फेरम मेटालिकम FERRUM METALLICOM

 फेरम मेटालिकम FERRUM METALLICOM

परिचय-

फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग अनेक प्रकार के रोगों में उत्पन्न लक्षणों को दूर करने में किया जाता है परन्तु फेरम मेटालिकम औषधि मुख्य रूप से कमजोर व दुर्बल रोगी के लिए अधिक लाभकारी है, विशेष रूप से उन रोगियों के लिए जिसमें खून की कमी या पीलिया रोग के कारण कमजोरी उत्पन्न हुआ है। खून में दूषित द्रव्य का अधिक बनना, चिड़चिड़ापन, अतिसंवेदनशीलता तथा किसी सक्रिय प्रयास के बाद रोग का अधिक होना। बोलने या चलने-फिरने में कमजोरी महसूस होना। शारीरिक रूप से ठीक होने के बाद भी कमजोरी महसूस होना। त्वचा, श्लैष्म कलाओं व चेहरे का रंग लालिमायुक्त पीलापन। चेहरा, छाती व फेफड़ों में खून का अधिक बहाव होना तथा खून का कई भागों में बंट जाना। कूट-रक्तबाहुल्य (प्सयुडो प्लेथोरा) तथा पेशियों का थुलथुला व ढीला हो जाना। इस तरह के लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग अत्यन्त लाभकारी माना गया है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर फेरम मेटालिकम औषधि का उपयोग :-

मानसिकता से संबन्धित लक्षण :- मानसिक रूप से परेशान रहना, किसी काम में मन न लगना, अधिक चिड़चिड़ापन, शोरगुल व अधिक लोगों में मन का न लगना तथा रोगी की किसी बातों को काटने से रोगी को जल्दी गुस्सा आ जाना। रक्तबहुल प्रकृति। इस तरह के मानसिक रोगों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग लाभकारी है।

सिर से संबन्धित लक्षण :-

* रोगी के सिर में जलनयुक्त दर्द होना तथा रोगी को सिर में हथौड़े मारने जैसा दर्द होना। डंक मारने या किसी जानवर के काट लेने से होने वाला सिर दर्द। मासिक धर्म से पहले कानों में टनटनाहट की आवाज सुनाई देना। तेज सिर दर्द के साथ सिर में जलन व खून का जमा होना, सिर दर्द का धीरे-धीरे दांतों तक फैल जाना तथा बाहरी अंग ठण्डा पड़ जाना आदि रोगों के लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है। 

* सिर के पिछले भाग में दर्द होने के साथ गर्दन में आवाज गूंजना, खोपड़ी में दर्द होना जिसके कारण बालों को लटकाकर रखना पड़ता है। इस तरह के लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग दूर होता है। 

* रोगी के सिर में जलन व दर्द के साथ हथौड़ी पीटने जैसा दर्द होना साथ ही दर्द वाले स्थान पर खून का बहाव होना। नाड़ी में भारीपन महसूस होना, चेहरा तमतमाया हुआ मानो रोगी गुस्से में हो। रोगी का चेहरा पहले सफेद और फिर तमतमाया सा हो जाना। रोगी को भूख अधिक लगना और भोजन शुरू करते ही अचानक भूख का समाप्त हो जाना। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगियों को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।


आंखों से संबन्धित लक्षण :- आंखों से साफ हल्का लाल रंग का पानी निकलना, प्रकाशभीति अर्थात तेज रोशनी आंखों पर बर्दाश्त न कर पाना तथा कोई किताब पढ़ने पर ऐसा महसूस होना मानो अक्षर चल रहा हो। इस तरह के लक्षणों वाले रोग में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

चेहरे से संबन्धित लक्षण :- चेहरे का रंग लाल होना तथा चेहरे पर दर्द महसूस होना। गुस्सा करने या कोई काम करने पर चेहरा लाल हो जाना। चेहरे का लाल भाग सफेद हो जाना तथा खून रुक जाने के कारण चेहरा फूल जाना आदि चेहरे से संबन्धित लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

