान पक जाता है तथा कान से गाढ़ा और पीला चिपचिपा पीब निकलने लगता है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि उपयोग लाभकारी है।

नाक से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के नाक से गाढ़ा, पीला और लेसदार कफ निकलने लगता है, कफ इतना चिपचिपा और लेसदार होता है कि सूत की तरह जमीन तक लटक जाता है, नाक के अन्दर बड़ी-बड़ी पपड़ियां जम जाती हैं, कमरे के अन्दर रहने से जुकाम कम बहता है, खुले स्थान में निकलने से जुकाम बढ़ जाता है, नाक के अन्दर पीनस रोग (पुराना जुकाम) हो जाता है, घाव से पीब बहने लगता है, नाक के अन्दर ठण्ड महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- पारा या क्लोरेट ऑफ पोटेश का उपयोग करने के कारण उत्पन्न अवस्था, जिसमें रोगी के मुंह से गाढ़ी, लेसदार लार निकलने लगती है, को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के गले और मुंह के अन्दरूनी सतह का छेद जो नाक तक चला गया होता है वहां से पीला, लेसदार कफ जैसा पदार्थ निकलने लगता है या बहुत दिनों तक पारे का उपयोग करने से उत्पन्न समस्या या बच्चों और माता के मुंह के अन्दर छाले आने पर हाइड्रैस्टिस औषधि का उपयोग करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- 

* पेट के अन्दर खालीपन महसूस होता है तथा ऐसा लगता है कि पेट अन्दर की ओर धंसता जा रहा है। 

* बूढ़े रोगी जिसको बहुत समय तक लम्बी डकारें आती है और उसे भूख नहीं लगती है। 

* रोगी को भूख बिल्कुल नहीं लगती है, खाने की चीजों से नफरत होने लगती है, कब्ज की समस्या हो जाती है, कई दिनों तक मल त्याग नहीं होता है तथा अपच हो जाता है।


इस प्रकार पेट के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

बवासीर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी पुराना बवासीर रोग से पीड़ित होता है तथा इसके साथ ही कब्ज की शिकायत भी होती है तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि उपयोग लाभदायक है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- सूजाक रोग होने के साथ ही यदि इससे पीला, गाढ़ा और तार जैसा पीब के समान कफ पदार्थ निकलता है तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण :- स्त्रियों को प्रदर रोग होने तथा इस रोग के साथ ही यदि योनि से पीला, गाढ़ा और लेसदार सूत के समान पीब के तरह का पदार्थ निकलता है तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का उपयेाग करना चाहिए।

ज्वर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुखार आने से कई दिन पहले ही भूख मर जाती है जिसके कारण रोगी को कोई भी चीज खाने में अच्छी नहीं लगती है, पेट खाली और अन्दर की ओर धंसा हुआ महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

ठण्ड से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को सुबह के समय में अधिक ठण्ड लगती है तथा सीने, जांघ तथा कन्धे पर दर्द होता है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

गर्म से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के चेहरे, हाथ और गर्दन पर गर्मी महसूस होती है या पूरे शरीर में गर्मी महसूस होती है तथा इसके साथ ही अधिक कमजोरी महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

पसीने से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर से बहुत अधिक पसीना आता है, जनेनन्द्रिय से बदबूदार पसीना आता है, ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि उपयोग लाभदायक है।

मलान्त्र से सम्बन्धित लक्षण :- मलद्वार पर दरारें पड़ जाती हैं, कब्ज की समस्या रहती है, आमाशय के अन्दर दबाव महसूस होता है, सिर में हल्का-हल्का दर्द होता है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी जब मलत्याग करता है तो उसके मलद्वार के पास चीस मारता हुआ दर्द महसूस होता है, मलत्याग करने के बाद बहुत समय तक मलद्वार में दर्द होता रहता है, कभी-कभी तो मलद्वार से खून भी निकलने लगता है और शरीर में थकान महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

त्वचा से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर पर चेचक के दाने जैसा दाना निकलने लगता है, शरीर के घाव तथा कैंसर रोग होना तथा इन लक्षणों में से कोई भी लक्षण से पीड़ित रोगी को यदि शरीर से पसीना भी अधिक निकलता हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रैस्टिस औषधि उपयोग करना उचित होता है। 

सम्बन्ध (रिलेशन) :- पल्स, सिपि, सल्फ, कैलि-बाइ, बोरैक्स औषधियों के कुछ गुणों की तुलना हाइड्रैस्टिस औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा (डोज) :- हाइड्रैस्टिस औषधि की मूलार्क से 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


हाइड्रोसियानिकम ऐसिड Hydrocyanicum Acid

 हाइड्रोसियानिकम ऐसिड Hydrocyanicum Acid

परिचय-

हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का दूसरा नाम ऐसिड है। यह औषधि एक प्रकार का जहर है तथा इस औषधि की एक बून्द सेवन करने से कुछ ही समय में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है, लेकिन जब इस औषधि का शक्तिदायक रूप में प्रयोग किया जाता है तो यह लाभदायक होता है, जैसे हैजा की अन्तिम अवस्था, अकड़न, रोगी का पीठ धनुष के आकार में अकड़ जाना तथा हृदय के रोग, इस प्रकार के रोग की अवस्था में औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक हो जाता है तथा उसे अधिक आराम मिलता है। मन से सम्बन्धित लक्षण :- हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का प्रयोग उन रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है जिस रोगी को बहुत अधिक डर लगता है तथा कभी-कभी रोगी बेहोश भी हो जाता है, वह काल्पनिक कष्टों से डरने लगता है तथा हर चीज से डरने लगता है जैसे घोड़ा, रेलगाड़ी तथा किसी घर आदि। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का प्रयोग करना चाहिए। 

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर में तेज दर्द होता है तथा मस्तिष्क पर ऐसे महसूस होता है जैसे आग रखा हो, रोगी का नेत्रपटल स्थिर रहता है अथवा फैला रहता है तथा सिर के नाड़ियों में दर्द होने लगता है तथा चेहरे के दर्द वाले भाग में गर्माहट महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

चेहरा से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के चेहरे पर ऐंठन तथा कठोरपन महसूस होने लगता है तथा इसके कारण जबड़े आपस में भिंच जाते हैं, मुंह पर झाग आ जाता है तथा होंठ पीला और नीला हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के जीभ पर ठण्डक महसूस होती है, पेय पदार्थ पीने से गले के अन्दर तथा आमाशय में गड़गड़ाहट होने लगता है तथा पाचन संस्थान में दर्द (गेस्ट्रीलगिया), पेट खाली महसूस होता है तथा आमाशय में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का प्रयोग फायदेमन्द होता है।

\'श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी जब सांस लेता है तो आवाज होती है तथा इसके साथ खांसी भी हो जाती है, रोगी की हालत दमा रोगी के तरह हो जाता है तथा इसके साथ ही गले के अन्दर का भाग सिकुड़ जाता है, काली खांसी होना, फेफड़ों पर लकवा का प्रभाव होना, फेफड़ों के शिराओं में खून जमा होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

हृदय से सम्बन्धित लक्षण :- हृदय की धड़कन तेज हो जाती है, नाड़ी कमजोर हो जाती है तथा अनियमित होती है, शरीर के बाहरी भाग में ठण्डक महसूस होती है, छाती में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को जम्भाइयां आने लगती है तथा इसके साथ ही ठण्ड लगना तथा अजीब-अजीब सपने आना, ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि का उपयोग लाभदायक है। 

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

सिक्यूटा, कैम्फ, लौरोसे तथा ओनांथे औषधि के कुछ गुणों की तुलना हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि से कर सकते हैं।

प्रतिविष :-

अमोनि, ओपियम तथा कैम्फ औषधियों का उपयोग हाइड्रोसियापिनक एसिड औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

मात्रा :-

हाइड्रोसियानिकम ऐसिड औषधि के 6 या उच्चतर शक्तियां का प्रयोग किया जाता है।


हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका Hydrocotyle Asiatica

 हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका Hydrocotyle Asiatica

परिचय-

हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग ऐसे रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है जिनके कारण शरीर के किसी भाग में जलन तथा अनेक भागों में कोशकी-प्रफलन (सेलुलर प्रोलिफरेशन) होता है। शरीर के किसी ऊतक का अधिक बढ़ जाना तथा उसमें कठोरता आना, कुष्ठ या चर्म रोगी के लक्षण आदि को ठीक करने में इस औषधि का प्रयोग लाभदायक है। बच्चेदानी में किसी प्रकार के घाव हो जाने पर उस घाव को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग लाभदायक है। इस रोग से पीड़ित रोगी में कुछ इस प्रकार के लक्षण भी होते है जैसे- अपने शरीर को सीधा न रख पाना, तनी हुई स्थिति में न रह पाना, शरीर से अधिक मात्रा में पसीना आना आदि।

बच्चेदानी के मुंह पर कैंसर जैसा घाव हो जाना तथा जिसके कारण रोगी स्त्री को अधिक परेशानी होती है। ऐसे रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

एथूजा सिनापियाम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी के गाल की हडि्डयों तथा उसके नेत्रकोटरों के आस-पास दर्द होता है तो उसके इस रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी स्त्री के योनि में खुजली हो रही हो तथा इसके साथ ही उसके मूत्राशय के मुंह पर जलन हो रही हो और योनि के अन्दर गर्मी महसूस हो रही हो, बच्चेदानी में कोई घाव हो गया हो या फिर रोगी स्त्री प्रदर रोग से पीड़ित हो और इस रोग के दौरान अधिक मात्रा में स्राव हो रहा हो। स्त्री के डिम्ब-प्रदेश में हल्का-हल्का दर्द होता है और साथ ही उसकी बच्चेदानी के मुंह पर लाली छा जाती है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण किसी स्त्री को है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

त्वचा से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर की ऊपरी त्वचा सूख जाती है तथा उस पर से पपड़ी उतरने लगती है, धड़ और शरीर के बाहरी अंगों तथा तलुवों में गोलाकार रूप में पपड़ियां उतरने लगती है, छाती पर फुंसियां तथा शरीर के कई अंगों में धब्बे से पड़ जाते है तथा शरीर के कई अंगों में खुजली होती है तथा तलुवों में खुजली होती है, बहुत अधिक पसीना निकलता है, चेहरे पर मुंहासे हो जाते हैं। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को मन में दूसरे के प्रति अधिक गुस्सा होता है तथा बैर-भावना भी उत्पन्न हो जाती है, अकेले रहने की इच्छा होती है तथा स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को चक्कर आते हैं, सिर के नाड़ियों में दर्द होता है तथा सिर के पिछले भाग में दर्द होता है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को भूख नहीं लगती है तथा कुछ ही देर बाद भूख अधिक लगती है, धूम्रपान से अरुचि होती है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

मलाशय से सम्बन्धित लक्षण :- गुदा में जलन और खुजली तथा मलान्त्र में दबाव महसूस हो रहा हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

पेशाब से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को पेशाब करने की बार-बार इच्छा होती है तथा जब-जब वह पेशाब करता है तो उसके पेशाब का रंग कत्थई रंग का होता है तथा पेशाब गन्दा और तलछट की तरह होता है। इस प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पुरुष से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी के अण्डाशय में खिंचावदार दर्द होता है तथा इसके साथ ही वह नपुंसकता रोग से पीड़ित हो तथा उसे संभोग से सम्बन्धित रोग हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- गले की आवाज निकलने वाली नली में अर्थात स्वरयन्त्र में रूखापन महसूस होता है तथा रोगी बात करते-करते थक जाता है, \'श्वासनलियों में कफ जैसा पदार्थ जम जाता है तथा \'श्वास उखड़ा हुआ सा लगता है। इस प्रकार के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

हृदय और नाड़ी से सम्बन्धित लक्षण :- हृदय में सिकुड़न होने लगती है, हृदय में दर्द होने लगता है, हृदय की गति अनियमित हो जाती है, नाड़ी की गति तेज हो जाती है और पूर्ण रूप से नियमित रहता है। इस प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

बुखार से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को दोपहर के बाद कंपकंपी होती है, हाथ-पैर ठण्डे हो जाते हैं, हाथ-पैर मसलने से आराम मिलता है लेकिन जब मसलना बन्द करते हैं तो वे फिर से ठण्डे पड़ जाते हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का प्रयोग करना उचित होता है। 

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

कुष्ठ रोग तथा त्वचा मोटी हो जाए तथा खुजली हो, त्वचा कठोर हो जाए तो रोग को ठीक करने के लिए इलीस औषधि का उपयोग करना चाहिए, लेकिन ऐसे ही कुछ लक्षणों को ठीक करने के लिए हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि का उपयोग कर सकते है। अत: इलीस औषधि के इस गुण की तुलना हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि से कर सकते हैं।

सांप के डंक, घाव तथा चर्म रोग को ठीक करने के लिए हूरा, ट्रिकनस गौल्थेयिना औषधियों के इन गुणों की तुलना हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि से करते हैं।

होआंग नान, चौलमूगरा तेल, हाइड्रेस्टि, आर्से, औरम, सीपिया औषधियों की कुछ गुणों की तुलना हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

