इण्डिगो (नील-डाइ-स्टाफ्फ) INDIGO (Indigo-Dye-stuff)
परिचय-
इण्डिगो औषधि का प्रयोग रोगी के अन्दर उत्पन्न होने वाले लक्षणों के आधार पर रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। यह औषधि कई प्रकार के रोगों के लक्षणों को दूर कर रोग को ठीक करता है परन्तु इस औषधि की मुख्य क्रिया स्नायु प्रणाली पर विशेष रूप से होती है। अत: स्नायु सम्बंधी रोगों में यह औषधि अधिक लाभकारी होती है। मिर्गी की अवस्था में रोगी में उत्पन्न उदासी जैसे लक्षणों को दूर करके रोग को ठीक करने में किया जाता है। इण्डिगो औषधि का प्रयोग मानसिक रूप से बीमार रहने वाले रोगी के लिए भी किया जाता है। यदि किसी रोगी में उत्तेजना के साथ अधिक व्यस्त रहने वाले स्वभाविक लक्षण उत्पन्न हो तो ऐसे लक्षणों को दूर करने के लिए इण्डिगो औषधि का प्रयोग किया जाता है।
स्नायु प्रणाली में उत्पन्न गड़बड़ी के कारण रोगी में उत्पन्न पागलपन को दूर करने तथा स्त्रियों में उत्पन्न होने वाले हिस्टीरिया रोग को दूर करने के लिए इण्डिगो औषधि का प्रयोग किया जाता है। इस औषधि के प्रयोग से हिस्टीरिया रोग से संबन्धित लक्षण समाप्त होते हैं। विषैले लक्षणों में रोगी को इण्डिगो औषधि के स्थान पर काली-पर्माग्ने या सेड्रॉन औषधि भी दी जा सकती है। मकड़ी या सांप के काटने पर उत्पन्न होने वाले घावों को ठीक करने के लिए इस औषधि के पॉउडर को छिड़कने से लाभ होता है।
यदि किसी रोगी की आहार नली सिकुड़कर नीले रंग की हो गई हो तो भी इण्डिगो औषधि का प्रयोग करने से रोग ठीक होता है।
शरीर के विभिन्न अंगों में उत्पन्न लक्षणों के आधार पर इण्डिगो औषधि का उपयोग :-
सिर से संबन्धित लक्षण :- यदि रोगी के सिर में चक्कर आता है और साथ ही मितली उत्पन्न होती है तो रोगी को इण्डिगो औषधि देनी चाहिए। रोगी में बेहोशी उत्पन्न होती है और सिर के चारों ओर पट्टी बांधे होने जैसा महसूस होता है। मस्तिष्क पर बर्फ जम होने जैसा महसूस होता है। रोगी में चिड़चिड़ापन अधिक बढ़ गया है तथा रोगी का मन करता है कि अपने सिर के बाल खींच लूं। इस तरह के लक्षणों में से कोई भी लक्षण हो तो रोगी को इण्डिगो औषधि देने से रोग ठीक होता है।
नाक से संबन्धित लक्षण :- रोगी को अधिक छींके आना तथा नाक से खून निकलना आदि लक्षणों में रोगी को इण्डिगो औषधि देनी चाहिए। इससे रोग में जल्द लाभ मिलता है।
कान से संबन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को कान में दबाव युक्त दर्द होता है और हल्की आवाज भी बहुत तेज सुनाई देती है तो ऐसे लक्षणों में रोगी को इण्डिगो औषधि प्रयोग करना चाहिए।
आमाशय से संबन्धित लक्षण :- आमाशय रोगग्रस्त होने के कारण यदि रोगी के मुंह का स्वाद लोहे की तरह हो गया है तथा रोगी को बार-बार डकारें आती है तो रोगी को इण्डिगो औषधि लेनी चाहिए।
यदि रोगी को भूख नहीं लगती है तथा आमाशय में तेज गर्मी महसूस होती है तथा सिर बढ़ा हुआ महसूस होता है तो ऐसे लक्षणों वाले रोगी को इण्डिगो औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
मलाशय से संबन्धित लक्षण :- गुदा का चिर जाना। मलद्वार में रात के समय तेज खुजली होना जिसके कारण नींद ठीक से न आना आदि लक्षणों में रोगी को इण्डिगो औषधि देना लाभकारी होता है।
मूत्र से संबन्धित लक्षण :- पेशाब का बार-बार आना तथा पेशाब करने के बाद भी ऐसा महसूस होना मानो पेशाब अभी कुछ बाकी है। पेशाब मैले रंग का आना। पेशाब के साथ सफेद पदार्थ का आना आदि मूत्र रोगों के लक्षणों में रोगी को इण्डिगो औषधि देनी चाहिए।
शरीर के बाहरी अंगों से संबन्धित लक्षण :- गठिया (Sciatica) रोग। जांघ के ऊपरी भाग से घुटनों तक तेज दर्द होना। घुटनों के जोड़ों में कोई मोटी वस्तु गड़ने जैसा दर्द होना तथा चलने पर दर्द से आराम मिलना आदि लक्षणों वाले रोगी को इण्डिगो औषधि का सेवन करना चाहिए। इससे रोग के सभी लक्षण दूर होकर रोग ठीक होता है।
यदि भोजन करने के बाद शरीर के किसी अंग में बार-बार दर्द उठता हो तो रोगी को इण्डिगो औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
तन्त्रिका प्रणाली से संबन्धित लक्षण :-
यदि किसी के स्नायु में अधिक उत्तेजना पैदा होती है तो ऐसे में रोगी को इण्डिगो औषधि का सेवन कराना चाहिए।
मिर्गी का दौरा पड़ना, पेट से सिर तक तेज गर्मी महसूस होना, नींद में मिर्गी का दौरा पड़ना तथा कंधे के बीच वाले भाग से दौरे उत्पन्न होना और दौरे वाले भाग पर एक दर्दनाक धब्बा उत्पन्न हो जाना आदि लक्षणों में रोगी को इण्डिगो औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
कीड़े होने के कारण होने वाला प्रतिवर्त उत्तेजना होना आदि लक्षणों को दूर करने के लिए इण्डिगो औषधि का प्रयोग किया जाता है।
वृद्धि -
आराम करने तथा शान्त बैठे रहने से रोग बढ़ता है।
शमन -
रोगग्रस्त स्थान पर दबाव देने, घर्षण करने तथा गति करने से रोग में आराम मिलता है।
तुलना :-
इण्डिगो औषधि की तुलना क्यूप्रम औषधि से की जाती है।
मात्रा :-
इण्डिगो औषधि के 3 से 30 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें