सैनीक्यूला (एकुआ)Sanicula (Aqua) (The water of sanicula Springs, Ottawa)(ओटावा के सैनीक्यूला नामक झरनों का पानी)-सैनीक
परिचय-
सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि बच्चों के रोगों में बहुत लाभकारी सिद्ध होती है। बच्चों के बिस्तर पर पेशाब करने में, बच्चों को होने वाले हडि्डयों का रोग आदि लक्षणों में यह औषधि काफी असरदार साबित होती है। विभिन्न रोगों के लक्षणों के आधार पर सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि का उपयोग-
गले से सम्बंधित लक्षण- रोगी के गले से गाढ़ा, रेशेदार और चिपचपा सा बलगम का आना जैसे लक्षणों में रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि का सेवन कराना लाभदायक रहता है।
मुंह से सम्बंधित लक्षण- रोगी की जीभ का बड़ा, थुलथुला होना और इसी के साथ ही जीभ में जलन सी होना जिसको ठण्डा रखने के लिए जीभ को बाहर निकालना पड़ता है। रोगी की जीभ पर दाद से हो जाना आदि लक्षणों के आधार पर रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि देना बहुत ही लाभकारी रहता है।
आमाशय से सम्बंधित लक्षण- रोगी जब गाड़ी आदि की सवारी करता है तो उसका जी मिचलाने लगता है और उसे उल्टी होने लगती है। रोगी को प्यास लगने के कारण बार-बार पानी पड़ता है। इसके बावजूद रोगी जैसे ही पानी को पेट में पहुंचाता है उसको उसी समय उल्टी होने लगती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि देने से लाभ मिलता है।
सिर से सम्बंधित लक्षण- रोगी के नींद में ही माथे के पीछे और गर्दन के जोड़ पर बहुत ज्यादा पसीना आना। अंधेरे में आते ही रोगी को डर लगने लगना, रोगी के ठण्डी हवा में आते ही आंखों से आंसू निकलना। रोगी के सिर में बहुत ज्यादा मात्रा में पपड़ीदार रूसी का होना। रोगी के कान दर्द होना आदि लक्षणों में रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि देने से रोगी कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
मलाशय से सम्बंधित लक्षण- रोगी के पूरे नाभि के आसपास के भाग में दर्द होना। जब तक मलाशय में बहुत सारा मल जमा नहीं हो जाता तब तक रोगी को मलक्रिया की इच्छा नहीं होती, रोगी के बहुत जोर लगाने के बाद भी थोड़ा सा मल निकलता है और अगर एक बार मल बाहर भी निकलता है तो वह दुबारा अंदर की ओर चला जाता है। मल मलद्वार पर ही टूट जाता है। मल का बहुत बदबू के साथ आना। मलद्वार, नाभि के आसपास के भाग और जननेन्द्रियों के आसपास की त्वचा का फटना। भोजन के बाद दस्त का आना जैसे लक्षणों में रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि देना लाभकारी रहता है।
स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- स्त्री को ऐसा महसूस होता है जैसेकि उसके मलद्वार से सारे यन्त्र बाहर निकल पड़ेंगे। स्त्री को आराम करने से राहत होती है। स्त्री को अपने जनंनांगों को सहारा देने का मन करता है। स्त्री के गर्भाशय में जख्म सा होना, प्रदर-स्राव (योनि में से पानी आना) जिसमें से मछली के तेल या पुराने पनीर जैसी बदबू आती है, स्त्री को अपनी योनि बड़ी महसूस लगती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि देना बहुत ही उपयोगी साबित होती है।
शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- रोगी के पैरों के तलुवों में जलन होना। रोगी के पैरों से बदबूदार पसीना आना। प्रत्यंगों में से ठण्डा, चिपचिपा सा पसीना आना जैसे लक्षणों में रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि देना लाभकारी रहता है।
चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- रोगी की त्वचा का गंदा, तैलीय, कत्थई रंग का होना। रोगी की त्वचा पर झुर्रियां सी पड़ना। रोगी की त्वचा पर फोड़े से पड़ना। रोगी की हाथों और उंगलियों में दरारें सी पड़ना आदि लक्षणों में रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि देना उपयोगी साबित होती है।
पीठ से सम्बंधित लक्षण- रोगी की त्रिकास्थि (रीढ़ की हड्डी के नीचे का हिस्सा) के जोड़ में दर्द सा होना और दाईं करवट लेटने पर आराम मिलता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि देना उपयोगी साबित होता है।
वृद्धि-
बांहों को पीछे की ओर घुमाने पर रोग बढ़ जाता है।
शमन-
ठण्ड से, चादर हटाने से, आराम करने से, लेट जाने से रोग कम हो जाता है।
तुलना-
सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि की तुलना एब्रोटे, एलूमि, कल्के, सिलिका, सल्फ, सैनीक्यूला से की जा सकती है।
मात्रा-
रोगी को सैनीक्यूला (एकुआ) औषधि की 30 शक्ति देने से लाभ होता है।
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