हाइड्रोकोटाइल एशियाटिका औषधि की पहली से छठी शक्ति तक का प्रयोग करना चाहिए।


हाइड्रोफोबीनम Hydrophobinum

 हाइड्रोफोबीनम Hydrophobinum

परिचय-

हाइड्रोफोबीनम औषधि का मुख्य रूप से प्रभाव स्नायु प्रणाली पर पड़ता है। सम्भोग की बढ़ी हुई इच्छा के कारण उत्पन्न होने वाले रोग, बहता हुआ पानी या रोशनी देखने का कारण होने वाले बेहोशी को दूर करने के लिए इस औषधि का उपयोग लाभदायक है। इस प्रकार के रोगों से पीड़ित रोगी हर समय थूकता रहता है, पानी पीते समय गले में घुटन होती है, लार ठोस तथा चिपचिपी होती है, शरीर की सभी ज्ञानेन्द्रियां प्रभावित होती है। रोगी पागलों की तरह व्यवहार करता है, जब रोग व्यक्ति तरल पदार्थो के बारे में सोचता है या कोई बुरा समाचार सुनता है तो उसे बहुत अधिक कष्ट होता है, रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जैसे उसके माथे पर बरमें (छेद करने वाला यन्त्र) से छेद किया जा रहा हो। इसके अलावा रोगी की आवाज बदल जाती है तथा कुछ देर तक रोगी की \'वास रुक जाती है, सांस लेने वाले पेशियों में खिंचाव भी होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है।

यदि किसी रोगी के शरीर की हडि्डयों में हल्का-हल्का दर्द हो रहा हो तथा सम्भोग के इच्छा बढ़ने के कारण उत्पन्न रोग और तेज रोशनी को देखने के कारण बेहोश हो जाता हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि उपयोगी लाभदायक है।

हाइड्रोफोबीनम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के मस्तिष्क में जल अधिक भर जाने के कारण उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है या किसी बुरा समाचार सुनने के कारण अधिक परेशानी होने लगती है और रोगी पागल सा हो जाता है या तरल पदार्थों के बारे में सोचने पर पागलों की तरह व्यवहार करने लगता है। इन सभी कारणों की वजह से रोगी के सिर में तेज दर्द होता है और कभी-कभी रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि माथे पर कोई बरमें (छेद करने का यन्त्र) से छेद कर रहा हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी तथा जलातंक रोग (लाइसोफिया) से पीड़ित रोगी के रोग का उपचार करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी लगातार इधर-उधर थूकता रहता है, मुंह से लार टपकती रहता है तथा लार अधिक चिपचिपा रहता है, गले में जलन होने लगती है, किसी चीज को निगलने की बार-बार इच्छा होती है लेकिन जब कोई चीज को निकालते है तो दर्द महसूस होता है, पानी पीते समय गले में घुटन सी महसूस होती है तथा मुंह से झाग निकलता रहता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

पुरुषों से सम्बन्धित लक्षण :- अधिक संभोग की इच्छा रहने के कारण उत्पन्न रोग, लिंग में उत्तेजना होने के साथ ही वीर्यपात हो जाना, संभोग क्रिया के समय में वीर्यस्खलन नहीं होना, अण्डकोष का अधिक कमजोर हो जाना आदि लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण :- गर्भाशय की ऊपरी झिल्ली का कमजोर होना, गर्भ ठहर जाने जैसा महसूस होना, योनि में दर्द होना जिसके कारण संभोग करने के समय में अधिक दर्द होना तथा गर्भाशय का अपने स्थान से हट जाना आदि प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्रियों के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि का उपयोग लाभदायक होता है।

सांस संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की आवाज बदल जाती है, कभी-कभी तो रोगी की सांस कुछ समय के लिए रुक जाती है, सांस लेने वाली पेशियों में खिंचाव होने लगता है। इस प्रकार के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- बहते हुए पानी की आवाज सुनकर या बहते पानी को देखकर रोगी का मल अपने आप निकल जाता है तथा मल पानी की तरह पतला होता है तथा इस प्रकार के लक्षण होने के साथ-साथ रोगी के आंतों में दर्द भी होता रहता है, शाम के समय में और भी अधिक परेशानी होती है और रोगी ऐसी स्थिति में पानी को देखाकर पेशाब अपने आप कर देता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

बहते हुए पानी की आवाज सुनने पर या बहते हुए पानी को देखने से या पानी को उड़ेलते देखकर और यहां तक कि तरल पदार्थो के बारे में सोचने से या तेज अथवा चमचमाती हुई रोशनी से, सूर्य की गर्मी से तथा नीचे झुकने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

जलांतक रोग तथा स्त्रियों के मूत्राशय में होने वाली सूजन को ठीक करने के लिए जैथियम स्पाइनोसम औषधि का उपयोग होता है, लेकिन इस प्रकार के लक्षण को ठीक करने के लिए हाइड्रोफोबीनम औषधि का उपयोग किया जा सकता है। अत: इस रोग को ठीक करने के गुण के अनुसार जैथियम स्पाइनोसम औषधि से हाइड्रोफोबीनम औषधि की तुलना कर सकते है।

बेला, कैन्थ, लैके, नेट्र-म्यूरि तथा स्ट्रोमो औषधियों के कुछ गुणों की तुलना हाइड्रोफोबीनम औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

हाइड्रोफोबीनम औषधि की तीसवीं शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


हाइग्रोफीलिया स्फिनोसा ygrophilia sphinosa

 हाइग्रोफीलिया स्फिनोसा ygrophilia sphinosa

परिचय-

हाइग्रोफीलिया स्फिनोसा औषधि का उपयोग निम्नलिखित रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है जैसे- अनिद्रा, जलशोफ, नपुंसकता, आमवात (जोड़ों का दर्द), प्रदर, विभिन्न प्रकार के चर्म रोग, पेशाब से सम्बन्धित रोग, पथरियां, यकृत से सम्बन्धित रोग तथा सभी तरह की जलोदर रोग। हाइग्रोफीलिया स्फिनोसा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

चर्म से सम्बन्धित लक्षण :- त्वचा रोग, जो गर्मी से बढ़ते हैं और ठण्ड से घटते हैं, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइग्रोफीलिया स्फिनोसा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बुखार से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को मलेरिया हो गया हो तथा इसके साथ ही छपाकी रोग भी हो गया हो तथा इस प्रकार के रोग होने के साथ ही रोगी के शरीर का तापमान बढ़ने के साथ ही तेज खुजली भी होती है जो ठण्ड लगने से कम होता है, सुबह के समय में बुखार होता है लेकिन रोगी को न ठण्ड ही लगती है और न प्यास। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइग्रोफीलिया स्फिनोसा औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है। 

हाइग्रोफीलिया स्फिनोसा औषधि की मात्रा (डोज) :-

मूलार्क, 3x, 6x, 30 वीं शक्तियां।


हाइपेरिकम Hypericum

 हाइपेरिकम Hypericum

परिचय-

शरीर के किसी भी अंगों पर चोट लग गई हो तो चोट ग्रस्त भाग के तन्त्रिकाओं, विशेषरूप से हाथों और पैंरों की उंगलियों तथा नाखूनों से सम्बद्ध तन्त्रिकाओं के रोग ग्रस्त भागों को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए। कुचली हुई उंगलियां, विशेष रूप से नोकों पर तथा इसके साथ ही उंगलियों में अधिक तेज दर्द हो रहा हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि उपयोग लाभदायक है।

ऑपरेशन के बाद होने वाले दर्द को कम करने के लिए, कई प्रकार के चोटों के दर्द को कम करने के लिए, मलद्वार से खून बह रहा हो तो उसे ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि उपयोग लाभदायक है। मौसम में किसी प्रकार की खराबी आने या तूफान आने से पहले दमा का दौरा पड़ने के साथ-साथ अधिक मात्रा में बलगम निकलने पर रोगी को ठीक करने या तन्त्रिका में किसी प्रकार की सूजन आने के साथ-साथ झनझनाहट, सुन्नपन तथा जलन हो रही हो तो हाइपेरिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

हाइपेरिकम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- यदि रोगी को किसी प्रकार से चोट लग गई हो और इसके साथ ही रोगी ऐसा महसूस करता है कि जैसे उसे हवा के ऊपर उठा दिया गया हो या ऐसा लग रहा हो कि कहीं ऊचाई से गिर न जाए। रोगी लिखने के कार्य में गलतियां करता है, चोट ग्रस्त भाग में दर्द होता है। ऐसे लक्षणों को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि का उपयोग लाभदायक है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को सिर भारी सा लगता है और ऐसा महसूस होता है कि सिर पर बर्फ रखा हो। सिर के ऊपरी भाग में गर्माहट होता है। चेहरे के दाईं ओर हल्का-हल्का दर्द होता है। मस्तिष्क थका हुआ रहता है और तन्त्रिकावसाद होता है। चेहरे की नाड़ियों तथा दांत में दर्द होता है तथा इसके साथ ही रोगी को अधिक उदासी होती है। सिर लम्बा सा लगता है तथा इसके साथ ही रोगी के कानों और आंखों में दर्द होता है और बाल झड़ने लगते हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को शराब पीने की बार-बार इच्छा होती है। प्यास अधिक लगती है तथा बेचैनी होती है। जीभ की जड़ पर सफेद परत जम जाता है और नोक साफ हो जाता है। आमाशय के अन्दर गोला होने जैसी अनुभूति होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी जब मल का त्याग करता है तो उसका मल बड़ी तेजी से आता है, पेट में हल्का-हल्का दर्द होता है, मलद्वार से खून की बूंदें निकलती हैं तथा मलद्वार में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के गर्दन के जोड़ों पर दर्द होता है। त्रिकास्थि प्रदेश में दर्द होता है। गिरने के कारण पीठ में चोट लग जाने पर पीठ की हड्डी में दर्द होना जो रीढ़ की हड्डी में ऊपर की ओर और निम्नांगों में नीचे की ओर फैलता चला जाता है। पेशियों में झटके लगते रहते है तथा दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के कंधें में गड़ने जैसा दर्द होता है, बाजू के भाग में दर्द होता है, पिण्डलियों में ऐंठन सी होती है, हाथ तथा पैरों की उंगलियों में दर्द होता है, हाथों और पैरों में ऐसी अनुभूति होती है कि जैसे कई चीटियां रेंग रही हों तथा इसके साथ ही झनझनाहट, जलन और दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- दमा रोग जो धुंध वाले मौसम में और भी अधिक बढ़ जाता है और अत्यधिक पसीना होने से घटता है। ऐसे लक्षणों को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि उपयोग लाभदायक है।

त्वचा से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर से पसीना अधिक निकलता है, सिर से भी पसीना आता है, सुबह के समय में जब सोकर उठता है तो अधिक पसीना निकलता है, चोट लगने के कारण बाल झड़ते हैं, हाथों और चेहरे पर छाजन होना, तेज खुजली होना, पुराना घाव होना जिनसे अधिक मात्रा में खून बहना आदि। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

ठण्ड में, नमी में, धुंध में, बन्द कमरे में, रोग ग्रस्त भाग को छूने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन :-

सिर को पीछे की ओर झुकाने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध :-

आर्निका, कैलेण्डु रुआ, काफिया, स्टैफिसे तथा लीडम औषधियों के कुछ गुणों की तुलना हाइपेरिकम औषधि से कर सकते हैं।

शरीर के किसी भी स्थान में चोट लग जाए मगर नसें और मांस न फटे हों तो आर्निका औषधि का उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है। ऐसे ही लक्षणों से पीड़ित रोगी का रोग हाइपेरिकम औषधि से भी ठीक हो सकता है, अत: आर्निका औषधि से हाइपेरिकम औषधि की तुलना कर सकते हैं।

चोट का स्थान फट गया हो तथा उसमें छेद हो गया हो तो कैलेन्डयूला औषधि के उपयोग से चोट ठीक हो जाता है, लेकिन ऐसे चोट को ठीक करने के लिए हाइपेरिकम औषधि अधिक लाभकारी है।

प्रतिविष :-

आर्से, कर्मी औषधियों का उपयोग हाइपेरिकम औषधि के हानिकारक प्रभाव को दूर करने के लिए किया जाता है।

मात्रा (डोज) :-

हाइपेरिकम औषधि की मूलार्क से तीसरी शक्ति तक का प्रयोग करना चाहिए।


हायोसाएमस Hyoscyamus

 हायोसाएमस Hyoscyamus

परिचय-

हायोसाएमस औषधि पागलपन की अवस्था तथा बेहोशी की समस्या को दूर करने के लाभदायक औषधि है। पागलपन की स्थिति से पीड़ित रोगी के रोग की शुरुआती अवस्था बहुत अधिक गम्भीर होती है, फिर इसके बाद रोगी की अवस्था स्थिर हो जाती है और शरीर में कमजोरी बढ़ जाती है, यह कमजोरी और बेहोशी इस कदर बढ़ जाती है कि यह बताना कठिन हो जाता है। रोगी के इस प्रकार के लक्षणों में होने पर ओपियम या हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अधिक झगड़ालू है तथा उसका जीवन अश्लील ढंग से गुजर रहा हो और भद्दा तथा अश्लील कार्य अधिक कर रहा हो या करने की चेष्टा कर रहा हो, अधिक बोलने वाला हो, नंगे रहने का मन कर रहा हो, गुप्तांगों को नंगा रखना चाहता हो, किसी भी बात पर सदेंह करता हो, नाड़ी कमजोर हो गई हो। इस प्रकार के लक्षण रोगी में है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

