आयोडम IODUM

 आयोडम IODUM

परिचय-

आयोडम औषधि का प्रयोग कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है। इस औषधि का उपयोग रोगी व्यक्ति में तीव्र चयापचय (रैपीड मीटैबोलिज्म) अर्थात भोजन को पचाने की क्रिया को ठीक करने, भोजन करने के बाद भी शरीर में अन्न का न लगना और कमजोरी व दुर्बलता उत्पन्न होना आदि रोगों के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त अधिक भूख लगना, अधिक प्यास लगना, अधिक कमजोरी तथा हल्की मेहनत करने से ही अधिक थकान व पसीना आना जैसे लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए आयोडम औषधि का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि के प्रयोग से रोगों के लक्षण दूर होकर रोग समाप्त होता है। आयोडम औषधि का प्रयोग कमजोर, दुर्बल, उसके चेहरे का रंग सांवला, अधिक भूख लगना तथा लसीका ग्रन्थियां ( लाइम्फैटीक ग्लैण्डस) बढ़ी हुई और क्षय से संबन्धित लक्षण आदि को दूर करने के लिए किया जाता है। आयोडम औषधि का प्रभाव विशेष रूप से सभी ग्रन्थियों की रचनाओं (ग्लैनडुलर स्ट्रक्चरस), सांस नली (रीस्पाइरोरी और्गेंस) तथा संचार जाल (सरक्युलैटरी सिस्टम) पर पड़ता है। आयोडम औषधि खून में मौजूद \'वेतकणों को एकत्रित करके शरीर में रोगों से लड़ने वाली जीवनी शक्ति को बढ़ाती है जिसके कारण रोग को उत्पन्न करने वाले जीवाणु नष्ट होते हैं और रोगी के शरीर में जीवनी शक्ति बढ़ती है। सीसज विषण्णता (लीड पोइजनींग)। शारीरिक कंपन तथा ठण्डी हवा की अधिक इच्छा करना आदि लक्षणों में आयोडम औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

यदि किसी रोगी को अधिक समय से जलन महसूस होने के कारण उसमें उत्तेजना पैदा होती है तो उसे यह औषधि देना लाभकारी होता है। इस औषधि के प्रयोग से विरूपक जोड़ों की सूजन तथा उत्तकों की जोड़ों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इस औषधि का प्रयोग अन्य रोगों से संबन्धित लक्षण जैसे- प्लेग, गलगण्ड (गौइट्रे), अस्वभाविक वाहिका संकीर्णन (अबरोरमल वैसोकंस्ट्रशन), केशिका रक्तसंलयन (कैपीलरी कोनगेशन), खून का बहना तथा पोषण दोषों व विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है।

किसी व्यक्ति के शरीर में जैव प्रक्रिया मन्द गति से होने के कारण उस व्यक्ति के शरीर में असंख्य रूपों में रोग के पुराने लक्षण पाए जाते हैं। ऐसे में रोगी को आयोडम औषधि देने से रोग से संबन्धित लक्षण ठीक होते हैं तथा शरीर में रोग पैदा करने वाले जीवाणु नष्ट होते हैं।

सभी श्लैष्म कलाओं के नए प्रतिश्याय। पौष्टिक भोजन करने के बाद भी शरीर कमजोर व पतला होते जाना। ग्रन्थियों का सूखना तथा रोगी में असंख्य क्षय (टी.बी.) जनित रोग तथा गले की गांठ आदि से पीड़ित रोगियों के लिए किया जाता है। तेजी से होने वाला निमोनिया। आयोडीन रोग जो ताप प्रधान होता है तथा रोगी को ठण्डी वातावरण अच्छी लगती है। रोगी में उत्पन्न कमजोरी तथा हल्की-सी ऊंचाई पर चढ़ने से ही दम फूलने लगता है। ऐसे लक्षणों में आयोडम औषधि का प्रयोग अत्यन्त लाभकारी होता है। ग्रन्थियों की सूजन तथा रेंगने वाले सांप द्वारा काटने पर काटे हुए स्थान पर आयोडम औषधि की मूलार्क लगाना चाहिए तथा इस औषधि का सेवन भी करना चाहिए।

शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर आयोडम औषधि का उपयोग :-

मानसिकता से संबन्धित लक्षण :- रोगी व्यक्ति की मानसिक स्थिति खराब होने के कारण रोगी में अनेक प्रकार के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं जैसे- रोगी में चिड़चिड़ापन आ जाना और साथ ही शान्त रहने के कारण रोगी में स्वयं के लिए हीन भावना पैदा होना। रोगी को अपने भविष्य की कोई चिन्ता नहीं रहती तथा वे अपने कार्य व अन्य मानसिक विचारों में ही खोया रहता है। रोगी की मानसिकता ऐसी हो जाती है जैसे वह कहीं भाग जाना चाहता है और साथ ही रोगी के अन्दर मारने, काटने व हिंसा आदि की भावना पैदा होती रहती है। रोगी हर बात को भूल जाता है तथा वह हर समय व्यस्त रहना चाहता है। लोगों से मिलने, बात करने तथा किसी नए स्थान पर जाने से डरता रहता है। रोगी में पागलपन व आत्महत्या करने जैसे स्वभाव उत्पन्न होते हैं। इस तरह के मानसिक रोगों से संबन्धित लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए आयोडम औषधि का प्रयोग करने से यह औषधि रोगों में तेजी से क्रिया करके रोगों को ठीक करता है।

सिर से संबन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी के सिर में जलन के साथ दर्द होता है, सिर में खून का तेज दौरा पड़ता है तथा सिर में कठोर पट्टी बांधने जैसा महसूस होता है तो रोगी में उत्पन्न ऐसे लक्षणों को दूर करने के लिए आयोडम औषधि का सेवन कराना चाहिए। रोगी में सिर रोग से संबन्धित ऐसे लक्षण उत्पन्न होते हैं जिसमें रोगी के सिर में चक्कर आता है तथा झुकने तथा कमरे में जाने से सिर चकराना और बढ़ जाता है। ऐसे लक्षणों के लिए रोगी को आयोडम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। बुढ़ापे के कारण उत्पन्न होने वाले पुराने रोग तथा सिर में खून का तेज दौरा पड़ने जैसे लक्षणों में आयोडम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

आंखों से संबन्धित लक्षण :- रोगी में ऐसे लक्षण जिसमें रोगी की आंखों से अधिक आंसू आते हैं, आंखों में दर्द होता रहता है, आंखों की पुतलियां अधिक फैल जाती है, नेत्रगोलक लगातार घूमते हुए महसूस होते रहते हैं तथा आंखों में आंसू लाने वाली कोशिकाएं सूज जाती हैं। इस तरह आंखों से संबन्धित कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर आयोडम औषधि का सेवन करना लाभकारी होता है।

नाक से संबन्धित लक्षण :- नाक से संबन्धित विभिन्न लक्षण जैसे- अधिक आना, सूखा नजला तथा खुली हवा में नजला का स्राव होना। अकस्मात उत्पन्न होने वाला बुखार। रोगी के नाक से गर्म नजला का स्राव होना तथा नजला स्राव होने के साथ रोगी का शरीर गर्म रहना। नाक के जड़ तथा नाक के अगले भाग में दर्द होता है। नाक बन्द रहता है। रोगी में घाव उत्पन्न होने के लक्षण दिखाई देते हैं। रोगी को गंध का पता नहीं चलता। नाक से खून का गिरना जिसका सम्बंध उच्च रक्तचाप से रहता है। नाक से संबन्धित इन लक्षणों में से कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को ठीक करने के लिए आयोडम औषधि का प्रयोग किया जाता है।

सांस संस्थान संबन्धित लक्षण :- रोगी की आवाज खराब हो गई है। रोगी के गले में कच्चापन व गुदगुदी महसूस होती है तथा गुदगुदी के कारण रोगी में खांसी उत्पन्न होती है। स्वरयन्त्र में दर्द रहता है, स्वरयन्त्र सूज जाने के कारण तेज दर्द होता है और गले में खुरदरापन महसूस होता है जो खांसते समय और अधिक हो जाता है तो ऐसे लक्षणों में रोगी को आयोडम औषधि का सेवन करना चाहिए।

