साइलीशिया (Silicea)

 साइलीशिया (Silicea)

परिचय-

साइलीशिया औषधि एक बहुत ही गहरी क्रिया करने वाली ऐन्टि-सेरिक, ऐन्टि-साइकोटिक और ऐन्टि सिफिलिटिक औषधि है। इस औषधि का असर शरीर मे काफी लंबे समय तक रहता है और ये बच्चे को जन्म लेने के साथ होने वाले रोगों में बहुत उपयोगी साबित होती है। ये पारे के बुरे असर को दूर करती है। अगर किसी व्यक्ति को कोई नई बीमारी घेर लेती है तो साइलीशिया उसे बहुत जल्दी ठीक करने में बहुत मदद करती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार साइलीशिया औषधि से होने वाले लाभ- 

मन से सम्बंधित लक्षण- रोगी अपने जीवन से परेशान हो जाता है वह सोचता है कि उसका जीना बेकार है वह किसी काम का नहीं है, जरा सा भी शोर-शराबा होते ही रोगी डरने लगता है, बच्चे बहुत ज्यादा जिद्दी और चिड़चिड़े हो जाते है, अगर कोई उनको प्यार भी करने लगता है तो वो चिल्लाने लगता है, रोगी हर समय बेचैनी सी ही रहता है, रोगी को अगर कोई दिमागी काम करने के लिए दे दिया जाए तो वो उस काम को करने में बिल्कुल असमर्थ हो जाता है, रोगी हर समय किसी गहरी चिंता में डूबा रहता है, रोगी को डरावने सपने आने लगते हैं, रात को काफी रात तक रोगी बिल्कुल भी सो नहीं पाता है। रोगी को इन लक्षणों के आधार पर साइलीशिया औषधि देने से रोगी कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो जाता है। 

सिर सें सम्बंधित लक्षण- रोगी अगर ऊपर की ओर देखता है तो उसका सिर घूमने लगता है, रोजाना होने वाला सिर का दर्द जो सिर के पीछे के हिस्से से शुरू होता है, सिर के ऊपर तक फैलता है तथा आंखों के ऊपर तक फैल जाता है, रोगी को अपना सिर बहुत बड़ा सा महसूस होता है, रोगी को जरा सी भी हवा लगते ही सिर में दर्द बहुत तेज हो जाता है, लेकिन पेशाब करने से सिर का दर्द कम हो जाता है, जरा सा भी शोर-शराबा होने से या दिमागी काम करने से रोगी के सिर का दर्द बढ़ जाता है, लेकिन सिर पर कसकर पट्टी बांधने से सिर का दर्द कम हो जाता है, रोगी अगर उपवास रखता है तो उनके सिर में दर्द होने लगता है, रोगी के सिर में बहुत ज्यादा पसीना आता है। इन लक्षणों के आधार पर रोगी को साइलीशिया औषधि देने से लाभ होता है।

आंखों सें सम्बंधित लक्षण- रोगी की आंखों में आंसुओं की नली में सूजन आना, आंखों के किनारों में फुंसियां सी हो जाना, आंखों में जलन होना, आंखों में थोड़ी सी ठण्डी हवा लगते ही परेशानी पैदा हो जाना, जो लोग आफिस मे काम करते है उनको होने वाला मोतियाबिंद, आंखों की कनीनिका में किसी तरह की चोट लग जाने के बाद होने वाली परेशानी, रोशनी में आते ही आंखों में दर्द हो जाना, कनीनिका में सूजन आ जाना, आंखों का भ्रम अर्थात रोगी जब पढ़ता है तो उसको अक्षर साथ-साथ चलते हुए दिखाई देते हैं। इस तरह के आंखों के रोगों के लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