रोगी को बेहोशी की समस्या हो तथा हर वक्त नींद में रहता हो और कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहता हो, शरीर में कंपकंपी होती रहती है तथा कमजोरी हो जाती है, पेशियों में लकवा जैसा प्रभाव हो तथा अधिक पागलपन की स्थिति उत्पन्न हो गई हो आदि लक्षण हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। मस्तिष्क में जलन होने की स्थिति में हायोसाएमस औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

खसरा (मिसलेस), चेचक (स्मॉल पोक्स) के साथ रोगी को बेहोशी की समस्या हो, फुंसियों का दब जाना, नाखून से बिस्तर कुरेदना तथा बेहोश हो जाना तथा अचानक चिल्ला उठना, पुट्ठों में गर्माहट होना, अपने आप मल और पेशाब निकल पड़ना आदि लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना चाहिए। इन लक्षणों के साथ में रोगी को एक लक्षण यह भी होता है कि वह अपने मुंह को चलाता रहता है तथा रोगी को ऐसा लगता है कि वह कुछ खा कर चबा रहा हो।

हायोसाएमस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बेहोशी की समस्या होती है तथा पागलपन की अवस्था से पीड़ित रोगी में यदि और भी कई प्रकार के लक्षण हो जैसे- अधिक बोलना, अश्लील बाते करना, संभोग के प्रति अधिक उत्तेजनात्मक, हर समय नंगा रहना चाहता हो, स्वभाव झगड़ालू हो, बात-बात पर हंसने लग रहा हो, पागलपन की अवस्था से पीड़ित होने के साथ ही भागने की कोशिश करता हो, कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहता हो, लगातार कपड़े को नोचता रहता हो तथा हर वक्त ऐसा लग रहा हो कि वह सो रहा हो, इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर में दर्द हर समय महसूस हो रहा हो तथा उसका सिर इस तरह चक्कराता है जैसे कोई नशीली चीज खा रखी हो, मस्तिष्क ढीला हो तथा मस्तिष्क उतरता-चढ़ता महसूस हो रहा हो, मस्तिष्क में जलन महसूस हो रहा हो, सिर को इधर-उधर लुढकाता रहता हो तथा इन लक्षणों के साथ ही बेहोशी की समस्या या पागलपन की स्थिति उत्पन्न हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग लाभदायक है।

आंख से सम्बंधित लक्षण :- रोगी के आंखों के नेत्रपटल फैले हुए रहते हैं तथा चमकदार होकर स्थिर हो जाता है, सिर में इस प्रकार से चक्कर आता है जैसे रोगी कोई नशीली चीज का सेवन कर रखा हो, आंखें खुली हुई किन्तु ध्यान नहीं देता, आंखों की पलकें झुकी हुई रहती हैं, पलकों में सिकुड़न होती है। इन लक्षणों के अलावा यदि रोगी को कोई भी चीज डबल दिखाई देती है या चीजों के किनारें रंगीन नज़र आते हो तो इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की जीभ खुश्क, लाल तथा फटी सी हो जाती है, जीभ में अकड़न होने लगती है, जीभ कठिनाई के साथ बाहर को फैलती है, कभी-कभी तो रोगी के मुंह से झाग भी आ जाता है। दांतों पर मैल जमी रहती है तथा निचला जबड़ा नीचे की ओर लटक जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार के लक्षणों के साथ में रोगी को बेहोशी तथा पागलपन की समस्या भी रहती है।

गला से सम्बन्धित लक्षण :- गले के अन्दर रूखापन तथा सिकुड़न होती है, रोगी तरल पदार्थ को निगल नहीं पाता है तथा इसके साथ ही बेहोशी की समस्या भी होती है या कभी-कभी रोगी पागलों की तरह व्यवहार करता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण :- रोगी का जी मिचलाता रहता है, हिचकी आती है, सूखी तथा कड़वी डकारें आती हैं, कभी-कभी तो उल्टी भी आती है, कभी खून की उल्टी भी होती है, आमाशय के अन्दर ऐंठन होने लगती है, जब रोगी को उल्टी हो जाती है तो उसे कुछ आराम मिलता है, आमाशय के अन्दर जलन भी होती है तथा भोजन का सेवन करने के बाद आमाशय के अन्दर सिकुड़न जैसा दर्द होता है, इन लक्षणों के साथ ही रोगी पागलों की तरह व्यवहार करता है, ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग लाभदायक है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के पेट में दर्द होता है, पेट फूलने लगता है। पेट में दर्द होने के साथ उल्टी आना, तथा उबकाई होना, हिचकी आना। पेट में गैस बनना। पेट के ऊपर लाल-लाल रंग का धब्बा पड़ना। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- दस्त हो जाता है तथा इसके साथ ही पेट में दर्द होता है, जब रोगी को मानसिक परेशानी अधिक हो तथा नींद की अवस्था में ऐसा अधिक हो तथा इसके साथ ही दस्त हो गया हो तथा पेट में ऐसा दर्द हो रहा हो जैसे गर्भवती स्त्री जब बच्चे को जन्म देती है, हर समय दर्द होता है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि उपयोग लाभदायक है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को किसी भी समय में पेशाब हो जाता है, पेशाब होने का रोगी को पता नहीं होता है कि कब पेशाब होगा। मूत्राशय में लकवा रोग के जैसा प्रभाव हो जाता है। रोगी को पेशाब करने की इच्छा ही नहीं होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

पुरुष से सम्बन्धित लक्षण :- व्यक्ति को नपुंसकता रोग हो गया हो, सजना तथा संवरना अच्छा लगता हो, हर समय गुप्तांगों का प्रदर्शन कर रहा हो, बुखार होने के समय में गुप्तांगों से खेलता रहता हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी स्त्री को मासिकधर्म शुरु होने से पहले हिस्टीरिया रोग जैसे लक्षण उत्पन्न हो, संभोग की उत्तेजना बढ़ रही हो। मासिकधर्म के समय में स्राव होने के साथ ही बेहोशी की समस्या उत्पन्न हो रही हो, पेशाब अधिक मात्रा में हो रहा हो और शरीर से पसीना आ रहा हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

छाती से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को दम घोट देने वाले दौरे पड़ने लगते हैं, जिसके कारण रोगी को आगे की ओर झुकना पड़ता है तथा रात के समय में सूखी तथा तेज खांसी होती है, जब रोगी लेटता है तो अधिक तथा बैठने से कम खांसी होती है, गले के अन्दर खुजली होती है, रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि गला अधिक बढ़ गया हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी जब बिस्तर पर पड़ा रहता है तो बिस्तर के कपड़े को नोचता रहता है, हाथों से खेलता रहता है तथा कुछ पकड़ने के लिये आगे को हाथ बढ़ाता है। रोगी को मिर्गी के दौरे पड़ते हैं तथा दौरे पड़ने के बाद नींद तेज आती है। रोगी के पिण्डलियों तथा पैरों की उंगलियों में ऐंठन होने लगती है। बच्चा नींद में सिसकियां भरता है और चिल्लाता रहता है, ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी हर वक्त नींद की अवस्था में होता है, तेज नींद के साथ बेहोशी की समस्या भी हो जाती है, कभी-कभी रोगी डर के कारण चौंक पड़ता हैं तथा पागलों की तरह व्यवहार करता रहता है। इस प्रकार के रोगों से पीड़ित व्यक्ति को हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

नाड़ियां से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को अधिक बेचैनी होती है और हर समय नंगा रहना चाहता हो तथा पागलों की तरह का व्यवहार करता है, ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

टाइफायड से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को टाइफाइड बुखार हो जाता है, जीभ शुष्क, आंखें खोले रहता है, टकटकी बांधकर चारों तरफ ताकता रहता है मगर कुछ देखता नहीं है तथा इसके साथ ही वह होश में नहीं रहता है तथा पागलों की तरह का व्यवहार करता है, अपने बिस्तर को नोचता रहता है, कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहता है, कभी-कभी तो एकदम चुप हो जाता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी से जब कोई प्रश्न पूछते हैं तो वह उसका उत्तर तो ठीक देता है लेकिन बात कहते-कहते एकदम रुक जाता है, उसके दांतों पर मैल जमा रहता है, जबड़ा नीचे की ओर लटक जाता है, कभी-कभी पेशाब तथा मल अपने आप हो जाता है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग करना चाहिए। न्यूमोनिया बुखार से पीड़ित रोगी को अगर इस प्रकार के लक्षण हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसाएमस औषधि का उपयोग लाभदायक है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :- 

ओपियम औषधि का उपयोग उन रोगियों के रोगों को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता है जो रोगी होश में नहीं रहता, अपनी आंखों को खोले रखता है, यदि उसकी पलकों पर मक्खी बैठ जाती है तो पलकें नहीं गिरती, आंखों पर जाला सा पड़ जाता है, सांस लेने के साथ नाक से खर्राटे की आवाज आती है मानों गहरी नींद ले रहा हो। हायोसाएमस औषधि में भी नाक से खर्राटे लेने तथा होश में न रहने की समस्या होती है, लेकिन ओपियम औषधि की तुलना में यह कुछ भी नहीं होता है।

हायोसाएमस औषधि उन रोगियों के रोग को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता है जो पानी से डरता है, बहता हुआ पानी को देखकर चौंक जाता है और उसे डर भी लगने लगता है और वह ऐसा व्यवहार करता है जैसे पागल कुत्ते के काटने से होता है। ऐसे ही कुछ लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हाइड्रोफोबिनम, स्ट्रैमोनियम, कैन्थैरिस तथा बेलाडोना औषधियों का उपयोग किया जा सकता है। अत: इन औषधियों के कुछ गुणों की तुलना हायोसाएमस औषधि से कर सकते हैं।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

यदि किसी स्त्री को मासिकधर्म के समय रात को स्राव होने लगे तो उस समय में, रोगी को मानसिक पीड़ा अधिक हो, ईष्या (दूसरे के प्रति जलन) हो तथा प्रेम से दुखी हो तो ऐसे समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) :-

रोग की अवस्था में नीचे की ओर झुकने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

हायोसाएमस औषधि की मात्रा (डोज) :-

6 से 200 शक्ति।


हेमामेलिस वर्जिनिका Hamamelis virginiana

 हेमामेलिस वर्जिनिका

परिचय-

यदि किसी रोगी के शरीर के शिराओं से खून बहने लगता है तथा शिराएं भरी रहती हैं, शिराओं से कोई चीज छू जाने पर दर्द बर्दास्त नहीं हो पाता तथा जो खून बहता है वह गहरे काले रंग का थक्केदार होता है। इस प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमामेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए। वात रोग से पीड़ित रोगी को कुचलन जैसा दर्द महसूस होता है तो ऐसे रोग को ठीक करने के लिए आर्निका औषधि का प्रयोग करते है, लेकिन ऐसे ही लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमामेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग किया जा सकता है, अत: कहा जा सकता है कि इस प्रकार के गुणों के अनुसार आर्निका औषधि की तुलना इससे कर सकते हैं। इन दोनों औषधियों में सबसे प्रमुख अन्तर यह है कि आर्निका औषधि का असर मुख्य रूप से कोशिकाओं पर होता हैं तथा उनमें एक प्रकार की शिथिलता आ जाती है। इसीलिए उनमें एक प्रकार का काला दाग नज़र आता है। हेमामेलिस वर्जिनिका औषधि की क्रिया शिराओं पर अधिक होती है। शिराएं एक दम बढ़ जाती है, भर आती हैं तथा उनमें दर्द भी होता है।

किसी भी प्रकार की शिराओं की सूजन को ठीक करने के लिए हेमामेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है, यहां इस औषधि की तुलना पल्सेटिला से की जा सकती है। लेकिन इसका एकमात्र सबसे बड़ा परिचायक लक्षण यह है कि शिराओं में स्पर्श सहन नहीं हो पाता है।

नाक, जरायु , फेफड़े, मूत्राशय तथा आंत से बहने वाले खून को रोकने के लिए हेमामेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए। वैसे देखा जाए तो यह औषधि कोई विषैला पदार्थ नहीं है। अण्डकोष में जलन होने पर इस औषधि का प्रयोग करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है। गुदाद्वार से खून बहने, टायफायड बुखार होने या बवासीर के रोग को ठीक करने के लिए इसका उपयोग लाभदायक है।

किसी प्रकार के चोट लग जाने पर इस औषधि का बाहरी उपयोग करने से रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

आर्निका और कैलेण्डुला औषधि के कुछ गुणों को हेमामेलिस वर्जिनिका औषधि से तुलना कर सकते हैं।


हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम Hepar sulphuris calcareum

 हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम Hepar sulphuris calcareum

परिचय-

किसी भी प्रकार की त्वचा के रोग ठीक हो जाने के बाद उत्पन्न रोग तथा पारा के दुरुपयोग से उत्पन्न रोग की अवस्था को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए। सूजन, वात तथा फोड़ा से पीड़ित रोगी के रोग के स्थान को छूने पर रोगी उसे छूने नहीं देता है, हाथ या किसी वस्तु से छू जाने पर रोगी तुरन्त ही चिल्ला उठता है, जरा भी छू जाने से दर्द तेज होने लगता है, इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है, लेकिन ऐसे ही कुछ लक्षण होने पर रोगी के रोग को ठीक करने के लिए चायना औषधि का प्रयोग कर सकते हैं। इसलिए चायना औषधि के इस गुण की तुलना इससे कर सकते हैं, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि चायना औषधि का प्रयोग उन रोगियों पर करते है जिन रोगियों के रोग ग्रस्त भाग को हल्के से छूने से दर्द होता है और धीरे-धीरे दबाने से आराम मिलता है तथा रोगी के रोग ग्रस्त भागों को छूते हैं तो उसके रोग ग्रस्त भाग में दर्द होता है और घाव में मवाद पड़ जाता है।

