टुबरकुलीनम TUBERCULINUM

 टुबरकुलीनम TUBERCULINUM

परिचय-

टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग मुख्य रूप से गुर्दे से सम्बंधित विभिन्न लक्षणों को दूर करने के लिए किया जाता है। इस औषधि का प्रयोग गुर्दे सम्बंधी लक्षणों में सावधानी से करना चाहिए क्योंकि जहां त्वचा और आंतें ठीक से काम नहीं करती हैं वहां इस औषधि की उच्च शक्ति हानि पहुंचाती है। यह औषधि पुराने मूत्राशय की सूजन को ठीक करती है। यह औषधि क्षय (टी.बी.) रोग के विभिन्न लक्षणों मे अत्यंत लाभकारी होता है विशेष रूप से हल्के घाव तथा संकीर्ण छाती वाले रोगियों के लिए। शिथिल तन्तुओं के दुबारा ठीक होने के कारण शारीरिक शक्ति का क्षीण होना और जलवायु में होने वाले परिवर्तन के प्रति अत्यंत संवेदनशीलता अर्थात हल्का सा मौसम परिवर्तन होने पर रोग हो जाता है। रोगी को हमेशा थकान महसूस होना, गति करने से भारी थकान उत्पन्न होना, कामकाज करने का मन न करना तथा रोगी को हमेशा कुछ नया करने की चाहत। रोगी में उत्पन्न ऐसे लक्षण जो निरंतर बदलता रहता है तथा हवा के हल्के बहाव से ठण्ड लगने लगती है तो ऐसे लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

मिर्गी का दौरा, स्नायविक अवसन्नता तथा स्नायविक बच्चों के लिए यह औषधि बहुमूल्य है। बच्चों में कई सप्ताहों तक गतिशील रहने वाला अतिसार, अत्यधिक कमजोरी, शरीर का नीला पड़ जाना, मानसिक रूप से कमजोर बच्चे, बढ़ी हुई गलतुण्डिकायें, त्वचा के रोग, जोड़ों का तेज दर्द, अधिक संवेदनशील, शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होना, सर्वांगीण अवसन्नता, स्नायविक कमजोरी, कंपन तथा जोड़ों की सूजन आदि में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है।


शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टुबरकुलीनम औषधि का उपयोग :-

मन से सम्बंधित लक्षण :- टुबरकुलीनम औषधि में मन से सम्बंधित लक्षण मौजूद होते हैं जिसके कारण यह मन से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के लक्षणों को समाप्त करती है। यह औषधि रोगी में पागलपन का दौरा पड़ने, विषाद, नींद का न आना आदि को दूर करती है। नींद के ऐसे लक्षण जिसमें रोगी बेहोश व्यक्ति की तरह सोता रहता है। रोगी में अधिक चिड़चिड़ापन उत्पन्न होना तथा छोटी-छोटी बातों में गुस्सा हो जाना, विशेषकर सोकर उठने पर। व्यक्ति में हताशा या निराशा उत्पन्न होना। रोगी व्यक्ति हमेशा कुत्ते से डरता रहता है। स्वभाव बदलने लगता है तथा अपशब्द का अधिक प्रयोग करता है तथा रोगी में दूसरे को कोसने तथा कसम खाने की स्वभाविक प्रवृति आ जाती है। इस तरह के मानसिक लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बंधित लक्षण :- मस्तिष्क की गहराई में दर्द और स्नायुशुल होना। रोगी को अजीब-अजीब दिखाई देना। सिर में तेज दर्द होना जैसे कोई पट्टी सिर के चारों ओर बंधी हो। मस्तिष्क को ढकने वाली झिल्ली में जलन होना। शरीर से पानी की हानि होना विशेषकर पसीना और पेशाब के द्वारा। दस्त का लगना, रिसावदार उद्भेद आदि लक्षणों में रोगी को टुबरकुलीनम औषधि देनी चाहिए। रात के समय नींद में डरावने सपने आना व भ्रम उत्पन्न होना जिसके कारण रोगी अचानक नींद से जाग उठना। जीवाणुओं के कारण बालों को आपस में चिपक जाना। छोटे-छोटे फोड़ों के गुच्छे उत्पन्न होना, अधिक दर्द होना तथा नाक में फोड़े हो जाना। नाक से बदबूदार पीब का आना आदि। इस तरह के नाक से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को टुबरकुलीनम औषधि देने से रोग समाप्त होता है।