चेहरे पर हरे या पीले रंग की झांइयां व दर्द होना, चेहरा चमकीला और लाल होना, हल्का गुस्सा करने या हल्का काम करने पर रोगी का चेहरा लाल, पीला हो जाना, सिर में खून का बढ़ जाना, नसें फूल जाना, रोगी के चेहरे पर गर्मी महसूस होना, सिर में तेज दर्द होना तथा हृदय धड़कने से भी दर्द होना। इस तरह के लक्षण से पीड़ित रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए। यह औषधि रोगों में तीव्र क्रिया करके रोग को जल्दी ठीक करता है।

नाक से संबन्धित लक्षण :- नाक की श्लैष्म कला ढीला होकर सूज जाना तथा उनमें खून की कमी के कारण उसका रंग पीला हो जाना आदि लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग से रोग ठीक होता है।

मुंह से संबन्धित लक्षण :- दांतों में तेज दर्द होना, दांतों में दर्द होने पर बर्फ का ठण्डा पानी मुंह में रखने से दर्द में आराम मिलना, मुंह का स्वाद खराब होना तथा मुंह में अण्डे की तरह चिपचिपापन महसूस होना आदि लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से मुंह का स्वाद ठीक होता है और दर्द आदि भी दूर होते हैं।

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- भूख का अधिक लगना या भूख का बिल्कुल न लगना। खट्टे पदार्थ से परहेज तथा खट्टे पदार्थ खाते ही दस्त का लग जाना। भोजन करने के तुरन्त बाद ही उल्टी हो जाना। भोजन करने के बाद डकारें अधिक आने के साथ जी मिचलाना। भोजन करने के बाद जी मिचलाने और उल्टी होना। आधी रात का उल्टी होना। अण्डे खाने पर उल्टी होना। भोजन करने के बाद आमाशय का फूल जाना तथा आमाशय में दबाव महसूस होना। आमाशय में गर्मी व जलन होना। पेट की परतों में दर्द होना तथा पाचन तन्त्र का खराब होना। उल्टी व डकारें आना तथा दिन में खाया हुआ पदार्थ रात को उल्टी हो जाना। रोगी को दस्त लगना तथा दस्त के समय दर्द न होना परन्तु दस्त के साथ अपच पदार्थ आना। रोगी में इस तरह के कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे आमाशय का रोग दूर होता है और उल्टी आदि विकारों को समाप्त करता है।

मल से संबन्धित लक्षण :- रात को भोजन करने के बाद भोजन का न पचना, शौच जाने के बाद भी शौच का बना रहना। मल कठोर व सूख जाना तथा कमर या मलाशय में ऐंठनयुक्त दर्द होना। मलद्वार का चीर जाना तथा मलद्वार में खुजली होना। इस तरह के लक्षणों को दूर करने के लिए फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

मूत्र से संबन्धित लक्षण :- पेशाब का अपने आप निकल जाना तथा दिन के समय पेशाब का अधिक आना, मूत्रनली में गुदगुदाहट तथा मूत्रनली की गुदगुदाहट धीरे-धीरे बढ़कर मूत्राशय तक पहुंच जाना। इस तरह के मूत्र रोगों से संबन्धित लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- मासिक धर्म नियमित समय के एक-दो दिन बाद आना। गर्भाशय से मांस का टुकड़ा निकलना। कमजोरी, त्वचा कोमल तथा खून की कमी होने के बाद भी चेहरा आग की तरह लाल रहना। मासिक धर्म नियमित समय से बहुत पहले तथा अधिक मात्रा में आना तथा मासिक धर्म के बाद भी योनि से पीले रंग का पानी का स्राव होते रहना। योनि को छूने से योनि में दर्द होना। गर्भपात होने के कारण शरीर का झुक जाना तथा योनि का चिर जाना। इस तरह के स्त्री रोगों के लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग कर रोग को ठीक किया जाता है। यह औषधि योनि संबन्धी विकारों को दूर कर मासिकधर्म को नियमित करती है।