रोगी को खांसी हो जाती है तथा इसके साथ ही रोगी का गला भारी खुश्क और बैठ जाता है, गले के अन्दर कफ जम जाता है जिसके कारण गले में घरघराहट होता है, ठण्डी हवा, ठण्डे पेय पदार्थ पीने से रोगी के रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है। रोगी को आधी रात के पहले और सुबह होने के पहले हालत खराब हो जाती है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को खांसी कभी-भी सूखी नहीं होती है कुछ न कुछ ढीली बनी रहती है, कुछ न कुछ कफ भी निकलता रहता है तथा रोगी को हल्का बुखार भी रहता है।

यदि किसी रोगी को काली खांसी हो तथा जरा सा भी हवा रोगी को बरर्दाश्त नहीं हो तो ऐसी अवस्था में रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एको और स्पान्ज के बाद सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

खांसी होने की शुरुआती अवस्था में एकोनाइट औषधि का उपयोग करने के बाद स्पांज और बाद में हिपर औषधि का उपयोग करने से खांसी ठीक हो जाती है।

हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

ठण्डी हवा से सम्बन्धित लक्षण :- यदि रोगी बुखार, खांसी या किसी फोड़े के रोग से पीड़ित है तथा उसमें इस प्रकार के लक्षण हों जैसे- ठण्डी हवा बर्दाश्त नहीं हो रही हो, फोड़ा, सूजन तथा शरीर के अन्य रोग ग्रस्त भाग को सावधानी के साथ ढककर रखना, दरवाजें, खिड़की बन्द रखता हो, खिड़की या दरवाजा जरा सा भी खुला रहने से रोगी को यह ख्याल होता है कि उस स्थान से हवा आकर मेरे शरीर में लगती है और इससे मेरी बीमारी और बढ़ जायेगी। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मानसिक लक्षण से सम्बन्धित लक्षण : बात-बात पर क्रोध आना, उत्तेजित होना तथा इस लक्षण के साथ ही रोगी के शरीर पर फोड़े या फुंसियां हो, बुखार हो गया हो या खांसी हो गई हो या अन्य कोई बीमारी हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

फोड़े से सम्बन्धित लक्षण : फोड़ों में किसी भी प्रकार की सूजन में मवाद बनने से पहले इस औषधि की उच्च शक्ति की एक खुराक लेने से लाभ मिलता है।

आंख से सम्बन्धित लक्षण : आंख आने पर आंख के दोनों पलकों में सूजन होने तथा आंखों में बिलनी के पक जाने पर हिपर औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। पारा के उपयोग करने से आंखों में विभिन्न प्रकार के विकार जैसे आंखों की पुतली में सूजन, आंख से मवाद का आना, आंखों के अन्य भागों में सूजन होना, आंखों में दर्द होना तथा आंखों को छूने मात्र से ही दर्द होना तथा आंखों के किसी भी रोग से सम्बंधित लक्षणों में हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग विशेष रूप से लाभकारी होता है।

मूत्राशय से सम्बन्धित लक्षण : मूत्राशय में कमजोरी, पेशाब का बूंद-बूंद करके आना, पेशाब करने के बाद पुन: पेशाब करने की इच्छा होना तथा पेशाब का काफी समय तक बूंद-बूंद करके आना आदि लक्षणों के होने पर हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि लाभकारी होता है।

पुरुष जननेन्द्रिय से सम्बन्धित लक्षण : पुरुषों के जननेन्द्रिय के अगले भाग की त्वचा पर सूजाक के समान घाव होना, लिंग, अण्डकोषों और जांघ की त्वचा में खराश होने के साथ चिपचिपा पानी निकलने पर हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि दी जाती है।

स्त्री जननेन्द्रिय से सम्बन्धित लक्षण : जरायु (गर्भाशय की ऊपरी झिल्ली) और स्तन में घाव होना जिसमें से बड़ा ही बदबूदार पीब निकलता है, जिसकी गंध पुराने सडे़ हुए पनीर के समान होती है। प्रदर रोग (लिकोरिया) में से ही ऐसी ही दुर्गंध आती है जिसके कारण योनि को बार-बार नये और साफ कपडे़ से धोना पड़ता है। ऐसे लक्षणों में हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि लाभकारी होता है।

त्वचा के रोग से सम्बन्धित लक्षण : यह बात ध्यान रखने वाली है हिपर औषधि के रोगी की त्वचा की थोड़ी सी ही मात्रा में कट जाने से वह पक जाती है जिसके कारण उसमें मवाद आने लगता है। एक्जिमा के कारण हुए घाव में स्पर्श मात्र से ही खून का निकलना, छोटी-छोटी फुंसियों का निकलना, इन छोटी-छोटी फुंसियों में मवाद पड़ जाता है तथा इनसे पनीर की तरह बदबू आती है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हिपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बुखार (ज्वर) से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को खुली हवा बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होती है, गर्म अंगीठी के पास बैठने का मन करता है, ठण्ड के समय में शरीर में दरारें पड़ जाते हैं, उनमें बहुत सख्त खुजली और डंक मारने की तरह जलन और दर्द होता है, शरीर में थोड़ी गर्मी आते ही दरारें गायब हो जाते हैं। बुखार होने के कारण मुंह के अन्दर छाले पड़ जाते हैं। शरीर से बदबूदार पसीना आता है जो खट्टा होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी को यदि बुखार भी हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हिपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर के कई अंगों में सूजन आ जाती है तथा इसके साथ ही रोग के स्थान पर डंक लगने जैसा दर्द होता है और ऐसा महसूस होता है कि उस भाग में मोच आ गई हो और शरीर में ऐंठन सी होने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

हाथ तथा पैर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के हाथ तथा पैरों में चुभन होती है तथा ऐसा लगता है कि हाथ तथा पैरों में डंक लग गया हो। ऐसे लक्षणों में हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि उपयोग करे।

फेफड़ों में जलन से सम्बन्धित लक्षण :- फेफड़ों में जलन रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए लेकिन इस औषधि का उपयोग करने से पहले रोगी में यह देख लेना चाहिए कि रोगी को इसके साथ और भी कई लक्षण होना चाहिए जो इस प्रकार हैं- सबसे पहले रोगी के फेफड़े में फोड़ा हो जाता है तथा इसमें मवाद भर जाता है, ठीक इसी प्रकार यदि सांस लेने वाली नलिकाओं में भी जलन तथा छाती में जलन और दर्द हो रहा हो।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर में झटके लगते हैं या सवारी करने से चक्कर आने लगते हैं तथा इसके साथ ही सिर में दर्द होता रहता है, सुबह के समय में कनपटी वा नाक की जड़ में बरमें द्वारा छेद करने जैसा दर्द महसूस होता है, सिर के ऊपरी भाग में जलन और खुजली होने लगती है तथा शरीर से ठण्डा पसीना भी आता है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की आंखें लाल हो जाती हैं तथा उसमें जलन होने लगती है, आंखों में हवा के प्रति अधिक संवेदशील उत्पन्न हो जाता है तथा इसके साथ ही सिर में दर्द होता है और ऐसा महसूस होता है कि जैसे सिर के अन्दर की ओर खिंचाव उत्पन्न हो रहा हो, आंखों की कोटरों की ऊपर वाली हडि्डयों में बरमें से छेद किये जाने जैसा दर्द होता है, नेत्रगोलक को छूने से दर्द महसूस होता है, जो चीजें लाल तथा बड़ी दिखाई देती है, पढ़ने से दृष्टि धुंधला हो जाती है, देखने की शक्ति कम हो जाती है, आंखों के आंगे काले घेरे बन जाते हैं। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण :- रोगी का चेहरा पीला हो जाता है तथा निचला होंठ बीच में से फट जाता है, चेहरे के रोग ग्रस्त भागों में सूजन आ जाती है, चेहरे के दायीं भाग के नाड़ियों में दर्द होता है और दर्द का असर कनपटी, कान, नथुनों और होंठ तक फैल जाता है, चेहरों की हडि्डयों में दर्द होता है तथा उन्हें छूने से दर्द होता है, मुंह के कोनों में घाव हो जाता है तथा जब रोगी अपने मुंह को खोलता है तो जबड़ों में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के मुंह से लार टपकता रहता है, मसूढ़ों और मुंह को छूने से दर्द महसूस होने लगता है तथा उनमें से खून भी बहने लगता है ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि उपयोग करना उचित होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को खट्टी चीजें, शराब एवं चटपटी चीजें खाने की इच्छा होती है, वसा पदार्थो का खाने का मन नहीं करता है, बार-बार डकारें आती हैं लेकिन न उनका कोई स्वाद होता है न गंध (खूश्बू)। आमाशय का भाग अधिक फूल जाता है जिसके कारण रोगी को अपने कपड़े ढीले करने पड़ जाते हैं, आमाशय में जलन होती है, हल्का सा भोजन करने के बाद भी आमाशय के अन्दर भारीपन तथा दबाव महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को चलते समय, खांसते समय, सांस लेते समय या फिर पेट को छूने से जिगर (यकृत) में सुई जैसा दर्द होता है, यकृत में सूजन आ जाती है, पेट फूला हुआ लगता है तथा तना हुआ हो जाता है तथा पेट के पुराने रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी जब मलत्याग करता है तो उसका मल मिट्टी की तरह तथा नरम होता है, मल से खट्टी बदबू आती है तथा मल सफेद रंग का होता है, मल में अन्दर अनपचा पदार्थ होता है, रोगी को मल त्याग करने में जोर लगाना पड़ता है। ऐसे लक्षणों वाले रोगी को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

यकृत से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी के यकृत में जलन हो रही हो या जिगर से सम्बन्धित कोई रोग तथा इसके साथ इन रोगों में रोग ग्रस्त स्थान पर मवाद भी पड़ जाता है और मवाद बहने के रास्ता बन्द हो जाता है। तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि उपयोग लाभदायक है।

गलाशुण्डिका से सम्बन्धित लक्षण :- गले के नसों की बढ़ी हुई अवस्था में और इस रोग के साथ ही यदि रोग को ऊंचा सुनाई पड़ता है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को मूत्रत्याग करने में परेशानी होने लगती है, रुक-रुक कर पेशाब आता रहता है, मूत्र त्याग करने में रोगी को जोर लगाना पड़ता है, पेशाब बूंद-बूंद करके टपकता रहता है, रोगी को पेशाब करने के लिए देर तक बैठना पड़ता है तथा इसके साथ ही मूत्राशय में कमजोरी होने लगती है और रोगी पेशाब करने में असमर्थ होता है और रोगी को हर समय ऐसा महसूस होता है कि उसके मूत्राशय में पेशाब जमा हो चुका है। इस प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

लिंग से सम्बन्धित लक्षण :- लिंग में खरोंच लगने तथा इसके साथ ही उसमें दर्द होने तथा इसके साथ ही लिंग की त्वचा और अण्डकोष की त्वचा पर और जांघों तक दर्द होता है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

सांस से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को सांस लेने में परेशानी होती है तथा छाती पर से सीटी बजने की आवाज होती है जो सिर को पीछे की ओर मोड़ने पर ही कुछ कम होती है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि उपयोग लाभदायक है।

खांसी से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को खांसी हो जाती है तथा इसके साथ ही रोगी को केवल दिन में कफ निकलता है, रात में नहीं तथा कभी-कभी रोगी को ऐसा लगता है जैसे दम घुट रहा हो, ऐसे रोग के रोग को ठीक करने के लिए हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयेाग करना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

शरीर के मुलायम मांस पर चोट लगने पर हिपर, कैलेन्डयूला औषधि की तरह ही हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि का उपयोग कर सकते हैं जिसके फलस्वरूप व्यक्ति का रोग ठीक हो जाता है, अत: हिपर तथा कैलेन्डयूला औषधि की कुछ गुणों की तुलना हीपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि से कर सकते हैं।

हिपर, पारा और अन्याय धातु, आयोडाइड ऑफ पोटाश, आयोडीन तथा काडलिवर आयोल के उपयोग करने के कारण उत्पन्न हुए दुष्परिणाम को हिपर सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि दूर कर देता है।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

रोगी के शरीर में जिस तरफ दर्द हो उस तरफ के करवट करके लेटने से, ठण्डी हवा से, खुली हवा में रहने से, ठण्डी चीज खाने या पीने से रोग ग्रस्त स्थान को छूने से तथा पारे के दुरूपयोग से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन . ह्रास) :-

गर्म कपड़े ओढ़ने से, खास कर सिर को गर्म कपड़े से ढंकने से, गर्मी से, सील और नम मौसम में रहन से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

मात्रा :-

सल्फ्यूरिस कल्केरियम औषधि की 1 से 200 शक्ति तक का प्रयोग करना चाहिए।

उच्चतर शक्तियां पीब बाहर निकालती है, जबकि निम्न शक्तियां पीब बनाती हैं। 2x शक्ति से घाव जल्दी पक जाता है।


