जिंकम मेटालिकम ZINCUM METALLICUM
परिचय-
जिंकम मेटालिकम औषधि की मुख्य क्रिया मस्तिष्क सम्बंधित लक्षणों में विशेष रूप से होती है। यह औषधि ऊतकों को सुधारने में तेजी से क्रिया करती है और ऊतकों से सम्बंधी लक्षणों को समाप्त करती है। इस औषधि के प्रयोग से दबे हुए फोड़े-फुंसियां व स्रावों से उत्पन्न दूषित द्रव्य आदि दूर होता है। यह औषधि स्नायविक लक्षणों को ठीक करने, जीवनीशक्ति को बढ़ाने, मस्तिष्क की आशंका आदि लक्षण को दूर करती है। यह औषधि रोग के समय निष्क्रियता की अवधि, रीढ़ की हड्डी सम्बंधी लक्षण, त्वचा व मांसपेशियों के बीच का दर्द, स्रावों से आराम मिलना जैसे लक्षण, भय के कारण गले का बैठ जाना, लास्य (पैर चलाने के लक्षण), बेहोशी के लक्षण के साथ चेहरे का फीका पड़ जाना और चेहरा ठण्डा पड़ जाना आदि लक्षणों में विशेष रूप से उपयोगी है। शरीर में खून की कमी के साथ उत्पन्न पागलपन, उदभेद दब जाने के कारण उत्पन्न होने वाले रोग, पुराने रोग के साथ मस्तिष्क एवं रीढ़ की हड्डी सम्बंधी लक्षण, कंपन, नाचने से उत्पन्न बेहोशी और अस्थिर पद आदि लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है।
इस औषधि के प्रयोग से खून में मौजूद लालरक्तकणों की कमी दूर होती है और खून में लालरक्तकणों को समाप्त करने वाले जीवाणु नष्ट होते हैं।
शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर जिंकम मेटालिकम औषधि का उपयोग :-
मन से सम्बंधित लक्षण :- मन से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें रोगी की स्मरणशक्ति कमजोर होने लगती है तथा उसे थोड़े देर पहले ही कही हुए बातें याद नहीं रहती। ऐसे रोगी शोर-शराबा पसन्द नहीं करता तथा हल्के शोर-शराबा में ही गुस्सा हो जाता है। इसके अतिरिक्त काम करने की इच्छा न करना, किसी से मिलने या बातचीत करने की इच्छा न होना। दूसरे के कहे हुए बातों को दोहराते रहना। मन में बुरे विचार आना तथा काल्पनिक रूप से भयभीत रहना। विषादोन्माद (रोग के कारण उत्पन्न पागलपन), आलस्य तथा मूर्खता तथा आंशिक पक्षाघात (लकवा) आदि मानसिक लक्षणों से ग्रस्त रोगी को जिंकम मेटालिकम औषधि देनी चाहिए। इस औषधि के प्रयोग से विभिन्न लक्षण समाप्त होकर रोगी ठीक होता है।
सिर से सम्बंधित लक्षण :- सिर चकराने के साथ ऐसा महसूस होना जैसे वह बाईं ओर गिर जाएगा। अधिक शराब पीने के कारण उत्पन्न सिर दर्द। सिर में पानी भरना। रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे सिर एक ओर से दूसरी ओर लुढ़क रहा है। ऐसा सिर दर्द जिसमें रोगी अपने सिर को तकिए के नीचे दबाता रहता है। पश्चशिरोपेदना के साथ कपाल के ऊपरी भाग में दर्द होना। सिर और हाथों को अपने आप चलते रहना। मस्तिष्क का थक जाना तथा स्कूल के बच्चे तथा व्यक्तिओं को अधिक मानसिक कार्य करने से होने वाले सिर दर्द। सिर का ठण्डा होना, मस्तिष्काधार गर्म। सिर के बाल झड़ना तथा गंजापन। मन में डर के कारण अचानक चौंक पड़ना। इस तरह के सिर से सम्बंधित लक्षणों में से कोई भी लक्षण उत्पन्न होने पर रोगी को जिंकम मेटालिकम औषधि देने से लाभ होता है।
