रियूम(Rheum)

 रियूम(Rheum)

परिचय-

बच्चे के दांत निकलते समय पतले दस्त में रियूम औषधि का उपयोग लाभदायक है। बच्चों के दांत निकलते समय मल से और उसके पूरे शरीर से खट्टी बदबू आने पर इस औषधि का उपयोग करने से रोग के लक्षण ठीक हो जाते हैं। इस प्रकार के लक्षण होने पर बच्चे को कितना भी स्नान कराया जाए या धुलाया जाए फिर भी बच्चे के शरीर से खट्टी बदबू नहीं जाती है। अम्लातिसार रोग से पीड़ित बच्चें के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि का अधिक उपयोग किया जाता है, दांत निकलते समय और भी कई प्रकार के लक्षणों को दूर करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।

विभिन्न लक्षणों में रियूम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को डर अधिक लगता है तथा वह कई प्रकार की चीजों को मांगता है और रोता रहता है। बच्चे के इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

नींद से सम्बन्धित लक्षण :- रात को नींद नहीं आती है और बच्चा उछलता-कूदता रहता है, चीखता-चिल्लाता रहता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है। 

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- सिर के बालों के नीचे से पसीना निकलता रहता है और लगातार अधिक मात्रा में पसीना निकलता रहता है। चेहरे पर ठण्डा पसीना निकलता है और विशेषकर मुंह और नाक के आस-पास के भागों से अधिक पसीना निकलता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

मुंह से सम्बन्धित लक्षण :- मुंह से अधिक मात्रा में लाल रंग का स्राव होने लगता है। दांतों में ठण्डक महसूस होती है। दांतों में दर्द होना तथा और भी कई प्रकार की परेशानियां होना, इस प्रकार के लक्षणों से बच्चा यदि पीड़ित होता है तो वह चिड़चिड़ा स्वभाव का हो जाता है। उसके सांस से खट्टी बदबू आती है। इस प्रकार के मुंह से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

आंख से सम्बन्धित लक्षण :- धुंधलापन दिखाई देना, अधिक सपने आते हैं, मलत्याग करते समय कंपकंपी होती है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी विभिन्न प्रकार का भोजन मांगता है, पर इस भोजन से जल्दी ही ऊब जाता है। पेट के अन्दरूनी भाग में कंपन होता है। पेट भरा-भरा सा लगता है। इस प्रकार के आमाशय से सम्बन्धित लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मल से सम्बन्धित लक्षण :- मलत्याग करने से पहले ही पेशाब करने की अधिक इच्छा होती है लेकिन पेशाब होता नहीं है। मल से खट्टी बदबू आती है, मल चिपचिपा होता है तथा मलद्वार में कंपन, सिकुड़न और मलद्वार में जलन होती है। बच्चे के दांत निकलते समय दस्त लग जाए तथा मल से खट्टी बदबू आए तथा उसके पेट में दर्द हो, मलत्याग करने के लिए अधिक जोर लगाना पड़ता हो लेकिन मल ठीक से त्याग न हो। इस प्रकार के मल से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को बुदबुदाहट की अनुभूति होना, जैसेकि सभी मांसपेशियों और जोड़ों में छोटे-छोटे बुलबुले उठ रहे हो। ऐसा महसूस होना जैसे की कुछ चीज बुदबुद करते हुए पक रहा है। रोगी जिस अंग को दबाकर सोता है वह अंग ऐसा लगता है कि सो गया है, जिस अंग पर भार पड़ता है वह अंग सो जाता है। सारे शरीर में कमजोरी महसूस होती है तथा भारीपन भी महसूस होता है, रोगी देखने में ऐसा लगता है कि उसे किसी ने गहरी नींद से जगा दिया है, ऐसा महसूस होता है कि मानसिक चेतना आ गई हो लेकिन शरीर अभी तक सोया पड़ा रहता है। शरीर से ठण्डा पसीना निकलता रहता है, मुंह और हथेलियों से अधिक पसीना निकलता है। इस प्रकार के शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

बच्चों से सम्बन्धित लक्षण :- बच्चों को हैजा रोग। लगातार पानी जैसे झाग के समान दस्त आना, दस्त होने के साथ ही नाभि के पास चीरने-काटने जैसा दर्द होना। दांत निकलते समय पेट में दर्द होना और अतिसार होना। चिकनाहट के साथ झागदार दस्त होना तथा मल से खट्टी बदबू आना और पेट में मरोड़ होना। खट्टी बदबूदार मलत्याग करते समय या उल्टी करते समय बच्चा चीखता-चिल्लाता रहता है और पेट में दर्द होता रहता है। बच्चा धीरज नहीं रख पाता है और बहुत सी चीजें खाने के लिए मांगता है लेकिन चीज देने पर या अपने पसंद की चीज ले लेने पर भी उसे वह नापसंद कर देता है और बाद में वह उसे फेंक देता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए रियूम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है। 

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

रात के समय में, दांत निकलते समय, किसी अंग से ओढ़ना हटाने पर, दस्त आते समय, भोजन करते समय, गर्मियों के मौसम, भोजन करने के बाद तथा हिलने-डुलने से रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) :-

गर्मी से, कपड़ा ओड़ने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

* हीपर, पोडो, कमो, इपिका, मैग्नी-फा औषधियों के कुछ गुणों की तुलना रियूम औषधि से कर सकते हैं।

* दूध हज्म न होने और बच्चे के शरीर में खट्टी बदबू रहने से मैग्ने-कार्ब के बाद इसका पूरक सम्बन्ध है।


प्रतिविष :-

कमो, कैम्फर औषधियों का उपयोग रियूम औषधि के हानिकारक प्रभाव को दूर करने के लिए किया जाता है।

पूरक :-

मैग्नी-कार्बो।

अनुपूरक: -

कल्के-का, बेल, पल्स, रस-टा तथा सल्फ।

मात्रा (डोज) :-

रियूम औषधि की तीसरी छठी शक्ति तक का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। 


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