हेराक्लियम Heracleum

 हेराक्लियम Heracleum

परिचय-

मेरुदण्ड के भाग में अधिक कमजोरी हो गई हो तो उसको दूर करने के लिए हेराक्लियम-ब्रांका उर्सिना औषधि का उपयोग करना चाहिए। मृगी के रोग को ठीक करने के लिए भी यह औषधि लाभदायक है, पेट में वायु बनने, जोड़ों का दर्द तथा चर्म रोग को ठीक करने में भी यह औषधि लाभदायक है। हेराक्लियम-ब्रांका उर्सिना औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर में दर्द होता रहता है, खुली हवा में टहलने से अधिक तेज दर्द होता है, सिर को कपड़े से कसकर बांधने से रोगी को कुछ आराम मिलता है, सिर में से अत्यधिक चर्बीदार पसीना निकलता है और तेज खुजली होती है, सिर से पसीना आना, सिर में रूसी होना तथा खाज होना। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण किसी रोगी में है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हेराक्लियम-ब्रांका उर्सिना औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के आमाशय में दर्द होता है तथा रोगी को उल्टी भी होती है, कड़ी डकारें आती है तथा जीभ का स्वाद कड़वा हो जाता है, रोगी को भूख तो लगती है लेकिन वह खा नहीं पाता है, पेट तथा प्लीहा में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेराक्लियम-ब्रांका उर्सिना औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है। 

मात्रा :-

हेराक्लियम-ब्रांका उर्सिना औषधि की तीसरी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


हेपाटिका Hepatica

 हेपाटिका Hepatica

परिचय-

हेपाटिका औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

गले से सम्बन्धित लक्षण :- गले में गुदगुदी होना तथा चिढ़ मचना, छिलन महसूस होना और खुरदरेपन का एहसास होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेपाटिका औषधि का उपयोग करना चाहिए। कुछ रोगी व्यक्तियों को अधिक बलगम आता है तथा गले में खराश बनी रहती है, बलगम को बिना किसी कठिनाई और सरलता पूर्वक बाहर निकल जाता है, लेसदार, चिपचिपा, गाढ़ा बलगम, जिसे बाहर निकालने के लिये लगातार खंखारना पड़ता है, रोगी को ऐसा महसूस होता है कि भोजन के कुछ कण गले में शेष रह गये हैं, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेपाटिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

नाक से सम्बन्धित लक्षण :- नाक के नथुनों में दर्द होता है, तथा नाक से अधिक मात्रा में बलगम जैसा पदार्थ निकलता रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेपाटिका औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है। 

मात्रा :- 

हेपाटिका औषधि की दूसरी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


हिप्पोजेनियम Hippozaenium

 हिप्पोजेनियम Hippozaenium

परिचय-

हिप्पोजेनियम औषधि का उपयोग कई प्रकार के रोग जैसे- गण्डमाला (गले की सूजन), पाइमिया, रोग ओजिना तथा इरिसिपेल के गम्भीर अवस्था को ठीक करने के लिए किया जाता है। रोगी के नाक लाल व सूजी हुई होती है, जुकाम हो गया हो तथा इसके साथ नाक पर घाव हो गया हो, जो पानी नाक से निकलता है उसमें तीखी जलन होती है तथा उसमें से बदबू आती है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए हिप्पोजेनियम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मुंह की ग्रन्थि सूजी रहती है तथा उनमें दर्द होता रहता है, मुंह में फोड़ा हो जाता है, बाजुओं में गांठें पड़ जाती हैं, बूढ़ा व्यक्ति यदि सांस लेता है तो मुंह से आवाज निकलती है, नाक में सूजन आ जाती है, कभी-कभी रोगी का दम भी घुटने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी तथा वृद्धों का ब्रोंकाइटिस रोग को ठीक करने के लिए हिप्पोजेनियम औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

सोरा, बैसीली तथा काली-बाइको औषधियों के कुछ गुणों की तुलना हिप्पोजेनियम औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

हिप्पोजेनियम औषधि की 3 से 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। 


हिप्पोमैनेस Hippomanes

 हिप्पोमैनेस Hippomanes

परिचय-

हिप्पोमैनेस औषधि एक प्रकार का संभोग शक्ति को बढ़ाने वाला पदार्थ है। हिप्पोमैनेस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- आमाशय के अन्दर बर्फ जैसी ठण्डक महसूस होती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हिप्पोमैनेस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पुरुष से सम्बन्धित लक्षण :- सम्भोग करने की इच्छा बढ़ने के साथ-साथ पु:रस्थग्रन्थि में सूजन आ जाती है तथा अण्डकोष में खिंचावदार दर्द होता है, इस प्रकार के रोग को ठीक करने के लिए हिप्पोमैनेस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

शरीर की बाहरी अंग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के कलाई में तेज दर्द होता है, कलाईयों में लकवा का प्रभाव होता है, कलाई में मोच आ जाने जैसी अनुभूति होती है। हाथों तथा हाथों की उंगलियों में अधिक कमजोरी आ जाती है। पैरों के जोड़ों और घुटनों तथा तलुवों में कमजोरी आ जाती है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हिप्पोमैनेस औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है। 

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

कास्टिक औषधि के कुछ गुणों की तुलना हिप्पोमैनेस औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

हिप्पोमैनेस औषधि की छठी से तीसवी शक्ति तक का प्रयोग करना चाहिए।


होआंग नान- स्ट्रिक्नस गौल्थेरियाना Hoang nan-strychns gaultheriana

 होआंग नान- स्ट्रिक्नस गौल्थेरियाना Hoang nan-strychns gaultheriana

परिचय-

होआंग नान-स्ट्रिक्नस गौल्थेरियाना औषधि का निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है- * थकान के साथ चक्कर आना, हाथ-पैरों में सुन्नपन और सुरसुराहट होना तथा इसके साथ निचले जबड़े की गति अनियमित ढंग से होना।

* शरीर के कई अंगों में फोड़े-तथा फुंसियां होना।

* त्वचा पर लकवा जैसा प्रभाव हो जाता तथा तृत्तीयक उपदंश (टेरटेरी साइफिल्स ) हो जाता है।

* त्वचा पर पुरानी खुजली होना, छाजन होना, कुष्ठ होना।

* ग्रन्थियों का कैंसर रोग तथा सर्पदंश (साप के काटने पर)।


कैंसर जैसे रोग को ठीक करने के लिए होआंग नान- स्ट्रिक्नस गौल्थेरियाना औषधि का उपयोग अधिक लाभदायक है। इसके प्रभाव से कैंसर में जो बदबू आती है उसे यह हटा देती है और रक्तस्राव रोकती है जिसके फलस्वरूप कैंसर रोग ठीक होने लगता है।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

आर्सेनिक औषधि के कुछ गुणों की तुलना होआंग नान- स्ट्रिक्नस गौल्थेरियाना औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

होआंग नान- स्ट्रिक्नस गौल्थेरियाना औषधि की मूलार्क की पांच बूंदे का प्रयोग या प्रयोग को बीस बूंदों तक बढ़ाया जा सकता है।


हिप्पूरिक एसिड Hippuric acid

 हिप्पूरिक एसिड Hippuric acid 

परिचय-

हिप्पूरिक एसिड औषधि का प्रभाव आंखों तथा गले, हडि्डयों के जोड़ (जाइंट सुरफेसस), जिगर (लिवर) तथा \'लेश्म कलाओं (म्युकस मम्बरेंस) के बाहरी ऊतकों पर होता है। इस औषधि से दाया पार्श्व भाग अधिक प्रभावित होता है तथा पेशियों के दर्द को ठीक करने के लिए इसका उपयोग लाभदायक है। हिप्पूरिक एसिड औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- दांई आंख के ऊपर दर्द होता है, गरम कमरे के अन्दर हल्का-हल्का सिर में दर्द होता रहता है, पलकों में जलन होती है तथा पलकें सूजी हुई रहती हैं। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हिप्पूरिक एसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के गले में दर्द होता है, गले के अन्दर खुश्की महसूस होती है, खाना को निगलना कठिन हो जाता है, मुंह से बदबू आती है, गले के अन्दर चिपचिपा पदार्थ अटका हुआ है, ऐसा महसूस होता है, गले के चारों ओर के स्थित ऊतकों का मोटा और स्थिर होना, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने लिए हिप्पूरिक एसिड औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को खट्टी डकारें आती है, पेट में गांठ बनना महसूस होता है, यकृत के ऊपर दर्द तथा दबाव महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हिप्पूरिक एसिड औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण :- मासिकधर्म के तीन सप्ताह तक रोगी स्त्री के पेशियों तथा जोड़ों में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्रियों के रोग को ठीक करने के लिए हिप्पूरिक एसिड औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के कमर में दर्द होता रहता है तथा दर्द का असर कूल्हों तक हो जाता है। इसके अलावा कंधों तथा शरीर के अनेक अगों में दर्द होता रहता है। जोड़ों पर सूजन आ जाती है। जांघ के बीच में दर्द होता है जिसका असर टांग के पीछे से गोली के समान नीचे की ओर दाईं टांग तक चला जाता है। जोड़ों में थकान तथा अकड़न महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हिप्पूरिक एसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

त्वचा से सम्बन्धित लक्षण :-

खुजली तथा जलन होना, छाती पर ऐसे पिटक निकलते हैं जो त्वचा पर सिकुड़न उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हिप्पूरिक एसिड औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।


हेलोनियस-कैमीलीरियम Helonias-chamaelirium

 हेलोनियस-कैमीलीरियम Helonias-chamaelirium

परिचय-

त्रिकास्थि (सेक्रम) तथा गोणिका (श्रेणि फलक) में किसी प्रकार की कमजोरी आ जाने या इस भाग में किसी प्रकार के बोझा रखे जैसा महसूस होना तथा इसके साथ ही भारी आलस्य और उदासीपन होने पर इस औषधि का प्रयोग लाभदायक है, जिसके फलस्वरूप इस प्रकार के लक्षण ठीक हो जाते हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी में और भी कई प्रकार के लक्षण होते हैं जो इस प्रकार हैं- हल्की-हल्की थकावट महसूस होने लगती है, शरीर में बहुत अधिक कमजोरी महसूस होती है, गर्भाशय के ऊपर छीलन तथा गर्भाशय अपने स्थान से हट जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि का उपयोग करना चाहिए। हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी बहुत अधिक सोच में डूबा रहता है, जब रोगी किसी काम में लगा रहता है तो उसे कुछ आराम मिलता है, लेकिन जब मन किसी न किसी काम में उलझा रहता है और वह लगातार कोई न कोई कार्य करता रहता है तथा चिड़चिड़ा स्वभाव का हो जाता है, रोगी हल्का सा विरोध भी सहन नहीं कर पाता है तो उसके रोग के लक्षणों में वृद्धि होती हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण:- सिर के ऊपरी भाग में जलन और दर्द होता तथा जब रोगी मानसिक परिश्रम करता है तो उसे आराम मिलता है। इस प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के कमर में दर्द और बोझ रखने जैसा महसूस होता है, रोगी को अधिक थकावट तथा कमजोरी महसूस होती है, कमर पर जलन भी महसूस होती है, अण्डकोषों में जलन तथा दर्द महसूस होता है, नीचे के टांगों में तेज दर्द होता है तथा रोगी को बहुत अधिक थकान महसूस होती है, यदि रोगी कुछ व्यायाम करता है तो उसे कुछ हद तक आराम मिलता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी स्त्री के त्रिकप्रदेश में खिंचाव हो रहा हो तथा इसके साथ ही गर्भाशय के ऊपरी झिल्ली पर जलन तथा दर्द हो रहा हो। इस प्रकार के लक्षण रोगी स्त्री को गर्भपात के बाद अधिक होता है।

* स्त्री को गर्भपात होने के बाद कमर में दर्द हो रहा हो।

* रोगी स्त्री के गर्भाशय के अन्दर भारीपन और दर्द महसूस होता है, मासिकधर्म बार-बार अधिक स्राव होता है।

* रोगी स्त्री के स्तन में सूजन आ जाती है तथा इसके साथ ही स्तन में दर्द होता है और स्तन को छूने से और भी अधिक तेज दर्द होता है।

* रोगी स्त्री के योनि का भाग लाल हो जाता है तथा उसमें जलन होने लगती है तथा उसमें सूजन आ जाती है और बहुत अधिक खुजली होती है।

* रोगी स्त्री मासिकधर्म के समय में बहुत अधिक कमजोर हो जाती है।

* इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।


पेशाब से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी स्त्री के पेशाब में अन्न की तरह कुछ पदार्थ निकलने लगता है तथा पेशाब में शर्करा आने लगता है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि का उपयोग लाभदायक है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे मांस-पेशियों पर ठण्डी हवा बह रही हो तथा बैठे रहने पर टांगों में दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

किसी प्रकार से गति करने से तथा स्पर्श (रोग ग्रस्त भाग को छूने) करने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन. ह्रास) :-

मन को किसी अन्य कार्य में उलझाये रहने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध :- 

दर्दनाक गुर्दे के रोग, पाचनतन्त्र में किसी प्रकार से खराबी आने तथा मासिकस्राव होने, सांस लेने वाली नलियों में तथा मूत्राशय में जलन होने, खांसी के साथ अधिक मात्रा में बलगम आने और खांसते समय पेशाब टपकना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एग्रिमोनिया औषधि का उपयोग करना चाहिए। ठीक इसी प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि का प्रयोग कर सकते हैं, अत: एग्रिमोनिया औषधि से हेलोनियस-कैमीलीरियम औषधि की तुलना कर सकते हैं।


