थिओसिनामीनम-रोडैलिन THIOSINAMINUM-RHODALLIN
परिचय-
तिल के तेल से निकलने वाली एक विशेष प्रकार के रसायनों को होम्योपैथिक तरीके से थिओसिनामीनम-रोडैलिन औषधि तैयार की जाती है। इस औषधि का प्रयोग विभिन्न प्रकार के रोगों में उत्पन्न लक्षणों को समाप्त करने के लिए किया जाता है। इस औषधि का प्रयोग दोनों प्रकार से की जा सकती है- बाहरी प्रयोग (लगाना) और सेवन करना। यह औषधि घाव या जख्म के निशान पड़ने, फोड़े होने तथा ग्रंथियों के फैल जाने पर उपयोग में लाई जाती है। पलकों का बाहर की ओर उलट जाना या कनीनिका के आर-पार दिखाई देना, मोतियाबिन्द, जोड़ों में खिंचाव, सूत्रार्बूद (फोड़े से सूत की तरह कीड़े निकलना), त्वचा में खिंचाव होना आदि लक्षणों को ठीक करने के लिए थिओसिनामीनम-रोडैलिन औषधि का प्रयोग किया जाता है। कान में आवाज गूंजना आदि लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। कशेरुका मज्जाक्षय (कशेरुका मज्जा का टी.बी. रोग) में झटके की तरह दर्द होने पर इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह औषधि पाकाशय, मूत्राशय तथा मलाशय से सम्बंधित रोगों की अंतिम अवस्था में रोग को ठीक करने के लिए थिओसिनामीनम-रोडैलिन औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह औषधि 120 ग्राम की मात्रा में लेनी चाहिए।
शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर थिओसिनामीनम- रोडैलिन औषधि का उपयोग :-
कान से सम्बंधित लक्षण:- इस औषधि का प्रयोग धमनी में खिंचावयुक्त चक्कर आना। कान में आवाज गूंजना। प्रतिश्यायी बहरापन के साथ घाव या जख्म की तरह कान का मोटा हो जाना। कान की परते मोटी होना। स्नायु में किसी सौत्रिक परिवर्तन के कारण बधिरता। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी को थिओसिनामीनम-रोडैलिन औषधि का सेवन कराना चाहिए।
मात्रा :-
ग्लिसरीन और पानी मिला हुआ 10% द्रव्य को 15 से 30 बूंदों की मात्रा में सप्ताह में 2 बार देनी चाहिए। कठिन धमनीकाठिन्य उपसर्गों में 65 या 120 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 3 बार प्रयोग करें। चक्कर आने और जोड़ों में जलन होने पर 2X मात्रा का प्रयोग करें।
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