स्त्री को मासिकधर्म जल्दी-जल्दी आना या मासिकधर्म आने के बाद अधिक दिनों तक मासिक स्राव जारी रहना, मासिक धर्म के समय मुंह लाल होने के साथ कानों में आवाज सुनाई देना। मासिक धर्म पीले रंग का व पानी की तरह पतला आना जिसके कारण स्त्रियों में अधिक कमजोर आ जाना। ऐसे लक्षणों में स्त्री को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।

सांस संस्थान से संबन्धित लक्षण :- छाती में घुटन महसूस होना, सांस लेने में परेशानी, छाती में खून का बहाव तेज होना, गले में खराश होना, उत्तेजना युक्त सूखी खांसी और रक्तनिष्ठीवन (हीमोप्टिसीज), खांसी के साथ सिर के पिछले भाग में दर्द होना आदि लक्षण। इस तरह के सांस रोगों से संबन्धित लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

पसीने से संबन्धित लक्षण:- यदि रोगी को अधिक मात्रा में पसीना आता है और अधिक पसीना आने के कारण कमजोरी उत्पन्न हो गया है तो ऐसे में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

हृदय से संबन्धित लक्षण :- हृदय की धड़कन तेज होना (हाई ब्लडप्रेशर) तथा हिलने-डुलने से धड़कन की गति और अधिक तेज हो जाने के साथ घुटन महसूस होना। खून की कमी के कारण शरीर में थकावट एवं दर्द पैदा होना। नाड़ी कोमल, मन्द और कमजोर होना। हृदय से खून का बहाव रक्तवाहिनियों में होना और फिर रक्तवाहिनियों से हृदय में खून आ जाने के कारण रक्तवाहिनियों के नीचे का भाग पीला हो जाना। हृदय से संबन्धित ऐसे लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से लाभ मिलता है और हृदय की गति सामान्य होती है।

शरीर के बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षण :- कंधों का गठिया रोग। पेट के जैवी द्रव्य के समाप्त होने के बाद पेट में पानी का भरना। कमर में उत्पन्न होने वाले ऐसा दर्द जो टहलने से आराम मिलता है। नितम्ब के जोड़, पैरों की लम्बी हडडी, तलुओं और एड़ी में दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

त्वचा से संबन्धित लक्षण :- त्वचा का रंग पीला होना तथा चेहरे का रंग सहज ही लाल हो जाना तथा त्वचा दबाने से उनमें गड्ढा पड़ जाना आदि त्वचा के रोगों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

बुखार से संबन्धित लक्षण :- शरीर के बाहरी अंगों में ठण्ड लगना और सिर व चेहरे पर गर्मी महसूस होना। सुबह के समय ठण्ड के कारण शरीर में कंपकंपी होना। हथेलियों और तलुवों में गर्मी महसूस होना। शरीर से अधिक पसीना आने के साथ कमजोरी आना आदि लक्षणों में फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

ताप (गर्मी) से संबन्धित लक्षण:- प्यास का अधिक लगना, चेहरा बहुत सुर्ख हो जाता है। हथेली और पैर के तलुवे बहुत गर्म रहते हैं। रोगी का पूरा शरीर गर्म रहता है और चलने-फिरने व भोजन करने या बात करने से रोग में आराम मिलता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।

शीत (ठण्डी) से संबन्धित लक्षण :- चेहरा तमतमाकर लाल हो जाना, हाथ-पैर ठण्डे और सुन्न पड़ जाना। पांव बर्फ की तरह ठण्डे हो जाना तथा अधिक प्यास लगना आदि शीत रोगों के लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन कराएं।