होलर्रहेना एण्टीडाइसेण्टेरिका Holarrhena Antidysenterica

 होलर्रहेना एण्टीडाइसेण्टेरिका Holarrhena Antidysenterica

परिचय-

होलर्रहेना एण्टीडाइसेण्टैरिका औषधि का प्रयोग कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए लाभदायक है जैसे- जीर्ण पेचिश, ज्वर (बुखार)। यदि किसी रोगी को पेचिश हो गया हो तथा उसके साथ ही रोगी को अधिक कमजोरी महसूस हो रही हो और इसके साथ ही रोगी का भूख भी कम है, नाभि के चारों ओर दर्द हो रहा हो, मल के साथ कफ जैसा पदार्थ निकल रहा हो और कभी-कभी खून भी निकल रहा हो तो ऐसे रोगी को उपचार करने के लिए होलर्रहेना एण्टीडाइसेण्टैरिका औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मात्रा :-

होलर्रहेना एण्टीडाइसेण्टेरिका की मूलार्क, 3x, 6x, शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए। 


हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस Hydrastis canadensis

 हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस

परिचय-

जब रोगी स्त्री, शरीर की श्लैष्मिक झिल्लियों के रोगों से पीड़ित होती है तो उसके गर्भाशय, वायु-नली तथा पेट की श्लैष्मिक-झिल्ली से भी डोरी जैसी श्लैष्मा (कफ) बाहर निकलती है। रोगी पुराने कब्ज के रोग से भी पीड़ित होता है-ऐसा कब्ज जिसका कोई विशेष लक्षण नहीं होता है। इस प्रकार के लक्षणों में हाड्रेस्टिस कैनाडिन्सस औषधि का उपयोग करना चाहिए। एक्लेक्टिक-चिकित्सक हाड्रेस्टिस कैनाडिन्सस औषधि का उपयोग श्लैष्मिक-झिल्लियों के घाव को ठीक करने के लिए उत्तम औषधि मानते हैं तथा उनकी यह भी मान्यता है कि इसमें शक्ति उत्पन्न करने की क्षमता होती है। होमियोपैथी चिकित्सा में भी इस प्रकार के रोग का उपचार करने के लिए इस औषधि का उपयोग करते है।

हाड्रेस्टिस कैनाडिन्सस औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

मलद्वार से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी के मलद्वार में बहुत अधिक दर्द हो, उसे उदासीपन महसूस हो रही हो और साथ ही कमजोरी भी महसूस हो रही हो तथा कभी-कभी तो रोगी को ऐसा भी महसूस होता है कि उसका पेट अन्दर की ओर धंसा जा रहा है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- पेट में दर्द तथा इस दर्द के कारण पेट के ऊपर का भाग ढीला महसूस होता है। शरीर में कमजोरी और खालीपन का अहसास होता है तथा कभी-कभी तो रोगी को ऐसा भी महसूस होता है कि जैसे उसका पेट अन्दर की ओर धंसा जा रहा है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने लिए हाड्रेस्टिस कैनाडिन्सस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

कब्ज से सम्बन्धित लक्षण :- पुराने कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग लाभदायक है। इस रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 200 पोटेंसी की मात्रा का उपयोग लाभदायक है। कब्ज होने के साथ में कुछ रोगियों में कुछ इस प्रकार के लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं जो इस प्रकार हैं- मल भेड़ की मेंगनी जैसा होता है, मल भूरा गांठदार, कठोर लम्बा लेण्ड सा हल्के रंग का होता है।

ब्रोंकाइटिस से सम्बन्धित लक्षण :- कभी-कभी पुराने ब्रोंकाइटिस रोग को ठीक करने के लिए हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग लाभदायक होता है।

श्वेत-प्रदर से सम्बन्धित लक्षण :- यदि \'श्वेत-प्रदर रोग में डोरी जैसी कफ के सामान पीव निकल रही हो तो इसके लिए हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग लाभदायक है।

कमजोरी से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर में अधिक कमजोरी आ गई हो तथा कफ के समान पीव निकल रहा हो तथा इस कफ में डोरी जैसा पदार्थ भी हो तो हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग लाभकारी है।

पाचन संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर का खून दूषित हो गया हो जिसके कारण शरीर में अनेक प्रकार के रोग हो गये हों और साथ ही पाचन संस्थान भी रोग ग्रस्त हो गया हो तो हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शराब से सम्बन्धित लक्षण :- अधिक शराब पीने के कारण स्वास्थ्य गिर गया हो तो हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप रोगी के स्वास्थ्य में सुधार हो जाता है।

नाभि से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी के नाभि के भाग में खिंचाव महसूस हो रहा हो तथा खालीपन का अहसास हो रहा हो तो हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि के उपयोग से ये लक्षण ठीक हो जाते हैं।

माता तथा धाय से सम्बन्धित लक्षण :- दूध पिलाने वाली माता तथा धाय का मुंह पक गया हो तो उसके इस रोग का उपचार करने के लिए हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

पोटाश या पारा से सम्बन्धित लक्षण :- पोटाश तथा पारा के सेवन करने से मुंह पक गया हो या चरपरा स्वाद, जीभ सूखी जैसे झुलस गई हो तो हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि से उपचार करने पर रोगी ठीक हो जाता है।

भूख कम लगना से सम्बन्धित लक्षण :- आंतों की क्रिया ठीक न रहने के कारण भूख का कम लगना तथा पाचन क्रिया खराब होने पर हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि से उपचार करना उचित होता है।

यकृत से सम्बन्धित लक्षण :- यकृत की क्रिया ठीक प्रकार से न होने पर हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि से उपचार करने से रोग ग्रस्त यकृत की क्रिया में सुधार हो जाती है।

जीभ से सम्बन्धित लक्षण :- जीभ बढ़ गई हो तथा फूल गई हो और उस पर दांतों के निशान पड़े हो तो हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि से उपचार करना चाहिए।

जुकाम से सम्बन्धित लक्षण :- किसी रोगी को जुकाम हो गया हो तथा इसके साथ ही पीलिया का रोग भी हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

नाक से सम्बन्धित लक्षण :- नाक से गाढ़ा चिकना पीला और तार सा खिंचने वाला कफ जैसा श्लेमा निकलता रहता है तथा जब रोगी घर से बाहर निकलता है तो उसके रोग के लक्षण और भी बढ़ने लगते हैं, तो ऐसे रोगी का उपचार करने के लिए हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग करना चाहिए।

गर्भाशयमुख से सम्बन्धित लक्षण :- गर्भाशय के मुंह तथा योनि पर हल्की खरोंच आ गई हो, उस स्थान पर मवाद बन रहा हो तथा उसके साथ खरोंच उत्पन्न करने वाला तरल पदार्थ बह रहा हो तो ऐसे लक्षणों में हाड्रेस्टिस कैनाडन्सिस औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है। 

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

गर्भावस्था में शराब का सेवन करने, अत्यधिक औषधियों का सेवन करने से, दस्त आने के बाद तथा खुली हवा में टहलने से रोगी के रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन. ह्रास) :-

सूखे मौसम में तथा कपड़े या चादर ओढ़ने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।


हेमाटॉक्सीलन HAEMATOXYLON

 हेमाटॉक्सीलन HAEMATOXYLON

परिचय-

हेमाटॉक्सीलन औषधि का उपयोग उन रोगियों के रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है जिनमें रोगी को शरीर में सिकुड़न महसूस होती है और ऐसा लगता है जैसे छाती के आर-पार कोई डण्डी रखी हो। गले का दर्द तथा फेफड़े के दर्द को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोगी का रोग ठीक हो जाता है। हेमाटॉक्सीलन औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

सिर से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी को ऐसा महसूस होता है कि सिर सिकुडा़ हुआ है और भारी हो गया है तथा गरम हो गया है। पलकें भी भारी महसूस होती हैं। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमाटॉक्सीलन औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण:- पेट से लेकर गले तक किसी चीज से खोदने जैसा दर्द होता है, जिसके कारण गले तथा फेफड़े के भाग में भी दर्द होने लगता है तथा घुटन सी महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमाटॉक्सीलन औषधि का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा पेट में दर्द होने, पेट में गैस बनने, पेट में गड़गड़ाहट होने, दस्त होने तथा पेट में सूजन आ जाने पर इस औषधि से उपचार करने से रोगी ठीक हो जाता है।

स्तन से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के स्तन में सिकुड़न होने लगती है तथा यह सिकुड़न अधिजठर तक फैल जाती है और रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि छाती के आर-पार कोई डण्डी रखी हुई है। छाती के पास तेज दर्द होता है तथा घुटन सी महसूस होती है और छाती में भारीपन होने लगता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमाटॉक्सीलन औषधि का उपयोग करना चाहिए।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण:- स्त्री रोगी के अध:पर्शुक-प्रदेश (हापोगेस्ट्रियम रिजन) में दर्द होने के साथ चिपचिपा, सफेद पीब की तरह का पदार्थ बहने लगता है। शरीर में अधिक कमजोरी महसूस होती है। मासिकधर्म के शुरुआती समय में योनि के पास नीचे की ओर दबाव मारता हुआ दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमाटॉक्सीलन औषधि का उपयोग करना चाहिए।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

कोलो, नाजा तथा कैक्टस औषधियों के कुछ गुणों की तुलना हेमाटॉक्सीलन औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

हेमाटॉक्सीलन औषधि की तीसरी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


हेमैमेलिस वर्जिनिका Hamamelis Virginica

 हेमैमेलिस वर्जिनिका Hamamelis virginica

परिचय-

शरीर के किसी भी भाग से खून बहने पर उसको रोकने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए। इससे रोगी को अधिक लाभ मिलता है। कभी-कभी काला और जमा हुआ थक्का की तरह का खून निकलता है और इस प्रकार खून का बहना शरीर के किसी भी भाग से जैसे नाक, जरायु (युटेरस), फेफड़ों आदि भाग से निकलने लगता है तो इस प्रकार के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है। आर्निका औषधि उपयोग उन रोगियों पर किया जाता है जिनको चोट लग जाने के कारण दर्द उत्पन्न होता है, इस प्रकार का दर्द अक्सर वात रोग (वायु का रोग) में भी होता है। इस प्रकार के लक्षण में यदि आर्निका औषधि के प्रयोग से लाभ न मिले तो इस औषधि का उपयोग करने से अवश्य लाभ मिलेगा।

किसी प्रकार से गिर जाने से चोट लगने से चोट ग्रस्त भाग पर खून जम कर घाव हो जाने पर हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

सिर से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी को अपने एक कनपटी से दूसरी कनपटी तक चिटकनी लगने जैसी अनुभूति होती है, सिर में भारीपन महसूस होना तथा इसके बाद नाक से खून निकलना, सिर की हड्डी के ऊपर सुन्नपन महसूस होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों में हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आंखों से सम्बन्धित लक्षण:- आंखों में दर्द होता है तथा कमजोरी का अहसास होता है, आंखों में जलन होने लगती है, आंखों से सम्बन्धित रक्त वाहिनियों में खून जमने लगता है, आंखों से खून निकलना तथा आंखें बाहर की ओर निकलने जैसी प्रतीत होती हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

नाक से सम्बन्धित लक्षण:- नाक से अधिक मात्रा में खून निकलने लगता है। नाक में दर्द होने लगता है तथा नाक से बदबू आने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

गले से सम्बन्धित लक्षण:- गले की नशे फूली हुई और नीली पड़ जाती हैं तथा गले की शिराएं फैल जाती हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जैसे उसकी जीभ जली हुई है, प्यास अधिक लगती है, जीभ के दोनों किनारों पर छाले पड़ जाते हैं, कभी-कभी तो रोगी को काले रंग की खून की उल्टी भी होती है तथा आमाशय के अन्दर जलन तथा दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मल से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के मलद्वार में दर्द होता है, मलद्वार से अधिक खून का स्राव (बहता) रहता है और साथ ही दर्द भी होता है, कभी-कभी तो रोगी को पेचिश भी हो जाता है तथा मलान्त्र में जलन भी होती है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण:- पेशाब से खून की मात्रा भी निकलने लगती है तथा साथ ही पेशाब करने की इच्छा बार-बार होती है। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयेाग करना लाभदायक होता है।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण:- 

* स्त्री रोगी की डिम्बग्रन्थियों में खून जमा होने लगता है तथा स्नायुतन्त्र में दर्द होता है। 

* मासिकधर्म के समय में तेज दर्द होना। 

* बच्चेदानी से खून बहने लगता है तथा पीठ में ऐसा दर्द होता है जैसे बच्चे को जन्म देने के समय में दर्द हो रहा हो।

* मासिकधर्म के समय में योनि से गहरे रंग का अधिक मात्रा में स्राव होता है तथा पेट में दर्द हो रहा हो।

* स्त्री को रक्तप्रदर रोग हो जाता है तथा मासिक धर्म के समय में स्त्री को और भी तेज दर्द होता है।

* स्त्रियों के योनि में तेज खुजली होने लगती है।

* बच्चे को जन्म देने के बाद स्त्री के स्तनों में तेज दर्द होता है तथा कभी-कभी तो स्तनों में खून भी जमने लगता है।