आंखों से सम्बंधित लक्षण :- प्रस्तरी अर्म (Pterygium) चीसें मारता हुआ आंखों में दर्द, आंखों से अधिक आंसू आना तथा पलकों पर खुजली होना। आंखों में दबाव होने के साथ रोगी को ऐसा महसूस होना जैसे आंखों को सिर के अन्दर दबा दिया गया हो। पलकों और भीतरी कोनों की खुजली और क्षतवत् दर्द। पलकों का लटक जाना। आंखों के गोले घूमना। आंखों के ऐसे लक्षण जिसमें किसी वस्तु को देखने पर आधी ही दिखाई देती है तथा उत्तेजित पदार्थ से लक्षणों में वृद्धि होती है। आंखों से टेढ़ा दिखाई देना। आंखों से ठीक न दिखाई देना या धुंधली दिखाई देने के साथ तेज सिर दर्द। आंखों की \'वेतपटल (सफेद भाग) लाल होना व उसमें जलन होना जिसके कारण आंखों के अन्दर के कोण अधिक प्रभावित होते हैं। ऐसे आंखों से सम्बंधित लक्षणों में से कोई भी लक्षण से यदि रोगी पीड़ित हो तो जिंकम मेटालिकम औषधि का सेवन कराएं।
कान से सम्बंधित लक्षण :- कान में फाड़ती हुई तथा सुई चुभने की तरह दर्द होने के साथ कान का सूज जाना। कान से बदबूदार पीब आना आदि कान से सम्बंधित लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का सेवन करना चाहिए।
नाक से सम्बंधित लक्षण :- नाक के अन्दर ऊपर की ओर घाव होने जैसा महसूस होना तथा नाक के जड़ में दबाव महसूस होना आदि लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का सेवन कराना चाहिए।
चेहरे से सम्बंधित लक्षण :- चेहरे का फीका पड़ जाना, होंठ फटना तथा मुंह के कोने फट जाना। ठोड़ी पर लाली और खुजलीदार फुंसियां होना। चेहरे की हड्डियों में फाड़ता हुआ दर्द आदि चेहरे से सम्बंधित लक्षणों में रोगी को जिंकम मेटालिकम औषधि देने से लाभ होता है।
मुंह से सम्बंधित लक्षण :- दांतों का ढीला पड़ जाना। मसूढ़ों से खून आना। दांतों में गुदगुदी होने के कारण दांत पीसने की आदत। मुंह में खून की तरह स्वाद बनना। जीभ पर फफोले पड़ना। बच्चों को दांत निकलने पर होने वाला दर्द, कमजोरी, पैर ठण्डा और अस्थिर होना। इस तरह के मुंह से सम्बंधित लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना लाभकरी होता है।
गले से सम्बंधित लक्षण :- गले का सूख जाना तथा गले में चिपचिपा कफ होने के कारण बार-बार खंखारना पड़ता है। गले और आवाज वाली नली में कच्चापन व खुश्की महसूस होना। भोजन आदि निगलते समय गले की पेशियों में दर्द होता है। ऐसे गले से सम्बंधी लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
आमाशय से सम्बंधित लक्षण :- आमाशय में खराबी के कारण उत्पन्न लक्षण- हिचकी आना, जी मिचलाना तथा कड़ुए बलगम की उल्टी होना। आमाशय में जलन होना तथा मीठी चीजें खाने से छाती में जलन होना। आमाशय में खराबी के कारण थोड़े से शराब पीने पर ही दर्द या जलन होने लगना। दोपहर के समय तेज भूख लगना। खाते समय अत्यधिक जल्दी खाने को खत्म करने की इच्छा करना। मन्दाग्नि रोग ग्रस्त होने के कारण ऐसा महसूस होना जैसे पाकाशय समाप्त हो गया हो। इस तरह के आमाशय से सम्बंधित लक्षणों में से कोई भी लक्षण होने पर रोगी को जिंकम मेटालिकम औषधि देनी चाहिए।