शरीर के दाएं भाग में निमोनिया के साथ तेज बुखार उत्पन्न होना। रोगी को सांस लेने में परेशानी तथा छाती कठिनाई के साथ फैलना, बलगम के साथ खून आना और रोगी को अपने शरीर के अन्दर सूखी गर्मी महसूस होना तथा बाहरी अंगों में ठण्डक महसूस होना। हृदय की धड़कन तेज हो जाना। निमोनिया रोग। रोगी में बुखार होने के साथ जिगर तेजी के साथ फैलना तथा अधिक पीड़ा होने पर भी दर्द न होना तथा गर्मी के कारण रोग का बढ़ जाना आदि लक्षणों से पीड़ित रोगी को आयोडम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है।

गले में गांठे होने के साथ बच्चों में होने वाली क्रुप खांसी। सांस अन्दर लेने पर कठिनाई होती है। सुबह के समय होने वाली सूखी खांसी जो स्वरयन्त्र में गुदगुदी होने के कारण शुरू होती है। क्रुप खांसी के साथ सांस लेने में कठिनाई तथा रोगी के गले से सांय-सांय की आवाज निकलना। सिर में ठण्ड लगने के कारण ठण्ड सिर से होते हुए सांस नली तक फैल जाना। रोगी की छाती के आस-पास भारी कमजोरी महसूस होती है तथा हल्के कार्य करने पर ही धड़कन तेज होने के साथ थकान होती है। सद्रव फुफ्फुसावरण की सूजन। पूरी छाती में गुदगुदी महसूस होती है। रोगी में उत्पन्न आयोडीन की खांसी जो कमरे के अन्दर रहने, गर्मी में तथा वर्ष में भीगने व पीठ के बल लेटने से बढ़ता है। सांस संस्थान से संबन्धित इन सभी लक्षणों में से किसी भी लक्षण से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए आयोडम औषधि का सेवन कराना लाभकारी होता है। इस औषधि के प्रयोग के फलस्वरूप यह सांस संस्थान संबन्धित रोगों में तेजी से क्रिया करती है और रोग से संबन्धित लक्षणों को ठीक करती है।

हृदय से संबन्धित लक्षण :- रोगी को हृदय के चारों ओर दर्द व कंपकंपाहट महसूस होने के साथ ऐसा महसूस होता है मानो कोई सख्त वस्तु से उसकी हृदय को निचोड़ा जा रहा है। इस तरह के लक्षण उत्पन्न होने के साथ रोगी में ऐसे लक्षण उत्पन्न होने के साथ कमजोरी और बेहोशी उत्पन्न होती है। हृदय की धड़कन कम हो। हृदय क्षिप्रता (टाइकैरिया) आदि लक्षण उत्पन्न होता है। इस तरह के हृदय से संबन्धित लक्षणों को दूर करने के लिए रोगी को आयोडम औषधि देने से रोग ठीक होता है।

मुंह से संबन्धित लक्षण :- रोगी के मसूढ़े ढ़ीले पड़ जाने के कारण मसूढ़ों से खून का आना। मुंह से बदबूदार स्राव होने के साथ अधिक लार का आना तथा मुंह के छालों से बदबू आना। गले की टांसिल का बढ़ जाना। मुंह से अधिक मात्रा में दुर्गन्धित लार का आना। जीभ पर मोटी पपड़ी जम जाना। इस तरह के मुंह से संबन्धित लक्षणों को ठीक करने के लिए आयोडम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

गले से संबन्धित लक्षण :- रोगी के गले में स्वरयन्त्र सिकुड़ा हुआ महसूस होता है। कान के रोग के कारण उत्पन्न होने वाले बहरापन। गला सूज कर मोटा होने के साथ गले में सिकुड़न महसूस होना। अवहनुग्रन्थियां सूजी हुई तथा काकलक सूजा हुआ रहना आदि लक्षण। इस तरह के लक्षणों को दूर करने के लिए रोगी को आयोडम औषधि देने से रोग ठीक होता है।

आमाशय से संबन्धित लक्षण :- आमाशय रोगग्रस्त होने के साथ रोगी में ऐसे लक्षण जिसमें रोगी को पेट की परत के अन्दर जलन महसूस होती है। रोगी को अधिक भूख और प्यास लगती है। सूखी डकारें आती है तथा ऐसा महसूस होता है मानो खाया हुआ पदार्थ गैस में बदल गया है। यदि रोगी भोजन न करे तो वह बेचैन व उतावला हो जाता है। भोजन करने के बाद भी रोगी की शारीरिक शक्ति कम होती जाती है और रोगी दुबला व पतला होता जाता है। रोगी की शारीरिक क्रिया ऐसी हो जाती है मानो अच्छा व पौष्टिक भोजन करने के बाद भी रोगी को अन्न नहीं लग रहा है। इस तरह के आमाशय से संबन्धित लक्षणों में से कोई भी लक्षण से रोगग्रस्त होने पर रोगी को आयोडम औषधि लेनी चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से आमाशय क्रिया ठीक तरह से काम करने लगती है तथा रोगी में उत्पन्न होने वाले अन्य लक्षण दूर होते हैं।

पेट से संबन्धित लक्षण :- यदि किसी व्यक्ति की जिगर और प्लीहा में तेज दर्द होता है। पेट में दर्द और पेट फैलता रहता है। रोगी को पीलिया रोग हो जाता है। आंतों की ग्रन्थियां बढ़ गई हैं। रोगी को क्लोमग्रन्थि का रोग हो गया है। पेट के अन्दर काटता हुआ दर्द होता है। इस तरह के लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए आयोडम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

त्वचा से संबन्धित लक्षण :- यदि त्वचा रोगग्रस्त होने के साथ त्वचा गर्म, खुश्क, पीली और सिकुड़ गई है। त्वचा की ग्रन्थियां बढ़ गई हो। त्वचा में गांठे पड़ गई हों। हृदय रोग ग्रस्त होने के कारण त्वचा में पानी भर गया हो। ऐसे लक्षणों से ग्रस्त होने पर आयोडम औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है।

मल से संबन्धित लक्षण :- जिस व्यक्ति को मल त्याग करते समय मल के साथ खून आता है। रोगी को ऐसे दस्त आते हैं जिसमें दस्त के साथ सफेद, झागदार व चर्बीदार पदार्थ आता है। दस्त आना बन्द हो गया है जिसके कारण शौच के समय अधिक प्रयास करने के बाद भी मलत्याग नहीं होता और रोगी को ठण्डा दूध पीने से आराम मिलता है। ऐसे लक्षणों में आयोडम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

बुखार से संबन्धित लक्षण :- रोगी को अपने पूरे शरीर में तेज गर्मी महसूस होती है। तेज बुखार के कारण रोगी बेचैन, रोगी का गाल लाल तथा खून सूखने के साथ अधिक पसीना आना आदि बुखार में उत्पन्न होने वाले लक्षणों में आयोडम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

मूत्र रोग से संबन्धित लक्षण :- मूत्र से संबन्धित विभिन्न लक्षण जैसे- बार-बार पेशाब का आना, अधिक मात्रा में पेशाब आना, पेशाब गहरे रंग का पीला, हरा व गाढ़ा होना, पेशाब तेजाब की तरह तीखा होने के साथ पेशाब में चिकने पदार्थ का आना। इस तरह के मूत्र रोगों से संबन्धित लक्षणों से ग्रस्त रोगी को आयोडम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

निमोनिया रोग से ग्रस्त रोगी की आंखें और बाल काले होते हैं, गिल्टियां बहुत अधिक निकलती हैं, रोगी व्यक्ति को अधिक कमजोरी महसूस होने के साथ शरीर में दुर्बलता आ जाती है, रोगी के अन्दर टीस मारता हुआ दर्द होता है तथा रोगी को ऐसा महसूस होता है मानो फेफड़ों में बैठा हुआ बलगम न तो निकल रहा है और न ही सूख रहा है तथा अच्छे भोजन करने पर भी रोगी का शरीर मोटा नहीं होता है और उसमें दिन-प्रतिदिन कमजोरी आती जाती है। रोगी में ऐसे लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को आयोडम औषधि का सेवन करना चाहिए।