कान से सम्बंधित लक्षण- रोगी को सुनाई देना बिल्कुल बंद हो जाना, कानों में बहुत तेज-तेज आवाजें गूंजती हुई सी सुनाई देना, जरा सा भी शोर-शराबा होते ही कानों में दर्द हो जाना, कान के अंदर से बदबूदार स्राव का आना, किसी की बात को साफ तरह से ना सुन पाना जैसे कान के रोगों के लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि का सेवन कराना लाभदायक साबित होता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- नाक के अंदर के भाग पर सूखी, सख्त सी पपड़ियों का जम जाना जिनको अगर छुड़ाया जाता है तो उनमें से खून निकलने लगता है, सुबह के समय छींके बहुत ज्यादा आती है, किसी भी चीज की खुशबू या बदबू का नाक से सूंघ कर पता नहीं लगाया जा सकता, नाक की ग्रंथियों का इतना नाजुक हो जाना कि उनको छूते ही नाक में दर्द चालू हो जाता है, नाक की नोक पर खुजली सी होना। इन लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि देने से लाभ मिलता है।

गले सें सम्बंधित लक्षण- मुंह के अंदर तालू के पिछले भाग की ग्रंथि में रोजाना आने वाली सूजन और उस में किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना, सर्दी का गले में बैठ जाना, कान की ग्रंथियों का सूज जाना, रोगी जैसे ही कुछ चीज खाकर निगलता है तो उसके गले में दर्द होता है, गर्दन की ग्रंथियों की सख्त और ठण्डी सूजन आना जैसे लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि देना बहुत ही उपयोगी साबित होता है।

चेहरे से सम्बंधित लक्षण- रोगी का चेहरे का रंग एकदम फीका सा पड़ जाना, रोगी के होंठों पर फुंसियां और छाले हो जाना जिनको जरा सा भी हाथ लगाते ही दर्द शुरू हो जाता है, मुंह के अंदर नीचे वाले जबड़े की गिल्टियों में दर्द और सूजन आ जाती है, मुंह के कोनों का कटा-फटा सा होना आदि लक्षणों में साइलीशिया औषधि का प्रयोग करना उपयोगी साबित होता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- रोगी के मसूढ़ों में सूजन के साथ दर्द का होना, रोगी को ऐसा लगता है जैसे कि उसके सारे दांत ढीले पड़ गए है, रोगी अगर ठण्डा पानी पीता है तो उसके मसूढ़ों में दर्द होने लगता है, रोगी को अपनी जीभ के आगे के हिस्से पर हर समय कोई बाल सा चिपका हुआ महसूस होता है, सुबह के समय मुंह से बहुत ज्यादा बदबू आती है। इन लक्षणों के आधार पर रोगी को साइलीशिया औषधि देना बहुत ही लाभकारी साबित होता है।

मूत्र (पेशाब) सें सम्बंधित लक्षण- पेशाब का अपने आप ही लाल या पीले तलछट का आना, रोगी जब मलक्रिया के लिए जोर लगाता है तो उस समय वीर्य टपकता रहता है। बच्चों के पेट में कीड़े होने के कारण रात को बच्चा बिस्तर में ही पेशाब कर देता है। इन सारे लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि देना बहुत ही उपयोगी साबित होता है।

बुखार से सम्बंधित लक्षण- रोगी को बहुत ज्यादा ठण्ड सी लगना, जरा सी भी ठण्डी हवा लगते ही रोगी को बुखार आ जाना, रात के समय रोगी को बहुत ज्यादा पसीना आना, रोगी को बुखार में बिल्कुल प्यास नही लगती, रोगी को बंद कमरे में या गर्म कमरे में भी ठण्ड लगती है, रोगी को हर समय कंपकंपी सी होती रहती है, बुखार शाम को शुरू होता है और रात को बहुत तेज हो जाता है, रोगी को रात के समय पसीना आने से कमजोरी महसूस हो जाती है, रोगी के हाथ, पिण्डलियों, तलुवों, पैर के अंगूठे और बगल में बदबूदार पसीना आता है, रोगी को रूक-रूककर आने वाले बुखार में रोगी को गर्मी बहुत ज्यादा लगती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि देने से लाभ होता है।