कान से सम्बंधित लक्षण :- कान से लगातार पीब का निकलते रहना तथा पीब से बदबू आना। कान के पटल में छेद होने की तरह टेढ़े-मेढ़े किनारे रहना आदि लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण :- यदि रोगी मांस खाने की इच्छा नहीं करता है और मांस खाते ही जी मिचलाने व उल्टी होने लगता है तो ऐसे लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। भोजन करने के बाद पेट में खालीपन महसूस होना तथा भूख लगने जैसा महसूस होना आदि लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है। ठण्डा दूध पीने की इच्छा होने पर यह औषधि देने से लाभ होता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण :- सुबह के समय अचानक दस्त का लगना। मल गाढ़े कत्थई रंग के आने के साथ मल से तेज बदबू आना। आन्त्रयोजन यक्ष्मा (टी.बी.) आदि लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

स्त्री रोग से सम्बंधित लक्षण :- स्तनों के फोड़े। मासिकस्राव नियमित समय से बहुत पहले तथा अधिक मात्रा में कष्ट के साथ आना। मासिकस्राव अधिक मात्रा में आने के साथ अधिक दर्द होना। इस तरह के स्त्री रोग से सम्बंधित लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सांस संस्थान से सम्बंधित लक्षण :- गलतुण्डिकाएं का बढ़ जाना। रात को नींद में कठोर तथा सूखी खांसी आना। खांसी के साथ गाढ़ा बलगम आना तथा वायुनलियों से अधिक मात्रा में स्राव होना। दम फुलना। गले में घुटन महसूस होना तथा ताजी हवा आने पर घुटन महसूस होते रहना। ठण्डी हवा की अधिक इच्छा करना। बच्चों में सांस नली में सूजन होना। दौरे के रूप से प्रकट होने वाली कठोर खांसी, अधिक पसीना आना तथा शारीरिक वजन कम होना। पूरे छाती से कर्कश ध्वनि निकलना। गुटिकासंचय फुस्फुसशिखर में आरम्भ होता है। इस तरह के सांस से सम्बंधित लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। ध्यान रखें कि इस औषधि का प्रयोग बार-बार करना हानिकारक होता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण :- गर्दन की पीछे की हड्डियों में और नीचे रीढ़ की हड्डी में तनाव महसूस होना तथा कन्धों के बीच या पीठ के ऊपरी भाग में ठण्ड लगना आदि लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

त्वचा से सम्बंधित लक्षण:- त्वचा पर उत्पन्न पुराना दाद तथा त्वचा पर उत्पन्न ऐसी तेज खुजली जो रात को और तेज हो जाता है। क्षय (टी.बी.) रोग से ग्रस्त बच्चों के चेहरे पर मुंहासे होना। विचर्चिका आदि लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

नींद से सम्बंधित लक्षण:- मानसिक परेशानी या अन्य कारणों से नींद का ठीक से न आना तथा रात को देर से सोना व सुबह जल्द उठना आदि कारणों से नींद का पूरा न होना जिसके कारण दिन में सिर या बदन में तेज दर्द होना। रात को नींद में धुंधला, बेचैन व डरावने सपने आना। इस तरह के लक्षणों में रोगी को टुबरकुलीनम औषधि देनी चाहिए।

बुखार से सम्बंधित लक्षण :- धीरे-धीरे आने वाला बुखार तथा पूर्ण रूप से बुखार उत्पन्न होने के बाद लगातार बना रहता है। ऐसे लक्षण वाले बुखार में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग हर दूसरे घंटे बाद करना चाहिए। शरीर से अधिक पसीना आना तथा अधिक ठण्ड महसूस होना आदि लक्षणों में टुबरकुलीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

वृद्धि :-

गति करने से, संगीत से, आंधी के पहले, खड़े रहने पर, ठण्डी हवा के झोंके से, सुबह के समय और नींद में रोग बढ़ता है।

शमन :-

खुली हवा में घूमने या रहने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :-

टुबरकुलीनम औषधि की तुलना कल्के-का, काली-स, सोरि, पल्स, सीपि और सल्फ औषधि से की जाती है।

पूरक :-

कल्के, चायना तथा ब्रायो औषधि टुबरकुलीनम औषधि के पूरके है।

मात्रा :-

टुबरकुलीनम औषधि की 30 से उच्च शक्ति का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि का प्रयोग किसी रोग में करने के बाद दुबारा प्रयोग करते समय लम्बे समय का अन्तर दें। बच्चों के रोग में इस औषधि के बीच वाली शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।


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