लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम
परिचय-
लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग उन रोगियों के रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है जिनका रोग बढ़कर अधिक गंभीर हो जाता है। यह ऐसे रोगियों के लिए बहुत उपयोगी है जो मानसिक रूप से कमजोर तथा शारीरिक दृष्टि से भी कमजोर होते हैं और शरीर में बहुत अधिक कमजोरी होती है।
शरीर के दाहिने अंगों में घाव होना, विशेषकर गला, छाती, पेट तथा यकृत और डिम्ब प्रदेश में घाव होना। इस प्रकार के लक्षणों के साथ ही रोगी को अधिक लेटने का मन करता है लेकिन हाथ-पैरों को चलाने का मन नहीं करता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
रोगी को और भी कई प्रकार के रोग होते हैं जो इस प्रकार हैं- लालची, कंजूस, धन का लालची, दूसरे के प्रति घृणा की भावना रखना आदि। रोगी को भय होता है तथा क्रोधित स्वभाव का हो जाता है, अपमान के कारण उसे और भी कई प्रकार की बीमारियां हो जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग करना चाहिए।
विभिन्न लक्षणों में लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग-
पाचन संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- पाचन संस्थान में किसी प्रकार का रोग उत्पन्न होने के कारण पाचन संस्थान की क्रिया भी गड़बड़ा जाती है और इस कारण से रोगी जो भी भोजन खाता है वह सही से पचता नहीं है और रोगी के शरीर में भी कमजोरी आ जाती है तथा कई प्रकार की समस्या भी उसे हो जाती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि उपयोग लाभदायक है।
शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के कई अंगों में फैलाव होने के कारण उनमें ऐंठन तथा सिकुड़न भी होने लगती है जिसके कारण कभी-कभी पेट में मरोड़ तथा अन्य अंगों में मरोड़ भी होने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
हाथ-पैरों से सम्बन्धित लक्षण :- हाथ-पैरों में ऐसा दर्द होना जैसे कि उनमें चीरा लग गया हो या वे अंग फट रहे हो, विशेषकर रात के समय में ऐसा अधिक महसूस होता हैं, हाथ-पैर सुन्न पड़ जाते हैं, ऐसा महसूस होता है कि वे सो गई हों, हाथ पैरों में खिंचाव तथा सिकुड़न होना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग करना चाहिए।
गठिया रोग से सम्बन्धित लक्षण :- पुराना गठिया रोग और जोड़ों में सफेद खड़िया जैसे कण जम जाना और दर्द का असर शरीर के दायीं ओर से शुरू हो कर बायीं ओर जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी जब मल त्याग करता है या मूत्र त्याग करता है तो उसके मल-मूत्र से अधिक बदबू आती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि उपयोग लाभदायक है।
हडि्डयों से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के कई हडि्डयों में जलन होने के साथ दर्द होता है तथा रात के समय में दर्द अधिक होता है, अस्थियों का नर्म पड़ जाना, हडि्डयों का अधिक कमजोर होना, शरीर के अन्दरुनी भागों में कोई पुराना रोग होना, सूजन होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
बच्चों से सम्बन्धित लक्षण :- बच्चा जब मूत्रत्याग करता है तो वह रोने लगता है, बच्चे को दर्द महसूस होता है, बच्चा अधिक दूबला-पतला हो जाता है, उसके शरीर में कमजोरी आ जाती है, सिर बहुत बड़ा महसूस होता है तथा शरीर की त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती है, बच्चा अपनी आयु से बहुत बड़ा लगता है, बच्चे का दिन-प्रतिदिन चीखना चिल्लाना बढ़ता चला जाता है, बच्चा दिन में रोता रहता है तथा रात को सोता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी भी बच्चे को है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग फायदेमंद है।
नाक से सम्बन्धित लक्षण :- नाक में सुरसुराहट होती है तथा सिकुड़न महसूस होती है और नींद में सोते-साते अचानक चौंक पड़ना और नाक को रगड़ना, रात को नाक बंद हो जाती है, नाक सूख जाती है, मुंह से ही सांस लेनी पड़ती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि उपयोगी है।
गलशुण्डी से सम्बन्धित लक्षण :- गलशुण्डी बड़ा होने के साथ ही उस पर छोटे-छोटे घावों के निशान पड़ जाते हैं, गलशुण्डिका और जीभ में सूजन होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
चेहरे से सम्बन्धित लक्षण :- गाल के दाहिनी ओर रोहिनी जैसी झिल्ली जम जाती है अथा रोहिनी रोग हो जाना, मुंह के अन्दरूनी भाग में भूरी लाली जमना, झिल्ली दाहिनी ओर से बढ़ जाती है और नाक से नीचे उतरती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग करना चाहिए।
गुर्दे और कमर से सम्बन्धित लक्षण :- गुर्दे और कमर में दर्द होता है तथा पेशाब करने के बाद दर्द कम हो जता है ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग लाभदायक है।
मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- मूत्र से सम्बन्धित रोग होने के साथ ही गुदा और मूत्राशय में चुभन होती है, पेशाब में लाल रक्त के कण दिखाई पड़ते हैं, पेशाब करने से पहले कमर में दर्द होता है और पेशाब करने के बाद दर्द ठीक हो जाता है, पेशाब में लिथिक एसिड की कुछ मात्रा आने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का सेवन करना चाहिए।
नपुंसकता से सम्बन्धित लक्षण :- नपुंसकता रोग होने के साथ ही रोगी को संभोग करने की इच्छा अधिक होती है तथा समय से पहले अपने आप ही वीर्य निकल जाता है और इसके बाद लिंग ठण्डा हो जाता है तथा संभोग की शक्ति कम हो जाती है अर्थात संभोग करने का मन नहीं करता है, संभोग करने के समय में लिंग में हल्का कड़ापन होता है, संभोग करते समय नींद सी आने लगती है, रोगी संभोग के प्रति भयभीत हो जाता है तथा जम्भाई आती है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
मासिकधर्म से सम्बन्धित लक्षण :- प्रदर रोग होने के साथ अधिक मात्रा में स्राव होना तथा इसके साथ ही योनि के दायीं ओर से बायीं तरफ जाने की चीरती हुई सी वेदना होती है, स्राव अधिक होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्रियों के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :- योनि में सूखापन महसूस होता है, संभोग क्रिया करते समय और संभोग के बाद योनि में जलन होती है, हर बार मलत्याग करते समय प्रजननांगों में से खून बहने लगता है, स्तन के निप्पलों में पीब जमने लगती है और तेज दर्द भी होता है, गर्भवती स्त्री को ऐसा महसूस होता है कि उसका भ्रूण पलट गया है, भ्रूण सही स्थिति में नहीं रहता, कलाबाजी खाता रहता है, योनिपथ में वायु सरसराती हुई महसूस होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्रियों के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
सांस संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी जब सांस लेता है तो उसके सांस यन्त्र से आवाजें निकलती रहती हैं, नाक बंद हो जाता है, दिन-रात को नाक से सांस लेना मुश्किल हो जाता है, नाक से पीला हरा श्लेष्मा (कफ) निकलता रहता है, नाक के नथुने फड़फड़ाते रहते हैं। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग अति लाभकारी है।
फेफड़ों से सम्बन्धित लक्षण :- फेफड़ों में जलन होती है, छाती में कफ जम जाता है और सांस लेते समय घरघराहट होती है, सांस लेने में परेशानी होती है, नाक के नथुनों के दोनों तरफ फड़कन होती है, खांसी हो जाती है, खांसने पर अत्यधिक कफ निकलता रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग करना चाहिए।
बच्चों से सम्बन्धित लक्षण :- बच्चे को टी.बी. हो जाता है या फिर सूखा रोग होने के साथ ही खांसी हो जाती है, ऐसे बच्चे के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का सेवन करना चाहिए।
पेट से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को खट्टी-खट्टी डकारें आती है तथा शरीर से पसीना निकलता रहता है तथा उल्टी खट्टी आती है और अविराम ज्वर हो जाता है और पेट फूलने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
शरीर के बाहरी अंगों से से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर के बाहरी अंगों में सर्दी तथा कंपकंपी होती रहती है तथा पसीना भी आता रहता है और प्यास भी लगती है, बुखार आ जाता है तथा खट्टी डकारें आती है, मलेरिया ज्वर होने के साथ ही कमजोरी आ जाती है, अकेले रहने से डर लगता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का सेवन करना लाभदायक है।
आंखों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है, नीचे के जबड़े आपस में लटक जाते हैं, आंखों के सामने धुंधलापन छा जाता है तथा मुंह से सांस लेना पड़ता है, सोते समय अंग फड़कना और झटके लगते रहना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी जब आराम करता है तो उस समय अधिक कमजोरी महसूस करता है, वह किसी भी काम को करना नहीं चाहता है, सुबह के समय में उठने पर कमजोरी महसूस करता है, शरीर में ऐंठन और अकड़न होती है, शाम के समय में बेचैनी महसूस होती है, शरीर में कंपकपी हो जाती है, ऐसा महसूस होता है कि शरीर में खून का संचारण रुक गया है, समय होने से पहले ही बूढ़ा दिखने लगता है, ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग करना चाहिए।
जीभ से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी की जीभ मुंह के अन्दर इधर से उधर एक ओर से दूसरी ओर जाता रहता है, माथे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं, सिर सीधा नहीं रहता है, सिर एक ओर लटका रहता है, सूखा रोग हो जाता है, शरीर की त्वचा में खुजली होती रहती है, कान से पीब जैसा स्राव होता है, अरक्त ज्वर हो जाता है तथा इसके साथ ही रोगी को कम सुनाई देता है, शाम की रोशनी में कम दिखाई देता है, रोशनी के सामने कुछ भी देखने में असमर्थ रहता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी जब किसी चीज को देखता है तो उसे उस चीज का आधा भाग साफ दिखाई देता है लेकिन दायां भाग साफ दिखाई नहीं देता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग फायदेमंद है।
चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर की त्वचा पर कई जगह गांठें हो जाती है तथा सूजन और मवाद पड़ जाती है, खांसी हो जाती है तथा खांसते समय कनपटियों में और छाती में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
गर्दन से सम्बन्धित लक्षण :- शरीर का ऊपरी भाग सूख जाता है तथा गर्दन और छाती पर सूजन हो जाती है, एक पांव गर्म और दूसरा ठण्डा रहता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग लाभकारी है।
सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के माथे पर ऐसी जलन होती है जैसे की कोयला जल रहा हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग लाभदायक है।
मल से सम्बन्धित लक्षण :-
* रोगी को मलत्याग करने में रुकावट महसूस होती है तथा मलत्याग करना लगभग असम्भव हो जाता है, बवासीर का रोग होने के साथ ही मलद्वार से रक्त का स्राव होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग करना चाहिए।
* स्त्री रोगी को मलत्याग करने में परेशानी होती है तथा मासिकस्राव होने पर यह समस्या अधिक होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
* रोगी को मलत्याग करना असम्भव हो जाता है तथा मलत्याग करने की इच्छा होती है लेकिन मलत्याग ठीक से नहीं होता है, रोगी को ऐसा महसूस होता है कि जैसे मलद्वार पर कुछ रखा हुआ है, मल गुदा द्वार से अन्दर रहने के कारण कब्ज की समस्या हो जाती है, रोगी के जीभ का स्वाद खट्टा हो जाता है, खट्टी डकारें आती हैं, उल्टी आने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग लाभकारी है।
यकृत से सम्बन्धित लक्षण :- यकृत क्रिया बिगड़ जाती है तथा यकृत और फेफड़ों में रोग हो जाता है, रात के समय में मुंह का स्वाद कडुवां हो जाता है, पेट भरा रहता है, मिठाई खाने की इच्छा होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग लाभदायक है।
पेट से सम्बन्धित लक्षण :- ऐसा महसूस होता है कि पेट में कुछ पक रहा है, पेट में गड़गड़ाहट होती है, पेट के ऊपरी भाग में तथा आमाशय में जलन महसूस होती है, सर्दी लगती है, बुखार होने लगता है तथा खट्टी उल्टी आती है, तेज भूख लगने के कारण भोजन करने बैठता है लेकिन दो चार कौर (ग्रास) खाते ही खाना छोड़ देता है, ऐसा लगता है कि पेट भर गया, कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि गले तक खाना आ गया है, रोगी को तेज भूख लगने के कारण रात को उठकर टहलने लगता है, जितना खाना खाता है, उतनी ही खाने की इच्छा कम नहीं होती है, अगर रोगी खाना नहीं खाता है तो सिर में दर्द होने लगता है, पेट में अत्यधिक वायु भर जाती है, पेट फूलने लगता है, जब डकारें आती है तो कुछ राहत मिलती है, भोजन करने के बाद औंघाइयां आती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का सेवन करना चाहिए।
आंतों से सम्बन्धित लक्षण :- आंतों में वायु इकट्ठा हो जाती है, जो ऊपर की ओर चढ़ती है और गले के पास आकर जमा हो जाती है, जब डकारें आती है तो राहत मिलती है, सांस लेने में परेशानी होती है, डकारें आने पर पेट दर्द होने से राहत मिलती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का उपयोग करना चाहिए।
पाचन से सम्बन्धित लक्षण :- पाचन क्रिया धीमी हो जाती है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग लाभदायक है।
आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- आमाशय के निचले भाग पर सूजन आ जाती है, कसा हुआ कपड़ा पहनना अच्छा नहीं लगता है, गले से हृदय तक जलन होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) -
दोपहर के समय के बाद, रात के समय में, शाम को चार बजे से आठ बजे के बीच में, सर्दी लगने से, गर्म कमरे में रहने से, सिर पर कपड़ा लपेटने से, सिर पर मालिश करने से, लेट जाने पर, पेशाब करते समय रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।
शमन (एमेलिओरेशन) :-
हाथ-पैर चलाने से, बिस्तर की गर्मी से, ठण्डी वस्तुओं का प्रयोग करने से, गर्म भोजन करने से और गर्म पेय पदार्थो का प्रयोग करने से, कपड़े ढीले पहनने से, सिर खुला रखने से और डकारें आने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।
अनुपूरक-
आयो, काली-का, लैके।
सम्बन्ध (रिलेशन) :-
कल्के-का, कार्बो-वे, चेली, ग्रेफा, आयो, लैके, नक्स-वो और सल्फर के बाद उत्तम क्रिया करती है।
क्रियानाशक:-
कैम्फ, काष्टि और पल्स औषधियां लायकोपेडियम-क्लेवेन्टम औषधि के दुष्प्रभावों को नष्ट कर देती है।
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