परिचय-
जिस पालतू पशु के तिल्ली में बुखार हो जाता है, उसकी तिल्ली से ऐंथ्रासीनम औषधि बनाई जाती है।
शरीर के कई अंगों में फोड़े-फुंसियां हो जाने पर इसको ठीक करने के लिए ऐंथ्रासीनम औषधि का उपयोग लाभकारी होती है।
शरीर के कई अंगों में जलन, कोशिका-ऊतक (सेल्लुलर टीस्सु) की कठोरता, फोड़ा, गुल्टी (बुबो) तथा संयोजक ऊतक (कोननेस्टीव टीस्सु) में जलन होना। इस प्रकार के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण किसी व्यक्ति को हो गया है तो उसके रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथ्रासीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
शरीर के कई अंगों से रक्तस्राव (खून का बहना) होता है, खून का रंग काला, गाढ़ा तथा तारकोल जैसा होता है। इस प्रकार के लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथ्रासीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
शरीर की कई ग्रंथियां सूज जाती हैं, कोशिका-ऊतक में (ओडेमेटॉस) सूजन आ जाती है और कठोरतापन उत्पन्न हो जाती है, काले ओर नीले रंग के छाले पड़ जाते हैं, किसी औजार से चोट या चीरा लग जाने के कारण उत्पन्न घाव, कीड़ों के काटने से होने वाले जख्म, बदबूदार पदार्थ सूंघने के कारण उत्पन्न लक्षण, कान में जलन होना आदि लक्षणों को ठीक करने के लिए ऐंथ्रासीनम औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
सम्बन्ध (रिलेशन) :-
* ऐंथ्रासीनम औषधि आर्सेनिक औषधि के समान उपयोगी है, जो इसके बाद उत्तम क्रिया करती है।
* पाइरोजीनम, हिप्पोजेनियम, लैकेसिस, एचिनेसिया तथा साइलीशिया औषधियों से ऐंथ्रासीनम औषधि की तुलना की जा सकती है।
मात्रा (डोज) :-
ऐंथ्रासीनम औषधि की तीसरी शक्ति का प्रयोग रोग के लक्षणों को ठीक करने के लिए करना चाहिए।
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