नींद से सम्बंधित लक्षण- रोगी नींद में उठकर चलने लगता है, रोगी नींद में बार-बार चौंक कर उठ जाता है, रोगी को सारे दिन नींद सी आते रहना, नींद ना आने के साथ खून के बहाव का बहुत ज्यादा होना और सिर में गर्मी का बढ़ जाना, रोगी को डरावने से सपने आना आदि लक्षणों में रोगी का साइलीशिया औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण- रोगी की रीढ़ की हड्डी का कमजोर हो जाना, रोगी की पीठ पर ठण्डी हवा लगते ही पीठ में परेशानी हो जाना, रोगी की पुच्छास्थि में दर्द का होना, रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के बाद रीढ़ की हड्डी में जलन सी हो जाना, रीढ़ की हड्डी में होने वाले रोग, रीढ़ की हड्डी में टी.बी हो जाना आदि लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि का प्रयोग कराना उपयोगी साबित होता है।

शरीर के बाहरी अंग से सम्बंधित लक्षण- रोगी को गृध्रसी (साइटिका) रोग होना, रोगी के नितंबों, टांगों और पैरों में होता हुआ दर्द, पैरों के गुल्फों और तलुवों में बायंटा सा आना, टांगों का बहुत कमजोर हो जाना, किसी भी काम को करते समय हाथों का कांपना, हाथों की उंगलियों के नाखूनों में किसी रोग के होने के कारण नाखूनों पर सफेद से निशानों का पड़ना, रोगी के पैरों के नाखूनों का अंदर की ओर से बढ़ना, रोगी के पैरों का बर्फ की तरह ठण्डा होना, रोगी के पैरों में बहुत ज्यादा पसीना आना, रोगी जिन अंगों के बल लेटता है वो अंग सुन्न पड़ जाता है, रोगी के हाथों, पैरों और बगल में बदबूदार पसीना आना, रोगी को उंगलियों की नोकों में ऐसा महसूस होता है जैसे की उंगलियां पक रही हो, अंगुलबेढ़ा, रोगी के घुटनों में इस तरह का दर्द होना जैसे कि किसी ने घुटनों को कसकर बांध दिया हो, पैरों की उंगलियों के नीचे दर्द का होना, पैरों और टखनों और अंगूठों के बीच में होकर तलुवों में होने वाली परेशानी जैसे लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि का सेवन कराना उपयोगी साबित होता है।

आमाशय सें सम्बंधित लक्षण- रोगी को मांस और गर्म भोजन को देखते ही जी खराब हो जाता है, भोजन निगलने पर भोजन अपने आप ही नासारंध्र में पहुंच जाता है, रोगी को बिल्कुल भूख न लगना, रोगी को बार-बार प्यास लगती है, रोगी जब भोजन करता है तो उसके बाद उसे खट्टी डकारें आना चालू हो जाती है, रोगी के पेट को जरा सा भी दबाते ही दर्द होने लगता है, किसी भी पीने वाले पदार्थ को पीते ही रोगी उल्टी कर देता है। इन लक्षणों के आधार पर रोगी को साइलीशिया औषधि देना अच्छा रहता है।

पेट से सम्बंधित लक्षण- रोगी का पेट बहुत ज्यादा फूल जाना, रोगी के पेट में दर्द होना या दर्द के कारण उत्पन्न ठण्डक सी महसूस होना जो बाहर की गर्मी से कम हो जाता है, रोगी के पेट में पेट में दर्द होना का बनना, रोगी के हाथ और नाखूनों का पीला पड़ जाना, आंतों के अंदर बहुत ज्यादा गड़गड़ाहट सी होना, जिगर का खराब हो जाना, रोगी की वक्षण ग्रंथियों का दर्द के साथ सूज जाना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को साइलीशिया औषधि का प्रयोग कराना उचित रहता है।

