टिलिया यूरोपा TILIA EUROPA
परिचय-
टिलिया यूरोपा औषधि अक्षि-पेशी की कमजोरी को दूर करने में लाभकारी होती है। यह औषधि शरीर से पतले व फीके रंग के खून का स्राव को रोकने के लिए प्रयोग की जाती है। प्रसव के बाद गर्भाशय की सूजन तथा अस्थिगन्हरों के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि को महत्वपूर्ण माना गया है।
शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टिलिया यूरोपा औषधि का उपयोग :-
सिर से सम्बंधित लक्षण :- सिर के स्नायुओं में उत्पन्न ऐसा दर्द जो पहले सिर के दाईं ओर से शुरू होता है और फिर बाईं ओर होता है। आंखों के सामने पर्दा सा पड़ा दिखाई देता है। रोगी में हमेशा एक प्रकार का भ्रम बना रहता है और आंखों से कम दिखाई देता है। इस तरह के सिर से सम्बंधित लक्षणों में टिलिया यूरोपा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
नाक से सम्बंधित लक्षण:- यदि अधिक छींके आती हो और नाक से पानी का स्राव होता हो तो इस औषधि का प्रयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है। नाक से खून आने पर टिलिया यूरोपा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
आंखों से सम्बंधित लक्षण:- आंखों से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें आंखों के सामने कोई जाली पड़ा हुआ महसूस होता है तथा दोनों आंखों की मिली हुई नज़रें होती है। इस तरह के लक्षणों में टिलिया यूरोपा औषधि लेनी चाहिए।
स्त्री रोग से सम्बंधित लक्षण :- गर्भाशय के आस-पास तेज दर्द होना या प्रसव के समय होने वाले दर्द की तरह दर्द महसूस होना। शरीर से गर्म पसीना आना। चलने पर अधिक मात्रा में चिपचिपा प्रदर-स्राव होना। योनि के मुख पर घाव होने से योनि का लाल होना। मलद्वार में जलन होना और वायु गैस का बनना। इस तरह के स्त्री से सम्बंधित लक्षणों में टिलिया यूरोपा औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
त्वचा से सम्बंधित लक्षण :- त्वचा पर दाद होना तथा त्वचा पर होने वाली तेज खुजली जिसे खुजाने से आग की तरह जलन होती है। ऐसे लक्षणों में टिलिया यूरोपा औषधि का प्रयोग करें। त्वचा पर छोटी-छोटी व लाल-लाल फुंसियां उत्पन्न होना। नींद आने पर शरीर से गर्म पसीना अधिक मात्रा में आना तथा गठिया दर्द के साथ पसीना अधिक आना आदि लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग करें।
वृद्धि :-
दोपहर और शाम के समय, गर्म कमरे में तथा बिस्तर की गर्मी से रोग बढ़ता है।
शमन :-
ठण्डे कमरे में तथा गति करने से रोग में आराम मिलता है।
तुलना :-
टिलिया यूरोपा औषधि की तुलना लिलियम तथा बेला औषधि से की जाती है।
मात्रा :-
टिलिया यूरोपा औषधि का मूलार्क या 6 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
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