पेट से सम्बंधित लक्षण :- हल्के भोजन के बाद पेट में दर्द होना तथा पेट में अधिक गैस का बनना। नाभि के नीचे किसी सीमित स्थान में दर्द होना। गड़गड़ाहट और मरोड़ पड़ना तथा पेट का फूल जाना। पेट दर्द के साथ पेट पीछे की ओर धंसा हुआ महसूस होना। जिगर का विवृद्ध, कठोर और दर्द होना। तैरते गुर्दे के प्रतिवर्त लक्षण। भोजन करने के बाद पेट में मरोड़ पड़ने के साथ दर्द होना। इस तरह के लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
मूत्र से सम्बंधित लक्षण :- रोगी में उत्पन्न ऐसे लक्षण जिसमें बैठकर ही पेशाब आता है। गैस के कारण उत्पन्न बेहोशी में पेशाब का रुक जाना। चलते, खांसते तथा छींकने से अपने-आप ही पेशाब निकल आता है। ऐसे मूत्र रोग के लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
मल (दस्त) से सम्बंधित लक्षण :- मल का सूखकर कठोर हो जाना तथा कब्ज बनना। बच्चे के हैजा रोग के साथ ऐंठन, मल हरे रंग का आना तथा श्लैष्मिक स्राव होना। अचानक दस्त का बंद हो जाने के कारण उत्पन्न मस्तिश्कीय लक्षण आदि में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग किया जाता है।
पुरुष से सम्बंधित लक्षण :- अण्डकोष की सूजन और ऊपर की ओर खिंचाव महसूस होना। लिंग की तेज उत्तेजना। रोगी में उत्पन्न ऐसे लक्षण जिसमें रोगभ्रम रहता है और साथ ही वीर्यपात हो जाता है। बालों का झड़ना। अण्डकोषों के वीर्य की थैली में खिंचाव महसूस होना आदि लक्षणों में रोगी को जिंकम मेटालिकम औषधि देनी चाहिए।
स्त्री से सम्बंधित लक्षण :- डिम्बकोषों में दर्द होना विशेषकर बाएं डिम्बकोष में तथा दर्द के कारण शान्त रहना कठिन हो जाता है। गर्भवती स्त्रियों में सम्भोग की अधिक इच्छा उत्पन्न होना। मासिकस्राव नियमित समय से पहले या बाद में आना, गर्भवती स्त्री का मासिकस्राव बंद हो जाना। स्तनों में दर्द होना। निप्पल में जख्म होना। रात के समय अधिक मासिकस्राव होना। मासिकस्राव के दौरान सभी रोगों में कमी आ जाना। स्त्रियों के सभी रोगों के साथ बेचैनी, हताशा, ठण्डक, रीढ़ की हड्डी स्पर्शकातरता और अस्थिर पैर आदि लक्षण। मासिकस्राव के दौरान और उससे पहले सुखी खांसी आना। इस तरह के मासिकधर्म सम्बंधित लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
सांस से सम्बंधित लक्षण :- सांस संस्थान से सम्बंधित विभिन्न लक्षण- उरोस्थि के नीचे जलन होने के साथ दबाव महसूस होना। छाती में सिकुड़न और काटता हुआ दर्द महसूस होना। गले में खराश होना। उत्तेजित करने देने वाली तथा शरीर को कमजोर कर देने वाली खांसी जो मीठी चीज खाने से बढ़ती है। बच्चों की खांसी जिसमें बच्चा खांसते समय अपनी मुट्ठी को भींच लेता है। दमा में सांस नली की सूजन के साथ छाती का सिकुड़ जाना। बलगम निकलने के साथ सांस लेने में परेशानी होना। ऐसे सांस संस्थान से सम्बंधित लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