मलान्त्र से सम्बंधित लक्षण- रोगी को मलत्याग करने के बाद मलान्त्र में बहुत तेजी से दर्द का होना, रोगी को अपना मलद्वार चिरा हुआ सा महसूस होता है, रोगी के मलान्त्र में गुदा का नासूर बनना, रोगी को भगंदर का रोग होना, रोगी को मलक्रिया के समय मल पूरी तरह से बाहर नही आ पाता और थोड़ा बहुत बाहर भी आता है तो फिर दुबारा अंदर चला जाता है। मल का बहुत कम मात्रा में, सख्त रूप में, छोटी-छोटी गुठलियों के आकार में, बदबू के साथ आता है, मल का रंग हल्का सा होना जैसे लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि देने से आराम मिलता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- स्त्री का मासिकस्राव काफी समय तक न आना और कभी आना भी तो स्राव का बहुत कम मात्रा में आना, स्त्री जब पेशाब करती है तो उसको पेशाब के साथ दूध जैसा स्राव आता है, तीखा प्रदर स्राव (योनि में से तीखा पानी आना), स्त्री की योनि और योनि के रास्ते में खुजली सी होना, स्त्री का एक मासिकस्राव आने के बाद और दूसरा मासिकस्राव आने से पहले के बीच के समय में खून का आना, स्त्री जब बच्चे को दूध पिलाती है तो उस समय स्त्री की योनि में से खून का स्राव होता है, स्त्री जब तक अपने बच्चे को अपना दूध पिलाती है तब तक स्त्री का मासिकस्राव नहीं आता है, बच्चे को दूध पिलाते समय स्त्री के स्तनों से पीठ तक तेजी से होने वाला दर्द तथा इसी के साथ ही स्त्री के दान्तों में भी दर्द होना, गर्भाशय या योनि में मांस का बढ़ना, स्त्री के स्तनों में सख्त सी गांठों का पड़ जाना, स्त्री के गर्भाशय में कैंसर का होना जैसे लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि का इस्तेमाल कराना बहुत ही उपयोगी साबित होता है।

पुरुष रोग से सम्बंधित लक्षण- रोगी के अंडकोषों में पानी भर जाना, रोगी के जननेन्द्रियों में जलन और दर्द होना, रोगी को रात के समय अपने आप ही वीर्य का निकल जाना, स्त्री के साथ संभोग करने के बाद शरीर में थकावट सी महसूस होना और कमर में दर्द होना, बच्चों के अंडकोषों का बढ़ जाना आदि लक्षणों में रोगी को साइलीशिया औषधि देने से लाभ होता है।

चर्म (त्वचा) सें सम्बंधित लक्षण- रोगी को अंगुल बेढ़ा होना, रोगी की त्वचा पर पुराने नासूर जैसे जख्मों का होना, उंगलियों की नोक में दरारें पड़ना, ग्रंथियों की वेदनाहीन सूजन, रोगी की त्वचा पर गुलाबी रंग के निशान से पड़ना, फोड़ों में से बदबूदार पीब का आना, रोगी को लगने वाली छोटी से छोटी चोट पक भी जाती है, रोगी को टीका लगाने के बाद होने वाले रोग, त्वचा पर कोढ़ होना, उंगलियों की नोक का सूख जाना। इन सब लक्षणों के आधार पर रोगी को साइलीशिया औषधि का प्रयोग कराने से लाभ होता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- मुंह से थूक का निरंतर निकलते रहना, रोगी को होने वाला सर्दी-जुकाम का रोग ठीक नहीं होता, खांसी और गले में जलन, खांसी के साथ दिन में बलगम का खून के साथ आना, छाती से होकर पीठ तक सुई के चुभने जैसा दर्द होना, रात को सोते समय बहुत तेज खांसी के साथ गाढ़ा, पीला, ढेलेदार बलगम का आना आदि रोगों में रोगी को साइलीशिया औषधि का सेवन लाभदायक रहता है। 

वृद्धि-

अमावस्या के आने के बाद, सुबह के समय, धोने-धुलाने से, मासिकस्राव के दौरान, नंगा रहने पर, लेटते समय आर्द्रता से, बाईं करवट लेटने से और ठण्ड से रोग के लक्षणो मे वृद्धि होती है।

शमन-

गर्माई से, सिर को लपेटने से, गर्मी के मौसम में रोग बढ़ जाता है।

पूरक-

फ्लोरि-ए, सैनीक्यू, थूजा।

तुलना-

साइलीशिया औषधि की तुलना ब्लैक गनपाउडर, हीपर, काली-फा, पिक्रि-ए, कल्के, टैबाशीर, एरुण्डो डोनैक्स से की जा सकती है।

मात्रा-

रोगी को साइलीशिया औषधि की 6 से 30 शक्ति तक देने से रोगी को जल्दी आराम मिलता है।

जानकारी-

रोगी को साइलीशिया औषधि की 200 और ऊंची शक्तियां तक देने से लाभ होता है।


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