* स्त्रियों के योनि में खिंचाव उत्पन्न होता है तथा डिम्बाशय में सूजन और पेट में दर्द होने लगता है।

* बच्चे को जन्म देने के बाद होने वाला बुखार।


इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

पुरुष से सम्बन्धित लक्षण:- पुरुषों के अण्डकोष (स्पेरमेटिक क्रोड) में दर्द तथा दर्द का असर अण्डकोष (टेस्टीकल) के पूरे भाग में फैल जाता है। अण्डकोष की नसें फूल जाती हैं तथा उनमें दर्द होने लगता है, कभी-कभी तो अण्डकोष बढ़ भी जाता है और उसमें जलन भी होने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए, जिसके फलस्वरूप रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी को सुरसुराहट जैसी खांसी हो जाती है तथा छाती में दर्द होने लगता है और छाती सिकुड़ी हुई महसूस होती है और कभी-कभी तो बलगम के साथ खून भी निकलने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के गर्दन की कशेरुकाओं (वरटेबरी) में नीचे की ओर जलन तथा दर्द होने लगता है, कमर तथा अध:पर्शुक प्रदेश में तेज दर्द होता है तथा दर्द का असर नीचे के टांगों तक फैल जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वरजिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

चर्म से सम्बन्धित लक्ष :- रोगी की ऐड़ियां फटने लगती है, शरीर के शिराओं (नसों) में सूजन आ जाती है और शरीर के कई अंगों पर घाव हो जाता है और इन रोग ग्रस्त भागों पर जलन तथा दर्द होता है, किसी चोट के कारण उत्पन जलन तथा दर्द। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बवासीर से सम्बन्धित लक्षण:- यदि कोई व्यक्ति बवासीर के रोग से पीड़ित है और उसके मलद्वार से अधिक मात्रा में खून बह रहा है तथा इसके साथ ही मलद्वार पर तेज दर्द हो रहा हो और भारीपन तथा जलन महसूस हो रही हो या बवासीर के मस्से बाहर निकल आते हो और वे रूखापन तथा दर्द युक्त हो तो इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

नोट :- धमनियों से बहने वाला खून चमकीला लाल होता है। उसमें प्राणवायु होती है और हृदय से पूरे शरीर में फैलती है। इस खून में ऑक्सीजन होने के कारण उसका रंग चमकीला लाल दिखाई देता है, शिराओं से बहने वाला खून कत्थई रंग का होता है। शिराओं द्वारा जो खून हृदय की ओर जाता है उसमें ऑक्सीजन नहीं रह जाती है इसलिए उसका रंग कत्थई हो जाता है।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

गर्मी तथा तर हवा से, धक्क लगने, गाड़ी की सवारी करने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन. ह्रास) :-

आराम करने से तथा चुपचाप लेटने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

प्रतिविष :-

आर्निका।

पूरक:-

फेरम।

क्रियानाशक :-

पल्स।

मात्रा :-

हेमैमेलिस वर्जिनिका औषधि की मूलार्क से लेकर छठी शक्ति के तनूकरण तक का प्रयोग करना चाहिए। आस्त्रुत अर्क का स्थानिक प्रयोग।


हेडियोमा (HEDEOMA)

 हेडियोमा (HEDEOMA)

परिचय-

हेडियोमा औषधि स्त्री रोग के लक्षणों जो प्राय: स्नायु से सम्बन्धित होते हैं, में लाभकारी होती है। पेशाब में लाल रेत के कण आने, मूत्रनली में दर्द होने तथा पेट में दर्द होने पर इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

सिरोंचा जहर के प्रभाव को नष्ट करने के लिए हेडियोमा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

हेडियोमा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

सिर से सम्बन्धित लक्षण:- सुबह के समय में ठण्ड अधिक लगती है और सिर में भारीपन महसूस होता है, सिर गर्म हो जाता है और ऐसा महसूस होता है कि जैसे किसी चीज से सिर कट गया हो। शरीर में अधिक कमजोरी आ गई हो तथा लेटने पर बेहोशी जैसी समस्या हो रही हो तथा लेटने से कुछ आराम मिल रहा हो। ऐसे लक्षणों वाले रोग को ठीक करने के लिए हेडियोमा औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण:- आमाशय में सूजन आ जाती है, कोई भी चीज पेट में जाते ही पेट में दर्द होने लगता है तथा जीभ पर पतली सफेद परत जमी रहती है और जी मिचलाने लगता है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेडियोमा औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण :- पेट फूलने लगता है तथा दर्द होने लगता है, पेशाब करने पर मूत्रनली में दर्द होने लगता है, वृक्क से लेकर मूत्राशय तक खिंचावदार दर्द होता है, बायें वृक्क के ऊपर हल्की जलन के साथ दर्द होता है, रोगी व्यक्ति को पेशाब करने की बार-बार इच्छा होती है, रोगी पेशाब को कुछ मिनटों तक रोकने में असमर्थ होता है तथा जब रोगी पेशाब कर लेता है तो उसे कुछ आराम मिलता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेडियोमा औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

स्त्री से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी स्त्री को कमर में दर्द होने लगता है तथा दर्द ऐसा मेहसूस होता है जैसे बच्चे को जन्म देते समय गर्भवती स्त्री को होता है, जब रोगी स्त्री कुछ गति करती है तो उसको दर्द से कुछ आराम मिलता है। प्रदर स्राव रोग होने के साथ ही योनि के पास खुजली तथा जलन होती है। डिम्बग्रन्थियों के आस-पास खून जमा होने लगता है तथा दर्द होने लगता है और यह दर्द डिम्बग्रन्थियों के नीचे की ओर दबाव मारता हुआ, खिंचाव की तरह होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री के रोग को ठीक करने के लिए हेडियोमा औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के अंगूठे में दर्द होता हैं। शरीर के कई अंगों में दर्द होता है तथा ठण्ड लगती है, कई अंगों में लकवा जैसी स्थिति हो जाती है और कई अंगों में झटके लगने लगते है तथा दर्द होता है। कण्डरा-पेशियों (जरकिंग्स) में दर्द होने लगता है और ऐसा महसूस होता है जैसे उनमें मोच आ गई हो तथा सूजन हो गई हो, जब रोगी चलता-फिरता है तो दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेडियोमा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मात्रा :-

हेडियोमा औषधि की पहली शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


हायोसियामस Hyoscyamus

 हायोसियामस Hyoscyamus

परिचय-

ठण्ड लगने या ठण्डी हवा लग जाने के कारण उत्पन्न रोगी की अवस्था, ऐसे रोगियों की मानसिक प्रकृति ईष्यालु (झगड़ालु) होती है। शरीर में कमजोरी बढ़ने लगती है तथा किसी प्रकार का दिमागी रोग उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए तथा इससे रोगी को अधिक आराम मिलता है। रोगी व्यवसाय की बातें करता रहता है, प्रत्येक शब्द का उच्चारण जोर से करता है। रोगी बुदबुदाता रहता है तथा नीचे का होंठ लटक जाता है, बिस्तर पर इधर-उधर लुढ़कता रहता है, रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसका सिर इधर-उधर घूम रहा है, जब वह सामने की ओर सिर को घुमाता है तो उसके सिर में दर्द होता है, स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है तथा कभी-कभी तो रोगी ऐसा व्यवहार करता जैसे वह अज्ञान हो, वह उन व्यक्तियों को देखता है जो सामने नहीं होते हैं, दृष्टि भी कमजोर हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपायोग करना चाहिए।

एथूजा सिनापियाम औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को डर लगता रहता हो और उसे ऐसा महसूस होता है कि जैसे कोई उसे देख लेगा, मारे-काटे जाने का भय, बेच दिए जाने जैसा डर, खाने-पीने का डर और ऐसा महसूस हो रहा हो की खाने में जहर मिला हो। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के सामने जो कुछ भी कार्य होता है उस पर उसे सन्देह (शक) होता है, उसे ऐसा लगता है कि जैसे कोई चाल चली जा रही है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बेहोशी से सम्बन्धित लक्षण:- यदि किसी रोगी को बेहोशी की समस्या बार-बार हो रही हो तथा इसके साथ ही उसके पेट में मरोड़ हो रही हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि से करना चाहिए।

मिरगी से सम्बन्धित लक्षण :- यदि कोई व्यक्ति मिरगी के रोग से पीड़ित है और उसमें और भी कई लक्षण हैं जैसे- बुदबुदाना, सो जाने के बाद मिरगी का दौरा बन्द हो जाना, शरीर की पेशियां फड़कना, मिरगी के दौरे पड़ने से पहले चक्कर आना, फिर ऐंठन होना, ठण्ड अधिक लगना तथा हाथ पैर कंपकंपाना। फिर थोड़ी देर के बाद हाथ-पैर सो जाने जैसा महसूस होना और शरीर के सारे अंग सुन्न हो जाना आदि हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना लाभकारी है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण:- पेशाब करने पर नियन्त्रण न रख पाना तथा पेशाब करने पर पेशाब बूंद-बूंद करके गिरने लगता है। आदि समस्या होने पर हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए।

गर्भावस्था से सम्बन्धित लक्षण:- यदि किसी स्त्री को गर्भावस्था के समय में बेहोशी की समस्या हो तथा जब वह तरल पदार्थ निगल रही होती है तो उस समय बेहोशी की समस्या अधिक हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के पेट में कभी-कभी चुनचुनाहट होने लगती है तथा अचानक बेहोशी आ जाती है।

बच्चे से सम्बन्धित लक्षण:- बच्चे के पेट में मरोड़ होना, बेहोशी की समस्या होने का सबसे प्रमुख कारण डर का होना तथा पेट में कीड़े का हो जाना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित बच्चे के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए।

उल्टी आने से सम्बन्धित लक्षण:- बच्चा खाना खाने के बाद उल्टी कर देता है और फिर अचानक चीख पड़ता है और कभी-कभी बेहोश भी हो जाता है। बच्चे की इस प्रकार की समस्या को दूर करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बन्धित लक्षण:- शरीर के प्रत्येक पेशी, पलकों से लेकर पैर के अंगूठे तक के अंग फड़कते रहते हैं, पुतलियां फैली हुई रहती है, आंखों के आगे अंधेरा छाने लगता है, सिर गर्म हो जाता है तथा मन उदास रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि उपयोग करना उचित होता है।

कमोत्तेजना से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी में संभोग के प्रति अधिक उत्तेजना होती है तथा इसके साथ ही उसमें और भी कई प्रकार के लक्षण होते हैं- नंगें पड़े रहना, गन्दे और उत्तेजना भरे गीत गाना, ताली बजाना, वासना से युक्त पागलों की तरह व्यवहार करना। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी यदि नंगा लेटा हो और कोई व्यक्ति यदि उसके शरीर को कपड़े से ढकने की कोशिश करता हो तो वह लात मारकर कपड़े को एक तरफ फेंक देता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

खांसी से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी को रात के समय में सूखी खांसी तथा ऐंठन होती है, गले में सूखापन महसूस होता है, खांसी लेटने से, भोजन करने से और बात करने से और बढ़ जाती है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का प्रयोग करना चाहिए ।

प्रेम में असफल होने के बाद के मानसिक लक्षण :- यदि रोगी प्रेम में असफल हो गया हो और इसके कारण से उसमें कई प्रकार के लक्षण हो जैसे- क्रोध करना, ईष्या, जलन आदि। कुछ रोगी तो ऐसे भी होते हैं जो अंसगत बाते करना पसन्द करते हैं और ऐसी-वैसी बात पर हंसते रहते हैं तथा पागलों की तरह व्यवहार करते रहते हैं। कुछ रोगी ऐसे भी होते हैं जो उत्तेजना के कारण अपनी उंगलियों को गुप्तागों पर रखते रहते हैं तथा अपने लिंग को पकड़ कर मसलते रहते हैं। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग लाभदायक है।

बुखार से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के शरीर में अन्दरूनी बुखार रहता है तथा उसकी मानसिक स्थिति भी बिगड़ जाती है, आंखों की रोशनी कम हो जाती है, शरीर के कई अंग सुन्न पड़ जाते हैं। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए।

दांत से सम्बन्धित लक्षण:- दांतों पर कीट जम जाती है तथा दांत पीले दिखाई देने लगते हैं, जीभ पर मैल जम जाती है, अपने आप पेशाब निकल जाता है तथा मानसिक स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

कान से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी ऊंचा सुनता है और कभी-कभी तो ऐसा महसूस करता है जैसे उसके कान में कोई ढक्कन सी लगी हुई है। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

आंख से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी को सभी चीजें लाल दिखाई पड़ती हैं। किसी भी चीज का सही आकार का पता नहीं कर पाता है या एक चीज उसे दो दिखाई देने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मलद्वार से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के मलद्वार के पास की पेशियों पर लकवा रोग का प्रभाव पड़ता है जिसके कारण वहां की पेशियां ठीक तरह से कार्य नहीं कर पाती हैं और इसके कारण रोगी का मल तथा पेशाब कभी-कभी अपने आप हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हायोसियामस नाइजर औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है। 

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

शाम को खाने-पीने के बाद, ईष्या, प्रेम से असन्तुष्ट होने, किसी के प्रति जलन होने, आराम के समय, किसी कारण से डरने, लेट जाने तथा स्त्रियों में महावारी आने के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) ह्रास) :-

