टारेण्टुला हिस्पानिया TARENTULA HISPANIA

 टारेण्टुला हिस्पानिया TARENTULA HISPANIA

परिचय-

सभी होमियोपैथिक औषधियां किसी न किसी पेड़-पौधे या जीवों से बनाई जाती हैं। टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि भी मकड़े के विश से तैयार की जाती है। इस औषधि को होमियोपैथिक चिकित्सकों ने विभिन्न प्रकार के शारीरिक लक्षणों में प्रयोग करने के बाद ही इसका प्रयोग करने को कहा है। यह औषधि विशेष रूप से स्त्री रोग से सम्बंधित लक्षण जैसे हिस्टीरिया, मासिकधर्म, गर्भाशय तथा जननेन्द्रिय में उत्पन्न विकार आदि को ठीक करती है। टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि का प्रयोग ऐसे स्नायविक बीमारी में की जाती है जिसके लक्षण रोगी में आसानी से उत्पन्न नहीं होते हैं परन्तु इस औषधि के प्रयोग से रोग के छोटे-से-छोटे लक्षण भी उत्पन्न होकर रोग जड़ से समाप्त होता है। यह औषधि हिस्टीरिया के साथ उत्पन्न पीलिया रोग को ठीक करती है। नाचने वाले व्यक्ति में उत्पन्न स्नायविक रोग, मासिकधर्म कष्ट के साथ आना तथा रीढ़ की हड्डी के ऊपरी भाग में जलन होना आदि लक्षणों में टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। पेशाब करते समय कूथन, मूत्राशय में सिकुड़न महसूस होना तथा मूत्राशय में चींटी रेंगने जैसी सुरसुराहट महसूस होना आदि लक्षणों को ठीक करने के लिए टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि का प्रयोग किया जाता है। रोगी में अधिक बेचैनी उत्पन्न होना तथा न चाहते हुए भी रोगी चलता रहता है तथा चलने से रोग और बढ़ जाता है। अधिक उत्तेजना के कारण मिर्गी का दौरा पड़ना तथा अत्याधिक सम्भोग क्रिया की इच्छा होना आदि लक्षण उत्पन्न होने पर टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि का प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है। 

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि का उपयोग :-

मन से सम्बंधित लक्षण :- रोगी का स्वभाव अचानक बदलने लगता है। रोगी में दूसरे को धोखा देने की प्रवृति आ जाती है। अधिक गुस्सा आने के कारण रोगी अपने व दूसरे को हानि पहुंचाता है। ऐसे मानसिक लक्षण जिसमें रोगी स्वयं को हमेशा व्यस्त रखना चाहता है। संगीत सुनना अच्छा लगता है। रोगी तोड़-फोड़ करने की इच्छा करता रहता है। रोगी को चोरी करने की इच्छा होती है। लोगों के बीच रहना व लोगों से मिलना अच्छा नहीं लगता है परन्तु अकेलेपन से डरता रहता है। रोगी किसी के एहसान को नहीं मानता है तथा रोगी अपने सोचे हुए इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाता है। ऐसे मानसिक लक्षणों से पीड़ित रोगी को टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि देने से रोग ठीक होता है।

सिर से सम्बंधित लक्षण :- सिर में ऐसा दर्द होना मानो कोई सिर में सुई चुभो रही हो। सिर चकराना तथा बालों में कंघी करने या सिर दबाने की अधिक इच्छा होना तथा स्नायविक सिर दर्द होने के साथ जारा सी आवाज होने, छूने या तेज प्रकाश से दर्द का तेज हो जाना आदि लक्षणों में टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि का प्रयोग किया जाता है।

पुरुष रोग से सम्बंधित लक्षण :- रोगी में यौनोत्तेजना का बढ़ जाना। सम्भोग क्रिया (सेक्स) की इच्छा बढ़ने के साथ रोगी में पागलपन का दौड़ा पड़ना। वीर्यपात होना। ऐसे पुरुष सम्बंधी लक्षणों में रोगी को टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि देने से रोग ठीक होता है।

स्त्री रोग से सम्बंधित लक्षण :- योनि सूखी और गर्म होने के साथ योनि में तेज खुजली होना। अधिक मात्रा में मासिकस्राव होने के साथ सम्भोग क्रिया की इच्छा कम होना। योनि में तेज खुजली होना तथा सम्भोग क्रिया की तेज इच्छा होना तथा कामुक (सेक्स) इच्छा अधिक होने के साथ स्त्री में चरित्रहीनता आ जाना। मासिकधर्म कष्ट के साथ आना तथा डिम्बग्रन्थियों की अधिक संवेदनशीलता जिसमें योनि से कुछ भी छू जाने से दर्द होने लगता है। ऐसे स्त्री रोग से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि देने से रोग ठीक होता है। मासिकधर्म के समय गला, जीभ, मुख आदि सूख जाता है तथा सोते समय अधिक कष्ट होता है। ऐसे लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। गर्भाशय में दर्द होने के साथ स्त्री में निराशा व दुख का भाव पैदा होना तथा गर्भाशय में आक्षेप (बेहोशी) आदि लक्षणों में रोगी को टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि देनी चाहिए।

हृदय से सम्बंधित लक्षण :- हृदय में कंपन होना। हृदय में बेचैनी महसूस होना तथा ऐसा महसूस होना मानो किसी ने हृदय को निचोड़ दिया है या घुमा दिया है। ऐसे हृदय रोग के लक्षणों में रोगी को टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि देने से रोग ठीक होता है।

घाव से सम्बंधित लक्षण :- विभिन्न प्रकार के घाव जैसे- कारबंकल, गैंग्रिन, छिलौरी आदि। ऐसे घावों के होने पर रोगी पूरी तरह परेशान रहता है तथा रात को दर्द के कारण रोगी चलता रहता है तथा घाव वाले स्थान पर जलन होती रहती है। ऐसे लक्षणों वाले घाव को ठीक करने के लिए टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि का प्रयोग अत्यंत लाभकारी माना गया है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण :- पैरों का कमजोर व पतला होना विशेष रूप से नाचने वाले व्यक्ति के पैरों में कमजोरी आने पर टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। पैर का सुन्न हो जाना। मेरुमज्जा कठोर होना व अधिक फैल जाना साथ ही उसमें कंपन, स्फुरण व झटके महसूस होना। मांस पेशियों में अकड़न व फड़कन होना। जम्भाई के साथ पैरों में कंपन उत्पन्न होना तथा पैरों को हिलाते रहने को मजबूर होना। अंगों में अस्वाभाविक सिकुड़ने और गतियां। बाहरी अंगों में उत्पन्न ऐसे लक्षणों में रोगी को टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि देने से रोग ठीक होता है।

वृद्धि :-

गति करने, छूने, शोर में, मासिकस्राव के बाद पीठ पर सहलाने से, शाम के समय तथा मौसम परिवर्तन आदि में रोग बढ़ता है। दूसरे की हानि या दुख-दर्द को देखने से रोग बढ़ता है।

शमन:- 

खुली हवा, संगीत सुनने, सफेद रंगों से तथा रोगग्रस्त अंगों के मालिश करने, घोड़ सवारी करने तथा धूम्रपान करने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :- 

टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि की तुलना एगारि, आर्से, क्यूप्रम, मैग्नी-फा औषधि से की जाती है।

मात्रा :-

टारेण्टुला हिस्पानिया औषधि के 6 से 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।


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