आर्जेण्टम मेटालिकम (ARGENTUM METALLICUM)


परिचय-

शरीर में शक्ति की बहुत अधिक कमी हो जाना तथा धीरे-धीरे शरीर का सूखते चले जाना, ताजी हवा की इच्छा होना, सांस लेने में रुकावट होना, शरीर में अधिक फैलाव महसूस होना तथा बाईं ओर दर्द होना आदि लक्षणों को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि उन रोगी के रोगों को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता है जो अधिक ठण्डी प्रकृति वाले होते हैं, गर्मी पसन्द नहीं करते है, गर्मी से उसके शरीर के दर्द में कमी होती है, सिर दर्द होने के कारण रोगी को गर्मी ही अच्छी लगती है, सिर को दबाने और किसी कपड़े से कसकर बांधने से दर्द से आराम मिलता है, ठण्ड, नम, तूफानी मौसम में गठिया रोग की परेशानी अधिक बढ़ जाती है, रोगी की सारी परेशानियां नींद टूटने पर बढ़ने लगती है, जब रोगी अधिक चलने फिरने का कार्य करता है तो उसकी तकलीफें ज्यादा मालूम होती हैं।

शरीर की हडि्डयों के जोड़ों तथा उनके सहायक अंगों, हडि्डयों, उपास्थियों पर आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का अच्छा प्रभाव देखने को मिलता है।

छोटी-छोटी रक्तवाहिनियां बंद हो जाती हैं अथवा सूख जाती है तथा क्षयकारी रोग उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार के लक्षण गुप्त रूप से आरम्भ होते हैं और देरी से उत्पन्न होते है लेकिन बढ़ते रहते हैं तथा स्वरयंत्र की रुकावट होने पर आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

विभिन्न लक्षणों में आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का उपयोग-

मन से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी का शरीर सूखता जा रहा हो तथा शरीर में बहुत अधिक कमजोरी आ गई हो तथा उसका मन व्याकुल हो रहा हो और उसे ऐसा महसूस हो रहा हो कि समय बहुत धीरे-धीरे चल रहा है तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

सिर से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के सिर की बाईं ओर की नाड़ियों में हल्का-हल्का दर्द हो रहा हो, तथा यह दर्द धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा हो और अचानक ही गायब हो जाता हो, खोपड़ी को छूने से दर्द महसूस हो रहा हो, रोगी जब बहते हुए पानी को देख लेता है तो उसे चक्कर आने लगता तथा उसे नशा महसूस होने लगता है, सिर खाली तथा खोखला सा महसूस होता है, पलकें लाल और मोटी सी हो जाती है, थका देने वाले नजले और छींके आने लगते हैं, चेहरे की हडि्डयों में दर्द होने लगता है, बाई आंख तथा सिर की अगली हड्डी के उभार के मध्य भाग में दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

गले से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के गले में बार-बार खंखार आने लगता है और खंखारने के कारण भूरा, लसलसी जैसा कफ निकलने लगता है और इसके साथ ही गले में दर्द होने लगता है, सुबह के समय में अधिक मात्रा में बलगम निकलता है तथा आसानी से बलगम गले के बाहर निकल जाता है।

श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के गले के अन्दर खंखार अटका हुआ रहता है, आवाज बंद हो जाती हैं इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी जब खांसता है तो उसके गले में दर्द होने लगता है, बलगम आसानी से निकलने लगता है, कफ ऐसा लगता है जैसे उबला हुआ हो, जब रोगी अधिक बोलने का कार्य करता है तो उसे अधिक परेशानी होने लगती है, दोपहर के समय में बुखार और भी तेज हो जाता है, जोर-जोर से पढ़ते समय बार-बार खंखारना पड़ता है, छाती में कमजोरी महसूस होती है तथा बाईं ओर के छाती में ऐसा अधिक होता है, रोगी की आवाज घटने या बढ़ने लगती है और इसके साथ ही बांईं ओर की निचली पेशियों में दर्द होने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

पीठ से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के कमर में तेज दर्द होता है तथा वह झुककर चलने लगता है और इसके साथ ही रोगी को घुटन सी महसूस होने लगती है तथा इसके अलावा शरीर में कमजोरी भी महसूस होने लगती है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना उचित होता है।

मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी को मूत्र से सम्बन्धित बीमारी उत्पन्न हो जाती है तथा इसके साथ ही रोगी को पेशाब अधिक मात्रा में आता है तथा पेशाब अधिक गंदा और मीठा और बदबूदार होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर के हडि्डयों के जोड़ तथा विशेष रूप से कोहनी और घुटने के जोड़ों में दर्द होने लगता है, टांगें अधिक कमजोर हो जाती है, टांगें कंपकंपाने लगती हैं, जब रोगी सीढ़ियों से उतरता है तो उस समय अधिक दर्द होता है, हाथ-पैरों की उंगलियों में अधिक सिकुड़न और ऐंठन होने लगती है, हाथ के अगले बाजू में लकवा जैसा प्रभाव देखने को मिलता है और इस भाग में ऐंठन होने लगती है और टखनें में भी ऐंठन होने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है। 

पुरुष रोग से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के अण्डकोष में कुचलन महसूस होती है तथा संभोग क्रिया करे बिना ही वीर्यपात हो जाता है। रोगी का पेशाब अपने आप निकल जाता है तथा इसके साथ जलन भी होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण :-

* रोगी स्त्री की डिम्बग्रन्थियां बहुत बड़ी सी महसूस होने लगती है और उनमें ऐसा दर्द होता है जैसे बच्चे के दर्द के समय में होता है।

* गर्भाशय के ऊपरी झिल्ली का फट जाना तथा छील जाना और स्पंज कोमल होना, प्रदर रोग होना और प्रदर रोग के दौरान जब स्राव होता है, उसमें से अधिक बदबू आती रहती है।

* किसी किसी स्त्री के गर्भाशय में कैंसर हो जाता है तथा उसमें जलन होने लगती है तथा बाईं ओर की डिम्बग्रन्थियों में दर्द होता है।

* रोगी स्त्री के मासिकधर्म के समय में रक्त का स्राव होने लगता है तथा इसके साथ में रोगी स्त्री को पेट में दर्द भी होने लगता है और कभी-कभी तो झटके लगने महसूस होने लगते हैं।

* रोगी स्त्री को जरायु रोग के साथ हडि्डयों के जोड़ों तथा शरीर के अन्य अंगों में दर्द होने लगता है।


इस प्रकार के स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण होने पर रोग को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

हस्त-मैथुन से सम्बन्धित लक्षण :- यदि रोगी को प्रत्येक रात के समय में स्वप्नदोष होता है या वह हस्त-मैथुन करता है तो ऐसे रोगी के इस आदत तथा इस रोग को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

मिर्गी से सम्बन्धित लक्षण :- यदि किसी रोगी को मिर्गी से मिलते जुलते लक्षण हो तथा बेहोशी हो रही हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

शरीर के अन्दरूनी अंगों से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के शरीर के आंतरिक अंगों (अन्दरुनी भाग) में दर्द होना तथा रूखापन महसूस होना, पेट के बल चित्त लेटने पर हृदय की मांसपेशियों में ऐंठन और मरोड़ होने लगती है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का प्रयोग करना फायदेमंद होता है।

वीर्यपात से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी के लिंग में उत्तेजना खत्म हो जाती है तथा प्रतिदिन रात के समय में अपने आप वीर्यपात हो जाता है जिसके कारण शरीर में अधिक कमजोरी आ जाती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के लक्षणों को ठीक करने के लिए आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि का उपयोग करना चाहिए।

वृद्धि (ऐगग्रेवेशन) :-

गाड़ी से सवारी करने, बातचीत करने, गाना गाने और जोर से पढ़ने से किसी के स्पर्श होने पर, दोपहर के समय में रोग के लक्षणों में वृद्धि होती है।

शमन (एमेलिओरेशन) :-

खुली हवा में रहने, रात के समय में लेटने पर खांसी होने से रोग के लक्षण नष्ट होने लगते हैं।

सम्बन्ध (रिलेशन) :-

प्लैटीना, स्टैनम , अम्पोलोप्सिस तथा सेलीनि औषधियों की तुलना आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि से कर सकते हैं।

प्रतिविष :-

मर्क्यू तथा पल्सा औषधियां आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करती है।

मात्रा (डोज) :-

आर्जेण्टम मेटालिकम औषधि की छठी शक्ति के विचूर्ण तथा उच्च शक्तियों का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए। इसे बार-बार नहीं दोहराई जानी चाहिए।


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