खून की खराबी व स्राव :- यदि रोगी के शरीर के किसी भी अंग से खून निकल रहा हो तो रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि देने से खून का स्राव बन्द होता है। रोगी के शरीर से हल्के रंग का खून बार-बार निकलना तथा खून के साथ काले रंग का खून थक्के के साथ निकलना आदि लक्षणों में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।

फेरम मेटालिकम औषधि का प्रयोग अन्य अंगों से होने वाले रक्तस्राव (खून का बहाव) को रोकने के लिए भी किया जाता है जैसे- फेफड़े, गर्भाशय, नाक और गुर्दों से खून का निकलना। यदि अधिक खून निकल जाने के कारण शरीर में खून की कमी व कमजोरी हो तो रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि देनी चाहिए।

विशेष प्रयोग :-

बुखार में किनाइन का अधिक प्रयोग करने से रोगी को बुखार हो गया हो तथा तिल्ली बढ़ गई हो तथा हाथ-पैरों में सूजन आ गई हो तो ऐसी हालत में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि का सेवन कराना चाहिए। इस औषधि के सेवन से किनाइन से होने वाली हानि समाप्त होकर रोग ठीक होता है।

वृद्धि :-

पसीना अधिक आने, आराम से बैठने, ठण्डे पानी से नहाने तथा धूप में रहने से रोग बढ़ता है।

शमन :-

धीरे-धीरे टहलने से तथा उठने पर रोग कम होता है।

प्रतिविष :-

फेरम मेटालिकम औषधि के अधिक सेवन से या अन्य असावधानी के कारण हानि हुआ हो तो उसे दूर करने के लिए आर्सेनिक और हीप औषधि का प्रयोग किया जाता है।

पूरक :-

चाइना, एलूमि और हैमामेलि फेरम मेटालिकम औषधि के पूरक है।

मात्रा :-

फेरम मेटालिकम औषधि के 2 से 6 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।

तुलना :-

फेरम मेटालिकम औषधि की तुलना फेरम असेटिकम, फेरम आर्सेनिकम, फेरम ब्रोमैटम, फेरम सायनैटम, फेरम मैग्नेटिकत, फेरम म्यूरिएटिकम, फेरम सल्फ्यूरिकत, फेरम टाटैरिकम तथा फेरम प्रोटोक्सालेटम से की जाती है।

फेरम मेटालिकम औषधि से तुलना की जाने वाली इन सभी औषधियों का प्रयोग रोगों में उत्पन्न कुछ विशेष लक्षणों के आधार पर किया जाता हैं, जैसे-

फेरम असेटिकम :-

फेरम मेटालिकम के स्थान पर फेरम असेटिकम औषधि के प्रयोग करने से नए रोग तथा पेशाब में धातु का आना दूर होता है। इसके अतिरिक्त दाएं कंधों में दर्द होना, नकसीर, कमजोरी, शरीर का पीला पड़ जाना, बच्चों की दुर्बलता व थकान, पैरों की शिरायें फूल जाना, हरे-हरे रंग का बलगम अधिक मात्रा में आना, दमा, शान्त बैठने या लेटने से कष्ट होना, यक्ष्मा (टी.बी.) खांसी का लगातार आना, भोजन करने के बाद उल्टी, रक्तनिष्ठीवन आदि रोगों में फेरम मेटालिकम औषधि के स्थान पर फेरम असेटिकम का प्रयोग लाभकारी होता है।

फेरम आर्सेनिकम :-

यकृत में कटे-फटे जैसा महसूस होना तथा प्लीहा रोग के साथ बुखार होना, भोजन का न पचना तथा पेशाब में अन्न कणों का आना आदि को दूर करने के लिए फेरम मेटालिकम के स्थान पर फेरम आर्सेनिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है। खून की कमी एवं पीलिया रोग। त्वचा शुष्क होना, छाजन, हैजा, त्वचा पर पीले दाने निकलना आदि में फेरम आर्सेनिकम का प्रयोग करना लाभकारी होता है। इन रोगों में \'फेरम आर्सेनिकम 3x\' का प्रयोग किया जाता है।