घेंघा रोग :- काले बाल के मनुष्य जिनको घेंघा रोग हो गया हो उनके गले का सख्त घेंघा रोग आयोडम औषधि से दूर होती है। भूरे रंग के मनुष्य का घेंघा रोग में रोगी को ब्रोमियम औषधि का प्रयोग लाभ होता है।

पुरुष रोग से संबन्धित लक्षण :- अण्डकोष की सूजन व कठोर होना। अण्डकोष में पानी का भरना (हाइड्रोसिल), कामशक्ति कम होने के साथ अण्डकोष का सूख जाना आदि लक्षणों से संबन्धित रोगों में आयोडम औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।

स्त्री रोग से संबन्धित लक्षण :- मासिकधर्म के समय स्त्रियों में कमजोरी आना। मासिकधर्म समय से पहले या बाद में आना। गर्भाशय की झिल्ली से खून का निकलना। डिम्बाशय की सूजन। डिम्बाशय से लेकर जरायु तक सुई के चुभने जैसा दर्द होना। स्तनों की ग्रन्थियां सिकुड़ जाना। स्तनों की त्वचा पर गांठें पड़ जाना, योनि से तेजाब की तरह तीखा व गाढ़ा प्रदर स्राव होने के साथ स्राव चिपचिपा होना जिसके लगने से कपड़े में छेद हो सकता है तथा दायें डिम्ब प्रदेश में चुभने वाला दर्द होना। स्त्री रोग से संबन्धित इन लक्षणों से ग्रस्त होने पर उसे ठीक करने के लिए आयोडम औषधि देनी चाहिए।

शरीर के बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षण :- यदि किसी व्यक्ति के जोड़ों में जलन होती है तथा रात को हडडियों में दर्द रहता है। जोड़ों वाले स्थान पर सफेद रंग की सूजन आ गई है। सूजाकीय आमवाती (गठिया) से संबन्धित लक्षण उत्पन्न होता। गर्दन की जोड़ों तथा ऊपरी भागों का आमवाती (गठिया) रोग। रोगी के हाथ-पैर ठण्डे पड़ जाते हैं। पैरों से तीखा व बदबूदार पसीना आता है। बड़ी धमनी में जलन व दर्द होता है। रोगी में उत्पन्न होने वाले गठिया वाती दर्द तथा जोड़ों का दर्द जो रात को बढ़ जाता है तथा उनमें सिकुड़न महसूस होती है। इस प्रकार के शरीर के बाहरी अंगों से संबन्धित इन लक्षणों से पीड़ित रोगी को आयोडम औषधि का प्रयोग करना चाहिए। यह औषधि रोग में तेजी से क्रिया करती है।

वृद्धि :-

चलने से, सिर को ढकने से तथा सिर पर कुछ रखने से रोग बढ़ता है।

शमन :-

रोगग्रस्त भाग पर ठण्डी हवा लगने से तथा ठण्डे पानी से धोने से रोग में आराम मिलता है।

तुलना :-

आयोडम औषधि की तुलना ब्रोमि, हीपर, मर्क्यूरियस, फास्फो, एब्रोटै, नेट्र-म्यूरि, सैनीक्यू तथा टुबर से की जाती है।

प्रतिविष :- 

हीपर, सल्फ, गैशियोला आदि औषधियों का प्रयोग आयोडम औषधि के दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है।

पूरक :- 

लाइकोपोडि, बादियागा औषधि आयोडम औषधि का पूरक है।

मात्रा :-

आयोडम औषधि की 3 से 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। आयोडम औषधि का प्रयोग घोल के रूप में करने से औषधि के कच्ची सामाग्री की आवश्यकता पड़ सकती है।

इसके अतिरिक्त पोटैशियम आयोडेटम का आयोडीनीकृत घोल को 28 मिलीलीटर पानी में मिलाकर 2.08 ग्राम पोटाश और 0.26 ग्राम आयोडीन के साथ मिलाकर 10-10 बून्द दिन में 3 बार लेने से पेट के कीड़े मर कर मलद्वार से बाहर निकल जाते हैं।


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