पीठ से सम्बंधित लक्षण :- पीठ में दर्द होने के साथ पीठ को हल्का सा छू जाने से ही दर्द होने लगना। कंधों के बीच तनाव और दंश की तरह दर्द होना। रीढ़ की हड्डी में दर्द होना। पीठ की अन्तिम या पहली कटि-कशेरुका के आस-पास हल्का दर्द होना जो बैठने पर और तेज हो जाता है। रीढ़ की हड्डी पर हल्का जलन महसूस होना। लिखने या कठिन काम करने से गर्दन के पिछले भाग में थकावट उत्पन्न होना तथा स्कंधफलकों में फाड़ता हुआ दर्द होना आदि लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण :- शरीर के बाहरी अंगों में लंगड़ापन, कमजोरी, कंपन और विभिन्न पेशियों में कंपन। एड़ियों का फटना। पैरों को निरन्तर गति कराते रहने जैसे लक्षण। पैरों की वृहद् शिरास्फीति। शरीर से अधिक पसीना आना, बेहोशी के साथ चेहरे का रंग पीला होना। अनुप्रस्थ में दर्द होना विशेषकर ऊपर अंगों में। एड़ियों को छूना सहन नहीं होता तथा ऐसी इच्छा जिसमें रोगी पूरे तलुवों को फर्श पर रखकर चलना चाहता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को जिंकम मेटालिकम औषधि देनी चाहिए।
नींद से सम्बंधित लक्षण :- नींद से सम्बंधित ऐसे लक्षण जिसमें रोगी रात को नींद में ही चिल्लाता रहता है और अपने शरीर कों झटकता रहता है और फिर एका-एका नींद से जाग उठता है। रोगी को नींद में धुंधले सपने आते हैं। नींद में ही रोगी अपने पैरों को चलाता रहता है। रोगी रात को सोते-सोते अचानक ही चिल्लाकर जाग उठता है तथा रोगी को नींद में चलने की आदत पड़ जाती है। ऐसे नींद से सम्बंधित लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
त्वचा से सम्बंधित लक्षण :- स्फीत शिरायें विशेषकर निम्नांगों की। पैरों और टांगों में रेंगने जैसा महसूस होना जिसके कारण रात को ठीक से नींद नहीं आती। त्वचा में उत्पन्न फोड़े विशेषकर शरीर में खून की कमी और स्नायविक रोगियों में। जांघों और घुटनों के पीछे के गड्ढों की खुजली। फोड़े-फुंसियों के दब जाने के कारण उत्पन्न लक्षण। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी को जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
बुखार से सम्बंधित लक्षण :- बुखार के साथ बार-बार पीठ से होकर नीचे की ओर फैलती हुई कंपकंपी। शरीर ठण्डा पड़ जाना। रात के समय बुखार में अधिक पसीना आना। पैरों पर अधिक मात्रा में पसीना आना आदि लक्षणों में जिंकम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
वृद्धि :-
मासिकस्राव के दौरान, छूने से, शाम के समय 5 से 7 बजे के बीच, रात में खाना खाने के बाद, शराब पीने से, आराम करने से, बैठे रहने पर तथा खुली हवा में रोग बढ़ता है।
शमन :-
खाते समय, स्रावों से और उदभेद निकल आने के बाद रोग में आराम मिलता है।
तुलना :-
जिंकम मेटालिकम औषधि की तुलना एगारि, इग्ने, आर्जेण्ट, पल्सा, हेलीबो तथा टुबर औषधि से की जाती है।