फेरम ब्रोमैटम :-

योनि से चिपचिपा स्राव होना, तेजाब की तरह त्वचा छील देने वाली प्रदर स्राव, गर्भाशय भारी महसूस होना, गर्भाशय का अपने स्थान से हट जाना तथा सिर सुन्न हो जाने जैसा महसूस होना आदि लक्षणों में फेरम ब्रोमैटम का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

फेरम सायनैटम :-

स्नायुजाल के रोगग्रस्त होने के साथ चिड़चिड़ापन और दुर्बलता व अति संवेदनशिलता विशेष रूप से सुबह के समय, मिर्गी के दौड़े पड़ने पर, हृदय का दर्द, जी मिचलाना, पेट का फुलना, दस्त का रुक जाना आदि रोगों में फेरम सायनैटम का प्रयोग किया जाता है।

फेरम मैग्नेटिकत :-

फेरम मैग्नेटिकत का प्रयोग हाथ-पैरों पर छोटे-छोटे मस्से होने पर करने से रोग ठीक होता है।

फेरम म्यूरिएटिकम :-

यौवनारम्भ के दौरान शुक्रमेह या अधिक पेशाब का आना, गहरे व पानी की तरह पतले दस्त का आना, डिफ्थेरिया, छालेदार फुंसियां, अण्डकोष की सूजन, गहरे लाल रंग का थक्केदार खून का आना, सम्भोग के समय दर्द होना, दायें कंधे में दर्द, दायें कोहनी में दर्द व ऐंठन के साथ गोल-गोल लाल रंग के धब्बे आना, पेशाब में चमकदार कण का आना तथा खून की कमी के कारण होने वाले रोग आदि के लक्षणों में फेरम म्यूरिएटिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

इन रोगों में फेरम म्यूरिएटिकम औषधि की मात्रा भोजन करने के बाद 3x का प्रयोग किया जाता है।

चिर अन्तरालीय गुर्दे की सूजन में फेरम म्यूरिएटिकम के मूलार्क 1-5 बूंदें दिन में 3 बार लेनी चाहिए।

फेरम सल्फ्यूरिकत औषधि :- 

पानी की तरह पतले दस्त आना तथा दस्त के समय दर्द होना। मासिकधर्म कष्ट के साथ आना, मासिकधर्म के बीच दबाव व जलन महसूस होना तथा मासिकधर्म के साथ सिर की ओर खून का अधिक बहाव महसूस होना। गलगण्ड (बेस्डोवस डीसिज)। त्वचा पर छाले होना, पित्ताशय में दर्द, दांत का दर्द, अम्लता तथा डकारों के साथ अपचा हुआ भोजन आना आदि रोगों में फेरम सल्फ्यूरिकत औषधि का प्रयोग किया जाता है।

फेरम पनीट्रिकम औषधि :- 

खांसी के साथ रक्तबहुल आदि में फेरम पनीट्रिकम औषधि प्रयोग किया जाता है।

फेरम टाटैरिकम :-

हृदय में दर्द होने तथा हृदय के मुंह पर गर्मी महसूस होने पर फेरम टाटैरिकम का प्रयोक करना लाभकारी होता है।

फेरम प्रोटोक्सालेटम :-

रोगी के शरीर में खून की कमी होने पर ही फेरम प्रोटोक्सालेटम का प्रयोग किया जाता है। इस रोग में फेरम प्रोटोक्सालेटम 1x का प्रयोग किया जाता है।

मात्रा :-

कमजोरी के कारण खून में हेमाटिन की कमी हो जाती है। अत: रोगी की ऐसी अवस्था में फेरम मेटालिकम औषधि की उच्च शक्ति का प्रयोग करें। रक्तबहुल व रक्तस्राव की अवस्था में रोगी को फेरम मेटालिकम औषधि की निम्न शक्ति का प्रयोग किया जाता है।


0 comments:

एक टिप्पणी भेजें