बैठने पर तथा झुकने पर रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

क्रियानाशक :-

बेल तथा स्ट्रेम।


हेक्ला लावा HECLA LAVA

 हेक्ला लावा HECLA LAVA

परिचय-

मसूढ़ों, हडि्डयों तथा दांतों पर हेक्ला लावा औषधि का अधिक प्रभाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप इन अंगों से सम्बन्धित रोग ठीक हो जाते हैं। हेक्ला लावा औषधि ज्वालामुखी से निकले हुए राख से बनायी जाती है। जबड़ों पर हेक्ला लावा औषधि की क्रिया का विशेष प्रभाव पड़ता है। हडि्डयों का रोग, मसूढ़ों से निकलने वाले फोडे़ तथा दांतों के रोग को ठीक करने के लिए हेक्ला लावा औषधि का उपयोग लाभदायक है।

शरीर के कई भागों में गांठे पड़ जाना तथा हडि्डया नष्ट हो रही हो तो इस रोग को ठीक करने के लिए हेक्ला लावा औषधि का उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो जाता है। हेक्ला लावा औषधि अन्य सभी औषधियों की अपेक्षा ज्यादा लाभकारी औषधि है।

हेक्ला लावा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-

दांत से सम्बन्धित लक्षण :- दांतों में कीड़े लग जाना, दांत सड़कर नष्ट होने लगे, मसूढ़ों की हड्डी में घाव होना, मसूढ़ों पर फोड़ा होना, घाव, नासूर रोग, मसूढ़ों के चारों ओर सूजन होने के साथ दांतों में दर्द होना, दांत उखड़वाने के बाद वहां के दांत का कुछ अंश रह जाना और उसके कारण परेशानी अधिक होना आदि रोगों को ठीक करने के लिए हेक्ला लावा औषधि का उपयोग करना चाहिए। हेक्ला लावा औषधि की 2x शक्ति 24x ग्रेन ग्लसिरिन में मिलाकर दातों पर लगाने से दांतों के रोग ठीक हो जाते हैं।

पायरिया रोग से सम्बन्धित लक्षण :- पायरिया रोग में हेक्ला लावा औषधि का टूथ-पाउडर के रूप में उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

हड्डी से सम्बन्धित लक्षण :- 

* हडि्डयों पर जलन होना, हडि्डयों पर फोड़ा-फुंसियां होना तथा हडि्डयों की घातक बीमारियों में और नाक की हड्डी के घाव को ठीक करने के लिए हेक्ला लावा औषधि का उपयोग लाभकारी है। इसके प्रभाव से ये रोग ठीक हो जाते हैं।

* बच्चों के रेकाइटिस रोग को ठीक करने लिए हेक्ला लावा औषधि का उपयोग करना चाहिए।

* गर्दन की हड्डी पर गांठ (सरविकल ग्लैण्ड) हो जाने तथा सूजन आ जाने पर हेक्ला लावा औषधि का उपयोग करने से ये रोग ठीक हो जाते हैं।

* पैर के नीचे की तरफ, सामने वाली हड्डी बढ़ जाना और बेकार हो जाने पर हेक्ला लावा औषधि का उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।


चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- नाक की हड्डी पर घाव होना, चेहरे के कई भागों में घाव होना, चेहरे के नाड़ियों में दर्द होना तथा गर्दन की ग्रन्थियां बढ़कर कठोर हो गई हो तो हेक्ला लावा औषधि का प्रयोग करने से ये रोग ठीक हो जाते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :- 

कैलि, कल्के-आयोड, साइलि तथा मर्क औषधियों की कुछ गुणों की तुलना हेक्ला लावा औषधि से कर सकते हैं।

मात्रा :-

हेक्ला लावा औषधि की 2x से 6 शक्ति तक का प्रयोग करना चाहिए।


हेलीबोरस नाइजर HELLEBORUS

 हेलीबोरस नाइजर HELLEBORUS

परिचय-

मस्तिष्क के आवरण में जलन होना, उनमें से खून बहने का डर लगना या दूषित द्रव का स्राव (बहना) हो रहा हो तो ऐसे लक्षणों में हेलिबोरस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए। रोगी अधिक चिल्ला रहा हो तथा चिल्लाने के साथ ही अपना सिर तकिये पर इधर-उधर पटक रहा हो, दिमाग काम करना बन्द कर देता है, गहरी नींद आती है और जितना पानी मिलता है वह पी लेता है, माथे पर से ठण्डा पसीना निकलता है, माथे पर सिकुड़न सी होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का जबड़ा इस प्रकार हिलता-डुलता है जैसे वह कोई चीज चबा रहा हो, उसकी पुतिलयां फैल जाती हैं और देखने, सुनने की शक्ति कम हो जाती है। रोगी की एक जांघ और एक बांह लगातार हिलती ही रहती है परन्तु दूसरी स्थिर पड़ी रहती है जैसे उसमें लकवा मार गया हो, ऐसे रोगी को या तो पेशाब होता ही नहीं या होता भी है तो बहुत कम मात्रा में, कभी-कभी पेशाब की तली में कॉफी की तरह काले रंग का चूर्ण भी आता है। इन सभी लक्षणों पर ध्यान देने से पता चलता है कि रोगी के रोग को ठीक करने की आशा कम ही है और इस अवस्था में यदि रोगी का ठीक औषधि से उपचार नहीं हुआ तो रोगी के शरीर में अकड़न पैदा होकर तथा बेहोशी आकर उसकी मृत्यु हो जायेगी। इस प्रकार की अवस्था में यदि रोगी का उपचार हेलीबोरस नाइजर औषधि से की जाती है तो रोगी पूरी तरह से ठीक हो जाता है। इस औषधि से उपचार करने पर सबसे पहले रोगी की पेशाब करने की मात्रा बढ़ जाती है तथा इसके बाद धीरे-धीरे सभी लक्षण ठीक होने लगते हैं। ऐसे रोगी के रोग का उपचार करने के लिए इसकी 1000 (बी. एण्ड टी.) पोटेंसी से 3300 (फिंक) पोटेंसी की मात्रा का उपयोग करना चाहिए।

मस्तिष्क की ऊपरी परत में जलन होने तथा बेहोशी की समस्या होने, मस्तिष्क में तेज दर्द होने, मस्तिष्क के अन्दर पानी भरने की सम्भावना हो या फिर जल जम जाने आदि लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने लिए हेलीबोरस नाइजर औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

छोटे बच्चों के बुखार होने की अवस्था या दस्त आने की अधिकता, इसके साथ ही मस्तिष्क से सम्बन्धित कई परेशानियां होने और मस्तिष्क में जल भरने पर हेलिबोरस नाइजर औषधि से उपचार करना लाभदायक होता है।

ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति कम हो जाती है जिसके कारण रोगी किसी भी चीज को ठीक प्रकार से देख नहीं पाता है और न ही किसी चीजों के स्वाद को ठीक प्रकार से पहचान पाता है तथा शरीर की पेशियों में कमजोरी आ जाती है और रोगी को ऐसा महसूस होता है कि उसके शरीर के कई भाग में लकवा मार गया है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का उपयोग करना उचित होता है।

हाथ-पैरों को पटकने के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए, जबकि इसी प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का रोग ऐपोसाइनम औषधि से भी ठीक हो सकता है। यदि रोगी का बायां हाथ तथा पैर हिल रहा हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए ब्रायोनिया औषधि का उपयोग करना चाहिए और यदि दोनों पैरों में फड़फड़ाहट हो रही हो तो रोग को ठीक करने के लिए जिडक्म औषधि का उपयोग करना चाहिए।

हेलिबोरस नाइजर औषधि निम्नलिखित लक्षणों के रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी है-

मन से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी किसी प्रश्न का उत्तर धीरे-धीरे देता है, उसकी सोचने की शक्ति कम हो जाती है, वह बिना इच्छा की सिसकियां भरने लगता है तथा अपने होंठ और कपड़े को नोचता रहता है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का उपयोग करना फायदेमन्द होता है।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के माथे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं, माथे से ठण्डा पसीना निकलता रहता है, सिर में दर्द भी होता रहता है, रोगी अपने सिर को दिन-रात इधर-उधर पटकता रहता है, कभी-कभी तो वह कराहने लगता है तथा अचानक ही चिल्लाने लगता है, अपने सिर को तकिये के अन्दर गाड़ता रहता है, हाथ-पैर पीटता रहता है, उसके सिर के पिछले भाग में हल्का-हल्का दर्द होता रहता है तथा इसके साथ रोगी को ऐसा महसूस होता है कि सिर के पिछले भाग में पानी भरा हुआ है और सिर के उस भाग में लहरें पैदा हो रही हैं, सिर में दर्द होने के कारण कभी-कभी तो उल्टी भी हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।

आंखें से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी का नेत्रगोलक ऊपर की ओर घूम जाता है, आंखों की देखने की शक्ति कम हो जाती है, नेत्रपटल फैल जाता है, आंखें फैल जाती हैं तथा अन्दर की ओर धंस जाती हैं, रात के समय में कुछ भी दिखाई नहीं देता है अर्थात रतौंधी रोग हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

नाक से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के नाक गन्दे रहते हैं तथा नथुना खुश्क हो जाता है, नाक को रगड़ता रहता है, खुशबू को पहचान न पाना। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी का उपचार करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

चेहरे से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी का चेहरा पीला पड़ जाता है तथा अन्दर की ओर धंस जाता है, चेहरे से ठण्डा पसीना निकलता रहता है, चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं तथा चेहरे की बाईं ओर की नाड़ियों में दर्द होता है तथा इस दर्द के कारण वह किसी भी चीज को चबा नहीं पाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के मुंह से बदबू आती रहती है, होंठ सूखे और फटे रहते हैं, जीभ लाल और सूखी रहती हैं, जबड़ा नीचे की ओर लटक जाता है, वह अपने होंठों को बिना किसी कारण दांत से नोचता रहता है, दांत पीसता रहता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी कभी-कभी बेहोश भी हो जाता है और उसे होश में लाकर ठण्डा पानी पीने के लिए देते हैं तो वह पानी को जल्दी-जल्दी निगलते हुए पीता है। यदि किसी बच्चे को ऐसे लक्षण हो तो वह दूध को जल्दी-जल्दी पीता है तथा साथ ही भोजन खाने का मन नहीं करता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

पेट से सम्बन्धित लक्षण:- पेट में गड़गड़ाहट होने लगती है, आंतों के अन्दर पानी भर जाता है, पेट में सूजन आ जाती है, पेट को छूने से दर्द महसूस होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी जब मलत्याग करता है तो मल पतला, पेचिश जैसा होता है तथा पेट में गड़गड़ाहट सी आवाज होने लगती है, ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

पेशाब से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के मूत्राशय पर दबाव पड़ता है, तथा उसका पेशाब गहरे रंग का कॉफी के चूरे जैसा तलछट होता है, और उसे पेशाब करने की बार-बार इच्छा होती है। यदि छोटा बच्चा इन लक्षणों से पीड़ित होता है तो वह कभी-कभी पेशाब भी नहीं कर पाता जिसके कारण उसका मूत्राशय फूल जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी बार-बार सिसकियां भरता रहता है तथा उसे सांस लेने में परेशानी होने लगती है। छाती में सिकुड़न होने लगती है, हांफता रहता है तथा छाती में पानी जमा हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी के एक बांह और एक टांग में अपने आप गति होती रहती है, कई अंग भारी और दर्दनाक हो जाते हैं, रोगी हर समय अंगड़ाइयां लेता रहता है, अंगूठा हथेली की ओर खिंच जाता है तथा हाथ-पैरों की उंगलियों के बीचों-बीचों छाले पड़ जाते हैं। इस प्रकार के लक्षणों में से कोई भी लक्षण यदि रोगी को हो गया हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का उपयोग करना चाहिए।

नींद से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी नींद से अचानक उठकर चिल्लाने लगता है और गहरी नींद लेता है, मस्तिष्क पर नियन्त्रण नहीं रख पाता और रोगी को पूरी तरह होश में नहीं लाया जा सकता हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना फायदेमन्द होता है।

चर्म से सम्बन्धित लक्षण:- रोगी की त्वचा पीली पड़ जाती है, किसी किसी भाग की त्वचा पर सूजन भी आ जाती है तथा कहीं-कहीं पर खुजली भी मचने लगती है, त्वचा पर नीले धब्बे पड़ जाते हैं, त्वचा पर अचानक सूजन आ जाती है तथा उस भाग में पानी भर जाता है। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के बाल तथा नाखून भी झड़ने लगते हैं। ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए हेलिबोरस नाइजर औषधि का प्रयोग करना चाहिए। 

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

ठण्डी हवा से, परिश्रम करने से, दांत से निकलते समय, शाम से लेकर सुबह तक, नगें रहने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन. ह्रास) :-

खुली हवा में, मजबूती से ध्यान केन्द्रित करने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

प्रतिविष :-

सिनको तथा कैम्फर औषधियों का उपयोग हेलिबोरस नाइजर औषधि के हानिकारक प्रभाव को दूर करने के लिए किया जाता है।

अनुपूरक:-

जिंक।

क्रियानाशक:-

चायना, कैम्फ।

मात्रा :-

हेलिबोरस नाइजर औषधि की मूलार्क से लेकर तीसरी शक्ति तक का प्रयोग करना चाहिए।