यदि स्राव हो गया हो और रोग में आराम मिल रहा हो तो जिंकम मेटालिकम औषधि के स्थान पर लैकेद्व स्टैन या मास्क औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
प्रतिकूल :-
नक्स या कमो औषधि।
मात्रा :-
जिंकम मेटालिकम औषधि के 3 से 6 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। जिंकम मेटालिकम औषधि की तुलना कुछ अन्य औषधियों से की जाती है। इन औषधियों का प्रयोग रोगी में कुछ खास लक्षण उत्पन्न होने पर ही किया जाता है जैसे-
जिंक असेटिकम औषधि:- इस औषधि का प्रयोग रात को जागने के कारण उत्पन्न रोग, विसर्प, मस्तिष्क में जख्म महसूस होने, कम सोने के कारण उत्पन्न होने वाले लक्षण आदि में जिंकम असेटिकम औषधि का सेवन किया जाता है या रैडिमैचर औषधि के घोल की 5-5 बूंद दिन में 3 बार प्रयोग करें।
जिंक ब्रोमेटम औषधि:- इस औषधि का प्रयोग बच्चों में दांत निकलने पर उत्पन्न विभिन्न लक्षणों को समाप्त करने के लिए किया जाता है। यह औषधि सिर में पानी भरना आदि को ठीक करती है।
जिंक आक्सिडैटम औषधि :- जी मिचलाना, मुंह का स्वाद खट्टा होना, बच्चों में अचानक उत्पन्न उल्टी के लक्षण, पित्त की उल्टी करने और दस्त रोग, पेट का फूलना, पानी की तरह पतले मल का आना और साथ ही ऐंठन, सर्दी-बुखार के बाद उत्पन्न उदासी, चेहरा लाल होना, अधिक नींद आना तथा नींद में डरावने सपने आने के कारण नींद का पूरा न होना, रात को ठीक से नींद न आने के कारण उत्पन्न रोग तथा मानसिक और शारीरिक कार्य अधिक करने के कारण उत्पन्न लक्षणों में जिंक आक्सिडैटम औषधि का प्रयोग किया जाता है।
जिंक सल्फ्यू औषधि :- कनीनिका की अपारदर्शिता को दूर करने के लिए इस औषधि का प्रयोग बार-बार नहीं करना चाहिए। कनीनिका की सूजन, जीभ का सुन्न पड़ जाना या लकवा मार जाना, बांहों और टांगों में खिल्लयां, कंपन और आक्षेप आदि लक्षणों में जिंक सल्फ्यू औषधि का प्रयोग किया जाता है।
जिंक सायनैटम औषधि :- मस्तिष्क की झिल्लियों की जलन, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को ढकने वाली झिल्ली की जलन, कंपकंपी के साथ उत्पन्न लकवा, पेट में गैस बनने से उत्पन्न बेहोशी के लक्षण आदि में जिंक सायनैटम औषधि का प्रयोग किया जाता है।
जिंक आर्सो औषधि :- पैर हिलाते रहना, खून की कमी, हल्के काम करने से ही थकान उत्पन्न होने जैसे लक्षण, हताशा और निम्नांगों में उत्पन्न रोग आदि में जिंक आर्सो औषधि का प्रयोग किया जाता है।
जिंक कार्बो औषधि :- सूजन के साथ गले में उत्पन्न लक्षण, तालुमूल ग्रन्थियां सूजी हुई, नीले धब्बे आदि में जिंक कार्बो औषधि देनी चाहिए।
जिंक फास्फो औषधि :- इस औषधि का प्रयोग त्वचा पर जानवरों की तरह दाद होने पर करना लाभकारी होता है।
जिंक म्यूरिएटि औषधि :- रोगी में उत्पन्न ऐसे लक्षण- बिस्तर की चादर नोचने की इच्छा करना, गंध और मुंह का स्वाद खराब होना, त्वचा का नीला-हरा रंग, ठण्डा पसीना अधिक मात्रा में आना आदि लक्षणों में जिक म्यूरिएटि औषधि का प्रयोग किया जाता है।
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